Sunday, December 7, 2014

धैर्य सफलता का सशक्त साधन है (Patience is a powerful tool for success)


हिमालय की दुर्गम चोटी पर एक आश्रम था वहां एक गुरु ने अपने तीन शिष्यों को जीवन की सफलता के अनेक मार्ग बताये और उनका व्यवहारिक पक्ष भी बताया और कहा पुत्रों जीवन में धैर्य और  विश्वास दो ही मार्ग है सफलता के जो इन का अनुशरण करता है उसे ईश्वर अवश्य सफलता देता है यहाँ यह सबसे अधिक महत्व पूर्ण है कि अपना कर्त्तव्य विश्वास और धैर्य को इतना अडिग रखे कि वह आपको अपने संकल्प के प्रति पूर्ण निष्ठ रखे,एक दिन गुरु ने तीनों शिष्यों को चार रोटी और एक दरी देकर ,दूर हिमालय की चोटी  दिखाते हुए कहा कि  वहां से एक दुर्लभ जड़ी बूटी लाना है  ध्यान रहे कि अपने आदर्श और मेरी सीख ही तुम्हे सफल बना पाएगी, दो  शिष्य अलग अलग मार्ग से  जल्दी जल्दी अपने गंतव्य की और चल दिए हुए सबसे छोटे शिष्य से गुरु ने पूछा पुत्र आप नहीं गए शिष्य ने विनम्र भाव से गुरु की वंदना की फिर जड़ी के बारे मेंऔर कठिनाइयों के बारे में जाना और पुनः गुरु की आज्ञा लेकर चल पड़ा रास्ते में तीनों मार्ग एक ऊंचाई पर एक रास्ते में मिल जाते थे वहां एक कुटिया साधु मिला ,वह बुखार से तप रहा था है और सहायता को चिल्ला रहा था ,छोटे शिष्य ने सोचा बड़े शिष्य ज्यादा ग्यानी और श्रेष्ठ है वो प्रतियोगिता तो जीत हीलेंगे , मै इसकी ही सहायता करलूं यह  सोच कर वह उस बीमार की सेवा करने लगा ,अपना खाना उसे खिलाया ,कुछ ठीक होने पर उस बीमार के पूछने पर छोटे शिष्य ने पूरी कथा बताई , वह हंसने लगा फिर बोला पुत्र तुम्हारे साथी तो मुझे भला बुरा बोलकर चोटी पर होकर कल ही लौट गए है तुम्हे देर होगई है पुत्र आप भी जल्दी जाओ शिष्य ने कहा गुरु आज्ञा है तो पूर्ण करनी ही है परन्तु आपको इस हालत में छोड़कर नहीं जाऊँगा तब साधु ने अपना असली रूप  दिखाया शिष्य गुरु के चरणों में गिर पड़ा गुरु बोले पुत्र देखो  मैं और तुम एक पल में वो दवा लेकर अपने आश्रम पहुंचते है शिष्य गुरु आकाश मार्ग से एक पल में हिमालय की चोटी  पर पहुंचे और दूसरे पल अपनी जड़ी लेकर आश्रम आ गए |
कुछ समय बाद दोनों शिष्य आश्रम पहुंचे एक ने बताया मैं  गिर गया काफी चोट लगी है , दूसरे ने बताया कि वो जड़ी की सही पहिचान ही  नहीं कर पाया ,फिर भी लाया तो हूँ मगर क्या है यह नहीं मालूम ,गुरु ने बताया कि तुम जल्द बाजी और अविश्वास के कारण पराजित हुए हो तुमने यह तक नहीं जाना कि  दवा के गुण धर्म क्या है पहिचान क्या है ,तुममें , मानवीयता और परमार्थ के आधार  भी नहीं है ,गुरु सम्पूर्ण कथा सुनकर वे लज्जित हो गए और छोटा शिष्य विजयी हो गया |

"धैर्य , विश्वास ,परमार्थ और अपनी  सफलता का प्रयोग सर्व हितायः  करने की भावना ही सफलता का मूल मंत्र है जो सफलता आपके स्वार्थो के वशीभूत होकर आपकी ही विलासता में दासी की भाँती आपके इर्द गिर्द घूमती रही वह एक सीमा के बाद आपके समूल विनाश का कारण बन जाएगी, क्योकि उसमे दूसरों के उत्थान की कोई जीवन स्वांसा थी ही नहीं ,जबकि संसार का सारा सुख इस बात में है कि आपको कोई श्रेष्ठ मानता भी है या नहीं "

धीरज , और विश्वास जब लक्ष्य का सहारा पाते है तो ये दो अजेय सफलता के साधन बन जाते है जो लोग इन साधनों के सहारे अपना कर्त्तव्य मार्ग  तय करते है वो पूर्ण सफलता प्राप्त कर पाते है ,क्योकि इनके बिना जीवन की गति इस प्रकार की ही होती है जैसे किसी बिना ब्रेक की गाड़ी को बार बार टकरा देना और फिर डेंट पेंट करके चल देना और जिंदगी इसी तरह रोती  चिल्लाती चली जाती है और बार बार हम जीवन पर दोषारोपण करते रहते है ,अपने लक्ष्य का चयन और उसके प्रति संकल्पित होकर पूर्ण धैर्य से रास्ता तय करने वाले निश्चित सफल होते है

बार बार टूटता विश्वास  और धैर्य आपको इतना  अपने लक्ष्य के प्रति इतना अस्थिर कर देता है  कि आप विकास की सम्पूर्ण धारणाएं भुला देते है और आपका सम्पूर्ण मस्तिष्क इस बात में लग जाता है की मै  क्या कर पाउँगा ये सब ?बेकार है , समय गंवाना ,और मेरे साथ ही क्यों होता  है ये सब  , इन सब प्रश्नों के जबाब बहुत सरल है कि आपका अपने  प्रति जो दृष्टी कोण है वह पूर्णतः नकारात्मक है , आप जो  मिल जाए उसमे संतुष्ट है , आप समस्याओं से भागते हुए केवल सफलता ही चाहते है |

सफलता और विलासता की जिंदगी की चाह में आपने अचानक भागना आरम्भ कर दिया  चौराहे से थोड़ा ही आगे बढे आपको लगा यह तो बेकार रास्ता है, आप फिर  लौटे और दूसरी तरफ़ भागने लगे, और फिर भागते भागते आपकी हिम्मत टूटने लगी ,आपने निर्णय किया की वापिस तीसरे मार्ग से जाऊँगा मगर एक लम्बी रेस के बाद तीसरे मार्ग ने भी अपनी कठिनाइयां बताईं ,तो चौथे मार्ग का अनुशरण किया   वहां की दुर्गमता ने बताया इससे तो पहले वाले रास्ते ही ठीक थे ,परन्तु इस  अस्थिरता की विचारधारा ने बहुत बड़ा समय निकल दिया हमारे जीवन से , और हम उसी चौराहे  पर खड़े रह गए जहाँ से हम चले थे ,हताश और उदास से ,मित्रों ,प्रयत्न ,कर्म , लक्ष्य और क्रियान्वयन सब था आपके पास मगर केवल स्वयं पर विश्वास  और धैर्य की कमी ने  आपको सफलता से दूर रखा है |

जीवन में हर कार्य बहुत कठिन है , जिसने कार्य सीख लिया उसके लिए वह  सरल हो गया जिसने उसकी क्रियान्वयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए उसके लिए वह सबसे कठिन  होगया है ,जीवन में हजारों ऐसे काम है जो हम करते है जो दूसरों के लिए अति दुष्कर है ,अपने लक्ष्य को स्थिर क्रियान्वयता दो और उस बहुत ऊंची चोटी  के दोनों ओर धैर्य और विश्वास की मजबूत रस्सी बांधें और अपनी यात्रा आरम्भ कर दें ,फिर सफलता से पहले कुछ नहीं का सिद्धांत आपको स्वयं यह बता देगा कि  जीवन में लक्ष्य की साधना के सिद्ध करने में केवल धैर्य और विश्वास ही सशक्त साधन हो सकते है |

निम्न  प्रयोगों को भी जीवन में प्रायोजित करके देखें
  • जीवन का हर कार्य कठिन है और उसे सीखने में नियत समय लगता है , और वही कार्य एक दिन आपको सिद्ध कर देगा जब समाज का बहुत बड़ा वर्ग उसके चयन से डरता होगा और आप उस कार्य में सिद्ध हस्त होंगें | 
  • बहुत बड़ी सफलता के लक्ष्य में फेल हो जाना, छोटी छोटी समस्याओं में सफलता हासिल करने से ज्यादा महत्व पूर्ण है क्योकि  छोटी सफलता आपको भीड़ जैसा बना देती है ,जबकि बड़ा लक्ष्य आपको देर से ही सही नई पहिचान देता है | 
  • जीवन काल में जो कार्य पूर्ण धैर्य और विश्वास  के बल पर प्राप्त होता  है वह आपके मानसिक बल में बहुत तेजी से वृद्धि करता है और उससे भागने की चेष्टा नहीं की जाती | 
  • हर कार्य का एक समय के अनुरूप एक जीवन चक्र होता है और उस समय को आपको बहुत सकारात्मकता के साथ निकलना चाहिए क्योकि ,जीवन के अनेक कार्य ऐसे है जो समय के साथ ही पूरे होते है उनमे नकारात्मक भाव न लाएं | यही उनकी सफलता है | 
  • कार्य आरम्भ करके आप दूसरों का विश्लेषण नहीं सुनें क्योकि समाज अपने से अधिक अच्छा काम आपको करने नहीं देगा वह हमेशा आपको उसकी कठिनाइयां बताएगा आप मौन होकर कार्य करते रहें | 
  • दूसरों से तुलना किये बगैर आप अपने कार्य में लगे रहें क्योकि तुलना से या तो आपमें अहंकार पैदा होगा या आप स्वयं को उदासीन करने लगेंगे जबकि ये दोनो परिस्थितियां आपके लिए नकारात्मक है | 
  • बड़े उद्देश्य और कार्य की समस्याएं भी बड़ी ही होंगी और समस्यां आने का आशय है कि  आप सफलता के नजदीक आते  जारहे है , जहाँ समस्याएं ख़त्म हो जाएँ वहां आप अकर्मण्य हो जाते है | 
  • अपने विश्वास एवं धैर्य को परखते रहें , की कहीं आपमें इनकी कमी तो नहीं आ रही क्योकि इनके साथ आपको केवल सफलता ही नहीं  वरन  संतोष भी प्राप्त होता है | 
  • दूसरों के कार्यों से द्वेष , और नकल का अध्याय नहीं लें बल्कि सबसे सामान और सकारात्मक भाव से मिलें , जिससे आपके व्यवहार में स्वयं सकारात्मकता आजावेगी | 
  • नए विचारों और सकारात्मक क्रियान्वयन हेतु स्वयं को एकाग्र करके चिंतन करें ,ध्यान  के माध्यम से अपनी समस्या और कार्य के बारे में नए विचारों और कार्य शैली का आवाहन करें , निश्चिततः परिणाम आश्चर्य जनक होंगें एक बार प्रयोग अवश्य करें |






Thursday, December 4, 2014

न्याय का सिद्धांत है जीवन (Justice is the principle of life)


एक  राजा ने  अपने एक राज पुरोहित के न्याय और सत्य से प्रभावित होकर एक बड़ा राज्य दे दिया और यह भी  कहा महाराज मैंने आपसे न्याय सिद्धांत और और राजनीति सब सीखा है मैं सत्य ,न्याय और मानवीयता की भलाई के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर सकता हूँ ,शायद ये सब मैंने बहुत कुछ आपसे ही सीखा है राजपुरोहित अभिमान में स्वयं को सराहते रहे और सम्पूर्ण राज्य सभा को इस दृष्टी से देखा कि जैसे न कोई सत्यवादी हुआ न होगा । नए राज्य की कल्पना कल्याण , सुविधाएं ,व्यापार और न्याय की दृष्टि से पुरोहित जी ने बड़े कठोर नियम बनाये जिसमे कही से भी गलत काम करने वाले का बचाव नहीं था , वैभव और विलासताओं ने पुरोहित जी में कई कमियां पैदा कर दी थी अय्याशी, दुष्कर्म ,शराब और नीच महिलाओं के साथ करने वाले पुरोहित हर अपराध के लिए रिश्वत लेने लगे ,एक दिन पुरोहित जी के ७ वर्ष के बच्चे  ने पूछा  पिताजी आपने बहुत कड़े क़ानून का दरवाजा बनाया है जिससे कोई दुष्ट बच नहीं सकता सब आपकी बढाई करते है , पुरोहित जी बहुत खुश हुए और अगले ही पल उन्हें अपने कर्मों की याद ने नीच सिद्ध कर दिया ,पुरोहित के मन में अपने दुष्कर्म के चित्र घूम गए उसे यह बड़ा भय लगा कि मै   जिन दुष्कर्मों में हूँ उसके  लिए मुझे भी फांसी हो जाएगी ,पुरोहित  ने बड़े भारी सत्य और न्याय के कठोर द्वार में एक सूराख बनाया और चमकीला स्टीकर लगा दिया सोचा यह कि कभी मैं फंसा तो यहन से निकल जाऊँगा  ,पुरोहित के सारे राज्य अधिकारियों ने भी अपने  २ अनुसार न्याय  में परिवर्तन कर डाला और अपने अपने अपराधों में बचने केलिए नियम बनाये और बड़े कानून के दरवाजे में सूराख करके  स्टीकर लगा दिए गए सम्पूर्ण न्याय ,अन्याय ,अपराध और शोषण से भर गया मानवता त्राहि २ कर उठी ,पुराने  सम्राट ने पुरोहित के राज्य की घोर आपराधिक प्रवृतियाँ , शोषण , और मानवता का अपमान और उदंड ,आततायी प्रवृति देख कर कई बार समझाया नहीं मानने पर एक बड़ी सेना भेज कर पुरोहित के राज्य पर कब्जा कर लिया और पुरोहित को फांसी दे दी गई ।


"कठोर न्याय का भय उसके निर्माणक को यह  अवश्य बता देता है कि सत्य ,और न्याय उस कुँए के सदृश्य है जिसमे जैसा कर्म डालने  का प्रयत्न करेंगे वैसा ही निरणय या प्रतिफल सामने आएगा , समय की स्थिति में जल्दी या देरी हो सकती है परन्तु हर परिणाम आपको ही भोगना है क्योकि न्याय के न आँखें होती है न भावनाए और नहीं रिश्तों को निभाने का मन वह तो केवल यह जानता है की मैं प्रकृति हूँ और मुझे तुम्हारे कर्मों के प्रतिफल में वही देना है जो तुमने मुझे दिया है   यह मेरा दुर्भाग्य है कि  मुझ पर प्रसंशा और माफी दोनो ही नहीं है "


हम सामान्य जीवन में जिस विधि से जीते है  वहां हर पल हमे न्याय करना होता है या देखना  है , मन , बुद्धि ,कर्म एवंम सोच में भी अन्याय को अनुभव करना , देखना , चिंतन करना और न्याय करना ये सब हमारे व्यक्तित्व के निर्माण के सशक्त भाग है ,जब भी हम जीवन के इन  भागों की अनदेखी करेंगे तब तक हमारा व्यक्तित्व भी कमजोर असहाय और अशक्त ही माना जाएगा और जीवनमें कभी हुएं स्वयं से भी  प्रसंशा नहीं मिल पाएगी ,रिश्तों , समाज , परिवार और राष्ट्र की सोच के लिए हमें सोचना ही होता है परन्तु यह ध्यान रहे कि हम किसी का ध्यान या ख़याल करके न्याय के बारे में नहीं सोच सकते

 

 एक बड़े गुण्डे द्वारा किसी बेबस बच्ची को परेशान करने की घटना पर हम कह सकते है --- वो ऐसी ही है ,------वो हमें भी मारेंगे ------हमक्या करसकते है ------- उनपर हथियार है ------- या उसके विरोध , सहायता या आलोचना की जा सकती है ।  मित्रों आप ही निर्णय करो कि  क्या मै  अपनी बच्ची को न  बचा पाया इसकी प्रसंशा करूँ या स्वयं बच गया  खुश हो जाऊं ,या अपनी अकर्मण्यता को प्रसंशा दूँ , यह प्रश्न आपके साथ ही छोड़ देता हूँ |


                                          समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध

                             जो तटस्थ समय लिखेगा उसका भी अपराध


                                                                                                                                         दिनकर

जीवन  के सशक्त दर्शन का सिद्धांत इसी वाक्य   आरम्भ हुआ है आप जीवन के चारों और जो सिद्दांत , नियम , और चिंतन की सीमाएं बना रहे है वो आपका सही निर्माण कर सकती है ,यदि आज आप अपने शरीर मन ,बुद्धि और ,परिवार समाज और राष्ट्र को न्याय देने का भाव नहीं रख पाये तो ध्यान रहे  कि प्रकृति के न्याय के सामने हम भी

