Tuesday, June 14, 2016

स्वयं को दोष न दें (Do not blame yourself)


      स्वयं को दोष न दें
  (Do not blame yourself)
सुकेत नालंदा का सबसे योग्य विद्यार्थी था पठन -पठान में उसे कोई मात नहीं दे पाया था , गुरुओं ने  उसकी बुद्धि का लोहा कई बार माना था ,दर्शन ,सेवा , संस्कारों और परीक्षा में उसे अव्वल आना ही होता था ,  अच्छे , सम्भ्रान्त परिवार का इकलौता पुत्र था हमारा सुकेत , बस  एक ही बड़ी कमी उसने अपने पापा से सीख ली थी , असंतोष और स्वयं को कोसते  रहने का दुर्गुण -----मैं  कुछ नहीं कर सकता, बड़ी बड़ी परीक्षाएं चुटकियों में पास करने वाला खुद अपने आपको संतुलित नहीं रख पाता था ,परिणाम यह कि  उसको सारी सफलताएं मिलने के बाद भी कोई संतोष आनंद मन में पैदा ही नहीं हो पाता था, समय निकलता गया और पूर्ण शिक्षा ग्रहण करने के बाद सुकेत  अपने घर पहुँच गया , और जीवन की ताल में ताल मिलाने लगा , परिणाम - पिता के व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि के बाद भी घर में कोई शान्ति सुख की परिकल्पनाथी ही नहीं|

घर का हर सदस्य कुशंकाओं  से घिरा  एक दुसरे पर अपने अपने असंतोष का ठीकरा फोड़ता ,अवश्य दिखाई देता था , माँ कह रही  होती  थी ,पूरा जीवन खपा दिया घर के लिए और सब लोग मेरी परवाह ही नहीं करते और अब तो शरीर भी साथ नहीं दे रहा ,किसको कहूं अपनी , बेकार है जीवन ,क्या मतलब इसका, और पिता कहरहे होते की पूरा दिन खट खट किसके लिए कररहा हूँ सब तुम लोगो के लिए , सुकेत अपने आपमें कुंठित अनमना सा कहता रहता था  काहे को पढ़ाया इतना जब दूकान ही करानी थी तो -----और हर रोज किसी न किसी बात पर  खौफ   और दुःख का माहौल बना रहता था |

अचानक बाज़ार की  मन्दी  और व्यापार की  हानि  ने सुकेत के पिता को भारी क्षति दी थी , सारी सम्पत्तियां एक एक कर बिक गई और परिवार पर जीवन यापन का भी संकट खड़ा होगया  परिवार के सदस्यों ने झूठे कागजों से रही बची संपत्ति भी ठग ली ,पिता को एक रात लकवे का दौरा पड़गया , धन की कमी और समस्या का स्वरुप इतना बड़ा था कि  कोई किरण दिख ही   नहीं रही थी , सुकेत ने माँ को काम पर जाते हुए देखा , बड़ी ग्लानि हुई मन को , दूसरे ही दिन वो अपने गुरु ने यहाँ नालंदा पहुंचा वहां सब हालत जानकर गुरु ने सुकेत की मदद भी की और आश्रम के एक कोने में जगह भी दी ,और काम भी दे दिया , सुकेत बहुत ज्यादा अनुग्रह प्राप्त कर रोने लगा घर आये गुरु से उसने अनायास ही पूछा देव आप सब जानते हो  हमारी ऐसी स्थिति क्यों हुई |


गुरु ने लम्बी सांस लेकर कहना चालू किया पुत्र आपके पूरे परिवार में  विस्वास , पराक्रम और सकारात्मक सोच की कमी है ,   आप पूर्ण शिक्षित होकर भी उस परमात्मा  की अनुकम्पा को नकारते रहे , आप स्वयं में परमात्मा का वास देखने में अक्षम, सदैव इस बात परअडिग रहे की आपसे ज्यादा कोई दुखी दीन हीन और निरीह नहीं है , परिणाम आपका  सब पर स्वयं पर विश्वास  कभी बन ही नहीं पाया ,ब्रह्मांड केवल आपकी नकारात्मकता सुनते सुनते यही समझ पाया कि आप उससे यही मांग रहे है तो उसने आपको वहीँ खड़ा कर दिया ,आप एक बार पुनः परमात्माकी अनुकम्पा और पूर्ण विशवास को मन में जगह दो ,आपका यह समय भी आपको बहुत बड़ी सौगात देकर जाएगा , गुरु की वाणी सुनकर तीनों लोगो की अश्रुधारा बह चली , कुछ ही समय में पिता पुनः ठीक होगये , अदालत ने पिता की सारी संपत्ति पुनः लौटा दी , माँ को लगा शायद जीवन ने जो यह सौगात दी है वह अमूल्य है और सुकेत जान गया था की अपनी अंतरात्मा के सत्य , आदर्शों और उसकी चेतना को अनसुना करके कोई भी संसार में आनंद पैदा कर  नहीं सकता , और गुरुवाणी की गहनता में डूब कर सुकेत अपने आनंद  में डूबने लगाउसे लगा कि हममे वह शक्ति विद्यमान थी जो हमें अपने सर्वोच्च सफलता के शिखर पर ले जा सकती थी| ,



