Sunday, November 6, 2016

Success will be yours one day एक दिन सफलता तुम्हारी ही होगी

Success will be yours one day
एक दिन सफलता तुम्हारी ही होगी
एक सत्य घटना
श्रेय का परिवार मध्यम ही था, दो बहिनें बड़ी थी शादी हो चुकी थी, तीन  भाई और थे, उनकी अपनी अपनी दुनिया थी, पिता रिटायर ,माँ घर में ही काम काज करती थी और वह बहुत आधुनिकता के साथ समाज में उन्हें उनके काम के लिए काफी सराहना मिलती थी ,कम्प्यूटर का एक  डिप्लोमा  करने के बाद  श्रेय  और पढने का अवसर ही नहीं मिला ,शादी जबरन करदी गई ,दो बच्चों  के साथ वह एक संघर्ष भरी दुनियां में अकेला था ,सबके साथ होते हुए भी, श्रेय ने एक कम्प्यूट घर में ही लगाकर कुछ कुछ काम चालू किया , परिवार की  आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी  भी नहीं थी ,बस गुजारा चल  जाता था । पूरे परिवार में सारे भाई अपने अपने कामों में लगे ,अपना अपना खर्च खुद उठा रहे थे पिता को जब तब जिसकी सहायता करनी होती थी करते ही रहते थे , कुल मिला कर सब एक साथ रहते हुए भी अपने अपने परिवारों के साथ सीमित आय में  गुजारा कररहे थे |

श्रेय की उम्र भी ३० -३२ के करीब थी एक बच्ची और बच्चा था उसके पास आय के स्त्रोत दिन ब दिन  खर्चों के सामने काम होते जा रहे थे परिवार के सदस्योंकी सहानुभूति भी अब ख़त्म हो गई थी खर्चा जीवन को उदासीन और नैराश्य के उच्चतम शिखर पर पहुँचा  गया था , माता पिता को छोड़कर सब लोग उसे तिरस्कृत दृष्टी से देखते थे एक अन बोला अपमान सहा था श्रेय ने  परिवारके सदस्यों  तक से ,अकेले कम्प्यूटर से आने वाली आय बहुत कम  पड़ने लगी थी ,, अनेकों उपाय और व्यवसाय किये उसने ,मगर सारे उपाय व्यर्थ हुए , साधन हीनता ने उसे  अवश्य सिखा  दियाथा कि अपने कम्प्यूटर के ख़राब होजाने पर उसकी  मरम्मत खुद कैसे करे ,कैसे डाटा सेव  करे, कैसे नष्ट डाटा को पुनः प्राप्त करे, और कैसे अपना काम बिना ज्यादा खर्च किये पूरा करें ,कैसे प्रोग्रेममिंग ,साइट्स बनाना और नया कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया पूरी की जाए ,और कैसे हार्डवेयर का काम घर में ही करके कम्प्युटर को दुरस्त किया जाए , ये सब उसे उसकी साधन हीनता ने हीसिखाया और समझाया था ।

एक बार श्रेय परेशान होकर अपने गुरु के पास पंहुचा , बहुत परेशान और हारा हुआ सा ,उसने कहा अब मैं  सब कुछ छोड़कर   व्यवसाय करना चाहता हूँ , कोई  कच्चा उत्पाद दिल्ली से  लाया जाएगा और उसे पैक्ड करके घर घर बेचने का प्रयत्न करूंगा , वैसे पहले भी मैं  कई व्यवसायों में असफल होता रहा हूँ ,गुरुने कहना आरंभ किया पुत्र आप अपनी समस्याओं से इतना  प्रभावित हो कि  आप अपनी  कार्यकारी शक्ति का भी प्रयोग नहीं कर पा रहे है परिणाम  सफलता भी प्रश्न वाचक होगी है , अब आप यह समझलो कि आप जिस कार्य में पारंगत हो उसमे ही काम चालूकरें आपको जो थोड़ा बहुत कम्प्युटर आता है ,आप उसकी ही कोई छोटी नॉकरी करो और स्वयंको सकारात्मक व्यक्तित्व में बदलो , हर आदमी आपसे बड़ा विद्वान और कुछ सीखने योग्य है ,इसे ध्यान रखना एक नया जीवन तुम्हारा इंतज़ार कररहा है |


ईश्वर का इतना शुक्र था कि श्रेय को दिल्ली में एक कप्यूटर कंपनी में ८००० रूपए माह पर नॉकरी मिलगई , कुछ समय बाद गुरुने कहा पुत्र आप अपने प्रयास जारी रखे इस प्रकार नई  नोकरियों मेजाते हुए वह १२०००,१८०००,
२४००० , ४००००  ७०००० रुपयों के वेतन पर काम करता रहा और आज वह एक कंपनी का प्रमुख विश्लेषक है जिसका काम जटिलतम , नष्ट  प्रायः कम्यूटर से डाटा निकालने का है, आज अनेक देशों की यात्रा करके स्वयं को सिद्ध कर चुका  है हमारा श्रेय , परिवार समाज में उसका एक अलग और ऊँचा स्थान है

 मनुष्य का उत्थान और पतन उसकी ही सोच का एक साश्वत परिणाम  है, वह स्वयं को जैसा बनाना चाहता है उसमें उसकी सोच ,क्रियान्वयन ,एवम  भविष्य और अतीतके विचार उसे प्रभावित करते रहते है , हर कार्य नियोजित और निश्चित प्रक्रिया में होना चाहिए ऐसा मानने वाले यह नहीं जानते कि , जब भविष्य की घटनाएं , उम्र , परिस्थितियां और भविष्य का हर पल अनिश्चित है और उसमे धनात्मक और ऋणात्मक चिंतन के दो द्वार है ,तो हर बार हम ऋणात्मकता के द्वार खोलकर कही स्वयं को नाकारा सिद्ध तो नहीं कररहे है ,यदि समय की मान्यता के साथ आपने स्वयं को धनात्मक आधारों पर सिद्ध  नहीं किया तो आप सफलताको केवल एक स्वप्न मानकर व्यवहार करते रहेंगे और हर बार जब  का ध्यान आएगा वह हमें मुंह चिढ़ाती दिखेगी, क्योकि हम अपनी सफलता के उद्देश्य से अधिक अपनी समस्याओं को महत्व देते रहे |


सम्पूर्ण परिस्थितियां सामान्य  होने पर ही आप अपनी सफलता के उद्देश्य के लिए  प्रयास रत होंगे, या सम्पूर्ण समाज कार्य क्षेत्र परिस्थिति सामान्य होजाने पर ही जीवन की विकास यात्रा चालू कीजाएगी, ये सारे विचार  और जीवन को  धोखा देने  वाले है क्योकि जीवन कभी  भी सहज और  शांत होता ही नहीं है, हर रोज एक नया अध्याय  अधिक प्रबल होकर अपनी परिस्थिति समस्या को पूर्ण करने की मांग करेगा और जीवन का आधार भूत उद्देश्य फिर हारने लगेगा, आपकी आवश्यकता यह हो कि  आप पूरी कठोरता के साथ अपने आपको  नियोजन के नियमों में बांधें ,साथ ही हर उद्देश्य के लिए विकल्प जरूर रखें, जिसने भी  विपरीत स्थितियों में  स्वयं को सिद्ध किया है ,उसे  जीवन का पूर्ण संतोष अवश्य प्राप्त होगा, क्योकि अपने कार्य  से  मूल्यांकन में यदि सहज संतोष  प्राप्त होना और किसी से  शिकायत न  होना ,ही इस बात का प्रतीक है कि ,  आप जीवन को भी सफल सिद्ध कर चुके है चुके है|

हजारों रुकावटें , अनिश्चितताएं ,  अज्ञात भविष्य ,और  अपने ऋणात्मक आकलन के शिकार हम बहुधा अपने  लक्ष्य के लिये ही बहुत सारी  समस्याएं पैदा कर  लेते है ,अपने आपको  यह समझने का प्रयत्न अवश्य करें कि जीवन में जिन समस्याओं से हम स्वयं की क्रियान्वयनता ख़त्म करके खड़े होने को है ,वह स्वयं एक  हार की निशानी है ,किसीभी हालात में अपने आपको दोषारोपित किये बगैर स्वयं को सिद्ध करना ही जीवन का सही मायने है ,अपनेआपको कृतसंकल्पित रखें ,एवं लक्ष्य की और बढ़ने का प्रयत्न अवश्य करें ,जिससे बाह्य ऋणात्मकता  अधिक प्रभावित नहीं कर सकेगी |

 लक्ष्य के साथ समाज अपने परिवेश से सामंजस्य बनाना भी अति आवश्यक है यदि आप अपने आस पास के लोगों से सामंजस्य स्थापित नहीं करना जानते तो निश्चिततः उनकी  नकारात्मकता हम पर असर करने लगेगी रामतीर्थ से एक शिष्य ने पूछा  कि  एक मित्र मुझ पर थूकता है, गुरु ने कहा दूर हट  जाओ ,वो फिर भी थूके तो ,और दूर हट  जाओ वो और आगे आके थूके तो गुरु बोले पुत्र आपके पास आपका लक्ष्य है ,और वह मशक से तो थूक नहीं रहा है ,अपना सब्र  बनाये रखो, उसकी गति विधि आपको अपने मन बुद्धि से हटा न पायी तो आपका सफल होना तय है ,अपने लक्ष्य का ध्यान और एक बड़े सब्र के साथ आपको अपना लक्ष्य अवश्य मिल सकता है |



निम्न पर भी ध्यान रखने का प्रयत्न करें

  • स्वयं को सकारात्मक रखने का प्रयत्न करें , किसी भी परिस्थिति में स्वयं को नकारात्मक न होने दें अन्यथा आने वाला समय भी उस नकारात्मकता का शिकार हो जाएगा | 
  • जीवन में जिस लक्ष्य के प्रति हम संकल्पित है उसे हर परिस्थिति में पूर्ण करने का भाव रखे यह आपको अपने संकल्प में जीत अवश्य देगा | 
  • स्वयं के लिए एक निर्धारित योजना अवश्य रखें और हर हाल में उसे पूर्ण करने का प्रयत्न अवश्य करें क्योकि यही योजना आपके समयबद्ध विकास को गति देगी | 
  • लक्ष्य के क्रियान्वयन के लिए एक विकल्प अवश्य रखें जो अपरिहार्य स्थिति में आपको सिद्ध करने में अधिक महत्व पूर्ण सिद्ध होगा 
  •  सकारात्मक चिंतन करते समय दूसरों से स्वयं को छोटा सिद्ध करने का प्रयत्न न करें अन्यथा आपअपने लक्ष्य से भटक कर अपनी नकारात्मकता पर पहुँच जाएंगे | 
  • अपनी सुविधा और अपनी रूचि के लिए अपने लक्ष्य से समायोजन नहीं करे ,आपयह जान लें की जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि स्वयं के लक्ष्य को पूर्ण करना ही है | 
  • क्रोध एवं दूसरों का आंकलन बिलकुल नहीं करें क्योकि दौनों ही से आप अपने लक्ष्य से दूर  होकर वैसी ही नाकारात्मकताएं पैदा करलेंगे जो सामने वाले में है | 
  • नकारात्मकता और सकारात्मकता का भेद समय समय पर अपने जीवन मूल्यों के साथ परखते रहें जो हमे बहुत अच्छा लगता है वो हमेशा ठीक नहीं होता है | 
  • गरीबी ,अभावहीनता , परिवार एवं जाति  की निम्नता ,आपके मार्ग में बाधक नहीं हो सकती ,बशर्ते आप स्वयं का चिंतन सकारात्मक रूप में करसकें | 
  • दूसरों की कमियां को दर्शाने का प्रयत्न न करें स्वयं उनकी आलोचनाओं से बचकर रहें इससे आपके व्यक्तित्व में सकारात्मकता स्वयं आने लगेगी | 
  • आप दूसरों की दृष्टी में क्या है यदि यह सकारात्मक है तो आपके लक्ष्यों और उपलब्धियों में स्वयं सकारात्मकता आजायेगी |




Sunday, September 4, 2016

सफलता का मूल मंत्र है स्वयं का साक्षी भाव self witness is basic mantra of success


 सफलता का मूल मंत्र है स्वयं का साक्षी  भाव

self witness is basic mantra of success

मेरा जन्म राजिस्थान के बहुत बड़े राज घराने में हुआ था हजारों नॉकर चाकर दास -दासियाँ और बड़े बड़े राज प्रासाद थे मुझ पर ,रोज बहुत बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था , सुन्दर अति योग्य नृत्यकियॉं अपनी  अपनी कला को ऐसे जीती थी जैसे भगवान् ने उनको सीधा कला के सारे मानदंड देकर पैदा कर दिया हो , युद्ध , वीरता , पुरूस्कार सजा और आक्रमण तथा बंदी बनाकर फांसी क़त्ल और खजाने लूटते लूटते हम सब अपनी आधार भूत दया ,करुणा और अपरिग्रह जैसे शब्दों से काफी दूर निकल आये थे| 

 हर अच्छी लगने वाली चीज लूट ली जाए , हर ख़ूबसूरत वस्तु उनकी अपनी हो और न्याय का आशय वो हो जो हमे अच्छा लगे , इन्ही संस्कारों में पला बढा मैं एक निरंकुश ,विलासी बाद दिमाग और खुद को सर्व शक्तिमान मानने वाला था ,मैं राजा का एक मात्र पुत्र था, एक बार एक युद्ध में मुझे भी जाना पड़ा ,बड़ी वीरता और शौर्य से लड़ी मैंने अपनी लड़ाई और युद्ध जीत कर घर लौटा , सारे राज्य में बड़ी खुशियां मनाई गई और शराब के नशे में  मैं अचानक एक हाथी से फिसल गया  और जबतक संभल पाता कि  एक हाथी के पाँव से चोटिल होगया ,पूरा बदन दर्द से भर गया, मालूम यह हुआ की मेरा कमर से नीचे का बदन सुन्न हो गया है , वैद्य  हकीम दुआ करने वाले पूजा करने वाले सब लगे थे , कही से तो कुछ अंतर आजाये ,मगर सब बेकार हुआ ,मैं  एक अपाहिज की तरह महल के एक कौन में डाल दिया गया , पिता को सलाह दी गई की आप दूसरी शादी करके वंश बढ़ाये काफी कुछ  ना हां करके वो तैयार होगये | समय बढ़ता गया अब तो दो वर्ष भी होगये थे मुझे अपनी हालात पर रोते रोते , बेहद कमजोर ,लाचार और अपनी मौत को पल पल जीता  हुआ मैं | 

अपने अकेले कमरेमे अलग अलग भाव, मेरे दुश्मन बन गए थे, कभी मुझे लगता की मुझे खुश करने में असमर्थ एक ख़ूबसूरत दासी को पिता ने दंड स्वरुप हाथी के पैर  से कुचलवा दिया ,हजारों दास - दासियों को अपनी हवस में हमने फांसी चढ़ावा दीथी  ,अनेक वीरों को बहुत अच्छा प्रदर्शन करता देख मैंने अपने हाथों मौत के घात उतार दिया था ,क्योकि वे मुझसे अधिक वीर थे , हर अच्छी चीज का उपयोग मैं  ही करूँ ,इस हविश ने मुझे एक क़ातिल ,दुरा चारी  और सिरफिरे राजकुमार की तरह पेश कर दिया था ,और मैं  इससे भी अधिक आतातायी की शक़्ल  में नजर आने लगा था खुद को | 

डॉक्टर वैद्य हकीमों ने सारी आशाएं छोड़ दी थी ,दासियाँ दास सेवक सेवा में लगे थे, मगर कोई ज्यादा फर्क दिखाई नहीं देता था ,   एक परिवर्तन था  कि खाना प्रतिबंधित था , शराब मांस ,गरिष्ट भोजन बंद हो गया था और दुनिया के सारे भगवान् मुझे अपनी और आकृष्ट कररहे थे ,आत्मा का साक्षी भाव  अंतिम समय देख कर पूर्ण रूपेण जाग चूका था , हर कर्म की सजा जीवन के इस रूप में देखते देखते मैं थक गया था , मैं  अपने दुष्कर्मों का एक मात्र गवाह  बना ,अपने दुष्कर्मों का प्रायश्चित कररहा था ,दिन ब दिन  अपने कर्मों से घृणा और अपने कर्मों की सीढ़ी पर चढ़ कर देखने पर अगला भविष्य मुझे बड़ा अन्धकार मय  दिखाई दे रहा था ,अब  मैं स्वयंका हर कर्त्तव्य पर आंकलन कररहा था ,कि अब कोई भूल न हो हर वक्त अपना मूल्यांकन करते   हुए मन बार बार अपने किये  पर रुआंसा हो जाता था, कई कसमें खाता था क्षमा मांगता था,मगर अब क्या॥ 

एक दिन एक फ़क़ीर राजा से आज्ञा मांग कर  मेरे पास पहुंचा ,वह मुझसे बोला  कि 
 पुत्र ईश्वर क्या है  --- मैंने कहा सत्कर्म और आदर्श ,
 वो बोला दुष्कर्म क्या है मैंने कहा वो तो अकाट्य भोग्य है  ,जिसे सबको भुगतना है ,
 उसने कहा जीवनक्या है ,मैंने  कहा  स्वयं को सिद्ध करने का माध्यम है , 
उसने कहा फिर भ्रम क्या था ,मैंने कहा लालच , जीवन को न समझ पाना और खुद को अमर समझना ही भ्रम था , उसने कहा कि सर्व शक्तिमान कौन है मैंने कहा  ईश्वर , खुदा ,और प्रकृति,और  आत्मा तथा  सकारात्मक भाव ,
 उसने  पूछा मैं ईश्वर को नहीं मानता, तो किसको मानूँ सबसे शक्तिशाली ,मैंने कहा हे देव आप अपने कर्म सकारात्मक भाव , और अपने उस साक्षी भाव को  ईश्वर मानते है और हर पल उसमे ही विद्यमान है वही ईश्वर है और उसके लिए सब कुछ संभव है , 
साधु हंसा और बोला पिछले२ वर्षों   में तुमने जीवन का क्या अनुभव सीखा ,मैंने कहा  देव ऐसा लगा कि मैं  एक राक्षस योनि से निकालकर ,देव योनि में आगया हूँ ,और अपने दुष्कर्मों के साथ मारने जा रहा हूँ 
 साधु में स्वयं को कैसे और किस विधि से जागृत किया जा सकता है , मैंने कहा वह  साक्षी भाव है  ,जिसके निरंतर चिंतन से मैं इस सोच तक आया हूँ ,
साधु ने कहा  पुत्र ठीक है मैं  भी तुम्हारे साक्षी भाव में तुम्हे बचाने की आर्त नाद सुनकर आयाहूं , यह कहकर साधु ने मुझे एक पाउडर दिया कड़वा ,मेरे पूरे शरीर में कपकपाहट पैदा हो गई ,साधु ने चिल्लाकर कहा उठो और दरवाजा खोलो , मैं  कापते हुए उठा और दरवाजा खोल दिया, साधु ने कहाअब तुम ठीक हो गए हो पुत्र, इस साक्षी भाव के साथ ही जीना ,कि  परमात्मा हर पल तुम्हारे साथ तुम्हारा आंकलन कररहा है ,यह कहकर साधू चला गया ,और मैं  एक कुशल शासक बना जीवन की हर स्थिति भाव से अपने साक्षी भाव के साथ जीवित हूँ, हर पल की सजगता के साथ, कि कहीं कोई कर्म मुझे असफल  सिद्ध न कर दे || 