वैसे ही अपराधी होंगे जैसे अपराध करने वाले लोग हैऔर हमें हमारा अंतः  कभी माफ़ नहीं करेगा ।

  

"एक चिड़िया का छोटा सा बच्चा मेरे ही सामने फुदक फुदक कर रोटी के टुकड़े से खेल रहा था और और मेरे देखते देखते पंखे की तरफ जाने लगा और कट कर मर गया "मन ने तुरंत  कहा मुझको क्या , परन्तु अंतर मन ने कहा  तू हत्यारा है , अपराधी है , अन्यायी है और तू अकेला इस अपराध के लिए दोषी है तुझमे मानवीयता तक नहीं है धिक्कार है तुझ पर तेरे न्याय पर और तेरी मानवीयता पर मित्रों कई दिन मन इतना व्यथित   हुआ  कि मेरे अंत मन ने ही मुझसे  विद्रोह कर के मुझे अपनी ही नजर में गिरा दिया इस  भाव की याद से ही मन और शरीर में खेद , लज्जा और दुःख की सिरहन उठती रही जीवन भर "


आधुनिक मनेजमेंट में सबसे ज्यादा महत्व पूर्ण विषय है कि आप  स्वयं अपने बाह्य और आतंरिक न्याय विधि का पालन कीजिए   अन्यथा  आप उस सस्थान के लिए एक दायित्व बनकर रह जावेंगे ,बाह्य न्याय विधि का पालन करना तो आपके  लिए आवश्यक सा है और वह आपको राष्ट्र सेवा का गर्व भी देता है मगर यदि एक बार आपने आतंरिक न्याय विधि का आदर्श निर्माण आरम्भ कर दिया तो ध्यान रखना  की दुनिया की हरेक ऊंचाई आपके सामने कम हो जाएगी बस एक बार अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को एकत्रित  करकेउस ईश्वर के सामने यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि हे ईश्वर आप वह भाव दें जिससे मैं खुद को न्याय दे सकूँ और समाज में अपने मन वचन कर्म से न्याय की परिभाषा  बन सकूँ |



न्याय के सिद्धांतो को इन कसौटियों पर एक बार फिर परखें

  • हम अपने आपसे न्याय करते रहें  , इसे पहचानने का एक माध्यम यह है कि  जिसे हमारा मन सही नहीं ठहराये उसे कैसे भी स्वीकार नहीं करें , मन स्वयं न्याय और अन्याय को भली प्रकार से जानता है | 

  • स्वार्थों के परिवेश में  दूसरे को अन्याय , दोष , और छोटा बताने की कोशिश न करें क्योकि बाद में यह आपके मन को बहुत ज्यादा कष्ट देने वाला है | 

  • वर्तमान की उपलब्धियों के लिए शार्ट  कट लगा कर दूसरों  का बिना ख़याल किये बढ़ने वाले  अकेले रह जाते है और जो लोग टीम भावना के साथ स्थिर होकर समूह में चलते है वे पूर्ण सफलता हासिल कर पाते है | 

  • न्याय के भाव को  अपने व्यवहार से ही आरम्भ करें क्योकि कई ऐसी कामनाये दिल कहेगा जिन्हे न्याय की परिभाषा  अनुचित सिद्ध करदेगा और मन उनके त्याग का मार्ग भी बताएगा | 

  • त्याग, अहिंसा , अपरिग्रह सारे गुण  बहुत बड़े और सामान्य आदमी से दूर दिखते है आप केवल अपना खाना , सुख और ख़ुशी बांटना चालूकरें और दूसरे के दुःख में भागी दार बने ,मेरा यह अकाट्य मनना है ये  गुण आपमें स्वयं पैदा हो जाएंगे | 

  • आपको प्रेम , दया करुणा का भाव चाहिए तो आप उन अबोध सुन्दर शिशुओं  को देखिये जिनके  पास खूंखार कुत्ते और पशु बैठे अपना स्वाभाव छोड़कर दुलार कर रहे होते है | 

  • मन  कि  व्यस्तताओं में आप पर समय ही कहां है परन्तु ईश्वर ने आपको जो समय दिया है उसपर जिस जिस का हक है वह समय उन्हें अवश्य दें यहीं से आपका सर्वांगीण विकास संभव है । 

  • न्याय का सम्बन्ध आपके हर कार्य से बंधा है  ,आप अपनी सोच को केवल यह समझाएं कि  आपको हर कार्य और चिंतन से पहले उसके अच्छे बुरे पक्ष के बारे में सोचना है | 

  • सत्य बोलना बहुत बड़ा गुण  है मगर यदि आपको इसकी आदत नहीं है तो आप चुप रहकर स्वयं को प्रदर्शित करे इससे जल्द ही आप सच के पक्ष धर हो जायेंगे । 

  • दूसरों से छीनने की लूटने की और स्वयं को बड़ा बताने  की चेष्टा आपको छोटा बना रही है , आप एक बार दूसरों को वह सब दें जो आप अपने लिए चाहते है ईश्वर आपको कई गुना लौटा देगा आप विश्वास रखें | 

  • न्याय का भाव सकारात्मकता से आरम्भ होकर सकारात्मकता पर ही ख़त्म होता है ,तो अपनी अंतरात्मा से सबके लिए इतना अच्छा सोचें की अच्छी के शिव कुछ रह ही नहीं जाए | 

  • हम  भौतिक संसाधनों , मित्रता , पद और यश छीने जाने  कारण  अन्याय करने के आदि होते जाते है जबकि यह भूल जाते है कि   जो हमारा है उसपर केवल हमारा अधिकार है , और वो हमे मिलेगा ही  हमारा  था ही नहीं उससे हम उम्मीद भी नहीं करते यह भाव आपको न्याय की  सीखमें और बल देगा |



Sunday, November 30, 2014

आदमी अपने से अधिक दूसरों की समस्या से परेशान है (Man is troubled by the problem than others)

            रनभिष्वङ्गः असक्तिपुत्रदारगृहादिषु  नित्यं  च समचित्तत्वमिष्टानिष्टोपपित्तषु

                                                                                                                            १३\९  भगवद्गीता

पुत्र स्त्री धन और घर में आसक्ति का अभाव,ममता न होना तथा प्रिय और अप्रिय  की प्राप्ति में सदा ही चित्त का सम रहना और विषयासक्त लोगो में प्रेम न  होना ये सब ही ग्यानी का सच्चिदानंद स्वरुप का सार है |

 

गीता के  इन श्लोकों में जीवन का वो दर्शन है जो आम आदमी को यह बताने में सक्षम है की समस्याओं का स्त्रोत दूसरा नहीं हम स्वयं है ,मोह  की अधिकता को आसक्ति के रूप में जब अपना जाल फैलाती है तो हर आदमी को  हम  अपने हिसाब से कार्य करता देखना चाहते है ,उसके मन मष्तिष्क पर स्वयं अपना आधिपत्य देखना चाहता है मन , संसार पर आधिपत्य करने का मन स्वयं अपने आपको बहुत बड़ा और अजेय मानने लगता है और इन सबके बीच स्वयं का विकास शून्य और दूसरे का चिंतन सौ प्रतिशत चलने लगता है परिणाम यह कि व्यक्ति की स्वयं की शांति नष्ट भ्रष्ट हो जाती है ,और जीवन का मूल उद्देश्य उस जीवात्मा  को न्याय नहीं दे पाता  जो उसकी प्राथमिक आवश्यकता थी ,संसार में  अनगिनत  समस्याएँ और सुविधाएं है और आपके जीवन की परम शांति केवल स्वयं के आकलन और आदर्श व्यवहार में है

 

एक  बहुत बड़े  आश्रम में एक संत रहते थे बहुत वैभव था आश्रम में सारी आधुनिक सुविधाएं ,गाड़िया ,बगीचे चमकीले वस्त्र और वह सब कुछ जो आजके आधुनिक संत को  सिद्ध बाबा बनाने के लिए आवश्यक होता है लाखों लोगो की भीड़ में बाबा ब्रह्म ज्ञान की सीख दे रहे थे सब बाबा के ब्रह्म ज्ञान से प्रभावित होकर गहने पैसे अर्पण कर रहे थे बाबा बड़े ध्यान से देख रहे थे हजार रुपये वाले को फल और आशीर्वाद भी देते जा रहे थे , बाबा  से अनायास एक युवा ने प्रश्न किया असल में आपका नाम क्या है बाबा बोले  सच्चिदानंद युवा बोला हाँ  आपको देश के  बड़े नेता अभिनेता सब इज्जत देते है, आपने क्या नाम बताया महाराज बाबा रूखे स्वर में बोले सचििदानन्द ,हाँ  महाराज अनेक राष्ट्रअध्यक्ष , और विश्व के अभिनेता आपके शिष्य है ,क्या नाम बताया आपने बाबा अपना क्रोध संभाल नहीं पाये बोले अरे कमीन  कहा न सच्चिदानंद और बाबा ने तमाम गालियां  देने लगे एक डंडा लेकर भागे उसके पीछे ,उनके शिष्य पेशेवर गुंडों की तरह धक्का देने लगे  युवा पत्रकार समझ गया  कि  बाबा का नाम  सच्चिदानंद ही है । उसके सामने  सत् +चित्त +आनंद  और  ब्रह्म ज्ञान दोनो समझ आ गया था ,वह जान गया कि केवल बाबा दूसरों की स्थिति से जुड़ पाये है अपने आत्म तत्त्व का ज्ञान है ही कहाँ  उनपर | 

 

माता, पिता ,भाई  बहिन ,पत्नी  बच्चे और आपका समाज आपके मित्र और संसार का हर सम्बन्ध आप नहीं हो  आपका जन्म अकेले हुआ था अकेले ही आपको जाना है और अकेले ही आपको अपने मन  बुद्धि और ज्ञानका सुख और दुःख भोगना है , तुलसी ने इसी लिए स्पष्ट किया कि

कोउ  न काहुँ सुख दुःख कर दाता ॥ निज कृत कर्म भोग सब भ्राता ॥

कहने का आशय यह कि यह जीवन न तो दूसरों के दुःख के कारण दुखी है न उनके सुख के कारण  सुखी है  ,सत्य तो यह है कि आप का  अंतः  यह चाहता  है कि मै  सबके साथ अच्छा व्यवहार करूँ   मगर  अपने यश , धन , और उपलब्धियों की स्थिति में कोई परिवर्तन ना आये ,

 

" मर्यादा पुरुषोत्तम राम , भगवान कृष्ण , का जीवन चरित्र   केवल यह बताता है  कि हर परिवार संबंधों ,और हर मनुष्य के प्रति जो कर्त्तव्य भाव है वह पूर्ण निष्ठां से किया जावे ,मगर कर्म के मार्ग में आसक्ति पैदा हुई तो जीवन के सारे सम्बन्ध आपके अस्तित्व पर एक ऐसी बेड़ी  बन जाएंगे जिसमे फंसा आपका अस्तित्व न तो संबंधों का हो पायेगा और न ही मनुष्य  होने का कोई आदर्श स्थापित कर पायेगा क्योकि आप आसक्ति और संबंधों के जाल में फंसे अपना ही अस्तित्व ख़त्म करने का प्रयत्न करने लगे है और आप यह जान  नहीं पाये कि आपने अपनी ही अनदेखी की है "

 

 

  सबको ठीक  करने  की सोच में और सारा वातावरण आदर्श बनाने के नाम पर आज हर घर में एक बड़ा द्वन्द है कोई पिता अपने पुत्र पुत्रियों को कोई बेटा  अपने माता -पिता भाई -बहिनों और अनेक  रिश्तों  को आदर्श की परिभाषाएं समझाने में लगा है कोई यह सोच रहा है  कि यह गलत है यह सही और हर इंसान अपने अनुसार सब लोगों को आचरण करता देखना चाहता है और यही से आरम्भ होता है मानव जीवन का संघर्ष अनवरत चलने वाला संघर्ष  जिसका कोई अंत है ही नहीं शायद हम अपने आपपर केंद्रित होकर सबसे अच्छा व्यवहार , और सम भाव का व्यवहार  रखते और सबको उनके भोग्यों के साथ छोड़ देते तो ज्यादा अच्छा था |आप अपने व्यक्तित्व को इतना सशक्त बनाते जिससे आपका लोग अनुशरण काने लगते | 


हर आदमी आपका शारीरिक शोषण मानसिक शोषण और अदृश्य शोषण का भाव लिए बैठा है और आप स्वयं अपने से अधिक उस बाह्य आत्मा का चिंतन कररहे है आप समझ सकते है कि दूसरों से की गई अपेक्षाएं ही आपके जीवन की शांति भंग करने के लिए पर्याप्त है आपका जन्म अकेले हुआ है औरसबसे  अच्छे व्यवहार के साथ आपको केवल  अपनी जीवात्मा के उत्थान के बारे में सोचना है , माता -पिता ,भाई -बहिन , मित्र -प्रेमी ,पुत्र -पुत्रियां और संसार का हर रिश्ता अपने कर्म अनुसार भोग्य भोग रहा है और उसके सुख दुःख के आप कारक भी नहीं हो , ऐसे में आपका कर्त्तव्य यही है की आप सबसे आदर्श व्यवहार रखें और ,समय समय पर उनकी पूर्ण सहायता करें आदर्श रिश्तों का मायने बने लेकिन उनके कर्म विधान में बाधा  मत बनें |


जीवन में इन्हें अपना कर स्वयं को केंद्रित करें

  • मनुष्य का जीवन चक्र उससे यह अपेक्षा करता है कि वह अपने आपको आदर्श सिद्ध करते हुए जीवन से प्रयाण करे और यह भाव आपको बार बार दोहराना भी है ,| 

  • मनुष्य में अपरमित  शक्ति है उस की खोज और उसे जाग्रत करने की ललक बनाये रखिये , प्राथमिक स्थिति में स्वयं को एकाग्र और अंतर्मुखी करके स्वयं को जानने का प्रयत्न करें | 

  • दूसरों की समस्याओं में सहयोग तो दें मगर उसमे स्वयं को फ़ँसाएं नहीं क्योकि आपकी मदद करने की एक सीमा है उसके बाद आपका कोई भी कार्य सामने वाले को सुख नहीं दे पायेगा | 

  • एक सम्बन्ध के लिए दूसरे को दुःख देने से  हल नहीं निकलते आवश्यक यह है कि  आप सबको समझाए और एक सीमा बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें यह मान लें कि इसका समाधान ईश्वर देगा | 

  • कौन समझेगा और कौन समझायेगा यही प्रश्न बड़े विचित्र है ,हर आदमी अपने हिसाब से सोचना चाहता है अपने बारे में कोई सहानुभूति के लिए छलावा करता है तो कोई शक्ति के अनुसार क्रोध यहाँ आप क्या कर सकते हो यह प्रश्न चिन्ह है 

  • जो चल रहा है उसमे अपनी भूमिका का आकलन करें , और सम भाव से यह चिंतन करें  कि आप न तो पक्ष बनें न हीं एकाधिकार जताएं क्योकि आपका जीवन और  समय निश्चित है और उसमें आपने आपको सिद्ध करना है आपको

  • दुःख उनका नहीं मनाये जो अपने थे ही नहीं  हाँ उनका काम केवल लूटना और दुःख देनाथा वो देकर चले गए अब जो दुःख और क्लेश की शक्ति को एकत्रित करके महा शक्ति बनाकर लक्ष्य के प्रति जुट जाने की बारी है | 

  • जो सुख दूसरों  पर आधारित हुआ वह आपको केवल और केवल दुःख देगा , अतः बहुत सारी अपेक्षाओं  की जगह स्वयं को इतना शक्तिशाली  बनायें कि आपको दुष्ट लोगो की जरूरत ही न पड़े | 

  • इसका दुःख मत मनाओ  कि  तुमने सबके साथ बहुत अच्छा किया है तुम्हें तुम्हारे अपनों ने ही छला है यह तो जीवन का सत्य है यह जब तक आप शक्ति संपन्न और सबल नहीं होगे  आप शोषण के पत्र रहेंगे आप स्वयं को एकाग्र कर स्वयं को सशक्त बनायें| 

  • आपको दूसरों के अधीनस्थ होकर सेवा में नहीं लगना  है वरन स्वयं को सफल सिद्ध करके उनकी मदद करनी है जिससे आपके साथ उनका विकास हो ,| 

  • सबकी सहायता करें सबको अथाह प्यार दें परन्तु उनके उन संघर्षों में जो उन्होंने स्वयं चुने है उनका भाग्य मानें और स्वयं को ज्यादा न फँसाएं |

  • अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाएं  कि आपको देख कर लोग जीवन की परिभाषाएं सीखें क्योकि आप स्वयं में केंद्रित रह कर समूर्ण समाज के हितों को रक्षित कर सकते है |

 






Friday, November 28, 2014

अपनी कमजोरियों को शक्ति में बदलिये ( Customize your weaknesses into strength)


मनुष्य स्वभाव से गलतियों का पुतला रहा है जीवन बार बार गलतिया करता है दुःख पाता  है और फिर चल देता है अपने अनजान गंतव्य की और यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि वह चलता रहता है यातना पाता  रहता है और बार बार वही गलतियां करता जाता है ,न उसे अपने में परिवर्तन की फिक्र होती है न वह संकल्प ही ले पाता है कि वह कुछ आगे सीखेगा | जीवन चलता रहता है और समय खिसक जाता है क्योकि  उसपर किसी का अधिकार ही कहा है ,वह यह सब भी जानता है परन्तु उसने अपने मन मष्तिष्क को इतना हल्का और विचित्र प्रकार का बना रखा है  कि बार बार चोट खाने के बाद भी वह वो ही गलतियां करता है जिनसे उसने अतीत में असहय दुखः पाया है | 

 

दो राह गीर  रात के अँधेरे में चिल्ला  चिल्ला कर बात कर रहे थे एक कह रहा था यार देव क्या है ये जिंदगी समझ नहीं आता केवल दुःख ही दुःख दो पल का सहारा नहीं है जीवन में, पूरा दिन काम काम और काम और  फिर भी हम नौकरों जैसे लगे है जीवन में कोई आशा नहीं है , परेशान होगया हूँ जीवन से ,इतने में दूसरामित्र ओम बोला देख अब गड्ढा आने वाला है अब गिरेंगे अपन, और दोनो गिर गए ,उठे और कपडे  झाड़  कर चल दिए ओम कहने लगा हाँ  बंधू ऐसा  ही है जीवन लड़के अौरत और  घरवाले जब मर्जी आती है ,अच्छे से बात करते है ,कभी भी पिटाई कर देते है सोचता हूँ की अब आत्म हत्या कर ही लूँ ,अबकी देव बोला देखा गड्ढा आनेवाला है दोनों  फिर गिरे गाली देते हुए उठे और आगे चल दिए,| एक बड़े समाज सुधारक संत उनकी बातें सुन कर बड़े परेशान से हो रहे थे मानवता की सेवा के भाव से वे रात में ही उन्हें समझाने को जाने को हुए तो दरबान ने कहा महात्मा आप परेशान मत होइए ये धनाढ्य पिता के दो पुत्र है दोनो रोज रात शराब पीकर इन्हीं गड्ढों में गिरते है उन्हें गाली देते है और फिर दुःख भरी कहानी चालू कर देते है महात्मा जी को दिव्य ज्ञान हुआ जैसे कोई मोक्ष का मार्ग और उसके अवरोध बता रहा हों |और आदमी के जीवन मोक्ष का  सत्य सा जान पड़ा उन्हें ये सब | 


मनुष्य भी ईश्वर के सदृश्य ज्ञान बल और पराक्रम का स्वामी है और उसमे भी अपरे शक्ति और प्रज्ञा का सामंजस्य है बस उसमे केवल अभाव है तो एक संकलित एकाग्रता की शक्ति की जिसके कारण उसका बिखरा हुआ स्वरुप स्वयं को ईइश्वर नहीं बनने देता 

 

हिन्दू धर्म के हिसाब से जब सृष्टि का निर्माण हुआ तो उस सर्वशक्तिमान ने इंसान बनाये अनगिनत इंसान उसी बीच उस शक्ति की सह शक्ति ने प्रश्न किया कि हे देव आपने जो निर्माण किया है वह सम्पूर्ण और  अलौकिक सुन्दर है इसमें किसी प्रकार की कमी नहीं है और इस प्रकार तो ये मनुष्य की जगह देवताओं का निर्माण होगया है हे देव हमें तो मनुष्य बनाना थे सर्वशक्ति मान ने हंस कर अपनी भूल स्वीकार की और अपने पुतलों में कमियां छोड़नी चालू कर दी | सफलता के लिए देवता बनने के सम्पूर्ण गुण तो दिए परन्तु लालच की इतनी कामनाएं फेंक दी कि जिससे वह अपने लक्ष्य की तरफ एकाग्र ही न हो सके परन्तु साथ ही  मन मष्तिष्क की सकारात्मकता में बंद करके संकल्प की वह कुंजी भी रख दी जिससे आदमी स्वयं की कमजोरियों को  पूर्ण शक्ति में परिवर्तित कर जीवन को जीत सकें | 

 

मनुष्य के मन की पहेलियां बड़ी विचित्र है वह सब जानते हुए भी अपनी आँखें बंद ही रखता है और भविष्य में घटने वाले कार्य के प्रति उत्तर से मुंह फेर कर खड़ा हो  जाता है उसी प्रकार जैसे  भैंस अपना चारा खाकर चारे के बर्तन को ही पलट देती है शायद यह सोचते हुए कि अब इसकी आवश्यकता ही क्या है जबकि बार बार उसे इसी क्रम से गुजरना होता है 


दोस्तों हिन्दू मान्यताओं के अनुरूप जो लोग भी अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करके संकल्प के सहारे आगे बढे है वे ही युग पुरुष बन सके है , तुलसी ने पत्नी के तानों में वासना और वैराग्य का फर्क जाना और अमर हुए , वाल्मीक ने डकैती के पाप में केवल वही भागी दार है यह जानकार संसार का त्याग किया , बुद्ध ने जीवन के क्रम में एक भीड़ जैसी जिंदगी जीने को धिक्कारा और ये सब संकल्प की शक्ति के सहारे ही युग पुरुष बने 

 

 

"जब भी आप अपनी कमजोरियों और  सकारात्मक शक्ति की बात करते है तब यह भूल जाते है  कि आपका व्यक्तित्व   स्वयं एक ऐसा विशाल  शॉपिंग  मॉल है जिसमे अन्नंत शक्तियां विद्यमान है आपको अपने स्टोर की पूर्ण जानकारी ही नहीं है और आप अपनी शाप की सूची गिनवा रहें है अच्छा होता एक बार आप अपना पुनः निरीक्षण करके अपने संकल्प से नकारत्मकताओं के हल की चाबी अपने मन मष्तिष्क से ढूढ़ पाते "


अपनी कमजोरियों और शक्ति  की खोज निम्न के साथ भी कीजिए

  • अपनी कमजोरियों को सोचते समय यह अवश्य ध्यान रखिये की आपको ये कैसे मालूम पड़ा की ये कमियां है यदि समाज  भय और दो चार बार की नकारात्मक प्रभाव से आप परेशान है तू फिर प्रयास करें | 

  • मनुष्य का स्वभाव है वह कठिन का विरोधी होता है और जीवन भी सरलतम चाहता है , मगर सरल  के बाद सफलता का कोई मार्ग शेष नहीं होता जबकि कठिन मार्ग में शक्ति श्रम की वृद्धि और बाद में सरल रास्ता भी शेष होता है 

  • कमजोरियां  यह बतातीं है की आप जीवन में सिद्धांत और मूल्य और सोच का आभाव हो रहा है सर्व प्रथम आपको इन्हे संयोजित करके प्रयोग करना चाहिए | 

  • कमजोरियों  कोशक्ति बनाने से पहलें आप जिन लोगो से या स्थितियों से आहत हुए है उनका त्याग कर पूर्ण शक्ति से आत्मकेंद्रित होने की आवश्यकता पर बल दिया है ,यदि आप वो आसक्ति नहीं छोड़ पाये तो सब व्यर्थ हो जाएगा | 

  •   संकल्प की शक्ति इतनी प्रबल होती है जिसमे सम्पूर्ण दुर्बलताएँ जल कर राख हो जाती है ,शिव का महा तांडव यही दर्शाता है कि संकल्प में प्रबल शक्ति निहित है | 

  • दूसरों की सहायता से जीने का ढंग छोड़ कर आप स्वयं अपनी आत्म शक्ति का चिंतन करें इसका यह मतलब कदापि नहीं है  कि  आप अपनी शक्ति के कारण अहंकारी हो जाये ,सबसे मधुर व्यवहार रखिये | 

  • जितने बहिर्मुखी हो आप उतने ही अंतर मुखी होने का प्रयत्न अवश्य करें क्योकि आंतरिक संसार में खोजने को इतना है जो आपको सीढ़ी दर सीढ़ी उच्चतम् शिखर पर ले जाएगा | 

  • कमजोरिया तब तक कमजोरियां है जब तक आप ने उन्हें कमजोरी माना है ,एक दार्शनिक ने कहा कि व्यक्तित्व के जिस गुण  पर  हमने पूर्ण ध्यान नहीं दिया था हम उसे कमजोरी मानने लगे थे | 

  • जीवन को जीते समय आपका भाव वही होना चाहिए था जैसे एक रेस में  दौड़ता हुआ प्रतियोगी अपने आगे वाले से तेज होना चाहता हो | 

  •  जिस सर्वशक्तिमान ने आपको बनाया है उसने हर समस्या एवं कमजोरी के लिए एक चाभी भी बनाई है मन को एकाग्र करके उसे ढूढ़ें एवं प्रयोग करें |

Thursday, November 27, 2014

पहले स्वयं में परिवर्तन करें दूसरों में नहीं (CHANGE YOURSELF FIRST,NOT OTHERS.)


दूसरों के व्यवहार का प्रतिउत्तर देने में हम अपने व्यवहार में जरा सी भी देरी नहीं करते और हर व्यवहार में हमारी यह कोशिश बनी रहती है  कि  हम स्वयं कोश्रेष्ठ सिद्ध करते हुए सामने वाले को  हारा  हुआ सिद्ध अवश्य करदें | मित्रों जीवन कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमे हर प्रतिउत्तर में आप सही ही हों ,क्रोध , दुःख , पश्चाताप ,ख़ुशी या दर्द किसी भी मानसिकता में क्यों न हो आपका व्यवहार संतुलित  होगा और आप बार बार स्वयमेव आदर्शों से समझौता करते रहेंगे या स्थिर रहेंगे यह प्रश्न वाचक ही है |


 गाँव में एक बहुत आदर्श शिक्षक थे जिनसे सारा  गाँव  देश भक्ति और त्याग, बलिदान की कहानियाँ सुनता था जब मास्टर जी  वीर रस की कहानियां  सुनाते तो दस दस गांवों के लोग मुंह खोले देश पर मर मिटने वाले वीर जवानों के प्रति आश्चर्य और श्रद्धा से भर जाते  थे  ,मास्टर जी कहते थे जिसने देश की रक्षा के लिए कार्य नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है और इस प्रकार हर घर के एक व्यक्ति को सेना में भर्ती भी करवा दिया था  ,मास्टर जी ने अपने दोनो बच्चों को सेना में भर्ती होने नहीं भेजा ,उन्हें डर था की उन्हें कुछ हो न जाए ,और मास्टर जी को अपने दोनो बच्चों से अति मोह भी जो था , बच्चे अपने पिता की इस राज नीति से बहुत दुखी थे ,परन्तु कुछ बोल नहीं पाते थे ,अचानक गांव में भयंकर प्लेग फैला  गाँव के अधिकाँश युवा सीमा पर थे वे बच गए मास्टर जी का पूरा परिवार अस्पताल में था ,मास्टर जी ने अपने बगल में पड़े बड़े बच्चे को देखा बच्चे ने कहा पिताजी आप गाँव के हर घर से युवाओं को सेना में भेजने की सीख देते थे परन्तु अपने बच्चों की मौत से डरते थे देखो आज वो सब बच गए है और हम सब संकट में है मेरी साँस टूट रहीं है शायद अब मै अब जारहा हूँ , बच्चा दुनियां छोड़ के जाचुका था | डॉक्टर्स  की बड़ी टीमें आई आधुनिक इलाज चला , बाद में सबको बचा लिए था , गाँव के हर घर  से बच्चों को सेना में भेजने का प्रोत्साहन और बेटे के आखिरी शब्दोंके अंतर्द्वंद में मास्टर जी कई रात  सो नहीं पाये अथाह दुःख था ,लड़के को मरे आज पूरा एक माह हुआ था ,पूरी रात,लड़का स्वप्न में लड़ा था पिता से , सुबह उठ कर पिता ने छोटे बच्चे का हाथ पकड़ा और अब वो डबडबाती आँखों से एक बड़े आलिशान भवन ने सामने खड़े थे जिसपर लिखा था सेना भर्ती कार्यालय   और बच्चा मंद मंद मुस्कुरा रहा था| 


 यही जीवन का सत्य है हम दुनियां से में हजारों लोगो को अपने अनुरूप जीवन जीने का मशवरा भी देते रहते है , बच्चे को परिवरिश देते समय हम आदर्शों से अधिक इस बात में रूचि लेते है बच्चे का हर कार्य हमारे अहम की तुष्टि के लिए करे , यह आवश्यक  नहीं है  कि  वह कार्य सही है या गलत, बस  वह हमारे झूठे सम्मान , प्रतिष्ठा और हमारे घमंड की आपूर्ति का साधन अवश्य होना चाहिए | यहीं से सम्पूर्ण जीवन के आधार डगमगाने लगते है और जिस उम्र में आदर्श , सत्य अहिंसा अपरिग्रह और बलिदान की परिभाषाओं के स्थान पर हम झूठ ,मक्कारी ,असत्य और कैसे भी कार्य निकाल लेने की कला सीख बैठते है परिणाम हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व पर ये धब्बे उस समय तक अपना प्रभााव दिखाते रहते है जबतक हम पश्चाताप करने के लिए जीवन के अंतिम सिरे पर ना पहुँच जाए | 


बहुधा हम सब लोगों का यही  स्वाभाव हो गया है कि  हम सामने वाले के व्यवहार के प्रति उत्तर में कभी अपनी आदर्श सोच का परिचय  नहीं दे पाते यदि सामने वाले ने क्रोध दिखाया तो हमने उसे दुगना क्रोध दिखाते हुए निरुत्तर करना चाहते है , सामने वाले ने रोना चालू किया तो या तो हम ने अपना आधार ही छोड़कर उससे समायोजन के  लिए या उससे ज्यादा चिल्लाकर उसे चुप करादेने में अपनी जीत समझते है ,हम यह नहीं जानते कि हमारे जोर से चिल्ला कर सामने वाले को चुप करने में हमारी जीत नहीं थी हमारी जीत तो तब थी जब हम उसके अंतः के दर्द को उसके जुबान से सुन पाते या उसे कोई मरहम लगा पाते हम केवल यह जानते है कि जो कुछ भी सही है वह  बस हमारे अनुसार ही हो और सब मेरे सड़े - गले निर्णयों पर मूक सहमति बने रहें ,शायद इस सोच से हम अपने भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहे है जिसका मूल्य हमें ही चुकाना होगा | 

 

"हम छेनी हथोड़ा लेकर पूरी ताकत से पत्त्थरों को आकर देते रहे मगर जब एक हथौड़ा अपने ही हाथ पर गिरा तो समझ आया  कि मै पत्थरों पर जिस विनम्रता की मूर्ति को उत्कीर्ण करना चाहता था उसे इतनी जोर से पीटनें की आवश्यकता ही नहीं थी, वह तो किसी बारीक नक्काशी में घूँघट डाले किसी अबोध, अल्हड युवती का चित्र था जो अपने  ईश्वर के सामने आँखें बंद करके बैठी थी और उसे बनाने से पहले मुझे भी उन्ही भावनाओं से जुड़ना होगा "


व्यवहार से पहले इन पर भी चिंतन करें

  • दूसरों की व्यवहारिक नकारात्मकता आप पर नहीं आनी  चाहिए हमारे व्यवहार से यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम सामने वाले के व्यवहार में तटस्थ भाव में है | 

  • व्यवहार के भावों का ज्ञान होना अति आवश्यक है , हमेशा एक जैसे व्यवहार से हर  समस्या को हल करने का प्रयत्न मत करें , समस्या के अनुरूप निर्णय लें |

  • आपकी जीत इसमें नहीं  कि आपने कितनों की बोलती बंद करदी ,आपकी जीत इसमें है कि कितनों के दर्द में हिस्से दर होते हुए उनकों समझ सकें | 

  • क्रोध आपकी शक्ति और दूसरे के विवेक दोनों को ख़त्म कर देता है ,और ऐसी अवस्था में ही धैर्य की आवश्यकता होती है , ऐसे समय में थोड़ा रुक जाएँ | 

  • दूसरों को सही निर्णय देने के लिए आप स्वयं अपना अवलोकन अवश्य कीजिए ,कहीं आप किसी स्वार्थ से तो नहीं जुड़े ,आपको तटस्थ होना चाहिए | 

