भारतीय दर्शन में स्वयं का विकास सबसे बड़ी चिनौती माना गया है और हर इंसान जीवन में उन ऊंचाइयों तक पहुँचाना ही चाहता है ,जबकि सब मे वही शक्ति ,सोच और पाने की ललक बनी रहती है ,परन्तु बिरले लोग ही उस ऊंचाई तक पहुँच पाते है जिन्हें जीवन सफल सिद्ध कर पाता है , बड़ी दिलचस्प कहानी है यह जहाँ सबकुछ उस ईश्वर ने हर आदमी को दिया है मगर वह अपने आपको बेहद गरीब ,नाकारा , और गलत मान बैठता है , दोस्तों यहीं कहीं से जीवन के उत्कर्ष का रास्ता निकला है जिसपर हमें विचार करना है |
बड़ा विचित्र है इंसान और उसकी मानसिकता, सपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने पैरों के नीचें रौंद डालने की इच्छा रखने वाले इस इंसान की स्वयं की जिंदगी के 1|३ भाग से कम भाग पर ही उसका नियंत्रण है जबकि वह यह भी नही जानता कि उसकी सम्पूर्णता पाने की दौड़ में नहीं वरन अपनी कमियों पर नियंत्रण करने में थी
घनघोर तपश्चर्या में लगे हुए एक तपस्वी ने एक भक्त की पुकार पर उसकी पुत्री का भविष्य देखा उन्हें लगा की इसका पति विश्व विजयी, सम्राट , और अजेय होगा वह तप के स्थान पर केवल इसमें लिप्त होगया कि उसे कैसे प्राप्त किया जाए ,तप खंडित होगया , एकाग्रता मानसिक विचलन में बदल गई ,रूप ,योवन ,काम ,और सबकुछ प्राप्त करने की इच्छा ने उनकी सम्पूर्ण शांति नष्ट करदी , और अंत में वो जिसका ध्यान , चिंतन और तप कररहे थे उन्हे ही अपशब्द बोलकर अपनी सम्पूर्ण शक्ति नष्ट करडाली | और अंत में जब सत्य जाना कि यह एक परीक्षा थी तो घोर पश्चाताप में उबरने का कारण पूछा गया तो यह पाया की आप सबकुछ पाने की चाह में पथ भ्रष्ट हुए है अब शिव स्वरुप में परमार्थ का व्रत धारण करें तब आप इस क्षोभ से मुक्त हो सकेंगे |
अादमी कोई ऐसा सुपर मेन नहीं है की वह कल्पना की उड़ान के सहारे सब कुछ प्राप्त करले ,और जीवन के स्वप्नों और दिवा स्वप्नों को हर आदमी देखता अवश्य है और हमेशा देश, काल परिस्थिति और कुछ प्राप्त करने की स्थिति का आलोचक बना रहता है और जितना हम समाज और क्रियाओं के आलोचक होते है वैसे वैसे हमारा पतन होता जाता है परिणाम हमारे दिवा स्वप्न कभी पूर्ण नहीं हो पाते जो हमे जीवन के हर पल अपनी उपस्थिति दर्शाते रहते है और जीवन हमेशा यह सोचता रहता क्या यह उपलब्धि इतनी ही कठिन थी और पूरा जीवन इसी अपनी गलतियों , समय का दुरुपयोग और लोगो द्वारा किये गए शोषण की सोच की कहानी बन कर रह जाता है बस यहीं से उसका तमाम विकास रुकजाता है क्योकि जीवन का एक सहज नियम यह भी है कि वह ऋणात्मक सोच कभी भी सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकती |
परिवर्तन की सोच दिमाग में आते ही सबसे पहले यह विचार आने लगता है कि क्या क्या सीखें , क्या क्या परिवर्तन करें और क्या क्या उपकरण ,प्रशिक्षण लें जिससे वो सब प्राप्त कर सकें जो हम सोच रहे है |
मित्रों जीवन में तीन तरह की परिस्थितियां हमारे सामने होती है
१ प्राकृतिक नियमों की परिस्थितियां
२ अकस्मात् आयीं परिस्थितियां
३ जीवन शैली और सोच
अब यहाँ यह प्रश्न खड़ा होता है कि जीवन का २\३ भाग मनुष्य के हाथ में ही नहीं होता प्राकृतिक परिवेश में जीवन, मृत्यु , आरोग्य ,सुख , दुःख ये सब उन परिस्थितियों से बंधे होते है जिनपर केवल प्रकृति का ही वश होता है इसी प्रकार आपात काल की परिस्थितियों पर भी हमारा कोई वश नहीं हो पाता है अब रह गयी केवल हमारी सोच जीवन को जीने का तरीका और हमारी अपनी कमियां | ,