जीवन को जीकर राम, कृष्ण  ने यह सिद्ध कर दिया, की यदि आदर्शों के  शिखर पर अपने मानदंड बनादिये जाए तो इंसान भी स्वयं ईश्वर बन सकता है , यहाँ जीवन का वह भाव काम करता है ,जिसे परमार्थ की तराजू ने सबसे ऊपर तौला है, वह तो यही सीखा पाया कि, आप जितना सुखी और प्रसन्न रहना चाहते हो, आप दूसरों को उतना ही प्रसन्नकरना सीखिये ,अन्यथा आप स्वयं की स्वयं से दौड़ में भी हार जायेगे, क्योकि आपकी आत्मा ही सिद्ध कर देगी कि आप यह रेस हार चुके है | क्योकि जब भी मैं  कुछ करता हूँ ,मेरा साक्षी भाव निर्णायक होकर मुझ पर अपना फैसला सुना देता है ,हो सकता है कि तात्कालिक स्थिति में वह फैसला  मुझे सुनाई न दे, मगर एक दिन वह अपनी सत्यता के साथ मेरा ही भोग्य बन कर मुझे मिल जाता है | 



 जीने का तरीका ही हमे सुख दुःख जय पराजय और दुःख और तमाम नकारात्मकताओं के द्वार पर लेजाकर खड़ा करदेता है हमारे सामने सफलताएं  खड़ी हमारा इंतज़ार कररही होती है और हम  उनका ध्यान ही नहीं रखपाते क्योकि जीवन की प्राथमिकताएं  ही हम ध्यान में नहीं रख पाते , जीवन के बाह्य तत्वों पर ही उलझ कर सत्य को पूर्णतः भुला देते है हमारे सामने झूठे संबंद्ध , शारीरिक आपूर्तियां , भौतिक संसाधन , और कैसे भी जो अच्छा लगा वो छीनने की पृवृत्ति इतनी प्रबल होती है की हम केवल स्वयं तक सीमित होकर रह जाते है , हमारा अपना मन आत्मा और आदर्शों का यहाँ तो सवाल ही नहीं उठता , कालांतर में जब , जीवन अपने उत्तरार्ध को जाने को होता है तब हर कर्म आपसे  अपना औचित्य प्रश्न दागता है , परन्तु जीवन पर कुछ होता ही नहीं है उत्तर के रूप में , क्योकि वह अगले जन्म में भी अपने साक्षी भाव से दूर जन्म लेता ररहेगा  रहेगा किन्तु कभी उस सत्य तक नहीं पहुँच पायेगा जिसके लिए उसने जन्म लिया था ,यदा -कदा जीवन आप्टे कठोर ठोकरों से इस भाव को अवश्य समझा देता है | 


जीवन के समक्ष बहुत सारी  उपलब्धियां है ,कुछ बेस्वाद , बेरंग,  भाव शून्य सत्य है ,जो बताते है कि यही जीवन का वास्तविक सत्य है ,जिसमें आपको ही रंग भरने है मगर दूसरी ओर  रंग ,मस्ती,  वासनाएं , राग ,द्वेष, और विलासिताओंका साम्राज्य है नशीली भाव भंगिमाएं है रूप ,सौंदर्य ,  काम- क्रोध -लोभ- मोह  मत्सर और अनगिनत विमोहित करने वाले विषय बिखरे पड़े है तो ऐसे में सत्य आदर्श और शून्य ता का प्रश्न ही कहा है, यहाँ तो संसार को पूर्ण भाव से जानने का भाव का मतलब है संसार का जितना उपयोग हो करलें , जीवन पर उसका ही अधिकार है और यही उसका चिरंजीवी भविष्य है , जबकि इसमें कुछ भी सत्य है ही नहीं ,जब वासनाओं , काम क्रोध मोह लोभ के तूफ़ान उतार पर होते है तब जीवन शेष ही कहाँ होता है  वहां तो जाता हुआ समय सबकुछ में एक ऐसी आग लगा कर जाता है जिसका पश्चाताप का धुंआ देर तक धधकता रहता है , और जीवन अपनी गलतियों को अपने साक्षी भाव से देखता रहता है | 


 भाव का आशय है अपने  हर कर्त्तव्य  क्रियान्वयन और जीवन की गति पर पैनी नजर बनाये रखें , हर पल हर घड़ी एक नए क्रियान्वयन की मांग करता है मन अपनी आपूर्तियों  की और सोचता है और आत्मा अपने सत्य और उसके परिणामों का भय दिखाती है , भावा वेश में कभी मन जीतता है तो आत्मा बिना समय गवाये उसे आरोपी सिद्ध कर देती है और
  जैसे ही वह आदर्श कार्यों में आती है वह उसे प्रोत्साहित करती है इतना प्रोत्साहन जिसे दुनिया की किसी चीज से नही खरीद जा सकेगा , इसी लिए  नानक, महावीर , रामतीर्थ विवेक नन्द अरस्तु , टालस्टाय ,ईसा मोहम्मद , साईं और अनगिनत ऐसे संत फ़कीर हुए जिन्होंने स्वयं को साक्षी भाव के बंधन से इतना अच्छीतरह बाँध लिया था कि  वे स्वयं ईश्वर होगये ,क्योकि उनका साक्षी भाव उन्हें जिस दिशा में कर्त्तव्य के लिए प्रेरित करता रहा जिस ओर कोई भूला भटक ही जा पाता है, और यही उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि भी थी | 


         इन सबका भी प्रयोग करके देखें 


  • कर्म के दो भाग है प्रथम शरीर के लिए और दूसरा आत्मा के लिए ,ध्यान रहे कि   आप  न तो शरीर है, न ही आप मन है, जो आपको देख रहा है, निरंतर आपका आंकलन कररहा है, वह  अलग है ,जो आपको जन्मते मरते और उसके बाद भी देखता रहता है उसकी उपस्थिति को महसूस कीजिये ,की वह आपके हर कर्त्तव्य में साथ है | 
  •  आपको स्वयम को सिद्ध करने के लिए भेजा गया है न कि  खो जाने के लिए आप यदि अपना लक्ष्य भूल कर दुनियां की रंग बिरंगी मृग मरीचिकाओं में उलझे रह गए तो निसंदेह आपको पश्चाताप करना होगा 
  • सुबह से शाम तक अपने किये हर कार्य का आंकलन करें , सांसारिक भोग्य का प्रयोग उतना ही हो जितना आवश्यक है , उसके बाद अपने पूर्ण लक्ष्य के लिए स्वयं पर नजर रखें।
  • संकल्प की साधना में आपका साक्षी भाव एकमात्र साधन है जो उसे पूर्ण या अपूर्ण कर सकता है क्योकि वही आपको स्वयं के बंधन में बांधने में सक्षम है | 
  • साधना एकाग्रता और संकल्प आपके साक्षी भाव का ही नाम है आप जब संकल्प को अपनी अंतरात्मा के सामने रखकर समय  बद्ध  आकलन करने लगते है तब साक्षी भाव अपना थोड़ा सा सहारा देता अवश्य है | 
  • ध्यान रहे साक्षी भाव  में न तो दुःख होता है न सुख होता है वह तो एक अडिग न्यायाधीश की तरह  स्थिर अडिग निष्प्रभावी भाव से हर पहलू का निर्णय करता रहता है यह बिना जाने की वह आपको अच्छा लगा या बुरा | 
  • आप सतत स्वयं के साक्षी भाव की निगरानी में है जो आपके  सी सी  टीवी कैमरा से हजारों गुना परिष्कृत है जो आगे के भाव और सोच की सकारात्मकता और नकारात्मकता का भी बखूबी से आंकलन कर देता है | 
  • स्वयं के साक्षी भाव को इतना प्रबल बनाएं कि आपके व्यक्तित्व की सारी नाकारात्मकताएं उसके सामने अपना अस्तित्व खोने लगें ध्यान रहे यही अभ्यास आपको एक दिन उच्च शिखर पर लेजायेगा | 
  • आपको केवल अपने साक्षी भाव पर नजर रखने की आवश्यकता है जैसे कोई हर पल आपकी निगरानी कररहा है अच्छा बुरा  जैसा भी कुछ है वो देख रहा है निर्णय अवश्य देगा बिना प्रभावित हुए | 
  • आपका साक्षी भाव आपको प्रसंशा दे ने लगे तो आप निश्चित समझिये की आपको दुनियां की सबसे अनमोल  सौगात प्राप्त हो गई है क्योंकि जीवन का परम संतोष साक्षी भाव के सकारात्मक होने में ही है| 

 मनुष्य के जन्म से पहले और मृत्यु केबाद तक उसका साक्षी भाव जागृत रहता है वह आपके सीसीटीवी कैमरों से लाखोंगुना परिष्कृत है जो आपके अतीत की हर कर्म की सजा और भविष्य की चेतना को कर्म से पूर्व ही चेतावनी देने लगती है , एक बार आपने इसकी उपस्थिति को पहिचान लिया तो सच मानिये आपको समय ऐसा ही सिद्ध करदेगा जैसे सफलता के हर मान दंड भगवान् ने आपके लिए ही बनाये हों

    Sunday, August 28, 2016

    सुख और दुःख क्या है what is pleasure and pain

    सुख और दुःख क्या है  what is pleasure and pain

    प्रशांत बहुत बड़ा वैज्ञानिक था अन्वेषण खोज और मानवीय सेवा के लिए कृत संकल्पित , वेतन बहुत ज्यादा नहीं था,  बस    पत्नी   और पुत्री   का काम चल जाता था , पत्नी भी पास के  स्कूल   में शिक्षिका थी, बच्चे  उसके ही विद्यालय में पढ़ते  थे  , पैतृक घर से भी आवश्यक सहयोग समय समय पर मिलता रहता था , कहने का मतलब यह की परिवार संतोष जनक स्थिति में अपना काम चला रहा था , और यदाकदा पड़ने वाले कामों के लिए बचत भी खूब कर ली जाती थी, पैतृक मकान में निवास करते थे वे सब लोग , पैतृक मकान अब विकसित क्षेत्र में आने लगा था, बाजार माल और नए और बड़े  निर्माणों ने  घर  चारों और से घेर लिया था ,नयी बड़ी बड़ी गाड़ियों में अत्याधिक सजी धजी युवतियां लंबी लंबी गाड़ियों से निकलने लगी, और इन सबको देख कर प्रशांत  के मन में कुछ दिनों से मन में एक हीन भावना घर करनेलगी थीं ,अब हर घटना को वो गरीबी , अभावों , दुःख दर्द और तिरस्कार की नजर से देखने लगा ,अपना घर अपनी उपलब्धियां अपनी  आय उसे दुःख का कारण दिखाई देने  लगी,  सम्पूर्ण घर के परिवेश को आक्रोश अशांति और नकारात्मकता से भर कर खड़ा हो गया वह ,शान्ति सहयोग और सुख की पराकाष्ठा पर रहने वाला परिवार अचानक बिखरने के कगार पर आगया |
    एक दिन नैराश्य के महा सागर में डूबते हुए उसने पास बहती हुई नदी में छलांग लगा दी ,पेशन , और सारे लाभों का अधिकार पत्नी को देने को लिख भी गया था वह |२.६ वर्ष   बाद प्रशांत को जब कुछ याद आया तो उसने स्वयं को एक जंगली कबीले के रहवासियों के साथ खूब प्रसन्न पाया स्वयं को  वह   तंदुरुस्त दिखाई पड़ा, गौर वर्ण चिकनी मांसल देह और केवल एक लंगोटी पहने हुए ,  पूर्व की तुलना में लगभग २० किलो वजन बढ  गया था, उसे कबीले के सरदार ने बताया आपको गहरी बेहोशी की हालात में  हमने नदी से निकाला,  कबाइलियों ने चिकित्सा की , ओझाओं ने खून रस पेड़ पत्तियों के रस काढ़े और गोबर ,मिट्टी और लेपों से निरंतर इलाज किया गया ,मालिश ,लेप और दुआओं से आप जल्दी ही ठीक होगये ,ओझाओं ने बताया की आप भगवान् के भेजे हुए दूत है ,तब से आपको कबीले के मुखिया के यहाँ ही रखा गया, निरंतर सेवा में पूरा कबीला एक रहा है , इस २. वषों में आपको कोई नहीं हरा पाया ,आपने बड़े बड़े वीरों को हरा कर हमे बड़ी जीतें दिलाई है , आप बेहद खुश , प्रसन्न और ज़िंदा दिली से रहने वाले रहें है ,आज ऐसा लगता है की आपको याददाश्त याद  आने के साथ वो नैसर्गिक प्रसन्नता चिंता की लकीरों में बदलते देखा है हमने,
    प्रशांत ने स्वयं को कबीले का सरदार और एक बड़े साम्राज्य का सम्राट मान कर गौरवान्वित समझा ,आज पूरा कबीला उसके सामने नत  मस्तक खड़ा था , प्रशांत को सुख दुःख और उनके उद्भव बिंदु का सहज ही पता चल गया था वह जान गया था सुख और दुःख केवल कल्पनाओं के सहारे बढ़ने और घटने वाले सत्य है , घोर यातना और नाकारात्मकताएं यह बताने को पर्याप्त होती है कि  कहीं पास ही सहज सुरम्य और सुखद समय के आने की आहाट पास है है |

    दुःख और सुख तो हमारी चेतना की सकारात्मकता और नकारात्मकता की सोच का नाम है महान उपलब्धि को भी यदि आपने नकारात्मक परिवेश में सोचना आरम्भ किया तो वह अपना स्वाभाव बदलकर नकारात्मक प्रभाव देने लगती है और सकारात्मक चेतना में यद्ध की हार भी जीत की और एक सशक्त प्रायास मान लिया जाता है , शरीर मन बुद्धि के अनुसार दूसरों की तुक्ष्छ  उपलब्धियों को हम बड़ा मान बैठते है, औरस्वयं की बड़ी बड़ी सफलताओं को नकारात्मक भाव से असफल सिद्ध करने में लग जाते है ,फिर कैसे सुख पैदा हो पायेगा ,और कैसे जीवन की सुगंध तुम्हे सुवासित कर पायेगी

    भौतिक संसाधनों के ढेर पर बैठा आदमी स्वयं को इतनी बड़ी बड़ी आकांक्षाओं , कामनाओं औरसंसाधनों की लूट  में फंसा लेता है, जहां उसके हर प्रायास से प्राप्त उपलब्धियां छोटी दिखने लगती है, और और का भाव और प्रबल होकर खुद को ही तुच्छ साबित करने लगता है,  है और उसे ही हम दुःख मानने की भूल कर बैठते है ,  महत्व पूर्ण बात यह कि जो है ही नहीं ,उसकी कल्पना में वर्त्तमान के सुखों को छोटा बताने वाली पृवृत्ति, भी हमारे दुःख का एक बड़ा कारण है ,और इसे हम सुख और दुःख की परिभाषा में रखने का प्रयत्न  करते रहते है, जबकि इसका सुख और दुःख से कोई मतलब ही नहीं है|

    अंतर्मुखी भाव जबतक आत्मा को अपने स्वरुप में जानकार प्राप्त उपलब्धियों में संतुष्ट प्रसन्न रहता है ,तब तक उसकी चेतना  शांत शून्य और परम आनंद के भाव को बनाये रखने में सफल रहती है ,और जैसे ही वह बाह्य जगत के भौतिक संसाधनों से अपनी तुलना और कामनाएं करने लगता है ,वैसे ही उसके तमाम सुख संतोष और आनंद का क्षय स्वतः हो जाता है |

    तुलना का आधार दुःख का सबसे बड़ा कारण  है वह एक और अपनी उपलब्धियों को नगण्य साबित करने लगता है ,वही दूसरी और दूसरों की उपलब्धियों का आंकलन स्वयं के द्वेष जलन और तमाम नकारात्मकताओं के साथ करने लगता है, परिणाम फिर जैसे जैसे दूसरों का विकास विस्तार और वैभव की वृद्धि होती है, वैसे वैसे आत्मा का असंतोष और अधिक बढ़ने लगता है  ,और इसप्रकार धीरे धीरे उसके पास केवल इतनी नकारात्मकता शेष रहजाती है जिसमे उसका तमाम अस्तित्व केवल  तुलना -नकारात्मकता -और कभी न ख़त्म होने वाली हार का मायने बना बैठा रहजाता है , उसका दूसरों पर ही नहीं स्वयं पर  भी विश्वास  नहीं रह पाता ,वह स्वयं  नकारात्मक भाव बन कर रहजाता है |

    आदमी बड़ा विचित्र प्राणी है वह स्वयं को प्रमाणित करने के लिए तमाम काल्पनिक स्थितियों का निर्माण स्वयं करलेता है है एवं समयानुसार स्वयं को सहानुभूति का पात्र बना लेता है , वह सामान्य जीवन में ही स्वयं को बेचारा निरीह और आश्रय हीन  बताकर सबसे ढेरों सहानुभूति अर्जित करता रहता है , धीरे धीरे उसकी सम्पूर्ण गतिशीलता ख़त्म होने लगती है , जीवन उसे निरीह बेचारा बेबस और नाकारा सिद्ध करने लगता है  , हम अपने बल पौरुष और सम्पूर्ण शक्तियों को भूल कर स्वयं को बेचारा और निरीह बना बैठते है ,परिणाम हमारा अस्तित्व दया का पात्र बना एक भिखारी की तरह हो जाता है ,जिसमे संतोष और परम आनंद की शांति  कहाँ  है , आप झूठ फरेब  शोषण और नाकारा  होकर कैसे स्वयंम को श्रेष्ठ साबित कर सकेंगे यह प्रश्न चिन्ह है | यहाँ यह और महत्व पूर्ण है  जबतक आप समाज से स्वयं को बेचारा नाकारा और कमतर सिद्ध करेंगे, वह आपके साथ सहानुभूति दिखायेगा, और जैसे ही आप  अपनी शक्ति से उसके बराबर खड़े हो जाएंगे, वह प्रतिद्वंदी होकर आपको हराने और मिटाने में लग जाएगा |

      दुःख तो चिंतन के आयाम ही है न ,भिखारी के पास आया १००० का नोट  या एक सोने का टुकड़ा बहुत बड़ी खुशी का विषय है, धनवान के लिए वह तनिक सुख हो सकता है ,तुम अपने किसी मित्रके साथ समय गुजारों उसे सुख मानते हो , अपनी मनमर्जी से स्वछंदता से किये कार्यों को सुख मानते हो ,या आपका अस्तित्व झूठ फरेब और अपनी मर्जी के ऐशो आराम तथा अनियंत्रित स्वच्छन्दता को सुख मानते हो , जबकि वह किसी और की नकारात्मकता का कारण हो सकता है ,परंतु आपतो उसे सुख और अधिकार मानते है ,  भिखारी  का दुःख है उसके पास कुछ नहीं है उसे वो मिलजाए ,धनवान चिंतित है कही उसका धन चला न जाए,यानि कि सुख और दुःख गुजरते समय के वो आंकलन है जिसको समय ही सिद्ध कर सकता है, परन्तु समय ये डोर किसी एक को देने कोतैयार नहीं रहता समय काल और परिस्तिथि के साथ आज ये आपका है कल वह और किसी का   होगा |

