मनुष्य स्वभाव से गलतियों का पुतला रहा है जीवन बार बार गलतिया करता है दुःख पाता है और फिर चल देता है अपने अनजान गंतव्य की और यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि वह चलता रहता है यातना पाता रहता है और बार बार वही गलतियां करता जाता है ,न उसे अपने में परिवर्तन की फिक्र होती है न वह संकल्प ही ले पाता है कि वह कुछ आगे सीखेगा | जीवन चलता रहता है और समय खिसक जाता है क्योकि उसपर किसी का अधिकार ही कहा है ,वह यह सब भी जानता है परन्तु उसने अपने मन मष्तिष्क को इतना हल्का और विचित्र प्रकार का बना रखा है कि बार बार चोट खाने के बाद भी वह वो ही गलतियां करता है जिनसे उसने अतीत में असहय दुखः पाया है |
दो राह गीर रात के अँधेरे में चिल्ला चिल्ला कर बात कर रहे थे एक कह रहा था यार देव क्या है ये जिंदगी समझ नहीं आता केवल दुःख ही दुःख दो पल का सहारा नहीं है जीवन में, पूरा दिन काम काम और काम और फिर भी हम नौकरों जैसे लगे है जीवन में कोई आशा नहीं है , परेशान होगया हूँ जीवन से ,इतने में दूसरामित्र ओम बोला देख अब गड्ढा आने वाला है अब गिरेंगे अपन, और दोनो गिर गए ,उठे और कपडे झाड़ कर चल दिए ओम कहने लगा हाँ बंधू ऐसा ही है जीवन लड़के अौरत और घरवाले जब मर्जी आती है ,अच्छे से बात करते है ,कभी भी पिटाई कर देते है सोचता हूँ की अब आत्म हत्या कर ही लूँ ,अबकी देव बोला देखा गड्ढा आनेवाला है दोनों फिर गिरे गाली देते हुए उठे और आगे चल दिए,| एक बड़े समाज सुधारक संत उनकी बातें सुन कर बड़े परेशान से हो रहे थे मानवता की सेवा के भाव से वे रात में ही उन्हें समझाने को जाने को हुए तो दरबान ने कहा महात्मा आप परेशान मत होइए ये धनाढ्य पिता के दो पुत्र है दोनो रोज रात शराब पीकर इन्हीं गड्ढों में गिरते है उन्हें गाली देते है और फिर दुःख भरी कहानी चालू कर देते है महात्मा जी को दिव्य ज्ञान हुआ जैसे कोई मोक्ष का मार्ग और उसके अवरोध बता रहा हों |और आदमी के जीवन मोक्ष का सत्य सा जान पड़ा उन्हें ये सब |
मनुष्य भी ईश्वर के सदृश्य ज्ञान बल और पराक्रम का स्वामी है और उसमे भी अपरे शक्ति और प्रज्ञा का सामंजस्य है बस उसमे केवल अभाव है तो एक संकलित एकाग्रता की शक्ति की जिसके कारण उसका बिखरा हुआ स्वरुप स्वयं को ईइश्वर नहीं बनने देता
हिन्दू धर्म के हिसाब से जब सृष्टि का निर्माण हुआ तो उस सर्वशक्तिमान ने इंसान बनाये अनगिनत इंसान उसी बीच उस शक्ति की सह शक्ति ने प्रश्न किया कि हे देव आपने जो निर्माण किया है वह सम्पूर्ण और अलौकिक सुन्दर है इसमें किसी प्रकार की कमी नहीं है और इस प्रकार तो ये मनुष्य की जगह देवताओं का निर्माण होगया है हे देव हमें तो मनुष्य बनाना थे सर्वशक्ति मान ने हंस कर अपनी भूल स्वीकार की और अपने पुतलों में कमियां छोड़नी चालू कर दी | सफलता के लिए देवता बनने के सम्पूर्ण गुण तो दिए परन्तु लालच की इतनी कामनाएं फेंक दी कि जिससे वह अपने लक्ष्य की तरफ एकाग्र ही न हो सके परन्तु साथ ही मन मष्तिष्क की सकारात्मकता में बंद करके संकल्प की वह कुंजी भी रख दी जिससे आदमी स्वयं की कमजोरियों को पूर्ण शक्ति में परिवर्तित कर जीवन को जीत सकें |
