Friday, August 28, 2009

गलतियों कि आग से जीत कि ऊर्जा पैदा करें

आदमी क्या करे खता के सिवा
लोग नाहक खुदा से डरते है

जीवन में आदमी को हर कदम पर स्वयं को सिद्ध करना होता है बार बार की परीक्षा में उसे यह बताना होता है कि वह श्रेष्ठ है|उसे हर हाल में अपने अस्तित्व और परिवेश को दूसरों की तुलना में साबित करना होता है जबकिसमाज परिवार और उसके अपने अपने ही स्वार्थो और आकाँक्षाओं के अनुरूप उसके प्रबल प्रतिद्वंदी होते है |उसकेजीवन में अनेक उतार चढाव बने रहते है ,समय , परिवर्तन और ज्ञान समय समय पर उससे उसकी पहचान पूछतारहता है और उसे ही इन सब टेड़े प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है वह भी निर्विकार और निस्वार्थ मानसिकता से |

अनगिनत परीक्षाओं में उसे सफलता और असफलताए मिलती रहती है मगर वह खुशी गम और जीवन उद्वेगों केबीच डूबता उतराता रहता है ,जीवन बार बार उससे अपने कर्मों के बारे में नंगा प्रश्न खड़ा करता रहता है और उसे हीअपने अगले क्रियान्वयन से इसका जबाब देना होता है शायद यही उसका अनुभव भी होता है |

आत्मा के निर्णय के सामने हम सब कामो वेश गुनेह्गारही होते है ये बात और कि आप कम मै ज्यादा हो सकता हूँमगर क्या कल के विचार में वर्त्तमान के क्रियान्वयन को सोच का विषय बना देना बड़ी भूल नहीं है ?हम सब कुछठीक करना चाहते है, अपने अनुरूप, मगर क्या हम अपने अतीत से उबर कर नए युग का स्वागत कर पाते है?शायद नहीं |हम वर्त्तमान का अबाध गति से विकास चाहते है मगर अतीत के गहरे गड्ढों में झांकते हुए , इससेशायद हमारी कार्य गति और उद्देश्यं की स्पष्टता स्वयं बाधित होने लगती है |

आदमी कमियों और कमजोरियों का पुतला है दुनिया में पाप ,ऋणात्मक सोच से कोई मुक्त नहीं है मगर जो उसऋणात्मक सोच को कुछ पल बाद भुला कर नए उत्साह से जीवन का संकल्प दोहराने लगते है ,समय उनके हीपीछे चल पड़ता है |दर्द , हार ,दुःख, यातना और प्रतिशोध , सब एक ऐसी आग पैदा करते है जिसमे आदमी काअस्तित्व ही जलने लगता है ,उसे अपना और आगामी भविष्य का होश ही नहीं रहता और वह बार बार ऋणात्मकहो जाता है |भविष्य के क्रियान्वयन के संकल्प कोभी एक प्रचंड आग ,एकाग्रता और प्रतिद्वंदी भावना चाहिए होतीहै जो आपके अतीत से आपको सहज ही मिल सकती है ,आप अपनी हर हार के बदले एक नयी जीत का संकल्प लेंतो शायद आपका भविष्य आपको विजयी सिद्ध कर सकें |

बीते हुए समय को आप केवल अपने अनुभव और पथप्रदर्शक सत्य जैसा माने ,उसके ऋणात्मक स्वरुप को याआग को ऊर्जा मान कर नए संकल्प में उपयोग करें तथा जीवन में बिना रुके विकास पथ पर बढ़ते रहें ,आपकोसफलता अवश्य मिलेगी |यहाँ इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अतीत केऋणात्मक पक्ष ,व्यक्ति ,और समाजयाकार्य जिन्होंने आपको तमाम चिंताएं और विकास गति को बाधित किया उन्हें समूल नष्ट कर के हमे नए युग कीशुरुआत करनी है ,हम अब जैसा जीवन चाहते है हमे अपने कठिन परिश्रम से वह पैदा करना है यही आपकी सोचऔर क्रियान्वयन होना चाहिए
आप समाज परिवार और अपनों की बजाय अपनी अंतरात्मा से डरना सीखिए ,ईश्वर से भविष्य से और अनभिज्ञसे आपको डरने की आवश्यकता नहीं है उन्हें तो हमें कर्म से जीतना है |
,

Tuesday, August 25, 2009

ग्रहण की कालिमा प्रचंड ज्योति का प्रतीक है

सूर्य या चंद्रमा के शक्ति मान स्वरुप पर राहू की काली छाया भारतीय धर्म में ग्रहण माना जाता है| यही जीवन का बड़ा प्रेरणा स्त्रोत और जीवन को सफलतम रूप में प्रस्तुत करने वाला दिशा सूचक कारक भी हो सकता है|

