जीवन की सफलता और नैतिक मूल्य
Career success and ethical principles
शार्ट कट तकनीक में चलता , हमारा रोहित बहुत बड़ा ड्रामे बाज था ,स्कूल के समय से ही उसे ऐसी ऐसी तकनीकें आती थी कि सब लोग आश्चर्य में आजाते थे ,टीचर का काम पूरा नहीं हुआ तो रुआंसा , उसने बताया माँ की तबियत बहुत खराब थी, सारा काम मैंने ही किया, आपने ही कहा था , माँ बाप की सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है, गुरूजी की आँखों में अपना धूर्त पुत्र घूम गया बदतमीज ,नालायक और जाने क्या क्या --भरी आँखों से मास्टर जी बोले , शाबाश बेटा और रोहित सीना तन के गया ,पास बैठे मित्र ने पूछा रोहित आंटी तो कल हमारे यहाँ किटी पार्टी में बिलकुल ठीक थी ,क्या हुआ उन्हें , कुछ नहीं हुआ पर यदि मैं सच बोलता तो , मुझे जरूर कुछ होजाता ,यह कहकर हंसने लगा राहुल |
धीरे धीरे समय बीता कॉलेज में उसके चारों और लड़कियों की भीड़ होती थी , किसीको पिता की निर्दयता का वास्ता दिया जाता था ,किसीको माँ की तबियत ठीक न होने का वास्ता, किसी को यह बताया जाता था कि मैं अपने पिता की पहली पत्नी का पुत्र हूँ और सौतेली माँ के अत्याचार का शिकार हूँ , और सारे झूठ जब काम नहीं आते थे तो वह यह कहने से भी नहीं चूकता था, कि मेरे ब्रेन में बड़ा ट्यूमर है जीवन ही कहां है मुझ पर , ऐसी बड़ी बड़ी बातें करके लोगों को फ़साना उसके बाए हाथ का खेल था , कालेज में कौन प्रोफेसर कौनसी कॉपी जांच रहा है, उससे कैसे नंबर बढ़वाने है , कैसे उसे फ़साना है यह खूब जानता था राहुल और इसतरह उसने इंजीनियरिंग भी कर ली और केम्पस सेलेकशन में एक सामान्य पोस्ट पर उसे नौकरी भी मिलगई |
लम्बा समय बीत गया था माँ बाप भाई बहिनों से उसके रिश्ते वैसे ही बहुत ठन्डे थे , उसे ये ज्ञान था सब लोग स्वार्थी है और माँ बाप ,हरेक माँ बाप यही करता है ये उनका कर्त्तव्य है कोई अहसान नहीं किया उन्होंने ,बड़ा प्रेक्टिकल था हमारा राहुल २० वर्ष पहले उसने झूठ और सहानुभूति के नाटक में कंपनी डायरेक्टर की लड़की को फंसा कर शादी करली और कंपनी का सी.ई. ओ. बन बैठा ,पत्नी को धीरे धीरे उसके झूठ , स्वार्थी पृवृत्ति और हर आदमी फ़साने का भाव समझ कर ,उसकी हर चाल समझ आने लगी , उसनेकई बार राहुल को बहुत समझाया फिर अंत में एक दिन उसने अंतिम निर्णय लिया वह सामने बैठे राहुल से निर्बाध बोलती रही ,कि मैं भी एक सम्मानित कंपनी में डायरेक्टर के पद पर हूँ ,जहाँ तक मेरा प्रश्न है मैंने अपना जीवन निकाल लिया है तुम्हारे साथ ,अब बच्चों के सवाल पर मैं उन्हें तुम्हारे जैसा अय्याश मक्कार मतलबी नहीं बनने दूंगी ,आज तुम कान खोल कर सुनो ,कि झूठ ,चालाकी ,फरेब ,और दूसरों का शोषण करके ,आपने एक बड़ी सल्तनत बनाली है मगर नैतिक मूल्य ,शांति , और पत्नी बच्चों से प्रेम आपमें बिलकुल नहीं है , आज आप समाज में