Sunday, June 14, 2009

बदलता समय और उसका मूल्यांकन

युग मान्यताए संस्कार और समय सब ही तो बदल रहा था फिर हमारे समाज परिवार और राष्ट्र की सोच में परिवर्तन क्यो नही होता ,उन सब में भी बदलाव आया सब बदलता चला गया मूल्य आदर्श परमार्थ की भावनाए धराशाही होने लगी, घर के बच्चे बदलाव के बड़े चक्रवात में उड़ने लगे और उनके अपने उन्हें बचाने के फेर मे बार बार चोटिल होते रहे, किसी पर समय ही कहाँ था कि वे दूसरे के रिसते घावो को सहला पाता
और सब जानकर भी कुछ नकर सकने की कशिश बदती हुई एक बड़ा नासूर बन बैठी और दर्द का सार्वजानिक होना गुनाह बन गया अब आप बताइये कि जीवन के इस बदलाव और परिवर्तन पर मुझे हँसना चाहिए था कि रोना क्योकि मेरे हाथ में वह भी तो नही था हम हमेशा एक भावना लिए खड़े रहे कि कल शायद सब अच्छा हो जाएगा आशा के बड़े जहाज पर कल की आशा मे जीते हुए हम अनभिज्ञ भविष्यति से बारबार टकरा रहे थे ठीक अच्छा और सबकुछ सामान्य होने की आशा में ऐसे समय मन मष्तिष्क और वैचारिक आदर्श हारने को थे और हम उम्मीद के के भंवर में फसे अकर्मण्य होकर केवल कर रहे थे एक नही ख़त्म होने वाला इंतज़ारयुग मान्यताए संस्कार और समय सब ही तो बदल रहा था फिर हमारे समाज परिवार और राष्ट्र की सोच में परिवर्तन क्यो नही होता ,उन सब में भी बदलाव आया सब बदलता चला गया मूल्य आदर्श परमार्थ की भावनाए धराशाही होने लगी, घर के बच्चे बदलाव के बड़े चक्रवात में उड़ने लगे और उनके अपने उन्हें बचाने के फेर मे बार बार चोटिल होते रहे, किसी पर समय ही कहाँ था कि वे दूसरे के रिसते घावो को सहला पाता दर्द
और सब जानकर भी कुछ नकर सकने की कशिश बदती हुई एक बड़ा नासूर बन बैठी और दर्द का सार्वजानिक होना गुनाह बन गया अब आप बताइये कि जीवन के इस बदलाव और परिवर्तन पर मुझे हँसना चाहिए था कि रोना क्योकि मेरे हाथ में वह भी तो नही था हम हमेशा एक भावना लिए खड़े रहे कि कल शायद सब अच्छा हो जाएगा आशा के बड़े जहाज पर कल की आशा मे जीते हुए हम अनभिज्ञ भविष्यति से बारबार टकरा रहे थे ठीक अच्छा और सबकुछ सामान्य होने की आशा में ऐसे समय मन मष्तिष्क और वैचारिक आदर्श हारने को थे और हम उम्मीद के के भंवर में फसे अकर्मण्य होकर केवल कर रहे थे एक नही ख़त्म होने वाला इंतज़ार
दूसरी और पाश्चात्य युग की या आधुनिक दोड़ थी वंहा सब कुछ नया था, नए रिश्ते, बड़े बड़े वादे और बहुत बड़ी चमक और अनगिनत रिश्ते उनमे अपना सुख खोजता अकेला आदमी परिवर्तन के इस युग में नाईट क्लब , बर्थडे और बहुत सारे डे साथ ही रोक और रेप म्यूजिक नशीले वातावरण और देर रात तक न ख़त्म होने वाला शोर और भयानक कलरव और डरावने वातावरण में शान्ति की खोज करता हमारा नायक ,जो कथाकथित आधुनिक होने के लिए जरूरी था हमारे सामने थे ,सब कुछ खुलेपन की सीमा से बहुत अधिक था| हम उस लालची व्यक्ति की तरह होगये थे जिसे अभी एक साधू ने विशाल धन भण्डार में खड़ा क़र यह कह दिया था की जितना चाहो लेलो और वह पागलपन के चरम पर धन समेटने की कोशिश कर रहा था उसे बार बार गुस्सा आरहा था की वह तो कुछ नही ले जा पा रहा है यहाँ तो लाखो गुना धन है ,परन्तु वह थक जाता है शरीर और समय ख़त्म हो जाता है मगर उसके मन की अतृप्त आकाक्षाये पूरी नही हो पाती विलाप और क्रंदन के सुर और अधिक दयनीय हो जाते है और उसकी मानसिकता यह कहने लगाती है की इससे तो वो पहले ही अच्छा था कमोवश हम सब भी आधुनिकता के एस युग से यही गति बना बैठे है जिसके लिए हमे अपना गंतव्य ,जीवन का मूल उद्देश्य ,और सारे आदर्श भुलाने पड़े है और शायद हम एक बड़ी भूल का शिकार है |
अब यहाँ प्रश्न यह था की परिवर्तन पूर्णता से हो रहा था मगर क्या हम अपने को तैयार कर पाए थे उसके लिए ,यहाँ भी बड़ी दुविधाये थी माता पिता ने जो कष्ट ,संघर्ष और कठिन परिस्थितियों का सामना पूर्व में किया था उनसे उनकी सोच पर जो ऋणात्मकप्रभाव पड़ा था वे उसे अपने जीवन की कहानियों में जोड़ चुके थे ऊनकी हर सोच इस विचार से चालू होती थी परिणाम वे हरजगह समायोजन चाहते थे जो ग़लत था|अति स्वतंत्रता का अतीत चाहने वालो के लिए बड़ा दुखद था की उनके ही बच्चे आज उसी स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे ये बात ऑर है कि बच्चों की सोच अपने स्वार्थो में लिप्त थी
विकास ,अभ्युदय और प्रगति की चाह तो अनादी काल से मानव मष्तिष्क में रही है मगर वर्तमान का विकास ग़लत प्रयोग के कारण अपना महत्व खोने लगा है |भारत परम्पराओं और संस्कारों का पुजारी था उसपर अतुलनीय सम्पदा के रूप में केवल शान्ति, सोहार्द ,मैत्री और सांस्कृतिक प्रतिमान ही तो थे बदलाव का तांडव इन मूल्यों ने ही झेला है |
आज हम इस महा रोग से छुटकारा पाने के लिए मार्ग की खोज में है इसके लिए कुछ सुगम उपाय है जिन्हें प्रयोग में लाकर शायद हम कुछ हासिल कर सकते है |
परिवार सबकी राय से कुछ अनुशासन बनाये उस पर मुखिया सहित सब अनुशरण करें
बच्चो और परिवार को अपने काम और खुशियों में भागी दार बनायें
विश्वास,सत्य और सहजता से जीवन जीने का प्रयत्न करें
दोस्तों का विचार करने से पहले यह जरूर सोचे कीदुनियांमें सभी लोग अपने स्वार्थो से जुड़े है
पहले स्वयं फिर अपने नजदीकी लोग फिर पड़ोस फिर नगर और फिर देश यानि की व्यक्ति केवल अपने हितों से सम्बन्ध रखता है |उसका अस्तित्व खतरे में हो तो शायद वह किसी संबध के बारे में नहीं सोचता पहले स्वयं ऐसे बनो की तुम किसी की मदद कर सको |

