चाहत संस्कार की
हर इंसान की यह प्रबल इच्छा होती है कि वह जिन लोगों से जुड़ा है ,वह जिस समाज और व्यवस्था में रहता है उससे सम्बंधित हर पक्ष सांस्कारिक नियमों से बंधा रहे ,वह नए मूल्यों और और आदर्श का प्रतीक बनारहे और उसकी विकास कि दौड़ लोग और समाज आदर्श मार्ग मान कर अनुशरण करते रहे |समय परिवेश ,विकास और प्रकृति कि हर चीज बदल रही होती है,परिवर्तन के चक्रो में घूमता आदमी किसी भी तरह अपने मूल्यों और संस्कारों को बचाने की फिक्र में रहता है |परवर्तन के अनुसार सब कुछ थोड़ा थोड़ा बदलने लगता है और सारी विषय स्थितियों के प्रभाव आदमी को अपने संस्कार में ही दिखाई पड़ने लगते हैं |
यह बहुत जरूरी भी था कि इंसान अपनी पीढियों को अपने से और अधिक विकसित देखना चाहता हैं ,उसके लिए वह हर सम्भव प्रयत्न करके भी उत्थान कि आकांक्षा रखता हैं |समय और परिवर्तन का असर व्यक्ति कि उम्र और परिवर्तनों कॉ समायोजन ही तो है |वह धीरे धीरे अपने घर के संस्कारों से स्कूल और समाज से जुड़ने लगता है ,उसके नए मित्र और उम्र की आरम्भिक सोच नई नई विषय वस्तुओं से प्रभावित होती रहती है ,वह नए युग के मानदंडों की ओर बदने लगता है यहाँ यह महत्वपूर्ण था अर्थात वह घर परिवार ,समाज ,राष्ट्र ओर नवीन परिवर्तनों से पूर्णत:प्रभावित होता है |
विज्ञान ओर धर्म यह बताता है कि व्यक्ति पर सबसे पहला प्रभाव उसकी माँ का पड़ता है वह उसके ही अनुरूप गुण अपने में पैदा कर लेता है येबात ओर है कि उनमें थोड़ा बहुत अन्तर आजाये |वह पिता के जींस से जुडा उसकी ही अनुकृति बनने कि कोशिश करता है ,क्योकिं इस समय तक वह समाज के सीधे संपर्क में नही आपाता है |उसके परिवर्तन प्रत्यक्ष ओर अप्रत्यक्ष तौर पर दिखाई देने लगते है ,स्कूल ,मित्रों ओर उसके ही वातावरण सेजुडे व्यक्ति उसकी मानसिकता में परिवर्तन आरम्भ कर देते है |पहले तो उसके अपने उसकी अच्छाइयों ओर बुराइयों पर खुश होते रहते है बाद में जब वह उसकी आदत बन जाती है तो परेशान हो उठते है |
मेरे मत मे संस्कारों के लिए हम जो प्रयत्न कर सकते है उनमें निम्न बिंदु महत्व पूर्ण है
- जन्म के बाद ही माता पिता को संयमित व्यवहार करना चाहिए उसके सामने अबोध समझ कर ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे वह बड़ा होकर वही क्रिया करके सजा का पात्र बने |विज्ञान बताता है कि हर इंसान के मष्तिष्क में कई लाख सेल्स होते है ,वे क्रमबद्ध तरीके से कार्यकरते है |यह क्रम ४ या पॉँच समूहों में गति शील रहते है जैसे पहला समूह क्रिया शील रहने के बाद दूसरे समूह ने कार्य आरम्भ किया ,मगर यदि २५ या ३० वर्ष बाद प्रथम समूह के सेल्स क्रियाशील हुए तो वही भावनाएं उसमे बढ जायेंगी जो उसने उस वक्त देखा था |
- नियम आदर्श ओर मूल्यों का विस्तार कर व्यक्ति से वैसे ही व्यवहार कि कि कल्पना करे ,परिवार का अनुशासन बनाए रखे ओर बाल्य काल से ही बच्चे को उसपर चलने कि आदत डाले
- झूठ असत्य ओर धोखे के लिए बच्चे कॉ उपयोग न करे नही तो एक समय बाद यही उसकी आदत हो जाए गी ओर आप ही उसके असली जिम्मेदार माने जायेंगें |
- नव परिवर्तनों के बारे में उसे समझाते रहना चाहिए उसकी अच्छाइयों बुराइयों से उसे अवगत करते रहने से उसमे प्रतिरोधक क्षमता जाग्रत होने लगाती है
- स्कूल ओर शिक्षण संस्था आर ओर का चयन करते वक्त यह ध्यान रहना चाहिए कि वह अपनेसंस्कार ओर मूल्यों से दूर किसी ओर संस्कृति का मोहरा तो नही बन रहा ,हम बहुधा देखा देखी उस व्यवस्था का चयन कर बैठते है जहाँ विकास के साथ हमारे संस्कारों को समूल नष्ट किया जाता है |व्यक्ति की तीसरी पाठ शाला पर अपने स्वप्न के अनुरूप बल नही दिया जाता यह विचारणीय है |
- उसके वातावरण ओर मित्रों की आदतों के बारे में आप समय समय पर विचार करते रहे तथा यथा सम्भव उनमे परिवर्तन करने का प्रयत्न करें |
- सामाजिक बुराइयों से जीतने के लिए आपके अनुशासन ओर आदर्शों का क्रियान्वयन अति आवश्यक है |
- समय परिस्थितियों में अपने आदर्शों ओर सत्य के मूल्यों की रक्षा करने के लिए सब में थोड़ा बहुत परिवर्तन करते रहें |
- तेजी से बदलते समय में आप बच्छे को समय अवश्य दे जिससे वह बदलाव के दौर में अपने आप को बचा सके |
- उसे सच ओर पारदर्शी बनाने के लिए पुरस्कृत करे चाहे उसमे आपको नुक्सान क्यो न हो |
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