गहन अन्धकार में डूबे हुए सूर्य को प्रकाशित होने के लिए भी तो संघर्ष करना पड़ता है |भारतीय धर्म शास्त्र में यहस्पष्ट है कि सूर्य, चंद्रमा,राहू के प्रभाव से शापित होकर या संपर्क में आकर अपनी तेजोमयी राशी और प्रकृति सेविहीन हो जाते है और उन्हें संघर्ष करना होता है अपने अस्तित्व के लिए |कहने और समझने का अभी प्रायः यहकि सूर्य के सर्व शक्तिमान स्वरुप को भी बार बार एक अदने से गृह के कारण अधिक संघर्ष शील होना पड़ता है औरकुछ ही पलों में वह अपनी शक्ति और नैसर्गिक गुणों के कारण विजयी भी हो जाता है यही सत्य संसार पुरातन सेदेखता आया है |

मित्रों यही जीवन का वह पहलू है जहाँ इंसान को एक जाग्रत उदाहरण मिलता है जीवन से जीतने का ,समझने काऔर उसे अपने अनुरूप बनाने का और यहीं से वह जीवनके सार्थक क्रियान्वयन की तकनीक भी सीख पाता है|जीवनमे जब हम अपने मूल उद्देश्यों और साधनों की खोज या समाज में अपनी पहचान ढूढ़ रहे होते है तो हर स्तरपर हमे आलोचना और संघर्ष का सामना करना होता है और सबके बाद स्वयं को सिद्ध करके हमे जीवन जीतना होता है,मगर यदि हम आलोचना ,संघर्ष और स्थिरता के मध्य ऋणात्मक हो गए तो निश्चित ही हमें हार कासामना करना पड़ता है ,जबकि जीवन को वही ग्रहण यह प्रेरणा देता रहता है कि तुम एक बार तो संघर्ष का बिगुलबजाओ मै तुम्हें विजेता बना दूंगा |

मित्रों आलोचक और नकारात्मक व्यवहार वाला व्यक्ति कितना ही बड़ा या छोटा क्यों हो वह आपको अपने मार्गसे हटाने में कामयाब नहीं होना चाहिए आपको आवश्यकता है कि आप केवल अपने आदर्शों और क्रियान्वयन औरलगन के सहारे थोड़ी देर अडिग और स्थिरता बनाए रखें ,धैर्य और सह्ष्णुता के बल पर इस विशवास से स्वयं कोसंभाले रहें कि आपको एक विजेता के सुख के लिए यह त्याग करना ही होगा |

मित्रों जैसे ग्रहण के बाद सूर्य की प्रचंड रोशनी के सामने कुछ भी नहीं टिक पाता उसी तरह आदमी के व्यक्तित्वकृतित्व के सामने कोई व्यवधान खडा नहीं हो सकता बस एक संकल्प की आवश्यकता है जो स्वयं आपको एकअजेय योद्धा बना देगा जिसपर जीवन और इतिहास को गर्व का अनुभव होता रहेगा |

Friday, August 21, 2009

धर्म अल्पज्ञ का विषय नहीं ज्ञानका स्त्रोत है

हम आज के माज में धर्म का आशय केवल पुरानी रुढियों रिवाजो में बंधे उन लोगों से लेते है जिनके आय का , भरण पोषण का ,और स्वार्थो का माध्यम धर्म होता है |वे आडम्बर और अलौकिक परिवर्तन करने का दावा करतेहै ,वे कैसे भी यह सिद्ध करने का प्रयत्न करते है की वे सर्व श्रेष्ठ है और उनके द्वारा समाज में धर्म के प्रति भय औरघृणा फैलाई जाती रही है |अपने नामों के आगे बड़े बड़े बैनर लगा कर जादू और हाथ की सफाइयों का प्रदर्शन कियाजारहा है और समाज अन्धानुकरण की पराकाष्ठा पर भयभीत अपनी ही दोहरी मानसिकता में जी रहा है
" कभी होता भरोसा कभी होता भरम खुदा तू है कि नहीं "

मित्रों जब कभी हम इतिहास पुरषों की जीवन कथाएँ देखें तो यह अवश्य देखें की वे किस शक्ति,किस उद्देश्य ,किसएक सोच से बंधे थे क्या उनके जीवन वृत पर किसी गुरु का मार्गदर्शन था ,वह गुरु किस आस्था से बंधा था शायदहमे अपने प्रश्न का उत्तर सहज ही मिल जाएगा |आज हम जिस युग में खड़े है वहां सभ्यताएं अभी अधूरी ही है ,
अधूरा विकास अधूरा ज्ञान अधूरा विस्वास और अधूरी आलोचनात्मक दृष्टी |एक दार्शनिक का यह तथ्य कि जहाँविज्ञान और सामाजिक सोच की सीमायें ख़त्म होती है वहां से चालू होता है धर्म |

" सह धारयते इति धर्मः "

