अपने लक्ष्य को एक जुनून में परिवर्तित करो
Make your goal into a passion
एक गुरु आश्रम में कोई बड़ा उत्सव मनाया जाने वाला था ७ दिन शेष बचे थे सभी लोग कठिन परिश्रम से आगे आने वालों की व्यवस्था कर रहे थे , सारे शिष्य जोरो शोरो से अपनी गुरु सेवा का पालन कररहे थे ,ठण्ड का हिमालय वाला समय था ,गुरु जी ने आदेश दिया कि लकड़ियों का पर्याप्त प्रबंध किया जाए, सारे शिष्य जंगल में कूद पड़े बस दो तीन शिष्य रसोई और सफाई आदि के प्रबंध में लगे रहे ,उनमे से एक शिष्य गूंगा था नाम था सोऽहं ,इशारों और समय की भाषा बहुत अच्छे से समझ लेता था ,रात्रि में दो बजे उठ कर सारी सफाई धुलाई और हर वह काम जो, छोटा समझा जाता था ,वह उसे करने में माहिर था , रात्रि को सारे बर्तन मांज कर सुबह की व्यवस्था करना उसका ही काम था । जब गुरु अपने शिष्यों को पढ़ा रहे होते थे ,तब वह बड़े विनम्र भाव से काम करते करते भी उन्हें देखता और प्रणाम करता रहता था ,सब लोग उसे पागल ही समझते थे ,परन्तु गुरु जानते थे कि वह आज्ञा कारी और बहुत मेहनती है बेचारा सुनने और बोलने में असमर्थ है बस , जैसी ईश्वर की लीला ।
आश्रम के बहार अन्य शिष्यों ने ,लकड़ियों और सूखे वृक्षों का ढेर लगा दिया था , एक बड़ा पहाड़ ,रसोइया गुरूजी से कह रहा था कि मुझे तो कटी लकड़ियां चाहिए महाराज ,ऐसे कैसे काम चलेगा , महाराज गहन चिंता में थे २ दिन बचे थे कार्य क्रम में ,सारे शिष्य लकड़िया रख कर खाना खा कर सो चुके थे ,सारा काम करने के बाद सोऽहं को गुरु माँ खाना खिला रही थी और गुरु देव से परेशानी की बातें भी सुनती जा रही थी ---कैसे होगा सब ,कल आमंत्रण भेजने है ,बहुत काम है ,अथिति निवास बनाने है ,और लकड़ियों का ढेर ,ये सब मिलके भी नहीं काट पाएंगे ,इन सबको सोचकर --- पसीने की लकीरें स्पष्ठ थी गुरु देव के माथे पर |
सुबह होने को थी मुर्गा कबका बांग दे चूका था रात भर सो नहीं पाये थे गुरु , , जमीन को उठते ही प्रणाम किया तो वो गीली थी ,कोई पूर्व में ही उसे साफ करके जा चुका था , गुरु ने आश्रम के बहार कदम रखा ही था कि , जो दृश्य उन्होंने देखा वो असम्भव सा था ,गुरु माँ एक बड़े पत्थर पर बैठी है और सोऽहं सारी लकड़िया काट कर रसोई घर में पहुंचा चुका है ,गुरु माँ ने बताया कि पूरी रात में उसने एक अदृश्य शक्ति की तरह सारी लकड़िया काट दी है ,सुबह सारे आश्रम की सफाई कररहा था ,तब मैं जागी , तो वह बिना किसी भाव के आपके उठने की प्रतीक्षा में था ,गुरु विस्मित , गदगद , और निरुत्तर थे बस वो पाँव दबाते सोहम को देखते रहे |
