Thursday, November 6, 2014

गुणात्मकजीवन का मूल है चिंतन की स्थिरता (qualitylife vs stability of thought)

सम्पूर्ण जीवन आदमी का यह प्रयास रहता है की वह पूर्ण शांति और संसाधनो की बहुतायत में अति विलासी जीवन का उपभोग करे ,उसके पास असीम संपत्ति , शक्ति , प्रभुत्व , यश और अनुयायी समाज हो , उसके वैभव को मानने वाले उसे सदैव बहुत ऊँचा मान कर प्रसंशा देते रहें |  जो भी समाज राष्ट्र में श्रेष्ठ हो उसपर केवल उसका ही अधिकार हो ,वह अपना भविष्य तो सुरक्षित रख पाये साथ ही उसकी आने वाली पीढ़ियों को भी किसीप्रकार की तकलीफ न होपाये ,वह स्वयं सुरक्षित हो और आने वाली तमाम नस्लों का आज ही इंतजाम करदे ,बस इसी उधेड़ बन में उसका तमाम जीवन गुजर जाता है |  बार बार उसे केवल पश्चाताप क्षोभ और निराशा ही मिलती रहती है जबकि उसका चिंतन यह जानता है की जीवन नश्वर है एक नियत सीमा के बाद हर आदमी को  दुनियां से जाना ही होता है बिना किसी संपत्ति और साथ के | 

भगवान  बुध अपनी ध्यान दीक्षा में थे और उनके तीन शिष्य उनकी सेवा में हाथ बांधें बैठे थे अचानक बुध की आँखे खुली और उन्होंने प्रश्न किया  तुम्हे जीवन में सबसे बड़ी परेशानी क्या लगती है पहले  बताया गुरुदेव मेरे ३ पुत्र है उनमे से एक बहुत बदमाश आतातायी और  दुष्ट स्वभाव का है वह रोज लड़ाई झगड़ा करता है और मुझे अपमानित होना पड़ता है यही दुःख है मेरा दूसरे ने कहा प्रभु आपके आशीर्वाद से  हमपर सब कुछ है मगर सोचता हूँमेरी सम्पत्ति केवल पांच पीढ़ियों तक चल पायेगी आगे की पीढ़ियां भूखी मर जाएंगी इससे बड़ा क्या दुःख होगा ,तीसरे ने कहा गुरुवर मैंने सबके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया मगर मेरे सारे घरवाले और आसपास के लोग ऐसे पापों में लगे है उनसे  मै बहुत दुखी हूँ ,बुध ने हंस कर कहा इशारा करते हुए कहा  उस चिड़िया को दाना खिलाते हुए देख रहे हो कितने खुश है वो सब ,यह चिड़िया जैसे ही ये बच्चे उड़ने लायक हुए इन्हें उड़ा कर मोह त्याग देगी पुत्र इसके बच्चों पर खाना इकट्ठे करने का स्थान भी नहीं है ,और तीसरी बात यह कि  यह अपने कर्म मार्ग में दूसरों का चिंतन नहीं करती इसे  शाम तक की चिंता नहीं है उसे मालूम है ईश्वर शाम को फिर कुछ देगा इसलिए ये सबकुछ विपरीत परिस्थितियों के बाद भी बहुत प्रसन्न है 
,पुत्र ईश्वर को अपना काम करने दो वही सब कुछ कर रहा है , आप स्वयम् अपने चिंतन की गहराइयों में किसीको मत आने दो ,और मोह त्याग कर अपने कर्म में जुट जाएँ आपका अधिकार वर्तमान के कर्म से बँधा  है और उसे पूरी ताकत से सम्पादित करो , सारे  लोग चाहे वो परिवार के हो या आपके आसपास के अपने कर्म से बंधे सुख -दुःख का निर्माण कर रहे है ये आपका विषय नहीं है की कोइन क्या और कैसे कर रहा है , आप स्वयं सकारात्मक होकर अपने जीवन का चिंतन करें इस से आप जीवन को जीत लेंगें | 

मेरे अंतर की शांति का अकेला  मै  ही तो रखवाला था एक गैर  जिम्मेदार चौकी दार की तरह मैंने अपने विचारों में अपने सम्बन्धियों का , समाज और मित्रों का  चिंतन आरम्भ कर दिया , भविष्य की और अतीत की कहानियों को मूर्त रूप देने में और उनके दर्शन में मैंने वर्तमान को दांव पर लगा दिया ,सबको आदर्श मार्ग बताते बताते  मै  स्वयं अशांत हो गया परिणाम यह कि  मुझ में केवल अशांति , असुरक्षा और खोखला पन रहगया है क्योकि मैंने ही अपने चिन्तन का अतिकृमण किया है मै  उन विषयों में अपने आपको परेशान पारहा हूँ जिनपर मेरा वश  ही नहीं था | 