अर्थात जो धारण करने योग्य था वो धर्म था ,और धारण करने योग्य केवल कर्म और विस्वास ही होता है ,हम जबईश्वर की बात करते है तो वह कोई मूर्ति मन्दिर या धर्म स्थान नहीं अपितु वह तो हमारे आदर्शों का स्थान होता है |
जिसे वात्सल्य की आवश्यकता थी उसने माँ जैसा बनाकर उपासना की जिसपर अद्वतीय ज्ञान था वह पुत्र मन करप्रेम करने लगा जिसे भय था वह उसे अनंत शक्तिशाली मानकर पूजने लगा और जो हारा हताश और मजबूर थाउसने उसे सबका हल मानकर जानने की कोशिश की |जबकि उसका समबन्ध आत्मा की उस अपरमित शक्ति सेथा जो बल विशवास और चित्त की एकाग्रता से सम्बंधित थी |यही धर्म का मूल भी था |अब जिसपर यह सब नहीं हैवह तो धर्म मायने हो ही नहीं सकता |

"जो पिंड सोई ब्रहमांड "

अर्थात जो ईश्वर है वही मनुष्य है केवल अपनी सत्ता से उसे वह मार्ग चाहिए जिससे वह अपने आवरण उतार करकड़े परिश्रम से अपने आपको जाग्रत कर सके और उसके ये प्रयत्न ही धर्म की वाहिकाओं के रूप में हमारे सामनेआतें है हम यदि इनको नहीं माने तो आप दूसरा मार्ग चुन कर चल सकते है मगर आपका गंतव्य उस अपरमितशान्ति या
मुक्ति मोक्ष या लेवल ऑफ़ सेटिसफेक्शन कहते है ,यह जीवन का निचोड़ भी है|

मित्रों धर्म का आशय यह है की आप अपने कर्म , योग्यता और दया सह्ष्णुता प्रेम और अपनत्व के साथ निस्वार्थभाव से समाज में जीने का संकल्प लें |आप अपनी मानसिक शक्तियों को केंद्रित करके आत्मुत्थान का मार्गप्रशस्त कर सकें |आपसे दुसरों को कभी दुःख पहुचें ,आप आत्मुत्थान के मार्ग पर दुसरों के आलोचक नहीं रहेंबल्कि स्वयं सुधार वादी बने रहें | ईश्वर की सत्ता पर अटल विशवास करते हुए यह ध्यान रखें की कोई अनंतशक्तिशाली प्राकृति कर्ता हमें दिशा दे रहा है उसके बिना हम उसी तरह अधूरे है जिस तरह ज्ञान के बिना इंसान |

शुभ कर्म कर्ता तो स्वयं तर जाए अपने कर्म से
ज्ञानी तारे निज ज्ञान से धर्मात्मा निज धर्म से
जिसके कुछ आधार हो कुल दृव्य विद्या बल नहो
तेरे सकल बेकल सकल कल प्रांत में भी कल हो
उस दीन के तुम बंधु हो बल हीन की प्रभु शक्ति हो
अशरण शरण भव भय हरण तुम ज्ञान कर्म सुभक्ति हो

यह प्रार्थना अपनी आत्मा या ईश्वर से अवश्य करें
|धर्म स्वतः पर्लाक्षित होने लगेगा |

Tuesday, August 18, 2009

सही स्वतंत्रता और समाज

स्वतंत्रता सही अर्थो में सम्पूर्णता और स्वाभिमान का पर्याय है |वह जीवन के हर पल की मांग भी है और जीवन कीसार्थकता को भी यही प्रर्दशित करता है भारत आज आजाद है , झंडे फहरा रहे है ,बड़ी बड़ी प्राचियों से
स्वतंत्रता गीत बज रहे है ,राष्ट्र के नेता अपने भाषणों में देश को विकसित और राम राज्य बताने की चेष्टा कर रहे हैऔर नागरिक मूक भाव से सब कुछ सह रहा है, आकलन कर रहा है , देखरहा है मौन स्तब्ध और रुआंसा सा |

मित्रों आजादी के लिए भागीरथ प्रयत्न किए गए ,लाखों बलिदानों के बाद मिली आज़ादी के लिए देश का हर नागरिकआकंठ ऋणी है वह अपने जीवन में इन बलिदानों को ईश्वर रूप में रख चुका है मगर आज एक नए दृष्टी कोण से इसआज़ादी का मूल्यांकन करना आवश्यक है जिससे भारतीय परिवेश में कुछ नया परिवर्तन सम्पूर्ण भारतीय जीवनवृत को वास्तविक खुश हाली में बदलदे |

