Friday, July 31, 2009

इस शहर में हर सख्श परेशान सा क्यों है?

आज हर आदमी बहुत जल्दी में है उसे बहुत से काम पूरे करने है ,वह भाग रहा है अपनी पूरी ताक़त से उसकासबसे बड़ा उद्देश्य यही है कि वह सबमे श्रेष्ठ सिद्ध कर पाए अपने आप को ,इस उधेड़ बुन में उसका सम्पूर्ण जीवनस्वाहा हो जाता है और वह अशांत अस्थिर और अधूरा ही रह जाता है| यहाँ बहुत से कारण हो सकते है उसके इसअधूरे व्यक्तित्व के जिनमे उसकी सोच उसका अति महत्वाकांक्षी होना और उसकेजीवन की प्राथमिकताओं काक्रम, ये सब महत्व पूर्णकरक है|यहाँ यह प्रश्न अधिक महत्व रखता है कि उसके इकट्ठे किए गए कारक कितनेअर्थों में उसके अपने हो पाए है |

हर आदमी अपनी नई उलझनों के लिए उनकासही हल चाहता है |उसके माप दंडों में अपने लिए बने नियम अलगहै जबकि वह दूसरों के लिएवह अलग नियमों और आदर्शों की बात करता है |यह सत्य है कि दुनिया में कोई भीव्यक्ति ऐसा नहीं है जो पूर्णत: पाप से मुक्त हो, आज हम जब दूर से किसी दूसरे पर उंगली उठाते है तो हमारी अपनीअंतरात्मा हमे हमारी ही तमाम कमियां गिनाने लगती है, मगर हम केवल दूसरे की आलोचना में ही लगे रहते है, परिणाम हम अपने आप में परिवर्तन किए बगैर दूसरें के ऋणात्मक चिंतन में ही अपना बहुमूल्य समय बरबादकरने के सिवा और कुछ नहीकर पाते हम पर रह्जाता है केवल दुःख अफसोस और हार की छटपटाहट |यह भीहमारे असंतोष का महत्वपूर्ण कारण हो जाता है |

समय तकनीक और आविष्कारों से जीवन को नई दिशाए मिलती रहती है और जीवन में पीढियां उनसे अपनारास्ता बना कर चलती भी रहती है मित्रों जो इन विषयों से सामंजस्य बना कर अपनी ग्राह्यता बनाये रखता है वहसमय के साथ अमर और इतिहास के सुनहरी प्रष्टों में स्थान पा पाता है ,जबकि हम बहुत जल्दी में इन गुणों कोभुला जाते है परिणाम हमे समय तकनीक और आविष्कारों से कुछ मिल ही नहीं पाता हम सबसे हार जाते हैक्योकि हमारी गृह्याता ही ख़त्म हो चुकी होती है |आदमी की ताक़त उसकी शारीरिक क्षमता और उसकी सोचसीमित ही होती है जिसके लिए उसमे ग्राह्यता ,कठिन परिश्रम और जीवन भर सीखने का गुण चाहिए होता है, यदिइनमे कुछ भी कम हुआ तो हमारी हार निश्चित हो जाती है |

, उपाय कुछ भी हो सकते है |
  • अपने आप पर पूर्ण विश्ववास सफलता कॉ पहला अध्याय है |ध्यान रहे कि विश्ववास आपके कठिन परिश्रमसे पैदा किया हुआ हो |
  • जीवन भर कुछ कुछ सीखने की दृष्टी से अपने को क्रिया शील बनाए रखें अन्यथा आप एक आलोचक रहजायेंगे जिसपर सीखने को कुछ बाकी ही नहीं रह्जाता ,यह जीवन के पतन और आपके दुःख कॉ करक भीहो जाता है |
  • अपनी गलतियों से सबक लें कि स्वयं को बड़ा बता कर अपनी हर बात जायज ठहराने में वक्त बरबाद करेंइससे आपका अपराध बोध और प्रबल होगा |
  • जीवन से केवल लक्ष्य की आकांक्षा रखें ,बहुत से लक्ष्यों से आपकी जीत की संभावना कम हो जायेगी |
  • दूसरे कि आलोचना की बजाय उसके व्यक्तित्व को सोच का विषय ना मानकर और अधिक परिश्रम से जीतहासिल करने का प्रयत्न करें|
  • जीवन में अपने लिए और दूसरों के लिए एक से मूल्य स्थापित करें |
  • जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टी कोण बनाए रखें क्योकि यहाँ से जीवन को नई चेतना और शान्ति मिलनेका अध्याय आरम्भ होता है
  • आलोचना आपका बल दूसरे में स्थापित कर देती है अतैव केवल अपना विकास और सुधार आपकी सोच केविषय रहने चाहिए
और अंत में दो लाइन अवश्य याद रक्खें |

" अति बढ़ने कि चाह में जाता जीवन बीत"

"चल मुसाफिर तेरी मंजिल दूर है तो क्या हुआ "

