अपनी आतंरिक शक्ति का असल परिचय
आपको परिपूर्ण सफलता देगा
identification of your inner power
give you acme of successा
सत्यघटना
अडिग स्कूल के समय सी ही काफी प्रबुद्ध विचार शील और मेधावी रहा था , पिता एक स्कूल में हेड मास्टर थे और घर का सम्पूर्ण वातावरण सयुक्त हिन्दूपरिवार जैसा ही था, एक दुसरे के दुःख में खड़े दिखाई देते थे सब ,अडिग बचपन से ही साहित्य कार रहा, स्कूल के समय में जब उसके साथी स्टेडियम में हॉकी खेल रहे होते थे तब वह कवितायें लिख के कर सबको मंत्र मुग्ध कर देता था | स्कूल और कॉलेज में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में उसे कोई नहीं हरा पाता था , जब भी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं स्कूल या कॉलेज में आयोजित की जाती, अडिग का पूरा समूह उसमे अपने प्रतियोगी बना कर प्रस्तुत कर देता था और सफलता के साथ यदि पुरूस्कार में यदि नकद ईनाम मिला तो पास ही के एक दूकान जा कर मिठाई लस्सी और बहुत से पकवानों का जश्न हो जाया करता था ,ऐसी ही बेफिक्र थी जीवन की यह मंजिल | हमारा अडिग समाजिक और राष्ट्रिय हित की संस्थाओं से भी सघन संपर्क में रहा ,सब जगह एक खामोश संघर्ष था और वहां भी एक छोटी जगह पायी थे हमारे अडिग ने |
बात १९४५ के कुछ बाद की है कि अडिग का स्वास्थ्य ख़राब हुआ खांसी कमजोरी और ढेरो स्वास्थ्य समस्याएँ
सांस लेने में तकलीफ , चलने उठने बैठने में समस्या ,डाक्टर , वैद्यों और समाज के हरजानकार ने यह बताया कि बीमारी ला इलाज है अभी इसका कोई इलाज बना ही नहीं है , इस बीमारी में लंग्स में पानी भर जाता है और फिर बुखार कमजोरी और तेज दर्द और कमजोरी आदमी को तोड़ डालती है ,वैद्यों के हिसाब से ताकत की दवा और उच्च प्रोटीन का भोजन इसमें थोड़ा लाभ कारी हो सकता था ,कभी कुछ ठीक कभी ख़राब ऐसे ही जीवन निकलने लगा हमारा अडिग ,एक बार एक राष्ट्रीय नेता ने अपने विचार प्रस्तुत किये और मंच से ही मांग करदी की एक लड़का चाहिए जो अच्छी हिंदी जानता हो , नेता कलकत्ता से सम्बद्ध थे,वरिष्ठ नेताओं का चर्चा का दौर चला अचानक अडिग ने अपनी इच्छा प्रकट की कि मैं चला जाता हूँ ,अर्थात अडिग साथ तैयार हो गया, वो जानता था कि जीवन में कुछ है नहीं ,कभी भी मर सकता हूँ , एक ओर घोर निराशा थी जीवन का लोभ और उससे की जाने वाली आकांक्षाएंं मृत प्रायः सी थी, घर के लोग फिक्र मंद तो थे ,मगर उन सबने इस नियति को मान लिया था ,|
कई बार मन ने कहा बेकार है जीवन चलो आत्म हत्या की जाए ,मगर बार बार आत्मा के एक छोर से आवाज आती रही कि शरीर को अपना धर्म निभाने दो ,आत्मा की ताकत से नया काव्य लिखो, यही सोच कर अडिग अपने आगामी भविष्य चल दिया , अडिग ने भी निश्चय करलिया ऐसे घिसट घिसट कर मरने से अच्छा यह है कि वो संघर्ष और खुद को सिद्ध करके ही मरे, नेताजी का आग्रह उसे ईश्वर की राह लगी, वैद्य यही बताते रहे जबतक अच्छा खाना और संयमित जीवन चलेगा ,आपका जीवन चलता रहेगा और बाद में ह रि इक्छा , कलकत्ता जाकर अडिग ने एक नए जीवन के प्रथम दिन की शुरुआत की और धीरे धीरे उसमे वह सफल भी होने लगा |