१५अगस्त १९४७ हमारी आज़ादी का आलीशान दिन था ,हमे मालूम ही नही था, कि रातमें अचानक हमे आज़ादीकि सूचना मिलहम परतंत्रता के भाषणों ,राष्ट्र प्रेम और बलिदान की मानसिकता में थे और अचानक हमे सत्ता मिलगई परिणाम सदियों से सत्ता भूला वर्ग भ्रमित और दिशाहीन हो चला |राष्ट्रवादियों में द्वंद छिड़ गया और नेता ,पक्षविपक्ष सब सत्ता कि दौड़ में शामिल होगये जल्द बाजी में रूस का पञ्च वर्षीय प्लान ,जिनेवा का मानव कल्याणऔर ब्रिटिश लां लागू कर दिया गया |जातिगत संघर्ष और भेदभाव का खुला तांडव हुआ और हम अपने ही घरों मेंयातना का शिकार हो गए |सबके पीछे तथ्य यह था कि हम केवल कर्तव्य दायित्व और आदेश मानना जानते थेऔर अब हमे आदेश देने थे |राष्ट्र को कुछ सालो के लिए एकात्मक शासन कि जरूरत थी जो सही अर्थों में अपनाअनुशासन और विकास की परिभाषा बना पाती |

भारत की स्वतंत्रता का आशय धीरे धीरे व्यक्ति गत स्वतंत्रता बनने लगा युवा सोच में स्वतंत्रता का मायने केवलपहनावे ओढावे सांस्कृतिक मर्यादाएं तोड़ने और स्वच्छंदता की पराकाष्ठा पर अपने आपको हर काम में जायजठहराने की कला पनपने लगी ,कल तक जो शर्म हया और गोपनीय कार्य माने जाते थे जिन्हें मर्यादा की जरूरत थीवे स्वतंत्रता का अर्थ सही अर्थों में जानकर सार्वजानिक होने लगे |इस बेढंगी सभ्यता को भी हम स्वतंत्रता का नामदे बैठे |शायद हमारी दबी पीसी मान्यताओं में इस मनमानी का नाम ही स्वतंत्रता था |

राष्ट्र गावों का प्रतिनिधित्व करने वाला देश था ,और उसके लिए पहली पंचवर्षीय योजना से अनवरत प्रयास किएगए मगर नतीजा शून्य या आधार हीन साबित हुआ ,गरीब और गरीब हुआ ,और कल तक जो घराने और धनाड्यवर्ग वाणिज्य के क्षेत्र में संघर्ष रत था अचानक बड़ा उद्योगपति बन बैठा |गरीगी के चक्र और गहरे हो गए ,ग्रामीणऔर पिछडे क्षेत्र के लोग और अधिक समस्या ग्रस्त होने लगे ,शिक्षा का आधार मेकाले का बन गया ,और हर जगहव्यक्तिगत स्वतंत्रता दृष्टिगत होने लगी परिणाम हर स्तर पर घोर भ्रष्टाचार और स्वार्थों की बहुतायत हो गई यहाँ हरआदमी अपने स्वार्थों की आंधी में उड़ता चला जा रहा था किसी को राष्ट्र प्रेम के बारे में चिंतन करने का वक्त ही नहींथा ,ऐसे में बलिदानों की फेहरिस्त केवल दो दिनों की याद बन कर रह गई |

मित्रों आज स्वतंत्रता , और गणतंत्र शब्द के अर्थ सही मायनों में समझाने वाले बहुत कम रह गए है जो कुछ थोड़ेबहुत है भी तो उन्हें कोई सुनने को तैयार ही नही है |शायद हम लोग अपने ही क्रियान्वयन से स्वतंत्रता का अर्थभुला बैठे है हमारे लिए स्वतंत्रता का अर्थ केवल १५ अगस्त और २६ जनवरी रह गई है वह भी इस लिए की शासन
अवं मीडिया उसकी याद बार बार दिला देता है |जिन्होंने वास्तविक तौर पर अपने स्वजनों को इस महा बलिदान मेंआहुति के रूप में प्रज्ज्वलित किया है एक बार उनसे इसका अर्थ जानने की कोशिश अवश्य करें |

हमारा प्रयत्न यह हो कि हम अपनी कमियों , गरीबी ,साधन हीनता ,शिक्षा की अनिवार्यता ग्रामीण और पिछडे क्षेतोंका विकास तथा सतत मूल्यांकन में हम कहाँ तक सफल रहे वास्तविक रूप में हम सांख्यकीय आकडो से परेकितना विकास दे पाए इसे नए सिरे से सोचना होगा |देश की सम्पूर्ण सम्पत्ती पर शासन का अधिकार,एक सेअधिक मकानपर प्रतिबन्ध ,चल और अचल संपत्ति का वरिसाना हक सरकार पर हो आर्थिक सत्ता काकेन्द्रीयकरण पूंजीपतियों का होकर सरकार का हो ,
भ्रष्टाचार का मुजरिम कितना भी बड़ा क्यों नहो उसकी सजा कड़े क़ानून के तहत अति शीघ्र तय कर अमल किया जाए |और प्रति वर्ष भ्रष्टाचार की सूची सार्वजनिक कर उन्हेंहर स्तर पर अयोग्य घोषित किया जाए |स्वतंत्रता के समय लेखा पुस्तकों से आर्थिक स्थिति का आंकलन कर हरव्यक्ति से वर्त्तमान की स्थिति तक हिसाब लिया जाए |और यह भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए सही रास्ता भी बनजाएगा |