    मित्रों हम शरीर, मन , और बाह्य संसाधनों में जो  बुद्धि से चाहते है उसे सुख और जो नहीं चाहते उसे दुःख कहते  है , , एक पुत्र अपने पिता की मृत्यु को दुःख मानता है ,दूसरा उसकी संपत्ति पर अधिकार के लिएमृत्यु को सुख मान बैठता है ,,एक संपत्ति  क्षय को दुःख  मानता  है दूसरा उसे लुटाते हुए सुख का अनुभव करता है ,एक सबके लिए जीकर  खुद को सुखी समझता है दूसरा  स्वार्थों के सहारे सुख बटोरना चाहता है ,एक  मान दंड पर परीक्षा दे  कर सुखी होता है ,दूसरा उसकी अवहेलना कर यह कहकर सुखी  कि  वो इतना  महान नहीं है ,कहने का आशय यह कि  हम बाह्य तत्वों की उपलब्धि, झूठे संबंधों की  प्राप्तियों को ही सुख मान बैठे है बैठे है ,जिसका सुख और दुःख से कोई सम्बन्ध ही  नहीं है |

    तुमने लाखों कपडे पहने उतारे और फेंक दिए , वस्तुएं तो वस्तुएं तुमने इंसानों को भी वस्तु की तरह प्रयोग कर फेक दिया और तुम जीवन भर यही सोचते रहे ,दूसरों से बटोरे सुख से तुम परम आनंद तक पहुँच जाओगे ,मगर तुम जिसे लूटकर आगे बढे ,वह भी तुमसे तुम्हारा चरित्र , व्यक्तित्व सत्य और उसकी पूर्ण चेतना छीन ले गया, परिणाम तुम्हारी दशा उस महान  सम्राट जैसी हुई ,जिसने अनगिनत खाजाने लूटने के बाद भी रेगिस्तान की आंधी में एक लावारिस की तरह जान देदी , जिसे सामान्य आदमी जैसा कफ़न भी नसीब नहीं हुआ अआप अधिक सुख की खोज में अपने को अँधेरे गड्ढे में दफ़न करने की साजिश कररहे है आप ।
    जो सुख दूसरों पर आधारित हुआ उससे तुम्हे केवल दुःख ही मिल सकता है हम समाज में खड़े एक दुसरे से प्रेम सुख और समृद्धि मांग रहे है मगर हमपर किसी पर भी वह है ही नहीं ,हम भिखारियों की तरह स्वयं को बादशाह बताने की चेष्टा कररहे है,जिसपर सुख है ही नहीं वो ,आपको क्या दे सकता है ,जो एक बार परम चेतना से सुख का मायने समझ जाता है तो ,सुख की मांग ही ख़त्म  होजाती है ,  फिर उस महासागर से आप कितना भी सुख प्राप्त करो उससे उसकी स्थिति में कोई अंतर ही नहीं पड़ता ,अतः  सुख सत्य और पवित्र चेतना का आधार बनाओ  खुद को, जो दूसरों को भी प्रकाशित कर सके |


    भारतीय दर्शन कहता है की एक पूर्ण चेतना हमारे सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है और उसी परम शक्तिशाली चेतना का सूक्ष्म बिंदु हमारी चेतना में भी व्याप्त है , हम बाह्य सुखों के भ्रमजाल में उस चेतना का ध्यान ही नहीं कर पाते परिणाम जीवन स्वयं नष्ट भ्रष्ट होकर कई जन्मों तक अपनी शान्ति और परम आनंद की खोज में भटकता रहता है ,स्वयं की परम चेतना के साथ जिसने ब्रह्मांडीय चेतना को एक कर कर लिया ,वही मुक्त होकर परम आनंद का मायने बन पाया है ,जिसे सहजता , अंतर्मन की जिज्ञासाएं और सत्य का अनुभव है ,वही सबकी सुख की कामनाओं में स्वयं  को एकाग्र कर के जीवन की चेतना आनंद और परम रहस्य को पा सकता है, और वही मानव जीवन का लक्ष्य भी है

    निम्न का प्रयोग आपको अपने सत्य तक ले जाएगा

    • सुख का सच्चा अर्थ शारीरिक मानसिक आपूर्तियों का मायने नहीं अपितु मनुष्य जीवन के मूल उद्देश्य की प्राप्ति आपको वास्तविक सुख तक लेजा सकती है | 
    • निश्चित और अवश्यम्भावी घटनाये दुःख का कारण नहीं वरन परिवर्तन है , और यह दुःख का कारण न होकर नयी सृष्टि के लिए आवश्यक भी है | 
    • जीवन मृत्यु विवाह जन्म ये सब कुछ संस्कार है इनके बाद और भी संस्कार अस्तित्व में आने वाले है तो ये सब सुख दुःख के कारक नहीं हो सकते | 
    • सच्चा दुःख है अशिक्षित विद्यार्थी , कंजूस और लालची धनवान , योगी में ज्ञान की अल्पता , अपने जीवन में लक्ष्य तक न पहुँच पाना , और दूसरो का शोषण जो आपके भाग्य का निर्माण करेगा |  
    • विषयों और  भूख को और अपनी बेलगाम स्वच्छंदता को सुख न समझे, क्योकि यह बार बार अपनी अगली मांग के साथ यह आपको कमजोर और बीमार बनाता जाएगा | 
    • अत्याधिक सुख की कामनाएं करने का स्वाभाव भी एक बड़ी बीमारी है, जिसका इलाज आपको ही करना होगा क्योकि यहीं से आपको असंतोष पैदा  होता है | 
    • वे सम्पूर्ण आपूर्तियां जो थोड़े ही समय में फिर आपूर्ति चाहने लगती है वे सब बंधन है, उनकी सीमा तय करके प्रयोग करने से ही आप स्वयं को जीत सकते है | 
    • हम जिसे सुख कहरहे है उसका सुख से कोई लेना देना ही नहीं है क्षणिक सुख और हम जो चाहते है हम केवल उसे सुख मानते है जबकि स्वयं की एकाग्रता का भाव जिसमे स्वयं को विराट में एकाग्र कर सके वही परम सुख है | 
    • स्वयं के चिंतन और शरीर को साधने के लिए स्वयं को एकाग्र करें और उसे अपने आनंद एवम भविष्य के प्रयासों में लगादे परिणाम अधिक सफलता देंगे | 
    • मन बुद्धि आत्मा के साक्षात्कार के बाद अपनी चेतना को परम चेतना में शामिल होते देखने का स्वप्न देखे फिर संकल्प करें की चेतना को परम चेतना का द्वार मिल गया है आपकी सुख की यही सीढ़ी आपको अपना लक्ष्य देदेगी | 

    जीवन तो  एक ऐसा अथाह सागर था जिसमे भिखारी की भांति भटकते हुए अनायास ही मुझे बड़ा खाजाना मिलगया क्योकि मेरे लाख प्रयत्न के बाद भी मेरी गरीबी ख़त्म हुई नहीं अंत में मैंने अपने कर्तव्यों के साथ स्वयं को उस परमात्मा के सहारे छोड़ दिया , सत्य सहजता और कर्म के बदले सहजता में परमात्मा ने मुझे अथाह खजाना दे डाला जबकि मेरे सुख को अब उस खजाने की भी जरूरत नहीं थी


    Saturday, June 18, 2016

    सफलता बनाम समय बद्ध क्रियान्वयन Success vs time bound implementation

    सफलता बनाम समय बद्ध  क्रियान्वयन
    Success vs time bound implementation

    राजा शिवसेन के राज्य में  सुख शांति की कोई कमी नहीं थी , पूर्वजों की बेशुमार दौलत और विद्वान प्रजा प्रिय पिता का आशीर्वाद भी प्राप्त था ,उन्होंने ही अवस्था धर्म का पालन करते हुए शिव सेन को राज्य में गद्दी पर बैठाया था, पिता हमेशा शिव सेन को कहता, पुत्र जीवन बहुत छोटा है ,जो काम करना है शीघ्रता के साथ करो, समय सबसे बहुमूल्य है और वह लौट कर नहीं आना है ,इसलिए प्रजा के कल्याण के लिए अस्पताल ,शिक्षा , श्रम की व्यवस्था और सुरक्षा के साथ कल्याण कारी योजनाएं चलाओ ,जिससे तुम भी विश्वके  श्रेष्ठ  सम्राटों में से  एक बन सको , शिवसेन हमेशा उन्हें हाँ ,हूँ, करके अपनी विलासिता भरे जीवन में लिप्त रहता था ,आलस्य प्रमाद और विलासताओं का गुलाम बन हमेशा यही कहता रहता था, अरे अभी कौन मररहा हूँ मैं , ये सब काम बाद में करलूंगा और यही क्रम उसका जीवन भी बन गया था | 


    एक रात शिवसेन सो रहाथा कि अचानक उसने देखा कि चार काले कलूटे भारीबदन के पहलवान नुमा आदमी उसके पलंग के चारों और  खड़े है राजा ने पूछा कौन हो तुम वो बोले यम दूत है, शिव सेन तुम्हारा समय ख़त्म होगया है ,२० मिनट बाद चलना है  तुम्हें, राजा घबराया, चिल्लाया , अनुनय विनय किया , गिड़गिड़ाया बोल छोड़ दो मुझे मैंने अभी कुछ किया ही कहां है, पिता द्वारा बताए  बहुत से काम करने है, एक बार छोड़ दो ,यम दूतों ने कहा, अरे मूर्ख तेरे जैसे पापी बार बारईश्वर के यहाँ यह कहकर आते है कि ,हम अपने लक्ष्य पूरे करके परमार्थ में लगाएंगे जीवन और हर जन्म में यही पाप  दुष्कर्मों   में   लगे रहते  हो और  जन्म लेकर यातनाएं भोगते हो  , राजा दूतों से कहने लगा मैं  आपको बेशुमार दौलत दूंगा छोड़ दो मुझे ,यह सुनकर यमदूत मुस्कुराए , अरे पूरा खजाना देदूंगा , मुझे एक माह का समय देदो यमदूत हंसे, फिर राजा बोल अच्छा मेरे पूरा राज्य लेलो मुझे बस एक दिन का समय देदो, यमदूतों ने ठहाका लगाया  और एक ही पल में राजा  की आत्मा को लेकर यमलोक पहुँच गए | 


    वहां पहुँचते ही एक गम्भीर गुस्से वाली आवाज आयी ये किसे ले आये है आप, ये वो शिवसेन नहीं है ,राजा कुछ समझ पाता  उससे पहले उसे एक बड़े धक्के का अनुभव हुआ, आँख खुलने पर उसने देखा की सारे महल राज्य के निवासी रोरहे है ,या शोकाकुल खड़े है ,राजा का सारा बदन काँप रहा था ,मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी ,मगर वह समझ चुका था कि  धर्म ग्रन्थ ,पिता ,गुरु जिस समय के सद उपयोग की बात करते है ,वो क्या है ,राजा सोच रहा था कि जिन कार्यों को वह बाद में करने की बात करता था , कब आएगा वह समय किसी को नहीं मालूम ,आँखों से निरन्तर आँसूबह रहे थे ,वह यह भी सोचने लगा कि  कितना बहुमूल्य है समय का एक एक पल जिसके एक पल की कीमत मेरे जैसे  हजारों राज्यों से भी अधिक है ,अचानक वह उठा और पिता के चरण छूकर उनसे कहने लगा चलिए मुझे इसी पल से  परमार्थ के कार्यों में लगा दीजिये मैं एक पल भी व्यर्थ नहीं गवाना चाहता और अपने राजा  पिता और अपने लाव  लश्कर के साथ  अपने परमार्थ के वास्तविक लक्ष्य की और बढ़ गया था  | 


    आप जीवन  की एक स्वांस में १/१५ मिनट का जीवन जीते है ,इसप्रकार एक दिन में २१६०० स्वांस लेकर १०८ वर्ष तक जी सकते  है , यही वह गहन राज है ,जिसे समझना आवश्यक है ,कुत्ता एक मिनट में १३५ स्वास लेता है उसका जीवन १२  पूर्ण  हो जाता है ,इसी प्रकार कम स्वांस लेकर सर्प , कछुआ , पेड़ पौधे अपने स्वांस क्रम के हिसाब से हजारों वर्षों का जीवन पाते है , यही स्वांस एक छोटी इकाई है ,जीवन के समय के निर्धारण की और यहीं से जीवन के प्रत्येक लक्ष्य को सहज ही बाँधा जा सकता है शर्त यह है कि एक बार चिंतन कर यह निर्धारित अवश्य करें कि आपको हर पल का सकारात्मक एवं अधिकतम प्रयोग करना है | 


    महावीर नानक  मोहोम्मद ईसा सबने समय को  बाँध दिया और जिसका समय गुलाम हो बैठे ,वो तो काल जई हुआ ही   न , इन सबकी मान्यताएं समय को लेकर ही बनी रहीं ,महा वीर का स्पस्ट मानना था कि समय का दूसरा नाम काल है और जो समय  सकारात्मक  हुआ  था   वह सामयिकी हुआ ,और जिस समय के भाग को हमने व्यर्थ छोड़दिया है  , वही महां विष की   तरह  मृत्यु को प्राप्त  हो जाता है ,इसका ही भोग्य  हमें कालांतर में भुगतना  होता है , और जिस थोड़े समय का उपयोग हम सत्कार्यों और लक्ष्य कव अनुरुप करपाते है वही  अमृत्वको प्राप्त हो पाता है फिर तो आपको ही जीवन के अंत में यह निर्णय करना होगा कि , जीवन का कितना भाग आपने अमरत्व केरूप  में गुजारा  और कितना भाग मृत प्रायः हुआ  इसका  निर्णय   करना  ही होगा | 


    समय के बारे में भारतीय साहित्य ने बहुत कुछ लिखा है 
    •  मनुष  बड़ो नहीं  होत  है ,समय होत बलबान , भिल्लनि  लूटी गोपिका, वहि  अर्जुन वहि बाण
    • देखो समय बड़ा बलवान ,धनवानों को निर्धन करदे ,निर्धन को धनवान ,जंगलमे वो शहर बसा दे ,शहर करे वीरान 
    •  आदमी से ये कहो  कि वक्त से डरकर रहे , कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज़ 
    • देश काल अवसर अनुसारी , बोले राम भगत भय हारी 
    • छन सुख लाग जन्म सत  खोटी 
    मनुष्य ही नहीं देवताओं को भी समय की कसौटी पर खरा उतरना होता है और यह सिद्ध करना होता है की वो समय का सबसे श्रेष्ठ प्रयोग करने के कारण ही श्रेष्ठ साबित हुए है | यह समय वो है जो गांडीव धारी अर्जुन को वैभव और बलहीन कर देता है ,जिसका ध्यान भगवान राम भी रखकर कार्य करते है, यही समय कृष्ण  की जीवन शैली भी है ,अर्थात समय की आबद्धता के बगैर ब्रह्मांड का कोई कार्य सफल और सिद्ध नहीं हो सकता | 

    मनुष्य देह को सदैव से  नश्वर माना  गया है उसका नाश अवश्यम्भावी है, परन्तु  इसमें  ही अमृत्व घट छुपा है, शरीर नश्वर- चेतना --अनश्वर जो कार्य व्यर्थ हुआ वो मृत और जो सकारात्मक हुआ वो अमृत्व प्राप्त किया मना गया | इसी , प्रकार  धन संपत्ति भौतिक और अभौतिक वस्तुओं का संग्रह समय के साथ किया जा सकता है मगर सारी उपलब्धियां यह बताने में अक्षम है की आपके पास कितना समय बाकी है | जो कल गया वो मृत  जो  है  वह आंकलन है  जो आने वाला   है ,यदि वर्तमान की चेतना  को समय बद्ध करके सकारात्मक कर्मों में लगा दिया गया, तो सारी सफलताएं आपके सामने नत मस्तक हो जाएंगी | 

    मनुष्य जन्म के साथ आपके ऊपर कर्म  बंद्ध और स्वयं को सिद्ध करने का दायित्व स्वतः  आजाता है ,वह प्रारब्ध, क्रियमाण ,संचित  के फेर में अपने कर्त्तव्य को समय बद्ध  रूप में निभा पाया तो ,वह मुक्ति पथ पर पाया गया, और यदि यह समय का प्रयोग सही नहीं हो पाया तो, बार बार अपने अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति तक उसे ही भटकना होगा , क्योकि यहाँ आप नियत उद्देश्य से अपने कर्मों का हिसाब करने आये थे ,या लाभ कमाने --वहां आप तमाम सारा ऋण लेकर लौटे है ,तो यह ऋण आपको ही चुकाना है, इसका एक मात्र हल यही है कि हर पल को अपने उद्देश्य की आपूर्ति और सकारात्मक लक्ष्य में झोंक दे ,सारे लक्ष्य आपके सामने झुक कर आपको विजयी घोषित कर देंगे | 



     लगभग  25550  दिन जीने वाला इंसान ,लक्ष्य  विहीन ,व्यर्थ के कार्यों और काम क्रोध लोभ मोह  को साधने में ,जीवन के बहुमूल्य समय को निकालकर ,गहरे काँटों  के वन में उलझता चलाजाता है ,तब लक्ष्य का छूटता सफर अधिक कष्ट कारक होने लगता है ,वासनाओं और भौतिक लिप्साओं की आपूर्ति में संतोष प्राप्ति से पहले ही जीवन अपना उत्तरार्ध लेकर खड़ा होजाता है ,जो एक गहरा पश्चाताप और घबराहट नैराश्य छोड़ने लगता है ,जो अधिक कष्टकर होजाता है, आवश्यकता इस वात की थी कि  समय के एक छोटे भाग को भी यदि जीवन के सार्थक लक्ष्य के लिए जाग्रत करलिया जाए तो जीवन अपनी क्रियांवयन्ता पर प्रसन्न हो सकता है | 


    निम्न का प्रयोग करें 
    • जीवन को स्वासों ,दिन ,माहों और वर्षों का आंकलन दें और यह विचार करें उस आकलन में आप कहाँ खड़े है और क्या आप आज सकारात्मक रहें | 
    • सकारात्मक दृष्टिकोण के के साथ ही आपको जीवन की सफलता का मार्ग तय  करना है  क्योकि सकारात्मक जीवन शैली आपको आधी सफलता दे देती है | 
    • समय के केवल तीन प्रयोग होसकते है आवश्यक कार्य सकारात्मक कार्य और सामान्य कार्य सामान्य कार्य आपको कर्म बंधन में बांधेंगे ,सकारात्मक और लक्ष्य के प्रति जागरूकता आपको सफल सिद्ध करेगी | 
    • समय के महत्व को सदैव याद करतेरहे ,यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है इसमें अपनेलक्ष्य को सदैव याद रखना महत्वपूर्ण है | 
    • जाता हुआ समय  वास्तविक प्रसन्नता देकर जाएगा तो उसकी सार्थकता सिद्ध होगी और यदि वह आपको चिंता पश्चाताप और नकारात्मकता देकर जा रहा है तो सधार की आवश्यकता है | 
    • जीवन का प्रत्येक कार्य जरूरी है,  मगर आसक्ति , शोषण , शोषित होने की लत नकारात्मकता है उससे बच कर स्वयं की चेतना  में लौटकर ध्यान करें | 
    • समय का सदुपयोग -सकारात्मकता और उसकी सुरति ही का एक मार्ग है  लक्ष्य को साधने   के लिए यही   उद्देश्य है जिसे नित्य ध्यान देना आवश्यक है । 
    • समय को सामयिकी बनाकर अपने कल को सुधारने की चेष्टा करो ,उसे काल बनाकर व्यर्थ मत गवाओं  अन्यथा बार बार आपको अधिक भटकना होगा | 
    • बार बार समय को अपने लक्ष्य की सफलता के रूप में देखना सीखें ,धीरे धीरे ये सफलता आपके वास्तविक जीवन में कब उतर आएगी मालूम भी नहीं पड़ेगा | 