  • हम दूसरों को वही शिक्षा दें जिन पर स्वयं अमल कर रहें हो , अन्यथा हमारी कथनी करनी का भेद हमें स्वयं  गलत सिद्ध कर देगा | 

  • हम सब में अच्छाइयां और बुराइयां है और उन्हें शीघ्रता से स्वीकार करने वाला जीवन को जीत सकता है क्योकि अच्छाइयां बुराइयां असीमित होती है जबकि समय बहुत कम होता है | 

  • दूसरो को क्षमा करना सीखें और यह विचार अवश्य करें कि उसकी जगह मेरा कोई अति प्रिय यह गलती करता तो क्या मै यही निर्णय लेता |

  • व्यवहार में अति मधुर और आदर्शों पर अति अडिग व्यवहार बनाने की चेष्टा करें ,क्योकि सत्य की परीक्षा में वही विजयी होता है जो इनकी कीमत जनता है | 

  • जीवन को संसाधन ,वैभव और सारी उपलब्धियां  अमर नहीं बना सकती ,इतिहास ने बहुत वैभव देखा और समाप्त किया है लेकिन मानवीय मूल्यों और आदर्शों की जीवन शैली जीने वालों के सामने समय भी नत मस्तक हो जाता है |





Monday, November 24, 2014

जो है उस पर गर्व करो (be proud of Whatever u have)



समय का चक्र  बहुत तेजी से चलता रहता है अतीत के परिदृश्य धीरे धीरे गुजरते रहते है कल आज और कल में बदलता जाता है बहुत कुछ था कल या बहुत कुछ नहीं था , ये तो सब दुःख का विषय ही था न , जिंदगी बार बार उस दोराहे पर खड़ा देखती है खुद को और  झाँकते हुए  कहती है की काश आज जैसी बुद्धि ,साधन सोच , और क्रियान्वयन होता तो हम क्या कर डालते , पता नही  जीवन की तमाम खुशियों को कैसे लूटते या जीवन से और क्या  क्या हासिल कर लेते , हमेशा एक यक्ष प्रश्न की तरह  मन को व्याकुल करता रहता है| कल का सब कुछ जब भी मन के आईने में दिखता है तो छोटी  छोटी  खुशियां  छोटी  छोटी शिकायतें और बहुत सारी भविष्य की  संभावनाओं  के दिवा स्वप्नों में  डूबती उतराती रहती है जिंदगी की खुशियां , और आदमी उनके ही सहारे बैठा स्वयं की कल्पनाकरता रहता है |


युवा अवस्था स्वयं समाज   की बहुत  सी आकांक्षाओं का नाम बनकर खड़ी मिलती है , शिक्षा ,संस्कृति , विकास  ,और तकनीक के ज्ञान में विशेषज्ञ होना चाहती है , समाज , परिवार मित्रों और  राष्ट्र  में स्वयं की पहिचान देखना चाहता है

कहनेका आशय यह की वह हर स्थान पर हर सम्बन्ध में स्वयं को ऐसी स्थिति में देखना चाहता है जहाँ उसे अपनी स्थिति अतुलनीय दिखाई दे ,यह तुलना सबसे महत्वपूर्ण विषय है हर मनुष्य की सोच है की जीवन की मूल इच्छाएं  जिसमे संपत्ति  का बाहुल्य , यश की कामना की कामनाएं  प्रमुख है वह  हर पल को उन्हीं इच्छाओं की  चाह  में गंवाता  रहता है जैसे  सागर  में   मछली पकड़ता कोई मल्लाह थोड़ा और थोड़ा और आगे जाते  बीच समुद्र में पहुंच जाता है जहाँ  मार्ग और  दुष्कर  होने लगते है | '

वृद्धा अवस्था में   संसाधनों के ढेर ,बड़े बड़े महल नुमां  भवन , जमीनें , और सर्वत्र  बिखरी  हुईं सम्पदा धन वैभव और चल और अचल संपत्ति  के विशाल  भण्डार  का मायने बन बैठा   मनुष्य का अस्तित्व और कहीं गरीबी भुखमरी और अभावों के नाम सा बन गया जीवन , बस इन दोनों में एक समानता रह  गई कि  इसमेंसमाज परिवार और मित्र  सब दुश्मन जैसे हो गए हर आदमी ने अपना व्यवहार बदल डाला यदि गरीबी हुई तो हर व्यक्ति किनारा कर  गया और यदि संपत्ति और धन बल में वह बहुत बड़ा हो गया तो हर व्यक्ति उसका आलोचक , ईर्ष्यवान  हो बैठा , जहाँ वृद्धा अवस्था में उसे सबसे ज्यादा सहारों की थी वहां वह सारा परिवेश ही उसका दुश्मन बन बैठा ,और आदमी पर  आलोचनाएँ , और उन बुरे लोगो का चिंतन   जिनसे  स्वयं  में तमाम   नकारत्मकताएंस्वयं पैदा होजाती है ,| 


 पूरा जीवन एक ऐसी स्थिति में गुजार दिया गया जहाँ वर्तमान से कभीनसंतोष मिला ही नहीं ,समय हमेशा यह सोचता रहा कि  कल यह ख़राब था आज यह नहीं है कल वह नहीं था और भविष्य  में क्या होगा   मन   बुद्धि  और सोच  आदमी की जीवंतता से जीवन छीन लेता  है  स्पंदन का यंत्रवत चलता यन्त्र हजारों तल्खियाँ घोलदेता है जीवन में ,आज की उपलब्धियों का गर्व  कुछ न होने और साधन हीनता का रोना रोने लगताहै ,दूसरों का चिंतन भी इसी तरह किया जाने लगताहै की उनपर सब है और हम पर कुछ  ही नहीं  है  ,  क्या है ये सब जो अपने आप में स्वयं प्रश्न चिन्ह। है  |


"जिंदगी ने खुद को देखना ही छोड़ दिया , दूसरों का वैभव ,उन्नति और संसाधनों का बाहुल्य देखते देखते हम स्वयं की निगाह में  ही  हीन  साबित होने लगे  हमने अपने सम्पूर्ण परिवेश  और  परमेश्वर को तुच्छ साबित करने की कोशिश में लग  गए यह भी  भूल बैठे कि  मनुष्य  पमेश्वर की अमूल्य कृति है   और उसके सारे जीवन की  विकास  मार्ग उसने ही समय के अनुसार  तय  कर   रखें  है  उसका कर्त्तव्य केवल यह था कि  निस्वार्थ भाव से सकारात्मक कर्म पथ पर लगा रह कर  जीवन को नई परिभाषा देता रहे "


उस परमात्मा ने तुम्हे इतना अमीर  था बनाया था जितना संसार में कोई था ही नहीं ,  तुम हमेशा अपने अंतर की शक्तियों से बेखबर  दूसरों की उपलब्धि और उनकी  ही सिमटे रह गए ,तुमने तटस्थ भाव से कभी जीवन  की उपलब्धियों का  आकलन ही नहीं किया  यदि कभी अपनी आतंरिक शक्तियों   समझ पाते तो तुम्हे यह गर्व होता कि  उस नियंता ने तुम्हे इतनाअमीर बनाया था जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते थे   औरयदि तुम्हे निज स्वरुप का सत्य ज्ञान होता तो तुम भी अपने आप पर पूर्ण गर्व करसकते थे | 


जीवन सिद्धांतों में इन्हें भी समझें 

  • अपने आप पर केंद्रित होकर स्वयं की आंतरिक शक्तियों कीजिए  आपका  सिद्धांत  बड़ा संकल्प  देगा यह सुनिश्चित करें शायद इससे आपकी  नई दिशा मिलेंगी | 
  • अपने आप गर्व करें कि  आप जाती समाज समुदाय और ईश्वर  कृतियों में श्रेष्ठ कृति है , और आप ऐसा  सिद्ध करने जा रहे है  एक दिन आपको  ऊंचाइयां स्वतः  प्राप्त  जाएंगी | 
  •  है उसका रोना मत रोइए  आपके पास जो  उसका गर्व कीजिए , क्योकि यदि आपने अपनी  उपलब्धियों का आकलन करना आरम्भ कर दिया तो आपकी उपलब्धियां खुद. बढ़ने   लगेंगी | 
  • दूसरों के आकलन में व्यर्थ समय गवांने  से अच्छा है आप स्वयम्  विकास  योजनाएं बनाएं जिससे आपकी चेतना सकारात्मक स्वरुप में खड़ी होगी | 
  • प्रकृति में एक सर्वशक्ति मान नियंता क्रिया शील है और आप उसके  ही आंश है आपकी सारी शक्तियँा शक्तियां उस परमेश्वर की  उनका गर्वकरें | 
  • अतीत का प्रयोग और स्मरण केवल अपने जीवन पथ का मार्ग प्रशस्त करने के लिए करें , आपको दोषी या बेचारा बताने के लिए  प्रयोग न करें | 
  • जीवन की उन स्थितियों , लोगो और घटनाओं का स्मरण अवश्य करें ,जिन्होंने आपके जीवन में इतना सकारात्मक पक्ष अदा किया जिससे आप धनात्मक हो सके है | 
  • भविष्य अतीत के दरवाजे पूर्ण रूप से बंद करदिये जाएँ और वर्तमान को कठिन परिश्रम और सकारात्मकता  कार्य में झोंक दिया जाए आपको सफलता  ऐसी मिलेगी जिसपर आप गर्व कर सकें |  
  • श्रम , नियोजन और कुछ भी कर गुजरने की  शक्ति यदि आपके पास है तो आप दुनियां के सबसे अमीर व्यक्ति है क्योकि अधिकांश लोग भौतिक संसाधनों से स्वयं का आकलन करते है | 
  • जीवन  के बहुत बड़े भाग में हम स्वयं को प्रोत्साहित रखें और यह अटल विश्वास  रखें कि  जो भविष्य में आने वाला समय है वह हमें और अधिक सकरात्मकताएं देने वाला है | 
  • अपने आपको सभी सकारात्मक पक्षों पर  लेजाकर  उसे ध्यान में और अधिक अच्छे से अनुरूप बदलते देखने का भाव बनाकर देखें धीरे धीरे परिवर्तन आपके अनुसार ही होने लगेंगे 


Sunday, November 23, 2014

चिनौतियाँ है ज़िंदगी स्वीकार कर(life is a challenge --accept )



मनुष्य का सम्पूर्ण में जीवन  बड़ा ही विचित्र  सयोग बनाता रहता है वह चिरंतन शान्ति की खोज में व्यस्त रहता है बार बार प्रयास दर प्रयास करता  हुआ शान्ति उत्पन्न कर पाता  है वहीं  उसे अनेक संभावनाएं मुंह चिड़ाने लगती है ,यहां यह  अति महत्वपूर्ण है कि जैसे कोई  प्रबल कामना मन  में  आती है  पूरा मन मष्तिष्क उसे पूर्ण  करनेके लिए प्रयास रत  हो जाता है ,सारी शांति नष्ट प्रायः लगने लगती है और कैसे भी उस विचार को पूरा करने के लिए हमजुट जाते है | समय बीतता रहता है और नई  नई  आकांक्षाएं पैदा होती रहती है और समय के साथ उनकी पूर्ती भी होती रहती है ,जैसे ही एक कामनाकी पूर्ती हो  पाती है कई कामनाये एक साथ फिर खड़ी हो जाती  हैं और आदमीं स्वयंको बार बार ठगा सा महसूस करने लगता है ,   और इसी तरह नई  चिनौतियां उसके जीवनको बार बार प्रभावित करती रहती है


बचपन ने अपने पिता से मूल भूत सुविधाएं और जीवन की सुविधाओं की पूर्ती माँगी , और उसे बहुत सी सुविधाओं के साथ वातावरण   शिक्षा  संस्कार और  जीवन की विकासोन्मुखी गति के अनुरूप तैयार किया गया ,सामाजिक , शैक्षणिक और सांस्कारिक वातावरण का निर्माण किया गया ताकिभविष्य इन का  ही  हो | यह सब उसके जीवन की चिनौतियों के सामने में कुशल योद्धा बनाने के लिए कियागया था ,माता पिता गुरु और समाज के अनेक वर्गों ने उस समय अपनी  अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आपको सहयोग दिया होगा जिससे आप जीवन में समय केसाथ पैदा हुई चुनौतियों को सही जबाब दे सकें |


युवा  ने बदलते समाज , संस्कारों , और विदेशी आक्रान्ताओं के समाज ,साहित्य और संस्कृति पर पड़ते प्रभावों को देखा है ,  सामाजिक परिवर्तनों का इतना प्रचंड बदलाव कि पारम्परिक प्रतिमान  ध्वस्त होते से दिखाई दे रहे थे , यह वर्ष था ८०  से ९० का दशक , शिक्षा क्षेत्र में गुरुकुल की शक्ल इंग्लिश स्कूलों में बदलरही थी महाविद्यालयों में  छात्रों में परिवर्तन आना आरम्भ हो गया था , टीवी और फिल्मों की सीडी प्रचलित होने लगी और विश्वविद्यालयों  के आस पास फैशन , ब्यूटीपार्लर , और जिम जैसी अवधारणाएं खड़ी हो गई ,इंग्लिश स्कूल की प्रार्थनाएं बदलने लगी और धीरे धीरे जन्मदिन को मानाने की कला स्कूलों में विकसित होते हुए अनेक दिनों में बदलने लगी और लोग मदर्स डे फादर्स डे और  अनेक डे अपने हिसाब से मनाने लगे ,सबने इन परिवर्तनों का क्रियान्वयन अपने अपने हिसाब से किया और  दशक  की चिनौतियों  से आदमी बहुत प्रभावित भी हुआ |


मित्रों मनुष्य एक ऐसा गति  शील प्राणी है की वह प्रकृति और  परिवर्तनों को बहुत जल्दी अपना लेता है समय , प्रकृति के साथ होने वाले परिवर्तन उसे भविष्य के लिए उत्प्रेरित अवश्य करते है पहले  वह उन  परिवर्तनों का विरोधी रहता है बाद में वह धीरे धीरे उन्हें अपनानें लगता है क्योकि उसे यह मालूम हो जाताहै  कि  शायद भविष्य इन का  ही  होगा |  संस्कार   सभ्यताओं और  विकास और  उनके मानदंडों में परिवर्तन  की चिनौतियो को भविष्य  और पुरातन मान्यताओं की कसौटी पर उस हंस की तरह अलग कीजिए जैसे हंस क्षीर नीर  बुद्धि से केवल दुग्ध   ग्रहण करता  है नहीं तो सभ्यताओं  की मिलावट एक वर्ण शंकर युग का आरभ कर देंगीं जिससे  हम हमारी संस्कृति और हमारी पहिचान सब कुछ  नष्ट हो जाएगी |
ध्यान  रखें

  • परिवर्तन प्रकृति का स्वाभाव है और हर परिवर्तन या बदलाव का हमारे जीवन की गतिनपर प्रभाव पड़ने वाला है मगर यह ध्यान रहे कि  उस परिवर्तन से हमें  जीवन में नकारात्मकता न मिले । 
  • तीव्र परिवर्तनों  भविष्य जान कर उनमे से अति आवश्यक  ,विकास शील और भविष्य की आवश्यकता के अनुरूप अपनाया जाना चाहिए | 
  • हरेक चिनोति आपके लिए नहीं है अनावश्यक बल का प्रयोग करके शक्ति  न गंवाएं ,क्योकि यदि दूसरोंकी देखीआप   परिवर्तन करने का प्रयत्न करेंगे तो आप  स्वतः भ्रमित हो जायेंगें | 
  • अपने आधार भूत आदर्शों में परिवर्तन न करें, जिन मूल्यों को धर्म  कहा  गया  है ववे सबके हितों को पोषित करते है और उन्हें ही अपनाया जाना चाहिए , जो चिनौतियां आदर्शों के विपरीत हों उनका त्याग करदेना चाहिए | 
  • संघर्ष , क्रियाशीलता ,के समय आप  आरम्भ की समस्याओं से घबराएं नहीं क्योकि यह प्रथम धनात्मक चिन्ह है  जो यह  प्रदर्शित करता कि  आप सही दिशा में है  और आपको सफलता यहीं मिलेगी | 
  • चिनौती जितनी बड़ी होगी आपकी सफलता भी उतनी ही बड़ी होगी , ध्यान रहे कि एक बार  चलना आरम्भ करने के बाद आपको प्रयास रत ही रहना चाहिए कि  लक्ष्य आपको जल्दी ही प्राप्त होगा | 
  • चिनौती  जीवन का  आरंम्भ और अंत  तक चलने वाली प्रक्रिया है अतः जीवन में अजेय  विश्वास बनाये रखिये किआप  सम्पूर्ण  चिनौतियों का सामना कर सकते है | 
  • चिनौतियों के सामने अपनी कायरता दिखाने का अर्थ  है  कि  आप जीवन से भाग रहे है और भागते हुए कोई किसी स्थितिस्थिति  सामना कैसे कर  सकता है | 
  • जीवन की चिनोतियां और असफलताओं  का एक प्रगाढ़ संयोग है , जो असफलताओं के भय से छोटे लक्ष्य का चयन करता है  वह तो स्वतः   अनजाने में बड़ा अपराध कर बैठता है | 
  • जीवन के समक्ष आयी चिनौती  का पूर्ण  क्षमता और  विश्वास से सामना करें , यह मानते हुए कि आप इसमें सफल अवश्य होंगे ,स्वयं को दोष न  दें | 
  • चिनोतियों के सम्बन्ध में सबसे नकारात्मक और सकारात्मक पक्ष पर विचार करें असफलता को सफलता में परिवर्तित होने में थोड़ा प्रयास अवश्य लग  सकता है मगर उसे छोटे  लक्ष्यों से समायोजित नहीं करें || 
  • छोटी छोटी सफलताओं की तुलना में बहुत बड़े लक्ष्य की असफलता अधिक ठीक है जो यह बताने में सक्षम सिद्ध होती है कि  आपकी विकास यात्रा का लक्ष्य एक दिन आपको अजेय सिद्ध   अवश्य करेगा | 
  • लक्ष्य प्राप्त करने में अधिक समय लग जाना ,असफलता  के बाद भी सशक्त प्रयास किया जाना  यह बताता है कि आप एक दिन इस चिनौती के प्रतिउत्तर में उच्च मानदंड अवश्य स्थापित अवश्य करेंगे | 
  • आरंभिक समस्याओं ,समाज की मान्यताओं और दूसरों के  विचारो को अपनी क्रियान्वयनता पर हावी न होने दें क्योकि सफलता और विकास की ऊंचाइयां ईश्वर तय करता है शायद वह ईश्वर आपको सर्वाधिक  उचाईयों पर स्थापित करना चाहता हो  यह विश्वास रखें | 