Tuesday, July 28, 2009

सीख दें,मगर यहाँ सोच कर कि यही आपका भविष्य है

प्रत्यक्ष अनुभव का सत्य और मेरे प्रश्न

माँ, स्कूल और हमारे अपने किसी भी इंसान कि पहली पाठ शाला होती है ,जहाँ से बाल्य काल में बच्चा जीवन मूल्यों कि पहली शुरुआत करता है यहीं से उसके मन के आधार बनते और बिगड़ते है बच्चे सबसे अधिक प्रभाव उसकी माँ का पड़ता है ,और वह उसके अनुसार ही अपनी जीवन धारणाये बनाने लगता है सामान्यत: माँ अपने व्यवहार और जीवन शैली के अनुरूप बच्चे को नवीन ज्ञान से अवगत कराती है ,वह यह जानती है कि कल उसके मूल्य और आदर्श बच्चेको ही समाज में लेजाने होंगे मेरा मानना है कि यही संस्कार किसी समाज के उत्थान के लिए विशेष भूमिका अदा करते है
यहाँ मै उस माँ उस स्कूल उस अपने की बात कर रहा हूँ जो अपने स्वार्थों और कुछ थोड़ी सी वाह वाही केलिए बच्चो कि जिंदगी दांव पर लगाए बैठी है, उनका नकारात्मक व्यवहार बच्चे सीख रहे है और शायद वे इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि मान रहे है जबकि इसके परिणाम भुगतने के लिए वेही इसके मुख्य पात्र होंगे, वे इस सत्य को मानाने को तैयार नहीं है
आज हम जिस युग में है वहां हर स्तर पर केवल प्रतियोगिता रहगई है और हर आदमी अपने को श्रेष्ठ साबित करने में दूसरे को छोटा बनाने का प्रयास कर रहा है ,चाहे वह पिता हो या अन्य संबन्धी उनके लिए केवल यह महत्व पूर्ण है कि वे अपने आप कोश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए किसी की चरित्र हत्या ,अपमान झूठी कहानियाँ , और नयी नयी कमियाँ बता कर स्वयं को श्रेष्ठ बताने का प्रयास करते रहें बच्चो के अबोध मन पर इसका कोई मान दंड नहीं है की यह झूठ और नकारात्मक सत्य भी हो सकता है पिता के परिश्रम से कमाए धन से पढ़े लिखे योग्य बच्चे पिता कॉ ही तिरस्कार करने लगे तो त्रुटी का जिम्मेदार कौन होगा ,केवल माँ ही इसके लिए दायी है
वर्त्तमान में आज बदलते समय के साथ जब सब कुछ प्रोफेशनल होगया है वहां एक नयी शुरुआत दिखाई देरही है कि माँ ही बच्चे को शैशव काल से ही अपने परायों काभेद बताने लगी है ,पिता से अधिक स्नेह शील बनने के चक्कर में उसने पिता कि तमाम कमियों को उजागर कर बच्चो को अपनी और लेने का प्रयास अवश्य किया है ,परिणाम प्रत्यक्ष होने लगे बच्चों को संपत्ति ,बटवारे ,साधनों का वास्ता ,तथा हर पल एक नयी कसम देकर विश्वास दिलाया गया की केवल यही सत्य है ,उनका सच्चा हितैषी शायद कोई है ही नही ,इन सब बातों से भ्रमित बच्चों ने पिता को जीवन भर तिरस्कृत रखा ,संबंधों में केवल वेलोग थे जो उनके रक्त संबन्धी थे ,वे सबसे कट कर अपने निजी स्वार्थों के लिए जीने के आदी भी हो गए केवल उनका सम्बन्ध माँ और उनके मातृ परिवार से रहगया दुःख ,मृत्यु , और यातनाएं चाहे पिता या उनके परिवार से सम्बंधित हुई वह भी उनके शोक का विषय नहीं बन पाई उनमे भी वे और संपत्ति का बँटवारा देखते रहे पिता के संबंधों के दुःख की तो बात शायद उनके लिए केवल तुलना सुख और अपने अहम् की तुष्टि का विषय था अपार धन पर बैठने के बाद भी वे हमेशा निर्धन और सहानुभूति की भीख माँगते दिखे ,बच्चे इस व्यवहार को भी अच्छे से सीखते रहे पित्र ऋण और समाज और संबंधों को परखने की दृष्टी उनकी अपनी ही माँ ने उनसे छीन ली थी वे अन्धानुकरण में पिता और उनके परिवार को न्याय देना ही भूल गए थे कैसी विडम्बना है की जिसका जीवन और मृत्युदौनों तिरस्कृत रही हो उसे मरने के बाद भी शान्ति कैसे मिलेगी यह प्रश्न चिह्न था?