पैसे रुतबे और पद में बहुत ऊंचे है मगर आपके बराबर कोई भिखारी नहीं है , आप जिन लोगो के साथ सम्बन्ध बनाए हो ,वो लोग जानते है कि आप उनका नहीं वो आपका उपयोग कररहे है | आज आपके बच्चे भी आपकी हर बुराई को जान चुके है ,इसलिए आज मैं बच्चों के साथ सब छोड़कर जा रही हूँ और राहुल की पत्नी बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये बच्चों के साथ वहां से चली गई ,राहुल जानता था कि वो जो कह रही है सब सत्यही तो था |
कुछ दिन हूकेयर्स वाली स्टाइल में जीवन चल, थोड़े समय बाद जीवन का एक एक सीन जब रातके सन्नाटे में उसके सामने से निकलता था ,तो भयावह चीखों -रुदन स्वर और मात पिता का मासूम चेहरा बार बारउसके सामने आजाता था , राहुल ने अपने तमाम वैभव , संपत्ति ऐश्वर्य को देखकर उन लोगो का चिंतन किया जो उसके आसपास थे ,सारे के सारे चापलूस , मक्कार और कैसे भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले , वो जिनके बीच था वो उससे स्वार्थो की बाजी खेलकर उसके मरने की प्रतीक्षा कररहे थे और जो उसके अपने थे उन्हें वो अपने से दूर कर चुका था, उसने पूरे जीवन यही तो किया था , उसके सामने अँधेरा छाने लगा जीवन सबकुछ होते हुए भी जीवन भार सा दिखने लगा , हर आदमी उसे दुश्मन जैसा दिखने लगा और जीवन की सम्पूर्णता ने उसे सबकुछ होते हुए भी असफल , नाकारा , और निकृष्ट सिद्ध करदिया था , उसे मालूम था इसका सूत्र धार केवल वो है और जो कुछ उसने किया है उसका कर्म फल उसे ही भुगतना है यह सोच कर उसने अपनी हार स्वीकार कर सर झुका लिया |
अपने चारों ओर सत्य और सहजता की परिधि बनाइये ,क्योकि ये अति सरल वाक्य जीवनकी सबसे कठिन परीक्षा लेते है और सत्य मानिए की जो इन परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते है, वे स्वयं सफलता के मार्ग दर्शक बन जाते है ,आपको जीवन की प्रत्येक गति और आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक दिशा चिन्ह तो तय करना ही होगा जो आपको आपके मार्ग के बारे में जानकारी देता रहे ,ध्यान रहे यदि सत्य सहजता और अहंकार से मुक्त पथ प्रदर्शक चिन्हों के साथ आपने अपना सफर आरम्भ किया तो आप जिसकी चाह करते है उससे भी अधिक उपलब्धियां आपको हासिल हो जाएंगी |
जीवन का प्राथमिक आधार है मन ,बुद्धि आत्मा से संतुष्ट होना ,और उसके लिए सर्व प्रथम अपने आपको शुद्ध और परिस्कृत करना होगा , मानसिक जटिलताएं और कैसे भी कार्य करने का भाव तो आपको बिलकुल छोड़ देना होगा ,क्योकि अंतिम रूप में मन को यह निर्णय करना होता है की आपने जो भी जीवन जिया है ,वह अपनी ही मानसिकता के लिए गुनाह तो नहीं था और यह बहुत महत्व पूर्ण है कि जिस कार्य में आपकी आत्मा ही आपको गुनहगार बता रही है वो कर्म कालांतर में आपको कर्म भाव बनकर खड़ा होनाही है , फिर एक पश्चाताप की बड़ी श्रृंखला आपको अपने उत्तर के लिए विवश कर ही देगी |