     जीवन तो अपने लक्ष्य की और जाती हुई कोई बड़ी रथ  यात्रा ही है न यहाँ पूर्ण चेतन से अपने उद्देश्य का ध्यान रख कर उतरना ,पहुँचाना महत्व पूर्ण जिम्मेदारी है ,वरना  कब यह रथ तेजी से आपके लक्ष्य को विस्मृत करा देगा, आप समझ भी नहीं पाएंगे ,आपको सकारात्मक भाव से लक्ष्य के प्रति पूर्ण चेतन्य भावसे केंद्रित रहना है, तब आप जीवन चक्र के सिद्धांत में मोक्ष का  रूप को जान सकेंगे 

    Tuesday, June 14, 2016

    स्वयं को दोष न दें (Do not blame yourself)


          स्वयं को दोष न दें
      (Do not blame yourself)
    सुकेत नालंदा का सबसे योग्य विद्यार्थी था पठन -पठान में उसे कोई मात नहीं दे पाया था , गुरुओं ने  उसकी बुद्धि का लोहा कई बार माना था ,दर्शन ,सेवा , संस्कारों और परीक्षा में उसे अव्वल आना ही होता था ,  अच्छे , सम्भ्रान्त परिवार का इकलौता पुत्र था हमारा सुकेत , बस  एक ही बड़ी कमी उसने अपने पापा से सीख ली थी , असंतोष और स्वयं को कोसते  रहने का दुर्गुण -----मैं  कुछ नहीं कर सकता, बड़ी बड़ी परीक्षाएं चुटकियों में पास करने वाला खुद अपने आपको संतुलित नहीं रख पाता था ,परिणाम यह कि  उसको सारी सफलताएं मिलने के बाद भी कोई संतोष आनंद मन में पैदा ही नहीं हो पाता था, समय निकलता गया और पूर्ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद सुकेत  अपने घर पहुँच गया , और जीवन की ताल में ताल मिलाने लगा , परिणाम - पिता के व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि के बाद भी घर में कोई शान्ति सुख की परिकल्पनाथी ही नहीं|

    घर का हर सदस्य कुशंकाओं  से घिरा  एक दुसरे पर अपने अपने असंतोष का ठीकरा फोड़ता ,अवश्य दिखाई देता था , माँ कह रही  होती  थी ,पूरा जीवन खपा दिया घर के लिए और सब लोग मेरी परवाह ही नहीं करते और अब तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा ,किसको कहूं अपनी , बेकार है जीवन ,क्या मतलब इसका, और पिता कहरहे होते की पूरा दिन खट खट किसके लिए कररहा हूँ सब तुम लोगो के लिए , सुकेत अपने आपमें कुंठित अनमना सा कहता रहता था  काहे को पढ़ाया इतना जब दूकान ही करानी थी तो -----और हर रोज किसी न किसी बात पर  खौफ   और दुःख का माहौल बना रहता था |

    अचानक बाज़ार की  मन्दी  और व्यापार की  हानि  ने सुकेत के पिता को भारी क्षति दी थी , सारी सम्पत्तियां एक एक कर बिक गई और परिवार पर जीवन यापन का भी संकट खड़ा होगया  परिवार के सदस्यों ने झूठे कागजों से रही बची संपत्ति भी ठग ली ,पिता को एक रात लकवे का दौरा पड़गया , धन की कमी और समस्या का स्वरुप इतना बड़ा था कि  कोई किरण दिख ही   नहीं रही थी , सुकेत ने माँ को काम पर जाते हुए देखा , बड़ी ग्लानि हुई मन को , दूसरे ही दिन वो अपने गुरु ने यहाँ नालंदा पहुंचा वहां सब हालत जानकर गुरु ने सुकेत की मदद भी की और आश्रम के एक कोने में जगह भी दी ,और काम भी दे दिया , सुकेत बहुत ज्यादा अनुग्रह प्राप्त कर रोने लगा घर आये गुरु से उसने अनायास ही पूछा देव आप सब जानते हो  हमारी ऐसी स्थिति क्यों हुई |


    गुरु ने लम्बी सांस लेकर कहना चालू किया पुत्र आपके पूरे परिवार में  विस्वास , पराक्रम और सकारात्मक सोच की कमी है ,   आप पूर्ण शिक्षित होकर भी उस परमात्मा  की अनुकम्पा को नकारते रहे , आप स्वयं में परमात्मा का वास देखने में अक्षम, सदैव इस बात परअडिग रहे की आपसे ज्यादा कोई दुखी दीन हीन और निरीह नहीं है , परिणाम आपका  सब पर स्वयं पर विश्वास  कभी बन ही नहीं पाया ,ब्रह्मांड केवल आपकी नकारात्मकता सुनते सुनते यही समझ पाया कि आप उससे यही मांग रहे है तो उसने आपको वहीँ खड़ा कर दिया ,आप एक बार पुनः परमात्माकी अनुकम्पा और पूर्ण विशवास को मन में जगह दो ,आपका यह समय भी आपको बहुत बड़ी सौगात देकर जाएगा , गुरु की वाणी सुनकर तीनों लोगो की अश्रुधारा बह चली , कुछ ही समय में पिता पुनः ठीक होगये , अदालत ने पिता की सारी संपत्ति पुनः लौटा दी , माँ को लगा शायद जीवन ने जो यह सौगात दी है वह अमूल्य है और सुकेत जान गया था की अपनी अंतरात्मा के सत्य , आदर्शों और उसकी चेतना को अनसुना करके कोई भी संसार में आनंद पैदा कर  नहीं सकता , और गुरुवाणी की गहनता में डूब कर सुकेत अपने आनंद  में डूबने लगाउसे लगा कि हममे वह शक्ति विद्यमान थी जो हमें अपने सर्वोच्च सफलता के शिखर पर ले जा सकती थी| ,



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     हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम अपने आपको निरीह बेचारा नाकारा और  भोंदू बना कर रखना चाहते है हर परिस्थिति में हर काम में अपने को कार्य से पहले ही अपने आपको हतोत्साहित कर करते हुए दोषारोपित करते रहते है परिणाम यह कि एक दिन हम वैसे ही होजाते है   नाकारा, अकर्मण्य , और निराश्रित से
    हमेशा यह मेरे साथ ही क्यों होता है ? मैंने किसीके साथ ख़राब नहीं किया ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ?मै  जो चाहता हूँ वो तो  कभी हो ही नहीं सकता ,मेरा समय खराब चल  रहा है , और भगवान मेरे साथ ही ऐसा क्यों करता है ? ये सब प्रश्न एकसाथ  हम हर परिस्थिति में दागने के  आदी हो गए है ,जब भी हमारे सामने वो परिस्थितियां आईं  जो हमारे मन और रूचि  के विरुद्ध हुई या यो कहिये कि जो नकारात्मकताऐं  हमारी कमजोरी बन गई है उन्हें त्यागने के लिए भी हम इन्ही वाक्यांशों का प्रयोग करते रहते है  शायद हमे इनसबके बाद कुछ शान्ति मिल पाये ,नही मित्र इसके बाद और अधिक नकारात्मकता हमें घेर लेती है और हम उस नैराश्य का ढेर होजाते है जिसमे केवल   विनाश के रस्ते रहजाते है जबकि हमारे पास वो अदम्य शक्ति थी जो कुछ भी पैदा कर सकती थी |


    सुख --संतोष --- और लक्ष्य ये अलग अलग विषय है लक्ष्य विहीन सुख संतोष वैसा ही होगा जैसे  सुंदर खाने के बाद फ़ूड पोइज़निंग जबकि लक्ष्य के साथ ही सुख संतोष की पूर्णता माना  जा सकती है | मनुष्य का मन मष्तिष्क हमेशा कुछ न कुछ मांग करता रहा है ,कभी वह शरीर के सुख सम्बन्धों को अपनी कमजोरी बना बैठता है , औरकभी विलासताओं भरे जीवन में भौतिक संसाधनों के इर्द गिर्द घूमता रहता है , पूरा जीवन इसमें ही स्वाहा होजाता है कि,  मैंने जीवन में कमाया क्या , और हर समय केवल स्वार्थों की खोज में घूमते घूमते हर  कदम पर अपने आपको बड़ा दिखाने की चाह बनाये रहे ,  कहने का आशय यह कि हमारी सारी खोज केवल यही तक सीमित रह गई कि हम भौतिक सुख साधनों के आधीन होकर रहगये है, और उनसे हटकर हमे शान्ति मिल ही नहीं सकती , हमारा तमाम चिंतन इन विषय वस्तुओं पर निर्भर हो जाता है कि , हम समाज और सम्बन्धों का कितना विदोहन ---शोषण ----- और लूट कर लें जिससे हमारा अहम शांत होजाये  , मगर एक बार फंस कर हम कभी उससे निकल ही  नहीं सके और खुद को लाचार , गरीब और निस्सहाय सिद्ध करने में जुटे रहे और एक दिन वैसे ही दीन   हीन  बने बैठे अशांत अस्थिर और निराश्रित से |



    आपके अपने , सम्बन्ध , समाज ,केवल आपके बाह्य स्वरुप से जुड़े एक शोषण की मांग करते रहते है, इन सबके एक ही धर्म रहे कि   वे अपने  अपने सामर्थ्य के अनुसार आपकी लूट  खसोट करते रहे , उस हिंसक पशु की तरह जिसने   ताजे हरे पत्तों के बगीचों का आश्रय लिया था ,तब अभी हाल ही में एक मृग मारा  था,भर पेट अपनी  भूख मिटाने के बाद उसने  उसे उसी हाल में छोड़ दिया ,  वह चला गया, शायद फिर भूख लगी तो फिर आजायेगा खाने ,तबतक दूसरे जानवर नोचा खसोटी करते रहे ,क्योकि , जीवन ने  उन्हें यही  दिया है |   आदमी की हालत भी कमोवेश  ऐसी ही है , अपनी  शारीरिक और मानसिक कमजोरियों के हरे  बगीचों को देख कर वो हमेशा  शिकार बनता रहा है ,  फिर बार बार जीवन पर प्रश्न चिन्ह क्यों ?क्योकि इसके  एकमात्र जिम्मेदार हम ही रहे है ,बार बार हमारा झूठे , निराश्रित और नकारात्मक सम्बन्धों और  शारीरिक मानसिक  संसाधनों का लालच ,स्वयं पर अविश्वास और  दिशा हीनता  हमे उस कगार  खड़ा कर देती है जहां केवल हमारे पास  रह जातीहै  कुछ  शिकायतें कुछ आलोचनाएं  और ढेर सारी  नकारात्मकता क्योकि ये ही हमने पैदा किया है




    मनुष्य के पास  हर समस्या के निराकरण के लिए और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ  सिद्ध करने के लिए एक अ जेय ब्रह्मास्त्र भी है जो जीवन के हर दुश्मन को पलक झपकते ही ख़त्म कर सकता है , इसका नाम है संकल्प और यही वह शक्ति है जो ईसा नानक  मोहम्मद और बुद्ध को महान बना देती है , जीवन के लक्ष्य को साध कर , जिसने भी अपना पथ तय करना आरम्भ किया ,आप सच मानिए ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों ने अपना सर वही पर झुका दिया है , जैसे ही आप अपना लक्ष्य बन कर चलना आरम्भ करेंगे तो दुनिया  की सारी बाधाएं आपके सामने खड़ी हो जाएंगी ,  समाज आपको लक्ष्य के साथ अलग जाता देखेगा ,तो अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला बोल देगा , कोई कहेगा  बस एकबार और बात  मानलो , कोई कहेगा आप एकबार और रुक जाओ , इस तरह की बहुत सी बातें ----बस यही परीक्षा है आपकी जहां आपको अपने संकल्प को और अधिक मजबूती देनी है  और यही से आपकी वह विजय यात्रा आरम्भ होनी है जिसके बाद जीवन से नकारात्मकता का अध्याय समाप्त होकर आपको सकारात्मक जीवन का नया उपहार मिलना है |



      निम्न विषयों पर भी विचार कीजिये


    • सबसे पहले अपने इर्द गिर्द  लोगो का आंकलन करे और बारीकी से यह देखे की वे यदि आपके लक्ष्य में बाधक है तो उनसे धीरे से किनारा अवश्य करलें , | 
    • अपनी कमजोरियों को अपने विकास पर हावी  मत होने दें  ,क्योकि यदि आप अपनी कमजोरियों पर अंकुश नहीं लगा पाये तो आपका लक्ष्य तक पहुंचना  अत्यन्त कठिन है | 
    •  स्वयं को हर कार्य और शक्ति में  पारंगत  मानते हुए, उसे जागृत करने का स्वप्न  देखते रहने का प्रयत्न करें जिससे वह आपके अंतर स्थल की सबसे बड़ी मांग के रूप में आपको  लक्ष्यरूप में दिखाई देने लगे | 
    • श्रेष्ठ जीवन मनुष्य की अपनी  सोच संकल्प और उसपर क्रियान्वयन करने की शक्तियों को  जगाने का नाम है क्योकि जोलोग अपनी  शक्ति को  जागृत कर उसे मूर्त रूप देने में  समर्थ होते है वही  स्वयं सिद्ध हो पाते है | 
    • आत्मा की परमशक्ति का ध्यान किये बगैर आप अपनी  आतंरिक शक्ति को जागृत नहीं कर सकते ,क्योकि जब तक आप बाह्य जगत की तुच्छ उपलब्धियों में लगे रहे ,तब तक आप उस शक्ति से परिचित न हो सकेंगे | 
    • स्वयं को सकारात्मक विचारों का आधार बना  दीजिये, उसके लिए केवल यह करना है की  लक्ष्य से पहले कुछ नहीं इसे रोज बार बार दोहराएँ | 
    • समस्याएँ केवल वीर मनुष्यों के समक्ष आती है और वे अपना उत्तर साथ लिए होती है ,बिना क्रोध घबराहट , और जल्दबाजी किये उनका उत्तर खोजने का प्रयत्न करे | 
    • सुख , लक्ष्य , सम्बन्ध , और समाज  आपकिसी एक को ही चुन सकते है यदि आप दो और तीनों के साथ चलने की कोशिश करेंगे तो आपका सफल होना कठिन है | 
    •  निरन्तर अपने लक्ष्य का ध्यान और नित्य उसकी प्राप्तिके लिए प्रयत्न करने वाला ही एक दिन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अन्यथा सफलता प्रश्न वाचक बन जायेगी | 
    • जो लोग आपको ख़राब , कमजोर और कमियों वाला मानते है वो आपको अभी तक जानते नहीं है ,एक दिन आप का विकास और उपलब्धियां  उन्हें आपका कद दिखा देगा  | 

      आप ईश्वर की अनमोल कृति है और आपको ईश्वर ने किसी ख़ास उद्देश्य के लिए पैदा किया है आपको उसी लक्ष्य की खोज करके सफलता प्राप्त करनी है , यही विचआर तेजी से अपने मन मो समझाते रहें | 

      आदमी तुम क्या आदम के सिर मौर हो - वक्त -ए -ताकत तुम्ही  रब का तुम शौर्य हो 

    Sunday, June 12, 2016

    दूसरों का मजाक मत उड़ाइये Do not make fun of others

    दूसरों  का मजाक मत उड़ाइये
    Do not make fun of others

    सिकंदर महान को  अरस्तु ने समाजिक राजनैतिक धार्मिक और मानवीयता वादी तमाम उपदेश और शिक्षा दी थी और उसके व्यक्तित्व में वे  गुण  परिलक्षित भी होने लगे थे,३४३  ईसा पूर्व  मेसीडोनिया के   शासक  ने सिकंदर की शिक्षा के लिए महात्मा अरस्तु को बुलाया और और  यही से सिकदर की शिक्षा का  शुभारम्भ हुआ , हजारो नीति उपदेशों  के साथ गुरु ने यह भी बताया पुत्र जो जीवन को भलीभांति जान  लेता है उसमे अहंकार , क्रोध , लोभ ,मोह और लालच स्वयं  ख़त्म हो जाता है , पुत्र स्वयं की रक्षा और वीरता ,राज़्य  का नैसर्गिक गुण  है , मगर अतुलनीय वीरता और परम बल के साथ जो क्षमा , दया और सहिष्णुता का भाव रखता है  वही सर्वाधिक महान माना जाता है , पुत्र दूसरों के सम्मान को क्षति केवल हमारा अहंकार ही तो पहुंचाता है ,जबकि ईश्वर की हर कृति  परमात्मा को अति प्रिय है फिर  उसका अपमान ईश्वर कैसे सह सकता है |
    ईराक के बाबिल नगर में जंगल भ्रमण में सिकंदर और उसकी सेनाएं  आखेट पर थी जंगल में एक फ़कीर एक पेड़ के नीचे शीर्षासन लगाए ध्यान रत था , सिकंदर ने उसे देखा तो अपनी हंसी रोक नहीं पाया ,वो जोर जोर से घह हंसने लगा उसे हँसता देख कर  साथ चल रहे सेना अधिकारी भी हंसने लगे और  बोलने लगे , फ़कीर का ध्यान शोर की आवाज से टूट गया उसने ध्यान से हँसते हुए सिकंदर को देखा और अचानक उसकी आँखों से आंसू आने लगे फिर उसने गहरी साँस लेकर आकाश देखा और वो भी जोर जोर से हंसने लगा , सिकंदर ने प्रार्थना की कि यह बताये कि   आप क्यों हंसे ----फ़कीर बोला फिर बताऊंगा यह सुनकर सिकंदर  महल में लौट गया  ,  मगर बार बार उसे उस फ़कीर का रोना, हंसी  बड़ी रहस्य  मयी  और  अजीब सी लगी थी |
    कुछ दिन बाद एक बार फिर से सिकंदरने  एक बड़े राज्य पर आक्रमण किया और लौटते में उसी जंगल से उसका पुनः गुजरना हुआ अफरात संपत्ति और लुटे हुए ख़जाने के साथ वह स्वयं को खूब सराहता रहा ,  चाटुकारों ने बताया वो सबसे अमीर है यह चर्चा चलते चलते सब लोग शयन हेतु चले गए परन्तु उसी रात्रि में सिकंदर की तबियत ज्यादा ख़राब हो गई तेज बुखार , और दस्त  ने  उसकी सारी शक्ति  ली थी ,सुबह होते होते उसकी तबियत और अधिक ख़राब होगई ,अचानक सेना के अधिकारी उसी फ़कीर को  लेकर  आये  ,जंगली दवाओं की  थैली लिए था वो ,उसने ध्यान से सिकंदर और उसके चारोओर देखा, फिर प्रणाम किया , बोल बंद सिकंदर के मुंह में उसने एक जड़ का रस  निचोड़ा २ मिनट बाद ही सिकंदर के बेजान  शरीर  में  स्फूर्ति सी आयी ,उसने आँख खोलकर बड़े आर्त भाव से कहा  मुझे बचालो , फ़कीर की आँखों में आंसू आगये ,वो कहने लगा सिकंदर यह रोग नहीं है यह मृत्यु है , देख यदि ये दस्त और बुखार जैसी बीमारी होती तो यह ठीक हो जाती ,देख यह कहकर फ़क़ीर ने कुछ जड़ी बूटियों को मसलकर पास के झरने में फेंक दिया ,झरना बर्फ जैसे जम गया ये पृकृति रुक सकती है तेरे दस्त न  हीं क्योकि आज मृत्यु तेरे दस्त और बुखार के रूप में आयी है , और हाँ उस दिन जब तू मुझे देख कर हंस रहा था तो मुझे तेरी मौत दिखाई दी ,मैं रोया इसलिए की तेरे गुरु ने मुझे तेरी हिफाजत के लिए कहा था, और हंसा इस लिए कि मालिक कैसी लीला है आपकी कि  इसे यह नहीं मालूम कि  अगले छड़  मेरी मृत्यु खड़ी है |