Sunday, November 16, 2014

गलतियों की स्वीकारोक्ति(realization of mistakes)

  

हमीं सब क्या सभी मैं कुछ कमीं है , न धरती देवताओं से थमीं है 
गगन आंसूं न पोछेंगा तुम्हारे , सहारा आदमी का आदमी है 

आदमी गलतियों का पुतला है और उसे  गलतियां करने का अधिकार भी  है, उपरोक्त पक्तियों में किसी कवि की कल्पना यही दर्शाती है  कि  समय परिस्थितियों और सामाजिक मानसिक और समय की मांग के अनुरूप हम कई गलतियां करते रहते है ,परिणाम हमारा व्यक्तित्व कमजोर से कमजोर होता चला जाता है ,ईश्वर ने हमें बहुत सी कमियों के साथ बनाया है और हमारे व्यक्तित्व में कमियां होना  स्वाभाविक भी है यहाँ मूल प्रश्न यह नहीं  कि हम  त्रुटियाँ करें ही नहीं वरन प्रश्न यह है की हम त्रुटियों को समझें , और  उनके कारण और परिणामों की व्याख्या अवश्य करें क्योकि  मनुष्य और पशु में यही भेद है कि  मनुष्य की वैचारिकता उसे यह सोचने केलिए प्रेरित अवश्य करती है  कि  वह त्रुटियों के कारण ,प्रभाव की व्याख्या अवश्य करे और भविष्य में उनकी पुनरावृति न  होने दें |

म जिस समाज में रह रहे है वहां विभिन्न प्रकार के लोग, कार्य एवम परिस्थितियों का सामना करना पड रहा है हमें  यहाँ अधिकांश स्थिति में केवल एक नियम और मानसिकता दिखाई देती है कि  सामने वाला उसके किस काम का है और वह उससे क्या ले सकता है ,दोस्तों हम सामने वाले से आशा कररहे होते है वह हमसे आशा कररहा होता है ,और इस तरह अधिकांश सम्बन्ध सतही तौर पर अपना स्वभाव बता  देते है की वो विशुद्ध स्वार्थ का पर्याय है ,मूल रूप से यही से हमारी गलतियों का आरम्भ भी हो जाता है  हम उन संबंधों की तह तक पहुचने से पहले अपना पूर्ण विश्वास सामने वालों को  सौप  कर उनके शोषण का साधन बन जाते है | एक बार गलतियों के जाल में फंसने के बाद हम चारों और एक ऐसी दल दल बना लेते है जहाँ सारी सोच , कर्म और प्रयत्न सब शून्य हो जाते है | 
 
मनुष्य त्रुटियों  को तीन प्रकार से जीने वाला होता है 
प्रथम वह  मनुष्य जो अकस्मात् अनजाने में त्रुटि कर बैठता है 
द्वितीय वह जो पूर्ण नियोजित ढंग से त्रुटि इस लिए करता है कि  उसे मन चाँही  स्थिति प्राप्त हो जाए और
तृतीय वह जो समय परिस्थितियों  और दूसरों के दबाब में त्रुटि करने में शामिल हुआ है 
अब यहाँ प्रश्न उनका नहीं जो बार बार गलतियां कररहे है , दंड  पा रहे या बचे हुए है मगर हो पूर्व नियोजित है तो  इनके लिए केवल समय क़ानून और दंडात्मक व्यवस्था ही इनका सुधार करेगी , मगर जो लोग आकस्मिक , और समय परिस्थिति और दुष्ट लोगों के शिकार हुए है उनके लिए पुनर्चिन्तन का समय अवश्य है जो इन्हें नव पथ पर अवश्य ले जाएगा | एक उर्दू शायर ने लिखा -


" आदमी क्या करे खता के  सिवा , लोग नाहक़ ख़ुदा  से डरते है "

"जब आदमी को ईश्वर ने  बहुत सी कमियों के साथ बनाया है तो  गलती करना एक सामान्य सी प्रक्रिया है मगर महत्व पूर्ण यह है कि हम गलती करके स्वीकारते नहीं है और कभी मन में गलती का ख्याल आता भी है तो ,डरते है ईश्वर से ,जिस दिन गलतियों के बाद हम अपने आपसे डरने लगेंगे तो शायद मनुष्य को देवता बनने में समय नहीं लगेगा  देवता का आशय ही यही है जो त्रुटियों को दूर कर चुका है और वह परमार्थ के लिए जीवन जी रहा है ", 
संसार उन लोगों से भरा पड़ा है जिन्होने  अपने जीवन काल में असंख्यों त्रुटियाँ की और समाज में उन्हें लुटेरा कामी क्रोधी और जाने कितने असभ्य नामों से पुकारा  मगर समय की तीव्र धारण में इनमें से जो लोग भी अपनी त्रुटियों को स्वीकार करने और उनपर चिंतन करने का सामर्थ्य कर पाएं उन्हें इतिहास ने युग पुरुष बना डाला 



जो अपनी त्रुटियों  को स्वीकार कर नया मार्ग बनाने के सक्षम हुआ वह स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध कर पायेगा अन्यथा बार बार जन्म मृत्यु जन्म सर्वोत्कृष्ट बनाने की चाह,  हर श्रेष्ठ वस्तु और व्यक्ति पर उसका अधिकार हो , समाज में यश कीर्ति वैभव और वंश की श्रेष्ठ कामना भी केवल उसे प्राप्त हो ,रूप सौंदर्य और कर्म क्षेत्रमे वह अद्वितीय हो , अर्थात यह की वह तुलनात्मक दृष्टी से वह सबसे श्रेष्ठ सिद्ध हो सके , ये सब कामनाएं स्वाभाविक है और इनकी प्राप्ति भी संभव है मगर केवल इतना ध्यान रहे की ये सब कामनाएं और आपकी जीवन की त्रुटियाँ साथ चलेंगी  मृत्यु के  क्रम में वह एक भीड़ होगा जिसकी कोई पहिचान ही नहीं होगी 



    •  त्रुटियों के कारण की जांच करें और यह प्रयत्न करें की वे परिस्थितियां निर्मित न हों जहाँ हमे गलत सिद्ध होना पड़े क्योकि बहुत सी स्थितियों पर हमारा अधिकार होता है |
    • जीवन  के हर कार्य पर पैनी दृष्टी बनाये रखिये ,क्योकि यह महत्व पूर्ण है यहां हर कार्य में या तो कुछ  नकारात्मकता मिलेगी या सकारात्मकता | 
    •  समय परिस्थितियों और अकस्मात् होने वाली त्रुटियों पर अपनी आत्मा के सामने उसकी स्ववकारोक्ति कीजिये और आगे का भविष्य तय कीजिये | 
       
    • अपनेकार्यों के पूर्व और  और कार्य के बाद  उसका चिंतन करना न भूलें ,और उसे कैसे प्रभावी और सर्वसाधारण के उपयोग का बना सकते है यह सिद्ध कीजिए | 
    • महान पुरुषों के त्याग , संघर्ष और परमार्थ की  गाथाएं पढ़िए और उनके आधारों में  वर्तमान प्रासंगिकता जोड़ते हुए प्रयोग कीजिए | 
    • समय समय पर नए प्रयोग अवश्य  करें और इनका प्रयोग ऐसे करें जो आपको यश  और समाज को वह लाभ दे सके जो अभी उसे प्राप्त नहीं हुआ है | 
    • अपनी कल्पना को परमार्थ से जोड़ कर बहुत ऊची  उड़ान भरिये और रोज उसके लिए थोड़ा प्रयास अवश्य करिये धीरे धीरे   लक्ष्य आपकी हद  में आने लगेगा | 
    • गलतियों के चिंतन के बाद उन्हें दोहराएं नहीं बल्कि उनसे एक सबक अवश्य लें और उस सकारात्मक सबक को याद रखते हुए नया मार्ग बनाएं |
    •  सत्य का जीवन  साश्वत और चिरंजीवी है | 
    • मनुष्य प्रकृति  का दास है और प्रकृति के न्याय में क्षमा नहीं होती वह तो बस यह जानती है कि यदि जीवन में कोई भी क्रिया गलत सिद्ध हुई तो परिणाम भी आपको ही भुगतना होगा ,अतः जीवन केप्रत्येक पल को पूरे चिंतन के साथ जियें | 
    •   आप जीवन के महत्व को जानते है और हर पल कुछ नया सीख रहें है ,जो विपरीत है वो कल अनुभव बनकर आपको  नई दिशा देगा | 
    •  सब के साथ बात, व्यवहार और सम्पूर्ण  संबंधों में आने वाले लोगों के साथ व्हवहार में सायं बरतें और यदि कोई त्रुटि हो तो बिना समय व्यर्थ गवाएं क्षमा मांगें | 
    • सरलता विनम्रता और सबको श्रेष्ठ व्यवहार देने वाला स्वयंम काल जाई हो जाता है |

      जीवन के प्रत्येक पल को इस प्रकार जियें  कि  हर आने  वाले समय  से  अधिक  उस समय को महत्व दें जो समय अभी निकल रहा है ,ऐसे में हर  क्रिया पर पूर्ण ध्यान दिया जाना चाहिए,क्योकि भविष्य पर कोई अधिकार नहीं है और यदि वर्तमान की क्रियान्वयनता पर ध्यान देते रहे तो भविष्य स्वयं सुखद हो जाएगा |

Saturday, November 15, 2014

हताशा को अपूर्व शक्ति में बदलो (convert your depression in a super power)



भारतीय धर्म में महाशिव को महांकाल कहा  गया है शिव और शक्ति का प्रणय विछोह और सम्पूर्ण जगत को एक   नई परिभाषा देने के लिए जो लीलाएं की गई वो आम आदमी को यह शिक्षा अवश्य देती  कि अपने सम्पूर्ण क्रोध और दुःख को ऐसे महा शक्ति बना डालिये कि  जिससे सम्पूर्ण संसार आपके सामने नत मस्तक हो जाए । शिव और शक्ति का विछोह का दुःख इतना प्रचंड कि  सम्पूर्ण ब्रह्मांड काँप उठा और इसी महाशक्ति  की तीव्रता से पैदा हुए ५२ शक्ति पीठ जो यह बताने में सक्षम है  कि घनघोर यातना और ,दुःख, और क्रोध से महाशक्तियों के निर्माण संभव है ।

हर धर्म हर सम्रदाय और हर सभ्यता  ने यही   समझाया कि  दुःख तिरस्कार और यातना की पीड़ा को अपना  बनाकर उसे महाशक्ति केरूप में प्रदर्शित कीजिए आप स्वयम्  कालजित  होजाएंगे ,आज अधिकाँश  आदमी अपनी उपलब्धियों अपनीसमस्याओं  और सामाजिक तौर पर अपनी मानसिक दशा में  अपने आपको दुखी   महसूस  कर रहा है ,कोई एक अधूरा प्रण उसका व्यक्तित्व निगल जाना चाहता है ,और वह एक निरीह इंसान की तरह अपने आपको वह बार बार टूटा सा महसूस करता है ,परिणाम स्वयं अनेक नकारत्मकताएं उसमे स्वयं पैदा होने लगती है ।

२६  जनवरी २००१ को भुज गुजरात में एक बड़ा भूकम्प आया बड़ी बड़ी मल्टी स्टोरीज    धराशाही  हो गई कई दिनों उनका मलबा हटता रहा लोग अपने अपने अनुसार सहायता कार्य करते रहे उन्हीं भवनों में जे सी बी  मशीन्स काम कर रहीं थी अचानक कुछ कपडे दिखाई दिए सुरक्षा कर्मियों ने सावधानी से कामकरना आरम्भ किया एक अधेड़ का शव था वह , उसे निकालने के बाद दो महिलाओं ,एक युवक का शव जिसकी उम्र  २५-२६  वर्ष  होगी  प्राप्त हुआ अंत में उस भवन में एक १७ वर्ष की बच्ची मिली जो बेहोश थी कुछ प्रयास के पश्चात उसे होश आया तो  उसने बताया  क़ि  मरने से
पूर्व  मेरे पिता  और मेरी बातें बहुत देर तक होती रही पिता बोल रहे थे  बेटा  है सब हमें छोड़कर चले गए है   तेरी  माँ  तेरा
भाई बहिन शायद सब गए  और हम भी जा रहे  है  ,हाँ  बेटा हम   में से कोई बच जाता तो हमें क्रिया कर्म के बाद मुक्ति
जरूर मिल जाती  ,सोचता था की तुझे पढ़ा कर बहुत बड़ा ऑफिसर बनाऊंगा मगर अब क्या करसकता हूँ   औरपिता की भी आवाज आनी  बंद हो गई  ,२४ घंटे बाद  अब वही बच्ची  अपने पिता,माता  ,भाई बहिन के शवों को एक हाथ ठेले में रख कर श्मशान ले जारहीथी ।  पिता के आदर्शों  और उनकी आख़िरी चाह  ने चोटिल और निर्जीव शरीर में भी हजारों वोल्ट  का करेंट भर दिया था , बाद में यही बच्ची भारतीय बैंकिग सेर्विसेज में बहुत बड़े स्थान पर पहुंचीं ---- सलाम है भारत की ऐसी नारी.  शक्ति को ।

जीवन में यह सबसे बड़ा  अकाट्य  सत्य है  कि  सामान्य जीवन जीने वाला आदमी अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को हजारों  लक्ष्यों और उप लक्ष्यों में बाँध कर जीवन निकालता रहता है वह सुख के हर समय में अपने मन के १०%या  २० %  तक ही स्वयं को शामिल कर  पाता  है  क्योकि  , सुख के बहुत से  स्त्रोत  है और वह सबमे विजय चाहता है ,तो उसका तमाम  मानस यह आंकलन  करता रहता है   कि  कैसे हर सुख  के बिंदु को सकारात्मक बनाया जावे परन्तु यहाँ हम यह भूल क्यू जाते है  कि  जीवन  में  मानवीय चिंतन सदैव चलता रहताहै और सुख  दुःख  दुःख दुःख  सुख  फिर यही क्रम जीवन भरबना रहता है अर्थात में सुख कम संघर्ष   अधिक है  और सुख में आदमी की तमाम शक्तियां  है जबकि दुःख आदमी  सम्पूर्ण शक्तियों को  एकत्रित  करके  उसके मन मष्तिष्क को एकाग्र कर देता है ।

