गुरु जीवन की धनात्मकता है
गुरु एक तत्त्व है जिसका उदय जीवन के साथ ही होता है |वह आदमी के मष्तिष्क में सेल्स के स्वरुप में ही जन्म लेता है क्योकि हिंदू रीति के अनुसार इंसान को बार बार जन्म लेना होता है और गुरु भी वही रीति निभाने के लिए आपके साथ ही रहता है |मष्तिष्क के दौनों भाग विभिन्न भावनाओं के प्रवर्तक माने गए है जिस भाग से आत्मा कॉनिर्णय ,परमार्थ की भावना ,और पर सेवा जुडी होती है ,उसी भाग का गुरु द्वारा प्रतिनिधित्व करता है |गुरु एक ऑरआपको धनात्मक भाव ,प्रसंशा ,ऑर प्रोत्साहन देता है वहीं वह हर ग़लत कार्य के लिए आप में बड़ा अपराध बोधखडा कर देता है, ये बात ओर है की आप उसकी क्या बात सुने या किसपर अमल करें |हम जबभी कुछ ऋणात्मककरते है या सोचते है तो यही तत्त्व हममे बडा प्रतिद्वंद खडा कर देता है ,वह बताता है की यह बाद में कष्ट कॉ कारणबनेगा ,मगर हम शारीरिक मानसिक ऑर सामायिक उत्तेजना के कारण उसे अन सुना कर देते है, फिर तो परदे परपरदा डालते हुए हम उन त्रुटियों के गुलाम बन बैठते है यही से आदमी का पराभव आरम्भ हो जाता है ,ऐसे मेंआवश्यकता होती है एक ऐसे इंसान की जो आपकी हर समस्या को समझे ऑर उसे समूल नष्ट करे |वह आपके गुरुके अलावा कोई और नहीं हो सकता |
वर्तमान में गुरु की छवि पर ही प्रश्न चिह्न खडा हो गया है ,वे लोग जो स्वयं अपनी कमियों से नहीं उबर सके वे बड़ेबड़े मंचो से यह घोषणा करते है कि गुरु प्रदर्शनी में आप भी गुरु बनाइये ,परिणाम यह रहा कि नातो गुरू मुक्त होपाया नही शिष्य का कुछ भला कर सका |गुरु के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया यह सब गुरु का चयनऑरउसके गुण आदमी के उत्थान में महत्वपूर्ण हैं |जो गुरु आपके व्यक्तिगत जीवन की परेशानियों ,स्वभाव औरआपको समयानुसार मार्ग दर्शन न देने की स्थ में हो वह सर्वथा अयोग्य है होगा | अवं शिष्य के सम्बन्ध मेंसाहित्य ने बहुत कुछ लिखा है जो दौनों के लिए मार्ग दर्शन भी है |
लोभी गुरु लालची चेला ,पडा नरक में ठेलम ठेला
हरही शिष्य धन शोक न हरही ते गुरु घोर नरक में पड़ही
गुरु सन कपट मित्र सन चोरी ,या हो अंधा या हो कोडी
पानी पीवे छान के ,गुरु बनाए जान के
कहने का अभिप्राय यह कि गुरु किसी भी परिस्थिति में बिना विचार ऑर बिना सोचे नहीं बनाना चाहिए के उसकेलिए केवल समय का इन्तजार कीजिये गुरु आपको स्वयं ढूढ़ लेगा ,आप केवल यह ललक रखिये कि आपकोउसकी जरूरत है|
गुरु अपने शिष्य से अनगिनत सम्बन्ध बनाए रखता है वह हर सम्बन्ध में आपका अन्तः जान कर आपकोविकास के मार्ग पर लेजाने में सक्षम है |शिष्य कॉ कर्तव्य है कि वह गुरु की भावनाओं के अनुरूप मार्ग काअनुशरण पूर्ण निष्ठां से करे ,इसमे अपनी वैचारिकता को आडे न आने दे |सब्र ,संतोष शान्ति ऑर पूर्णता यदि गुरुमें नहो तो उसका त्याग करना त्याग उचित है |
जीवन को वास्तविक गति शान्ति ऑर पूर्णता देना गुरु कॉ दायित्व है आवश्यकता यह है की आप स्वयं को गुरु केपास अपनी सारी अच्छाइयों बुराइयों के साथ पूर्ण समर्पित करदें ,इसमे दुराव छुपाव आपके लिए दीर्घ कालिकदुःख कॉ कारण बन सकता है ,आपको पूर्ण विशवास ऑर श्रद्घा के साथ गुरु समर्पण को तैयार होना है मेरा माननाहै की एक बार आपने गुरु को समर्पण दिया तो फिर तो गुरु आपके मार्ग का स्वयं पथ प्रदर्शक बन जायेगा |
गुरु शरणम्