    छट,पटाते हुए सिकंदर के माथे पर फ़कीर ने बहुत प्यार भरा हाथ रख दिया, जिससे छण  भर में सारे दर्द शून्य हो गए,
    फ़कीर ने कहा   हे  सम्राट  आपके गुरु का  मानसिक सन्देश आया था ,कि मैं   आपके पास ही रहूं और आपको सारे ऋणों से मुक्त करने का उपाय बताऊँ , सिकंदर ने आँखे बंद करली और कहना चालू किया हे, महात्मन मैं  सब समझ गया हूँ ,मरने के बाद मेरे हाथ ताबूत से बहार लटका दिए जाएँ, जिससे लोग जान सके कि अकूत संपत्ति के भंडारण के बाद भी संपत्ति ,एक साँस तक नहीं बढ़ा सकती ,और  आदमी को खाली हाथ ही जाना होता है , और ये हाथ यह भी बताएँगे कि अहंकार और शक्ति की  प्रतीक  ये भुजाएं स्वयं अपना भी भर तक नहीं उठा सकती है ,और संसार इतना छोटा है कि  कल मैंने जिसका उपहास उड़ाया ,आज वही मेरे गुरु का सन्देश लेकर मेरे जीवन की कामना करते हुए रो  रहा  है ,|यह कह कर सिकंदर ने फ़कीर को प्रणाम किया और पूछा मेरे गुरु की क्या आज्ञा है , साधु ने  ध्यान में देखा और कहा आपके गुरु कह रहे है जाओ सिकंदर तुम मुक्त हो अपने कर्मों से तुम  महान हो और तुम्हारा प्रयाण भी पूर्ण होना चाहिए -- यह कहकर फ़कीर ने जाते हुए सिकंदर को देखा तृप्त , शांत , और पूर्ण सा |




    महाभारत का मह युद्ध केवल उन थोड़े पात्रों के इर्द गिर्द सिमटा दिखता है जो अपने बल पौरुष और स्मिता के लिए लड़ते झगड़ते रहे , यहाँ मैं पूर्ण ब्रह्म कृष्ण को सबसे अलग औरपृथक रख रहा हूँ क्योकि वे ही इन सब पात्रों के मूल्यांकन कर्ता  रहेंगे , पांचों पांडवो की सेना और अनगिनत कौरव सैनिक केवल द्रौपदी के उस वाक्यांश का शिकार बन बैठे जिसमे उसने यह कहा कि  अँधोंकी संतानें भी अंधी होती है इसके बाद की सारी कथाएं बड़ी विचित्र और अहम के प्रदर्शन की कहानी ही है ध्रुपद के पास द्रोणाचार्य का  जाना और ध्रुपद द्वारा द्रोणाचार्य का अपमान और द्रोणाचार्य द्वारा ध्रुपाद के नाश की प्रतिज्ञा और अर्जुन द्वारा ध्रुपद को हराना बंदी बनाना और फिर क्षमा मंगवा कर छोड़ देना ये सब भी किसी पात्र के उपहास उड़ाने के कारण ही पैदा हुए है और अंत में द्रोणाचार्य को ध्रुपद के पुत्र   द्वारा ही मारा गया , ये सब राज नीति ,कूट नीति का सम्बन्ध किसी  के उपहास उड़ाने का प्रतिफल ही तो रहा है | 


    जब स्वयं के अहंकार की आंधी चलती है   तो वह हर  आदमी हमारे सामने नगण्य होजाता है और हमारा क्रियान्वयन भी ख़त्म  होजाता है ------फिरतो -----सुंदरता, रूप, रंग, बल श्रेष्ठता , ज्ञान ,आदर्श और सहजता ,सरलता और अनेकों गुणों में हम स्वयं को सर्व श्रेष्ठ बताने की चेष्टा में उलझे अशांत , अनमने और अपूर्ण से बने रहते है ,परिणाम यह कि  हम उस जीवन को जान ही नहीं पाते जिसकी डोर हमारे हाथ में थी ही नहीं , बस हम एक बैलगाड़ी के नीचे चल रहे कुत्ते की तरह गौरवान्वित बने रहते है जो चलती बैलगाड़ी के नीचे चलते चलते यही सोच रहा होता है कि  इसे तो मैं  ही चला रहा हूँ | 


    अहंकार के समक्ष स्वयं को ऊचां बताने के सिवा कुछ होता ही कहां  है ,जबकि हम केवल अपना ही आंकलन करने में सर्वदा असमर्थ होते है , क्योकि हमे   अपनी दृष्टी से केवल वे लोग दिखते है जो बहार होते है ,यहीं से आ त्मा अवलोकन का विषय ख़त्म हो जाता है और अतुलनीय स्थिति में हर इंसान छोटा कमतर और स्वयं से दीन जान पड़ता है  फिर तो जीवन का हर भाग, क्रिया और दृश्य मान,  विषय बन कर रह जाता है मन से शान्ति ख़त्म हो जाती है सोच कुंठित हो जाती है और मन -मष्तिष्क की हर सोच स्वयं को ऊंचा बताने की फिक्र में खुद अपने पतन की और जाने लगती है ,| 



    मनुष्य का जन्म और उसका चरम लक्ष्य है कि  वह परमानन्द की अनुभूति तक पहुँच सके वहां है जैसा है वैसे ही स्वयंको सोचना आरम्भ करदे तो शायद वहीँ कहीं से उसका मूल उद्देश्य उसके पास आजाता है 
    आज संसार के हर प्राणी की सोच ऐसी होगी  कि वह स्वयं को यह   नहीं बता पाता जो वास्तव में वो स्वयं है, इससे संसार में वैमनस्यता जन्म लेगी ,प्रतियोगिता जन्म लेगी और वहीँ से हमारा पराभव आरम्भ होजायेगा , हम जिन गुण दोषों के साथ है ,उन्हें सोचकर  उनसे बचने का प्रयास न करें, यदि हम अपनी कमियों को प्रदर्शित करने का संकोच बनाये रखते हुए स्वयं को कुछ और बता कर कुछ और प्रदर्शित करते रहेंगे ,तो  जीवन भर हम स्वयं में सुधार कर ही नहीं पाएंगे  अतः स्वयं का आंकलन करते हुए अपने दोषो को कम और गुणों को बढ़ाने का प्रयत्न अवश्य करें | 


            निम्न का प्रयोग अवश्य करें 
    •  ईश्वर ने आपको बहुत सी खूबियों और कमियों के साथ पैदा किया है आपको अपनी कमियों पर अंकुश लगाकर स्वयं के गुणों का विकास करते रहना चाहिए अन्यथा आप स्वयं भ्रमित हो जाएंगे | 
    • किसी का उपहास मत उड़ाइए क्योकि इसकी चोट यदा कड़ा इतनी गहरी होती है जो मन मष्तिष्क को इसतरह घायल करदेती है जहाँ अच्छे बुरे का विचार ख़त्म होकर जीवन बदले की भावना में परिवर्तित हो जाता है | 
    • हर व्याक्ति की अपनी शक्तियां है और हमे उनका सम्मान करना ही चाहिए क्योकि  यदि हम उनका सम्मान कर सकेंगे तो ही अपना सम्मान पाने के हक दार बन पाएंगे | 
    • भारतीय धर्म का आधार यही है  कि जो पिंड सोई ब्रह्मांड बहुत बड़ी परिभाषा है मनुष्य और उसकी शक्तियों की क्योकि धर्म मानता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो शक्तियां निहित है वो ही मनुष्य में निहित है आवश्यकता उन्हें जाग्रत करने की है | 
    •  मनुष्य का शरीर और उससे जुडी हुई हर चीज नश्वर है और वह समय के आधीन है परन्तु उसकी चेतन और आत्मानुभव  बहुत शक्तिशाली और श्रेष्ठ है उन्हें जागृत करने हेतु स्वयं में स्थित रहना सीखें | 
    • जब भी आप दूसरों से अपनी तुलना करेंगे तो आपकी अशांति चरम  पर होगी ,क्योकि आप पहले नकारात्मकता को पैदा करते है फिर उस चश्मे से स्वयं का आंकलन करना चाहते है ऐसे में आपमें और नकारात्मकता बढ़ने लगेगी | 
    • स्वयं का आंकलन करते समय किसी का विचार मन में मत लाये क्योकि हर व्यक्ति पद और आकार की एक सीमा है जबकि विकास आपका कद और आपकी प्रकाश सम्भावनाएं असीमित है ,उनका चिंतन करें | 
    •  यह मानकर  चले कि  मनुष्य और प्रकृति के विकास की सम्भावनाएं असीमित है और इस असीमित को जागृत करने के लिए सर्व प्रथम आपको स्वयं को एकाग्र करना होगा यही से आपको आगेके मार्ग प्रशस्त होंगे 
    • अपनी संभावनाओं और विकास की पहली शर्त यह है कि आप दूसरों से तुलना करना छोड़ दे क्योकि यहाँ आपका ध्यान केवल अपने उद्देश्य पर हो दूसरा बीच में आते ही आपका मार्ग अवरुद्ध होजाता है अतः  अपने संकल्प में किसी को प्रवेश न दें |



    Sunday, June 5, 2016

    अपनी आतंरिक शक्ति का असल परिचय आपको परिपूर्ण सफलता देगा identification of your inner power give you acme of success

    अपनी आतंरिक शक्ति का असल परिचय 
    आपको परिपूर्ण सफलता देगा
     identification of your inner power
    give you acme of successा

    सत्यघटना
    अडिग स्कूल के समय सी ही  काफी प्रबुद्ध विचार शील और मेधावी रहा था ,  पिता एक स्कूल में हेड मास्टर थे और घर का सम्पूर्ण  वातावरण सयुक्त हिन्दूपरिवार जैसा ही था, एक दुसरे के दुःख में खड़े दिखाई देते थे सब ,अडिग बचपन से ही साहित्य कार रहा, स्कूल के समय में जब उसके साथी स्टेडियम में हॉकी खेल रहे होते थे तब वह कवितायें लिख के कर  सबको मंत्र मुग्ध कर देता था | स्कूल और कॉलेज में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में उसे कोई नहीं हरा पाता था  , जब भी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक  प्रतियोगिताएं स्कूल या कॉलेज में आयोजित की जाती, अडिग का पूरा समूह उसमे अपने प्रतियोगी बना  कर प्रस्तुत  कर देता था और सफलता के साथ यदि पुरूस्कार में यदि नकद ईनाम मिला तो पास ही के एक दूकान जा कर मिठाई लस्सी और बहुत से पकवानों का जश्न हो जाया करता था ,ऐसी ही  बेफिक्र  थी जीवन  की यह मंजिल | हमारा अडिग समाजिक और राष्ट्रिय हित की संस्थाओं से भी   सघन संपर्क में रहा ,सब  जगह एक खामोश संघर्ष था और वहां भी एक छोटी जगह पायी थे हमारे अडिग ने | 

    बात १९४५  के कुछ    बाद  की है कि अडिग का स्वास्थ्य ख़राब हुआ खांसी कमजोरी और  ढेरो  स्वास्थ्य समस्याएँ 
     सांस  लेने में तकलीफ , चलने उठने बैठने में समस्या ,डाक्टर , वैद्यों और समाज के हरजानकार ने यह बताया कि बीमारी ला इलाज है अभी इसका कोई इलाज बना ही नहीं है ,  इस  बीमारी में लंग्स में पानी भर जाता है और फिर बुखार कमजोरी और तेज दर्द और कमजोरी आदमी को तोड़ डालती है ,वैद्यों के हिसाब से ताकत की दवा और उच्च प्रोटीन का भोजन इसमें थोड़ा लाभ कारी हो सकता था ,कभी कुछ ठीक कभी ख़राब ऐसे ही जीवन निकलने लगा हमारा अडिग ,एक बार एक राष्ट्रीय नेता ने अपने विचार प्रस्तुत किये और मंच से ही मांग करदी की एक लड़का चाहिए जो   अच्छी हिंदी जानता हो , नेता कलकत्ता से सम्बद्ध थे,वरिष्ठ नेताओं का चर्चा का दौर चला अचानक अडिग ने अपनी इच्छा  प्रकट की कि  मैं चला जाता हूँ ,अर्थात अडिग साथ तैयार हो गया, वो  जानता था कि जीवन में कुछ है नहीं ,कभी भी मर सकता  हूँ , एक ओर घोर निराशा  थी जीवन का लोभ और उससे की जाने वाली आकांक्षाएंं  मृत प्रायः सी थी, घर के लोग फिक्र मंद तो थे ,मगर उन सबने इस नियति को मान लिया था ,| 

    कई बार मन ने कहा  बेकार है जीवन चलो आत्म हत्या की जाए ,मगर बार बार  आत्मा के एक छोर से आवाज आती रही कि  शरीर को अपना धर्म  निभाने दो ,आत्मा की ताकत से नया  काव्य लिखो, यही सोच कर अडिग अपने आगामी भविष्य  चल दिया ,  अडिग ने भी निश्चय करलिया ऐसे  घिसट घिसट कर मरने से अच्छा यह है कि  वो संघर्ष और खुद को सिद्ध करके ही मरे, नेताजी  का  आग्रह उसे ईश्वर की राह लगी, वैद्य यही बताते रहे जबतक अच्छा खाना और संयमित जीवन चलेगा ,आपका जीवन चलता रहेगा और बाद में   ह रि  इक्छा , कलकत्ता जाकर अडिग ने एक  नए जीवन के प्रथम दिन की शुरुआत की और धीरे धीरे उसमे  वह सफल भी होने लगा | 

    समुद्र की सैर, अच्छा समय बद्ध भोजन ,वैद्यों की दवाएं और  काली माँ  का आशीर्वाद,  इन तीनों ने मिलकर अडिग को  जल्द ही ठीक कर दिया था , नेता जी  का  कद बहुत बड़ा था ,धीरे धीरे  अडिग  के सौम्य   स्वाभाव और   सारे  परिवार को  मोह लियाथा , कालान्तर में अडिग की पहिचान ही नेता जी होगये , सम्पूर्ण देश में नेता जी के साथ एक छोटे से सेवक का भी नाम लिया जाने लगा , भाषण , समाजिक कार्य  और  कविता   ने उसका कद बहुत बढ़ा दिया था ,नेताजी के भाषण के पूर्व स्टेज तैयारी  और पूर्व में छोटे भाषणों ने उसे देश में एक स्थान दे दिया था,   फिर नेता जी ने कई चुनाव लड़ाये हमारे अडिग को ,अपने स्वाभाव और क्रियाशीलता के चलते जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ हमारा अडिग और कभी किसी महिला से हार भी गया तो ये उत्तर देता  रहा कि  मातृ शक्ति थी उन्हें जीतना ही था , और एक दिन हमारा अडिग राष्ट्र की प्रमुख नेताओं में था देश की राजनीती उसके ही अनुसार चलती थी और सम्पूर्ण विश्व में उसकी उदारवादी नीति के नग्मे गाए जाते  रहे , यही जीवन का सत्य भी था | परन्तु अडिग बेफिक्र बे परवाह और अपने लक्ष्य की और चलता रहा यह कहकर  कि उस रोज नैराश्य के सागर में जो ख़त्म होगया वह अडिग नहीं हूँ  मैं  उस आत्मा का अडिग हूँ जो चिरन्तर साश्वत ,अजेय सनातन और अपूर्व शक्ति वाली आत्मा से पैदा हुआ है बस एक बार स्वयं के स्वरुप को पहिचानने  की आवश्यकता है | 

     संसार में हम हजारों ख्वाहिशें लेकर चलते रहते है ,हजारो उपलब्धियां होती है ,हजारों जगह हमे हारना होता है , क्योकि हम उस प्रतियोगिता में भाग ले रहे है , सेल्यूकस  अपने शिष्य से कहा ,क्या जानते हो जीत के बारे में ,शिष्य ने तुरंत कहा प्रयास ----- पूरी ताकत से प्रयास  उसने कहा फिर भी असफल हुए तो ---- तो दुगनी ताकत से फिर प्रयास ------ और फिर भी सफल न हुए तो ------- शिष्य ने कहा देव मुझे तो पूरी ताकत से प्रयास करना है न ,जब मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करलूं तो काम पूरा, नहीं तो काम आरम्भ समझें --- यहाँ सफलता असफलता का भाव तो समाज और दूसरों की सोच से पैदा होता है, ऐसे में जरूरी तो नहीं कि मैं  अपना आंकलन दूसरों के हिसाब से ही करू, यह कहकर शिष्य गुरु के चरणों में झुक गया | 



    पढ़ाई , मित्रता , सामाजिक सम्बन्ध , बहुत सारी कामनाएं , नशा , ख़र्च और बेतहाशा दौड़ते हुए समाज में खुद को सिद्ध करने के लिए  बहुत सारा धन ये सब भौतिक आकांक्षाएं है जिनसे मन मष्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और मन बुद्धि खुद को दूसरों की तुलना में छोटा बताने लगती है बस यहींसे हमारा पतन आरम्भ हो जाता है , हम अपने प्राकृतिक सौंदर्य को छोड़कर सबसे पहले पूरी दुनिया को देखते है ,उसके बाद स्वयं को  कोसने लगते है, यह बिना जाने की जिन चीजों के लिए हम अपने आपको दोष दे रहे है ,वे हमारे सम्बन्ध में है ही नहीं है , पढ़ाई मित्रता  सम्बन्धों के नाकारात्मक हो जाने  के बाद मन में  का भाव प्रकट    होता है , यदि उसपर दीर्घ विचार कर , आगे की रणनीति बन ली जाए तो सफलता का प्रतिशत और अधिक  हो  सकता है ,आवश्यकता इस  बात की है कि आप  आंकलन करके आगे की रणनीति बनाने का प्रयास करें | 


    दुःख -अवसाद -और दर्द में महांन शक्ति होती है ,इतिहास गवाह है कि बहुत बड़े बड़े रचनात्मक परिवर्तन इसी अवसाद ,दुःख और दर्द से पैदा हुए है | सुख --जश्न --और खुशियां मनाने के नियत प्रकार है क्योकि उसमे बहुत कुछ कमी और तरीके हो सकते है अर्थात उसमे पूर्ण शक्ति एकत्रित नहीं पाती मगर ,दुःख और अवसाद में वह अजेय शक्ति होती है जो अपने संकल्प और शक्ति के माद्यम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने का साहस रखती है ,अपने अवसाद और नैराश्य को महान शक्ति बनाइये और उसे संकल्प और क्रिया शीलता की आग में पकाइये , समय को झुका कर एक दिन सारी सफलताएं आपके अपने द्वार पर खुद दस्तक देने आएंगी ,यहाँ आप को यह चुनना है कि आपकी ख़ुशी काहे में है | 