आदमी लाइन नहीं है जिसे बार बार छोटा किया जा सके, तमाम संबंधों के साथ जीता हुआ आदमी समय के साथ अपने किए का ही फल भोगता है कुछ समय की शान्ति और बड़ा बनाने के लिए वह जिन मूल्यों को ध्वस्त करता है वे उसके जीवन काल में ही उसका मुंह चिडाने लगते है वह अपने चरित्र व्यक्तित्व और कमियों से बेखबर केवल आलोचना और नकारात्मक भाव का पर्याय बन जाते है बनावटी जवानी ,धन का घमंड ,और दुनिया को नीचा बता कर स्वयं को श्रेष्ठ बताने की कला भी एक दिन समय से हार कर ऐसा अभिशाप बन जाता है जो हर पल खून के आंसू रुलाता है उनके अपने सम्बन्ध मृत प्रायः हो जाते है और फिर उनसे वैमनस्यता ,घृणा और तिरस्कार सीखे बच्चे उनपर भी यही प्रयोग कर बैठते है औरसमय की फ़िल्म में एक बड़ा अपराध बोध उनका अन्तिम सत्य हो जाता है और हो भी क्यो न क्योकि उन्होंने समाज ,पिता ,और संबंधों को न्याय दिया ही कहाँ था


समय बहुमूल्य है ,प्रयोग सीखें

जीवन की बहु मूल्य धरोहर और ईश्वर का सबसे ख़ूबसूरत उपहार समय ही तो था जीवन में यह समय ही तो था जो सबसे गिना चुना साँसों के हिसाब से चल रहा था ,वह भी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक गति से ,जिसके लिए ना तो अलग अलग टाइम वाच बनी थी न उसका कोई लोकल और स्टैण्डर्ड टाइम माप था वह हर युग और अनादी से एक रफ्तार से अनवरत चल रहा था हर युग में हर प्राणी ने अपने हिसाब से उसका उपयोग और विनाश किया .और किसी के हाथ में इतिहास के सुनहरी अक्षर आयें तो किसी के हाथ में केवल गुमनामी ,अंधेरें और पूर्ण यातनाए आयी

यहाँ प्रश्न यह था कि वह अमूल्य निधि दौनों के हाथ में बराबर थी ,और दौनों ही बड़े धनवान् थे ,मगर एक अंधेरों में गुम हो गया ,और एक इतिहास के लिए दीर्घजीवी क्यों बना रहा ?प्रश्न के उत्तर में केवल यही निष्कर्ष सामने आया कि एक ने इसे बहुमूल्य मान कर उसका उपयोग पूरी ताकत और मेहनत से किया ,उसके लिए उसने तमाम सुखों को बलिदान किया, उसने सर्वाधिक महत्व केवल समय को दिया और समय ने उसे बहुमूल्य समझ कर इतिहास के पन्नो में अमर बना दिया दूसरी तरफ़ समय की इस अमूल्य निधि को बोरियत,साधनों और भोग्य का सामन बना देने वाला विचार खड़ा रहा उसने जीवन को अपनी पूर्ण सीमा तक उपभोग और ऐय्याशी का विषय बना डाला और समय ने उसे इस तरह हराया कि उसका नमोनिशाँ तक मिटा डाला ,एक ऐसे गहन अन्धकार में धकेल दिया जहाँ से उसका अस्तित्व तक मिट गया ,इसका अपराध केवल यह था कि उसने समय कि बहुमूल्यता को भुला कर उसका उपहास उडाया था


मित्रों जीवन और प्रकृति में क्षमा शब्द है ही नहीं ,ईश्वर ने मनुष्य को दो महत्वपूर्ण उपहार दिए है एक जीवन दूसरा समय और इंसान इन्हीं दो संपत्तियों से बहुत बड़ा धनवान था ,मगर उसने यदि इनका प्रयोग तुच्छ मानसिकताओं और केवल शरीर के लिए किया तो निसंदेह समय ने उसे सहज ही भुला दिया है

समाज ,शरीर और परिवार के सुख आपका उद्देश्य हो ही नहीं सकते ,आप इन्हें केवल उतना महत्व दें जितना आवश्यक है, इन सबके विचारों से समय बरबाद करना ही पाप है हम अपने थोड़े समय के सुख के लिए समय की जो दीर्घ राशि गंवातें है यही हमारा सबसे बड़ा अपराध है व्यर्थ कर्म का दीर्घ चिंतन ही हमारा अपराध बोध बनता है

  • समय के में विशेष यह ध्यान रखा जाए

    समय कॉ पूर्ण उपयोग किया जाए
  • शरीर साधनों और सांसारिक आपूर्तियों के साथ मन के और आत्मा के लिए भी इसका उपयोग बराबर से करते रहना चाहिए
  • हर पल कुछ नया सीखने की जिज्ञासु प्रुवृति अपने आप में पैदा करें और नया करने कॉ संकल्प बनाए जिससे समाज परिवार और आत्मा की आंतरिक भूख शांत हो सके
  • समय के हर पल को जीना सीखना भी एक कला है
  • समय सारिणी आपको समयका महत्व बताने में अहम् भूमिका अदा कर सकती है आप केवल एक बार एक कठोर निर्णय कर अपने आप को बांधने की कोशिश करें
  • समयके सार्थक उपयोगमें ही ईश्वर कॉ वास है

हर पल जीवन में ,समय और उसके सार्थक प्रयोग का भाव अधूरा दिख रहा है ,उसे पूर्ण करने के लिए एक नए संकल्प की आवश्यकता है समय का प्रयोग आपको अवश्य सिद्ध करदेगा मगर आवश्यकता इस बात की है की आप यह समझ लें कि आपका हर निर्णय आपके लिए इनवेस्टमेंट हो ना की एक ऐसा ऋण जिसे आप स्वयं मरकर भी पूरा न कर सकेंआपका हर समय के सम्बन्ध कॉ निर्णय आपको एक नयी स्फूर्ति प्रदान करे न कि एक बड़ा अपराध बोध