मनुष्य की हजारों इच्छाएं उसे बार बार उनकी पूर्ती के लिए उकसाती रहती है , शरीर अपनी आपूर्तियों के लिए आपको विवश करने की बात करेगा , आवेश आपको बार बार अपनी अंतरात्मा की आवाज को कमजोर करदेंगे और शरीरकी सम्पूर्णता आपको पूरी ताकत से यह कहेगी की इससमय यही सबसे बड़ी आवश्यकता है , आप यह भी जान लीजिये की इस आवश्यकता की पूर्ती के तुरंत बाद आपको एक अतृप्ति , कमी , या उसकी अपूर्णता काभाव फिर खड़ा करके आपको और आंदोलित कर सकता है आपूर्ति का प्रश्न वासनाओं का हो या आवश्यकताओं का या भौतिक पदार्थों का वह आपको कुछ समय बाद ही ठगा हुआ सा सिद्ध कर देता है , आपको सम्पूर्णता की चाह जीवन भर बनी रहती है ,और हर पल एक नयी आवश्यकता आपको अपनी आपूर्ति हेतु उद्धत होने का न्योता देती है , मन अभी पूर्व की आपूर्ति का सुख ले ही नहीं पाया था कि दूसरी आवश्यकता आपको पुकारने लगती है , परिणाम पूर्व की आपूर्ति की कमी अगली आवश्यकता के सफल भाव को भी कम कर डालती है ,परिणाम आदमी अपनी इच्छाओं वासनाओं से हारा और निराश सा दिखाई देता है |
यदि ब्रह्मांड में सबसे बड़े भिखारी की खोज की जाए तो वह है हमारा मन है ,जो हर पल नयी नयी रचनाएं करके आपूर्ति की मांग करता रहता है , आत्मा की मांग, शरीर की मांग ,भौतिक लिप्साओं की मांग ,और सब ठीक हुआ तो हमारे अहंकार कीमांग, जिसे हम कही भी पैदा कर लेते है ,एक आवश्यकता पूरी हुई नहीं कि ३ नयी आवश्यकताएँ खड़ी होकर मुंह चिढ़ाने लगती है और जब आवश्यकता नहीं थी ,वह तब भी असंतुष्ट थे ,और अब आवश्यकता पूरी हो गई है तो, और ज्यादा असंतुष्ट है फिर जीवन को सफलता का सूत्र कैसे मिले |
यदि आप जीवन की इन विषमताओं में स्वयं को सिद्ध करना चाहते है तो ,उसके सूत्र बहुत सरल और प्रयोग करने लायक है , हम जब भी कही गति करते है तो मन में विचार , और संकल्प अवश्य करते है , प्रथमतः संकल्प की शक्ति को मुंह से दोहराएँ खूब दोहराए , इसके बाद उसे मन में दोहराए और तीसरे तल पर जाकर उसे दृश्य रूप में देखने का प्रयत्न करें फिर निरन्तर उसका ध्यान बना रहे यही सफलता का प्राथमिक एवं अचूक मंत्र है ,ध्यान रहे कि आपका लक्ष्य जितना बड़ा होगा आपको उतनी ही बड़ी उपलब्धि हासिल होगी |
हम सब बिना सोचे एक दूसरे की देखा देखी भागे चले जा रहे है बिना यह सोचे की इस उपलब्धि के बाद क्या हासिल होगा हम इसे प्राप्त करले तो क्या ,नहीं करें तो क्या, शायद ज्यादा कोई अंतर पडेगा नहीं ,हमारे जो भी मानदंड थे क्या हम उनका पालन कर पा रहे है या नहीं , हमारे साथ नैतिक मूल्यों की कोई जंजीर है या नहीं
