Sunday, November 16, 2014

गलतियों की स्वीकारोक्ति(realization of mistakes)

  

हमीं सब क्या सभी मैं कुछ कमीं है , न धरती देवताओं से थमीं है 
गगन आंसूं न पोछेंगा तुम्हारे , सहारा आदमी का आदमी है 

आदमी गलतियों का पुतला है और उसे  गलतियां करने का अधिकार भी  है, उपरोक्त पक्तियों में किसी कवि की कल्पना यही दर्शाती है  कि  समय परिस्थितियों और सामाजिक मानसिक और समय की मांग के अनुरूप हम कई गलतियां करते रहते है ,परिणाम हमारा व्यक्तित्व कमजोर से कमजोर होता चला जाता है ,ईश्वर ने हमें बहुत सी कमियों के साथ बनाया है और हमारे व्यक्तित्व में कमियां होना  स्वाभाविक भी है यहाँ मूल प्रश्न यह नहीं  कि हम  त्रुटियाँ करें ही नहीं वरन प्रश्न यह है की हम त्रुटियों को समझें , और  उनके कारण और परिणामों की व्याख्या अवश्य करें क्योकि  मनुष्य और पशु में यही भेद है कि  मनुष्य की वैचारिकता उसे यह सोचने केलिए प्रेरित अवश्य करती है  कि  वह त्रुटियों के कारण ,प्रभाव की व्याख्या अवश्य करे और भविष्य में उनकी पुनरावृति न  होने दें |

म जिस समाज में रह रहे है वहां विभिन्न प्रकार के लोग, कार्य एवम परिस्थितियों का सामना करना पड रहा है हमें  यहाँ अधिकांश स्थिति में केवल एक नियम और मानसिकता दिखाई देती है कि  सामने वाला उसके किस काम का है और वह उससे क्या ले सकता है ,दोस्तों हम सामने वाले से आशा कररहे होते है वह हमसे आशा कररहा होता है ,और इस तरह अधिकांश सम्बन्ध सतही तौर पर अपना स्वभाव बता  देते है की वो विशुद्ध स्वार्थ का पर्याय है ,मूल रूप से यही से हमारी गलतियों का आरम्भ भी हो जाता है  हम उन संबंधों की तह तक पहुचने से पहले अपना पूर्ण विश्वास सामने वालों को  सौप  कर उनके शोषण का साधन बन जाते है | एक बार गलतियों के जाल में फंसने के बाद हम चारों और एक ऐसी दल दल बना लेते है जहाँ सारी सोच , कर्म और प्रयत्न सब शून्य हो जाते है | 
 
मनुष्य त्रुटियों  को तीन प्रकार से जीने वाला होता है 
प्रथम वह  मनुष्य जो अकस्मात् अनजाने में त्रुटि कर बैठता है 
द्वितीय वह जो पूर्ण नियोजित ढंग से त्रुटि इस लिए करता है कि  उसे मन चाँही  स्थिति प्राप्त हो जाए और
तृतीय वह जो समय परिस्थितियों  और दूसरों के दबाब में त्रुटि करने में शामिल हुआ है 
अब यहाँ प्रश्न उनका नहीं जो बार बार गलतियां कररहे है , दंड  पा रहे या बचे हुए है मगर हो पूर्व नियोजित है तो  इनके लिए केवल समय क़ानून और दंडात्मक व्यवस्था ही इनका सुधार करेगी , मगर जो लोग आकस्मिक , और समय परिस्थिति और दुष्ट लोगों के शिकार हुए है उनके लिए पुनर्चिन्तन का समय अवश्य है जो इन्हें नव पथ पर अवश्य ले जाएगा | एक उर्दू शायर ने लिखा -


" आदमी क्या करे खता के  सिवा , लोग नाहक़ ख़ुदा  से डरते है "

"जब आदमी को ईश्वर ने  बहुत सी कमियों के साथ बनाया है तो  गलती करना एक सामान्य सी प्रक्रिया है मगर महत्व पूर्ण यह है कि हम गलती करके स्वीकारते नहीं है और कभी मन में गलती का ख्याल आता भी है तो ,डरते है ईश्वर से ,जिस दिन गलतियों के बाद हम अपने आपसे डरने लगेंगे तो शायद मनुष्य को देवता बनने में समय नहीं लगेगा  देवता का आशय ही यही है जो त्रुटियों को दूर कर चुका है और वह परमार्थ के लिए जीवन जी रहा है ", 
संसार उन लोगों से भरा पड़ा है जिन्होने  अपने जीवन काल में असंख्यों त्रुटियाँ की और समाज में उन्हें लुटेरा कामी क्रोधी और जाने कितने असभ्य नामों से पुकारा  मगर समय की तीव्र धारण में इनमें से जो लोग भी अपनी त्रुटियों को स्वीकार करने और उनपर चिंतन करने का सामर्थ्य कर पाएं उन्हें इतिहास ने युग पुरुष बना डाला 