वो देखो रास्तों पर कांपती है लाश किसकी
तड़पती भूख से आवाज भरती आंह किसकी
तपे दिन दिन जो माटी के लिए बलिदान होता है
वही बस भूख की खातिर की एक रोटी को रोता है
सुबह ऐसी ना हो घड़ी ऐसी नहो---------------

Monday, August 17, 2009

स्वयं का आंकलन करें|

हम अपने अनुसार समय व्यतीत करते है ,अपने सही ग़लत को सबसे ज्यादा अहमियत देते है ,अपनी सल्तनत केहम अकेले शहंशाह होते है ,फिर भी हर गुजरता हुआ पल हमारे लिए एक अपराध बोध पश्चाताप या आत्म वंचनाक्यों बना रहता है शायद हमें अभी और मूल्य और आदर्शों की स्थापना करनी चाहिए |यह जान ले की हमारीआत्मा और ईश्वर हमारे हर अच्छे ख़राब काम का हिसाब मय ब्याज के लिख रहा है |हम अपने को निर्णायक कीभूमिका से सुधारने का प्रयत्न करें |झूठ फरेब और धोखे से हम स्वयं को बहुत कमजोर बना रहे है यह ध्यान रखेंएक बार सत्य की कसौटी पर स्वयं को रखा कर कठोर परिश्रम से समय को जीतने की जरूरत है |आपके सम्बन्धआपकी कमजोरी नहीं ताकत बन कर खड़े रहें |

हम यदि चाहे तो अपने जीवन नियमों में इन्हें शामिल कर सकते है |
|
  • अपने लिए एक आइडियल व्यक्ति अवश्य रखें जिसे आप अपनी हर अच्छी ख़राब बात शेयर कर सकते हैयहाँ आपका विस्वास पात्र व्यक्ति हो तो ही उचित है |आपको अपनी हर बात पर परामर्श लेना चाहिएकोशिश यह हो की आप छुपाव या झूठ का सहारा ले ,परामर्श पर अमल करें | , ,
  • आप समाज में कितना पार दर्शी व्यक्तित्व रखते है ,आप सबको एक जैसे व्यवहार से नहीं रख सकतेआपको अपने घनिष्ठ संबंधो की मर्यादाएं मालूम होनी चाहिए तथा आप उनकी लिमिट बना कर उन्हें जीनासीखिए नहीं तो वे ही आपके लिए कल बड़ा अपराध बोध बन जायेंगे | ,
  • सच, प्रेम, अपनत्व सब जीवन की दुर्लाभताये है ,आप अपने उद्देश्य से संबंधों के कारण ही विचलित होते हैभविष्य के लिए आप जो सही निर्णय लेते है उन्हें अपनी कमजोरियों से हारा साबित करें |
  • आपको सही समय पर सही सोच की आवश्यकता है इस सोच को पल्लवित कर आपको कठिन परिश्रम सेजीत हासिल करने की आवश्यकता है |
  • जोकार्यया व्यक्ति आपका समय केवल मनोरंजन या टाइम पास के लिए नष्ट कर रहा है वह आपका मीठाशत्रु है यही आपके असंतोष और अपराध बोध का असल कारक होगा |यहाँ आपको अपने चिंतन में अच्छेऔर ख़राब का भेद करना भी आवश्यक है |कामो वेश आपभी इसके दोषी हो सकते है आपको परिवर्तन करतुंरत अपनी कमियों पर अंकुश लगना चाहिए |
  • आपको भविष्य के लिए कठोर नियम बनाने चाहिए जो अपने लिए और वर्त्तमान के लिए एक सीधी रेखा कीतरह आपको विकास दे सके |
  • आपका परिस्थिति के अनुसार भाव और उद्देश्य बदलना आपको विकास पथ से दूर ले जाएगा |
  • अपनी आत्मा के सत्य से मुंह मोडे ,जिस काम के लिए आपकी आत्मा आपको नकारात्मक सिद्ध करेजितनी जल्दी हो आप उस कार्य से स्वयं को दूर करलें |
  • हर रोज़ यह सोचें कि आपके किसी कार्य से समाज के किसी व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ रहा |
मित्रों ये सब बातें आदमी को शायद दिशा दे पाये मगर अफसोस यह है कि जो लोग बहुत से आवरण ओढे बैठे हैजो हर कार्य और हर जरूरत को अपने अधिकार का विषय मान लेते है उनके लिए अच्छे और ख़राब का भेद हीक्या मायने रखता है वे हर सम्बन्ध को अपनी आवश्यकता के अनुसार बदलते रहते है ,सत्य का मायने असत्य लेलेता है और आत्मा कि आवाज महीन और अनुसुनी सी रह जाती है वो अपने हर काम को सही साबित करने कीहोड़ में लग जाते है, शायद यही से जीवन में विकास पथ अपनी दिशा भूलने लगता है आवश्यकता इस बात की हैकि जब पुनर चिंतन हो तबसे ही अपने लिए सत्य,आदर्श और नए मूल्यों कि स्थापना हो पुराने मरे हुए औरमृतप्रायः मूल्यों और आदर्शों से किनारा कर हम नए सुबह का स्वागत करें वहां केवल विकास हो सहज प्रेम हो औरहो भविष्य की सुनहरी चमक | ,