समुद्र की सैर, अच्छा समय बद्ध भोजन ,वैद्यों की दवाएं और काली माँ का आशीर्वाद, इन तीनों ने मिलकर अडिग को जल्द ही ठीक कर दिया था , नेता जी का कद बहुत बड़ा था ,धीरे धीरे अडिग के सौम्य स्वाभाव और सारे परिवार को मोह लियाथा , कालान्तर में अडिग की पहिचान ही नेता जी होगये , सम्पूर्ण देश में नेता जी के साथ एक छोटे से सेवक का भी नाम लिया जाने लगा , भाषण , समाजिक कार्य और कविता ने उसका कद बहुत बढ़ा दिया था ,नेताजी के भाषण के पूर्व स्टेज तैयारी और पूर्व में छोटे भाषणों ने उसे देश में एक स्थान दे दिया था, फिर नेता जी ने कई चुनाव लड़ाये हमारे अडिग को ,अपने स्वाभाव और क्रियाशीलता के चलते जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ हमारा अडिग और कभी किसी महिला से हार भी गया तो ये उत्तर देता रहा कि मातृ शक्ति थी उन्हें जीतना ही था , और एक दिन हमारा अडिग राष्ट्र की प्रमुख नेताओं में था देश की राजनीती उसके ही अनुसार चलती थी और सम्पूर्ण विश्व में उसकी उदारवादी नीति के नग्मे गाए जाते रहे , यही जीवन का सत्य भी था | परन्तु अडिग बेफिक्र बे परवाह और अपने लक्ष्य की और चलता रहा यह कहकर कि उस रोज नैराश्य के सागर में जो ख़त्म होगया वह अडिग नहीं हूँ मैं उस आत्मा का अडिग हूँ जो चिरन्तर साश्वत ,अजेय सनातन और अपूर्व शक्ति वाली आत्मा से पैदा हुआ है बस एक बार स्वयं के स्वरुप को पहिचानने की आवश्यकता है |
संसार में हम हजारों ख्वाहिशें लेकर चलते रहते है ,हजारो उपलब्धियां होती है ,हजारों जगह हमे हारना होता है , क्योकि हम उस प्रतियोगिता में भाग ले रहे है , सेल्यूकस अपने शिष्य से कहा ,क्या जानते हो जीत के बारे में ,शिष्य ने तुरंत कहा प्रयास ----- पूरी ताकत से प्रयास उसने कहा फिर भी असफल हुए तो ---- तो दुगनी ताकत से फिर प्रयास ------ और फिर भी सफल न हुए तो ------- शिष्य ने कहा देव मुझे तो पूरी ताकत से प्रयास करना है न ,जब मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करलूं तो काम पूरा, नहीं तो काम आरम्भ समझें --- यहाँ सफलता असफलता का भाव तो समाज और दूसरों की सोच से पैदा होता है, ऐसे में जरूरी तो नहीं कि मैं अपना आंकलन दूसरों के हिसाब से ही करू, यह कहकर शिष्य गुरु के चरणों में झुक गया |
पढ़ाई , मित्रता , सामाजिक सम्बन्ध , बहुत सारी कामनाएं , नशा , ख़र्च और बेतहाशा दौड़ते हुए समाज में खुद को सिद्ध करने के लिए बहुत सारा धन ये सब भौतिक आकांक्षाएं है जिनसे मन मष्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और मन बुद्धि खुद को दूसरों की तुलना में छोटा बताने लगती है बस यहींसे हमारा पतन आरम्भ हो जाता है , हम अपने प्राकृतिक सौंदर्य को छोड़कर सबसे पहले पूरी दुनिया को देखते है ,उसके बाद स्वयं को कोसने लगते है, यह बिना जाने की जिन चीजों के लिए हम अपने आपको दोष दे रहे है ,वे हमारे सम्बन्ध में है ही नहीं है , पढ़ाई मित्रता सम्बन्धों के नाकारात्मक हो जाने के बाद मन में का भाव प्रकट होता है , यदि उसपर दीर्घ विचार कर , आगे की रणनीति बन ली जाए तो सफलता का प्रतिशत और अधिक हो सकता है ,आवश्यकता इस बात की है कि आप आंकलन करके आगे की रणनीति बनाने का प्रयास करें |
