हर आदमी अपनी नई उलझनों के लिए उनकासही हल चाहता है |उसके माप दंडों में अपने लिए बने नियम अलगहै जबकि वह दूसरों के लिएवह अलग नियमों और आदर्शों की बात करता है |यह सत्य है कि दुनिया में कोई भीव्यक्ति ऐसा नहीं है जो पूर्णत: पाप से मुक्त हो, आज हम जब दूर से किसी दूसरे पर उंगली उठाते है तो हमारी अपनीअंतरात्मा हमे हमारी ही तमाम कमियां गिनाने लगती है, मगर हम केवल दूसरे की आलोचना में ही लगे रहते है, परिणाम हम अपने आप में परिवर्तन किए बगैर दूसरें के ऋणात्मक चिंतन में ही अपना बहुमूल्य समय बरबादकरने के सिवा और कुछ नहीकर पाते हम पर रह्जाता है केवल दुःख अफसोस और हार की छटपटाहट |यह भीहमारे असंतोष का महत्वपूर्ण कारण हो जाता है |
समय तकनीक और आविष्कारों से जीवन को नई दिशाए मिलती रहती है और जीवन में पीढियां उनसे अपनारास्ता बना कर चलती भी रहती है मित्रों जो इन विषयों से सामंजस्य बना कर अपनी ग्राह्यता बनाये रखता है वहसमय के साथ अमर और इतिहास के सुनहरी प्रष्टों में स्थान पा पाता है ,जबकि हम बहुत जल्दी में इन गुणों कोभुला जाते है परिणाम हमे समय तकनीक और आविष्कारों से कुछ मिल ही नहीं पाता हम सबसे हार जाते हैक्योकि हमारी गृह्याता ही ख़त्म हो चुकी होती है |आदमी की ताक़त उसकी शारीरिक क्षमता और उसकी सोचसीमित ही होती है जिसके लिए उसमे ग्राह्यता ,कठिन परिश्रम और जीवन भर सीखने का गुण चाहिए होता है, यदिइनमे कुछ भी कम हुआ तो हमारी हार निश्चित हो जाती है |
, उपाय कुछ भी हो सकते है |
- अपने आप पर पूर्ण विश्ववास सफलता कॉ पहला अध्याय है |ध्यान रहे कि विश्ववास आपके कठिन परिश्रमसे पैदा किया हुआ हो |
- जीवन भर कुछ न कुछ सीखने की दृष्टी से अपने को क्रिया शील बनाए रखें अन्यथा आप एक आलोचक रहजायेंगे जिसपर सीखने को कुछ बाकी ही नहीं रह्जाता ,यह जीवन के पतन और आपके दुःख कॉ करक भीहो जाता है |
- अपनी गलतियों से सबक लें न कि स्वयं को बड़ा बता कर अपनी हर बात जायज ठहराने में वक्त बरबाद करेंइससे आपका अपराध बोध और प्रबल होगा |
- जीवन से केवल लक्ष्य की आकांक्षा रखें ,बहुत से लक्ष्यों से आपकी जीत की संभावना कम हो जायेगी |
- दूसरे कि आलोचना की बजाय उसके व्यक्तित्व को सोच का विषय ना मानकर और अधिक परिश्रम से जीतहासिल करने का प्रयत्न करें|
- जीवन में अपने लिए और दूसरों के लिए एक से मूल्य स्थापित करें |
- जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टी कोण बनाए रखें क्योकि यहाँ से जीवन को नई चेतना और शान्ति मिलनेका अध्याय आरम्भ होता है
- आलोचना आपका बल दूसरे में स्थापित कर देती है अतैव केवल अपना विकास और सुधार आपकी सोच केविषय रहने चाहिए
" अति बढ़ने कि चाह में जाता जीवन बीत"
"चल मुसाफिर तेरी मंजिल दूर है तो क्या हुआ "