Sunday, October 19, 2014

हार और निराशा को विश्वास से जीतें

शहर से दूर एक छोटी सी पुलिया पर एक सुन्दर रोबीला युवक  गहन चिंता में बैठा अपने आप में बुद बुदा  रहा था बीच बीच में आँखों के कोरों से यदा कदा  आंसू गाल पर आजाते थे परन्तु वह उन्हें रोकने का  भरसक प्रयत्न भी करता रहा था, कई राह गीर जो सुबह की सैर के लिए निकल रहे थे प्रश्न भरी नजर से देखते जा रहे थे कुछ एक ने पूछा भी क्या हुआ नवयुवक मौन स्तब्ध और निश्छल एक और टकटकी लगाये देखता रहा बहुत देर बाद एक बहुत बुजुर्ग आकर युवक के बगल  बैठ  गएचलते चलते थक गए थे शायद , बुजुर्ग ने सबकी तरह उसे भी कहा गुड मॉर्निंग यंग   मेन युवक चुप रहा बुजुर्ग को बड़ा अजीब लगा उसने जब ध्यान से देखा तो पाया की युवक किसी गहन चिंता में है उसने बड़े ही वात्सल्य भाव से पूछा बेटा  क्या हुआ है में  तुम्हारे पिता के जैसा हूँ शायद ईश्वर ने मुझे तुम्हारे लिए ही भेजा है युवक जोर जोर से रोने लगा बुजुर्ग ने उसे सम्बल दिया और पूछा क्या बात है युवक ने बताया कि में  बहुत बड़े खान दान का पुत्र हूँ  मेरा पूरा जीवन ऐशो आराम में बीता है  मेरे दादा जी जब कभी आदर्शों की बात करते थे तो मुझे अच्छा लगता था सोचता था मै  भी समाज को नए प्रतिमान दूंगा , मगर कॉलेज, स्कूल ,और समाज में मेरे चारों और चापलूसों की भीड़ जमा होती गई और मैं नशे , ऐय्याशी में डूबता चला गया ,जीवन के आदर्श लक्ष्य और दादाजी के आदर्श सब कहानी बनकर रह गए , अभी कुछ दिन पहले मेरी तबियत ख़राब हुई जाँच बाद डॉक्टर ने यह कहा   कि बेटा आप के पास केवल छै  माह का जीवन है आपके फेफड़े ९०% तक निष्क्रिय होचुके है और दुनिया में आज तक  बीमारी  का इलाज नहीं है तो पिछली १० रातों में मैं बहुत रोया  , दादाजी बार बार दिखाते रहे , आदर्श जीवन के प्रतिमान बनाने की बात मुह चिढ़ाती रही,मैंने सोचा अपने समाज , अपने मित्रों , अपने सहपाठियों को इस जहर से अवश्य बचाउंगा यह भाव  लेकर  मैं सबके घर घर गया सबको जैसे ही मेरी स्थिति का ज्ञान  वो मेरे साथ छोड़ गए मैंने बहुत कहा यह जहर  तुम सब छोड़ दो , वो सब मेरा मजाक उड़ाने  लगे और मुझे छोड़कर चले गए अब मैं क्या करूँ युवक फिर रोने लगा बुजुर्ग ने हाथ फेरते हुए कहा  बेटा  आप मुझे देख रहे हो मुझे भी डॉक्टर ने   बताया है की मुझ पर जीवन कम है परन्तु ध्यान रखो कि  समाज मे क्रांति अल्प समय में भी संभव है  अनेक ऐसे लोग  ही समाज को   धरोहर  दे गए है | ,विवेकानंद , आदिगुरुशंकराचार्य अनेक विभूतिया है , भारतीय धर्म के अनुसार राजा परीक्षित ने सात दिनों में जो ज्ञान , प्रकाश और जीवन का सत्य बांटा  वो  दुर्लभ है पुत्र जीवन बड़े और छोटे का सम्मान नहीं करता वह तो केवल उनका सम्मान करना जनता है जो भाव पूर्ण तरीके से अपने ठोस कर्त्तव्य मार्ग से  उसकी दिशा बदलदे | तुमपर बहुत समय है मैं और तुम मिलकर वो मानदंड अवश्य बनाएंगे युवक की आँखों में चमक आगई और वह बुजुर्ग का हाथ पकड़ कर  पूर्ण विश्वास से आगे बढ़ने लगा |