हम कितने श्रेष्ठ कला कार है  कि जीवन भर एक असहाय ,बेचारे और दुखी व्यक्ति का रोल ऐसे करते रहते है जैसे इस सदी का कोई महानायक अपनी कला के उच्चतम शिखर पर खड़ा अपनी कला का प्रदर्शन कररहा हो ,हमपर जो दुःख क्लेश अवसाद नहीं है उन्हें भी अपने अस्तित्व पर लाद  कर हम चले जारहे है लाचार ,बेचारे ,निरीह से तर्क यह  मैंने सबसे अच्छा किया ,कल का क्या होगा ,सब मेरी सोच के अनुसार क्यों नहीं हो रहा ,ये सब चिंतन आपके व्यक्तित्व को कितना आगे ले जा पाएंगे , जीवन को आप कैसे जीत पाएंगे इस कल्पना को साकार रूप देते हुए आप एक सशक्त भूमिका के कलाकार को  जीवित कीजिए जो आपको अपने सकारात्मक कर्म ,भविष्य और विका स की परिभाषा बता सके 

कृपया निम्न को और अपनाएँ 



  • हर रिश्ता ,सम्बन्ध और आपके अपने एक सीमा तक ही आपके चिंतन के आधार में होने चाहिए एक सीमा के बाद  उनकी सोच आपको ऋणात्मक करने लगेगी |
  • सब अपने कर्म ,सोच और क्रियान्वयन के हिसाब से अपना भविष्य पथ निर्मित कर रहे है उसमे आपकेवल परामर्श  दे सकते है यह आपका विषय नहीं है आप अधिक बदलाव की चेष्टा न करें | 
  • संसाधनों का उचित प्रयोग आना आवश्यक है एक को केवल संसाधन  एकत्रित करने आते है , और दूसरे को बहुत अधिक खर्च करना आता है ये दोनो आपका भविष्य ख़राब करदेंगे क्योकि महत्वपूर्ण है खर्च करने की कला
  • जिन स्थितियों  पर आपका वश नहीं है वह आप चिंतन का अतिकृमण नहीं करें ,इससे आपको अपनी शक्ति का ह्रास  होता जान पड़ेगा और स्वयं नकारात्मक भाव उत्पन्न हो जाएंगे | 
  • अति शक्ति, धन, संपन्नता ,आपको अनेक दुर्गुण  देती है अतैव जब कभी आपमें इन गुणों की प्राप्ति हो आपको तुरंत उसके श्रेष्ठ प्रयोग का मार्ग सोचना होगा , ये तीनो शक्तियां  सद्प्रयोग न होने पर स्वयं को नष्ट करदेती है
  • अति मोह चाहे व्यक्ति से हो या वस्तु से आपको केवल दुःख ही देगा क्योकि वहां केवल यह महत्वपूर्ण दिखाई देता है कि  इसपर मेरा पूर्णाधिकार है जबकि मनुष्य का स्वयं पर भी पूर्णाधिकार नहीं है | 
  •  हर व्यक्ति , वस्तु और सम्बन्ध में परिवर्तन का विचार परामर्श के जैसा ही हो उस पर आप यदि पूरी ताकत से अमल  कराने का प्रयत्न करेंगें तो आपको केवल क्लेश उत्पन्न होगा | 
  • आपकी आपके परिवेश की एक सीमा है और भविष्य की कोई सीमा नहीं है अतैव आप केवल यह विचार करें की आज जो मै  कार्य कररहा हूँ उसे और कैसे श्रेष्ठ बनाया जा सकता है | 
  • जीवन की नश्वरता , की जीत परमार्थ  में निहित है   कौन सा सम्राट कितने राज्य जीता या किसने कितने महल और किले बनाये ये महत्व पूर्ण नहीं है बल्कि वह कितना सहज और परमार्थ  का उपासक रहा यह उसको महान बना देता है |
  • अपनाने  का भाव सर्वश्रेष्ठ है मगर ध्यान रखना जो त्याग के भाव में सर्वश्रेष्ठ हुआ   वही  जीवन को  जीतने में सक्षम हो पाता है , क्षण में अपनाने के भाव के साथ त्याग सर्वोपरि है |







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