हम आधुनिक हो रहे थे पश्चिमी सभ्यता और विकास के नाम पर हमने दो चीजें खोई थी पहला विश्वास और दूसरा धैर्य | हम विकास की जटिलताओं में स्वयं इस तरह से उलझ गए की हम पर अपनी ही समस्याओं के हल नही थे ,जबकि हम जिनका अनुशरण कर रहे थे वे विकसित राष्ट्र हमसे अधिक विश्वास मय दिखाई दे रहे थे | वे हर समस्या के हल में अपने इष्ट के प्रति समर्पण का भाव लिए खड़े थे जबकि हम संस्कृति मूल्यों और अपनी परम्पराओं से उस इष्ट का अस्तित्व नकारते रहे बार बार उसे रुदिवादी ,अज्ञान- और अशिक्षा का नाम देकर स्वयं को बचाने की चेष्टा करते रहे जबकि हमारे अन्दर ही खोखले आदर्शों और मान्यताओं कि भरमार बनी रही |
I treat he cures
विज्ञान के विशुद्ध रूप में जिस पद्धति ने विश्व के परिवेश को सबसे ज्यादा प्रभावित कर पीड़ित मानवीयता को सहायता दी है उसे एलोपेथी के नाम से जाना गया वही पद्धति का जनक यह समझ गया कि वह केवल अपने ज्ञान और परिश्रम के सहारे इलाज कर रहा है जबकि किसी को ठीक करना और न ठीक करना उस महा शक्ति का काम है , जो सबको स्पंदन दे रही है |न्यूटन , सुकरात, टालस्टाय , विंची और अनेक एसे वैज्ञानिक और कलाकार हुए जो उस महा शक्ति की सत्ता के सामने नत मस्तक हुए और समय समय पर इतिहास ने ऐसे ऐसे उधाहरण दिए जो उस सत्ता को सिद्ध करने केलिए पर्याप्त थे परन्तु हम तथा कथित आधुनिक थे और स्वयं को हर काम का कर्ता मान बैठे ,तो हम ही अपने अपूर्ण व्यक्तित्व के लिए जिम्मेदार बन गए और हमारा जीवन ही एक बड़ा अपराध बोध बन गया जबकि हम केवल एक ऐसी कठपुतली थे जिसकी डोर किसी अज्ञात शक्ति द्वारा संचालित थी जिसमे सब कार्यो के लिए अलार्म फिट थे और जो स्वयं सबको समयानुसारऔर कर्म के अनुसार संचालित कर रही थी |
आदमी समस्याओं और कमियों का पुतला है वह जन्म से मृत्यु तक केवल एक विद्यार्थी ही रहता है और उसके हर कार्य में समय के हिसाब से नवीनता और कुशलता पैदा होती रहती है मगर स्वीकार्यता और अहम् की भावना उसे कुछ भी सीखने की कोशिश को हीन भावना के रूप में प्रर्दशित करती रहती है परिणाम समय ,परिस्थिति ,स्थान और उसकी अपनी कमियों से कई समस्यायें अपने आप खड़ी हो जाती है वह अकेला इन बड़ी समस्याओं को कैसे हल करता, यह उसके लिए बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न बनजाता है और वह अपनी हर हार के लिए स्वयं दायी होता है उसे नियति और समय परिस्थितियों से बार बार हारना पड़ता है |
आदमी प्रकृति की अद्वतीय कृति है उसमे उसी के समान गुण भी है | समय समय पर उसके जीवन को लाभ ,हानि ,जे ,पराजय,जीवन म्रत्यु को करीब से देखना होता है ,अपनो द्वारा अपमानित और आहात किया जाता है ,जीवन को कई बार एक पूर्ण गति से चल रही बाजी की तरह देखना होता है और उसमे उसे अधिकांशतह हार का सामना करना होता है |हर हार पर उसकी शक्ति सामर्थ्य और अधिक परिश्रम से जीतने का भाव घुटन ,टूटन और निराशा मे बदल जाता है और वह जीवन के महत्व को ही खो बैठता है जिसमे ईश्वर यह कहता है कि मानव उसकी अद्वतीय कृति है |
सारांश यह है कि आदमी एक कर्ता का भाव लेकर चले तो वह अधिक सफल हो सकता है हर कार्य यदि उस महा शक्ति को समर्पित किया जाएगा तो पूर्ण भाव और कठिन परिश्रम के बाद यदि सफलता नही मिलती तो यह आदमी कि हार नही उस महा शक्ति कि हार होती है ,जबकि वह महा शक्ति हारती ही नही है |आदमी उस महा शक्ति का वह अणु है जो उससे ही संचालित होता है और उसे इसकी संचालन बेटरी को चार्ज करने के लिए २४ घंटों में एक बार अपनी कृति से अवश्य मिलना होता है ,इसी तरह वह हर समस्या कहल लेकर हमारे पास होता है लेकिन हम अहम् ,दिखावे ,और विश्वास कि कमी के कारण स्वायंभू बने रहते है जबकि उसकी अटल सत्ता से हमे सारे हल सहज सुलभ है
शेष फिर
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