Thursday, August 13, 2009

खुली मानसिकता से समय को जीते (ओपन माइंड)

आज ओपन माइंड का आशय तमाम तरह की ऋणात्मकता और पाश्चात्य सभ्यता के साथ थिरकते हुए युवा समूहजो अपनी हर समस्या के लिए खुले पन की सीमा भूल चुके होते है ,उनका सारा ध्यान इस में लगा रहता है कि कैसे समाज उन्हें मोड़, सेक्सी चार्मिंग और , ओपन माइंड कहे |आज युवा बाजारों रेस्तरां और कॉलेजों में बाँहों में बाहें डाले निर्लज्जता की पराकाष्ठा पर स्वयं को आधुनिक बताने की होड़ में जाने क्या क्या करता है |पहनावे ओढावे से लो ब्रेस्ट कपडे और उनपर नाभि दर्शी अपर तथा और भी शरीर प्रदर्शन तथा गुप्त वस्त्रो की नुमाइश के साथ मोड़ कहलाने की कोशिश सहज ही प्रर्दशित होती है|

समयके साथ सब ओपन है विदेशी संस्कृति के साथ नई मोड़ बनने की कोशिश युवा को भोंडा फैशन दे बैठी है और सब प्रसन्न है कि सब एक जैसे बनने की कोशिश कर रहे है |उन्हें सही रूप में जीने की शिक्षा देने वाले भी कामोवेश इसी रंग में रंगे दिखाई दे रहे है ,कोई किसी को शिक्षा दे कर अपना अपना टाइम निकाल रहा है |

मित्रों समय तकनीकी और परिवर्तन हर काल में चला आया है , जो सोचते है , चिंतन करते है या जो रास्ता बानाते है अक्सर उनमे समय ,मान्यताये और युग परिवर्तन करता रहता है ,यहाँ केवल हम हर परिवर्तन के साथ अपनी नई तैय्यारी करने लगते है, जबकि हमारी सोच कुछ अलग ही होती है |समय के अनुरूप यदि आप तैय्यारी नहीं करपाए तो स्वतः हम अधिक समस्या में फँस सकते है |कडकडाती धूप और अचानक बरसे पानी के लिए ली गई छतारी हमारा बेसिक उद्देश्य थोड़े ही परिवर्तित करती है, बल्कि वह तो यह बताती है कि हम जिस उद्देश्य के लिए चले है वहांठीक से पहुँच पाए |जब हम अपने मूल उद्देश्य के लिए चल रहे होते है तो समय कि मांग के साथ आए बदलावआपके लिए ऋणात्मक होंगे यह सोचना मूलत ग़लत है |

आप समय और परिस्थितियों के हाथ में एक कठपुतली जैसे चलते हो तथा जीवन के क्रिया बिन्दु बार बार आपकोअलग क्रिया के लिए प्रोत्साहित करते है और आप उनमे सफल भी होते हो, मगर हरचेंज की कल्पना के साथ आपजो समय खराब बीत रहा है, यह सोचने की बजाय आपको अपने मूल उद्देश्य को ध्यान में रखकर हर आने वालेपरिवर्तन के लिए तैयार रहना चाहिए उसके अच्छे पहलू पर विचार करते रहें तथा उस परिवर्तन से आप अपना मूल उद्देश्य कैसे पा सकते है सोचना चाहिय्रे,नियत उद्देश्य के साथ आए परिवर्तन उसके लिए कोई बाधा बन ही नही सकते क्योकि आप प्राथमिकता के आधार पर अपने उद्देश्य के लिए समर्पित है|