दुःख -अवसाद -और दर्द में महांन शक्ति होती है ,इतिहास गवाह है कि बहुत बड़े बड़े रचनात्मक परिवर्तन इसी अवसाद ,दुःख और दर्द से पैदा हुए है | सुख --जश्न --और खुशियां मनाने के नियत प्रकार है क्योकि उसमे बहुत कुछ कमी और तरीके हो सकते है अर्थात उसमे पूर्ण शक्ति एकत्रित नहीं पाती मगर ,दुःख और अवसाद में वह अजेय शक्ति होती है जो अपने संकल्प और शक्ति के माद्यम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने का साहस रखती है ,अपने अवसाद और नैराश्य को महान शक्ति बनाइये और उसे संकल्प और क्रिया शीलता की आग में पकाइये , समय को झुका कर एक दिन सारी सफलताएं आपके अपने द्वार पर खुद दस्तक देने आएंगी ,यहाँ आप को यह चुनना है कि आपकी ख़ुशी काहे में है |
,जब हम आपना आंकलन दुनिया के हिसाब से करेंगे तो, फिर शान्ति , सुख और सम्मान कैसे मिलपाएगा हमे , दुनिया का काम केवल हमे निकृष्ट बताना ,हारा हुआ बताना और भारी दुःख में हमे बताना था और हम भी खुद को वैसा ही बताने लगे , दुखी होने लगे ,जबकि हमारे अंतर में हर ख़ुशी विद्यमान थी , हम सारी समस्याओं का खुद निदान थे मगर हमने अपने आपको पहिचाना ही नहीं , हमने स्वयं को देखा ही नहीं ,हम बस दूसरों की आँखों में अपनी तस्वीर देख कर उसके बताये अनुसार रोते रहे ,वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की हम मर गए है, उसके आर्त और उच्च स्वर में हम भी अपना रोना मिलाते रहे ,कि हम बहुत अच्छे थे --- बड़ी देर बाद याद आया ---मगर मै तो जिन्दा हूँ , ताकतवर हूँ ,कमजोर नहीं हूँ , फिर क्यों रो रहा हूँ ,बस यहीं से आत्मा अपना आंकलन कर जीवन को लक्ष्य पर ले जाएगी ,आप स्वयं का चिंतन अपनी अपराजेय शक्ति के स्त्रोत के द्वार को खोलने के लिए करें | समाज और तुम्हारे परिवेश ने तो तुम्हारा नकारात्मक आकलन हमेशा किया है, उसने इतनी बार वो नकारात्मक जुमले तुम्हे सुनाये है कि तुम अपनी वास्तविक तस्वीर तक भूल गए हो ,अपना सौंदर्य और शक्ति की मूल द्धारा से वंचित होगये हो, फिर कैसे सुख , सौंदर्य और शांति प सकते हो आप, आपको शांति सुख की खोज में अपने अंतर के रहस्यों तक जाना जरूरी है | स्वयम की शक्ति और आत्मा का विचार अवश्य करें ,सारी समस्या इस बात की है कि हम स्वयं का आंकलन नहीं कर पारहे ,यही हम सारे संसार और अपना आंकलन भी दुनिया के हिसाब से कर रहे है|
सारी शक्तियों के साथ है आप ,आप हर समस्या और हर नकारात्मकता का जबाब है , बस ाआवश्यक्ता इसबात की है एक बार स्वयं को रोक कर एकाग्र भाव से यह जानने का प्रयत्न अवश्य करें कि जो आंकलन हम सकारात्मकता और नकारात्मकता का कर रहें है वह कितना सही है ,
