Thursday, November 27, 2014

पहले स्वयं में परिवर्तन करें दूसरों में नहीं (CHANGE YOURSELF FIRST,NOT OTHERS.)


दूसरों के व्यवहार का प्रतिउत्तर देने में हम अपने व्यवहार में जरा सी भी देरी नहीं करते और हर व्यवहार में हमारी यह कोशिश बनी रहती है  कि  हम स्वयं कोश्रेष्ठ सिद्ध करते हुए सामने वाले को  हारा  हुआ सिद्ध अवश्य करदें | मित्रों जीवन कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमे हर प्रतिउत्तर में आप सही ही हों ,क्रोध , दुःख , पश्चाताप ,ख़ुशी या दर्द किसी भी मानसिकता में क्यों न हो आपका व्यवहार संतुलित  होगा और आप बार बार स्वयमेव आदर्शों से समझौता करते रहेंगे या स्थिर रहेंगे यह प्रश्न वाचक ही है |


 गाँव में एक बहुत आदर्श शिक्षक थे जिनसे सारा  गाँव  देश भक्ति और त्याग, बलिदान की कहानियाँ सुनता था जब मास्टर जी  वीर रस की कहानियां  सुनाते तो दस दस गांवों के लोग मुंह खोले देश पर मर मिटने वाले वीर जवानों के प्रति आश्चर्य और श्रद्धा से भर जाते  थे  ,मास्टर जी कहते थे जिसने देश की रक्षा के लिए कार्य नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है और इस प्रकार हर घर के एक व्यक्ति को सेना में भर्ती भी करवा दिया था  ,मास्टर जी ने अपने दोनो बच्चों को सेना में भर्ती होने नहीं भेजा ,उन्हें डर था की उन्हें कुछ हो न जाए ,और मास्टर जी को अपने दोनो बच्चों से अति मोह भी जो था , बच्चे अपने पिता की इस राज नीति से बहुत दुखी थे ,परन्तु कुछ बोल नहीं पाते थे ,अचानक गांव में भयंकर प्लेग फैला  गाँव के अधिकाँश युवा सीमा पर थे वे बच गए मास्टर जी का पूरा परिवार अस्पताल में था ,मास्टर जी ने अपने बगल में पड़े बड़े बच्चे को देखा बच्चे ने कहा पिताजी आप गाँव के हर घर से युवाओं को सेना में भेजने की सीख देते थे परन्तु अपने बच्चों की मौत से डरते थे देखो आज वो सब बच गए है और हम सब संकट में है मेरी साँस टूट रहीं है शायद अब मै अब जारहा हूँ , बच्चा दुनियां छोड़ के जाचुका था | डॉक्टर्स  की बड़ी टीमें आई आधुनिक इलाज चला , बाद में सबको बचा लिए था , गाँव के हर घर  से बच्चों को सेना में भेजने का प्रोत्साहन और बेटे के आखिरी शब्दोंके अंतर्द्वंद में मास्टर जी कई रात  सो नहीं पाये अथाह दुःख था ,लड़के को मरे आज पूरा एक माह हुआ था ,पूरी रात,लड़का स्वप्न में लड़ा था पिता से , सुबह उठ कर पिता ने छोटे बच्चे का हाथ पकड़ा और अब वो डबडबाती आँखों से एक बड़े आलिशान भवन ने सामने खड़े थे जिसपर लिखा था सेना भर्ती कार्यालय   और बच्चा मंद मंद मुस्कुरा रहा था| 


 यही जीवन का सत्य है हम दुनियां से में हजारों लोगो को अपने अनुरूप जीवन जीने का मशवरा भी देते रहते है , बच्चे को परिवरिश देते समय हम आदर्शों से अधिक इस बात में रूचि लेते है बच्चे का हर कार्य हमारे अहम की तुष्टि के लिए करे , यह आवश्यक  नहीं है  कि  वह कार्य सही है या गलत, बस  वह हमारे झूठे सम्मान , प्रतिष्ठा और हमारे घमंड की आपूर्ति का साधन अवश्य होना चाहिए | यहीं से सम्पूर्ण जीवन के आधार डगमगाने लगते है और जिस उम्र में आदर्श , सत्य अहिंसा अपरिग्रह और बलिदान की परिभाषाओं के स्थान पर हम झूठ ,मक्कारी ,असत्य और कैसे भी कार्य निकाल लेने की कला सीख बैठते है परिणाम हमारे सम्पूर्ण अस्तित्व पर ये धब्बे उस समय तक अपना प्रभााव दिखाते रहते है जबतक हम पश्चाताप करने के लिए जीवन के अंतिम सिरे पर ना पहुँच जाए | 


