आदमी क्या करे खता के सिवा
लोग नाहक खुदा से डरते है
जीवन में आदमी को हर कदम पर स्वयं को सिद्ध करना होता है बार बार की परीक्षा में उसे यह बताना होता है कि वह श्रेष्ठ है|उसे हर हाल में अपने अस्तित्व और परिवेश को दूसरों की तुलना में साबित करना होता है जबकिसमाज परिवार और उसके अपने अपने ही स्वार्थो और आकाँक्षाओं के अनुरूप उसके प्रबल प्रतिद्वंदी होते है |उसकेजीवन में अनेक उतार चढाव बने रहते है ,समय , परिवर्तन और ज्ञान समय समय पर उससे उसकी पहचान पूछतारहता है और उसे ही इन सब टेड़े प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है वह भी निर्विकार और निस्वार्थ मानसिकता से |
अनगिनत परीक्षाओं में उसे सफलता और असफलताए मिलती रहती है मगर वह खुशी गम और जीवन उद्वेगों केबीच डूबता उतराता रहता है ,जीवन बार बार उससे अपने कर्मों के बारे में नंगा प्रश्न खड़ा करता रहता है और उसे हीअपने अगले क्रियान्वयन से इसका जबाब देना होता है शायद यही उसका अनुभव भी होता है |
आत्मा के निर्णय के सामने हम सब कामो वेश गुनेह्गारही होते है ये बात और कि आप कम मै ज्यादा हो सकता हूँमगर क्या कल के विचार में वर्त्तमान के क्रियान्वयन को सोच का विषय बना देना बड़ी भूल नहीं है ?हम सब कुछठीक करना चाहते है, अपने अनुरूप, मगर क्या हम अपने अतीत से उबर कर नए युग का स्वागत कर पाते है?शायद नहीं |हम वर्त्तमान का अबाध गति से विकास चाहते है मगर अतीत के गहरे गड्ढों में झांकते हुए , इससेशायद हमारी कार्य गति और उद्देश्यं की स्पष्टता स्वयं बाधित होने लगती है |
आदमी कमियों और कमजोरियों का पुतला है दुनिया में पाप ,ऋणात्मक सोच से कोई मुक्त नहीं है मगर जो उसऋणात्मक सोच को कुछ पल बाद भुला कर नए उत्साह से जीवन का संकल्प दोहराने लगते है ,समय उनके हीपीछे चल पड़ता है |दर्द , हार ,दुःख, यातना और प्रतिशोध , सब एक ऐसी आग पैदा करते है जिसमे आदमी काअस्तित्व ही जलने लगता है ,उसे अपना और आगामी भविष्य का होश ही नहीं रहता और वह बार बार ऋणात्मकहो जाता है |भविष्य के क्रियान्वयन के संकल्प कोभी एक प्रचंड आग ,एकाग्रता और प्रतिद्वंदी भावना चाहिए होतीहै जो आपके अतीत से आपको सहज ही मिल सकती है ,आप अपनी हर हार के बदले एक नयी जीत का संकल्प लेंतो शायद आपका भविष्य आपको विजयी सिद्ध कर सकें |
बीते हुए समय को आप केवल अपने अनुभव और पथप्रदर्शक सत्य जैसा माने ,उसके ऋणात्मक स्वरुप को याआग को ऊर्जा मान कर नए संकल्प में उपयोग करें तथा जीवन में बिना रुके विकास पथ पर बढ़ते रहें ,आपकोसफलता अवश्य मिलेगी |यहाँ इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अतीत केऋणात्मक पक्ष ,व्यक्ति ,और समाजयाकार्य जिन्होंने आपको तमाम चिंताएं और विकास गति को बाधित किया उन्हें समूल नष्ट कर के हमे नए युग कीशुरुआत करनी है ,हम अब जैसा जीवन चाहते है हमे अपने कठिन परिश्रम से वह पैदा करना है यही आपकी सोचऔर क्रियान्वयन होना चाहिए
आप समाज परिवार और अपनों की बजाय अपनी अंतरात्मा से डरना सीखिए ,ईश्वर से भविष्य से और अनभिज्ञसे आपको डरने की आवश्यकता नहीं है उन्हें तो हमें कर्म से जीतना है | ,
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
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