स्वतंत्रता सही अर्थो में सम्पूर्णता और स्वाभिमान का पर्याय है |वह जीवन के हर पल की मांग भी है और जीवन कीसार्थकता को भी यही प्रर्दशित करता है भारत आज आजाद है , झंडे फहरा रहे है ,बड़ी बड़ी प्राचियों से
स्वतंत्रता गीत बज रहे है ,राष्ट्र के नेता अपने भाषणों में देश को विकसित और राम राज्य बताने की चेष्टा कर रहे हैऔर नागरिक मूक भाव से सब कुछ सह रहा है, आकलन कर रहा है , देखरहा है मौन स्तब्ध और रुआंसा सा |
मित्रों आजादी के लिए भागीरथ प्रयत्न किए गए ,लाखों बलिदानों के बाद मिली आज़ादी के लिए देश का हर नागरिकआकंठ ऋणी है वह अपने जीवन में इन बलिदानों को ईश्वर रूप में रख चुका है मगर आज एक नए दृष्टी कोण से इसआज़ादी का मूल्यांकन करना आवश्यक है जिससे भारतीय परिवेश में कुछ नया परिवर्तन सम्पूर्ण भारतीय जीवनवृत को वास्तविक खुश हाली में बदलदे |
१५अगस्त १९४७ हमारी आज़ादी का आलीशान दिन था ,हमे मालूम ही नही था, कि रातमें अचानक हमे आज़ादीकि सूचना मिलहम परतंत्रता के भाषणों ,राष्ट्र प्रेम और बलिदान की मानसिकता में थे और अचानक हमे सत्ता मिलगई परिणाम सदियों से सत्ता भूला वर्ग भ्रमित और दिशाहीन हो चला |राष्ट्रवादियों में द्वंद छिड़ गया और नेता ,पक्षविपक्ष सब सत्ता कि दौड़ में शामिल होगये जल्द बाजी में रूस का पञ्च वर्षीय प्लान ,जिनेवा का मानव कल्याणऔर ब्रिटिश लां लागू कर दिया गया |जातिगत संघर्ष और भेदभाव का खुला तांडव हुआ और हम अपने ही घरों मेंयातना का शिकार हो गए |सबके पीछे तथ्य यह था कि हम केवल कर्तव्य दायित्व और आदेश मानना जानते थेऔर अब हमे आदेश देने थे |राष्ट्र को कुछ सालो के लिए एकात्मक शासन कि जरूरत थी जो सही अर्थों में अपनाअनुशासन और विकास की परिभाषा बना पाती |
भारत की स्वतंत्रता का आशय धीरे धीरे व्यक्ति गत स्वतंत्रता बनने लगा युवा सोच में स्वतंत्रता का मायने केवलपहनावे ओढावे सांस्कृतिक मर्यादाएं तोड़ने और स्वच्छंदता की पराकाष्ठा पर अपने आपको हर काम में जायजठहराने की कला पनपने लगी ,कल तक जो शर्म हया और गोपनीय कार्य माने जाते थे जिन्हें मर्यादा की जरूरत थीवे स्वतंत्रता का अर्थ सही अर्थों में जानकर सार्वजानिक होने लगे |इस बेढंगी सभ्यता को भी हम स्वतंत्रता का नामदे बैठे |शायद हमारी दबी पीसी मान्यताओं में इस मनमानी का नाम ही स्वतंत्रता था |
राष्ट्र गावों का प्रतिनिधित्व करने वाला देश था ,और उसके लिए पहली पंचवर्षीय योजना से अनवरत प्रयास किएगए मगर नतीजा शून्य या आधार हीन साबित हुआ ,गरीब और गरीब हुआ ,और कल तक जो घराने और धनाड्यवर्ग वाणिज्य के क्षेत्र में संघर्ष रत था अचानक बड़ा उद्योगपति बन बैठा |गरीगी के चक्र और गहरे हो गए ,ग्रामीणऔर पिछडे क्षेत्र के लोग और अधिक समस्या ग्रस्त होने लगे ,शिक्षा का आधार मेकाले का बन गया ,और हर जगहव्यक्तिगत स्वतंत्रता दृष्टिगत होने लगी परिणाम हर स्तर पर घोर भ्रष्टाचार और स्वार्थों की बहुतायत हो गई यहाँ हरआदमी अपने स्वार्थों की आंधी में उड़ता चला जा रहा था किसी को राष्ट्र प्रेम के बारे में चिंतन करने का वक्त ही नहींथा ,ऐसे में बलिदानों की फेहरिस्त केवल दो दिनों की याद बन कर रह गई |
मित्रों आज स्वतंत्रता , और गणतंत्र शब्द के अर्थ सही मायनों में समझाने वाले बहुत कम रह गए है जो कुछ थोड़ेबहुत है भी तो उन्हें कोई सुनने को तैयार ही नही है |शायद हम लोग अपने ही क्रियान्वयन से स्वतंत्रता का अर्थभुला बैठे है हमारे लिए स्वतंत्रता का अर्थ केवल १५ अगस्त और २६ जनवरी रह गई है वह भी इस लिए की शासन
अवं मीडिया उसकी याद बार बार दिला देता है |जिन्होंने वास्तविक तौर पर अपने स्वजनों को इस महा बलिदान मेंआहुति के रूप में प्रज्ज्वलित किया है एक बार उनसे इसका अर्थ जानने की कोशिश अवश्य करें |
हमारा प्रयत्न यह हो कि हम अपनी कमियों , गरीबी ,साधन हीनता ,शिक्षा की अनिवार्यता ग्रामीण और पिछडे क्षेतोंका विकास तथा सतत मूल्यांकन में हम कहाँ तक सफल रहे वास्तविक रूप में हम सांख्यकीय आकडो से परेकितना विकास दे पाए इसे नए सिरे से सोचना होगा |देश की सम्पूर्ण सम्पत्ती पर शासन का अधिकार,एक सेअधिक मकानपर प्रतिबन्ध ,चल और अचल संपत्ति का वरिसाना हक सरकार पर हो आर्थिक सत्ता काकेन्द्रीयकरण पूंजीपतियों का न होकर सरकार का हो , भ्रष्टाचार का मुजरिम कितना भी बड़ा क्यों नहो उसकी सजा कड़े क़ानून के तहत अति शीघ्र तय कर अमल किया जाए |और प्रति वर्ष भ्रष्टाचार की सूची सार्वजनिक कर उन्हेंहर स्तर पर अयोग्य घोषित किया जाए |स्वतंत्रता के समय लेखा पुस्तकों से आर्थिक स्थिति का आंकलन कर हरव्यक्ति से वर्त्तमान की स्थिति तक हिसाब लिया जाए |और यह भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए सही रास्ता भी बनजाएगा |
वो देखो रास्तों पर कांपती है लाश किसकी
तड़पती भूख से आवाज भरती आंह किसकी
तपे दिन दिन जो माटी के लिए बलिदान होता है
वही बस भूख की खातिर की एक रोटी को रोता है
सुबह ऐसी ना हो घड़ी ऐसी नहो---------------
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
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thik hai
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