हर असफलता , हार और नकारात्मकता आपके पास एक ऐसा मौन सन्देश लेकर आती है की आप सावधान होकर उसके सन्देश को समझने का प्रयत्न अवश्य करें, प्रेम की असफलता आपको यही समझाने का प्रयत्न करती हैकि , खुद को सिद्ध करके बताओ ,अहम की हार आपको यह बताती है कि अपनी एकाग्र शक्ति का विकास करों ,संकल्प करो और भौतिक संसाधनों की कमियां आपको इस बारे में सोचने को मजबूर करती है कि आप उनके बारे में विचार करे और उनकी आपूर्ति के लिए खुद को सक्षम बनाये , प्रयास करें , हम जो भी है आज है वो सब हमारे संकल्पों का परिणाम है ,और आगे भी इस संकल्प की प्रक्रिया को इतना सशक्त बनाया जाए जिससे आपको दुनिया की हर सफलता आपके लिए सहज हो जाए |
निम्न भावो में स्वयं को अवश्य ले जाइये
आपको परिपूर्ण सफलता देगा
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सत्यघटना
अडिग स्कूल के समय सी ही काफी प्रबुद्ध विचार शील और मेधावी रहा था , पिता एक स्कूल में हेड मास्टर थे और घर का सम्पूर्ण वातावरण सयुक्त हिन्दूपरिवार जैसा ही था, एक दुसरे के दुःख में खड़े दिखाई देते थे सब ,अडिग बचपन से ही साहित्य कार रहा, स्कूल के समय में जब उसके साथी स्टेडियम में हॉकी खेल रहे होते थे तब वह कवितायें लिख के कर सबको मंत्र मुग्ध कर देता था | स्कूल और कॉलेज में साहित्यिक प्रतियोगिताओं में उसे कोई नहीं हरा पाता था , जब भी कोई साहित्यिक सांस्कृतिक प्रतियोगिताएं स्कूल या कॉलेज में आयोजित की जाती, अडिग का पूरा समूह उसमे अपने प्रतियोगी बना कर प्रस्तुत कर देता था और सफलता के साथ यदि पुरूस्कार में यदि नकद ईनाम मिला तो पास ही के एक दूकान जा कर मिठाई लस्सी और बहुत से पकवानों का जश्न हो जाया करता था ,ऐसी ही बेफिक्र थी जीवन की यह मंजिल | हमारा अडिग समाजिक और राष्ट्रिय हित की संस्थाओं से भी सघन संपर्क में रहा ,सब जगह एक खामोश संघर्ष था और वहां भी एक छोटी जगह पायी थे हमारे अडिग ने |
बात १९४५ के कुछ बाद की है कि अडिग का स्वास्थ्य ख़राब हुआ खांसी कमजोरी और ढेरो स्वास्थ्य समस्याएँ
सांस लेने में तकलीफ , चलने उठने बैठने में समस्या ,डाक्टर , वैद्यों और समाज के हरजानकार ने यह बताया कि बीमारी ला इलाज है अभी इसका कोई इलाज बना ही नहीं है , इस बीमारी में लंग्स में पानी भर जाता है और फिर बुखार कमजोरी और तेज दर्द और कमजोरी आदमी को तोड़ डालती है ,वैद्यों के हिसाब से ताकत की दवा और उच्च प्रोटीन का भोजन इसमें थोड़ा लाभ कारी हो सकता था ,कभी कुछ ठीक कभी ख़राब ऐसे ही जीवन निकलने लगा हमारा अडिग ,एक बार एक राष्ट्रीय नेता ने अपने विचार प्रस्तुत किये और मंच से ही मांग करदी की एक लड़का चाहिए जो अच्छी हिंदी जानता हो , नेता कलकत्ता से सम्बद्ध थे,वरिष्ठ नेताओं का चर्चा का दौर चला अचानक अडिग ने अपनी इच्छा प्रकट की कि मैं चला जाता हूँ ,अर्थात अडिग साथ तैयार हो गया, वो जानता था कि जीवन में कुछ है नहीं ,कभी भी मर सकता हूँ , एक ओर घोर निराशा थी जीवन का लोभ और उससे की जाने वाली आकांक्षाएंं मृत प्रायः सी थी, घर के लोग फिक्र मंद तो थे ,मगर उन सबने इस नियति को मान लिया था ,|
