सफलता बनाम समय बद्ध क्रियान्वयन
Success vs time bound implementation
राजा शिवसेन के राज्य में सुख शांति की कोई कमी नहीं थी , पूर्वजों की बेशुमार दौलत और विद्वान प्रजा प्रिय पिता का आशीर्वाद भी प्राप्त था ,उन्होंने ही अवस्था धर्म का पालन करते हुए शिव सेन को राज्य में गद्दी पर बैठाया था, पिता हमेशा शिव सेन को कहता, पुत्र जीवन बहुत छोटा है ,जो काम करना है शीघ्रता के साथ करो, समय सबसे बहुमूल्य है और वह लौट कर नहीं आना है ,इसलिए प्रजा के कल्याण के लिए अस्पताल ,शिक्षा , श्रम की व्यवस्था और सुरक्षा के साथ कल्याण कारी योजनाएं चलाओ ,जिससे तुम भी विश्वके श्रेष्ठ सम्राटों में से एक बन सको , शिवसेन हमेशा उन्हें हाँ ,हूँ, करके अपनी विलासिता भरे जीवन में लिप्त रहता था ,आलस्य प्रमाद और विलासताओं का गुलाम बन हमेशा यही कहता रहता था, अरे अभी कौन मररहा हूँ मैं , ये सब काम बाद में करलूंगा और यही क्रम उसका जीवन भी बन गया था |
एक रात शिवसेन सो रहाथा कि अचानक उसने देखा कि चार काले कलूटे भारीबदन के पहलवान नुमा आदमी उसके पलंग के चारों और खड़े है राजा ने पूछा कौन हो तुम वो बोले यम दूत है, शिव सेन तुम्हारा समय ख़त्म होगया है ,२० मिनट बाद चलना है तुम्हें, राजा घबराया, चिल्लाया , अनुनय विनय किया , गिड़गिड़ाया बोल छोड़ दो मुझे मैंने अभी कुछ किया ही कहां है, पिता द्वारा बताए बहुत से काम करने है, एक बार छोड़ दो ,यम दूतों ने कहा, अरे मूर्ख तेरे जैसे पापी बार बारईश्वर के यहाँ यह कहकर आते है कि ,हम अपने लक्ष्य पूरे करके परमार्थ में लगाएंगे जीवन और हर जन्म में यही पाप दुष्कर्मों में लगे रहते हो और जन्म लेकर यातनाएं भोगते हो , राजा दूतों से कहने लगा मैं आपको बेशुमार दौलत दूंगा छोड़ दो मुझे ,यह सुनकर यमदूत मुस्कुराए , अरे पूरा खजाना देदूंगा , मुझे एक माह का समय देदो यमदूत हंसे, फिर राजा बोल अच्छा मेरे पूरा राज्य लेलो मुझे बस एक दिन का समय देदो, यमदूतों ने ठहाका लगाया और एक ही पल में राजा की आत्मा को लेकर यमलोक पहुँच गए |
वहां पहुँचते ही एक गम्भीर गुस्से वाली आवाज आयी ये किसे ले आये है आप, ये वो शिवसेन नहीं है ,राजा कुछ समझ पाता उससे पहले उसे एक बड़े धक्के का अनुभव हुआ, आँख खुलने पर उसने देखा की सारे महल राज्य के निवासी रोरहे है ,या शोकाकुल खड़े है ,राजा का सारा बदन काँप रहा था ,मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी ,मगर वह समझ चुका था कि धर्म ग्रन्थ ,पिता ,गुरु जिस समय के सद उपयोग की बात करते है ,वो क्या है ,राजा सोच रहा था कि जिन कार्यों को वह बाद में करने की बात करता था , कब आएगा वह समय किसी को नहीं मालूम ,आँखों से निरन्तर आँसूबह रहे थे ,वह यह भी सोचने लगा कि कितना बहुमूल्य है समय का एक एक पल जिसके एक पल की कीमत मेरे जैसे हजारों राज्यों से भी अधिक है ,अचानक वह उठा और पिता के चरण छूकर उनसे कहने लगा चलिए मुझे इसी पल से परमार्थ के कार्यों में लगा दीजिये मैं एक पल भी व्यर्थ नहीं गवाना चाहता और अपने राजा पिता और अपने लाव लश्कर के साथ अपने परमार्थ के वास्तविक लक्ष्य की और बढ़ गया था |