आश्रम में सन्यासियों और गुरुओं का जमावड़ा था गुरु के बाबा गुरु भी आये थे हिमालय से ,उन्हें ही सफलशिष्यों की सफलता की घोषणा करनी थी ,बड़ी बड़ी दीक्षाएं और शिक्षाओं के साथ सरे शिष्य सजे धजे खड़े थे ,पता नही किसको कब पुरूस्कार मिलजाए , सोऽहं रसोई में काम करवा रहा था, बार बार प्रणाम करता जाता था , प्रमुख रसोइया कईबार सबके साथ उसकी हंसी उडा चुका था ,ये प्रणाम ही करता रहता है ,मगर मेहनती है बेचारा पागल है न |
अचानक महां गुरु ने नाम पुकारा ----महायोगी निवृत ---- सन्नाटा खिच गया था आश्रम में ,गुरु ने कहा महाराज यहाँ इस नाम का कोई नहीं है , अचानक सोऽहं गंदे मैले कुचैले कपड़ों में गुरुको प्रणाम करने पहुंचा --महागुरु --गुरु से बोले पुत्र यही है महायोगी निवृत ---पर इसे तो ---- हा जानता हूँ ,यही बताएगा सब ,मैंने ही इसे इस आश्रम में भेजा था | महा गुरु ने पूछा पुत्र कैसी रही आपकी यात्रा ---- निवृत ने गुरु को प्रणाम कर कहना आरम्भ किया
देव आपके आदेश के बाद मुझे मेरे गुरु मिलगये थे ,जिस दिन मैंने इन्हें गुरु मान लिया मैंने अपनी आवाज अपने गुरु को ही मान लिया था , फिर मुझ पर बोलने को कुछ था ही नहीं ,देव संसार में बहुत कुछ सुनना ही सबसे बड़ा रोग है ,गुरु पाने के पश्चात केवल गुरु की आवाज के अलावा सारी आवाजें व्यर्थ थी ,तो मैंने स्वयं को गुरु की आवाजे सुनने का माध्यम बन लिया और कुछ सुनना ही बंद करदिया ,और सेवा परिश्रम और प्रसंशा ही तो अभिमान पैदा करती है| ,इसलिए स्वयं को पागल के रूप में रख दिया ,और हर पल अपने काम के साथ भी अपने गुरु को प्रणाम करता रहा इससे मैं अपने लक्ष्य को याद करता रहता था ---जिससे कोई मुझसे न तो तुलना करें और मुझे केवल पागल समझ कर अपने काम में लगे रहने दें | जिससे मैं अपने गंतव्य तक बिना अवरोध के पहुँच पाऊं --यह कहकर सोऽहं या निवृत अपने गुरु के चरणों में गिर गया महा गुरु बोले पुत्र धन्य हो तुम, एक दिन ये ही सूत्र जीवन में सफलता के प्राथमिक कारण बनेंगे ,आओ अब आगे का मार्ग आपको बुला रहा है --- यह कहकर महा गुरु आशीर्वाद देते हुए और निवृत्त प्रणाम करता हुआ आकाश मार्ग से अदृश्य हो गए |
जीवन में सफलता का एक ही द्वार है वह है कठिन पारिश्रम नियत उद्देश्य और उसे प्राप्त करने का मार्ग , सबसे बड़ी विडम्बना यह है की सबके पास इन तीनों की कोई कमी नहीं है, मगर इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप अपने लक्ष्य को हर पल हर घड़ी हर स्वास के साथ याद रख पाये कि नहीं ,यदि आप ऐसा नहीं करपाए तो ,आपके पास सफलता के लिए बहुत कम भाग बच पाएगा और आपके लक्ष्य निरन्तर बदलते बदलते ,आपके सारे जीवन पर एक भारी प्रश्न चिन्ह बन जायेगे ,जीवन का स्वाभाव ही ऐसा है कि जहां भी कोई कठिनाई आई ,वह सरल रास्ता चुनकर निकल भागने का प्रयत्न करने लगता है , यह नहीं तो यह सही , मगर यदि आपका संकल्प पूर्ण और सत्य के साथ है तो देर सही मगर सफलता आपकी ही होगी इसमें संदेह नहीं है |