    ,जब हम आपना आंकलन दुनिया के हिसाब से करेंगे तो, फिर शान्ति , सुख और सम्मान कैसे मिलपाएगा हमे , दुनिया का काम केवल हमे निकृष्ट बताना ,हारा हुआ बताना और भारी दुःख में हमे बताना था और हम भी खुद को वैसा ही बताने लगे , दुखी होने लगे ,जबकि हमारे अंतर में हर ख़ुशी विद्यमान थी , हम सारी समस्याओं का खुद निदान थे मगर हमने अपने आपको पहिचाना ही नहीं , हमने स्वयं को देखा ही नहीं ,हम बस दूसरों की आँखों में अपनी तस्वीर देख कर उसके बताये अनुसार  रोते रहे ,वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की हम मर गए है, उसके आर्त और उच्च स्वर में हम भी अपना रोना मिलाते रहे ,कि  हम  बहुत अच्छे थे --- बड़ी देर बाद याद आया ---मगर मै  तो जिन्दा हूँ , ताकतवर हूँ ,कमजोर नहीं हूँ , फिर क्यों  रो रहा हूँ ,बस यहीं से आत्मा अपना आंकलन कर जीवन को लक्ष्य पर ले जाएगी ,आप स्वयं का चिंतन अपनी अपराजेय शक्ति के स्त्रोत  के द्वार को खोलने के लिए करें | समाज और तुम्हारे परिवेश ने तो तुम्हारा नकारात्मक आकलन हमेशा किया है, उसने इतनी बार वो नकारात्मक जुमले तुम्हे सुनाये है कि  तुम अपनी वास्तविक तस्वीर तक भूल गए हो ,अपना सौंदर्य और शक्ति की मूल द्धारा से वंचित होगये हो, फिर कैसे सुख , सौंदर्य और शांति प सकते हो आप, आपको शांति सुख की खोज में अपने अंतर के रहस्यों तक जाना जरूरी है | स्वयम  की शक्ति और आत्मा का विचार अवश्य करें ,सारी समस्या इस बात की है कि हम स्वयं का आंकलन नहीं कर पारहे ,यही हम सारे संसार और अपना आंकलन भी दुनिया के हिसाब से कर रहे  है| 


    सारी शक्तियों के साथ है आप ,आप हर समस्या और हर नकारात्मकता का जबाब है , बस ाआवश्यक्ता इसबात की है एक बार स्वयं को रोक कर एकाग्र  भाव से यह जानने का प्रयत्न अवश्य करें कि जो आंकलन हम सकारात्मकता और नकारात्मकता का कर रहें है वह कितना सही है , 
      हर असफलता , हार और नकारात्मकता आपके पास एक ऐसा मौन सन्देश लेकर आती है की आप सावधान होकर उसके सन्देश को समझने का प्रयत्न अवश्य करें, प्रेम की असफलता आपको यही  समझाने का प्रयत्न करती हैकि , खुद को सिद्ध करके बताओ ,अहम की हार आपको यह बताती है कि अपनी एकाग्र शक्ति का विकास करों ,संकल्प करो और भौतिक संसाधनों की कमियां आपको इस बारे में सोचने को मजबूर करती है कि  आप उनके बारे में विचार करे और उनकी आपूर्ति के लिए खुद को सक्षम बनाये , प्रयास करें , हम जो भी है आज है  वो सब हमारे संकल्पों का परिणाम है ,और आगे भी इस संकल्प की प्रक्रिया को इतना सशक्त बनाया जाए जिससे आपको दुनिया की हर सफलता आपके लिए सहज हो जाए


    निम्न भावो में स्वयं को  अवश्य ले जाइये 
    • आपका जन्म का आधार भूत  उद्देश्य क्या है क्या आप केवल  साधनों और भौतिक संसाधनों की उपलब्धि में ही तो नहीं उलझे आपको प्रमुख उद्देश्य तक पहुँचाना ही चाहिए | 
    • हर नकारात्मकता , हार और असफलता यह बताने का प्रयत्न अवश्य करती है  कि, इस सफलता के लिए कुछ और किया जाना बाकी है, -एक बार नए तरीके और नयी ताकत से नयी तकनीक के साथ ,अलग प्रयास अवश्य करें सफलता आपको ही मिलेगी | 
    •   आपना आंकलन दूसरों के हिसाब मत करो ,दूसरों के पास आपको परखने की शक्ति ही नहीं है , जब आप दूसरों के हिसाब से अपना आंकलन करते है तो, आप स्वयं की शक्तियों को जान ही नहीं पाते स्वयं को श्रेष्ठ समझ कर संकल्प और सकारात्मक परिवर्तन करें 
    • हर परिवर्तन कास्वागत करने का मन बनाएं क्योकि जीवन में अवसाद केवल तब ही आता है जब हम जीवन के परिवर्तनों को नकार  देते है  जबकि परिवर्तनों को अपनाना महत्वपूर्ण है | 
    •  जीवन को सफलता  और असफलता का मैदान मत बनाइये ,  क्योकि पूर्ण प्रयास को हम सफलता ,और प्रयास में  कुछ कमी को असफलता  मानते है,  हम जबकि प्रयास करना ही आधी सफलता है | 
    • संकल्प का निरन्तर ध्यान रखना आपको अपनी  सफलता तक अवश्य लेजायेगा , क्योकिहम जिसका   निरन्तर ध्यान करते है उसकी प्राप्ति हमे होना ही है |
    • स्वीकार्यता  आशय  है , सफलता  असफलता को पूरे मन से स्वीकार कर  नयी तकनीक और नए उत्साह के साथ आगामी  कार्य और संकल्प में जुट  जाने की आवश्यकता है | 
    • सफलता के प्रति  पूर्णआश्वस्त रहने में आधी सफलता  हांसिल होना  तय है ,जबतक हम अपने कर्तव्य  और संकल्पों को सफलता  के  प्रति आश्वस्त नहीं कर पाएंगे ,तब तक सफलता अपना लाभ नहीं दे पाएगी | 
    • स्वयं का आकलन  करें और अपनी सुप्त  और जाग्रत शक्तियों केद्वार खटखटायें , और निरन्तर स्वयंको तैयार रखें कि  आप इसमें अवश्य सफल होंगे | 
    • जीवन के कार्यों और भविष्य के लिए कुछ विकल्प जरूर रखें , कभी कभी आपका बार बार  असफल होना  बात का इशारा है कि आपको नए विकल्प और तकनीक से सफलता  जीतना होगा |

    Sunday, May 29, 2016

    सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

    सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

    वीर सेन और उनकी पत्नी कसबे की हवेली में ही निवास करते थे बाप दादों की जायदाद ने खूब वैमनस्यता बढ़ा दी थी  तीनों भाइयो में ,सबने अपने अपने हिसाब से लूटा था संपत्ति को मगर जब भी जिक्र चलता तो एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाती थी , पति पत्नी दोनों आज भी राजा साहब रानी साहब कहलाना पसंद करते थे वो बात और है कि अब न राज्य थे न न राजा शाही मगर पर्याप्त ठसक थी दोनों में एक पुत्र था सुयश जब  कभी बात होती थी परिवार में तो बड़े गर्व से कहा जाता था की बेटा  कलेक्टर बनना और इन बदमाशों को अच्छा सबक सीखना और सुयश को कमोवेश यह याद भी होगया था की मुझे कलेक्टर बनना है वो भी िंबदमाशों को सबक सिखाने के लिए |

    घर का माहौल बड़ा अजीबो गरीब था दो नौकरों ने ही पाला  था सुयश को, माँ बाप बड़े लोगो जैसे पार्टी , मस्ती और राजसभा जैसी भीड़ लगाए रखने के आदी थे, रात दिन पार्टियां और कार्यक्रम होते रहते थे हवेली में और इन्ही के मध्य हमारा सुयश बड़ा हुआ , और कब उसे शराब की लत लग गई पता ही नहीं पड़ा, परन्तु जब कभी चापलूस लोग उसे और पिताजी को याद दिलाते थे कि उन्हें बटवारे में कुछ मिला ही नहीं ,तो दोनों भद्दी भद्दी गालियां देते हुए चाचाओं को गालियां देते थे अपना संकल्प याद करते एक दिन कलेक्टर बनकर इन्हे जरूर सबक सिखाया जाएगा | और ऐसे ही माहौल में कब इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी  हो गई कब पढ़ाई पूरी करके  कब घर के ऐशो आराम में  डूब गया सुयश यह मालूम ही नहीं पड़ा |

    समय की गति देखिये बाह्य दिखावो और हैं घोर  लापरवाही के चलते वीर सेन की सारी  फैक्टरियां बंद होगई  जो लोग  शाम मुजरा करके चापलूसी करके गुजारा  कररहे थे अचानक लेनदार  होकर खड़े होगये हवेली , प्रतिष्ठान सब नीलाम होने लगे एक दिन दोनों पति पत्नी ने यह विचार किया अब कोई उपाय नहीं है,  यह सोचकर खाने में जहर मिला कर सबको खिला दिया गया , तत्परता से अस्पताल लेजाने पर केवल सुयश बचा माता पिता दोनों दिवंगत होगये और सुयश भी कोमा में ही जीवित -मृत के बीच फंसा रहा ,लोगों ने विचार किया कि ऐसे तो वो संपत्ति पर कब्जा कर नहीं पाएंगे तो उन्होंने सुयश को एक आश्रम में  कर संपत्ति पर कब्जा कर लिया |

    आश्रम के गुरु ने उसे देखा फिर परमात्मा को याद करके उसकी सेवा चालूकरदी दुआओं और दवा का असर दिखा और सुयश ठीक होगया था बहुत कमजोर परेशां पर निरीह सा ,गुरु ने कहा पुत्र अब आप ठीक हो मगर अब आप जाओगे कहाँ  उस दुनिया में आपके लिए कुछ बचा ही कहा है , हाँ एक बार जरूर जानता हूँ ,कि तुम बेहोशी में कलेक्टर बनने और किसी किसी को गालियां दे रहे थे , तो  उसके लिए तुम्हे आज से ही प्रयास करना होगा पुत्र जीवन की सार्थकता के विषयों पर ही  आदर्श  स्थापित करो | 


     गुरुने समझाया पुत्र जीवन से जुड़े हर व्याक्ति और विषय को छोड़ने का एकमात्र तरीका है , कि हर उस  व्याक्ति को माफ़ करदो ,हर विषय की वासना छोड़ दो , जिसने  अच्छा किया है उन्हें बारम्बार प्रणाम करलो और जो तुम्हारे मन मष्तिष्क में ख़राब है उन्हें भी समय की  गति जानकर माफ करदो, इससे तुम्हारी आत्मा किसी भी और न जाकर एकाग्र भाव पैदा कर देगी , संकल्प की शक्ति को इतना विशाल बनाओ जहाँ तुम्हारी एकाग्रता और क्रियान्वयन  के सिवा कुछ न रहजाए ,पुत्र इस तरह आप  अपने नाकारात्मक बंधनों से स्वयं मुक्त होकर  एकाग्र और परम शांति में खड़े होजाओगे यही से तुम्हारे नए जन्म का शुभारम्भ होगा | आज सुयश एक सीनियर कलेक्टर था और उसे अब जीवन से कोई शिकायत भी नहीं थी |

    जीवन के महत्वपूर्ण संकल्पो  के साथ जब भी नकारात्मकता का आधार तय किया गया तब तब छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए बड़े बड़े जीवनों की   कुर्बानी दी गई , भौतिक सुख साधनों , अपने स्वयं के अहम के लिए जिन लक्ष्यों को आधार दिया गया था वे सब उस दीवार पर खडे भवन थे  ,जिन्हें कभी भी ढह जाना था ,घनघोर वैमनस्यता क्रोध लालच और असत्य और झूठ फरेब  तिरस्कार और स्वार्थों के सहारों पर जीवन का लक्ष्य स्वयं अपने से हारा हुआ सत्य है ये तो वैसा ही हुआ जैसे सोने की चाह रखने वाले राजा ने , अपनी एकलौती बेटी को सोने का बना कर खुद को बे औलाद कर लिया और सर पटक पटक कर रोंने लगा |

    जीवन नश्वर है और उससे जुडी हर विषय वस्तु , सम्बन्ध और भौतिक लिप्साएँ भी नश्वर   ही होंगी , मेरा अहम और तरह तरह की शक्तियों का जो घमंड था वह भी तो नश्वर था , कहने का आशय यह कि धन वैभव , राज प्रसाद और  दूरतक फैले राज्य कल किसी के थे, और कल किसीके होंगे , कल भी  कई दुश्मन थे मेरे और कल भी कई दुश्मन खड़े होंगे ,यह क्रम अनवरत चलता रहेगा मन और बुद्धि की मांगे कभी ख़त्म ही नहीं हो पाएंगी और सम्पूर्ण समय इन्ही विषय वस्तुओं और अनश्वर  वस्तुओं के संकलन में गुजर जाएगा फिर तो जीवन  अपने महत्व पूर्ण उपलब्धियों से वंचित हो जाएगा , जीवन के अनश्वर भाग में  आपके उद्देश्य अपरिग्रह क्षमा सब बहुत महत्व पूर्ण है जिनको आपके अस्तित्व की तरह अजर अमर और अनश्वर ही रहना है |


    ईसा ,बुद्ध ,महावीर नानक और मोहम्मद सबने केवल एक सन्देश दिया कि कलको  माफ़ करदो ,जो सूली पर  चढ़े ईसा को प्यासा मरते देखते हुए भी मजाक उड़ाते रहे वो समाज था ,जो मोहम्मद और उनके रिश्तेदारों के प्रति गुनहगार रहे वो भी समाज था ,और जो नानक बुद्ध और महावीर पर पत्थर बरसाते रहेवो भी समाज के उनके अपने ही थे , मगर  वे सब बहुत महान थे ,वो सबसे पहले उन्हें ही माफ़ करके आगे बढ़ गए क्योकि वे नहीं चाहते थे कि जीवन के किसी भी भाग में ऐसे नकारात्मक  समय को आश्रय  दिया जावे ,जिससे उनकी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता ख़त्म होजाये , हम सब ही तो सुबह से शाम तक किसी न किसी का व्यवहार आचार विचारों पर टिपण्णी करते रहते है और कालांतर में वैसे ही हो जाते है असफल , अशांत और अपूर्ण से



    संकल्पों की शक्ति को इतना बड़ा और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर बनाया जावे जिसके आदर्श आज ही नहीं सदियों तक याद किये जाते रहें ,इस शक्ति को जब भी निरन्तर कर्म का आधार  मिला है आप सही मानिए वहीं से इतिहास लिखे गए है , बिना किसी की परवाह और अपनी अवहेलना करके जब भी आप आगे बढे है समय ने खुद रास्ते छोड़कर आपका मार्ग प्रशस्त किया है ,और इसके लिए आपको स्वयं की शांति चाहिए स्वयं में स्थित होने काभाव क्योकि स्वयं में स्थिर हुए बिना आप एकाग्र हो ही नहीं सकते और एक बार आप एकाग्र होकर स्वयं की शक्ति का साक्षात्कार कर पाये तो आपको कुछ पाना  शेष ही नहीं रहजाएगा , फिर तो हर उपलब्धि आपके कदमों तले  होगी आर आपका समूर्ण अस्तित्व ही पूर्णानंद में सफल घोषित किया जाएगा |


    निम्न का प्रयोग करके अवश्य देखें


    • जीवन में क्षमा का भाव दूसरों के लिए नहीं अपितु स्वयं के लिए बहुत आवश्यक है यही से संकल्प का प्राथमिक  आधार  अपनी मजबूती पाएगा और आपको सकारात्मकता की और पहुंचा सकेगा | 
    •  जीवन में क्षमा का भाव आपको उनलोगो के चिंतन से मुक्त कर देगा जिनकी कोई उधारी आपने अपने पास रखी हुई थी , इसके बाद आपका चिंतन उन्हें विस्मृत करने की हद  पर लेजाकर स्वयं एकाग्र हो जाएगा | 
    • परिश्रम और निरंतरता दोनों ही आपकी सफलता के लिए वैसे ही आवश्यक है जैसे बैलगाड़ी के दोनों पहिए और इनका सामंजस्य बन रहना जरूरी है | 
    • मानसिक एकाग्रता का का भाव आपके प्रयास  से ही पैदा होना है और वह भी अपने संकल्प की नित्य आवृत्ति से आपको प्रति पल यह याद रखना चाहिए | 
    • कर्म के प्रति गहरी श्रद्धा से ही आप कर्म बन्धः से मुक्त होकर अनवरत सत्य चित्त आनंद  में  पहुँच पाओगे और वहां आपका आनंद और लक्ष्य की पूर्ती स्वयं हो जानी है | 
    • जीवन को मुद कर देखने की आवशयकता है नहीं है वहां आपके अलावा कोई होता ही  कहाँ है  अतः उसके पूर्ण होने में आपका भय मुक्त और अकेला होना आवश्यक है |

    Sunday, May 22, 2016

    अपने लक्ष्य को एक जुनून में परिवर्तित करो Make your goal into a passion

    अपने लक्ष्य को एक जुनून में परिवर्तित करो
    Make your goal into a passion


    एक गुरु आश्रम में  कोई बड़ा उत्सव मनाया जाने वाला था  ७ दिन शेष  बचे  थे  सभी लोग कठिन परिश्रम से आगे आने वालों की व्यवस्था कर रहे थे , सारे  शिष्य  जोरो शोरो से अपनी गुरु सेवा का पालन कररहे थे ,ठण्ड का हिमालय वाला समय था ,गुरु जी ने आदेश दिया  कि  लकड़ियों का पर्याप्त प्रबंध किया जाए, सारे शिष्य जंगल में कूद पड़े बस दो तीन शिष्य रसोई और सफाई आदि  के  प्रबंध  में लगे रहे ,उनमे से एक शिष्य गूंगा था नाम था सोऽहं ,इशारों और समय की भाषा बहुत अच्छे से समझ लेता था ,रात्रि में दो बजे उठ  कर  सारी सफाई  धुलाई  और हर वह काम जो, छोटा समझा जाता था ,वह उसे करने में माहिर था , रात्रि को सारे बर्तन मांज कर सुबह की व्यवस्था करना उसका ही काम था । जब गुरु अपने शिष्यों को पढ़ा रहे होते थे ,तब वह बड़े विनम्र भाव से काम करते करते भी उन्हें देखता और प्रणाम करता रहता था ,सब लोग उसे पागल ही समझते थे ,परन्तु गुरु जानते थे कि  वह आज्ञा कारी और बहुत मेहनती है बेचारा सुनने और  बोलने में असमर्थ है बस , जैसी ईश्वर की लीला ।

    आश्रम के बहार अन्य शिष्यों ने ,लकड़ियों और सूखे वृक्षों का ढेर लगा दिया था , एक बड़ा पहाड़ ,रसोइया गुरूजी से कह रहा था कि   मुझे तो कटी लकड़ियां चाहिए महाराज ,ऐसे कैसे काम चलेगा , महाराज गहन चिंता में थे २ दिन बचे  थे कार्य क्रम में  ,सारे शिष्य लकड़िया रख  कर खाना खा कर  सो चुके थे ,सारा काम करने के बाद सोऽहं को गुरु माँ खाना खिला रही थी    और गुरु देव से परेशानी की बातें भी सुनती  जा रही थी ---कैसे  होगा सब ,कल आमंत्रण भेजने है ,बहुत काम है ,अथिति निवास बनाने है  ,और लकड़ियों का ढेर ,ये सब मिलके भी नहीं काट पाएंगे ,इन सबको सोचकर --- पसीने की लकीरें स्पष्ठ थी गुरु देव के माथे पर | 

    सुबह होने को थी मुर्गा कबका बांग दे चूका था रात भर सो नहीं पाये थे गुरु , , जमीन को उठते ही प्रणाम किया तो वो गीली थी ,कोई पूर्व में ही उसे साफ करके जा चुका था ,  गुरु ने आश्रम के बहार कदम रखा ही था कि , जो दृश्य उन्होंने देखा वो असम्भव सा  था ,गुरु  माँ एक बड़े पत्थर पर बैठी है और सोऽहं  सारी लकड़िया काट कर रसोई घर में पहुंचा चुका है ,गुरु माँ ने बताया कि  पूरी रात में उसने एक अदृश्य शक्ति की तरह सारी लकड़िया काट दी है ,सुबह सारे आश्रम की सफाई कररहा था ,तब मैं  जागी , तो वह बिना किसी भाव के आपके उठने की प्रतीक्षा में था ,गुरु विस्मित , गदगद , और निरुत्तर थे बस वो पाँव दबाते सोहम को देखते रहे | 