आप जीवन की एक स्वांस में १/१५ मिनट का जीवन जीते है ,इसप्रकार एक दिन में २१६०० स्वांस लेकर १०८ वर्ष तक जी सकते है , यही वह गहन राज है ,जिसे समझना आवश्यक है ,कुत्ता एक मिनट में १३५ स्वास लेता है उसका जीवन १२ पूर्ण हो जाता है ,इसी प्रकार कम स्वांस लेकर सर्प , कछुआ , पेड़ पौधे अपने स्वांस क्रम के हिसाब से हजारों वर्षों का जीवन पाते है , यही स्वांस एक छोटी इकाई है ,जीवन के समय के निर्धारण की और यहीं से जीवन के प्रत्येक लक्ष्य को सहज ही बाँधा जा सकता है शर्त यह है कि एक बार चिंतन कर यह निर्धारित अवश्य करें कि आपको हर पल का सकारात्मक एवं अधिकतम प्रयोग करना है |
महावीर नानक मोहोम्मद ईसा सबने समय को बाँध दिया और जिसका समय गुलाम हो बैठे ,वो तो काल जई हुआ ही न , इन सबकी मान्यताएं समय को लेकर ही बनी रहीं ,महा वीर का स्पस्ट मानना था कि समय का दूसरा नाम काल है और जो समय सकारात्मक हुआ था वह सामयिकी हुआ ,और जिस समय के भाग को हमने व्यर्थ छोड़दिया है , वही महां विष की तरह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है ,इसका ही भोग्य हमें कालांतर में भुगतना होता है , और जिस थोड़े समय का उपयोग हम सत्कार्यों और लक्ष्य कव अनुरुप करपाते है वही अमृत्वको प्राप्त हो पाता है फिर तो आपको ही जीवन के अंत में यह निर्णय करना होगा कि , जीवन का कितना भाग आपने अमरत्व केरूप में गुजारा और कितना भाग मृत प्रायः हुआ इसका निर्णय करना ही होगा |
समय के बारे में भारतीय साहित्य ने बहुत कुछ लिखा है
- मनुष बड़ो नहीं होत है ,समय होत बलबान , भिल्लनि लूटी गोपिका, वहि अर्जुन वहि बाण
- देखो समय बड़ा बलवान ,धनवानों को निर्धन करदे ,निर्धन को धनवान ,जंगलमे वो शहर बसा दे ,शहर करे वीरान
- आदमी से ये कहो कि वक्त से डरकर रहे , कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिज़ाज़
- देश काल अवसर अनुसारी , बोले राम भगत भय हारी
- छन सुख लाग जन्म सत खोटी
मनुष्य ही नहीं देवताओं को भी समय की कसौटी पर खरा उतरना होता है और यह सिद्ध करना होता है की वो समय का सबसे श्रेष्ठ प्रयोग करने के कारण ही श्रेष्ठ साबित हुए है | यह समय वो है जो गांडीव धारी अर्जुन को वैभव और बलहीन कर देता है ,जिसका ध्यान भगवान राम भी रखकर कार्य करते है, यही समय कृष्ण की जीवन शैली भी है ,अर्थात समय की आबद्धता के बगैर ब्रह्मांड का कोई कार्य सफल और सिद्ध नहीं हो सकता |
मनुष्य देह को सदैव से नश्वर माना गया है उसका नाश अवश्यम्भावी है, परन्तु इसमें ही अमृत्व घट छुपा है, शरीर नश्वर- चेतना --अनश्वर जो कार्य व्यर्थ हुआ वो मृत और जो सकारात्मक हुआ वो अमृत्व प्राप्त किया मना गया | इसी , प्रकार धन संपत्ति भौतिक और अभौतिक वस्तुओं का संग्रह समय के साथ किया जा सकता है मगर सारी उपलब्धियां यह बताने में अक्षम है की आपके पास कितना समय बाकी है | जो कल गया वो मृत जो है वह आंकलन है जो आने वाला है ,यदि वर्तमान की चेतना को समय बद्ध करके सकारात्मक कर्मों में लगा दिया गया, तो सारी सफलताएं आपके सामने नत मस्तक हो जाएंगी |