लक्ष्य से प्रेम उसी तरह हो ,जिसप्रकार एक प्रेयसी या प्रेमी अपने प्रेमी के लिए विहृल , आतुर और कुछ भी करने की भावना का भाव लेकर प्रतीक्षा रत होजाता है , वह हर रुकावट , कठिनाई और आग के दरिया को भी लाँघ जाने की शक्ति पैदा करलेता है , वह जीवन की किसी भी चिनौती को अपने कद से बड़ा नहीं समझता और किसी भी सूरत में प्राप्ति की कामना रखता है , उससे कौन सफलता को दूर कर सकता है ,मेरे दोस्तों यह कोई प्रेमी या प्रेयसी नहीं यही आपके लक्ष्य की कामना है ,जिस छड़ आपके सम्पूर्ण अस्तित्व की आवाज एक कशिश बनकर अपनी मंजिल को पाने की चेष्टा करती है तो हर सफलता आपके सामने नत मस्तक हो जाती है |
पागल था सूरा --- ------कबीरा बेगाना था ------- तुलसी भी बोरा था ---------- मीरा थी बाबरी
संसार से जब तक आप कुछ चाहते रहोगे ,वह भी आपसे कामनाओं पर कामना करता रहेगा और कभी आपको अपने लक्ष्य में सफल नहीं होने देगा , यहाँ संसार आपसे ही मांग करता है कि आप एक अच्छे पुत्र ,पुत्री एक अच्छे पति या पत्नी या एक अच्छे पिता माता ,भाई -बहिन , और हजारों रिश्तों में आप पूर्ण हों और उसके लिए बेचारे बने रहें ,तो उसका अहम शांत रहेगा और जहा समाज को स्वयं को छोटे पन का अनुभव हुआ, वह आपका विरोधी हो जाएगा ,तुलसी कबीर ,सूर , और मीरा ये महा पुरुष इसबात स्पष्ट कर चुके है कि ,जीवन को दूसरों की इच्छा के अनुसार बनाने वाले ,केवल असफल , अशक्त और हारे हुए होते है ,जिन पर समायोजन करते करते अपना खुद का कुछ रह ही नहीं जाता और जबतक आप स्वयं को अपने संकल्प के जैसा नहीं बन पाये तबतक आप सफल , आंनदित और पूर्ण नहीं हो सकते
इसलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए पागलों की तरह परिश्रम रत रहो और यही जूनून तुम्हे तुम्हारी दृष्टी की सीमा से अधिक तुम्हे सफल सिद्ध कर देगा |
निम्न का प्रयोग करके देखिये
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एक गुरु आश्रम में कोई बड़ा उत्सव मनाया जाने वाला था ७ दिन शेष बचे थे सभी लोग कठिन परिश्रम से आगे आने वालों की व्यवस्था कर रहे थे , सारे शिष्य जोरो शोरो से अपनी गुरु सेवा का पालन कररहे थे ,ठण्ड का हिमालय वाला समय था ,गुरु जी ने आदेश दिया कि लकड़ियों का पर्याप्त प्रबंध किया जाए, सारे शिष्य जंगल में कूद पड़े बस दो तीन शिष्य रसोई और सफाई आदि के प्रबंध में लगे रहे ,उनमे से एक शिष्य गूंगा था नाम था सोऽहं ,इशारों और समय की भाषा बहुत अच्छे से समझ लेता था ,रात्रि में दो बजे उठ कर सारी सफाई धुलाई और हर वह काम जो, छोटा समझा जाता था ,वह उसे करने में माहिर था , रात्रि को सारे बर्तन मांज कर सुबह की व्यवस्था करना उसका ही काम था । जब गुरु अपने शिष्यों को पढ़ा रहे होते थे ,तब वह बड़े विनम्र भाव से काम करते करते भी उन्हें देखता और प्रणाम करता रहता था ,सब लोग उसे पागल ही समझते थे ,परन्तु गुरु जानते थे कि वह आज्ञा कारी और बहुत मेहनती है बेचारा सुनने और बोलने में असमर्थ है बस , जैसी ईश्वर की लीला ।