Friday, July 24, 2009

आप कौन से पुत्र ,पुत्री है ? कौन अपना है ये पता तो चले

कोई भी किसी के लिए अपना पराया है ,
रिश्तों के उजाले में हर आदमी साया है

सम्पूर्ण जीवन आदमी इस खोज में लगा देता है कि उसका अपना कौन है ,वह पुत्र, पुत्री ,पत्नी ,परिवार और समाजमें उलझा अनवरत यह प्रयत्न करता रहता है कि उसकी आत्मा वास्तविक अपनत्व को प्राप्त कर पाए और उनलोगो की खोज कर पाए जो उसके अपनत्व की कसौटी पर खरा उतर पाए |धर्म ग्रन्थ मानते है पुत्र, पुत्री निम्नश्रेणियां रखते है |आप तय करें आप कहाँ है |
  • प्रथम पुत्र, पुत्री जो पिता माता और उनके संबंधों की गहनता समझ कर उनका निर्वाह पूरी ताकत से करताहै, वह बोलने चलने औरप्रत्येक क्रिया के जीवन निर्णयों में पिता माता की मानसिकता को ध्यान रखता हैवह उनके लिए कुछ भी करता है |
  • द्वतीय था उदासीन पुत्र या पुत्री जो केवल अपनी जरूरतों और अपनी प्राप्तियों से मतलब रखता है ,वह जानताहै कि पिता माता उसकी किस सीमा तक मदद कर सकते है ,इसके अलावा वह उदासीन बना रहता है उसेनिर्णयों के मामल में केवल अपने ऊपर विशवास होता है
  • रिणानुबंध्ही पुत्र या पुत्री ऐसा व्यक्ति केवल अपनी ऋण अदायगी से सम्बन्ध रखता है और जब उसकाहिसाब पूरा हो जाता है तो वह स्वतः अलग हो जाता है |
  • प्रतिद्वंदी पुत्रया पुत्री यह केवल हर लम्हे अपने पिता माता की कमियां उन्हें बताता रहता है और हर काम मेंउनका प्रतिद्वंदी बना रहता है ,हर कदम पर यह अपनी अकर्मण्यता कॉ दोष अपने पिता माता पर लगातारहता है ,और बार बार उन्हें दोषारोपित करना इसका स्वभाव हो जाता है |
  • शत्रु पुत्र या पुत्री यह ऐसा इंसान होता है जो जीते जी पिता माता से अपनी संपत्ति बाँट कर उसके हक में करदेने की जिदकरताहै और समय समय पर उनसे शत्रु वत व्यवहार करता है|
कहने कॉ अभिप्रायः यह कि हम जिन्हें अपना निकटस्थ मानते है वे भी कितने अंशों तक हमारे हो पाते है यहउनका व्यावहार बताता है |
सारे संबंद्ध आपसे अपनी आपूर्यियों के बाद अपने मायने बदल लेते है , समय परिस्थितयां और आपकीउपलब्धियां रिश्तों कि एहमियत को तय करने लगती है ,लोगो के विचार में आपका कद बदलने लगता है और आपअपराध बोध और दुःख में डूबने लगते है |
सारी समस्याओं कि जड़ यहाँ आपकी अपनी महत्वाकांक्षाएं होती है आपके स्वप्न ,आपके भविष्य के प्रति तयकिया रास्ता ही आपको परे शान करने लगता है |
आपकी आत्मा को अपना समझ कर जीवन की तमाम खुशियाँ आप से ही ढूढने वाला जीवन की वह सौगात है, जो केवल ईश्वर ही दे सकता है, ये बात और है की आपको इसके लिए कई जन्मों कॉ इन्तजार करना पड़े |

आवश्यकता इस बात कि है कि आप स्वयं एक करता कॉ भाव लेकर चलें जीवन के किसी विषय से आप अधिकस्वप्न संजोयें ,जीवन को वर्त्तमान कॉ कर्तव्य मान कर आदर्शों और मान दंडों के अर्न्तगत सवारें शायद आपकोआपका वह मार्ग मिल जाए जहाँ आप अपनी चिर शान्ति प्राप्त कर सकें |

Thursday, July 23, 2009

संगत के परिणाम

बसि कुसंग चाहत कुशल ,रहिमन यह अफसोस
मान घट्यो समुद्र को जो रावन बसा पड़ोस


बुरे आदमी की संगत का असर यह होता हैं कि व्यक्ति कितना ही बड़ा क्यों ना हो उसकी प्रतिष्ठा और सम्मान कोछति अवश्य पहुँचती हैं ,रावण के पड़ोस में रहने के कारण ही विशाल समुद्र कि मर्यादाओं को छोटे छोटे वानरों नेआधार हीन बना डाला|अर्थात बुरे व्यक्ति के प्रभाव आपने व्यक्तित्व को अंधेरे और पतन के रास्ते पर ले जा सकतेहै आपको बुरे व्यक्तियों से बच कर रहना चाहिए |

