सहज जीवन एक ज्योतिषीय सलाह
भारतीय दर्शन मे मानवीय आदर्शो और मूल्यों के संवर्धन की बार बार बात कही गई है वाही हर धर्म हर साहित्य हर मज़हब इस बात पैर बल देता रहा हैकि जीवन की पूर्णता उसे सही मायनो में समझने और अमल करने में है समाज शास्त्री समय समय परयह वर्णन करते रहे की व्यक्ति के हाथ में जीवन के कुछ ही पल रहते है और उसे इसमे सफल होना होता है| अनादी काल से वह उसमे अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल भी हुआ है उसके हर कर्तव्य और क्रियान्वयन पर समाज एवं उसके युग की पैनी नजर भी रही है अर्थात् उसके जीवन चक्र के हर पहलू और क्रियान्वयन का सूक्ष्मत;हिसाब किया गया है अब यहाँ व्यक्ति के स्तर से प्रश्न यह उठता है कि जीवन की तमाम सफलता इस बात पर निर्भर होती है है कि आपने जीवन कैसे जिया स्वछंद जीवन पूर्णता के साथ जीना एक विशुद्ध कला है और इस कला को बहुत से आयामों पर खरा उतरना होता है जिसमे परिवार समाज उनसे व्यवहार राष्ट्र और जीवन के हर सम्बन्ध को पूर्ण निष्ठां से जीना होता है, शायद यही धर्म का व्यवहार के पहलू पर बिल्कुल स्पष्ट राय देते है कि व्यक्ति को हर सम्बन्ध पूर्ण निष्ठां और पवित्रता से जीना चाहिए अन्यथा उसे उसके भोग्य मे क्या क्या दुष्परिणाम भोगने होंगे शायद उसका भविष्य और विकास या पतन के मार्ग यही से लिखे जाते रहे है
भारतीय दर्शन मे मानवीय आदर्शो और मूल्यों के संवर्धन की बार बार बात कही गई है वाही हर धर्म हर साहित्य हर मज़हब इस बात पैर बल देता रहा हैकि जीवन की पूर्णता उसे सही मायनो में समझने और अमल करने में है समाज शास्त्री समय समय परयह वर्णन करते रहे की व्यक्ति के हाथ में जीवन के कुछ ही पल रहते है और उसे इसमे सफल होना होता है| अनादी काल से वह उसमे अपना वर्चस्व कायम रखने में सफल भी हुआ है उसके हर कर्तव्य और क्रियान्वयन पर समाज एवं उसके युग की पैनी नजर भी रही है अर्थात् उसके जीवन चक्र के हर पहलू और क्रियान्वयन का सूक्ष्मत;हिसाब किया गया है अब यहाँ व्यक्ति के स्तर से प्रश्न यह उठता है कि जीवन की तमाम सफलता इस बात पर निर्भर होती है है कि आपने जीवन कैसे जिया स्वछंद जीवन पूर्णता के साथ जीना एक विशुद्ध कला है और इस कला को बहुत से आयामों पर खरा उतरना होता है जिसमे परिवार समाज उनसे व्यवहार राष्ट्र और जीवन के हर सम्बन्ध को पूर्ण निष्ठां से जीना होता है, शायद यही धर्म का व्यवहार के पहलू पर बिल्कुल स्पष्ट राय देते है कि व्यक्ति को हर सम्बन्ध पूर्ण निष्ठां और पवित्रता से जीना चाहिए अन्यथा उसे उसके भोग्य मे क्या क्या दुष्परिणाम भोगने होंगे शायद उसका भविष्य और विकास या पतन के मार्ग यही से लिखे जाते रहे है
धर्म समाज और संस्कृति जानती है किआदमी के हर क्रियान्वयन का, उसकी हर सोच और व्यवहार का सीधा सम्बन्ध उसके भविष्य से है यावह वर्तमान के सारे संबधो व्यवहार में खरा उतर रहा है तो निश्चित ही उसका भविष्य सुरक्षित और विकासोन्मुखी होगा अन्यथा उसे उसकी भर पईतोकरानी ही होगी वेदअपनी ऋचाओ से यह साबित कर चुके है कि उसके हर कार्य और व्यवहार से उसका वर्तमान भविष्य ही नही अपितु आने वाला जन्म भी इस कार्य पद्धति का फल होगा अतः उसे वर्तमान के कार्यो पैर पैनी नज़र रखने कि आवश्यकता है उसका व्यवहार भविष्य का दर्पण होगा
यहाँ कुछ प्रभाव एवं कारणों को कुछ बिन्दुओ मे बाँट कर बताने का प्रयत्न कर रहा हूँ इसे सम्पूर्ण रूप से बताया जाना असंभव है
१--पिता से अच्छे संबंधएस बात को सहज ही स्पष्ट करते है कि उस जातक को कार्य से संतोष होगा
जॉब मे उसको शान्ति आय के साधनों से तसल्ली बनी रहेगी कार्य स्थान पर उसे पर्याप्त सम्मान मिल सकता है|
२--माँ के साथ संबंध अच्छे होने से उसे जीवन मे अभूतपूर्व सुख मिलने कीकल्पना की जाती है ऐसे व्यक्ति को अपने साधनों से जीवन पर्यंत सुख मिल सकता है इसके वपरीत माँ से अच्छे संबंध
अच्छे न होने के परिणाम सुख कि विहीनता और अभाव ग्रस्त जीवन का संकेत है|
३--भाई बहिन सेरिश्तो का प्रभाव यह बताता है कि एसा व्यक्ति अधिक सोहार्द बनाये रखेगातथा
समाया अनुसार वह तेज बल और पराक्रम का भी सयोग होगा यदि ये संबंध ऋणात्मक हुए तो इसको
पराक्रम बल और तेज कि कमी सहनी होगी और यह व्यक्ति स्वयं को कायर सिद्ध करलेगा|
४--गुरु केसाथ सहजता प्रेम आदर रखने वाला अपनी संतानों आय स्वास्थ्य से पूरित रहेगा उसकी
समस्याओं का शीघ्र समाधान हो जाता है व जीवन मे बहुत सी समस्याए सहज सुलझ जाती है
विपरीत स्थिति मे वह समस्याए ख़ुद पैदा करेगा और जीवन भर उनमे ही उलझा प्रयाणकरजाएगा|
५--पति और पत्नी साथ संबंध रखने वाला स्वास्थ्य मष्तिष्क और बल से पूर्ण होगा उसमे सच
बोलने सुनाने कि शक्ति होगी और वह सफलता और सुख
६--इसी प्रकार अपने हर सम्बन्धी रिश्तेदारों और मित्र मंडली मेअच्छे सम्बन्ध रखने वाला अपने आगामी जीवन काल में भी पूर्ण सफल रहता है|
गुरु पिता माता अपना शरीर और आत्मा केवल इन ५ के प्रति मानव के सम्पूर्ण दायित्व रहते है शेष तो उसके कर्तव्य ही है यदि उसने इन सबका ध्यान पूर्ण रूप से रखा तो यह सत्य है कि उसे सफलता केलिए अधिक प्रयत्न नही करने होंगे यदि इनमे से एक भी पक्ष अधूरा रहा तो भविष्य अधिक जटिलता और समस्याये पैदा करता रहेगा जिसका हल न होकर केवल वह भोग्य ही होगा|
शेष आगे के भाग में
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