दुःख  , यातना ,क्रोध ,और निराशा तथा हताशा आदमी  की सम्पूर्ण शक्ति को एकत्रित कर देती  है यह शक्ति इतनी प्रचंड होती है  कि आदमी कुछ भी करने को  तैयार हो  है  यंहां तक  कि वह आत्म हत्या जैसे पाप के चिंतन के लिए भी    पीछे नहीं हटता आप सोच सकते है कि  यह कितनी प्रचंड शक्ति है ,मित्रों बस इसी शक्ति को कृष्ण के गीता दर्शन ,और भारतीय दर्शन का वह सहारा चाहिए जिससे उसे यह भरोसा हो जाए  कि  मनुष्य अकेला जन्म लेता है उसे जीवन के हरभाग में स्वयं संघर्ष करना  होता है और अधिकांश  रिश्ते  उससे अपनी कीमत चाहते है ,  संसार के रिश्ते , कर्म और हर दुःख के मूल में शोषण , लूट खसोट और मीठे रिश्तों की आड़ में किसी के साथ किये अन्याय की कहानियां है , यही  दुनियां है जहाँ अधिकाँश रिश्ते ,समाज ,परिवार और परिवेश ही आदमी से वो कीमत  वसूल करने की चेष्टा कर  रहे होते है जिनको आदर्श   जाता है  ऐसा शोषण करते है, जिससे उसमे जीवन की  चाह  जल कर अग्नि  परवर्तित होजाए ।और इसी प्रचंड शक्ति कीअग्नि  से आरम्भ होता है एक संकल्प एक विस्वास और एक ऐसी बाजी जो हर हाल में स्वयं कोजिता कर श्रेष्ठ  सिद्ध करने में  सक्षम होती है ।


यातना ,दुःख , और शोषण के दर्द और क्रोध को ईश्वर  विश्वास  और संस्कारो की भट्टी  पर और पकाओ , कृष्ण के कुरुक्षेत्र के प्रवचनों को दोहराते हुए एक बार फिर याद करो कि  तुम्हारा जन्म इस अन्याय को उखाड़ फेंकनें के लिए  ही हुआ है यदि आज तुमने इस अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठाई   तो  कल तुम्हारे अस्तित्व पर इतने प्रश्न दाग  देगा  जिसके प्रतिउत्तर  मे  आपके भविष्य के पास कोई उत्तर  नहीं होगा|

जीवन ,कुरुक्षेत्र में अन्याय और अधर्म के सहारे अभिमन्यु जैसे वीर की ह्त्या की कोई कहानी ही है एक ऐसी नृशंस हत्याजिसमे बड़े बड़े धर्माचार्य  अपना धर्म और सत्य छोड़कर अन्याय के लिए एक जुट हो गए है और अकेला रह गया है सत्य ,आदर्श और उसके मानदंड,  उसका निर्मम अंत करते हुए समाज परिवार और हमारे अपने ,बस यही सत्य है इसी सत्य की  परिणिति  केबाद  महा भारत का सम्पूर्ण युद्ध बिना किसी भाव के निर्दयता से लड़ा गया जिसमे केवल भाव यह था कि हम न्याय पर नहीं तो  हमे भी दंड भुगतना ही होगा और युद्ध  जीत लिया गया आज मेरा युवा अभिमन्यु की तरह खड़ा है और अतीत    की  गलती न दोहराते हुए कृष्ण उसे चक्रव्हू  तोडना सिखा चुके है  बस अब उसके संघर्ष करने की आवश्यकता भर है विजय श्री उसकी ही प्रतीक्षा कर रही है ।

 इन बिन्दुओं का जीवन में प्रयोग अवश्य करें

  • जीवन का सम्पूर्ण  स्वरुप अकेला चलो  रे का कोई सिद्धांत है ,यहाँ जो भी सुख और काम दूसरों परआधारित हुआ उसमे हमें दुःख ही उठाना पडेगा क्योकि यहाँ हमारा विशवास कम होता दिखताहै  । 
  • अन्याय के रास्तों पर चलने वाले भविष्य के गर्त में अपना फल अवश्य भोगेंगे , मगर यह अवश्य ध्यान रखे कि अन्याय  सहने वाला अन्याय करने वालेसे अधिक दोषी माना गया है । 
  • शोषण का प्रतिकार न करना प्रेम नहीं कायरता का प्रतीक है ,शोषण का प्रतिकार करके आप जिस सत्य को पैदा करेंगे  तो    एक दिन आपका संघर्ष दूसरे निसहाय लोगो को अन्याय से अवश्य बचाएगा । 
  •  आप ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है ,और आपको यही  सिद्ध भी करना है ,आपमें अपरमित  शक्ति है आपस्वयम् को पहिचाने और अपनी गुप्त ऊर्जा के स्त्रोत को चिंतन एवं ध्यान से जगाइएं । 
  • सबका सम्मान कीजिए एवं दूसरों की आलोचना से बचने का प्रयास अवश्य कीजिए ,इससे आपका मन मष्तिष्क एक सकारात्मक ऊर्जा उत्सर्ग करने लगेगा । 
  • दर्द, दुःख , यातना को एकत्रित करके उसे संकल्प स्वरुप में संचित कीजिए और उसके कठिन पालन में लग जाइए एक दिन सारी विजय आपकी ही होंगी । 
  • आत्म हत्या जघन्य पाप है और अन्यायी के विरुद्ध चुप हो  जाना उससे भी बड़ा अपराध है ,आपको अन्याय के विरोध में दंडात्मक संकल्प लेना है जिससे फिर कोई अन्याय का शिकार न  हो सके । 
  • अपने आपको ईश्वर के सामने रख कर चिंतन करें और हर अन्याय का प्रतिरोध करना सीखें आपका सकारात्मक प्रति कार समाज को नई  दिशा अवश्य देगा । 
  • दूसरों का चिंतन  उनका उपहास और उनके व्यक्तित्व से  अपनी तुलना कभी न   कभी न करें क्योकि जो गुण आप में है वे  लोगों में नहीं है वेलोग अपने छोटे गुणों को बड़ा दिखाने  की कला  जानते है  आप अपने गुणों को अभी समझे नहीं है उन्हें समझें और संकल्प को शक्ति दें । 
  • हर हाल में सकारात्मक चिंतन करें और कोशिश यह करें  कि  आपके विचारों की तीव्रता से सारे सकारात्मक चिंतन आपकी और आकृष्ट  ही रहे है और समस्त ऋणात्मकताएं आपसे दूर जारही है। 
  •  जीवन बहुमूल्य है किसी भी दुःख ,यत्न ,धोखे  फरेब  बाद आपकी सम्पूर्ण क्रियान्वयनता जबरदस्त शक्ति उत्पन्न  करतीहै   विपरीत काल में  सकारात्मक संकल्प  पर स्वयं को  स्थिर रखें  आपको दुनियां कीहर विजय हासिल अवश्य होगी ।  



Sunday, November 9, 2014

कैसे करें व्यवहार स्वयं से और दूसरों से (how to behave with others and ourself)


 टीम वर्क आधुनिक मेनेजमेंट का आधार भूत  स्लोगन है और यह माना जाता है  कि उसके बगैर कोई श्रेष्ठ मैनेजर नहीं बन सकता , वैज्ञानिक प्रबंध में टेलर , फियोल सब ने माना   कि  एक  चैन की तरह हमें एक दूसरे से जुड़ कर कार्य करने की प्रक्रिया से श्रेष्ठ परिणाम मिल सकते है । बड़ा कठिन विषय है यह , एक और एकला चलो रे का दर्शन शास्त्र , दूसरी और धर्म का यह कहना की आदमी केवल अपने आपके लिए सबसे अच्छा सोच सकता है , इन सबके बीच हमें एक ऐसा रास्ता निकालना हैंजो हमें श्रेष्ठ सिद्ध कर सकें साथ  ही हमे अपना उत्तर भी प्राप्त करना है कि अपने प्रति और दूसरों के प्रति कैसे  व्यवहार करें जिससे स्वयं की सकारात्मकता बनाये रखी  जा |

मनुष्य का स्वाभाव और मन बड़ा चंचल होता है उसकी सहज प्रवृति यही रही है कि  संसार में जो कुछ भी अच्छा हो  उसपर केवल उसका ही अधिकार हो सारे लोग उसे सबसे अधिक प्यार करें , सम्मान दें और सारे यश ,कीर्ति, और उच्च स्थितियों में केवल वही श्रेष्ठ हो | यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि  हर आदमी यही विचार लिए जीवन में आगे बढ़ने का प्रयत्न कररहा है ,फिर तो यह प्रश्न अधिक जरूरी हो जाता है की ऐसे समय में हम अपने आपको और अपने अस्तित्व को किस प्रकार बचाये   जिससे हमारे की सकारात्मकता और अधिक  प्रदर्शित की जा सके

एक गुरु ने अपने तीन  शिष्यों को लकड़ी काटने जंगल भेजा घनघोर जंगल में सूखी लकड़ी ढूढ़ते हुए एक ऊँचे पेड़ और उसके नीचे बने कुँए को देख  बड़े शिष्य घबरा गए उन्होंने सबसे छोटे शिष्य से कहा चढ़ जा पेड़ पर और तोड़ तोड़ कर फेंकता जा लकड़ियों को दोनों बड़े शिष्यों ने आँखों ही आँखों में बात की और मुस्कुराने लगे , छोटा शिष्य गुरु आदेश मानकर चढ़गया और पर्याप्त लकड़ी तोड़ कर फेकने के बाद   पेड़ से उतरते में नीचे स्थित कुँए में गिर कर बेहोश होगया ,शिष्यों ने आवाज दी और कुछ देर बाद वे आश्रम लौट आये बताया कैसे कैसे उन्होंने लकड़ियां तोड़ी और बहुत मना करने के बाद भी छोटा शिष्य पेड़ पर चढ़ कर गिर गया ,गुरुने वहां जाकर गाँव वालों की मदद से बेहोश शिष्य को निकाला होश आने पर छोटे शिष्य ने बतायामेरी ही गलती थी सब और कहा  कि अभी वो अल्हड़ है काम में ,उसे कुछ अच्छे से आता नहीं है, बस गुरु सेवा के लिए प्रयास किया था, उसमे भी वो असफल हो गया ,उसे क्षमा किया जाए ,गुरुने अपनी दिव्य दृष्टि से सब जान लिया और उनके आंसूं निकल आये बड़े शिष्यों की दुष्टता और छोटे शिष्य की साधुवादिता से गुरु स्वयं समझ गए थे  कि जीवन में
टीम वर्क में काम करना बहुत आसान है मगर अपने अहंकार , क्रोध ,और वैमनस्यता को जीतना सबसे अधिक कठिन विषय है ,सबकुछ करके   भी यश की कामना का त्याग करने वाला  ही महान हो सकता है ,अचानक गुरु को अपने दादा गुरु सा नजर आने लगा छोटा शिष्य |

मन और मष्तिष्क से मनुष्य इतना शक्तिशाली है कि  उसे किसी भी रूप में नहीं जीता जा सकता ,असंख्यों मील दूर बैठे आदमी की ऋणात्मकताएं उसे प्रभावित करसकती है ,जो सकारात्मकता उसके जीवन का हिस्सा नहीं है वो उन्हें  भी अपने जीवन में प्रस्फुटित कर सकता है ,अपने समाज ,समूह , और अच्छा बुरा सोचने वालों की मानसिकता को भी वह उसी प्रकार बदल सकता है जैसे कोई कलाकार अपनी नई पेटिग पर फैले हुए किसी अन्य रंगको दूसरे रंगों से भर कर और खूबसूरत बनादे |

व्यवहार की कसौटी पर अपने मन को बहुत कुछ चाहिए होता है और वह त्याग करने को तैयार ही नहीं होता ऐसे में उसकी स्थिति उस लुटेरे जैसी होती है जो अपनी सम्पूर्ण शक्ति के अनुसार दूसरोंके  हक  पर डकैती डालने की होड़ में लगा है , जिसमे जितनी शक्ति है वो दूसरो के किये गए प्रयासों के यश को  अपनी झोली में डालने का प्रयत्न  यह जाने बगैर  कि  जीवन में  समय , बुद्धि , और अन्याय का काल बहुतसीमित  होता है और सत्य की शाश्वतता के सामने यह नकारात्मकता वैसे ही क्षण भर में लुप्त हो  जैसे सूर्य के प्रकाश में जुगनुओं की बड़ी फौज |


अंत में बस यही सार है की दूसरों का सम्मान  और उनसे कुछ सीखने की ललक बनाये रखें जीवन में हम जो दूसरों को दे रहें है वाही हमारे पास लौट कर आना होता है ,  मनुष्य  ईश्वर की अनमोल कृति है और उसके गुण  धर्म भी आदर्शों के साथ चलने चाहिए ,आप अपने काम से सम्बन्ध रखिये परिणाम के प्रति अति उत्सुकता के कारण आपको दुःख हो सकता है ,आप एक तटस्थ भाव से अपने व्यवहार से दूसरों को जीतने का प्रयास अवश्य कीजिए ,आपको सफलता अवश्य मिलेगी ,अपना आकलन करते समय सदैव सकारात्मक सोच का सहारा ले , वर्त्तमान की समस्याएं आपको यह बता सकती है  कि आपके पास कोई  विकल्प नहीं है मगर ध्यान रखे की जिसका विकल्प नहीं होता वो समस्या ही नहीं बना सकता ईश्वर और आपमें वो शक्ति है की आप सारी समस्याओं को हल कर सकते है |

निम्न  का प्रयोग करके देखें
  • एक सीमा से ज्यादा किसी प्रतिद्वंदी का चिंतन न करें क्योकि अधिक चिंतन से आपका अपने पर से ध्यान बंट सकता है जिससे आप अपने साथ समुचित सोच नहीं रख पाएंगे |
  • अपने काम पर विश्वास रखें सीमा से अधिक परिंणाम वादी नहीं बनें अन्यथा आप परिणाम आने से पूर्व ही अपनी  लिए सशंकित हो जाएंगे और यह जीवन की नकारात्मकता को पैदा करेगी | 
  • यहाँ सब अपने को श्रेष्ठ बताने की होड़ में कुछ  करने को तैयार खड़े है आप अपने आदर्श बनाइये और ज़ीरो पर ही यात्रा आरम्भ कीजिए इक दिन ये ज़ीरो आपको हीरो अवश्य बना देगा | 
  • प्रकृति ईश्वर और या अपनी सकारात्मक चेतना शक्ति को बार बार सोचिये और तय कीजिए कि   मैं  अपने अनुरूप बना रहा हूँ और संसार आपके अनुरूप बनेगा  यह विश्वास रखिये | 
  • दूसरो को छोटा बताने , उनके हक़ पर आधिपत्य ,और दूसरों के किये कार्य का श्रेय स्वयं लेने की भावना आपका अस्तित्व नष्ट कर डालेगी अतैव आपको उन्हें प्रोत्साहित करते रहना चाहिए | 
  • सम्मान एवं तिरस्कार का केवल एक नियम है कि वह तुरंत ब्याज सहित वापिस होता है ,आप अपने से ऊपर एवम अधीनस्थ  व्यक्तियों को पम्मन और प्रेम देते रहिये आपको आंतरिक शांति मिलेगी | 
  • बड़ों को सम्मान और छोटों को नाम लेकर पूछा जाए कैसे है आप , मित्रों यह जादू आरंभ कीजिये और एक सप्ताह में उसका परिणाम देखिये आपके मन को अच्छा लगेगा | 
  • दूसरों की आलोचना के सामूहिक आनंद में आप हिस्सा न बने क्योकि आलोचना से केवल नकारात्मकता उत्पन्न होती है  आपकी सकारात्मकता को हानि पहुंचा सकती है | 
  • अपने बारे में एवम अपने किये हुए व्यवहार के लिए चिंतन अवश्य बनाये रखें जो त्रुटियाँ हो उन्हें तुरंत मान कर उसमे परिवर्तन करें | 
  • विनम्रता , लोच ,और सरलता ये सब जीवंतता की निशानी है जबकि अकड़ना ,लोच ख़त्म होजाना और बेहद कड़ा हो जाना ये सब मृत्यु की निशानी है ,बहुधा लाशें कड़ी हो जाती है ,आप अपने को विनम्र बनाये रखें |

Thursday, November 6, 2014

गुणात्मकजीवन का मूल है चिंतन की स्थिरता (qualitylife vs stability of thought)

सम्पूर्ण जीवन आदमी का यह प्रयास रहता है की वह पूर्ण शांति और संसाधनो की बहुतायत में अति विलासी जीवन का उपभोग करे ,उसके पास असीम संपत्ति , शक्ति , प्रभुत्व , यश और अनुयायी समाज हो , उसके वैभव को मानने वाले उसे सदैव बहुत ऊँचा मान कर प्रसंशा देते रहें |  जो भी समाज राष्ट्र में श्रेष्ठ हो उसपर केवल उसका ही अधिकार हो ,वह अपना भविष्य तो सुरक्षित रख पाये साथ ही उसकी आने वाली पीढ़ियों को भी किसीप्रकार की तकलीफ न होपाये ,वह स्वयं सुरक्षित हो और आने वाली तमाम नस्लों का आज ही इंतजाम करदे ,बस इसी उधेड़ बन में उसका तमाम जीवन गुजर जाता है |  बार बार उसे केवल पश्चाताप क्षोभ और निराशा ही मिलती रहती है जबकि उसका चिंतन यह जानता है की जीवन नश्वर है एक नियत सीमा के बाद हर आदमी को  दुनियां से जाना ही होता है बिना किसी संपत्ति और साथ के | 