मनुष्य के मन की पहेलियां बड़ी विचित्र है वह सब जानते हुए भी अपनी आँखें बंद ही रखता है और भविष्य में घटने वाले कार्य के प्रति उत्तर से मुंह फेर कर खड़ा हो जाता है उसी प्रकार जैसे भैंस अपना चारा खाकर चारे के बर्तन को ही पलट देती है शायद यह सोचते हुए कि अब इसकी आवश्यकता ही क्या है जबकि बार बार उसे इसी क्रम से गुजरना होता है
दोस्तों हिन्दू मान्यताओं के अनुरूप जो लोग भी अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करके संकल्प के सहारे आगे बढे है वे ही युग पुरुष बन सके है , तुलसी ने पत्नी के तानों में वासना और वैराग्य का फर्क जाना और अमर हुए , वाल्मीक ने डकैती के पाप में केवल वही भागी दार है यह जानकार संसार का त्याग किया , बुद्ध ने जीवन के क्रम में एक भीड़ जैसी जिंदगी जीने को धिक्कारा और ये सब संकल्प की शक्ति के सहारे ही युग पुरुष बने
"जब भी आप अपनी कमजोरियों और सकारात्मक शक्ति की बात करते है तब यह भूल जाते है कि आपका व्यक्तित्व स्वयं एक ऐसा विशाल शॉपिंग मॉल है जिसमे अन्नंत शक्तियां विद्यमान है आपको अपने स्टोर की पूर्ण जानकारी ही नहीं है और आप अपनी शाप की सूची गिनवा रहें है अच्छा होता एक बार आप अपना पुनः निरीक्षण करके अपने संकल्प से नकारत्मकताओं के हल की चाबी अपने मन मष्तिष्क से ढूढ़ पाते "
अपनी कमजोरियों और शक्ति की खोज निम्न के साथ भी कीजिए
अपनी कमजोरियों को सोचते समय यह अवश्य ध्यान रखिये की आपको ये कैसे मालूम पड़ा की ये कमियां है यदि समाज भय और दो चार बार की नकारात्मक प्रभाव से आप परेशान है तू फिर प्रयास करें |
मनुष्य का स्वभाव है वह कठिन का विरोधी होता है और जीवन भी सरलतम चाहता है , मगर सरल के बाद सफलता का कोई मार्ग शेष नहीं होता जबकि कठिन मार्ग में शक्ति श्रम की वृद्धि और बाद में सरल रास्ता भी शेष होता है
कमजोरियां यह बतातीं है की आप जीवन में सिद्धांत और मूल्य और सोच का आभाव हो रहा है सर्व प्रथम आपको इन्हे संयोजित करके प्रयोग करना चाहिए |
कमजोरियों कोशक्ति बनाने से पहलें आप जिन लोगो से या स्थितियों से आहत हुए है उनका त्याग कर पूर्ण शक्ति से आत्मकेंद्रित होने की आवश्यकता पर बल दिया है ,यदि आप वो आसक्ति नहीं छोड़ पाये तो सब व्यर्थ हो जाएगा |
संकल्प की शक्ति इतनी प्रबल होती है जिसमे सम्पूर्ण दुर्बलताएँ जल कर राख हो जाती है ,शिव का महा तांडव यही दर्शाता है कि संकल्प में प्रबल शक्ति निहित है |
दूसरों की सहायता से जीने का ढंग छोड़ कर आप स्वयं अपनी आत्म शक्ति का चिंतन करें इसका यह मतलब कदापि नहीं है कि आप अपनी शक्ति के कारण अहंकारी हो जाये ,सबसे मधुर व्यवहार रखिये |
जितने बहिर्मुखी हो आप उतने ही अंतर मुखी होने का प्रयत्न अवश्य करें क्योकि आंतरिक संसार में खोजने को इतना है जो आपको सीढ़ी दर सीढ़ी उच्चतम् शिखर पर ले जाएगा |
कमजोरिया तब तक कमजोरियां है जब तक आप ने उन्हें कमजोरी माना है ,एक दार्शनिक ने कहा कि व्यक्तित्व के जिस गुण पर हमने पूर्ण ध्यान नहीं दिया था हम उसे कमजोरी मानने लगे थे |
जीवन को जीते समय आपका भाव वही होना चाहिए था जैसे एक रेस में दौड़ता हुआ प्रतियोगी अपने आगे वाले से तेज होना चाहता हो |
जिस सर्वशक्तिमान ने आपको बनाया है उसने हर समस्या एवं कमजोरी के लिए एक चाभी भी बनाई है मन को एकाग्र करके उसे ढूढ़ें एवं प्रयोग करें |
No comments:
Post a Comment