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 हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि हम अपने आपको निरीह बेचारा नाकारा और  भोंदू बना कर रखना चाहते है हर परिस्थिति में हर काम में अपने को कार्य से पहले ही अपने आपको हतोत्साहित कर करते हुए दोषारोपित करते रहते है परिणाम यह कि एक दिन हम वैसे ही होजाते है   नाकारा, अकर्मण्य , और निराश्रित से
हमेशा यह मेरे साथ ही क्यों होता है ? मैंने किसीके साथ ख़राब नहीं किया ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ ?मै  जो चाहता हूँ वो तो  कभी हो ही नहीं सकता ,मेरा समय खराब चल  रहा है , और भगवान मेरे साथ ही ऐसा क्यों करता है ? ये सब प्रश्न एकसाथ  हम हर परिस्थिति में दागने के  आदी हो गए है ,जब भी हमारे सामने वो परिस्थितियां आईं  जो हमारे मन और रूचि  के विरुद्ध हुई या यो कहिये कि जो नकारात्मकताऐं  हमारी कमजोरी बन गई है उन्हें त्यागने के लिए भी हम इन्ही वाक्यांशों का प्रयोग करते रहते है  शायद हमे इनसबके बाद कुछ शान्ति मिल पाये ,नही मित्र इसके बाद और अधिक नकारात्मकता हमें घेर लेती है और हम उस नैराश्य का ढेर होजाते है जिसमे केवल   विनाश के रस्ते रहजाते है जबकि हमारे पास वो अदम्य शक्ति थी जो कुछ भी पैदा कर सकती थी |


सुख --संतोष --- और लक्ष्य ये अलग अलग विषय है लक्ष्य विहीन सुख संतोष वैसा ही होगा जैसे  सुंदर खाने के बाद फ़ूड पोइज़निंग जबकि लक्ष्य के साथ ही सुख संतोष की पूर्णता माना  जा सकती है | मनुष्य का मन मष्तिष्क हमेशा कुछ न कुछ मांग करता रहा है ,कभी वह शरीर के सुख सम्बन्धों को अपनी कमजोरी बना बैठता है , औरकभी विलासताओं भरे जीवन में भौतिक संसाधनों के इर्द गिर्द घूमता रहता है , पूरा जीवन इसमें ही स्वाहा होजाता है कि,  मैंने जीवन में कमाया क्या , और हर समय केवल स्वार्थों की खोज में घूमते घूमते हर  कदम पर अपने आपको बड़ा दिखाने की चाह बनाये रहे ,  कहने का आशय यह कि हमारी सारी खोज केवल यही तक सीमित रह गई कि हम भौतिक सुख साधनों के आधीन होकर रहगये है, और उनसे हटकर हमे शान्ति मिल ही नहीं सकती , हमारा तमाम चिंतन इन विषय वस्तुओं पर निर्भर हो जाता है कि , हम समाज और सम्बन्धों का कितना विदोहन ---शोषण ----- और लूट कर लें जिससे हमारा अहम शांत होजाये  , मगर एक बार फंस कर हम कभी उससे निकल ही  नहीं सके और खुद को लाचार , गरीब और निस्सहाय सिद्ध करने में जुटे रहे और एक दिन वैसे ही दीन   हीन  बने बैठे अशांत अस्थिर और निराश्रित से |



आपके अपने , सम्बन्ध , समाज ,केवल आपके बाह्य स्वरुप से जुड़े एक शोषण की मांग करते रहते है, इन सबके एक ही धर्म रहे कि   वे अपने  अपने सामर्थ्य के अनुसार आपकी लूट  खसोट करते रहे , उस हिंसक पशु की तरह जिसने   ताजे हरे पत्तों के बगीचों का आश्रय लिया था ,तब अभी हाल ही में एक मृग मारा  था,भर पेट अपनी  भूख मिटाने के बाद उसने  उसे उसी हाल में छोड़ दिया ,  वह चला गया, शायद फिर भूख लगी तो फिर आजायेगा खाने ,तबतक दूसरे जानवर नोचा खसोटी करते रहे ,क्योकि , जीवन ने  उन्हें यही  दिया है |   आदमी की हालत भी कमोवेश  ऐसी ही है , अपनी  शारीरिक और मानसिक कमजोरियों के हरे  बगीचों को देख कर वो हमेशा  शिकार बनता रहा है ,  फिर बार बार जीवन पर प्रश्न चिन्ह क्यों ?क्योकि इसके  एकमात्र जिम्मेदार हम ही रहे है ,बार बार हमारा झूठे , निराश्रित और नकारात्मक सम्बन्धों और  शारीरिक मानसिक  संसाधनों का लालच ,स्वयं पर अविश्वास और  दिशा हीनता  हमे उस कगार  खड़ा कर देती है जहां केवल हमारे पास  रह जातीहै  कुछ  शिकायतें कुछ आलोचनाएं  और ढेर सारी  नकारात्मकता क्योकि ये ही हमने पैदा किया है