बहुधा हम जब बहुत ऊंची चढ़ाई के लिए जाते है तो जंजीर , कीलें कुंदे और पैराशूट आदि सब इंतजाम रखते है ध्यान रहे कि इनमे से कोई भी यदि नाकारा सिद्ध हुआ तो जीवन को मिटने में क्षण भर भी नहीं लगेगा ,परन्तु जीवन की ऊंचाइयों में चढ़ते वक्त हम कोई सामान जैसे सहजता के मूल्यों की सपाट जंजीर ,आत्मनियंत्रण के लिए मोटे कुंदे ,और हर पल अपने गंतव्य को सही रूप में याद रखने हेतु संकल्प की छोटी छोटी कीलें, तथा जीवन की कालिमा , जटिलताओं , और कलुषित व्यवस्थाओं में निर्लिप्त भाव से तैर जाने हेतु निर्लिप्तता का पैराशूट रख पाए है या नहीं यह अवश्य विचार करते रहें |
निम्न को भी अपनाएँ
- मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त है और जीवन बहुत छोटा है ऐसे में उसे अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी होंगी ध्यान रहे कि जो आवश्यकताएँ आपको दीर्घ कालिक सन्तुष्टिदें उनका चयन करें |
- मन और शरीर दोनों ही अपनी अपनी मांग करते रहते है परन्तु शरीर की मांगे नित्य नयी होती है और धीरे धीरे मन की आत्मा की आवाज मृत प्रायः होजाती है बस यहाँ से सारी उपलब्धियां व्यर्थ होजाती है ।ऐसे में मन की आवाज को जीवित रखने का प्रयत्न करें |
- उन आवश्यकताओं को तेजी से पूरा करने की कोशिश न करें जो आपके मन के विपरीत हों और जिन्हे आपको बार बार पूरा करने की आवश्यकता हो |
- नैतिक मूल्यों का आधार भूत भाव है सत्य असत्य की नींव पर कितना ही बड़ा महल खड़ा किया जाए एक दिन उसे ताश के पत्तों की तरह ढह ही जाना है ,क्योकि छोटे छोटे झूठ एक दिन आपको झूठ का पुलंदा बना देंगे |
- झूठ का सबसे अधिक बुरा असर आपकी आत्मा पर होता है , जो आपको आज नहीं तो कल इतना तिरस्कृत कर देगी कि आप अपनी नजर में ही गुनहगार साबित होजाएंगे |
- सफलता का एक सशक्त सूत्र यह भी है कि जीवन को सहज भाव से जीने का प्रयत्न करें , जिसके लिए आपजैसे है वैसे ही बन जाये बस स्वयं को अपने आपसे झुठलाये मत , इससे एक दिन जीवन की हर सफलता आपकी होगी |
- आत्म नियंत्रण की कुछ कीलें अपने हाथों में ठोकें जो गलत न करें , एक कील माथें में ठोके वह गलत का ध्यान न करें , एक कील ह्रदय पर ठोके जिससे उसका नकारात्मक चिंतन बंधन में रहे तथा दो कीलें पावों में ठोकें जो आपको नकारात्मक दिशाओं में जाने से रोके रखे यही जीवन की नियंत्रण सलीब है |
- क्रियान्वयन से पूर्व हर कार्य की बौद्धिक समीक्षा अवश्य करलें क्योकि अधिकाँश कार्य ऐसे है जो बाद में आपको अपना नकारात्मक स्वरुप अवश्य दिखा देंगे |
- आपकी गलतियों को भगवान ही नहीं आपका साक्षी भाव भी देख रहा है यदि साक्षी भाव मैं होता तो वह मेरी गलती क्यों बताता , अतः यह अवश्य जान ले , कि मेरी निगरानी और कोई नहीं मेरी आत्मा का साक्षी भाव ही कररहा है जिससे बचना असम्भव है |
- बिना नैतिक मूल्यों के जीवन केवल वैसा ही है जैसे कोई बहुत बड़ा कलश जिसपर अमृत लिखा था वो कीचड में डूब गया हो और जिसकी दुर्गन्ध के कारण अमृत भी अपना महत्व खो बैठा है |
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