मनुष्य जन्म के साथ आपके ऊपर कर्म बंद्ध और स्वयं को सिद्ध करने का दायित्व स्वतः आजाता है ,वह प्रारब्ध, क्रियमाण ,संचित के फेर में अपने कर्त्तव्य को समय बद्ध रूप में निभा पाया तो ,वह मुक्ति पथ पर पाया गया, और यदि यह समय का प्रयोग सही नहीं हो पाया तो, बार बार अपने अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति तक उसे ही भटकना होगा , क्योकि यहाँ आप नियत उद्देश्य से अपने कर्मों का हिसाब करने आये थे ,या लाभ कमाने --वहां आप तमाम सारा ऋण लेकर लौटे है ,तो यह ऋण आपको ही चुकाना है, इसका एक मात्र हल यही है कि हर पल को अपने उद्देश्य की आपूर्ति और सकारात्मक लक्ष्य में झोंक दे ,सारे लक्ष्य आपके सामने झुक कर आपको विजयी घोषित कर देंगे |
लगभग 25550 दिन जीने वाला इंसान ,लक्ष्य विहीन ,व्यर्थ के कार्यों और काम क्रोध लोभ मोह को साधने में ,जीवन के बहुमूल्य समय को निकालकर ,गहरे काँटों के वन में उलझता चलाजाता है ,तब लक्ष्य का छूटता सफर अधिक कष्ट कारक होने लगता है ,वासनाओं और भौतिक लिप्साओं की आपूर्ति में संतोष प्राप्ति से पहले ही जीवन अपना उत्तरार्ध लेकर खड़ा होजाता है ,जो एक गहरा पश्चाताप और घबराहट नैराश्य छोड़ने लगता है ,जो अधिक कष्टकर होजाता है, आवश्यकता इस वात की थी कि समय के एक छोटे भाग को भी यदि जीवन के सार्थक लक्ष्य के लिए जाग्रत करलिया जाए तो जीवन अपनी क्रियांवयन्ता पर प्रसन्न हो सकता है |
निम्न का प्रयोग करें
- जीवन को स्वासों ,दिन ,माहों और वर्षों का आंकलन दें और यह विचार करें उस आकलन में आप कहाँ खड़े है और क्या आप आज सकारात्मक रहें |
- सकारात्मक दृष्टिकोण के के साथ ही आपको जीवन की सफलता का मार्ग तय करना है क्योकि सकारात्मक जीवन शैली आपको आधी सफलता दे देती है |
- समय के केवल तीन प्रयोग होसकते है आवश्यक कार्य सकारात्मक कार्य और सामान्य कार्य सामान्य कार्य आपको कर्म बंधन में बांधेंगे ,सकारात्मक और लक्ष्य के प्रति जागरूकता आपको सफल सिद्ध करेगी |
- समय के महत्व को सदैव याद करतेरहे ,यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है इसमें अपनेलक्ष्य को सदैव याद रखना महत्वपूर्ण है |
- जाता हुआ समय वास्तविक प्रसन्नता देकर जाएगा तो उसकी सार्थकता सिद्ध होगी और यदि वह आपको चिंता पश्चाताप और नकारात्मकता देकर जा रहा है तो सधार की आवश्यकता है |
- जीवन का प्रत्येक कार्य जरूरी है, मगर आसक्ति , शोषण , शोषित होने की लत नकारात्मकता है उससे बच कर स्वयं की चेतना में लौटकर ध्यान करें |
- समय का सदुपयोग -सकारात्मकता और उसकी सुरति ही का एक मार्ग है लक्ष्य को साधने के लिए यही उद्देश्य है जिसे नित्य ध्यान देना आवश्यक है ।
- समय को सामयिकी बनाकर अपने कल को सुधारने की चेष्टा करो ,उसे काल बनाकर व्यर्थ मत गवाओं अन्यथा बार बार आपको अधिक भटकना होगा |
- बार बार समय को अपने लक्ष्य की सफलता के रूप में देखना सीखें ,धीरे धीरे ये सफलता आपके वास्तविक जीवन में कब उतर आएगी मालूम भी नहीं पड़ेगा |
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