गुरु एक तत्त्व है जिसका उदय जीवन के साथ ही होता है |वह आदमी के मष्तिष्क में सेल्स के स्वरुप में ही जन्म लेता है क्योकि हिंदू रीति के अनुसार इंसान को बार बार जन्म लेना होता है और गुरु भी वही रीति निभाने के लिए आपके साथ ही रहता है |मष्तिष्क के दौनों भाग विभिन्न भावनाओं के प्रवर्तक माने गए है जिस भाग से आत्मा कॉनिर्णय ,परमार्थ की भावना ,और पर सेवा जुडी होती है ,उसी भाग का गुरु द्वारा प्रतिनिधित्व करता है |गुरु एक ऑरआपको धनात्मक भाव ,प्रसंशा ,ऑर प्रोत्साहन देता है वहीं वह हर ग़लत कार्य के लिए आप में बड़ा अपराध बोधखडा कर देता है, ये बात ओर है की आप उसकी क्या बात सुने या किसपर अमल करें |हम जबभी कुछ ऋणात्मककरते है या सोचते है तो यही तत्त्व हममे बडा प्रतिद्वंद खडा कर देता है ,वह बताता है की यह बाद में कष्ट कॉ कारणबनेगा ,मगर हम शारीरिक मानसिक ऑर सामायिक उत्तेजना के कारण उसे अन सुना कर देते है, फिर तो परदे परपरदा डालते हुए हम उन त्रुटियों के गुलाम बन बैठते है यही से आदमी का पराभव आरम्भ हो जाता है ,ऐसे मेंआवश्यकता होती है एक ऐसे इंसान की जो आपकी हर समस्या को समझे ऑर उसे समूल नष्ट करे |वह आपके गुरुके अलावा कोई और नहीं हो सकता |
वर्तमान में गुरु की छवि पर ही प्रश्न चिह्न खडा हो गया है ,वे लोग जो स्वयं अपनी कमियों से नहीं उबर सके वे बड़ेबड़े मंचो से यह घोषणा करते है कि गुरु प्रदर्शनी में आप भी गुरु बनाइये ,परिणाम यह रहा कि नातो गुरू मुक्त होपाया नही शिष्य का कुछ भला कर सका |गुरु के सम्बन्ध में बहुत कुछ लिखा गया यह सब गुरु का चयनऑरउसके गुण आदमी के उत्थान में महत्वपूर्ण हैं |जो गुरु आपके व्यक्तिगत जीवन की परेशानियों ,स्वभाव औरआपको समयानुसार मार्ग दर्शन न देने की स्थ में हो वह सर्वथा अयोग्य है होगा | अवं शिष्य के सम्बन्ध मेंसाहित्य ने बहुत कुछ लिखा है जो दौनों के लिए मार्ग दर्शन भी है |
लोभी गुरु लालची चेला ,पडा नरक में ठेलम ठेला
हरही शिष्य धन शोक न हरही ते गुरु घोर नरक में पड़ही
गुरु सन कपट मित्र सन चोरी ,या हो अंधा या हो कोडी
पानी पीवे छान के ,गुरु बनाए जान के
कहने का अभिप्राय यह कि गुरु किसी भी परिस्थिति में बिना विचार ऑर बिना सोचे नहीं बनाना चाहिए के उसकेलिए केवल समय का इन्तजार कीजिये गुरु आपको स्वयं ढूढ़ लेगा ,आप केवल यह ललक रखिये कि आपकोउसकी जरूरत है|
गुरु अपने शिष्य से अनगिनत सम्बन्ध बनाए रखता है वह हर सम्बन्ध में आपका अन्तः जान कर आपकोविकास के मार्ग पर लेजाने में सक्षम है |शिष्य कॉ कर्तव्य है कि वह गुरु की भावनाओं के अनुरूप मार्ग काअनुशरण पूर्ण निष्ठां से करे ,इसमे अपनी वैचारिकता को आडे न आने दे |सब्र ,संतोष शान्ति ऑर पूर्णता यदि गुरुमें नहो तो उसका त्याग करना त्याग उचित है |
जीवन को वास्तविक गति शान्ति ऑर पूर्णता देना गुरु कॉ दायित्व है आवश्यकता यह है की आप स्वयं को गुरु केपास अपनी सारी अच्छाइयों बुराइयों के साथ पूर्ण समर्पित करदें ,इसमे दुराव छुपाव आपके लिए दीर्घ कालिकदुःख कॉ कारण बन सकता है ,आपको पूर्ण विशवास ऑर श्रद्घा के साथ गुरु समर्पण को तैयार होना है मेरा माननाहै की एक बार आपने गुरु को समर्पण दिया तो फिर तो गुरु आपके मार्ग का स्वयं पथ प्रदर्शक बन जायेगा |
गुरु शरणम्
1 comment:
apke ess lekh ko padh kar apne hee jeevan ko paya ,,, yeh vakya bilkul sahi hai sahi samay par Guro khud hee apko dhoon leta hai aur o ki vajay se har wo koshish karta hai jis se aap samshya mukt ho jae ab ye apka kartavya hai jeevan bhar apko us Guro ko sammman dena hai kioki wahi guro ki vajaye se aap naya jeevan pate hai wo bhi khushiyoo bhara hua ,, es Guro ko ishwar ka sthan prapt hai ,,, bahut bhagyashali hote hai wo log jinhe ishwar ke roop me guro jeevan me milta hai
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