भगवान  बुध अपनी ध्यान दीक्षा में थे और उनके तीन शिष्य उनकी सेवा में हाथ बांधें बैठे थे अचानक बुध की आँखे खुली और उन्होंने प्रश्न किया  तुम्हे जीवन में सबसे बड़ी परेशानी क्या लगती है पहले  बताया गुरुदेव मेरे ३ पुत्र है उनमे से एक बहुत बदमाश आतातायी और  दुष्ट स्वभाव का है वह रोज लड़ाई झगड़ा करता है और मुझे अपमानित होना पड़ता है यही दुःख है मेरा दूसरे ने कहा प्रभु आपके आशीर्वाद से  हमपर सब कुछ है मगर सोचता हूँमेरी सम्पत्ति केवल पांच पीढ़ियों तक चल पायेगी आगे की पीढ़ियां भूखी मर जाएंगी इससे बड़ा क्या दुःख होगा ,तीसरे ने कहा गुरुवर मैंने सबके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया मगर मेरे सारे घरवाले और आसपास के लोग ऐसे पापों में लगे है उनसे  मै बहुत दुखी हूँ ,बुध ने हंस कर कहा इशारा करते हुए कहा  उस चिड़िया को दाना खिलाते हुए देख रहे हो कितने खुश है वो सब ,यह चिड़िया जैसे ही ये बच्चे उड़ने लायक हुए इन्हें उड़ा कर मोह त्याग देगी पुत्र इसके बच्चों पर खाना इकट्ठे करने का स्थान भी नहीं है ,और तीसरी बात यह कि  यह अपने कर्म मार्ग में दूसरों का चिंतन नहीं करती इसे  शाम तक की चिंता नहीं है उसे मालूम है ईश्वर शाम को फिर कुछ देगा इसलिए ये सबकुछ विपरीत परिस्थितियों के बाद भी बहुत प्रसन्न है 
,पुत्र ईश्वर को अपना काम करने दो वही सब कुछ कर रहा है , आप स्वयम् अपने चिंतन की गहराइयों में किसीको मत आने दो ,और मोह त्याग कर अपने कर्म में जुट जाएँ आपका अधिकार वर्तमान के कर्म से बँधा  है और उसे पूरी ताकत से सम्पादित करो , सारे  लोग चाहे वो परिवार के हो या आपके आसपास के अपने कर्म से बंधे सुख -दुःख का निर्माण कर रहे है ये आपका विषय नहीं है की कोइन क्या और कैसे कर रहा है , आप स्वयं सकारात्मक होकर अपने जीवन का चिंतन करें इस से आप जीवन को जीत लेंगें | 

मेरे अंतर की शांति का अकेला  मै  ही तो रखवाला था एक गैर  जिम्मेदार चौकी दार की तरह मैंने अपने विचारों में अपने सम्बन्धियों का , समाज और मित्रों का  चिंतन आरम्भ कर दिया , भविष्य की और अतीत की कहानियों को मूर्त रूप देने में और उनके दर्शन में मैंने वर्तमान को दांव पर लगा दिया ,सबको आदर्श मार्ग बताते बताते  मै  स्वयं अशांत हो गया परिणाम यह कि  मुझ में केवल अशांति , असुरक्षा और खोखला पन रहगया है क्योकि मैंने ही अपने चिन्तन का अतिकृमण किया है मै  उन विषयों में अपने आपको परेशान पारहा हूँ जिनपर मेरा वश  ही नहीं था | 

हम कितने श्रेष्ठ कला कार है  कि जीवन भर एक असहाय ,बेचारे और दुखी व्यक्ति का रोल ऐसे करते रहते है जैसे इस सदी का कोई महानायक अपनी कला के उच्चतम शिखर पर खड़ा अपनी कला का प्रदर्शन कररहा हो ,हमपर जो दुःख क्लेश अवसाद नहीं है उन्हें भी अपने अस्तित्व पर लाद  कर हम चले जारहे है लाचार ,बेचारे ,निरीह से तर्क यह  मैंने सबसे अच्छा किया ,कल का क्या होगा ,सब मेरी सोच के अनुसार क्यों नहीं हो रहा ,ये सब चिंतन आपके व्यक्तित्व को कितना आगे ले जा पाएंगे , जीवन को आप कैसे जीत पाएंगे इस कल्पना को साकार रूप देते हुए आप एक सशक्त भूमिका के कलाकार को  जीवित कीजिए जो आपको अपने सकारात्मक कर्म ,भविष्य और विका स की परिभाषा बता सके 

कृपया निम्न को और अपनाएँ 



  • हर रिश्ता ,सम्बन्ध और आपके अपने एक सीमा तक ही आपके चिंतन के आधार में होने चाहिए एक सीमा के बाद  उनकी सोच आपको ऋणात्मक करने लगेगी |
  • सब अपने कर्म ,सोच और क्रियान्वयन के हिसाब से अपना भविष्य पथ निर्मित कर रहे है उसमे आपकेवल परामर्श  दे सकते है यह आपका विषय नहीं है आप अधिक बदलाव की चेष्टा न करें | 
  • संसाधनों का उचित प्रयोग आना आवश्यक है एक को केवल संसाधन  एकत्रित करने आते है , और दूसरे को बहुत अधिक खर्च करना आता है ये दोनो आपका भविष्य ख़राब करदेंगे क्योकि महत्वपूर्ण है खर्च करने की कला
  • जिन स्थितियों  पर आपका वश नहीं है वह आप चिंतन का अतिकृमण नहीं करें ,इससे आपको अपनी शक्ति का ह्रास  होता जान पड़ेगा और स्वयं नकारात्मक भाव उत्पन्न हो जाएंगे | 
  • अति शक्ति, धन, संपन्नता ,आपको अनेक दुर्गुण  देती है अतैव जब कभी आपमें इन गुणों की प्राप्ति हो आपको तुरंत उसके श्रेष्ठ प्रयोग का मार्ग सोचना होगा , ये तीनो शक्तियां  सद्प्रयोग न होने पर स्वयं को नष्ट करदेती है
  • अति मोह चाहे व्यक्ति से हो या वस्तु से आपको केवल दुःख ही देगा क्योकि वहां केवल यह महत्वपूर्ण दिखाई देता है कि  इसपर मेरा पूर्णाधिकार है जबकि मनुष्य का स्वयं पर भी पूर्णाधिकार नहीं है | 
  •  हर व्यक्ति , वस्तु और सम्बन्ध में परिवर्तन का विचार परामर्श के जैसा ही हो उस पर आप यदि पूरी ताकत से अमल  कराने का प्रयत्न करेंगें तो आपको केवल क्लेश उत्पन्न होगा | 
  • आपकी आपके परिवेश की एक सीमा है और भविष्य की कोई सीमा नहीं है अतैव आप केवल यह विचार करें की आज जो मै  कार्य कररहा हूँ उसे और कैसे श्रेष्ठ बनाया जा सकता है | 
  • जीवन की नश्वरता , की जीत परमार्थ  में निहित है   कौन सा सम्राट कितने राज्य जीता या किसने कितने महल और किले बनाये ये महत्व पूर्ण नहीं है बल्कि वह कितना सहज और परमार्थ  का उपासक रहा यह उसको महान बना देता है |
  • अपनाने  का भाव सर्वश्रेष्ठ है मगर ध्यान रखना जो त्याग के भाव में सर्वश्रेष्ठ हुआ   वही  जीवन को  जीतने में सक्षम हो पाता है , क्षण में अपनाने के भाव के साथ त्याग सर्वोपरि है |







Tuesday, November 4, 2014

सम्पूर्णता बनाम स्वयं की कमियों पर नियंत्रण (mr.perfect means self control)

भारतीय दर्शन में स्वयं का विकास सबसे बड़ी चिनौती माना गया है और हर इंसान जीवन में उन ऊंचाइयों  तक पहुँचाना ही चाहता है ,जबकि सब मे वही शक्ति ,सोच और पाने की ललक बनी रहती है ,परन्तु बिरले लोग ही उस ऊंचाई तक पहुँच पाते है जिन्हें जीवन  सफल सिद्ध कर पाता है , बड़ी दिलचस्प कहानी है यह जहाँ सबकुछ उस ईश्वर ने हर आदमी को दिया है मगर वह अपने आपको बेहद गरीब ,नाकारा , और गलत मान बैठता है , दोस्तों यहीं कहीं से जीवन के उत्कर्ष का रास्ता निकला है जिसपर हमें विचार करना है | 

बड़ा विचित्र है इंसान और उसकी मानसिकता, सपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने पैरों के नीचें  रौंद डालने की इच्छा रखने वाले इस इंसान की स्वयं की जिंदगी के 1|३ भाग से कम भाग पर ही उसका नियंत्रण है जबकि वह यह भी नही जानता कि  उसकी सम्पूर्णता पाने की दौड़ में नहीं वरन अपनी कमियों पर नियंत्रण करने में थी

घनघोर तपश्चर्या में लगे हुए एक तपस्वी ने एक भक्त की पुकार पर उसकी पुत्री का भविष्य देखा उन्हें लगा की इसका पति विश्व विजयी, सम्राट , और अजेय होगा वह तप के स्थान पर केवल इसमें लिप्त होगया कि उसे कैसे प्राप्त किया जाए ,तप खंडित होगया , एकाग्रता मानसिक विचलन में बदल गई ,रूप ,योवन ,काम ,और सबकुछ प्राप्त करने की इच्छा ने उनकी सम्पूर्ण शांति नष्ट करदी , और अंत में वो जिसका ध्यान , चिंतन और तप कररहे थे उन्हे ही अपशब्द बोलकर अपनी सम्पूर्ण शक्ति नष्ट करडाली | और अंत में जब सत्य जाना कि यह एक परीक्षा थी तो घोर पश्चाताप में उबरने का कारण पूछा गया तो यह पाया की आप सबकुछ पाने की चाह में पथ भ्रष्ट हुए है अब शिव स्वरुप में परमार्थ का व्रत धारण करें तब आप इस क्षोभ से मुक्त हो सकेंगे |

अादमी कोई ऐसा सुपर  मेन  नहीं है की वह कल्पना की उड़ान के सहारे सब कुछ प्राप्त करले ,और जीवन के स्वप्नों और दिवा स्वप्नों को हर आदमी देखता अवश्य है और हमेशा देश, काल परिस्थिति और कुछ  प्राप्त करने की स्थिति का आलोचक बना रहता  है और जितना हम समाज और क्रियाओं के आलोचक होते है वैसे वैसे हमारा पतन होता जाता है परिणाम हमारे दिवा स्वप्न कभी पूर्ण नहीं हो पाते जो हमे जीवन के हर पल अपनी उपस्थिति दर्शाते रहते है और जीवन  हमेशा यह सोचता रहता  क्या यह उपलब्धि इतनी ही कठिन थी और पूरा जीवन इसी  अपनी गलतियों , समय का दुरुपयोग और लोगो द्वारा किये गए शोषण  की सोच की कहानी बन कर रह जाता है बस  यहीं से उसका तमाम विकास रुकजाता है क्योकि जीवन का एक सहज नियम यह भी है  कि वह ऋणात्मक सोच  कभी भी सकारात्मक  परिणाम नहीं दे सकती  | 

परिवर्तन  की सोच दिमाग में आते ही  सबसे पहले यह विचार आने लगता है  कि  क्या क्या सीखें , क्या क्या परिवर्तन करें और क्या क्या उपकरण ,प्रशिक्षण  लें जिससे वो सब प्राप्त कर सकें जो हम सोच रहे है | 
मित्रों जीवन में  तीन तरह की परिस्थितियां  हमारे सामने होती है 

१  प्राकृतिक नियमों  की परिस्थितियां 
२  अकस्मात् आयीं परिस्थितियां 
३  जीवन शैली और सोच 
  अब यहाँ  यह प्रश्न खड़ा होता है कि जीवन का २\३ भाग मनुष्य के हाथ में ही नहीं होता प्राकृतिक परिवेश में जीवन, मृत्यु , आरोग्य ,सुख , दुःख ये सब उन परिस्थितियों से बंधे होते है जिनपर केवल प्रकृति का ही वश  होता है इसी प्रकार आपात काल की परिस्थितियों पर भी हमारा कोई वश  नहीं हो पाता  है अब रह गयी  केवल हमारी सोच जीवन को जीने का तरीका और हमारी अपनी कमियां | ,
दोस्तों हम सब कुछ सोचने और स्वयं को बहुत ऊँचे लक्ष्य तक ले जाने के लिए नया रास्ता अवश्य बनाये मगर सबसे पहले स्वयं की कमियों को दूर करने का प्रयास  करें जैसे जैसे क्रोध ,असत्य काम और बनावटी यश पाने की कामना कम होगी जीवन में सकारात्मक गुणों का उदय अपने आप होने लगेगा 
आप विकास की सकारात्मक सोच के लिए बहुत कुछ सीखे कि  नहीं? आपने जीवनको विकास के शिखर पर लेजाने के लिए कठिन मार्ग चुनें कि नहीं ?और क्या आपने किसी के पद चिन्हों का अनुशरण किया या नहीं ? ये सब बाते बहुत अर्थ नहीं रखती ,जबकि हम नए सिरे से बदलाव के लिए सब कुछ बदल डालना चाहते है और वहां भी असफल ही रहते है । 
जीवन के बगीचे में अपने दुर्गुणों  की खरपतवार को समयानुरूप उखाड़कर फैंकते रहे ,जीवन में विकासोन्मुखी सोच स्वयं पैदा होती है बस आवश्यकता  इस बात की है अपनी कमजोरियों को रोकने का प्रयत्न करें विकास स्वयं अपने नैसर्गिक स्वरुप में आपको इतिहास के पन्नो का अभिनेता बना देगा | 
निम्न का प्रयोग अवश्य करें 
  • जिस प्रकार खरपतवार हटाते हुए एक क्षेत्र को संरक्षित कर देने से बड़े बड़े जंगल विशाल स्वरुप ले लेते है वैसे ही जीवन की कमियों को निकालते रहने से  मनुष्य के विकास स्वयं होने लगते है | 
  • जीवन के प्रत्येक परिवर्तन को पूर्ण रूप से विचार करते हुए उसके कारण हुए नकारात्मक प्रभाव को शून्य करने की चेष्टा करें क्योकि इससे  ही आपको सरल रास्ता मिलेगा | 
  • कमियों का पता लगते ही पूर्ण निष्ठां और संकल्प के द्वारा उसपर चिंतन जारी रखें और यही नियंत्रण आपको अपने गंतव्य को सहज बनाने में मदद देगा | 
  • प्राकृतिक और आकस्मिक दुर्घटनाएं  आपका भविष्य नहीं है और उनके घटित होने पर आप अपना हौसला और संकल्प बार बार दोहराइए और अपनी सकारात्मकता को बनाये रखिये | 
  • देश,काल ,परिस्थितियों और समय के साथ ख़राब व्यवहार करने वालों के बारे में चिंतन न करें क्योकि इनके लेश मात्र चिंतन से नकारात्मकता का पहाड़ खड़ा हो जाता है | 
  • जिस प्रकार मन मरे हुए लोगों का विचार करके हम उन्हें जल्द ही छोड़ने का अादी हो जाता है उसी प्रकार खराब लोगों का चिंतन  किया जाना चाहिए और मन को यह विश्वास दे की वो सब मर चुके है | 
  • जिन परिस्थितियों पर आपका वश  नहीं था उनके लिए आप दोषी नहीं हो सकते मगर जिनपर आप का वश है उन परिस्थितियों में आपका अपराध अक्षम्य होगा ऐसी त्रुटियों से बचें | 
  • दूसरों की आलोचनाएँ करने वाला मानसिक रोगी ,अस्थिर , और कमजोर होता जाता है क्योकि उसके सारे गुण उसमे जाने लगते है जिसकी वह आलोचना कर रहा है | 
  • जब तक आप दूसरों के कल्याण के लिए अपना मन नहीं बनाएंगे तब तक आप संतोष के परम सत्य को प्राप्त नहीं कर सकते अतैव परमार्थ का भाव सर्वोपरि है | 
  • सम्पूर्णता का अर्थ   यह  कि आप और आपका परिवेश राष्ट्र और आपसे जुड़े लोग आप पर गर्व कर सकें आप अपने आदर्शों मान दण्डों और भविष्य के लिए मिसाल बन सकें |