ओपन माइंड का वास्तविक अर्थ है की आपको हर परिस्थिति के लिए सफलता तय करनी है परिस्थितिया कितनीभी विपरीत हों आपको उनमे सफल होकर अपना मूल उद्देश्य प्राप्त करना है ,समय परिस्थिति और ईश्वर को दोषीबना कर आप अपने कर्तव्य और उद्देश्य से मुक्त नही हो सकते ,आपका कल अधिक प्रभावी , सुखी और सम्पन्नताके साथ आपका इन्तजार कर रहा है और आपको हर हाल में सफल और पूर्ण होना है यह विश्वास रखिये |ओपन माइंड का असल आशय पूर्ण संतोष का बिन्दु हासिल करना है हर परिस्थिति में सफल होकर अपने आपको पूर्ण साबित करना न कि भोग वाद से उकता कर या परिवर्तन और भविष्य के प्रति ऋणात्मक दृष्टी कोण से हताश होना |आपको वह सब मिलेगा जो पूर्ण संतोष के लिए आवश्यक है, एक बार फ़िर जीवन का सकारात्मक चिंतन करेंऔर प्रसन्न रहें|
" बैगलूर बनाम सोसाइड सिटी "
यह शीर्षक आपको यह सोचने पर मजबूर अवश्य करेगा कि आप ओपन माइंड का फंदा नए ढंग से समझ करअपने को पुनर्चिन्तन के लिए तैयार करलें |

Tuesday, August 11, 2009

स्वाइन फ्ल्यू,सावधानी एवंपरम्परावादी बचाव

आज पूरा विश्वाहै एक ऐसी महामारी की चपेट में है जिसका उसपर कोई ठोस निराकरण नहीं है वज्ञानिक खोजें चल रही है और लगभग दो माह का समय चाहिए इनकी आपूर्ति में यह महामारी इतनी तेजी से फैल रही है इसका अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि अस्पतालों और डॉक्टरर्स के पास समय नहीं है सभी मरीजो के लिए ,चाहे वह छोटी जगह हो या बड़ी नगरीय व्यवस्था कमोवेश हर ५ घरों में एक मरीज इस रोग से पीड़ित दिख रहा है और सरकारी व्यवस्था अपूर्ण और जर्जर दिखाई दे रही है डॉक्टर संख्या और साधनों में सारी व्यवस्था और ताकत लगा कर भी कम और असहाय जान पड़ रहे है तथा मीडिया पूरी ताकत से इस कार्य वाही को सरेआम कर रहा है ,शायद किसी पर भी पूर्ण तसल्ली से जांच करने का समय नहीं है

चिकित्सा क्षेत्र पूर्व से ही धन ,दवा,साधन कि कमी ,और डोक्टरर्स ,और स्टाफ की कमी से बेहाल थे ऐसे में उनकी इस आवश्यकता की आपूर्ति कैसे हो यह उनकी भी समझ से परे है ,बीमारी चैक करने के लिए थोड़ी संख्या में किट है ,मौसम मौसमी बीमारियों का है ,और अस्पतालों में जगह नहीं बची है परिणाम आम आदमी अस्पतालों से बिना इलाज वापिस लौट रहा है ,और प्रभावशाली समाज शासकीय व्यवस्थाओं को आँखें दिखा रहा है शायद इससे कोई परिवर्तन और बड़े सुधार की आशा नही की जा सकती है

यहाँ सबसे बड़ी बात यह है कि आप अपनी कमियों को बताना नहीं चाहते उसके लिए जनता से झूठ और फरेब का सहारा ले सकते हैशायद इससे समस्या अधिक गहराती जा रही है ऐसे समय में आवश्यकता है संगठित सामाजिक सहयोग की और इसके लिए समाज सरकारी तंत्र और बाह्य तकनीकी सहायता का सम्मिश्रित स्वरुप अधिक सहायक हो सकता है

भारतीय ग्रंथों में कई स्थानों पर यह स्पष्ट किया गया है कि जो बीमारियाँ जिस शक्ति से संचालित है उसी के परिष्करण से उनका बचाव सम्भव है और इसके लिए मेरे मत में निम्न उपाय किए जा सकते है

  • सामान्य बचाव में तुलसी के पत्तों का प्रयाग करें काली मिर्च ,छोटी पीपल और हल्दी का प्रयोग भी अधिक लाभ कारी हो सकता है
  • नीम गिलोय का २ इंच का टुकडा ५ काली मिर्च ५ तुलसी के पत्तों के साथ सुबह शाम ले सकते है
  • जलते कंडे पर ४ लोंग गूगल और लोबान और घी डाल कर दोनों समय सारे घर में धूनी दे सकते है इससे आपके घर का वातावरण शुद्ध होगा तथा वायु विकार एवं अनेक तरह के कीट नहीं पनप पायेंगे
  • घर में छोटे बच्चों को देशी कपूर एवं आधा झारा कि जड़ गले में पहना सकते है
  • ५0 ग्राम फिटकरी ,१o ग्राम सुहागा भून कर उसमे20 ग्राम पापडी कत्था मिलाये तीनों को मिला कर शीशी में भरलें फिर सुबह शाम चुटकी भर चूर्ण शहद के साथ लें
  • घर में दोनों समय शंख और घंटी कि ध्वनी लगभग ३ से ५ मिनट करें इससे भी कई प्रकार के लाभ पैदा होते है
  • प्राणायाम एवं हल्का योग अवश्य करे

