Wednesday, July 1, 2009

अपनी पहचान ढूढ़ने को भटकता इंसान

अपनी पहचान ढूढ़ने को भटकता इंसान

आज हम जिस समाज जिस व्यवस्था में खड़े है वहा हर कोई अपनी ही पहिचान के लिए परेशान दिखाई देरहा है यहाँ कवियों और शायरों की पंक्तियाँ अधिक सशक्त दिखाती है| " इस शहर में हर शख्श परेशान सा क्यों है "
"मंजिल तमाम उम्र मुझे ढूढती रही "

अर्थात
हम कुछ कुछ ढूढ़ ही रहे थे जो हमारा तमाम संतोष सब्र और खुशी छीन रहा था उसकी परेशानी ने जीवन को पूर्ण भाव से जीने नही दिया था |हर आदमी आज समाज में अपने से अधिक दूसरे की चिंता में दिखाई दे रहा है ,वह हर बात पर दूसरे से तुलना और स्वयं को श्रेष्ठ बताने की होड़ में है ,वह किसी के कार्य ,स्तर और संप्रभुता को मानने को तैयार नहीं है, उसे केवल यह फिक्र है कि वह सर्व श्रेष्ठ हो ,वह किसी को इस दौड़ में आगे नहीं देखना चाहता |समाज राष्ट्रों और सभ्यताओं में इसी प्रकार की गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है परिणाम यह कि कोई भी विजय सुख में दिखाई नहीं देरहा है ,और हम दिन दिन अपनी ही ऋणात्मक सोच का शिकार बन बैठे है |हम आत्म प्रसंशा के दल दल मे फ़सतें जा रहे है ,हम पर दूसरों की उपलब्धियां नगण्य रूप मे और अपनी बनावटी उपलब्धियां शेखी बघारने के स्तर तक है ये बात और है की वो हमारी आत्मा की नजर मे ही हीन हों |
यह सत्य है कि किसी धनात्मक भाव पर विचार करने के लिए धनात्मकता कि जरूरत तो चाहिए ही ,हमे समाज को वही सोच देनी होगी जो हमे अपने लिए चाहिए |आज जब हम अपना आंकलन करते है तो हमारे सामने बहुत से आदर्श होते है मगर जब हम वो स्थान पा जाते है तो वे आदर्श हमें अपने सभी छोटे लगने लगते है, यही सोच हमें शान्ति और सुख से दूर लेजाती है |आज जब शिक्षा कार्य क्षेत्र और राष्ट्रों मे हर बात की होड़ लग रही है तो हम दूसरों पर विचार करने की बजाय अपने व्यवहार कार्य और हुनर को और परिष्कृत करने की फिक्र करें ,दूसरों को अपने आदर्श और प्रसंशा का विषय बनाए तो शायद हमें अपनी खोई हुई शक्ति सहजता से मिल सकती है |

मित्रों हम बोर हो रहे है ,निराशा के भाव हमें झेलने पड़ रहें हैं ,अपने आपका खाली पन हममे बढ़ता जारहा है ,और
कहीं भी हमारा मन नहीं लग रहा है यानि की हम अपने कर्तव्य ,कड़ी मेहनत और स्वयं को परिष्कृत करने की बजाय हम अपने से दूसरे व्यक्तित्व का आकलन या तुलना करने लगे है, जबकि यह विषय आपका था ही नही था |
एक चोर के पीछे बहुत से लोग दौड़ रहे थे अचानक चोर छत से गिर पडा सड़क से सेना का मार्च निकल रहा था ,सिपाहियों ने बिना वक्त गवांये उसे जेल मे डाल दिया ,दस दिन बाद देश को आज़ादी मिल गई ,और चोर भी बहुत बड़ा बलिदानी बनकर दखने लगा |समय और परिस्थितियों से जब उसे सर्वोच्च पुरूस्कार मिला तो उसकी आत्मा ने उसे फिर वहीं खडा करदिया जहाँ वो था,आत्मग्लानि और अपनी ही नजर मे गिरने के कारण वह स्वयं को कभी माफ नहीं कर सका |
आज मेरे मत मे कुछ बिन्दु अवश्य है |