आश्रम के बहार अन्य शिष्यों ने ,लकड़ियों और सूखे वृक्षों का ढेर लगा दिया था , एक बड़ा पहाड़ ,रसोइया गुरूजी से कह रहा था कि मुझे तो कटी लकड़ियां चाहिए महाराज ,ऐसे कैसे काम चलेगा , महाराज गहन चिंता में थे २ दिन बचे थे कार्य क्रम में ,सारे शिष्य लकड़िया रख कर खाना खा कर सो चुके थे ,सारा काम करने के बाद सोऽहं को गुरु माँ खाना खिला रही थी और गुरु देव से परेशानी की बातें भी सुनती जा रही थी ---कैसे होगा सब ,कल आमंत्रण भेजने है ,बहुत काम है ,अथिति निवास बनाने है ,और लकड़ियों का ढेर ,ये सब मिलके भी नहीं काट पाएंगे ,इन सबको सोचकर --- पसीने की लकीरें स्पष्ठ थी गुरु देव के माथे पर |
सुबह होने को थी मुर्गा कबका बांग दे चूका था रात भर सो नहीं पाये थे गुरु , , जमीन को उठते ही प्रणाम किया तो वो गीली थी ,कोई पूर्व में ही उसे साफ करके जा चुका था , गुरु ने आश्रम के बहार कदम रखा ही था कि , जो दृश्य उन्होंने देखा वो असम्भव सा था ,गुरु माँ एक बड़े पत्थर पर बैठी है और सोऽहं सारी लकड़िया काट कर रसोई घर में पहुंचा चुका है ,गुरु माँ ने बताया कि पूरी रात में उसने एक अदृश्य शक्ति की तरह सारी लकड़िया काट दी है ,सुबह सारे आश्रम की सफाई कररहा था ,तब मैं जागी , तो वह बिना किसी भाव के आपके उठने की प्रतीक्षा में था ,गुरु विस्मित , गदगद , और निरुत्तर थे बस वो पाँव दबाते सोहम को देखते रहे |
आश्रम में सन्यासियों और गुरुओं का जमावड़ा था गुरु के बाबा गुरु भी आये थे हिमालय से ,उन्हें ही सफलशिष्यों की सफलता की घोषणा करनी थी ,बड़ी बड़ी दीक्षाएं और शिक्षाओं के साथ सरे शिष्य सजे धजे खड़े थे ,पता नही किसको कब पुरूस्कार मिलजाए , सोऽहं रसोई में काम करवा रहा था, बार बार प्रणाम करता जाता था , प्रमुख रसोइया कईबार सबके साथ उसकी हंसी उडा चुका था ,ये प्रणाम ही करता रहता है ,मगर मेहनती है बेचारा पागल है न |
अचानक महां गुरु ने नाम पुकारा ----महायोगी निवृत ---- सन्नाटा खिच गया था आश्रम में ,गुरु ने कहा महाराज यहाँ इस नाम का कोई नहीं है , अचानक सोऽहं गंदे मैले कुचैले कपड़ों में गुरुको प्रणाम करने पहुंचा --महागुरु --गुरु से बोले पुत्र यही है महायोगी निवृत ---पर इसे तो ---- हा जानता हूँ ,यही बताएगा सब ,मैंने ही इसे इस आश्रम में भेजा था | महा गुरु ने पूछा पुत्र कैसी रही आपकी यात्रा ---- निवृत ने गुरु को प्रणाम कर कहना आरम्भ किया
