युवा को संस्कार और शक्ति की जरूरत क्यों ?
मै अपना समय निकाल क़र कुछ देना चाहता था ,हर प्रबुद्ध यह आशा कर रहा था कि युवा ही तो भविष्य का कल है ,उसे ठीक और मजबूत रहना ही होगा |उसके जीवन की उन्नति ही तो हमारी सूखी आँखों की रौशनी थी और उसके मजबूत वक्ष पर ही हमे गर्व का अनुभव आज से करना था उसे ही राष्ट्र के सशक्त सहारे के रूप मै उसकी चिंता क्यों नही करता |
आज युवा के सामने अनगिनत चिनोतिया है उसे कई फ्रंटों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है और हेर कोई उससे यह आशा कर रहा है की वो हेर जगह अव्वल रहे ,मगर उसकी त्रासदी पर विचार करने का समय मेरे समाज पर है ही कहाँ |युवा की परवरिश और विकास जिन विषय स्थितियों में हुआ उसके लिए हम सब बराबर के दोषी थे मगर विडम्बना यह कि उसे ही बार बार अभिमन्यू कि तरह शहीद होना पड़ा |मै आज इस युवा के लिए चिंतित हूँ |
अतीत के पन्नों में झांककर हमे यह बताइये कि जब उसे हमारे संस्कारों कि जरूरत थी तो हम उसे आज़ादी औरके सब्ज बागों का सामान उपलब्ध करा रहे थे ,हम स्वयं तथा कथित आधुनिक होने की होड़ में थे ,संस्कारों की मान्यताएं हमे रुदिवादी सोच लगने लगी थी |हमारे परिवारों का विखंडन हो रहा था और हमारा भविष्य ये सब बखूबी से समझ रहा था |हम उसे मेड इन जापान चीन अमरीका इंग्लॅण्ड के सपने दिखा रहे थे और वही समान वह उपयोग में भी लारहा था |शायद हम पर उसके संस्कारों के लिए समय नही था हम सोचते थे जो गुण हममे है वे ही कमोवेश बच्चे मे होंगे और थोड़ा बहुत और आगे गया तो बाद मे देख लेंगे |
स्कूल में हमारे इस भविष्य को ढेर सारे डेज़ मिले किसी को फ्रंड्स डे कहा गया किसी को मदर या फादर डे और सभ्यता का विकास इतनी तेजी से हुआ की हमने संत वेलेनटाइन को सेक्स के अग्र दूत के रूप में प्रस्तुत कर डाला और उसके नाम पर हम केवल वासनाओं और शारीरिक सुख के खेलों की तरह उलझ कर रह गए कैसी विडम्बना थी ये |स्कूल के कोर्से में इंग्लिश मूल्यों की भरमार से सबका व्यक्तित्व तेजी से बदलने लगा
समाज वह निंदा सुख का सबसे बड़ा उदहारण था वह किसी न किसी व्यवस्थाको लेकर हमारे इस युवा का आलोचक बना रहा ,फिर उसे अपने स्वार्थी और मतलबी दोस्तों से भारतीय संस्कारों के अनुरूप उम्मीदें थी मगर वे तो आधुनिक सभ्यता के मित्र थे जो रूकना और फ़र्ज़ का अर्थ जानते ही नही थे |वहां भी वह छला गया मगर अन्दर ही अन्दर उसमे निराशा रिणात्मकता के भाव पनपने लगे और उसका अद्वतीय ज्ञान और विकास उसका साथ नहीं दे पाया |
आज मै सोचता हूँ की मेरा युवा एक सहज प्रेम और सोहार्द का वातावरण और एसे ही सम्बन्ध चाहता है मगर समाज और आधुनिक सोच पर इसके लिए समय नहीं है |आज निराकरण के लिए हम कुछ बिन्दु ले सकते है शायद वह एसे इस त्रासदी से कुछ हुड तक बचा सके |
मै अपना समय निकाल क़र कुछ देना चाहता था ,हर प्रबुद्ध यह आशा कर रहा था कि युवा ही तो भविष्य का कल है ,उसे ठीक और मजबूत रहना ही होगा |उसके जीवन की उन्नति ही तो हमारी सूखी आँखों की रौशनी थी और उसके मजबूत वक्ष पर ही हमे गर्व का अनुभव आज से करना था उसे ही राष्ट्र के सशक्त सहारे के रूप मै उसकी चिंता क्यों नही करता |