    आश्रम में सन्यासियों और गुरुओं का जमावड़ा था गुरु के बाबा गुरु भी आये थे हिमालय से ,उन्हें ही सफलशिष्यों की सफलता की घोषणा करनी थी ,बड़ी बड़ी दीक्षाएं और शिक्षाओं के साथ सरे शिष्य सजे धजे खड़े थे ,पता नही किसको कब पुरूस्कार मिलजाए , सोऽहं  रसोई में काम करवा रहा था, बार बार प्रणाम करता जाता था , प्रमुख रसोइया कईबार सबके साथ उसकी हंसी उडा  चुका था ,ये प्रणाम ही करता रहता है ,मगर  मेहनती है बेचारा पागल है न | 
    अचानक महां  गुरु ने  नाम पुकारा ----महायोगी निवृत ---- सन्नाटा खिच गया था आश्रम में ,गुरु ने  कहा  महाराज यहाँ इस नाम का कोई नहीं है , अचानक सोऽहं गंदे मैले कुचैले कपड़ों में गुरुको प्रणाम करने पहुंचा --महागुरु  --गुरु से बोले पुत्र यही है महायोगी निवृत    ---पर इसे तो  ---- हा जानता हूँ ,यही बताएगा सब ,मैंने ही इसे इस आश्रम में भेजा  था | महा  गुरु ने पूछा पुत्र कैसी रही आपकी यात्रा ---- निवृत ने  गुरु को प्रणाम कर कहना आरम्भ किया 

    देव आपके आदेश के बाद मुझे मेरे गुरु मिलगये थे ,जिस दिन मैंने इन्हें गुरु मान लिया मैंने अपनी आवाज अपने गुरु को ही मान लिया था , फिर मुझ पर बोलने को कुछ था ही नहीं ,देव संसार में बहुत कुछ सुनना ही सबसे बड़ा रोग है ,गुरु पाने के  पश्चात केवल गुरु की आवाज के अलावा सारी आवाजें व्यर्थ  थी ,तो  मैंने स्वयं को गुरु की आवाजे सुनने का माध्यम बन लिया और कुछ सुनना ही बंद करदिया ,और सेवा परिश्रम और प्रसंशा  ही तो अभिमान पैदा करती है|  ,इसलिए स्वयं को पागल के रूप में रख दिया ,और हर पल अपने काम के साथ भी अपने गुरु को प्रणाम करता रहा इससे मैं अपने लक्ष्य को याद करता रहता था ---जिससे  कोई मुझसे न तो तुलना करें  और मुझे केवल पागल समझ कर अपने काम में लगे रहने दें | जिससे मैं  अपने गंतव्य तक बिना अवरोध के पहुँच  पाऊं --यह कहकर सोऽहं या निवृत अपने गुरु के चरणों में गिर गया महा गुरु बोले पुत्र धन्य हो तुम,  एक दिन  ये ही सूत्र जीवन में सफलता के प्राथमिक कारण बनेंगे ,आओ अब आगे का मार्ग आपको बुला रहा है --- यह कहकर महा गुरु आशीर्वाद देते हुए और निवृत्त प्रणाम करता हुआ आकाश मार्ग से अदृश्य हो गए | 


    जीवन में सफलता का एक ही द्वार है वह है कठिन  पारिश्रम नियत उद्देश्य और उसे प्राप्त करने का मार्ग , सबसे बड़ी विडम्बना यह है की सबके पास इन तीनों की कोई कमी नहीं है, मगर इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप अपने लक्ष्य को हर पल हर घड़ी हर स्वास के साथ याद रख पाये कि  नहीं ,यदि आप ऐसा नहीं करपाए तो ,आपके पास सफलता के लिए बहुत कम  भाग बच पाएगा  और आपके लक्ष्य निरन्तर बदलते बदलते ,आपके सारे जीवन पर एक भारी प्रश्न चिन्ह बन जायेगे ,जीवन का स्वाभाव ही ऐसा है कि  जहां भी कोई कठिनाई आई ,वह सरल रास्ता चुनकर निकल भागने का प्रयत्न करने लगता है , यह नहीं तो यह सही , मगर यदि आपका संकल्प पूर्ण और सत्य के साथ है तो देर सही मगर सफलता आपकी ही होगी इसमें संदेह नहीं है | 


    लक्ष्य  से प्रेम उसी तरह हो ,जिसप्रकार एक प्रेयसी या प्रेमी अपने प्रेमी  के लिए विहृल , आतुर और कुछ भी करने की भावना का भाव लेकर प्रतीक्षा रत होजाता  है , वह हर रुकावट , कठिनाई और आग के दरिया को भी लाँघ जाने की शक्ति पैदा करलेता है , वह जीवन की किसी  भी चिनौती को  अपने कद से बड़ा नहीं समझता और किसी भी सूरत में प्राप्ति की कामना रखता है , उससे कौन सफलता को दूर कर सकता है ,मेरे दोस्तों यह कोई प्रेमी या प्रेयसी नहीं यही आपके लक्ष्य की कामना है ,जिस  छड़  आपके सम्पूर्ण अस्तित्व की आवाज एक कशिश बनकर अपनी मंजिल को पाने की चेष्टा करती है तो हर सफलता आपके सामने नत मस्तक हो जाती है | 



      पागल था सूरा --- ------कबीरा बेगाना  था -------  तुलसी भी बोरा था ---------- मीरा थी बाबरी 
    संसार  से जब तक आप कुछ चाहते रहोगे ,वह भी आपसे कामनाओं पर कामना करता रहेगा और कभी आपको अपने लक्ष्य में सफल नहीं होने देगा , यहाँ संसार आपसे ही  मांग करता है कि आप एक अच्छे पुत्र ,पुत्री एक अच्छे पति या पत्नी या एक अच्छे पिता माता ,भाई -बहिन , और हजारों रिश्तों में आप पूर्ण हों और उसके लिए बेचारे बने रहें ,तो उसका  अहम शांत रहेगा और जहा   समाज को स्वयं को छोटे पन का अनुभव हुआ, वह आपका विरोधी हो जाएगा ,तुलसी  कबीर ,सूर , और मीरा  ये महा पुरुष इसबात   स्पष्ट कर चुके है  कि  ,जीवन को दूसरों की इच्छा के अनुसार बनाने वाले ,केवल असफल , अशक्त और हारे हुए होते है ,जिन पर समायोजन करते करते अपना खुद का कुछ रह ही नहीं जाता और जबतक आप स्वयं को अपने संकल्प के जैसा नहीं बन पाये तबतक आप सफल , आंनदित और  पूर्ण नहीं हो सकते 
    इसलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए पागलों की तरह परिश्रम रत रहो और यही जूनून तुम्हे तुम्हारी दृष्टी की सीमा  से अधिक तुम्हे सफल सिद्ध कर देगा | 


     निम्न का प्रयोग करके देखिये 
    • सफलता का भाव स्पष्ट और सहज दृष्टि  गत होता रहे ,उसके लिए बार बार चिंतन , सीमाएं और एक सहज मार्ग अवश्य बनाया जाए ,अन्यथान आप आगे जाकर स्वयं भ्रमित हो जाएंगे | 
    • अपने संकल्प को निरन्तर याद कीजिए , और प्रति दिन आप उसके लिए क्या करपाए या क्या नहीं कर पाये इसको अवश्य ध्यान से देखते रहेँ,  जिससे आप स्वयं की गलती समझ सकें | 
    • सफलता का सूत्र इस बात पर निर्भर है कि  उसके लिए आप क्या बलिदान दे पारहे है और इसको हमेशा याद रखे कि  संकल्प की पूर्ती के लिए उन सब क्रियाओं  का बलिदान करें जो इसमें बाधा हों | 
    • सामयिकी धर्म का सबसे बड़ा शब्द है अर्थात जिस समय का संकल्प के अनुरूप सार्थक प्रयोग हुआ है वही सच्चे अर्थों मे  जीवन का मायने है ,जो समय संकल्प के अनुसार नहीं रहा ,वह व्यर्थ रहा, इस जीवन की निरर्थकता कहा  गया है | 
    • संकल्प की व्याख्या किसीसे न की जाए ,केवल अपने अंतरात्मा में उसे पूर्ण किया जाए, अन्यथा वह सफलता से पहले ही आपका अहंकार बन जाएगा | 
    • संकल्प और लक्ष्य का निर्णय के बाद आप यह निश्चित अवश्य करें कि यह आपका निर्णय है और इसकी सफलता असफलता आपकी है , ऐसे में दूसरों की बातें सुनने के लिए आप बाध्य नहीं है ,इससे आपको एकाग्रता और शक्ति मिलेगी | 
    • स्वयं को संकल्प दोहराने की और स्वयं को सकारात्मक लक्ष्य के लिए निरन्तर धन्यवाद कहें आपको लगेगा की आपकी बहुत सी राहें आसान हो गई है | 
    • स्वयं को अपनी दृष्टी में सम भाव में रहने दें ,न तो दयनीय बनने की आवश्यकता है और न ही बहुत बड़ा दिखने की कोशिश करें, दयनीयता का भाव आपको अपनी नजर में गिरा  देगा ,तो बड़ा दिखने का भाव अहंकार ग्रस्त कर देगा 
    • शांत और सहज भाव से स्वयं के संकल्प के प्रति आप अपनी क्रियान्वयनता   को देखते रहे ,जहां आपको लगे कुछ और सार्थक किया जा सकता है तुरंत करें | 


    ब्रह्मांड के एक सुदूर तारे को लक्ष्य बना कर किसी अंतरिक्ष यान में जाते हुए किसी महान इंसान की कल्पना अवश्य करना जिसे यह मालूम है की एक छड़ में विस्फोट के उसका  अस्तित्व भी राख में बदल सकता है ,फिर भी वह बहुत प्रसन्न है कि  यही मेरा लक्ष्य है, अब जीवन मृत्यु सब मेरी ही तो है ,तो फिर शिकायत किससे ,यही भाव जब आपके मन मष्तिष्क की शिराओं में उतर जाएगा तो आप यह सच जानना की दुनिया की हर सफलता आपके सामने छोटी हो जायेगी



    Sunday, May 15, 2016

    जीवन का चरम लक्ष्य और हम (ultimate goal of our life)

    जीवन का चरम लक्ष्य और हम
    (ultimate goal of our life)

    शुभम परीक्षा की तैयारी में था मन बहुत  अशांत था ,कोई तो नहीं था उसके दुःख सुख की कहानी सुनने वाला, एम। टेक  का आख़िरी सेमिस्टर था ,  माँ ,पिता और बहिन अभी हाल ही मे एक कार एक्सीडेंट में गुजरगए थे , चाचा , ताऊ और रिश्तेदारों ने सारी संपत्ति पर कब्ज़ा करलिया था ,तमाम कोर्ट कचहरी के बाद एक छोटा भाग जिसमें कभी बाबा के जमाने में नौकर रहते थे शुभम को मिल पाया था , और सबकुछ मिलने के बाद भी मन में एक गहरी वेदना थी ऐसा जैसे भयानक वेदना के बाद उसे रोने नहीं दिया जा रहा हो ,उसने तय किया की इस  तिरस्कृत जीवन से  बेहतर यह है कि  इस समाज को ही छोड़ दूँ यह सोचकर  उसने अपने जरूरी कागज़  २-३ कपडे बैग में डाले और एक ट्रैन में सवार होगया उसे कब नींद आ गई पता नहीं | , 
    ट्रैन चली जा रही थी लगभग १६ घंटे बाद उसकी नींद खुली उसने उसने यन्त्र वत  भाव से  सबको देखा , मन में फिर माता  पिता , और रिश्तेदारों के अन्याय के विचार आने लगे और उसे लगा कि अब है ही क्या , अचानक वो एक पहाड़ी स्टेशन पर उतर गया और एक ऊँचे पहाड़ी टीले पर से उसने जीवन समाप्त करने की छलांग लगा दी , ५ दिन बाद उसको होश आया तो उसने देखा कि एक साधु की कुटिया में वो लेटा  है ,साधु उसकी सेवा कररहा है एक ऐसे भाव से जैसे वो उसका ही पुत्र हो , कुटिया  में छोटे छोटे ग्रामीण बच्चे उसकी सेवा में थे कोई हाथ मल रहा था कोई पाँव दबा  रहा था कोई उसके सिर  में दवा युक्त तेल लगा रहा था ,और वह पूर्ण आराम में था | ,
    साधु ने बताया पुत्र आप एक पेड़ में अटके थे आप कैसे गिरे मालूम नहीं था मगर बच्चे आपको यहाँ लेकर आये बताया आप बहुत  पढ़े लिखे हो ,फिर ऐसी नादानी क्यों की आपने ,साधु निर्बाध गति से बोले जा रहा था ---
    पुत्र मैं  सब जानता हूँ की तुम्हारे साथ क्या हुआ ,,परन्तु वो सब नहीं होता तो तुम सफल भी नहीं हो पाते , ईश्वर ने तुम्हारा रास्ता उस दलदल से निकालकर एक अजेय और परम सत्य का मार्ग दिया है ,तुम उसकी चिनौती स्वीकार करो और जीवन को सफल बनाओ , बेटा निष्काम कर्म का मार्ग सबसे कठिन है ,मगर आज से आप उस कर्म का संकल्प करो, जीवन तुम्हें क्या क्या देता है ,यह देखते जाओ ,साधु की बात और अपनी मेहनत से शुभम ने पहली बार में आई.ए.एस.की परीक्षा पास की और पिछड़े -दलित और निस्सहाय लोगो की सेवा में लग गया ,उसे यह रहस्य मालूम हो गया था जीवन बहुमूल्य है और निस्सहाय को ख़ुशी देने का अर्थ और सुख क्या होता है | आज उसे सन्यासियों का ईश्वर ,पैगम्बरों का अल्ल्लाह और गुरु परम्परा  में नानकका एक ओंकार और प्रेयर में डूबे पादरियों का ईसा सहज ही मिल गया था | 

    संसार का एक ही नियम है कि जब आप बहुत बड़े आदर्श लक्ष्य का मार्ग तय करते हो तो  वह आपकी इतनी परीक्षा लेता है कि आप अपना साहस ही खो देते है ,मगर ध्यान रहे यदि आपके पास एक  विश्वास , कर्म की शक्ति और संकल्प की लाठी होगी तो आप समय और हर समस्या को सहज ही लांघ जाएंगे , आपके रिश्ते, नाते , अपने और दोस्त केवल बाह्य भावनाओं के साथ संसाधनों से जुड़े रहते है मगर सबमे एक सहज ईर्ष्या का भाव हमेशा बन रहता है परिणाम यह कि  वे किसी बुरे शत्रु से अधिक आपको हानि पहुंचाते रहते है ,क्योकि उनके मूल स्वाभाव में स्वयं को सर्वोपरि बताने की होड़  बनी ही रहती है | 

    भगवान महावीर समय को सबसे बड़ा संकल्प साधन मानते थे उनका मानना था कि जिस समय का प्रयोग सत्कर्म और सकारात्मक स्वरुप में किया गया ,वह धर्म है ,यहाँ यह स्पष्ट समझ लें कि सकारात्मक संकल्प का आशय यह है कि आप स्वयं के अविनाशी , अतुलित शक्तिस्रोत , और एक परा सत्ता  के निष्काम कर्म का माध्यम हो इसे समझना आवश्यक है , उनका सामायकि मंत्र यह बताता था  कि अब संसार का चिंतन नहीं वरन अपने मूल स्वाभाव का चिंतन करें जो अति शक्ति संपन्न है , आपका जन्म उस अजेय कार्य को सिद्ध करने के लिए हुआ है जो आपको और आपके जीवन को स्वयं सिद्ध कर देगी ,आवश्यकता आपको स्वयं का घ्यान ,एकाग्र और निष्काम भाव के संकल्प की है | 

    एक युवा शिष्य ने गुरु से पूछा कोई नहीं है मेरा क्यों न मैं आत्म हत्या कर लू ,गुरु ने कहां पुत्र तुझे  ५०० वर्षों की यातना के बाद फिर पैदा होना होगा ,फिर तेरे बच्चे  पत्नी और तेरे अपने आत्महत्या कररहे होंगे,क्योकि पूर्व में तूने उन्हें ये दुःख दिया था ,और यदि यहाँ भी तूने वोही मार्ग अपनाया तो आगे के १००० वर्षों तक फिर यातनाएं भुगतेगा यहाँ फिर तुझे अकाल मृत्यु  में जाना होगा और जन्मों तक यह क्रम चलता रहेगायही हिन्दू धर्म का सर है , इस लिए निष्काम भाव से कर्म करो और जहाँ हो , जैसे हो , अपने संकल्प की शक्ति से अनवरत चलते रहो एक दिन हर सफलता आपकी होगी | 

     हार, दुःख ,धोखा ,अन्याय और यातनाएं आपको और अधिक मजबूत और कर्म के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव देती है ,वो यह स्पष्ट करती है कि व्याक्तित्व के किसी कौने में परीक्षा की तैयारी अच्छे से नहीं हुई है उसमें और परिष्करण की आवश्यकता है ,समाज और संसार आपको केवल तुलनात्मक रूप में सहायता करता मिलेगा ,जबतक आप बेसहारा , बेचारे , यातना पाते, और निचले स्तर  पर उनसे दया की याचना करने वाले हुए तो वह स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा में आपको सहानुभूति अवश्य देगा, जैसे ही आप आदर्शों , नीतिगत ,सत्य और आचरण में थोड़े बड़े होने लगे समाज और मेरे अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला  कर देगें और यह सिद्ध करने की कोशिश करेगें की वो ही सर्व श्रेष्ठ है | यही है आपका और मेरा संसार फिर इनकी चिंता कैसी | 

     

     

    जीवन का चरम लक्ष्य आर्थिक और भौतिक संसाधनों की बड़ी भीड़ खड़ी करना नहीं है ,न ही दूर नजरों तक फैले अनगिनत क्षेत्रों तक जमीन जायदाद और आसमान छूते बड़े राजप्रासाद है ,अनगिनत खजाने और राज्यों की सीमा कब्जा कर  स्वयं को बड़ा बताने की चेष्टा भी व्यर्थ है , उस लक्ष्य का सम्बन्ध  हजारों शक्तिशाली लोगो का हुजूम और सम्राटों की पदवी भी नहीं है , और न ही सांसारिक उपलब्धियां उसे  श्रेष्ठ साबित कर सकती है ,
    जीवन के इस चरम लक्ष्य का सम्बन्ध उस स्थिति से है जहाँ जहाँ मेरा तुलना का भाव समाप्त होजाये ,जहाँ सम भाव में मेरे साथ "सर्वे भवन्तुः सुखिनः "का भाव प्रधान हो जावे | 