जीवन ऐसा ही सत्य है जिसपर हर व्यक्ति और सम्बन्ध पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है |हम अपने समाज के सम्बन्धऔर मित्रों ,परिवार के लोगो ,एवं नए नए लोगों से मिलने के लिए बचैन रहते है ,शायद हमें यह लगता है कि बहुतबड़े समूह के बगैर हम अपना सामाजिक स्तर और सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं बचा सकते हैं |हमे तथाकथितआधुनिक होने के लिए मित्र समूह कि आवश्यकता हैं जो आवरण ,आदतों और पाश्चात्य रंग में डूबे समाज मेंअपनी अलग पहचान बनाए रखते हैं ये बात और है कि उनका आकलन समाज सही रूप में करता है या नहीं |

हमइस खोज में समय नहीं लगाते और केवल उस तात्कालिक समय में हमे जो अच्छा लगा उसके लिए आतुर होकरदौड़ने केअलावा हम पर कुछ नहीं होता ,परिणाम धीरे धीरे हम अपने वास्तविक स्वरुप और आदर्शों को भी बदलडालते है ये सोचे बगैर कि हम जिनका अनुशरण कर रहें हैं उनपर मूल्यों व्यक्तित्व ,एवं गुणों के नाम पर कुछ है हीनहीं ,वे तो अपने खाली व्यक्तित्व,हार ,और जीवन कि तमाम असफलताओं के कारण इस रूप में प्रस्तुत हुए हैहम उनका चयन करके स्वयं अपने संस्कार ,गुण , और वसीयतों कॉ धर्म अपनी प्राप्तियों के लिए बाजी पर लगाबैठे है |मित्रों हम जिन लोगों से प्रभावित होते है ,उनका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर अवश्यपड़ता है और धीरे धीरे हम उसी मार्ग पर चलाने लगते हैं जिस मार्ग पर सामने वाले चल रहे होते हैं |जब हमकिसीका अनुशरण करते है तो हमारा व्यक्तित्व तो स्वयं ख़त्म हो जाता है लेकिन हम केवल कुछ पल किखानुभुती केलिए कुछ भी कराने को तैयार हो जाते हैं परिणाम जीवन घोर निराशा और विनाश कॉ रूप ले लेता हैंजिसमे हमारी शान्ति ,सब्र और संतोष सब छिन्न भिन्न हो जाता है |


मित्रो जीवन में किसी के संपर्क में आने से पहले ,उनके साथ मेल जोल बढ़ाने और करीब आने से पहले एक बार उनलोगों का आकलन अवश्य करें उनके व्यक्तित्व की
उपलब्धियों के साथ उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का लेखा जोखाअवश्य रखें आपके व्यक्तित्व पर चाहते न चाहते इन सबका प्रभाव अवश्य पडेगा ,आपको सुनिश्चित करना होगाकि आप जीवन से जैसी उम्मीद लगाए बैठे है क्या वे आपके नए संबंधों से प्रभावित तो नहीं हो रहे है | आपकोअपने परिवार , मित्र ,और अपनों के अन्तरंग संबंधों पर पुनर्विचार कर यह जानना होगा कि क्या वे व्यवहारआदर्शों और सत्य के निकट हैं कि नहीं, कहीं ये सम्बन्ध भी आपसे समय के अनुसार अपना मूल्य तो नहीं खो रहे|

जीवन को अच्छे संपर्क दे ,जीवन के हर सम्बन्ध को गुण , धर्म और भविष्य के आईने में देखने वाला स्वयं महानहो जाता है |

Wednesday, July 22, 2009

कृतज्ञ हूँ आपका, आप पर समय है परमार्थ का

कृतज्ञ हूँ आपका
अति व्यस्तता के साथ आज समय ही कहाँ है, सब पर इन विचारों के चिंतन का ,आप ऐसे ही सहयोग एवं विषयोंपर सुझाव दीजिये मेरा प्रयास है एक दिन हम अपने उद्देश्य को कामो वेश अवश्य पूरा कर लेंगे |आज हम सबबहुत व्यस्त है ,और हम पर अपनी समस्याओं ,कार्य और जल्दी जल्दी संतोष बटोरने के चक्कर में अपनी हीशान्ति खोते जा रहे है |परन्तु कुछ लोग अभी जीवित है ,वे भीड़ नहीं है ,और ऐसे ही मित्रों को मै अपना ह्रदयगतधन्यवाद दे रहा हूँ |शायद आपका यह सहयोग एक बड़ा समूह बनकर मुझे और अधिक और अच्छा लिखने कीप्रेरणा देता रहेगा |पुनः प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग हेतु धन्यवाद |

मित्रों मुझे अपने लिए न प्रसंशा चाहिए न कुछ लोभ के कारण मेने यह मार्ग चुना है मुझे अपने जैसे ही विचारों वाले समूह की जरूरत है जिससे में आप लोगो के सहयोग से समाज के उस भटकते युवा को एक आइना दिखा सकूँ और निर्णय उसपर ही छोड़ दूँ |शायद इस विचार से मैआपके साथ जीवन को यह बता सकूंगा मै जीवित था| विचार शून्यता और स्वार्थो के वाशी भूत झूल रहे मृत समाज की तरह मैंने जीवन को अपने स्वार्थों का विषय नहीं बनने दिया है |

