हिमालय की दुर्गम चोटी पर एक आश्रम था वहां एक गुरु ने अपने तीन शिष्यों को जीवन की सफलता के अनेक मार्ग बताये और उनका व्यवहारिक पक्ष भी बताया और कहा पुत्रों जीवन में धैर्य और विश्वास दो ही मार्ग है सफलता के जो इन का अनुशरण करता है उसे ईश्वर अवश्य सफलता देता है यहाँ यह सबसे अधिक महत्व पूर्ण है कि अपना कर्त्तव्य विश्वास और धैर्य को इतना अडिग रखे कि वह आपको अपने संकल्प के प्रति पूर्ण निष्ठ रखे,एक दिन गुरु ने तीनों शिष्यों को चार रोटी और एक दरी देकर ,दूर हिमालय की चोटी दिखाते हुए कहा कि वहां से एक दुर्लभ जड़ी बूटी लाना है ध्यान रहे कि अपने आदर्श और मेरी सीख ही तुम्हे सफल बना पाएगी, दो शिष्य अलग अलग मार्ग से जल्दी जल्दी अपने गंतव्य की और चल दिए हुए सबसे छोटे शिष्य से गुरु ने पूछा पुत्र आप नहीं गए शिष्य ने विनम्र भाव से गुरु की वंदना की फिर जड़ी के बारे मेंऔर कठिनाइयों के बारे में जाना और पुनः गुरु की आज्ञा लेकर चल पड़ा रास्ते में तीनों मार्ग एक ऊंचाई पर एक रास्ते में मिल जाते थे वहां एक कुटिया साधु मिला ,वह बुखार से तप रहा था है और सहायता को चिल्ला रहा था ,छोटे शिष्य ने सोचा बड़े शिष्य ज्यादा ग्यानी और श्रेष्ठ है वो प्रतियोगिता तो जीत हीलेंगे , मै इसकी ही सहायता करलूं यह सोच कर वह उस बीमार की सेवा करने लगा ,अपना खाना उसे खिलाया ,कुछ ठीक होने पर उस बीमार के पूछने पर छोटे शिष्य ने पूरी कथा बताई , वह हंसने लगा फिर बोला पुत्र तुम्हारे साथी तो मुझे भला बुरा बोलकर चोटी पर होकर कल ही लौट गए है तुम्हे देर होगई है पुत्र आप भी जल्दी जाओ शिष्य ने कहा गुरु आज्ञा है तो पूर्ण करनी ही है परन्तु आपको इस हालत में छोड़कर नहीं जाऊँगा तब साधु ने अपना असली रूप दिखाया शिष्य गुरु के चरणों में गिर पड़ा गुरु बोले पुत्र देखो मैं और तुम एक पल में वो दवा लेकर अपने आश्रम पहुंचते है शिष्य गुरु आकाश मार्ग से एक पल में हिमालय की चोटी पर पहुंचे और दूसरे पल अपनी जड़ी लेकर आश्रम आ गए |
कुछ समय बाद दोनों शिष्य आश्रम पहुंचे एक ने बताया मैं गिर गया काफी चोट लगी है , दूसरे ने बताया कि वो जड़ी की सही पहिचान ही नहीं कर पाया ,फिर भी लाया तो हूँ मगर क्या है यह नहीं मालूम ,गुरु ने बताया कि तुम जल्द बाजी और अविश्वास के कारण पराजित हुए हो तुमने यह तक नहीं जाना कि दवा के गुण धर्म क्या है पहिचान क्या है ,तुममें , मानवीयता और परमार्थ के आधार भी नहीं है ,गुरु सम्पूर्ण कथा सुनकर वे लज्जित हो गए और छोटा शिष्य विजयी हो गया |
"धैर्य , विश्वास ,परमार्थ और अपनी सफलता का प्रयोग सर्व हितायः करने की भावना ही सफलता का मूल मंत्र है जो सफलता आपके स्वार्थो के वशीभूत होकर आपकी ही विलासता में दासी की भाँती आपके इर्द गिर्द घूमती रही वह एक सीमा के बाद आपके समूल विनाश का कारण बन जाएगी, क्योकि उसमे दूसरों के उत्थान की कोई जीवन स्वांसा थी ही नहीं ,जबकि संसार का सारा सुख इस बात में है कि आपको कोई श्रेष्ठ मानता भी है या नहीं "
धीरज , और विश्वास जब लक्ष्य का सहारा पाते है तो ये दो अजेय सफलता के साधन बन जाते है जो लोग इन साधनों के सहारे अपना कर्त्तव्य मार्ग तय करते है वो पूर्ण सफलता प्राप्त कर पाते है ,क्योकि इनके बिना जीवन की गति इस प्रकार की ही होती है जैसे किसी बिना ब्रेक की गाड़ी को बार बार टकरा देना और फिर डेंट पेंट करके चल देना और जिंदगी इसी तरह रोती चिल्लाती चली जाती है और बार बार हम जीवन पर दोषारोपण करते रहते है ,अपने लक्ष्य का चयन और उसके प्रति संकल्पित होकर पूर्ण धैर्य से रास्ता तय करने वाले निश्चित सफल होते है
बार बार टूटता विश्वास और धैर्य आपको इतना अपने लक्ष्य के प्रति इतना अस्थिर कर देता है कि आप विकास की सम्पूर्ण धारणाएं भुला देते है और आपका सम्पूर्ण मस्तिष्क इस बात में लग जाता है की मै क्या कर पाउँगा ये सब ?बेकार है , समय गंवाना ,और मेरे साथ ही क्यों होता है ये सब , इन सब प्रश्नों के जबाब बहुत सरल है कि आपका अपने प्रति जो दृष्टी कोण है वह पूर्णतः नकारात्मक है , आप जो मिल जाए उसमे संतुष्ट है , आप समस्याओं से भागते हुए केवल सफलता ही चाहते है |