मनुष्य के पास  हर समस्या के निराकरण के लिए और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ  सिद्ध करने के लिए एक अ जेय ब्रह्मास्त्र भी है जो जीवन के हर दुश्मन को पलक झपकते ही ख़त्म कर सकता है , इसका नाम है संकल्प और यही वह शक्ति है जो ईसा नानक  मोहम्मद और बुद्ध को महान बना देती है , जीवन के लक्ष्य को साध कर , जिसने भी अपना पथ तय करना आरम्भ किया ,आप सच मानिए ब्रह्मांड की समस्त शक्तियों ने अपना सर वही पर झुका दिया है , जैसे ही आप अपना लक्ष्य बन कर चलना आरम्भ करेंगे तो दुनिया  की सारी बाधाएं आपके सामने खड़ी हो जाएंगी ,  समाज आपको लक्ष्य के साथ अलग जाता देखेगा ,तो अपने सारे अस्त्र शस्त्र लेकर आपपर हमला बोल देगा , कोई कहेगा  बस एकबार और बात  मानलो , कोई कहेगा आप एकबार और रुक जाओ , इस तरह की बहुत सी बातें ----बस यही परीक्षा है आपकी जहां आपको अपने संकल्प को और अधिक मजबूती देनी है  और यही से आपकी वह विजय यात्रा आरम्भ होनी है जिसके बाद जीवन से नकारात्मकता का अध्याय समाप्त होकर आपको सकारात्मक जीवन का नया उपहार मिलना है |



  निम्न विषयों पर भी विचार कीजिये


  • सबसे पहले अपने इर्द गिर्द  लोगो का आंकलन करे और बारीकी से यह देखे की वे यदि आपके लक्ष्य में बाधक है तो उनसे धीरे से किनारा अवश्य करलें , | 
  • अपनी कमजोरियों को अपने विकास पर हावी  मत होने दें  ,क्योकि यदि आप अपनी कमजोरियों पर अंकुश नहीं लगा पाये तो आपका लक्ष्य तक पहुंचना  अत्यन्त कठिन है | 
  •  स्वयं को हर कार्य और शक्ति में  पारंगत  मानते हुए, उसे जागृत करने का स्वप्न  देखते रहने का प्रयत्न करें जिससे वह आपके अंतर स्थल की सबसे बड़ी मांग के रूप में आपको  लक्ष्यरूप में दिखाई देने लगे | 
  • श्रेष्ठ जीवन मनुष्य की अपनी  सोच संकल्प और उसपर क्रियान्वयन करने की शक्तियों को  जगाने का नाम है क्योकि जोलोग अपनी  शक्ति को  जागृत कर उसे मूर्त रूप देने में  समर्थ होते है वही  स्वयं सिद्ध हो पाते है | 
  • आत्मा की परमशक्ति का ध्यान किये बगैर आप अपनी  आतंरिक शक्ति को जागृत नहीं कर सकते ,क्योकि जब तक आप बाह्य जगत की तुच्छ उपलब्धियों में लगे रहे ,तब तक आप उस शक्ति से परिचित न हो सकेंगे | 
  • स्वयं को सकारात्मक विचारों का आधार बना  दीजिये, उसके लिए केवल यह करना है की  लक्ष्य से पहले कुछ नहीं इसे रोज बार बार दोहराएँ | 
  • समस्याएँ केवल वीर मनुष्यों के समक्ष आती है और वे अपना उत्तर साथ लिए होती है ,बिना क्रोध घबराहट , और जल्दबाजी किये उनका उत्तर खोजने का प्रयत्न करे | 
  • सुख , लक्ष्य , सम्बन्ध , और समाज  आपकिसी एक को ही चुन सकते है यदि आप दो और तीनों के साथ चलने की कोशिश करेंगे तो आपका सफल होना कठिन है | 
  •  निरन्तर अपने लक्ष्य का ध्यान और नित्य उसकी प्राप्तिके लिए प्रयत्न करने वाला ही एक दिन लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है अन्यथा सफलता प्रश्न वाचक बन जायेगी | 
  • जो लोग आपको ख़राब , कमजोर और कमियों वाला मानते है वो आपको अभी तक जानते नहीं है ,एक दिन आप का विकास और उपलब्धियां  उन्हें आपका कद दिखा देगा  | 

    आप ईश्वर की अनमोल कृति है और आपको ईश्वर ने किसी ख़ास उद्देश्य के लिए पैदा किया है आपको उसी लक्ष्य की खोज करके सफलता प्राप्त करनी है , यही विचआर तेजी से अपने मन मो समझाते रहें | 

    आदमी तुम क्या आदम के सिर मौर हो - वक्त -ए -ताकत तुम्ही  रब का तुम शौर्य हो 

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