जीवन का यही सत्य है कि हम जिन चीजों के अनुभव लेकर अपनी आगामी पीढ़ी  का प्रयत्न करते है वह हमारी एक नहीं सुनती और उसी पतन के मार्ग पर खुद भी कष्ट भोगती है जहाँ से हम उन्हें बचाने का प्रयत्न कररहे होते है |
जीवन का बड़ा या छोटा होना महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है  कि आपको जीवन में अपना उद्देश्य प्राप्त करने में कितना समय लगता है , और आप जीवन के प्राप्त समय को कितना सफल और लोक कल्याण कारी बना पाते है जीवन की सार्थकता के लिए ये बिंदु अधिक उपयोगी हो सकते है 

  • जीवन में समय सबसे अनमोल विषय है उसके हर पल का  प्रयोग इस प्रकार करें जिस प्रकार लक्ष्य पर जाता हुआ कोई अंतरिक्ष यान यदि एक पल को भी दिशा भ्रमित होता है तो असफलता  दिखने  लगती है | 
  • जीवन में  एकला चलो रे का सिद्धांत सबसे सशक्त विषय है, आपका जो भी सुख दूसरे पर आधारित हुआ कालान्तर मेंवह  आपको  केवल दुःख ही देने  वाला है 
  • बहुत लम्बी भीड़ , चापलूसों और प्रसंशकों के स्थान पर कुछ एक मित्र और आलोचक अधिक अच्छे है  आपको बार बार और श्रेष्ठ और श्रेष्ठ  की  प्रेरणा अवश्य देंगे | 
  • जीवन की अवश्यम्भावी परिस्थितियों  से  घबराएं  नहीं  अपने कर्त्तव्य की दिशा में  रहे  धर्म के अनुरूप आत्मा अमर है और वह अपने लक्ष्य अवश्य पूर्ण करती है तो आपके आदर्श अवश्य पूर्ण होंगे 
  • अपने समाज से उन लोगो की खोज अवश्य करें जिन्हें आपकी आवश्यकता है , और समयानुसार उनकी यथोचित मदद  करें | 
  • आपपने लक्ष्य में वैसे कार्यरत  हो जैसे कोई बहरा आदमी आपको मुंह चलाता तो देख सकता है मगर  प्रभाव आप पर नगण्य ही पड़ेगा , और आप उचित  गति से अपने गंतव्य पर पहुँच जावेंगे | 
  • जीवन से भागने का प्रयत्न न करें  से जितना भागेंगे परिस्थितियां उतनी ही विकराल होती जावेंगी क्योकि जीवन में हर अच्छे ख़राब को  भोगना आपका ही   प्रारब्ध है ।
  •  कार्य के साथ  आदर्शों के लिए भी  निकाले ये आदर्श क्रियान्वयन विपरीत परिस्थिति में  आपको धनात्मक सम्बल अवश्य  देंगे | 
  •  मित्र , सहयोगी और समाज केवल समय, साधन और आपके व्यक्तित्व से अपनी तुलना करके स्वयं को सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहेंगे उन्हें केवल उतना महत्व दे जो आपके लक्ष्य की प्राप्ति में रोड़ा न बन सके| 
  • आप जो व्यवहार लोगो को दे रहे है वही व्यवहार आपको मिलेगा यदि आप सत्य ,प्रेम कल्याण उदारता का भाव  रखते है तो आपका मार्ग सहज ही होगा | 
  • हर परिस्थिति में कुछ श्रेष्ठ किया जा  सकता है केवल भाव से उसे तय किया जाए और पूर्ण ईमानदारी से उसका क्रियान्वयन किया जावे 






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