Wednesday, July 8, 2009

इंसान

इंसान जाल मे फंसा एक जीव है

जो मुक्ति की चाह में तडफडाता है

अपनत्व रूठ जाने पर घबराता है

जीवन भर संजो कर रखा था जो अपनत्व घट

जब अपनी ही ठोकर से फूट जाता है

तो फिर टूट जाता है

1 comment:

Anonymous said...

apke inn chand shabdo ne jeevan ka sahi mayane dikha diye ,,, insaan khud hee fasta hai n andhere ki oor chalta rehta hai har pal apna nasht karta jata hai aur khud hee nai samjh pata aur phir nikalta hai magar sirf ek shakti ki sahayata se

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