अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि
सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए बहुत सी चिंताएं लगी रहती थी मन उदास हो जाता था महल में आए दिन होने वाले जश्न कार्यक्रम और नाच गाने में कही मन नहीं लगता था एक दिन राज पुरोहित ने राजा को बताया कि हमें संतान प्राप्ति हेतु हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ कराना होगा राज रानी और सभी बन्धु बांधवों के साथ यज्ञ संपन्न हुआ और साल के अंदर ही राज को को 2 पुत्रों की प्राप्ति हो गयी बड़े पुत्र का नाम सिद्ध योग और छोटे पुत्र का नाम महायोग रखा गया बचपन से ही से ही सिद्ध योग संस्कारी विलक्षण प्रतिभा का धनी ज्ञान संसार धर्म भक्ति सब में पारंगत था मंत्रों को सुनकर स्वयं बोलने का प्रयत्न करता था और जल्दी सीख लेता था दूसरी तरफ़ कुछ घंटो छोटा पुत्र महायोग भारी उद्दण्ड शैतान और चलते राहगीरों को पत्थर मारने जीव हत्या करने वाला जिद्द कर के कोई भी हो उदंड कार्य करना उसकी दिनचर्या में शामिल था
समय के साथ राज वृद्ध हुआ बड़े प्रयत्न के बाद भी राज गद्दी पर बड़े पुत्र को नहीं बिठाया जा सका दुष्ट महायोग गद्दी हथिया ली थी उसके कार्यकलापों से सारा राज्य थर्रा उठा था,भारी वसूली हत्या वेश्यवृत्ति तरह तरह के दंड देना और सब को आतंकित करना उसके स्वभाव में आ गया था उसके कार्य कलापों से क्षुब्ध होकर एक दिन राज रानी दोनों चल बसे बचा सिद्ध योग एक दिन रात्रि में अपना घोड़ा लेकर निकल पड़ा कई दिन चलने बाद एक दिन घने में अचेत होकर गिर पड़ाजब होशजब होश आया तब स्वयं को एक गुफा में पाया जहाँ एक वृद्ध साधु बाबा उसकी सेवा कर रहे थे अचानक आश्चर्य में देखकर साथ बाबा बोले पुत्र तुम बेहोश पड़े थे मैं तुम्हारा सारा वृतांत जानता हूँ सब उस परमात्मा की कृपा है अब तुम सही सुरक्षित और सबसे संपन्न व्यक्ति हो जिसे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है
महायोग के राज्य पर 10 राजाओं ने मिलकर अचानक हमला बोल दिया जैसे तैसे प्राण बजाकर वह जंगल जंगल मारा मारा घूमता रहा और एक दिन उसी साधु की कुटिया में उसे बेहोश अवस्था में लाया गया ठीक होने के बाद महायोग अपने सम्पूर्ण जीवन को सोचकर पश्चाताप में पड़ गया साधु ने दोनों भाइयों को सामने बिठाया और बोलना आरंभ किया पुत्र सिद्ध योग तुम दोनों भाई स्वर्ग में देवता थे परंतु अपनी अपनी कामनाओं के अधूरेपन और अहंकार के कारण तुम पुनः पैदा हुए हो तुम इसश्वर की सिद्धियों की तरफ़ ज्ञान मार्ग से से भाग रहे थे पूर्व जन्म में तुम्हें अपने तप पर अहंकार हो गया था तो तुम शापित होकर फिर संसार में उसको पूर्ण करने आए हो और ये महा योग संसार सारे सुख भोगने की संसार चाह में बावला सा भागे जा रहा था इसे इंद्र से स्वयं की तुलना करना था ढेरों अनाचार करते हुए, परिणाम ख़ाली और विषाद में रह गया पुत्र कामनाओं का केवल एक हल हैं विषयों में ख़ुद को मत उलझाओ हो रहा है उसे दृष्टवा भाव से देख कर सत की ओर लेकर चलो अब तुम्हारा समय आ गया है ख़ुद को साधो तभी बन पाओगे तुम साधु