दोस्तों हम सब कुछ सोचने और स्वयं को बहुत ऊँचे लक्ष्य तक ले जाने के लिए नया रास्ता अवश्य बनाये मगर सबसे पहले स्वयं की कमियों को दूर करने का प्रयास करें जैसे जैसे क्रोध ,असत्य काम और बनावटी यश पाने की कामना कम होगी जीवन में सकारात्मक गुणों का उदय अपने आप होने लगेगा
आप विकास की सकारात्मक सोच के लिए बहुत कुछ सीखे कि नहीं? आपने जीवनको विकास के शिखर पर लेजाने के लिए कठिन मार्ग चुनें कि नहीं ?और क्या आपने किसी के पद चिन्हों का अनुशरण किया या नहीं ? ये सब बाते बहुत अर्थ नहीं रखती ,जबकि हम नए सिरे से बदलाव के लिए सब कुछ बदल डालना चाहते है और वहां भी असफल ही रहते है ।
जीवन के बगीचे में अपने दुर्गुणों की खरपतवार को समयानुरूप उखाड़कर फैंकते रहे ,जीवन में विकासोन्मुखी सोच स्वयं पैदा होती है बस आवश्यकता इस बात की है अपनी कमजोरियों को रोकने का प्रयत्न करें विकास स्वयं अपने नैसर्गिक स्वरुप में आपको इतिहास के पन्नो का अभिनेता बना देगा |
निम्न का प्रयोग अवश्य करें
बड़ा विचित्र है इंसान और उसकी मानसिकता, सपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने पैरों के नीचें रौंद डालने की इच्छा रखने वाले इस इंसान की स्वयं की जिंदगी के 1|३ भाग से कम भाग पर ही उसका नियंत्रण है जबकि वह यह भी नही जानता कि उसकी सम्पूर्णता पाने की दौड़ में नहीं वरन अपनी कमियों पर नियंत्रण करने में थी
घनघोर तपश्चर्या में लगे हुए एक तपस्वी ने एक भक्त की पुकार पर उसकी पुत्री का भविष्य देखा उन्हें लगा की इसका पति विश्व विजयी, सम्राट , और अजेय होगा वह तप के स्थान पर केवल इसमें लिप्त होगया कि उसे कैसे प्राप्त किया जाए ,तप खंडित होगया , एकाग्रता मानसिक विचलन में बदल गई ,रूप ,योवन ,काम ,और सबकुछ प्राप्त करने की इच्छा ने उनकी सम्पूर्ण शांति नष्ट करदी , और अंत में वो जिसका ध्यान , चिंतन और तप कररहे थे उन्हे ही अपशब्द बोलकर अपनी सम्पूर्ण शक्ति नष्ट करडाली | और अंत में जब सत्य जाना कि यह एक परीक्षा थी तो घोर पश्चाताप में उबरने का कारण पूछा गया तो यह पाया की आप सबकुछ पाने की चाह में पथ भ्रष्ट हुए है अब शिव स्वरुप में परमार्थ का व्रत धारण करें तब आप इस क्षोभ से मुक्त हो सकेंगे |
अादमी कोई ऐसा सुपर मेन नहीं है की वह कल्पना की उड़ान के सहारे सब कुछ प्राप्त करले ,और जीवन के स्वप्नों और दिवा स्वप्नों को हर आदमी देखता अवश्य है और हमेशा देश, काल परिस्थिति और कुछ प्राप्त करने की स्थिति का आलोचक बना रहता है और जितना हम समाज और क्रियाओं के आलोचक होते है वैसे वैसे हमारा पतन होता जाता है परिणाम हमारे दिवा स्वप्न कभी पूर्ण नहीं हो पाते जो हमे जीवन के हर पल अपनी उपस्थिति दर्शाते रहते है और जीवन हमेशा यह सोचता रहता क्या यह उपलब्धि इतनी ही कठिन थी और पूरा जीवन इसी अपनी गलतियों , समय का दुरुपयोग और लोगो द्वारा किये गए शोषण की सोच की कहानी बन कर रह जाता है बस यहीं से उसका तमाम विकास रुकजाता है क्योकि जीवन का एक सहज नियम यह भी है कि वह ऋणात्मक सोच कभी भी सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकती |
परिवर्तन की सोच दिमाग में आते ही सबसे पहले यह विचार आने लगता है कि क्या क्या सीखें , क्या क्या परिवर्तन करें और क्या क्या उपकरण ,प्रशिक्षण लें जिससे वो सब प्राप्त कर सकें जो हम सोच रहे है |
मित्रों जीवन में तीन तरह की परिस्थितियां हमारे सामने होती है
१ प्राकृतिक नियमों की परिस्थितियां