कई बार मन ने कहा बेकार है जीवन चलो आत्म हत्या की जाए ,मगर बार बार आत्मा के एक छोर से आवाज आती रही कि शरीर को अपना धर्म निभाने दो ,आत्मा की ताकत से नया काव्य लिखो, यही सोच कर अडिग अपने आगामी भविष्य चल दिया , अडिग ने भी निश्चय करलिया ऐसे घिसट घिसट कर मरने से अच्छा यह है कि वो संघर्ष और खुद को सिद्ध करके ही मरे, नेताजी का आग्रह उसे ईश्वर की राह लगी, वैद्य यही बताते रहे जबतक अच्छा खाना और संयमित जीवन चलेगा ,आपका जीवन चलता रहेगा और बाद में ह रि इक्छा , कलकत्ता जाकर अडिग ने एक नए जीवन के प्रथम दिन की शुरुआत की और धीरे धीरे उसमे वह सफल भी होने लगा |
समुद्र की सैर, अच्छा समय बद्ध भोजन ,वैद्यों की दवाएं और काली माँ का आशीर्वाद, इन तीनों ने मिलकर अडिग को जल्द ही ठीक कर दिया था , नेता जी का कद बहुत बड़ा था ,धीरे धीरे अडिग के सौम्य स्वाभाव और सारे परिवार को मोह लियाथा , कालान्तर में अडिग की पहिचान ही नेता जी होगये , सम्पूर्ण देश में नेता जी के साथ एक छोटे से सेवक का भी नाम लिया जाने लगा , भाषण , समाजिक कार्य और कविता ने उसका कद बहुत बढ़ा दिया था ,नेताजी के भाषण के पूर्व स्टेज तैयारी और पूर्व में छोटे भाषणों ने उसे देश में एक स्थान दे दिया था, फिर नेता जी ने कई चुनाव लड़ाये हमारे अडिग को ,अपने स्वाभाव और क्रियाशीलता के चलते जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ हमारा अडिग और कभी किसी महिला से हार भी गया तो ये उत्तर देता रहा कि मातृ शक्ति थी उन्हें जीतना ही था , और एक दिन हमारा अडिग राष्ट्र की प्रमुख नेताओं में था देश की राजनीती उसके ही अनुसार चलती थी और सम्पूर्ण विश्व में उसकी उदारवादी नीति के नग्मे गाए जाते रहे , यही जीवन का सत्य भी था | परन्तु अडिग बेफिक्र बे परवाह और अपने लक्ष्य की और चलता रहा यह कहकर कि उस रोज नैराश्य के सागर में जो ख़त्म होगया वह अडिग नहीं हूँ मैं उस आत्मा का अडिग हूँ जो चिरन्तर साश्वत ,अजेय सनातन और अपूर्व शक्ति वाली आत्मा से पैदा हुआ है बस एक बार स्वयं के स्वरुप को पहिचानने की आवश्यकता है |
संसार में हम हजारों ख्वाहिशें लेकर चलते रहते है ,हजारो उपलब्धियां होती है ,हजारों जगह हमे हारना होता है , क्योकि हम उस प्रतियोगिता में भाग ले रहे है , सेल्यूकस अपने शिष्य से कहा ,क्या जानते हो जीत के बारे में ,शिष्य ने तुरंत कहा प्रयास ----- पूरी ताकत से प्रयास उसने कहा फिर भी असफल हुए तो ---- तो दुगनी ताकत से फिर प्रयास ------ और फिर भी सफल न हुए तो ------- शिष्य ने कहा देव मुझे तो पूरी ताकत से प्रयास करना है न ,जब मैं अपने लक्ष्य को प्राप्त करलूं तो काम पूरा, नहीं तो काम आरम्भ समझें --- यहाँ सफलता असफलता का भाव तो समाज और दूसरों की सोच से पैदा होता है, ऐसे में जरूरी तो नहीं कि मैं अपना आंकलन दूसरों के हिसाब से ही करू, यह कहकर शिष्य गुरु के चरणों में झुक गया |