आज युवा के सामने अनगिनत चिनोतिया है उसे कई फ्रंटों पर एक साथ लड़ना पड़ रहा है और हेर कोई उससे यह आशा कर रहा है की वो हेर जगह अव्वल रहे ,मगर उसकी त्रासदी पर विचार करने का समय मेरे समाज पर है ही कहाँ |युवा की परवरिश और विकास जिन विषय स्थितियों में हुआ उसके लिए हम सब बराबर के दोषी थे मगर विडम्बना यह कि उसे ही बार बार अभिमन्यू कि तरह शहीद होना पड़ा |मै आज इस युवा के लिए चिंतित हूँ |
अतीत के पन्नों में झांककर हमे यह बताइये कि जब उसे हमारे संस्कारों कि जरूरत थी तो हम उसे आज़ादी औरके सब्ज बागों का सामान उपलब्ध करा रहे थे ,हम स्वयं तथा कथित आधुनिक होने की होड़ में थे ,संस्कारों की मान्यताएं हमे रुदिवादी सोच लगने लगी थी |हमारे परिवारों का विखंडन हो रहा था और हमारा भविष्य ये सब बखूबी से समझ रहा था |हम उसे मेड इन जापान चीन अमरीका इंग्लॅण्ड के सपने दिखा रहे थे और वही समान वह उपयोग में भी लारहा था |शायद हम पर उसके संस्कारों के लिए समय नही था हम सोचते थे जो गुण हममे है वे ही कमोवेश बच्चे मे होंगे और थोड़ा बहुत और आगे गया तो बाद मे देख लेंगे |
स्कूल में हमारे इस भविष्य को ढेर सारे डेज़ मिले किसी को फ्रंड्स डे कहा गया किसी को मदर या फादर डे और सभ्यता का विकास इतनी तेजी से हुआ की हमने संत वेलेनटाइन को सेक्स के अग्र दूत के रूप में प्रस्तुत कर डाला और उसके नाम पर हम केवल वासनाओं और शारीरिक सुख के खेलों की तरह उलझ कर रह गए कैसी विडम्बना थी ये |स्कूल के कोर्से में इंग्लिश मूल्यों की भरमार से सबका व्यक्तित्व तेजी से बदलने लगा
समाज वह निंदा सुख का सबसे बड़ा उदहारण था वह किसी न किसी व्यवस्थाको लेकर हमारे इस युवा का आलोचक बना रहा ,फिर उसे अपने स्वार्थी और मतलबी दोस्तों से भारतीय संस्कारों के अनुरूप उम्मीदें थी मगर वे तो आधुनिक सभ्यता के मित्र थे जो रूकना और फ़र्ज़ का अर्थ जानते ही नही थे |वहां भी वह छला गया मगर अन्दर ही अन्दर उसमे निराशा रिणात्मकता के भाव पनपने लगे और उसका अद्वतीय ज्ञान और विकास उसका साथ नहीं दे पाया |
आज मै सोचता हूँ की मेरा युवा एक सहज प्रेम और सोहार्द का वातावरण और एसे ही सम्बन्ध चाहता है मगर समाज और आधुनिक सोच पर इसके लिए समय नहीं है |आज निराकरण के लिए हम कुछ बिन्दु ले सकते है शायद वह एसे इस त्रासदी से कुछ हुड तक बचा सके |
- यूवा को केवल अपनी अपरमित शक्ति को जगाना होगा
- विस्वास और धैर्य से अपने मूल लक्ष्य को तय करके उसकी क्रिया विधि को क्रियान्वित करना होगा तथा भारतीय आदर्श और नई सोच तथा तकनीक को स्थान देना होगा
- नव परिवर्तन को समझ कर उसमें भी परिवर्तन होना चाहिए मगर मेरे मत में व्यवहारिक और संबंधों का आधार भारतीय संस्कारों के अनुरूप हुआ तो उसे ज्यादा सफलता मिल सकती है
- वह शान्ति सोहार्द और मैत्री की परिभाषाये समझ कर अपनी सीमायें तय करे
- आप जो वास्तव में बो रहे है वही आपके बच्चे आपको मई ब्याज के लौटने वाले है
- जीवन के सिद्धांतों में कुछ आदर्श अवश्य बनाइये अन्यथा आप जिनके लिए जो आदर्श विपरीत कार्य कररहे है ये उन्हें ही एक दिन पतन के मार्ग पर खड़ा कर देंगें |
- जीवन में संस्कारों कासकूं जान्ने के लिए निस्वार्थ भाव से अपने सकारात्मक कर्मों को जगह दीजिये जीवन स्वयं आनंद बन जाएगा |
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