Sunday, October 19, 2014

हार और निराशा को विश्वास से जीतें

शहर से दूर एक छोटी सी पुलिया पर एक सुन्दर रोबीला युवक  गहन चिंता में बैठा अपने आप में बुद बुदा  रहा था बीच बीच में आँखों के कोरों से यदा कदा  आंसू गाल पर आजाते थे परन्तु वह उन्हें रोकने का  भरसक प्रयत्न भी करता रहा था, कई राह गीर जो सुबह की सैर के लिए निकल रहे थे प्रश्न भरी नजर से देखते जा रहे थे कुछ एक ने पूछा भी क्या हुआ नवयुवक मौन स्तब्ध और निश्छल एक और टकटकी लगाये देखता रहा बहुत देर बाद एक बहुत बुजुर्ग आकर युवक के बगल  बैठ  गएचलते चलते थक गए थे शायद , बुजुर्ग ने सबकी तरह उसे भी कहा गुड मॉर्निंग यंग   मेन युवक चुप रहा बुजुर्ग को बड़ा अजीब लगा उसने जब ध्यान से देखा तो पाया की युवक किसी गहन चिंता में है उसने बड़े ही वात्सल्य भाव से पूछा बेटा  क्या हुआ है में  तुम्हारे पिता के जैसा हूँ शायद ईश्वर ने मुझे तुम्हारे लिए ही भेजा है युवक जोर जोर से रोने लगा बुजुर्ग ने उसे सम्बल दिया और पूछा क्या बात है युवक ने बताया कि में  बहुत बड़े खान दान का पुत्र हूँ  मेरा पूरा जीवन ऐशो आराम में बीता है  मेरे दादा जी जब कभी आदर्शों की बात करते थे तो मुझे अच्छा लगता था सोचता था मै  भी समाज को नए प्रतिमान दूंगा , मगर कॉलेज, स्कूल ,और समाज में मेरे चारों और चापलूसों की भीड़ जमा होती गई और मैं नशे , ऐय्याशी में डूबता चला गया ,जीवन के आदर्श लक्ष्य और दादाजी के आदर्श सब कहानी बनकर रह गए , अभी कुछ दिन पहले मेरी तबियत ख़राब हुई जाँच बाद डॉक्टर ने यह कहा   कि बेटा आप के पास केवल छै  माह का जीवन है आपके फेफड़े ९०% तक निष्क्रिय होचुके है और दुनिया में आज तक  बीमारी  का इलाज नहीं है तो पिछली १० रातों में मैं बहुत रोया  , दादाजी बार बार दिखाते रहे , आदर्श जीवन के प्रतिमान बनाने की बात मुह चिढ़ाती रही,मैंने सोचा अपने समाज , अपने मित्रों , अपने सहपाठियों को इस जहर से अवश्य बचाउंगा यह भाव  लेकर  मैं सबके घर घर गया सबको जैसे ही मेरी स्थिति का ज्ञान  वो मेरे साथ छोड़ गए मैंने बहुत कहा यह जहर  तुम सब छोड़ दो , वो सब मेरा मजाक उड़ाने  लगे और मुझे छोड़कर चले गए अब मैं क्या करूँ युवक फिर रोने लगा बुजुर्ग ने हाथ फेरते हुए कहा  बेटा  आप मुझे देख रहे हो मुझे भी डॉक्टर ने   बताया है की मुझ पर जीवन कम है परन्तु ध्यान रखो कि  समाज मे क्रांति अल्प समय में भी संभव है  अनेक ऐसे लोग  ही समाज को   धरोहर  दे गए है | ,विवेकानंद , आदिगुरुशंकराचार्य अनेक विभूतिया है , भारतीय धर्म के अनुसार राजा परीक्षित ने सात दिनों में जो ज्ञान , प्रकाश और जीवन का सत्य बांटा  वो  दुर्लभ है पुत्र जीवन बड़े और छोटे का सम्मान नहीं करता वह तो केवल उनका सम्मान करना जनता है जो भाव पूर्ण तरीके से अपने ठोस कर्त्तव्य मार्ग से  उसकी दिशा बदलदे | तुमपर बहुत समय है मैं और तुम मिलकर वो मानदंड अवश्य बनाएंगे युवक की आँखों में चमक आगई और वह बुजुर्ग का हाथ पकड़ कर  पूर्ण विश्वास से आगे बढ़ने लगा |

जीवन का यही सत्य है कि हम जिन चीजों के अनुभव लेकर अपनी आगामी पीढ़ी  का प्रयत्न करते है वह हमारी एक नहीं सुनती और उसी पतन के मार्ग पर खुद भी कष्ट भोगती है जहाँ से हम उन्हें बचाने का प्रयत्न कररहे होते है |
जीवन का बड़ा या छोटा होना महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है  कि आपको जीवन में अपना उद्देश्य प्राप्त करने में कितना समय लगता है , और आप जीवन के प्राप्त समय को कितना सफल और लोक कल्याण कारी बना पाते है जीवन की सार्थकता के लिए ये बिंदु अधिक उपयोगी हो सकते है 

  • जीवन में समय सबसे अनमोल विषय है उसके हर पल का  प्रयोग इस प्रकार करें जिस प्रकार लक्ष्य पर जाता हुआ कोई अंतरिक्ष यान यदि एक पल को भी दिशा भ्रमित होता है तो असफलता  दिखने  लगती है | 
  • जीवन में  एकला चलो रे का सिद्धांत सबसे सशक्त विषय है, आपका जो भी सुख दूसरे पर आधारित हुआ कालान्तर मेंवह  आपको  केवल दुःख ही देने  वाला है 
  • बहुत लम्बी भीड़ , चापलूसों और प्रसंशकों के स्थान पर कुछ एक मित्र और आलोचक अधिक अच्छे है  आपको बार बार और श्रेष्ठ और श्रेष्ठ  की  प्रेरणा अवश्य देंगे | 
  • जीवन की अवश्यम्भावी परिस्थितियों  से  घबराएं  नहीं  अपने कर्त्तव्य की दिशा में  रहे  धर्म के अनुरूप आत्मा अमर है और वह अपने लक्ष्य अवश्य पूर्ण करती है तो आपके आदर्श अवश्य पूर्ण होंगे 
  • अपने समाज से उन लोगो की खोज अवश्य करें जिन्हें आपकी आवश्यकता है , और समयानुसार उनकी यथोचित मदद  करें | 
  • आपपने लक्ष्य में वैसे कार्यरत  हो जैसे कोई बहरा आदमी आपको मुंह चलाता तो देख सकता है मगर  प्रभाव आप पर नगण्य ही पड़ेगा , और आप उचित  गति से अपने गंतव्य पर पहुँच जावेंगे | 
  • जीवन से भागने का प्रयत्न न करें  से जितना भागेंगे परिस्थितियां उतनी ही विकराल होती जावेंगी क्योकि जीवन में हर अच्छे ख़राब को  भोगना आपका ही   प्रारब्ध है ।
  •  कार्य के साथ  आदर्शों के लिए भी  निकाले ये आदर्श क्रियान्वयन विपरीत परिस्थिति में  आपको धनात्मक सम्बल अवश्य  देंगे | 
  •  मित्र , सहयोगी और समाज केवल समय, साधन और आपके व्यक्तित्व से अपनी तुलना करके स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहेंगे उन्हें केवल उतना महत्व दे जो आपके लक्ष्य की प्राप्ति में रोड़ा न बन सके| 
  • आप जो व्यवहार लोगो को दे रहे है वही व्यवहार आपको मिलेगा यदि आप सत्य ,प्रेम कल्याण उदारता का भाव  रखते है तो आपका मार्ग सहज ही होगा | 
  • हर परिस्थिति में कुछ श्रेष्ठ किया जा  सकता है केवल भाव से उसे तय किया जाए और पूर्ण ईमानदारी से उसका क्रियान्वयन किया जावे 






Sunday, September 21, 2014

सफलता का एक मात्र साधन है आत्म नियंत्रण

एक राजा था जो अपनी प्रजा और राज्य के राज काज में निपुण था मगर उसमे केवल यह अवगुण था  कि वह अपने सामने किसी की विद्वता को मानने को तैयार नहीं होता था , बहुत से शुभ चिंतकों ने उसे समझने का प्रयत्न किया मगर वह  मानाने को ही तैयार नहीं होता था एक बार राजा का एक मात्र पुत्र जंगल में शिकार पर गया और सकुशल लौटने कोही था अचानक एक सर्प पेड़ से उसके उपर गिरा  और उसने उसे काट लिया तत्क्षण उस  उस राजकुमार की मृत्यु हो गई , लोगो ने बताया यहाँ पास ही एक तपस्वी रहते है उन्हें बुलाया जाये वो शायद आपकी कुछ सहायता कर पाये , राजा के सामने केवल अन्धकार छाया हुआ था उसने कहा अब मै  हार गया हूँ आपलोग जैसा चाहो वैसा करो मंत्री ने उस सन्यासी से प्रार्थना की और सन्यासी ने आकर कुछ एक जड़ी बूटियों से राजकुमार को  जीवित कर दिया राजा मूर्खों सामान हतप्रभ सा उसे देखता रह गया , बाद में उसने साधु से कहा हे देव मेरी और से ये तुच्छ भेंट स्वीकार करें साधु ने देखा हीरे मोतियों से भरे कुछ थाल है उसने कहा  बस इतना सा , राजा ने कहा पूरा खजाना दे देता हूँ स्वीकार करें आप साधु ने कहा राजा तेरा खजाना है ही कितना ,राजा बोल पूरा राज्य लेलो साधु बोला बहुत छोटा है तेरा राज्य, राजा को क्रोध आ गया वो कहने लगा आपपर कुछ है नहीं और मुझे आप कंगाल ठहरा रहे हो बताओ क्या है आपके पास साधु शांत भाव से बोला राजन आओ बैठो मैं  बताता हूँ  पुत्र जब आप  घर परिवार , राज्य स्थान के मालिक होना बताते हो तो   आप केवल उसके ही मालिक होते हो और आपके आधीन जो होते है बस उनका ही आधिपत्य होता है आपपर. और आप कभी अपने अंतरकी शक्ति और उसके साम्राज्य का अनुभव करके तो देखो ,एक बार इन बंधनों से हट  कर देखें तो सारा आसमान और पूरा संसार आपका हो जाता है ।सधु ने राजा को एकाग्र करके मन का  शक्ति शाली  वैभव दिखाया  राजा को लगा वो आकाश में घूम रहा है हजारों सूर्यों की रौशनी के साथ उसे मालूम होगया की साधु सबको तुच्छ  क्यों कह रहा है उसे  राज्य अपनी सम्पत्ति सब बहुत छोटी दिखाई देने लगी  और वह भी परम सत्य की खोज में साधु के साथचल दिया |

आज हम जिस  समय से  है  वहां केवल भौतिक संसाधन और हर  स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ है हम एक दूसरे को अपने सामने छोटा  सिद्ध करके  स्वयं को अतुलनीय बनाने में लगे रहते  है जबकि हमारी सम्पूर्ण  शक्ति इसमें लगी रहती है  कर्त्तव्य , आदर्श और सरकारात्मक गुणों  चाहे  समाहित करें या नहीं करें लेकिन अनेक बुराइयों ,  कमियों और नकारत्मकताओं के बाद भी श्रेष्ठ बने रहे , काल अबाध गति से चलता रहता है ,हर युग में मनुष्य अपने आपको सर्वोच्च बनाने की कोशिश में लगा रहता है फिर एक दिन समय के हाथों   हारा  चला जाता है , कहने का अर्थ यह की समय उसके प्रभुत्व को मानने से इंकार कर   देता है |

हर इंसान को ईश्वर ने पूर्ण शक्ति , धर्म , और सकारात्मकता के  गुण  दिए है मगर हर आदमी सफल नहीं हो सका अधिकांश  बीच में ही अपने मूल लक्ष्य से भटकते  दिखाई दिए क्योकि उस  व्यक्ति को  पूर्ण बना कर  परीक्षा   लिए हजारों प्रलोभन  संसार में फ़ेंक   दिए है जिनमे उलझ उलझ कर व्यक्ति अपने मूल उद्देश्य या सफलता  तक नहीं पहुँच  पाता युवा अवस्था में उसने बहुत  आदर्श , सकारात्मक गुण , एवं सार्थक उद्देश्यों को लक्ष्य बनाया फिर जैसे ही धीरे धीरे  बढ़ा  उसे समाज पैसा ,  योवन , संसाधन ऐशोआराम , और  की तमाम  रंगीनियाँ,  आधुनिक कहलवाने के मद ने घेर लिया और उसके मूल उद्देश्य समय निकलने के साथ हारते चले गए और अधिकाँश लोग उस ईश्वर की श्रेष्ठ कृति होकर भी स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध नहीं कर सके |

इस समय की गति में सफल सिद्ध वही हो पाये जिनके लक्ष्य और कर्म के संकल्प पूर्ण शक्ति संपन्न थे , अनादि काल से यह कथा महाभारत में  द्रोण  ने अर्जुन से चिड़िया की आँख के लक्ष्य के रूप में कही है और वही सत्य आपको सफल या असफल सिद्ध करदेगा , सफलता के कोई लघु मार्ग होते ही नहीं है , जो लोग लक्ष्य की नीरसता भरे कठिन परिश्रम को ही जीवन मान लेते है समय उनके सामने समय  स्वयं नतमस्तक हो जाता है ,उनका केवल एक गीत होता है

      जिंदगी  रंगीनियों को  देख लूँगा  फिर कभी  , 
     वक्त  मुझको मंजिलों पर खुद फतह पाने तो दे 

अर्थात उसे केवल यह मालूम रहता है की उसे  कौन सा काम किस प्राथमिकता पर करना है , और यही मूल मंत्र उसे सफलता के उस पायदान पर खड़ा कर देता है जहाँ समय उसका प्रसंशक  बन जाता है |

जीवन में इस आत्म नियंत्रण के लिए निन्म प्रयोग करके अवश्य देखे



  • जीवन बहुमूल्य है और इसमे प्रति पल कुछ सकारात्मक किया जा सकता है , मै  किस प्रकार इसे सिद्ध कर सकता हूँ , क्या  मै  सकारात्मक कर्म के लिए संकल्पित हूँ अथवा नहीं | 
  • आत्म नियंत्रण का अर्थं है , मन ,वाणी ,कर्म  से वो मान दंड स्थापित कर पाएं जो भविष्य में समाज को एवं मानवीयता  एक उदाहरण बन कर मिल पाये , अर्थात वह कल्याण कारी हों | 
  • स्वयं के विकास और कर्म को ऐसा सिद्ध करने का प्रयत्न करें  कि  वह आपके लाभ के साथ सामाजिक हिट का भी  कारक  बन सकें | 
  • संकल्प की प्राथमिकता से पहले यह विचार करलें  कि  संकल्प की आपूर्ति के समय तक अनगिनत समस्याएं और प्रलोभन आपको आकर्षित करेंगे , और उनका प्रभाव आपको असफल सिद्ध कर देगा | 
  • अपने संकल्प और शक्ति को बार बार दोहराते रहें , प्रति दिन आपके इस प्रकार याद करने से यह संकल्प आपको पूर्ण सफल कर देगा ,इसके लिए स्वयं को जाग्रत रखें | 
  • आत्म नियंत्रण के प्रश्न पर यह हमेशा याद रखें  कि  हम स्वयं अपने हर अच्छे बुरे कर्म के लिए जिम्मेदार है और हमारा हर कार्य हमें अच्छा या ख़राब सिद्ध करने की शक्ति रखता है | 
  • स्वयं को  संयमित और और सकारात्मक ऊर्जा से ओत  प्रोत  देखे और यह अनुभव करें  कि  संसार को शक्ति देने वाली कोई अभूतपूर्व शक्ति आपको दिशा दे रही है , इससे आपको साक्षात , धनात्मक अनुभव हो सकेंगे | 
  • आप अपने हर कार्य को समय  बद्ध , तरीके से करने का प्रयत्न करें , आप  दिशा भ्रमित तब ही होते है जब आपके  पास कोई  समयानुरूप रूप रेखा नहीं होती  | 
  • अपने कार्यों और मन मष्तिष्क के आवेगों को निरंतर देखते रहिये की क्या कोई  और श्रेष्ठ विधि अपनाई जा सकती है , अपनी क्रिया विधि कीकमियों को दूर करते रहिये | 
  • आत्म  नियंत्रण का सबसे बड़ा सूत्र यह है कि स्वयं को अंतरात्मा की आँखों से उस प्रकार देखें कि शरीर के किये गए कार्यों पर आपको आपकी आत्मा दिशा निर्देशित करती रहे , वह आपको आपके हर कार्य के बारे में दिशा निर्देशित करती रहे और आप स्वयं को सुधरते रहे , ये तकनीक आपको पूर्ण आत्म नियंत्रण सीखा देगी | 






अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...