पढ़ाई , मित्रता , सामाजिक सम्बन्ध , बहुत सारी कामनाएं , नशा , ख़र्च और बेतहाशा दौड़ते हुए समाज में खुद को सिद्ध करने के लिए बहुत सारा धन ये सब भौतिक आकांक्षाएं है जिनसे मन मष्तिष्क का संतुलन बिगड़ जाता है और मन बुद्धि खुद को दूसरों की तुलना में छोटा बताने लगती है बस यहींसे हमारा पतन आरम्भ हो जाता है , हम अपने प्राकृतिक सौंदर्य को छोड़कर सबसे पहले पूरी दुनिया को देखते है ,उसके बाद स्वयं को कोसने लगते है, यह बिना जाने की जिन चीजों के लिए हम अपने आपको दोष दे रहे है ,वे हमारे सम्बन्ध में है ही नहीं है , पढ़ाई मित्रता सम्बन्धों के नाकारात्मक हो जाने के बाद मन में का भाव प्रकट होता है , यदि उसपर दीर्घ विचार कर , आगे की रणनीति बन ली जाए तो सफलता का प्रतिशत और अधिक हो सकता है ,आवश्यकता इस बात की है कि आप आंकलन करके आगे की रणनीति बनाने का प्रयास करें |
दुःख -अवसाद -और दर्द में महांन शक्ति होती है ,इतिहास गवाह है कि बहुत बड़े बड़े रचनात्मक परिवर्तन इसी अवसाद ,दुःख और दर्द से पैदा हुए है | सुख --जश्न --और खुशियां मनाने के नियत प्रकार है क्योकि उसमे बहुत कुछ कमी और तरीके हो सकते है अर्थात उसमे पूर्ण शक्ति एकत्रित नहीं पाती मगर ,दुःख और अवसाद में वह अजेय शक्ति होती है जो अपने संकल्प और शक्ति के माद्यम से कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने का साहस रखती है ,अपने अवसाद और नैराश्य को महान शक्ति बनाइये और उसे संकल्प और क्रिया शीलता की आग में पकाइये , समय को झुका कर एक दिन सारी सफलताएं आपके अपने द्वार पर खुद दस्तक देने आएंगी ,यहाँ आप को यह चुनना है कि आपकी ख़ुशी काहे में है |
,जब हम आपना आंकलन दुनिया के हिसाब से करेंगे तो, फिर शान्ति , सुख और सम्मान कैसे मिलपाएगा हमे , दुनिया का काम केवल हमे निकृष्ट बताना ,हारा हुआ बताना और भारी दुःख में हमे बताना था और हम भी खुद को वैसा ही बताने लगे , दुखी होने लगे ,जबकि हमारे अंतर में हर ख़ुशी विद्यमान थी , हम सारी समस्याओं का खुद निदान थे मगर हमने अपने आपको पहिचाना ही नहीं , हमने स्वयं को देखा ही नहीं ,हम बस दूसरों की आँखों में अपनी तस्वीर देख कर उसके बताये अनुसार रोते रहे ,वो चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था की हम मर गए है, उसके आर्त और उच्च स्वर में हम भी अपना रोना मिलाते रहे ,कि हम बहुत अच्छे थे --- बड़ी देर बाद याद आया ---मगर मै तो जिन्दा हूँ , ताकतवर हूँ ,कमजोर नहीं हूँ , फिर क्यों रो रहा हूँ ,बस यहीं से आत्मा अपना आंकलन कर जीवन को लक्ष्य पर ले जाएगी ,आप स्वयं का चिंतन अपनी अपराजेय शक्ति के स्त्रोत के द्वार को खोलने के लिए करें | समाज और तुम्हारे परिवेश ने तो तुम्हारा नकारात्मक आकलन हमेशा किया है, उसने इतनी बार वो नकारात्मक जुमले तुम्हे सुनाये है कि तुम अपनी वास्तविक तस्वीर तक भूल गए हो ,अपना सौंदर्य और शक्ति की मूल द्धारा से वंचित होगये हो, फिर कैसे सुख , सौंदर्य और शांति प सकते हो आप, आपको शांति सुख की खोज में अपने अंतर के रहस्यों तक जाना जरूरी है | स्वयम की शक्ति और आत्मा का विचार अवश्य करें ,सारी समस्या इस बात की है कि हम स्वयं का आंकलन नहीं कर पारहे ,यही हम सारे संसार और अपना आंकलन भी दुनिया के हिसाब से कर रहे है|