देव आपके आदेश के बाद मुझे मेरे गुरु मिलगये थे ,जिस दिन मैंने इन्हें गुरु मान लिया मैंने अपनी आवाज अपने गुरु को ही मान लिया था , फिर मुझ पर बोलने को कुछ था ही नहीं ,देव संसार में बहुत कुछ सुनना ही सबसे बड़ा रोग है ,गुरु पाने के पश्चात केवल गुरु की आवाज के अलावा सारी आवाजें व्यर्थ थी ,तो मैंने स्वयं को गुरु की आवाजे सुनने का माध्यम बन लिया और कुछ सुनना ही बंद करदिया ,और सेवा परिश्रम और प्रसंशा ही तो अभिमान पैदा करती है| ,इसलिए स्वयं को पागल के रूप में रख दिया ,और हर पल अपने काम के साथ भी अपने गुरु को प्रणाम करता रहा इससे मैं अपने लक्ष्य को याद करता रहता था ---जिससे कोई मुझसे न तो तुलना करें और मुझे केवल पागल समझ कर अपने काम में लगे रहने दें | जिससे मैं अपने गंतव्य तक बिना अवरोध के पहुँच पाऊं --यह कहकर सोऽहं या निवृत अपने गुरु के चरणों में गिर गया महा गुरु बोले पुत्र धन्य हो तुम, एक दिन ये ही सूत्र जीवन में सफलता के प्राथमिक कारण बनेंगे ,आओ अब आगे का मार्ग आपको बुला रहा है --- यह कहकर महा गुरु आशीर्वाद देते हुए और निवृत्त प्रणाम करता हुआ आकाश मार्ग से अदृश्य हो गए |
जीवन में सफलता का एक ही द्वार है वह है कठिन पारिश्रम नियत उद्देश्य और उसे प्राप्त करने का मार्ग , सबसे बड़ी विडम्बना यह है की सबके पास इन तीनों की कोई कमी नहीं है, मगर इसके साथ यह भी आवश्यक है कि आप अपने लक्ष्य को हर पल हर घड़ी हर स्वास के साथ याद रख पाये कि नहीं ,यदि आप ऐसा नहीं करपाए तो ,आपके पास सफलता के लिए बहुत कम भाग बच पाएगा और आपके लक्ष्य निरन्तर बदलते बदलते ,आपके सारे जीवन पर एक भारी प्रश्न चिन्ह बन जायेगे ,जीवन का स्वाभाव ही ऐसा है कि जहां भी कोई कठिनाई आई ,वह सरल रास्ता चुनकर निकल भागने का प्रयत्न करने लगता है , यह नहीं तो यह सही , मगर यदि आपका संकल्प पूर्ण और सत्य के साथ है तो देर सही मगर सफलता आपकी ही होगी इसमें संदेह नहीं है |
लक्ष्य से प्रेम उसी तरह हो ,जिसप्रकार एक प्रेयसी या प्रेमी अपने प्रेमी के लिए विहृल , आतुर और कुछ भी करने की भावना का भाव लेकर प्रतीक्षा रत होजाता है , वह हर रुकावट , कठिनाई और आग के दरिया को भी लाँघ जाने की शक्ति पैदा करलेता है , वह जीवन की किसी भी चिनौती को अपने कद से बड़ा नहीं समझता और किसी भी सूरत में प्राप्ति की कामना रखता है , उससे कौन सफलता को दूर कर सकता है ,मेरे दोस्तों यह कोई प्रेमी या प्रेयसी नहीं यही आपके लक्ष्य की कामना है ,जिस छड़ आपके सम्पूर्ण अस्तित्व की आवाज एक कशिश बनकर अपनी मंजिल को पाने की चेष्टा करती है तो हर सफलता आपके सामने नत मस्तक हो जाती है |
पागल था सूरा --- ------कबीरा बेगाना था ------- तुलसी भी बोरा था ---------- मीरा थी बाबरी