मेरे साथ भीड़ नहीं है| क्योकि सच कड़वा और कठिन होता है, मगर मै अपने कुछ एक सहयोगियों से प्रसन्न हूँ और मुझे मालूम है कि एक दिन यही सोच एक बड़ा सशक्त समूह बन कर समाज के युवा को नव दिशा अवश्य देगी |आप सहयोग बनाए रखिये |

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध ,
जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका भी अपराध

Tuesday, July 21, 2009

हीन और सर्वोत्कृष्ट ,इम्फीरियरिटी या सुपीरियरिटी

हीन और सर्वोत्कृष्ट ,इम्फीरियरिटी या सुपीरियरिटी

हमने हमेशा यही चाहा की हम
सर्वोत्कृष्ट रहें |समाज हमारा परिवेश और हम जिस ओर अपने कर्तव्य क्षेत्र में होवहां भी हमें श्रेष्ठ समझा जाए |समाज,व्यक्ति और सम्पूर्ण क्षेत्र में हमसे अधिक गुणवान् कोई हो|हम सौंदर्यसाधनों और समाज की सारी आपूर्तियों में बे मिसाल हों,हम सबसे अच्छे और बल शाली हों |हम जो स्वप्न खड़ेकरें उन्हें बिना परिश्रम के सहज ही प्राप्त करलें ,साथ ही हमारी तुलना किसीसे की जा सके ,हम विजयी रहें औरसब हमसे हारते चले जाएँ |

अनादी काल से आदमी की इस इच्छा ने उसका संतोष सब्र और सहजता सब कुछ छीन लिया है, वह सदैव इसीखोज में लगा रहता है कि वह ज्ञान ,कर्म , बल ,और सम्पूर्णता से अतुलनीय बना रहे ,जिसपर समय परिस्थितिऔर बाह्य प्रभाव सदैव प्रभाव हीन रहे |ये सब केवल स्वप्न और एक ऐसी कल्पना है जो कभी पूरी नहीं हो पाई हैमगर आदमी ने हर काल और समय पर यही मांग अवश्य की है|

इस मांग और स्वप्न ने उससे हमेशा उसका संतोष और सब्र छीना है, जबकि वह स्वयं अतुलित बल ,साधनों औरगुणों का खजाना बना रहा, उसने अपने सुसुप्त बल और संसाधनों को प्राप्त करने की बजाय केवल दूसरे कॉ ऐसाचिंतन किया जिसमे केवल लाइनों को मिटा कर छोटा करने कॉ प्रयत्न था, वह स्वयं के उत्थान से अधिक दूसरों काआलोचक बना रहा ,परिणाम उसका बल उसकी शक्तियां और उसका क्रोध स्वयं के लिए ही घातक सिद्ध हुआ
,
ध्यान रहे कि

  • हमारी संपूर्ण शक्तियां सीमित है एवं संसार को एक सुपर पावर हर पल नया मार्ग दे रही है उसके भाव कोसमझ कर हमें अपना रास्ता तय करना है |
  • सुपीरियरिटी ,इम्फीरियारिटी में केवल हीन, इम्फीरियारिटी ही होती है हम केवल मन को बहलाने के लिएस्वयं को सुपीरियर बताना चाहते है यह हमारी कमी है|
  • स्वयं कि तुलना करकेहम अपनी शक्तियों और उपलब्धताओं कॉ अपमान कर रहे है |
  • सबसे सहज और प्रेम का भाव बनाए रखिये ,और जीवन में कुछ कुछ नया सीखने कि चाहत बनाए रखियेइससे आपके व्यक्तित्व में समयानुकूल पोसेतिवेधनात्मक परिवर्तन होंगे |
जीवन में हम सब एक ही शक्ति कॉ उदय हैं और यदि हम उसमे भी भेद भाव करने कॉ सहस दिखा रहे हैं तो निश्चितही हमे अभी बहुत सी यातनाएं झेलने को तैयार हो जाना चाहिए |

Saturday, July 18, 2009

दूसरों के प्रति धनात्मक सोच रखें

दूसरों के प्रति धनात्मक सोच रखें

हम प्रायः यह किसी के व्यवहार में आने से पहले एक आध बार के व्यवहार से ही अपनी सोच बना बैठते है की अमुक आदमी अच्छा या ख़राब है जबकि उसके आगामी व्यवहार उसके आत्मिक गुण हम देख ही नहीं पाते सामान्यतः हमे जिसकी जरूरत होती है ,या जो हमारे मन मष्तिष्क की सोच की के अनुरूप होता है ,जिसकी हम कल्पना करते रहते है ,जिसमे हमारी दबी पिसी भावनाएं जुडी रहती है ,ऐसे अनेक कारक हमें आदमी, परिस्थितियों के बारे में अपना मत बनाने में सहायक भूमिका बनाए रहते है ,फिर तो जल्दी विश्वास करना पूर्णता से उसके लिए प्रयत्न करना और बार बार दूसरे से अपेक्षा करना की वह हमारे साथ बहुत अच्छा व्यवहार करे यहीं से हमारे शांत जीवन में तूफान के आरम्भ की तेज हवाएं चलने लगती हैं