मोबाईल कप्यूटर और फ़ोन से तब दूर रहे जब आप अपने मूल उद्देश्य केलिए प्रयत्न कररहे हो यानि कम और अध्ययन के समय इनका प्रयोग न करे|
प्रगति शील समय के साथ अपने संस्कारों धर्म और आदर्शो की जीवन शैली पढ़े और उनपर अमल करने की कोशिश करें|
जिस कार्य व्यक्ति और परिस्थिति को छुपाना और झूठ का सहारा लेना पड़े वह सम्बंध आपके लिए ऋणात्मक ही होगाआपको अपने मूल उद्देश्य का निर्धारण कर उसे हर हाल में प्राप्त करना है यह संकल्प रखना है
परिवार के लोग आपके समय से कुछ समय चाहते है ध्यान रखें |प्रति दिन अपने कार्यों का मूल्यांकन करें कि जो गलती आज हुई हो उसपर नियंत्रण करें
अपने व्यवहार से किसीको तकलीफ दे न ही दूसरो के सम्बंध में आलोचनात्मक द्रष्टिकोण रखे यह आपके व्यक्तित्व को रिनात्मक बना सकता है |हमेशा याद रखे कि जीवन शरीर और संसार आपकी परीक्षा का विषय है इसके हरपहलू पर आप परीक्षार्थी है और आपको परिणाम केलिए भविष्य पर निर्भर होना है फिर तो आप अपनी सफलता आज निश्चित करे और अपने सारे संबंधो और कार्यों को कठिन परिश्रम से जीतें |प्रेम सोहार्द अपनत्व और अपनत्व का भाव पैदा करें तथा प्रकृति के अनुसार सहज जीवन जीने कि आदत डालें |ध्यान रहे कि आपके दोस्त आप और आपकी प्रेयसी या प्रेमी यदि आपके विकास सम्रद्धि में बाधक है या वह आपको झूठ फरेब और ग़लत सलाह दे रहा है तो वह आपको शरीर धन और मानसिकता से ठग रहा है ऐसा व्यक्ति सम्बंध का आधार झूठ और सहानुभूति पर टिकाये होता है |क्या दुनियां का कोई आदमी इसे विवाह के लिए उपयुक्त मान सकता है जो सबके साथ यही व्यवहार करता रहा हो शायद यह भी प्रश्न ही है |हमें मन लगाने के लिए अलग व्यक्ति चाहिए और आदर्शो का पालन करने के लिए आदर्श कन्या या वर चाहिए |कैसी विडम्बना है | बहुत से नियम परिस्थितिया बनाती हैहमे रोज़ नया सीखने कि आदत डालनी चाहिए वसीयतें आदमी को धन वैभव और ऐशोआराम कि जिंदगी तो दे सकती है मगर वह उसका चैन और शान्ति छीन लेती हैं आपको सफल सफलतम होना हैं जिससे सदियाँ आप पर गर्व कर सके |
आहार निंद्रा मैथुन तो जानवर के लक्षण हैं आप अलग इश्वर की अद्वतीय कृति हो यह आपको ही सिद्ध करना है|




शेष फिर----

8 comments:

पंडितजी said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

स्वागत है।

विचार अच्छे हैं। लेख सरल और लघु रखें। इस माध्यम की सीमा है।वर्तनी और मात्रा की अशुद्धियों से बचें।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वागत है.शुभकामनायें.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sahi kaha aapne. narayan narayan

राजेंद्र माहेश्वरी said...

ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी

shama said...

Shubh kamnayon sahit swagat hai...gar parichhed chhote karen to padhne me aasanee hogee..!

दिल दुखता है... said...

हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है......

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