सारी शक्तियों के साथ है आप ,आप हर समस्या और हर नकारात्मकता का जबाब है , बस ाआवश्यक्ता इसबात की है एक बार स्वयं को रोक कर एकाग्र भाव से यह जानने का प्रयत्न अवश्य करें कि जो आंकलन हम सकारात्मकता और नकारात्मकता का कर रहें है वह कितना सही है ,
हर असफलता , हार और नकारात्मकता आपके पास एक ऐसा मौन सन्देश लेकर आती है की आप सावधान होकर उसके सन्देश को समझने का प्रयत्न अवश्य करें, प्रेम की असफलता आपको यही समझाने का प्रयत्न करती हैकि , खुद को सिद्ध करके बताओ ,अहम की हार आपको यह बताती है कि अपनी एकाग्र शक्ति का विकास करों ,संकल्प करो और भौतिक संसाधनों की कमियां आपको इस बारे में सोचने को मजबूर करती है कि आप उनके बारे में विचार करे और उनकी आपूर्ति के लिए खुद को सक्षम बनाये , प्रयास करें , हम जो भी है आज है वो सब हमारे संकल्पों का परिणाम है ,और आगे भी इस संकल्प की प्रक्रिया को इतना सशक्त बनाया जाए जिससे आपको दुनिया की हर सफलता आपके लिए सहज हो जाए |
निम्न भावो में स्वयं को अवश्य ले जाइये
- आपका जन्म का आधार भूत उद्देश्य क्या है क्या आप केवल साधनों और भौतिक संसाधनों की उपलब्धि में ही तो नहीं उलझे आपको प्रमुख उद्देश्य तक पहुँचाना ही चाहिए |
- हर नकारात्मकता , हार और असफलता यह बताने का प्रयत्न अवश्य करती है कि, इस सफलता के लिए कुछ और किया जाना बाकी है, -एक बार नए तरीके और नयी ताकत से नयी तकनीक के साथ ,अलग प्रयास अवश्य करें सफलता आपको ही मिलेगी |
- आपना आंकलन दूसरों के हिसाब मत करो ,दूसरों के पास आपको परखने की शक्ति ही नहीं है , जब आप दूसरों के हिसाब से अपना आंकलन करते है तो, आप स्वयं की शक्तियों को जान ही नहीं पाते स्वयं को श्रेष्ठ समझ कर संकल्प और सकारात्मक परिवर्तन करें
- हर परिवर्तन कास्वागत करने का मन बनाएं क्योकि जीवन में अवसाद केवल तब ही आता है जब हम जीवन के परिवर्तनों को नकार देते है जबकि परिवर्तनों को अपनाना महत्वपूर्ण है |
- जीवन को सफलता और असफलता का मैदान मत बनाइये , क्योकि पूर्ण प्रयास को हम सफलता ,और प्रयास में कुछ कमी को असफलता मानते है, हम जबकि प्रयास करना ही आधी सफलता है |
- संकल्प का निरन्तर ध्यान रखना आपको अपनी सफलता तक अवश्य लेजायेगा , क्योकिहम जिसका निरन्तर ध्यान करते है उसकी प्राप्ति हमे होना ही है |
- स्वीकार्यता आशय है , सफलता असफलता को पूरे मन से स्वीकार कर नयी तकनीक और नए उत्साह के साथ आगामी कार्य और संकल्प में जुट जाने की आवश्यकता है |
- सफलता के प्रति पूर्णआश्वस्त रहने में आधी सफलता हांसिल होना तय है ,जबतक हम अपने कर्तव्य और संकल्पों को सफलता के प्रति आश्वस्त नहीं कर पाएंगे ,तब तक सफलता अपना लाभ नहीं दे पाएगी |
- स्वयं का आकलन करें और अपनी सुप्त और जाग्रत शक्तियों केद्वार खटखटायें , और निरन्तर स्वयंको तैयार रखें कि आप इसमें अवश्य सफल होंगे |
- जीवन के कार्यों और भविष्य के लिए कुछ विकल्प जरूर रखें , कभी कभी आपका बार बार असफल होना बात का इशारा है कि आपको नए विकल्प और तकनीक से सफलता जीतना होगा |
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