Monday, August 3, 2009

मेरी तन्हाई

रात भर तन्हाई में गाता रहा
ग़म कॉ आलम याद फ़िर आता रहा

हर गया लमहा तुम्हारी याद बन
बे वज़ह इस दिल को तडफाता रहा

कश्तियों के डूबने कॉ शोर सा
मेरे साहिल पर सदा आता रहा

आशियानों में लगी थी आग क्यों
सोच कर ता उम्र घबराता रहा

दर्द का एहसास राही क्या बला
उम्र भर पत्थर से टकराता रहा

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