Tuesday, July 21, 2009

हीन और सर्वोत्कृष्ट ,इम्फीरियरिटी या सुपीरियरिटी

हीन और सर्वोत्कृष्ट ,इम्फीरियरिटी या सुपीरियरिटी

हमने हमेशा यही चाहा की हम
सर्वोत्कृष्ट रहें |समाज हमारा परिवेश और हम जिस ओर अपने कर्तव्य क्षेत्र में होवहां भी हमें श्रेष्ठ समझा जाए |समाज,व्यक्ति और सम्पूर्ण क्षेत्र में हमसे अधिक गुणवान् कोई हो|हम सौंदर्यसाधनों और समाज की सारी आपूर्तियों में बे मिसाल हों,हम सबसे अच्छे और बल शाली हों |हम जो स्वप्न खड़ेकरें उन्हें बिना परिश्रम के सहज ही प्राप्त करलें ,साथ ही हमारी तुलना किसीसे की जा सके ,हम विजयी रहें औरसब हमसे हारते चले जाएँ |

अनादी काल से आदमी की इस इच्छा ने उसका संतोष सब्र और सहजता सब कुछ छीन लिया है, वह सदैव इसीखोज में लगा रहता है कि वह ज्ञान ,कर्म , बल ,और सम्पूर्णता से अतुलनीय बना रहे ,जिसपर समय परिस्थितिऔर बाह्य प्रभाव सदैव प्रभाव हीन रहे |ये सब केवल स्वप्न और एक ऐसी कल्पना है जो कभी पूरी नहीं हो पाई हैमगर आदमी ने हर काल और समय पर यही मांग अवश्य की है|

इस मांग और स्वप्न ने उससे हमेशा उसका संतोष और सब्र छीना है, जबकि वह स्वयं अतुलित बल ,साधनों औरगुणों का खजाना बना रहा, उसने अपने सुसुप्त बल और संसाधनों को प्राप्त करने की बजाय केवल दूसरे कॉ ऐसाचिंतन किया जिसमे केवल लाइनों को मिटा कर छोटा करने कॉ प्रयत्न था, वह स्वयं के उत्थान से अधिक दूसरों काआलोचक बना रहा ,परिणाम उसका बल उसकी शक्तियां और उसका क्रोध स्वयं के लिए ही घातक सिद्ध हुआ
,
ध्यान रहे कि

  • हमारी संपूर्ण शक्तियां सीमित है एवं संसार को एक सुपर पावर हर पल नया मार्ग दे रही है उसके भाव कोसमझ कर हमें अपना रास्ता तय करना है |
  • सुपीरियरिटी ,इम्फीरियारिटी में केवल हीन, इम्फीरियारिटी ही होती है हम केवल मन को बहलाने के लिएस्वयं को सुपीरियर बताना चाहते है यह हमारी कमी है|
  • स्वयं कि तुलना करकेहम अपनी शक्तियों और उपलब्धताओं कॉ अपमान कर रहे है |
  • सबसे सहज और प्रेम का भाव बनाए रखिये ,और जीवन में कुछ कुछ नया सीखने कि चाहत बनाए रखियेइससे आपके व्यक्तित्व में समयानुकूल पोसेतिवेधनात्मक परिवर्तन होंगे |
जीवन में हम सब एक ही शक्ति कॉ उदय हैं और यदि हम उसमे भी भेद भाव करने कॉ सहस दिखा रहे हैं तो निश्चितही हमे अभी बहुत सी यातनाएं झेलने को तैयार हो जाना चाहिए |

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

उत्‍कृष्‍ट विचार हैं। इन्‍हें इसी प्रकार बनाए रखें। हम हमेशा ही स्‍वयं को सिद्ध करने में रहते हैं कभी भी श्रेष्‍ठ व्‍यक्तियों को ढूंढने का श्रम नहीं करते। यदि हमने अपने मित्र या परिचित श्रेष्‍ठ व्‍यक्तियों को बना लिया है तब हम वाकई सुखी होंगे और यदि हमने निकृष्‍ट व्‍यक्तियों का जमावडा कर लिया है तब हम हमेशा दुखी रहेंगे। श्रेष्‍ठ विचारों के लिए पुन: बधाई।

drakbajpai said...

thanks for this

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