संसार से जब तक आप कुछ चाहते रहोगे ,वह भी आपसे कामनाओं पर कामना करता रहेगा और कभी आपको अपने लक्ष्य में सफल नहीं होने देगा , यहाँ संसार आपसे ही मांग करता है कि आप एक अच्छे पुत्र ,पुत्री एक अच्छे पति या पत्नी या एक अच्छे पिता माता ,भाई -बहिन , और हजारों रिश्तों में आप पूर्ण हों और उसके लिए बेचारे बने रहें ,तो उसका अहम शांत रहेगा और जहा समाज को स्वयं को छोटे पन का अनुभव हुआ, वह आपका विरोधी हो जाएगा ,तुलसी कबीर ,सूर , और मीरा ये महा पुरुष इसबात स्पष्ट कर चुके है कि ,जीवन को दूसरों की इच्छा के अनुसार बनाने वाले ,केवल असफल , अशक्त और हारे हुए होते है ,जिन पर समायोजन करते करते अपना खुद का कुछ रह ही नहीं जाता और जबतक आप स्वयं को अपने संकल्प के जैसा नहीं बन पाये तबतक आप सफल , आंनदित और पूर्ण नहीं हो सकते
इसलिए अपने संकल्प को पूरा करने के लिए पागलों की तरह परिश्रम रत रहो और यही जूनून तुम्हे तुम्हारी दृष्टी की सीमा से अधिक तुम्हे सफल सिद्ध कर देगा |
निम्न का प्रयोग करके देखिये
- सफलता का भाव स्पष्ट और सहज दृष्टि गत होता रहे ,उसके लिए बार बार चिंतन , सीमाएं और एक सहज मार्ग अवश्य बनाया जाए ,अन्यथान आप आगे जाकर स्वयं भ्रमित हो जाएंगे |
- अपने संकल्प को निरन्तर याद कीजिए , और प्रति दिन आप उसके लिए क्या करपाए या क्या नहीं कर पाये इसको अवश्य ध्यान से देखते रहेँ, जिससे आप स्वयं की गलती समझ सकें |
- सफलता का सूत्र इस बात पर निर्भर है कि उसके लिए आप क्या बलिदान दे पारहे है और इसको हमेशा याद रखे कि संकल्प की पूर्ती के लिए उन सब क्रियाओं का बलिदान करें जो इसमें बाधा हों |
- सामयिकी धर्म का सबसे बड़ा शब्द है अर्थात जिस समय का संकल्प के अनुरूप सार्थक प्रयोग हुआ है वही सच्चे अर्थों मे जीवन का मायने है ,जो समय संकल्प के अनुसार नहीं रहा ,वह व्यर्थ रहा, इस जीवन की निरर्थकता कहा गया है |
- संकल्प की व्याख्या किसीसे न की जाए ,केवल अपने अंतरात्मा में उसे पूर्ण किया जाए, अन्यथा वह सफलता से पहले ही आपका अहंकार बन जाएगा |
- संकल्प और लक्ष्य का निर्णय के बाद आप यह निश्चित अवश्य करें कि यह आपका निर्णय है और इसकी सफलता असफलता आपकी है , ऐसे में दूसरों की बातें सुनने के लिए आप बाध्य नहीं है ,इससे आपको एकाग्रता और शक्ति मिलेगी |
- स्वयं को संकल्प दोहराने की और स्वयं को सकारात्मक लक्ष्य के लिए निरन्तर धन्यवाद कहें आपको लगेगा की आपकी बहुत सी राहें आसान हो गई है |
- स्वयं को अपनी दृष्टी में सम भाव में रहने दें ,न तो दयनीय बनने की आवश्यकता है और न ही बहुत बड़ा दिखने की कोशिश करें, दयनीयता का भाव आपको अपनी नजर में गिरा देगा ,तो बड़ा दिखने का भाव अहंकार ग्रस्त कर देगा
- शांत और सहज भाव से स्वयं के संकल्प के प्रति आप अपनी क्रियान्वयनता को देखते रहे ,जहां आपको लगे कुछ और सार्थक किया जा सकता है तुरंत करें |
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