    जीवन में प्रत्येक जीव के साथ एक अंतर्निहित भाव सम्पूर्ण जीवन चलता रहता है वह हर पल उसे हर कार्य की प्रेरणा और प्रोत्साहन तथा आलोचना प्रदान करता रहता है , उसे  भय , लालच , मोह , और असत्य कुछ भी प्रभावित नहीं करता ,परन्तु दुनिया का हर समय , घड़ी ,और कार्य भी रुक जाए तब भी वह अविनाशी भाव आपका आकलन अवश्य करता रहता है , योगी ,ऋषि , मुनि और परम सत्ता को जानने वाले इसे साक्षी भाव कहते है और यही सिद्ध करता है कि मैं जो हूँ और जैसा दिखाने की कोशिश कररहा हूँ उसमे  अंतर है , वह दूर बैठा जीवन के हर कार्य की समीक्षा करता रहता है और बताता रहता है की जीवन की गति की सफलता किस और है , यही सहज ,सरल और सत्य का वह भाग है जो आपको बता देगा कि  आपका चरम  लक्ष्य पूर्ण हुआ की नहीं बस आवश्यकता एक बार खुद के अंतर में बैठे साक्षी भाव से साक्षात्कार की है | 

    चरम लक्ष्य  की समीक्षा में इन्हें प्रयोग अवश्य करें 

    • सबसे पहले आप अपने से जुड़े नकारात्मक संसार के हर सम्बन्ध और व्यक्ति को माफ़ कर दो और उनका चिंतन बंद करदो माफ़ करने का मतलब उनको अपने मन मष्तिष्क से ख़त्म करना है | 
    • स्वयं को सिद्ध करने के लिए वाद विवाद और जिरह की आवश्यकता नहीं है समय का इंतज़ार और पूर्ण मनोयोग से कार्य करने का भाव बनाये रखिये समय आपको स्वयं सिद्ध कर देगा | 
    • हमारा सुख जितने बड़े संसार के सुख का कारक होगा हमें उतना ही अधिक सुख मिल पाएगा , खाने का सुख हमे ही मिला , परिवार को मिला तो और सुख हुआ, नगर को मिला तो और अधिक सुख , कहने का आशय आपका सुख जितने समाज को साथ लेकर चला आपको उतना सुख मिलेगा | 
    • सत्य का भाव आपके चरम लक्ष्य की पवित्रता और सहजता को बनाये रखेगा क्योकि , झूठ एक दिन आपको खुद अपमानित और समस्या में खड़ा कर  देगा क्योकि झूठ केवल झूठ होता है | 
    • स्वयं को जानना और अपने को सिद्ध करना सबसे बड़ा कार्य है , उसके लिए आपको स्वयं का ही चिंतन करना होगा वो भी एकाग्र और पूर्ण साधन में स्वयं पर विचार करके | 
    • जीवन को निष्काम कर्म के साथ जोड़ने का प्रयत्न करें ध्यान रहे की यह आपकी और से निष्काम हुआ तो प्रकृति की और से हजारों गुना सफलता का कारक होगा यह निष्काम कर्म | 
    • अहंकार और खुद का झूठा प्रदर्शन आपको शक्तिहीन , भिखारी और निस्तेज कर देता है वहां आप दूसरों की कृपा पर आजाते है की वे आपको सच माने अन्यथा आपका सारा प्रयत्न व्यर्थ हुआ | 
    • स्वयं की तुलना न करते हुए निरन्तर गतिशील रहने का प्रयत्न करें , आप यह निश्चित जनले की आपकी निरंतरता आपको एक दिन अवश्य सफल बनाएगी | 
    • आवश्यक नहीं कि आप बहुत बुद्धिमान , पढ़ेलिखे और अति ग्यानी हो आपको सत्य संकल्प से अपना मार्ग तय करना है और निरन्तर उसे मन में जाग्रत रखना है आपको सारी उपलब्धियां जल्दी मिल जाएंगी | 

            ||  असफलता - नैराश्य और जीवन को ख़त्म करने का भाव  आपको बार बार पैदा होने के बाद उसी उपलब्धि पर खड़ा कर देता है जहाँ से आपने जीवन छोड़ा था फिर आपको उसी असफलता को सफलता में बदल कर आगे की यात्रा करनी होती है, तो आप जहाँ असफल हुए है वहीँ से स्वयं को और शक्तिशाली बनाइये और एक बार फिर पूरी ताकत से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में जुट   जाइये ध्यान रखना कि एक दिन सारी दुनिया की सफलताएं आपके इस प्रयास के सामने नत मस्तक हो जाएंगी ||

    Monday, May 9, 2016

    जीवन की सफलता और नैतिक मूल्य (Career success and ethical principles)


    जीवन की सफलता और नैतिक मूल्य
    Career success and ethical principles


    शार्ट कट तकनीक में चलता ,  हमारा रोहित  बहुत  बड़ा ड्रामे बाज था ,स्कूल के समय से ही उसे ऐसी ऐसी  तकनीकें आती थी कि सब लोग आश्चर्य में  आजाते थे ,टीचर का  काम पूरा नहीं हुआ तो रुआंसा , उसने बताया माँ की तबियत बहुत  खराब थी, सारा काम मैंने ही किया, आपने ही कहा था , माँ बाप की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, गुरूजी की आँखों में अपना धूर्त पुत्र घूम गया बदतमीज ,नालायक और जाने क्या क्या --भरी आँखों से मास्टर जी बोले , शाबाश  बेटा और रोहित सीना तन के  गया ,पास बैठे  मित्र ने पूछा रोहित आंटी तो कल हमारे यहाँ किटी पार्टी में  बिलकुल ठीक थी ,क्या हुआ उन्हें  , कुछ  नहीं हुआ पर यदि  मैं  सच बोलता तो ,  मुझे जरूर कुछ होजाता ,यह कहकर हंसने लगा राहुल | 
    धीरे  धीरे समय बीता कॉलेज में उसके चारों और लड़कियों की भीड़  होती थी , किसीको पिता की निर्दयता का वास्ता दिया जाता था ,किसीको माँ की तबियत ठीक न होने का वास्ता, किसी को यह बताया जाता था कि  मैं अपने पिता की पहली पत्नी का पुत्र हूँ और सौतेली माँ के अत्याचार का शिकार हूँ , और सारे झूठ जब काम नहीं आते थे तो वह यह कहने से भी नहीं चूकता था, कि मेरे ब्रेन में बड़ा ट्यूमर है जीवन ही कहां  है मुझ पर , ऐसी बड़ी बड़ी बातें करके लोगों को फ़साना उसके बाए हाथ का खेल था , कालेज में कौन  प्रोफेसर कौनसी कॉपी जांच रहा है, उससे कैसे नंबर बढ़वाने है , कैसे उसे फ़साना है यह खूब जानता था राहुल और इसतरह उसने इंजीनियरिंग भी कर ली और केम्पस सेलेकशन  में एक सामान्य पोस्ट पर उसे नौकरी भी मिलगई | 
    लम्बा समय बीत गया था माँ बाप भाई बहिनों से उसके रिश्ते वैसे ही बहुत ठन्डे थे , उसे ये ज्ञान था सब लोग स्वार्थी है और माँ बाप ,हरेक माँ बाप यही करता है ये उनका कर्त्तव्य है कोई अहसान नहीं किया उन्होंने ,बड़ा प्रेक्टिकल था हमारा राहुल २०  वर्ष पहले उसने झूठ और सहानुभूति के नाटक में कंपनी डायरेक्टर की लड़की को फंसा कर शादी करली  और कंपनी का सी.ई. ओ. बन बैठा ,पत्नी को धीरे धीरे उसके झूठ , स्वार्थी पृवृत्ति और हर आदमी फ़साने का भाव समझ कर ,उसकी हर चाल समझ आने लगी , उसनेकई बार राहुल को बहुत समझाया फिर अंत में एक दिन उसने अंतिम निर्णय लिया वह सामने बैठे राहुल से निर्बाध बोलती रही ,कि  मैं  भी एक सम्मानित कंपनी में डायरेक्टर के पद पर हूँ ,जहाँ तक मेरा प्रश्न है मैंने अपना जीवन निकाल लिया है तुम्हारे साथ ,अब बच्चों के सवाल पर मैं  उन्हें तुम्हारे जैसा अय्याश मक्कार मतलबी नहीं बनने  दूंगी  ,आज तुम कान खोल कर सुनो ,कि झूठ ,चालाकी ,फरेब ,और दूसरों का शोषण करके ,आपने एक बड़ी सल्तनत बनाली है मगर नैतिक मूल्य ,शांति , और पत्नी बच्चों से प्रेम आपमें बिलकुल नहीं है , आज आप समाज में पैसे रुतबे और पद में बहुत ऊंचे है मगर आपके बराबर कोई भिखारी नहीं है , आप जिन लोगो के साथ सम्बन्ध बनाए हो ,वो लोग जानते है कि आप उनका नहीं वो आपका उपयोग कररहे है | आज आपके बच्चे  भी आपकी हर बुराई को जान चुके है ,इसलिए आज मैं बच्चों के साथ सब छोड़कर जा रही हूँ और राहुल की पत्नी बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बच्चों के साथ वहां से चली गई ,राहुल जानता था   कि वो जो कह रही है सब सत्यही  तो था | 

    कुछ दिन हूकेयर्स वाली स्टाइल में जीवन चल, थोड़े समय बाद जीवन का एक एक सीन जब रातके सन्नाटे में उसके सामने से निकलता था ,तो भयावह चीखों -रुदन स्वर और मात पिता का मासूम चेहरा बार बारउसके  सामने आजाता था , राहुल ने अपने तमाम वैभव , संपत्ति ऐश्वर्य को देखकर  उन लोगो का चिंतन किया जो उसके आसपास थे ,सारे के सारे  चापलूस , मक्कार और कैसे भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले , वो जिनके बीच था वो उससे स्वार्थो की बाजी खेलकर उसके मरने की प्रतीक्षा कररहे थे और जो उसके अपने थे उन्हें वो अपने से दूर कर चुका था, उसने पूरे जीवन यही तो किया था , उसके सामने अँधेरा छाने लगा जीवन सबकुछ होते हुए भी जीवन भार सा दिखने लगा ,  हर आदमी उसे दुश्मन जैसा दिखने लगा और जीवन की सम्पूर्णता ने उसे सबकुछ होते हुए भी असफल , नाकारा , और निकृष्ट सिद्ध करदिया था , उसे मालूम था इसका सूत्र धार केवल वो है और जो कुछ उसने किया है उसका कर्म फल उसे ही भुगतना है यह सोच कर उसने अपनी हार स्वीकार कर सर झुका लिया | 

    अपने चारों ओर सत्य और सहजता की परिधि बनाइये ,क्योकि ये अति सरल वाक्य जीवनकी सबसे कठिन परीक्षा लेते है और सत्य मानिए की जो इन परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते है, वे स्वयं सफलता के मार्ग दर्शक बन जाते है ,आपको जीवन की प्रत्येक गति और आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक दिशा चिन्ह तो तय करना ही होगा जो आपको आपके मार्ग के बारे में जानकारी देता रहे ,ध्यान रहे यदि सत्य सहजता और अहंकार से मुक्त पथ प्रदर्शक चिन्हों के साथ आपने अपना सफर आरम्भ किया तो आप जिसकी चाह करते है उससे भी अधिक उपलब्धियां आपको हासिल हो जाएंगी |


    जीवन का प्राथमिक  आधार है मन ,बुद्धि आत्मा से संतुष्ट होना ,और उसके लिए सर्व  प्रथम   अपने आपको शुद्ध और परिस्कृत करना होगा , मानसिक जटिलताएं और कैसे भी कार्य करने का भाव तो आपको बिलकुल छोड़ देना होगा ,क्योकि अंतिम रूप में मन को यह निर्णय करना होता है की आपने जो भी जीवन जिया है ,वह अपनी ही मानसिकता के लिए गुनाह तो नहीं था  और यह बहुत महत्व पूर्ण है कि  जिस कार्य में आपकी आत्मा ही आपको गुनहगार बता रही है वो कर्म कालांतर में आपको कर्म भाव बनकर खड़ा होनाही है , फिर एक पश्चाताप की बड़ी श्रृंखला आपको अपने उत्तर के लिए विवश कर ही देगी | 





    मनुष्य की हजारों इच्छाएं उसे बार बार उनकी पूर्ती के लिए उकसाती रहती  है , शरीर अपनी आपूर्तियों के लिए आपको विवश करने की बात करेगा , आवेश आपको बार बार अपनी अंतरात्मा की आवाज को कमजोर करदेंगे और शरीरकी सम्पूर्णता आपको पूरी ताकत से यह कहेगी की इससमय यही सबसे बड़ी आवश्यकता है , आप यह भी जान लीजिये की इस आवश्यकता की पूर्ती के तुरंत बाद आपको एक अतृप्ति , कमी , या उसकी अपूर्णता काभाव फिर खड़ा करके आपको और आंदोलित कर सकता है आपूर्ति का प्रश्न वासनाओं का हो या आवश्यकताओं का या भौतिक  पदार्थों का वह आपको कुछ समय बाद ही ठगा हुआ सा सिद्ध कर देता है , आपको सम्पूर्णता की चाह जीवन भर बनी रहती है ,और हर पल एक नयी आवश्यकता आपको अपनी आपूर्ति हेतु उद्धत होने का न्योता देती है , मन अभी पूर्व की आपूर्ति का सुख ले ही नहीं पाया था  कि दूसरी आवश्यकता आपको पुकारने लगती है , परिणाम पूर्व की आपूर्ति की कमी अगली आवश्यकता के सफल भाव को भी कम कर डालती है ,परिणाम आदमी अपनी इच्छाओं वासनाओं से हारा और निराश सा दिखाई देता है | 

      यदि ब्रह्मांड में सबसे बड़े भिखारी की खोज की जाए तो वह है हमारा मन है ,जो हर पल नयी नयी रचनाएं करके आपूर्ति की मांग करता रहता है , आत्मा की मांग, शरीर की मांग ,भौतिक लिप्साओं की मांग ,और सब ठीक हुआ तो हमारे अहंकार कीमांग, जिसे हम कही  भी पैदा कर लेते है ,एक आवश्यकता पूरी हुई नहीं कि ३ नयी आवश्यकताएँ खड़ी होकर मुंह चिढ़ाने लगती है और जब आवश्यकता नहीं थी ,वह तब भी असंतुष्ट थे ,और अब आवश्यकता पूरी हो गई है तो, और ज्यादा असंतुष्ट है फिर जीवन को सफलता का सूत्र कैसे मिले | 

    यदि आप जीवन की इन विषमताओं में स्वयं को सिद्ध करना चाहते है तो ,उसके सूत्र बहुत सरल और  प्रयोग करने लायक है , हम जब भी कही गति करते है तो मन में विचार , और संकल्प अवश्य करते है , प्रथमतः संकल्प की शक्ति को  मुंह से दोहराएँ खूब दोहराए , इसके बाद उसे मन में दोहराए और तीसरे तल पर जाकर उसे दृश्य रूप में देखने का प्रयत्न करें  फिर निरन्तर उसका ध्यान बना  रहे यही सफलता का प्राथमिक एवं अचूक मंत्र है ,ध्यान रहे कि आपका लक्ष्य जितना बड़ा होगा आपको उतनी ही बड़ी उपलब्धि हासिल होगी | 

    हम सब बिना सोचे एक दूसरे की देखा देखी भागे चले जा रहे है बिना यह सोचे  की इस उपलब्धि के बाद क्या हासिल होगा हम इसे प्राप्त करले तो क्या ,नहीं करें तो क्या, शायद ज्यादा कोई अंतर पडेगा नहीं ,हमारे जो भी मानदंड थे क्या हम उनका पालन कर पा रहे है या नहीं , हमारे साथ नैतिक मूल्यों की कोई जंजीर है या नहीं 

     बहुधा हम जब बहुत ऊंची चढ़ाई के लिए जाते है तो जंजीर , कीलें  कुंदे और पैराशूट आदि सब इंतजाम रखते है ध्यान रहे कि इनमे से कोई भी यदि नाकारा सिद्ध हुआ तो जीवन को मिटने में क्षण भर भी नहीं लगेगा ,परन्तु जीवन की ऊंचाइयों में चढ़ते वक्त हम कोई सामान जैसे सहजता के मूल्यों की सपाट जंजीर ,आत्मनियंत्रण के लिए मोटे कुंदे ,और हर पल  अपने गंतव्य को सही रूप में याद रखने हेतु संकल्प की छोटी छोटी कीलें, तथा जीवन की कालिमा , जटिलताओं , और कलुषित व्यवस्थाओं में निर्लिप्त भाव से तैर जाने हेतु निर्लिप्तता का पैराशूट रख पाए है या नहीं यह अवश्य विचार करते रहें | 

                               निम्न को भी अपनाएँ 
    •  मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त है और जीवन बहुत छोटा है ऐसे में उसे अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी होंगी ध्यान रहे कि  जो आवश्यकताएँ आपको दीर्घ कालिक सन्तुष्टिदें उनका चयन करें | 
    • मन और शरीर दोनों  ही अपनी अपनी मांग करते रहते है परन्तु शरीर की मांगे नित्य नयी होती है और धीरे धीरे मन की आत्मा की आवाज मृत  प्रायः होजाती है बस यहाँ से सारी  उपलब्धियां व्यर्थ होजाती है ।ऐसे में मन की आवाज को जीवित  रखने का प्रयत्न करें | 
    • उन आवश्यकताओं को तेजी से पूरा करने की कोशिश न करें जो आपके मन के विपरीत हों और जिन्हे आपको बार बार पूरा करने की आवश्यकता हो | 
    • नैतिक मूल्यों का आधार भूत भाव है सत्य असत्य की नींव पर कितना ही बड़ा महल खड़ा किया जाए एक दिन उसे ताश के पत्तों की तरह ढह ही जाना है ,क्योकि छोटे छोटे झूठ एक दिन आपको झूठ का पुलंदा बना देंगे | 
    • झूठ का सबसे अधिक बुरा असर आपकी आत्मा पर होता है , जो आपको आज नहीं तो कल इतना तिरस्कृत कर देगी कि आप अपनी नजर में ही  गुनहगार साबित होजाएंगे | 
    • सफलता का एक सशक्त सूत्र यह भी है कि जीवन को सहज भाव से जीने का प्रयत्न करें , जिसके लिए आपजैसे है वैसे ही बन जाये बस स्वयं को अपने आपसे झुठलाये मत , इससे एक दिन जीवन की हर सफलता आपकी होगी | 
    • आत्म नियंत्रण की कुछ कीलें अपने हाथों में ठोकें जो गलत न करें , एक कील माथें में ठोके वह गलत का ध्यान न करें , एक कील  ह्रदय पर ठोके जिससे उसका नकारात्मक चिंतन बंधन में  रहे तथा दो कीलें पावों में ठोकें जो आपको नकारात्मक दिशाओं में जाने से रोके रखे यही जीवन की नियंत्रण सलीब है | 
    • क्रियान्वयन से पूर्व हर कार्य की बौद्धिक समीक्षा अवश्य करलें क्योकि अधिकाँश कार्य ऐसे है जो बाद में आपको अपना नकारात्मक स्वरुप अवश्य दिखा देंगे | 
    • आपकी गलतियों को भगवान ही नहीं आपका साक्षी भाव भी देख रहा है यदि साक्षी भाव मैं  होता तो वह मेरी गलती क्यों बताता , अतः यह अवश्य जान ले , कि मेरी निगरानी और कोई नहीं मेरी आत्मा का साक्षी भाव ही कररहा है जिससे बचना असम्भव है | 
    • बिना नैतिक मूल्यों के जीवन केवल वैसा ही है जैसे कोई बहुत बड़ा कलश जिसपर अमृत लिखा था वो कीचड में डूब गया हो और जिसकी दुर्गन्ध के कारण अमृत  भी अपना महत्व खो बैठा है |

    अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

      अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...