बुजुर्गों को संम्मान और समय दें,आपका भविष्य सुरक्षित होगा |
एक बड़ा योद्धा विश्व विजय के बाद सबको जीतने का एहम लिए एक बड़े कुँए के पास जोर जोर से चिल्ला रहा था, कह रहा था कि, है कोई वीर जो मझे चिनौती दे सके , मे एक पल मे सबको नेस्तनाबूद कर दूंगा, |दूर से आती हुई आवाज से वह क्रोध के चरम पर पहुँच गया ,उसकाशारीर काँपने लगा ,परन्तु जब वह ललकार देता था उसे आवाज निरंतर सुनाई देती थी |उसी समय कुलगुरु ने अकस्मात उसपर हाथ रखा और कहा,बेटा यह ध्वनि तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब दिखा रही है यह कुँआ तुम्हें यह बताने कि चेष्टा कररहा है कि जीवन जैसी ध्वनि देता है उसकी प्रति ध्वनि में ईश्वर वैसा ही बन कर खड़ा हो जाता है ,फिर दुनिया का हर इंसान तुम्हे चिनौती देता लगेगा ,एकदिन समय तुम्हारा साथ छोड़ जाएगा फिर केवल पराजय होगी इसके जिम्मेदार अकेले तुम होगे |योद्धा नतमस्तक होकर चिल्लाया तुम जीत गए प्रति ध्वनि ने तीन बार कहा तुम जीत गए आज उसे जीवन कासार मिल गया था |
क्या हमें भी जीवन कॉ सार ढूढने के लिए महा युद्ध ही करने होंगे?क्या हम दूसरों कि ठोकर से अपना मार्ग देख कर नहींचल सकते ?क्या हम भविष्य के लिए एहम और गर्व के प्रति रूप मे हम भविष्य को दांव पर तो नहीं लगा रहे है ?क्या हम कल के प्रतिउत्तर से सहमत है? ये सारे प्रतिप्रश्न हमें आज ही हल करने होंगे |जीवन की शान्ति औरहमारा अस्तित्व इन्ही प्रश्नों से अपनी मूल शान्ति ढूढ़ पायेगा |
घर के बुजुर्ग उस कुल और पीढी के वारिस होते है इन पर केवल दुआएं होती है शक्ति शाली दुआएं जिनसे कुछ भी संम्भव है|कबीर कहता था "रहिमन हाय गरीब की "अर्थात बद दुआ और दुआ दौनों ही पूर्ण असर दिखाती है |फिर हम सस्ता सौदा क्यों नही कर पाते |हम केवल अपने मन की करते हुए कहते रहते है कि आज हम बहुत व्यस्त है ,हम पर किसी काम के लिए वक्त नहीं है ,हम पर बहुत काम हैं ,पैसा और साधन हम नही कमाएंगे तो खायेंगे कहाँ से,ये सब बहाने करके हम अपने कर्तव्य बोध से बचने का प्रयत्न करते रहते है | ये जानते हुए भी कि कल हमे इसी स्थिति मे आकर खडा होना है
काम की परवाह किए बगैर,जिसने अपने बच्चों की परवरिश की , जी तोड़ मेहनत के बाद मिली आय जिसे परवरिश के लिएहमेशा कम लगी ,जिसे जीवन भर इस बात से जूझना पड़ा कि वह अपने बच्चों के लिए क्या कुछ कर सकता है |जिसने माँ के साथ पैदा होने से बच्चों को बड़ा करने तक सारी जिन्दगी खपा दी ,जो बच्चे की एक कराह पर कई रातों सो नहीं पाया ,जो बच्चों के साधन और आपूर्तियाँ जुटाते जुटाते स्वयं साधन हीन हो गया ,विडम्बना है कि उनके लिए आज हम पर समय नहीं है ये क्या न्याय है कैसा संस्कार है क्या तहजीब है और क्या मर्यादाएं है ये मेरी समझ से परे है|
क्या आपने कभी सोचा कि जो आप जिंदगी को दे रहे है जिंदगी आपको वही लौटाने कि सामिग्री जुटा रही है | बच्चे यही मूल्य समझ रहे है ,आज हम जीवन के उठान पर है तो कल हम पतन के मार्ग में भी जायेंगे ,आज जो समय हम पर नहीं है वो समय हमारे बच्चों पर भी नहीं होगा और हमें बार बार करनी होगी प्रतीक्षा एक न ख़त्म होने वाली प्रतीक्षा |शायद हम अपने भविष्य की फसलों को पानी देनाभूलरहेहैं |जिसके बाद लहलहाती फसलों कि कल्पना आप स्वयं कर सकते है |
मित्रों समाज ,समय और स्वाभाव तीनों कि तुलना सूखे कुए से करे आपको दिखने लगेगा कि आप जो कुछ बो रहे है उसकी ही फसल एक पोधे की शक्ल ले रही है |मेरे मत में बुजुर्ग आपकी वह धरोहर है जिसे केवल व्यवहार और प्यार से हासिल किया जा सकता है धर्म शास्त्र स्वयं मानता है कि आपके बुजुर्गों के प्रति अच्छे व्यवहार से कार्य संतोष , धन की वृद्धि और सुख का भाव स्वतः प्रबल होकर आपको पुरस्कृत करने लगेगा
आप समाज और संस्कारों की धरोहर हो ,आपको एसा ही मार्ग आने वाली पीडी के लिए छोड़ना है जिससे पीढियां आपके इस योगदान के लिए आपका स्मरण करती रहें |
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