Sunday, May 29, 2016

सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

सफलता की एक और शक्ति शांति (another strength of success peace)

वीर सेन और उनकी पत्नी कसबे की हवेली में ही निवास करते थे बाप दादों की जायदाद ने खूब वैमनस्यता बढ़ा दी थी  तीनों भाइयो में ,सबने अपने अपने हिसाब से लूटा था संपत्ति को मगर जब भी जिक्र चलता तो एक दूसरे की बखिया उधेड़ने में कोई कोर कसर नहीं रखी जाती थी , पति पत्नी दोनों आज भी राजा साहब रानी साहब कहलाना पसंद करते थे वो बात और है कि अब न राज्य थे न न राजा शाही मगर पर्याप्त ठसक थी दोनों में एक पुत्र था सुयश जब  कभी बात होती थी परिवार में तो बड़े गर्व से कहा जाता था की बेटा  कलेक्टर बनना और इन बदमाशों को अच्छा सबक सीखना और सुयश को कमोवेश यह याद भी होगया था की मुझे कलेक्टर बनना है वो भी िंबदमाशों को सबक सिखाने के लिए |

घर का माहौल बड़ा अजीबो गरीब था दो नौकरों ने ही पाला  था सुयश को, माँ बाप बड़े लोगो जैसे पार्टी , मस्ती और राजसभा जैसी भीड़ लगाए रखने के आदी थे, रात दिन पार्टियां और कार्यक्रम होते रहते थे हवेली में और इन्ही के मध्य हमारा सुयश बड़ा हुआ , और कब उसे शराब की लत लग गई पता ही नहीं पड़ा, परन्तु जब कभी चापलूस लोग उसे और पिताजी को याद दिलाते थे कि उन्हें बटवारे में कुछ मिला ही नहीं ,तो दोनों भद्दी भद्दी गालियां देते हुए चाचाओं को गालियां देते थे अपना संकल्प याद करते एक दिन कलेक्टर बनकर इन्हे जरूर सबक सिखाया जाएगा | और ऐसे ही माहौल में कब इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी  हो गई कब पढ़ाई पूरी करके  कब घर के ऐशो आराम में  डूब गया सुयश यह मालूम ही नहीं पड़ा |

समय की गति देखिये बाह्य दिखावो और हैं घोर  लापरवाही के चलते वीर सेन की सारी  फैक्टरियां बंद होगई  जो लोग  शाम मुजरा करके चापलूसी करके गुजारा  कररहे थे अचानक लेनदार  होकर खड़े होगये हवेली , प्रतिष्ठान सब नीलाम होने लगे एक दिन दोनों पति पत्नी ने यह विचार किया अब कोई उपाय नहीं है,  यह सोचकर खाने में जहर मिला कर सबको खिला दिया गया , तत्परता से अस्पताल लेजाने पर केवल सुयश बचा माता पिता दोनों दिवंगत होगये और सुयश भी कोमा में ही जीवित -मृत के बीच फंसा रहा ,लोगों ने विचार किया कि ऐसे तो वो संपत्ति पर कब्जा कर नहीं पाएंगे तो उन्होंने सुयश को एक आश्रम में  कर संपत्ति पर कब्जा कर लिया |

आश्रम के गुरु ने उसे देखा फिर परमात्मा को याद करके उसकी सेवा चालूकरदी दुआओं और दवा का असर दिखा और सुयश ठीक होगया था बहुत कमजोर परेशां पर निरीह सा ,गुरु ने कहा पुत्र अब आप ठीक हो मगर अब आप जाओगे कहाँ  उस दुनिया में आपके लिए कुछ बचा ही कहा है , हाँ एक बार जरूर जानता हूँ ,कि तुम बेहोशी में कलेक्टर बनने और किसी किसी को गालियां दे रहे थे , तो  उसके लिए तुम्हे आज से ही प्रयास करना होगा पुत्र जीवन की सार्थकता के विषयों पर ही  आदर्श  स्थापित करो | 


 गुरुने समझाया पुत्र जीवन से जुड़े हर व्याक्ति और विषय को छोड़ने का एकमात्र तरीका है , कि हर उस  व्याक्ति को माफ़ करदो ,हर विषय की वासना छोड़ दो , जिसने  अच्छा किया है उन्हें बारम्बार प्रणाम करलो और जो तुम्हारे मन मष्तिष्क में ख़राब है उन्हें भी समय की  गति जानकर माफ करदो, इससे तुम्हारी आत्मा किसी भी और न जाकर एकाग्र भाव पैदा कर देगी , संकल्प की शक्ति को इतना विशाल बनाओ जहाँ तुम्हारी एकाग्रता और क्रियान्वयन  के सिवा कुछ न रहजाए ,पुत्र इस तरह आप  अपने नाकारात्मक बंधनों से स्वयं मुक्त होकर  एकाग्र और परम शांति में खड़े होजाओगे यही से तुम्हारे नए जन्म का शुभारम्भ होगा | आज सुयश एक सीनियर कलेक्टर था और उसे अब जीवन से कोई शिकायत भी नहीं थी |