कामनाओं का प्रबल सम्बंध जीवन से और उनसे उत्पन्न असंतोष से जुड़ा हुआ होता है ये अमरबेल सी अंकुरण के साथ प्रकट होने लगती है जैसे रक्तबीज की एक छोटी सी बूँद से असंख्यों रक्त बीज पैदा हो जाते है फिर ये कामनाएँ जीवन भर व्यक्ति का पीछा करती है और उसकी शांति को नष्ट कर डालती है तुम दोनों में भेद यही था कि तुम अपने ज्ञान शक्ति भक्ति के अहंकार से सिद्धियाँ प्राप्ति की कामना में लगे थे पुत्र जिस जगह सारी कामनाएँ ख़त्म होकर ईश्वर का भाव आत्मसात कर लेता है जीव तो वहीं से एक नया क्रम चालू होता है जिसमें जीव परमात्मा हो जाता है
दूसरी तरफ़ इस महायोग को लगता था जैसे मैं इंद्र से भी अधिक भोगों का भोग्य करके प्रसन्न हो जाऊँ इसलिए इसने अधिक से अधिक भोग विलास की सामग्रियों का उपयोग करकर महान बनने का प्रयत्न अवश्य किया और अहंकार भोग और पापाचार मैं डूबता चला गया जितना प्यास बुझाने का प्रयत्न करता था एक बिना तल के अंधेरे कुएँ में गिरता चला गया जिसका कोई अंत ही नहीं था जिसकी कोई सीमा नहीं थी ,पुत्र हवन की प्रज्वलित अग्नि में में आहुति डालने से उसकी तपन में कोई कमी कैसे होगी जब उस आहूति को बंद कर करोगे तब शायद अग्नि का प्रचंड वेग शांत हो पाए
साधु बोला की पुत्र तुम दोनों ने अपने पिता को देखा तुम्हारे पिता बहुत महान राजा के रूप में में अपनी प्रजा का पालन कर रहे थे चारों ओर सुख और आनंद की बयार थी राज्य में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी परंतु संतान न होने के कारण वो अपने आप को सदैव दुखी समझते रहे परिणाम जब संतान पैदा हुई तब वहाँ महा योग के कारण उनका असंतोष 1 हज़ार गुना बढ़ गया और उस एक कामना पूर्ति के साथ ही 10, हज़ार तरह की समस्याएं उन्हें दिखाई देने लगी और एक दिन उनके जीवन का अंत भी इन्ही समस्याओं के कारण हो गया पुत्र जीवन में परमात्मा ने आपको क्या दिया है और क्या सोच कर दिया है उसमें संतुष्ट होना सीखें संसार में कामनाएँ ही जीव को यातना और मुक्ति का मार्ग बताने का कार्य करती है
साधु की बात सुन कर दोनों अपने देवत्व की प्राप्ति हेतु अलग अलग दिशाओं में चल दिए साधु निश्छल भाव से उन्हें जाते देखता रहा मुक्ति के मार्ग की ओर
निम्न पर ध्यान अवश्य दें
- संसार की कामनाओं में कोई भी सुखों स्थित नहीं है जो भी सुख हैं वो अंतरात्मा में निहित है
- कामना रहित होने का आशय यह कदापि नहीं हैं कि अपनी इच्छाओं को iईश्वर के सामने सामने न रखें
- जो उपलब्ध है उसमें संतोष जाग्रत करना सबसे बड़ा विषय है
- स्वयं के स्थान पर दूसरों के हित माँगना ज़्यादा श्रेष्ठ है
- मोक्ष का सीधा तात्पर्य कामनाओं से मुक्त होने में है जब आपकी आकांक्षाएं ख़त्म हो जाती है तो ईश्वर स्वयं उपस्थित हो जाता है
- परमात्मा पर विश्वास रखें उसने आपकी लिए कुछ बहुत अच्छा सोच रखा है जिसे समय आने आपको वो उपलब्ध करा देगा
- शधन संपन्नता नकारात्मक नकारात्मक नहीं है उसके स्थान पर अपनी कम से कम कामनाओं के साथ ही जीवन जीना मोक्ष का द्वार है
- भोग्य नियंत्रित और सीमित और आवश्यक प्रयोग सकारात्मक है जबकि उसके पीछे भागने की प्रवृत्ति यातनाएं
- परमापरमात्मा ने आपको जो भी दिया है नित्य ही उसका धन्यवाद करना न भूलें
- उपलब्धिउपलब्धियों के लिए संयम कर्म का प्रयोग करें को योग्य समझते हुए और पूर्ण धैर्य से जैसे अपने समय का इंतज़ार करें आपको सब कुछ प्राप्त होगा
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