Saturday, July 18, 2009

दूसरों के प्रति धनात्मक सोच रखें

दूसरों के प्रति धनात्मक सोच रखें

हम प्रायः यह किसी के व्यवहार में आने से पहले एक आध बार के व्यवहार से ही अपनी सोच बना बैठते है की अमुक आदमी अच्छा या ख़राब है जबकि उसके आगामी व्यवहार उसके आत्मिक गुण हम देख ही नहीं पाते सामान्यतः हमे जिसकी जरूरत होती है ,या जो हमारे मन मष्तिष्क की सोच की के अनुरूप होता है ,जिसकी हम कल्पना करते रहते है ,जिसमे हमारी दबी पिसी भावनाएं जुडी रहती है ,ऐसे अनेक कारक हमें आदमी, परिस्थितियों के बारे में अपना मत बनाने में सहायक भूमिका बनाए रहते है ,फिर तो जल्दी विश्वास करना पूर्णता से उसके लिए प्रयत्न करना और बार बार दूसरे से अपेक्षा करना की वह हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार करे यहीं से हमारे शांत जीवन में तूफान के आरम्भ की तेज हवाएं चलने लगती हैं

जाति ,धर्म , और समाज की सोच से आदमी के मन मष्तिष्क पर प्रभाव अवश्य पङता है मगर केवल इन्हीं से जीवन कॉ मार्ग बनाने की चाहना रखने वाले आत्मा से बहुत कमजोर और और जीवन को ऋणात्मक अंदाज़ में जीने वाले बन जाते है जिससे आगामी पीढी के संस्कार तक नहीं बच पाते ,परिणाम जीवन एक अधूरी प्यास लिए ही ख़त्म हो जाता है और आप अपने से अधिक दूसरे को अधिक महत्वपूर्ण बना देते है

समाज और हमारे जीवन में जो भी घटनाएँ समय के साथ हमारे सामने आती है उनसे पहले हम उस सम्बन्ध में अपनी राय तय करलेते है और यदि ये निर्णय जल्दी बाजी कॉ हुआ तो तो गहम अपराध बोध कॉ सामना हमे स्वयं को करना होता है अब आप बताइये की आप अपनी कमियों के कारण दूसरे को अपराधी ठहराते है और जब अपने आपको देखते है तो स्वयं आपकी अंतरात्मा आपको भी बराबर कॉ गुनेहगार मान है ,फिर दूसरे पर दोषारोपण क्यों

आवश्यकता इस बात कि है की हम निम्न को याद रखें तो शायद अपने आपको थोडा बहुत जीवन शैली को सुधारने कॉ अवसर अवश्य मिल जाएगा

  • जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखें ,जो अपवाद है उन्हें केवल घृणाकॉ विषय माने क्योकि अपवाद जीवन में धानात्मक सोच को ख़त्म कर देते है
  • किसी के प्रति विपरीत सोच न बनाए .जो ग़लत और सही हो उसे अपनी आत्मा के सामने रखकर चिंतन करें
  • पूर्व से अपने आपको किसी भी सम्बन्ध के बारे में निर्णायक न बनाये जिसके बारे में आपने कुछ जाना ही नहीं है आप अपनी ख़राब धारणाओं से बचकर चलें क्योकि यही आपके जीवन चक्र को अधिक नकारात्मक सिद्धः करती है आप एक लंबे समय तक विचार करके और जान कर अपना व्यवहार तय करें
  • जाति धर्मं और और पुरानी कहानियों से ऋणात्मक पहलू के स्थान पर नई और सकारात्मक सोच रखे जो मानवीय आदर्शों के लिए श्रेष्ठ हो
  • समय और अपने विचार दौनो ही परिस्थिति ,क्रियान्वयन ,और पूर्णता के लिए आवश्यक है
  • जो सुना देखा और अनुभव किया हो यदि वह ग़लत लगे तो समय कॉ इन्तजार अवश्य करें सत्य का वास्तविक रूप समय के साथ साफ़ हो जाएगा बिना परीक्षण किए अपनी राय मत बनाइए
  • जीवन के को इतना सस्ता मत बनाइए वे बार बार अपने आधार खोते रहे उन्हें स्थिरता और लक्ष्य चाहिए जो स्वयं को एक दिन अवश्य सिद्ध कर देंगे

No comments:

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...