जीवन के महत्वपूर्ण संकल्पो  के साथ जब भी नकारात्मकता का आधार तय किया गया तब तब छोटी छोटी उपलब्धियों के लिए बड़े बड़े जीवनों की   कुर्बानी दी गई , भौतिक सुख साधनों , अपने स्वयं के अहम के लिए जिन लक्ष्यों को आधार दिया गया था वे सब उस दीवार पर खडे भवन थे  ,जिन्हें कभी भी ढह जाना था ,घनघोर वैमनस्यता क्रोध लालच और असत्य और झूठ फरेब  तिरस्कार और स्वार्थों के सहारों पर जीवन का लक्ष्य स्वयं अपने से हारा हुआ सत्य है ये तो वैसा ही हुआ जैसे सोने की चाह रखने वाले राजा ने , अपनी एकलौती बेटी को सोने का बना कर खुद को बे औलाद कर लिया और सर पटक पटक कर रोंने लगा |

जीवन नश्वर है और उससे जुडी हर विषय वस्तु , सम्बन्ध और भौतिक लिप्साएँ भी नश्वर   ही होंगी , मेरा अहम और तरह तरह की शक्तियों का जो घमंड था वह भी तो नश्वर था , कहने का आशय यह कि धन वैभव , राज प्रसाद और  दूरतक फैले राज्य कल किसी के थे, और कल किसीके होंगे , कल भी  कई दुश्मन थे मेरे और कल भी कई दुश्मन खड़े होंगे ,यह क्रम अनवरत चलता रहेगा मन और बुद्धि की मांगे कभी ख़त्म ही नहीं हो पाएंगी और सम्पूर्ण समय इन्ही विषय वस्तुओं और अनश्वर  वस्तुओं के संकलन में गुजर जाएगा फिर तो जीवन  अपने महत्व पूर्ण उपलब्धियों से वंचित हो जाएगा , जीवन के अनश्वर भाग में  आपके उद्देश्य अपरिग्रह क्षमा सब बहुत महत्व पूर्ण है जिनको आपके अस्तित्व की तरह अजर अमर और अनश्वर ही रहना है |


ईसा ,बुद्ध ,महावीर नानक और मोहम्मद सबने केवल एक सन्देश दिया कि कलको  माफ़ करदो ,जो सूली पर  चढ़े ईसा को प्यासा मरते देखते हुए भी मजाक उड़ाते रहे वो समाज था ,जो मोहम्मद और उनके रिश्तेदारों के प्रति गुनहगार रहे वो भी समाज था ,और जो नानक बुद्ध और महावीर पर पत्थर बरसाते रहेवो भी समाज के उनके अपने ही थे , मगर  वे सब बहुत महान थे ,वो सबसे पहले उन्हें ही माफ़ करके आगे बढ़ गए क्योकि वे नहीं चाहते थे कि जीवन के किसी भी भाग में ऐसे नकारात्मक  समय को आश्रय  दिया जावे ,जिससे उनकी अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता ख़त्म होजाये , हम सब ही तो सुबह से शाम तक किसी न किसी का व्यवहार आचार विचारों पर टिपण्णी करते रहते है और कालांतर में वैसे ही हो जाते है असफल , अशांत और अपूर्ण से



संकल्पों की शक्ति को इतना बड़ा और सकारात्मक ऊर्जा से सराबोर बनाया जावे जिसके आदर्श आज ही नहीं सदियों तक याद किये जाते रहें ,इस शक्ति को जब भी निरन्तर कर्म का आधार  मिला है आप सही मानिए वहीं से इतिहास लिखे गए है , बिना किसी की परवाह और अपनी अवहेलना करके जब भी आप आगे बढे है समय ने खुद रास्ते छोड़कर आपका मार्ग प्रशस्त किया है ,और इसके लिए आपको स्वयं की शांति चाहिए स्वयं में स्थित होने काभाव क्योकि स्वयं में स्थिर हुए बिना आप एकाग्र हो ही नहीं सकते और एक बार आप एकाग्र होकर स्वयं की शक्ति का साक्षात्कार कर पाये तो आपको कुछ पाना  शेष ही नहीं रहजाएगा , फिर तो हर उपलब्धि आपके कदमों तले  होगी आर आपका समूर्ण अस्तित्व ही पूर्णानंद में सफल घोषित किया जाएगा |


निम्न का प्रयोग करके अवश्य देखें


  • जीवन में क्षमा का भाव दूसरों के लिए नहीं अपितु स्वयं के लिए बहुत आवश्यक है यही से संकल्प का प्राथमिक  आधार  अपनी मजबूती पाएगा और आपको सकारात्मकता की और पहुंचा सकेगा | 
  •  जीवन में क्षमा का भाव आपको उनलोगो के चिंतन से मुक्त कर देगा जिनकी कोई उधारी आपने अपने पास रखी हुई थी , इसके बाद आपका चिंतन उन्हें विस्मृत करने की हद  पर लेजाकर स्वयं एकाग्र हो जाएगा | 
  • परिश्रम और निरंतरता दोनों ही आपकी सफलता के लिए वैसे ही आवश्यक है जैसे बैलगाड़ी के दोनों पहिए और इनका सामंजस्य बन रहना जरूरी है | 
  • मानसिक एकाग्रता का का भाव आपके प्रयास  से ही पैदा होना है और वह भी अपने संकल्प की नित्य आवृत्ति से आपको प्रति पल यह याद रखना चाहिए | 
  • कर्म के प्रति गहरी श्रद्धा से ही आप कर्म बन्धः से मुक्त होकर अनवरत सत्य चित्त आनंद  में  पहुँच पाओगे और वहां आपका आनंद और लक्ष्य की पूर्ती स्वयं हो जानी है | 
  • जीवन को मुद कर देखने की आवशयकता है नहीं है वहां आपके अलावा कोई होता ही  कहाँ है  अतः उसके पूर्ण होने में आपका भय मुक्त और अकेला होना आवश्यक है |

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