आवश्यक नहीं कि आप इनमे से सभी का प्रयोग करे आपको जैसा सरल लगे आप उपयाग कर सकते है ये मेंरे व्यक्तिगत अनुभव है धर्म आयुर्वेद और भारतीय दर्शन में बहुत जगह पशुओं से उत्पन्न बीमारियों का वर्णन किया गया है साथ ही आकाश तत्त्व और वायु तत्त्व को शुद्ध रखने का भी विधान है शायद पूर्व में भी इससे मिलती जुलती त्रासदियों में ये प्रयोग अधिक सफल देखे गए है आप अपने अनुसार यदि ठीक समझे तो इसका प्रयोग कर सकते है

Monday, August 10, 2009

उपकार को कभी न भुलाएँ

हम जिस समाज में रहते है वहां हर तरह के लोगों हमारा सम्बन्ध स्थापित रहता है इनमे से कुछ ऐसे होते है जोसामान्य व्यवहार की तरह सबसे अच्छा व्यवहार ही करते है |कुछ ऐसे होते है जो केवल अपने मतलब मतलबरखते है केवल आवश्यकता होने पर ही व्यवहार में सहयोगी होते है ,और कुछ ऐसे होते है जिन्हें किसीसे कोईमतलब नही रहता वे समाज परिवार और संबंधों के प्रति भी बेहद उदासीन रहते है |इसके अतिरिक्त समय के साथकामकी समानता में और एक ही उद्देश्य की प्राप्ति में भी कुछ लोग स्वार्थ ,बनावटी ,या बहुत से आवरणों के साथव्यवहार करते दिखाई देते है ,इनकी आस्था पद ,स्थान ,कार्य,और अपने स्वार्थों से जुडी होती है ,जैसे ही इनकाकार्य ख़तम हुआ ये अपना रंग बदलने में जरा भी देर नहीं करते |

मित्रों जीवन ईश्वर की एक अमूल्य सौगात है और यहाँ हर कार्य में आपको आदर्श ,नियम कायदे ,और एक निश्चितदिशा की आवश्यकता होती है इसमे हर आदमी के साथ आपका व्यवहार संयमित और प्रेम का ही होना चाहिएआप कामके वक्त पद के आधार पर और समय के अनुसार अपने व्यवहार को ऋणात्मक स्वरूपऔर
, में बदलतेजाते है तो आपको यह अवश्य ध्यान रखना होगा कि शीघ्र ही आपके सामने और अधिक विकराल समस्यायें आनेवाली है तब आपको शायद अपने बहुत शुभ चिन्तक मिलें,क्योकि सारा समाज तो आपसे ऐसी ही शिक्षा लेकरबेहद स्वार्थी बना खडा है,और आप इस विषम स्थिति में अकेले के अकेले रह गए है |

जीवन में आप अपने साथ जो जैसा व्यवहार करता है वैसे ही होने कि कोशिश करते हो ,आप दूसरों से तुलना करतेहुए यह बताने कि कोशिश करते है कि आप उनसे ज्यादा समझदा है ,जबकि आपका व्यवहार एक प्रतिस्प्रधा ,एकबाजी ,एक प्रतिशोध और एक ऋणात्मक चित्र प्रर्दशित करता है यह आपकी पहली हार होता है आप बार बार यहजताने कि कोशिश करते है कि आपमें भी वो कमियां विद्यमान है जिन्हें दूसरा लेकर चल रहा है अर्थात आपकेव्यवहार को दूसरा व्यक्ति अपने सा बना लेता है और आप बाजी खेलने से
पहले ही जीवन के यथार्थ से हार मान लेतेहै |जब आप जीवन कि धनात्मकता से पहले ही हार मान बैठते है तो स्वाभाविक तौर पर आप आदर्शों की स्थापनामें भी हार मान लेते है और एक भीड़ बन जाते है और भीड़ की कोई मानसिकता होती ही कहाँ है |वहतो केवलस्वच्छंदता और अपना लाभ समझती है और हर आदमी लुटेरा हो जाता है फिर आदर्शों की बातें तो केवल परिहासका विषय बनजाये तो क्या बड़ी बात है |

जीवन में जो लोग आपको सहारा ,आलंबन ,और सहयोग देते है वे आपकी समृद्धि और
विकासके लिए सही मायनेमें हकदार है आपको उन्हें हमेशा अपने पूर्ण भाव में विकास और सुख काकरक मानना चाहिए अन्यथा आप भीएक भीड़ बने अपनी पहचान के लिए भटकते रहेंगे |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...