२ अकस्मात् आयीं परिस्थितियां
३ जीवन शैली और सोच
अब यहाँ यह प्रश्न खड़ा होता है कि जीवन का २\३ भाग मनुष्य के हाथ में ही नहीं होता प्राकृतिक परिवेश में जीवन, मृत्यु , आरोग्य ,सुख , दुःख ये सब उन परिस्थितियों से बंधे होते है जिनपर केवल प्रकृति का ही वश होता है इसी प्रकार आपात काल की परिस्थितियों पर भी हमारा कोई वश नहीं हो पाता है अब रह गयी केवल हमारी सोच जीवन को जीने का तरीका और हमारी अपनी कमियां | ,
दोस्तों हम सब कुछ सोचने और स्वयं को बहुत ऊँचे लक्ष्य तक ले जाने के लिए नया रास्ता अवश्य बनाये मगर सबसे पहले स्वयं की कमियों को दूर करने का प्रयास करें जैसे जैसे क्रोध ,असत्य काम और बनावटी यश पाने की कामना कम होगी जीवन में सकारात्मक गुणों का उदय अपने आप होने लगेगा
आप विकास की सकारात्मक सोच के लिए बहुत कुछ सीखे कि नहीं? आपने जीवनको विकास के शिखर पर लेजाने के लिए कठिन मार्ग चुनें कि नहीं ?और क्या आपने किसी के पद चिन्हों का अनुशरण किया या नहीं ? ये सब बाते बहुत अर्थ नहीं रखती ,जबकि हम नए सिरे से बदलाव के लिए सब कुछ बदल डालना चाहते है और वहां भी असफल ही रहते है ।
जीवन के बगीचे में अपने दुर्गुणों की खरपतवार को समयानुरूप उखाड़कर फैंकते रहे ,जीवन में विकासोन्मुखी सोच स्वयं पैदा होती है बस आवश्यकता इस बात की है अपनी कमजोरियों को रोकने का प्रयत्न करें विकास स्वयं अपने नैसर्गिक स्वरुप में आपको इतिहास के पन्नो का अभिनेता बना देगा |
निम्न का प्रयोग अवश्य करें
- जिस प्रकार खरपतवार हटाते हुए एक क्षेत्र को संरक्षित कर देने से बड़े बड़े जंगल विशाल स्वरुप ले लेते है वैसे ही जीवन की कमियों को निकालते रहने से मनुष्य के विकास स्वयं होने लगते है |
- जीवन के प्रत्येक परिवर्तन को पूर्ण रूप से विचार करते हुए उसके कारण हुए नकारात्मक प्रभाव को शून्य करने की चेष्टा करें क्योकि इससे ही आपको सरल रास्ता मिलेगा |
- कमियों का पता लगते ही पूर्ण निष्ठां और संकल्प के द्वारा उसपर चिंतन जारी रखें और यही नियंत्रण आपको अपने गंतव्य को सहज बनाने में मदद देगा |
- प्राकृतिक और आकस्मिक दुर्घटनाएं आपका भविष्य नहीं है और उनके घटित होने पर आप अपना हौसला और संकल्प बार बार दोहराइए और अपनी सकारात्मकता को बनाये रखिये |
- देश,काल ,परिस्थितियों और समय के साथ ख़राब व्यवहार करने वालों के बारे में चिंतन न करें क्योकि इनके लेश मात्र चिंतन से नकारात्मकता का पहाड़ खड़ा हो जाता है |
- जिस प्रकार मन मरे हुए लोगों का विचार करके हम उन्हें जल्द ही छोड़ने का अादी हो जाता है उसी प्रकार खराब लोगों का चिंतन किया जाना चाहिए और मन को यह विश्वास दे की वो सब मर चुके है |
- जिन परिस्थितियों पर आपका वश नहीं था उनके लिए आप दोषी नहीं हो सकते मगर जिनपर आप का वश है उन परिस्थितियों में आपका अपराध अक्षम्य होगा ऐसी त्रुटियों से बचें |
- दूसरों की आलोचनाएँ करने वाला मानसिक रोगी ,अस्थिर , और कमजोर होता जाता है क्योकि उसके सारे गुण उसमे जाने लगते है जिसकी वह आलोचना कर रहा है |
- जब तक आप दूसरों के कल्याण के लिए अपना मन नहीं बनाएंगे तब तक आप संतोष के परम सत्य को प्राप्त नहीं कर सकते अतैव परमार्थ का भाव सर्वोपरि है |
- सम्पूर्णता का अर्थ यह कि आप और आपका परिवेश राष्ट्र और आपसे जुड़े लोग आप पर गर्व कर सकें आप अपने आदर्शों मान दण्डों और भविष्य के लिए मिसाल बन सकें |
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