सफलता और विलासता की जिंदगी की चाह में आपने अचानक भागना आरम्भ कर दिया चौराहे से थोड़ा ही आगे बढे आपको लगा यह तो बेकार रास्ता है, आप फिर लौटे और दूसरी तरफ़ भागने लगे, और फिर भागते भागते आपकी हिम्मत टूटने लगी ,आपने निर्णय किया की वापिस तीसरे मार्ग से जाऊँगा मगर एक लम्बी रेस के बाद तीसरे मार्ग ने भी अपनी कठिनाइयां बताईं ,तो चौथे मार्ग का अनुशरण किया वहां की दुर्गमता ने बताया इससे तो पहले वाले रास्ते ही ठीक थे ,परन्तु इस अस्थिरता की विचारधारा ने बहुत बड़ा समय निकल दिया हमारे जीवन से , और हम उसी चौराहे पर खड़े रह गए जहाँ से हम चले थे ,हताश और उदास से ,मित्रों ,प्रयत्न ,कर्म , लक्ष्य और क्रियान्वयन सब था आपके पास मगर केवल स्वयं पर विश्वास और धैर्य की कमी ने आपको सफलता से दूर रखा है |
जीवन में हर कार्य बहुत कठिन है , जिसने कार्य सीख लिया उसके लिए वह सरल हो गया जिसने उसकी क्रियान्वयता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए उसके लिए वह सबसे कठिन होगया है ,जीवन में हजारों ऐसे काम है जो हम करते है जो दूसरों के लिए अति दुष्कर है ,अपने लक्ष्य को स्थिर क्रियान्वयता दो और उस बहुत ऊंची चोटी के दोनों ओर धैर्य और विश्वास की मजबूत रस्सी बांधें और अपनी यात्रा आरम्भ कर दें ,फिर सफलता से पहले कुछ नहीं का सिद्धांत आपको स्वयं यह बता देगा कि जीवन में लक्ष्य की साधना के सिद्ध करने में केवल धैर्य और विश्वास ही सशक्त साधन हो सकते है |
निम्न प्रयोगों को भी जीवन में प्रायोजित करके देखें
- जीवन का हर कार्य कठिन है और उसे सीखने में नियत समय लगता है , और वही कार्य एक दिन आपको सिद्ध कर देगा जब समाज का बहुत बड़ा वर्ग उसके चयन से डरता होगा और आप उस कार्य में सिद्ध हस्त होंगें |
- बहुत बड़ी सफलता के लक्ष्य में फेल हो जाना, छोटी छोटी समस्याओं में सफलता हासिल करने से ज्यादा महत्व पूर्ण है क्योकि छोटी सफलता आपको भीड़ जैसा बना देती है ,जबकि बड़ा लक्ष्य आपको देर से ही सही नई पहिचान देता है |
- जीवन काल में जो कार्य पूर्ण धैर्य और विश्वास के बल पर प्राप्त होता है वह आपके मानसिक बल में बहुत तेजी से वृद्धि करता है और उससे भागने की चेष्टा नहीं की जाती |
- हर कार्य का एक समय के अनुरूप एक जीवन चक्र होता है और उस समय को आपको बहुत सकारात्मकता के साथ निकलना चाहिए क्योकि ,जीवन के अनेक कार्य ऐसे है जो समय के साथ ही पूरे होते है उनमे नकारात्मक भाव न लाएं | यही उनकी सफलता है |
- कार्य आरम्भ करके आप दूसरों का विश्लेषण नहीं सुनें क्योकि समाज अपने से अधिक अच्छा काम आपको करने नहीं देगा वह हमेशा आपको उसकी कठिनाइयां बताएगा आप मौन होकर कार्य करते रहें |
- दूसरों से तुलना किये बगैर आप अपने कार्य में लगे रहें क्योकि तुलना से या तो आपमें अहंकार पैदा होगा या आप स्वयं को उदासीन करने लगेंगे जबकि ये दोनो परिस्थितियां आपके लिए नकारात्मक है |
- बड़े उद्देश्य और कार्य की समस्याएं भी बड़ी ही होंगी और समस्यां आने का आशय है कि आप सफलता के नजदीक आते जारहे है , जहाँ समस्याएं ख़त्म हो जाएँ वहां आप अकर्मण्य हो जाते है |
- अपने विश्वास एवं धैर्य को परखते रहें , की कहीं आपमें इनकी कमी तो नहीं आ रही क्योकि इनके साथ आपको केवल सफलता ही नहीं वरन संतोष भी प्राप्त होता है |
- दूसरों के कार्यों से द्वेष , और नकल का अध्याय नहीं लें बल्कि सबसे सामान और सकारात्मक भाव से मिलें , जिससे आपके व्यवहार में स्वयं सकारात्मकता आजावेगी |
- नए विचारों और सकारात्मक क्रियान्वयन हेतु स्वयं को एकाग्र करके चिंतन करें ,ध्यान के माध्यम से अपनी समस्या और कार्य के बारे में नए विचारों और कार्य शैली का आवाहन करें , निश्चिततः परिणाम आश्चर्य जनक होंगें एक बार प्रयोग अवश्य करें |
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