जो अपनी त्रुटियों  को स्वीकार कर नया मार्ग बनाने के सक्षम हुआ वह स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध कर पायेगा अन्यथा बार बार जन्म मृत्यु जन्म सर्वोत्कृष्ट बनाने की चाह,  हर श्रेष्ठ वस्तु और व्यक्ति पर उसका अधिकार हो , समाज में यश कीर्ति वैभव और वंश की श्रेष्ठ कामना भी केवल उसे प्राप्त हो ,रूप सौंदर्य और कर्म क्षेत्रमे वह अद्वितीय हो , अर्थात यह की वह तुलनात्मक दृष्टी से वह सबसे श्रेष्ठ सिद्ध हो सके , ये सब कामनाएं स्वाभाविक है और इनकी प्राप्ति भी संभव है मगर केवल इतना ध्यान रहे की ये सब कामनाएं और आपकी जीवन की त्रुटियाँ साथ चलेंगी  मृत्यु के  क्रम में वह एक भीड़ होगा जिसकी कोई पहिचान ही नहीं होगी 



    •  त्रुटियों के कारण की जांच करें और यह प्रयत्न करें की वे परिस्थितियां निर्मित न हों जहाँ हमे गलत सिद्ध होना पड़े क्योकि बहुत सी स्थितियों पर हमारा अधिकार होता है |
    • जीवन  के हर कार्य पर पैनी दृष्टी बनाये रखिये ,क्योकि यह महत्व पूर्ण है यहां हर कार्य में या तो कुछ  नकारात्मकता मिलेगी या सकारात्मकता | 
    •  समय परिस्थितियों और अकस्मात् होने वाली त्रुटियों पर अपनी आत्मा के सामने उसकी स्ववकारोक्ति कीजिये और आगे का भविष्य तय कीजिये | 
       
    • अपनेकार्यों के पूर्व और  और कार्य के बाद  उसका चिंतन करना न भूलें ,और उसे कैसे प्रभावी और सर्वसाधारण के उपयोग का बना सकते है यह सिद्ध कीजिए | 
    • महान पुरुषों के त्याग , संघर्ष और परमार्थ की  गाथाएं पढ़िए और उनके आधारों में  वर्तमान प्रासंगिकता जोड़ते हुए प्रयोग कीजिए | 
    • समय समय पर नए प्रयोग अवश्य  करें और इनका प्रयोग ऐसे करें जो आपको यश  और समाज को वह लाभ दे सके जो अभी उसे प्राप्त नहीं हुआ है | 
    • अपनी कल्पना को परमार्थ से जोड़ कर बहुत ऊची  उड़ान भरिये और रोज उसके लिए थोड़ा प्रयास अवश्य करिये धीरे धीरे   लक्ष्य आपकी हद  में आने लगेगा | 
    • गलतियों के चिंतन के बाद उन्हें दोहराएं नहीं बल्कि उनसे एक सबक अवश्य लें और उस सकारात्मक सबक को याद रखते हुए नया मार्ग बनाएं |
    •  सत्य का जीवन  साश्वत और चिरंजीवी है | 
    • मनुष्य प्रकृति  का दास है और प्रकृति के न्याय में क्षमा नहीं होती वह तो बस यह जानती है कि यदि जीवन में कोई भी क्रिया गलत सिद्ध हुई तो परिणाम भी आपको ही भुगतना होगा ,अतः जीवन केप्रत्येक पल को पूरे चिंतन के साथ जियें | 
    •   आप जीवन के महत्व को जानते है और हर पल कुछ नया सीख रहें है ,जो विपरीत है वो कल अनुभव बनकर आपको  नई दिशा देगा | 
    •  सब के साथ बात, व्यवहार और सम्पूर्ण  संबंधों में आने वाले लोगों के साथ व्हवहार में सायं बरतें और यदि कोई त्रुटि हो तो बिना समय व्यर्थ गवाएं क्षमा मांगें | 
    • सरलता विनम्रता और सबको श्रेष्ठ व्यवहार देने वाला स्वयंम काल जाई हो जाता है |

      जीवन के प्रत्येक पल को इस प्रकार जियें  कि  हर आने  वाले समय  से  अधिक  उस समय को महत्व दें जो समय अभी निकल रहा है ,ऐसे में हर  क्रिया पर पूर्ण ध्यान दिया जाना चाहिए,क्योकि भविष्य पर कोई अधिकार नहीं है और यदि वर्तमान की क्रियान्वयनता पर ध्यान देते रहे तो भविष्य स्वयं सुखद हो जाएगा |

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