जाति ,धर्म , और समाज की सोच से आदमी के मन मष्तिष्क पर प्रभाव अवश्य पङता है मगर केवल इन्हीं से जीवन कॉ मार्ग बनाने की चाहना रखने वाले आत्मा से बहुत कमजोर और और जीवन को ऋणात्मक अंदाज़ में जीने वाले बन जाते है जिससे आगामी पीढी के संस्कार तक नहीं बच पाते ,परिणाम जीवन एक अधूरी प्यास लिए ही ख़त्म हो जाता है और आप अपने से अधिक दूसरे को अधिक महत्वपूर्ण बना देते है

समाज और हमारे जीवन में जो भी घटनाएँ समय के साथ हमारे सामने आती है उनसे पहले हम उस सम्बन्ध में अपनी राय तय करलेते है और यदि ये निर्णय जल्दी बाजी कॉ हुआ तो तो गहम अपराध बोध कॉ सामना हमे स्वयं को करना होता है अब आप बताइये की आप अपनी कमियों के कारण दूसरे को अपराधी ठहराते है और जब अपने आपको देखते है तो स्वयं आपकी अंतरात्मा आपको भी बराबर कॉ गुनेहगार मान है ,फिर दूसरे पर दोषारोपण क्यों

आवश्यकता इस बात कि है की हम निम्न को याद रखें तो शायद अपने आपको थोडा बहुत जीवन शैली को सुधारने कॉ अवसर अवश्य मिल जाएगा

  • जीवन के प्रति सकारात्मक सोच रखें ,जो अपवाद है उन्हें केवल घृणाकॉ विषय माने क्योकि अपवाद जीवन में धानात्मक सोच को ख़त्म कर देते है
  • किसी के प्रति विपरीत सोच न बनाए .जो ग़लत और सही हो उसे अपनी आत्मा के सामने रखकर चिंतन करें
  • पूर्व से अपने आपको किसी भी सम्बन्ध के बारे में निर्णायक न बनाये जिसके बारे में आपने कुछ जाना ही नहीं है आप अपनी ख़राब धारणाओं से बचकर चलें क्योकि यही आपके जीवन चक्र को अधिक नकारात्मक सिद्धः करती है आप एक लंबे समय तक विचार करके और जान कर अपना व्यवहार तय करें
  • जाति धर्मं और और पुरानी कहानियों से ऋणात्मक पहलू के स्थान पर नई और सकारात्मक सोच रखे जो मानवीय आदर्शों के लिए श्रेष्ठ हो
  • समय और अपने विचार दौनो ही परिस्थिति ,क्रियान्वयन ,और पूर्णता के लिए आवश्यक है
  • जो सुना देखा और अनुभव किया हो यदि वह ग़लत लगे तो समय कॉ इन्तजार अवश्य करें सत्य का वास्तविक रूप समय के साथ साफ़ हो जाएगा बिना परीक्षण किए अपनी राय मत बनाइए
  • जीवन के को इतना सस्ता मत बनाइए वे बार बार अपने आधार खोते रहे उन्हें स्थिरता और लक्ष्य चाहिए जो स्वयं को एक दिन अवश्य सिद्ध कर देंगे

Sunday, July 12, 2009

आधुनिकता या खुले पन की सीमा तय करें

आधुनिकता या खुले पन की सीमा तय करें

आज हमारा समाज ख़ुद को आधुनिक बताने की चेष्टा में स्वयं भ्रमित है |बच्चों से वह हमेशा यह आकांक्षा करता रहा कि वे मूल्यों संस्कृति और वसीयत के कलेवर में लिपटे अपने जीवन को संयमित रूप से गुजारें और इसी बात के लिए उन्हें स्वयं को बार बार सिद्ध करना होता है जबकि हम अपनी और समाज की क्रियान्वयानता और चिंतन पर कुछ सोच ही नहीं पाते |आज नई पीढी में जो कुछ हमे जो कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ,जिसके हम आलोचक हैं, ये सब इस पीढी ने हम और हमारे समाज से ही सीखा है ,फिर बार बार उन्हें ही ग़लत क्यों ठहराया जा रहा है |बचपन से ही अपनी स्वतंत्रता नई सोच और नए परिवर्तन रखने कॉ दावा करने वाले विचार एकाएक परिवर्तित कैसे हो गए ,शायद हम अपने स्वयं के लिए बहुत उदार विचारों और ओपन माइंड की परिभाषा थे मगर अपने बहुत नजदीकी लोगों से अन्तर मन से यह अपेक्षा करते रहे की वे परम्परा वादी रहें बस यही सोच हमारे दौहरे व्यक्तित्व का पर्याय बन गई और जो प्रभाव नई पीढी को हम देना चाहते थे वे अपूर्ण और प्रभाव हीन हो गए |