बहुधा हम सब लोगों का यही  स्वाभाव हो गया है कि  हम सामने वाले के व्यवहार के प्रति उत्तर में कभी अपनी आदर्श सोच का परिचय  नहीं दे पाते यदि सामने वाले ने क्रोध दिखाया तो हमने उसे दुगना क्रोध दिखाते हुए निरुत्तर करना चाहते है , सामने वाले ने रोना चालू किया तो या तो हम ने अपना आधार ही छोड़कर उससे समायोजन के  लिए या उससे ज्यादा चिल्लाकर उसे चुप करादेने में अपनी जीत समझते है ,हम यह नहीं जानते कि हमारे जोर से चिल्ला कर सामने वाले को चुप करने में हमारी जीत नहीं थी हमारी जीत तो तब थी जब हम उसके अंतः के दर्द को उसके जुबान से सुन पाते या उसे कोई मरहम लगा पाते हम केवल यह जानते है कि जो कुछ भी सही है वह  बस हमारे अनुसार ही हो और सब मेरे सड़े - गले निर्णयों पर मूक सहमति बने रहें ,शायद इस सोच से हम अपने भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ कर रहे है जिसका मूल्य हमें ही चुकाना होगा | 

 

"हम छेनी हथोड़ा लेकर पूरी ताकत से पत्त्थरों को आकर देते रहे मगर जब एक हथौड़ा अपने ही हाथ पर गिरा तो समझ आया  कि मै पत्थरों पर जिस विनम्रता की मूर्ति को उत्कीर्ण करना चाहता था उसे इतनी जोर से पीटनें की आवश्यकता ही नहीं थी, वह तो किसी बारीक नक्काशी में घूँघट डाले किसी अबोध, अल्हड युवती का चित्र था जो अपने  ईश्वर के सामने आँखें बंद करके बैठी थी और उसे बनाने से पहले मुझे भी उन्ही भावनाओं से जुड़ना होगा "


व्यवहार से पहले इन पर भी चिंतन करें

  • दूसरों की व्यवहारिक नकारात्मकता आप पर नहीं आनी  चाहिए हमारे व्यवहार से यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम सामने वाले के व्यवहार में तटस्थ भाव में है | 

  • व्यवहार के भावों का ज्ञान होना अति आवश्यक है , हमेशा एक जैसे व्यवहार से हर  समस्या को हल करने का प्रयत्न मत करें , समस्या के अनुरूप निर्णय लें |

  • आपकी जीत इसमें नहीं  कि आपने कितनों की बोलती बंद करदी ,आपकी जीत इसमें है कि कितनों के दर्द में हिस्से दर होते हुए उनकों समझ सकें | 

  • क्रोध आपकी शक्ति और दूसरे के विवेक दोनों को ख़त्म कर देता है ,और ऐसी अवस्था में ही धैर्य की आवश्यकता होती है , ऐसे समय में थोड़ा रुक जाएँ | 

  • दूसरों को सही निर्णय देने के लिए आप स्वयं अपना अवलोकन अवश्य कीजिए ,कहीं आप किसी स्वार्थ से तो नहीं जुड़े ,आपको तटस्थ होना चाहिए | 

  • हम दूसरों को वही शिक्षा दें जिन पर स्वयं अमल कर रहें हो , अन्यथा हमारी कथनी करनी का भेद हमें स्वयं  गलत सिद्ध कर देगा | 

  • हम सब में अच्छाइयां और बुराइयां है और उन्हें शीघ्रता से स्वीकार करने वाला जीवन को जीत सकता है क्योकि अच्छाइयां बुराइयां असीमित होती है जबकि समय बहुत कम होता है | 

  • दूसरो को क्षमा करना सीखें और यह विचार अवश्य करें कि उसकी जगह मेरा कोई अति प्रिय यह गलती करता तो क्या मै यही निर्णय लेता |

  • व्यवहार में अति मधुर और आदर्शों पर अति अडिग व्यवहार बनाने की चेष्टा करें ,क्योकि सत्य की परीक्षा में वही विजयी होता है जो इनकी कीमत जनता है | 

  • जीवन को संसाधन ,वैभव और सारी उपलब्धियां  अमर नहीं बना सकती ,इतिहास ने बहुत वैभव देखा और समाप्त किया है लेकिन मानवीय मूल्यों और आदर्शों की जीवन शैली जीने वालों के सामने समय भी नत मस्तक हो जाता है |





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