  • कठिन परिश्रम एवं कुछ कर गुजरने का संकल्प हमेशा साथ रखें |
  • दूसरों के प्रति भी धनात्मक सोच रखने की कोशिश करें ,आलोचना और केवल आलोचना यह बताती है कि आपके मन मष्तिष्क पर उसकी अमिट छाप है और आप उसके कार्यों से प्रभावित हो रहे हैं |
  • आपको अपने को और अधिक परिष्कृत करने के लिए पहल करते रहना चाहिए ,क्योकि आप मे अपरमितशक्ति है और आप श्रेष्ठतम् है बस आपको यही साबित करना है आप अपना काम पूर्ण मनोयोग से करें समयआपको सिद्ध करदेगा |
  • अपने को प्रसंशा का पात्र समझाने के लिए आप स्वयं को अपनी ही आत्मा के सामने प्रस्तुत करें आपकानिर्णय तुंरत हो जाएगा|
  • आप विद्यार्थी है और ऊम्र भर ऐसे ही रहेंगे अपने मे नित्य नया सीखनें की ललक बनाए रखियें ,आपकोजीवन मे जीने का उद्देश्य समय अपने आप दे देगा |
  • सबको प्रकृति के अनुसार सहज प्रेम करें ,यदि आप प्रेम की इस परिक्षा मे सफल हुए तो आप आत्म केंद्रित होकरकेवल अपने विकास से जुड़ जायेंगे बस यहीं से आपका एक नया जन्म भी होगा|
सारत: यह कि जीवन मे जो लोग मिल रहें हैं जो कार्य चलरहा है जो समय आपको दे रहा है उसके लिए आप ही जिम्मेदार हो, और आपको अपने साथ सबका हित सोचना है यदि यही सत्य जीवन ने आपके भावों मे भर दिया तो दूसरे कि चिंता और फिक्र मे आपका मन मष्तिष्क कभी नहीं उलझेगा ,आप स्वयं एक ऐसा चिराग बन जायेंगे जिसकी रौशनी समय और समाज को आपके बाद भी नयी दिशा देती रहेगी|

शेष फिर

2 comments:

aashimishra said...

"Survival of the fittest" is a phrase which is shorthand for a concept relating to competition for survival or predominance...
and insaan khud ko fittest ki category mein laane ke liye har wo koshish kar raha hai jo socially acceptable hai aur saath hi wo bhi jo socially galat hain,,kyunki world ki max population khud ko superior n best banane ke liye kuch bhi karne ke liye mentally prepared hai...ya ye keh lo successful hona ya apne banaye hue sahi ya galat aim ko kaise bhi hasil karna unka "nasha" ban gaya hai...
par aisa karte hue wo apne chaaro taraf ek artificial environment bana lete hain..jo ki itna artificial hota hai ki kuch samay baad wo insaan khud bhi reality se bahut door ho jata hai,,
innocence,,faithfulness,,emotions,,,sentiments aaj negative characters of personality mein count hone lage hain....
ek chhote se batche se bhi kaha jata hai...PRACTICAL bano...PRACTICAL word means kyaaa kabhi ye explain karte hain parents ...nahin..isliye batche khud hi PRACTICAL ki definition set karte hain...khud ke rules banate hain n usko follow karte hain..
kitna artificial world hai....yahan khud ki real identity ya khud ki pehchaan banana bahut mushkil hai...
sab taraf bluff...n phoophs ke words mein kahein toh"yahan chahe wo dost hi kyun na ho ..har insaan bas ye dekhta hai ki wo tum mein se kya loot sakta hai"
sach hai ye isliye humko koshish karna hoga ki hum khud ko itna strong banaye saath hi apne sanskaron ko apne aap mein jeevit rakhein taaki humare paas bhi toh coming generation ko dene ke liye kuch rahe aur saath hi word PRACTICAL ki definitions banaye,,,jo doosre kar rahe hain usko follow na karte hue apne khud ke liye ek naya track banao "copy cat"ki policy chhod kar apne principles khud banao taaki world mein na sahi apni nazron mein toh apni identity bana sakein
tc
AASHI----shayad jo maine khud likha hai ...apneaap par bhi apply kar sakun...

drakbajpai said...

ok beta aatmaa ka sach sach hai aur vah sahi galat ki def.swayam karta hai

rour views is fine

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