अबोध शिशु का तोतली आवाज में गाली देना ,टीवी और संगीत की धुनों पर बेतहाशा डांस करना ,छोटी छोटी सी बात में झूठ बोलना ,डाकू और असामाजिक लोगों की नक़ल करना तथा विज्ञापनों के कलाकारों जैसे आवरण और आचार विचार बनाने की चेष्टा करने को जो मुक्त कंठ से सराहते थे ,आज वे ही इन सब चीजो को बहुत ग़लत और अशोभनीय मान रहें है |अब बताइये की कमी किसकी मानी जाए ?
दूसरी ओर हम अपने आपको नए अंदाज में प्रस्तुत करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं ,उम्र ओर हार्मोनल परिवर्तन के इस दौर में हम सब कुछ प्रेक्टिकल करके देखना चाहते हैं ,हम उन चीजों के प्रति बहुत लालायित है कल तक जिन्हें परदे में ओर लाज शर्म ओर तहजीब के नाम पर छुपा के रखा जाता था ,ओर प्रयोग वादिता के इस दौर में हम उनका प्रयोग भी अपने गुणों ओर व्यक्तित्व के हिसाब से करने लगे ,परिणाम यह हुआ की हम संतोष के चरम को जीना चाहते थे मगर मन, भय ,अधूरा ज्ञान ,पुरातन सोच ,ओर सामजिक ताना बाना हमारे सहज संतोष में बाधक बना रहा |दूर दर्शन ,कंप्यूटर ,ओर उनपर बिछी लाखों साइटों ने हमारे दबे पिसे भावों को ओर अधिक प्रबल ओर उत्तेजनाओं से भर डाला ,हमसे ओर अधिक ओर अधिक की मांग करते हुए यह उम्मीद की गई की हम भी सुपर मेन की तरह अधिक शक्ति शाली दिखें यहाँ हम यह भूल गए कि जो हम कंप्यूटर या टीवी मे देख रहे थे वहा निरंतर वही दिखाता है जो हम देखना चाहते है मगर वहां उस दृश्य में समय थकावट ओर उकताहट नहीं दिखती जो हमें हतोत्साहित करती, वरन केवल एक अनवरत उत्साह दिखता है ,वहां प्रेम ,सौहार्द ,नर्म भावों की जगह केवल वीभत्सता ओर निर्दयता का चित्रण होता है ,ओर वाह रे विकास उसे हम आधुनिकता मानते है |फिर धीरे धीरे सबमे वृद्धि की आशा करते जाते है ओर स्वयं अपनी शान्ति धैर्य ओर बल खो बैठते है |फिर यह सब बड़ा अपराध बोध ओर बोझ जैसा लगाने लगता है ओर हमे तुष्टि के स्थान पर केवल चिड चिडा पन ओर क्रोध सहना पड़ता है ख़ुद पर |
आधुनिक संसाधनों ने एक ओर हमारी दबी पिसी मानसिकताओं को बड़ी बेरहमी से उभारा हम उनकी आपूर्तियों में यह भूल गए की हर क्रियान्वयन की सीमायें होती है ,हमारे साथ समय ओर निश्चित बल जुड़ा है ओर वह भी सीमा मय ही है |हमे अपने कर्म के बाद उसकी समाप्ति काभाव झेलना है ,ओर हमारी यह फ़िल्म एंड के बाद भी चालू रहना है अर्थात अब उसे वस्तिविकताओं की कड़वाहट से गुजरना होगा |
मित्रों जीवन जीना ताक़त बल ओर समय रहित उत्तेजना नहीं है बल्कि वह तो एक परिष्कृत कला है ,जिसमे आदमी को वास्तविकताओं में जीते हुए अपने आपको संतोष के चरम पर लेजाना होता है| क्रिया ओर क्रियाओं के बाद भी एक बड़े प्रेम ,सौहार्द ओर भविष्य के प्रति ओर अधिक आशान्वित होना यही इस कला का उत्कृष्ट बिन्दु है ,यहाँ सम्पूर्ण जीवन पूरे जोश ओर खुशी का मायने होता है ,यहाँ आपको विकास ओर स्वर्णिम भविष्य देने की चाह होती है यहाँ बिना कुछ मांगे सम्पूर्ण समर्पण होता है एक ऐसा समर्पण जिसमे जीवन का हर कर्म स्वतः धर्म बन जाता है |यही है भारतीय उपभोग वाद का धार्मिक ओर साँस्कृतिक पहलू |
समय की मान्यताओं में हम जब तक आग में नई नई विधियों से आहुति डालते रहेंगे आग शांत नहीं होगी ,हम उपयोग वाद के सिद्धांत पर केवल कुछ समय थोड़े बल ओर परिश्रम के साथ जीवन को पहचानने की कोशिश करें फिल्मी कहानियों ओर चित्रों का अनुशरण करने से पहले ये समझ ले कि जो हमे ये सब दिखा रहा है वो समय ,बल , ओर काल्पनिक या बे जान साधन है जबकि आप पर एक सवेदन शील मन है जो आपको हर क्रिया पर + ओर -ठहरा रहा है आपको अपनी सीमाए तय कर जीवन के बड़े उत्सव की तैय्यारी करनी है|
शेष फिर

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...