Wednesday, January 9, 2013

स्ट्रेस मनेजमेंट - योग और धर्म (Stress Management - Yoga and Religion)

  stress management 

don't think about negative 

ऋणात्मक सोच से हटकर स्वयं को एकत्रित करो स्वांसों के क्रम को बदलो और तुरंत नकारात्मकता को धराशाही कीजिये अब अपना नया अध्याय लिखिए जीत का ख़ुशी का और सबको पीछे छोड़ने का --------- 

 

जीवन  हर विकास के साथ अनेकों समस्याएँ , अभाव और कमियां पैदा करता रहता है और आदमी अपनी ही बुद्धि के हिसाब  से उसके हल ढूढता रहता है और स्वयं को शांत करता रहता है ,समय , आकांक्षाएं , और नए युग की तकनीक के परिवर्तन उससे और अधिक आपूर्तियों की मांग करते है ,वह भी पूरी ताकत से उनके पीछे भगा चला जाता है मगर बहुत कम बार वह उनके बराबर पहुँच कर स्वयं शांति का अनुभव कर पाता है | 

 

मित्रों सुख का सम्बन्ध मन और आत्मा का विषय है जबकि स्ट्रेस या  मानसिक दबाब का कारण अंतः  मन का विषय न होकर बाह्य जगत  की उपलब्धियों और दूसरों के साथ उसके प्रतियोगी स्वरुप से है , और सबसे बड़ा महत्व पूर्ण बिंदु यह है  कि आज हम जिस समाज में रहते है उस समाज के हर व्यक्ति हर सम्बन्ध से प्रतियोगिता करने लगते है परिणाम यह कि उनकी उपलब्धियां उनके ज्ञान और उनके हर उस  गुण से जिसमे हम स्वयं को छोटा समझते है उससे ईर्ष्या करने लगते है परिणाम हमारी शांति स्वयं नष्ट हो जाती है |

 

एक महत्व पूर्ण विषय यह भी है कि हमारी वैचारिकता उन विषयों से भी चिंतित रहती है जिसमें  हमारा कोई वश  होता ही नहीं है ,इंसान के जीवन के लगभग १०%भाग पर ही उसका वश चलता है शेष ९०% भाग पर उसका वश  ही नहीं होता और सबसे बड़ी विडम्बना यह कि वह उस ९०% भाग को सोच कर परेशान होता है जिस पर उसका वश  ही नहीं था,घर कैसे बनेगा ,बच्चे पढ़ क्यों नहीं रहे , पैसा  कैसे आएगा , जीवन में सुख कब मिलेगा , हमेशा दुःख मुझे ही क्यों मिलता है ,मेरा क्या होगा , मेरे साथ सब ख़राब व्यवहार क्यों करते है , उसकी जितनी उन्नति क्यों नहीं मिली , सब मेरे से बड़े क्यों है कहने का अर्थ यह कि जो हमारे सोच के विषय नहीं होने चाहिए वो हमे मानसिक दबाब  दे रहे  और जिनपर हमारा कोई अधिकार भी नहीं है | 

हम अपने ही पीछे पड़े है स्वयं को बेचारा बनाने की होड़ में स्वयं को साधन हीन , अज्ञानी और  सहानभूति का पात्र बनाये रखना चाहते है क्योकि न तो हमे स्वयं पर न ही ईश्वर पर कोई विश्वास हो पाता  है ,हम पूरे जीवन बेचारा बन कर सहानुभूति की खोज में रह कर सम्पूर्ण जीवन मानसिक दबाब के सुपुर्द करके स्वयं  के जीवन को नाकारा सिद्ध कर डालते है , जबकि यह प्रयत्न हम सकारात्मक विचार श्रंखला में या ईश्वर के विश्वास के सहारे रख देते तो शायद जीवन का हर चिंतन आपको पूर्ण शांति बनकर आपको पूर्ण कर देता | 

 

योग मार्ग में मानसिक दबाब के हल को निम्न माध्यम से समझा जा सकता है


 जीवन  स्वयं बंधा  है अपनी रचना, स्थिति और संपूर्ण ब्रह्माण्ड में उसकी उपस्थिति से। मनुष्य एक पूर्ण चेतना और गति शील इकाई है जो संपूर्ण  ब्रहमांड को उसी तरह प्रभावित करता रहता है जिसप्रकार ब्रहमांड उसे प्रभावित करता है  अर्थात वह जो पिंड वही  ब्रहमांड की लोकोक्ति अपना पूर्ण स्वरुप दिखाती है ।

आदमी ब्रह्माण्ड के दो बड़े शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र   पृथ्वी एवं आकाश  के बीच अवस्थित है और हर जड़ और चेतन अथवा जो भी  भौतिक रूप से दिख रहा है अपने अलग अलग चुम्बकीय क्षेत्रके साथ गति शील है ,यहाँ हर दृश्यमान  व्यक्ति, वस्तु, इकाई  अपनी एक अलग सत्ता और चुम्बकीय क्षेत्र के  आकर्षणके साथ  है जो बड़े चुम्बकीय ध्रुवों  के बीच गति बनाये रहता है और यही है संसार  और उसका चमत्कारिक प्रभावी स्वरुप ।लगता यह है कि  हम किसी चुम्बकीय  शतरंज की बिसात पर चल रहे वो मोहरे है जो स्वयं अपनी छोटे चुम्बकीय अस्तित्व के साथ बोर्ड से यथा स्थान चिपके हुए है


प्रथम एवं द्वतीय चित्र में प्रथम त्रिभुज अपने छाती के दौनो बिन्दुओं से ब्रह्म रन्ध्र से सम्बंधित है यह मनुष्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्रिभुज है इस त्रिभुज में  चार चक्र प्रभावित हो रहे है

सहस्रार ----------------------ऊं

आज्ञा चक्र -------------------उ

विशुद्धि  चक्र ------------------हं

अनाहत  चक्र -----------------यं

वैसे  तो जीव के शक्ति केंद्र उसके अनुरूप ही महत्व पूर्ण है परन्तु मनुष्य को ज्ञान परमार्थ और सीमा रहित विकास से बंधा  माना गया है यही त्रिकोड उसके मन  मष्तिष्क और सोच को प्रभावित करता है ।प्रथम त्रिकोड में

गृहण शक्ति क्रोध प्रेम चेतना   समर्पण दया समभाव स्वार्थ परमार्थ हिंसा

नेत्र दृष्टि  अनुभव निर्णय वचन शून्यता पराक्रम भय  स्वांस जीवन गति एवं  रिदम  के साथ चलती हुई लय है और यह त्रिकोड अपने आपमें भय क्रोध रोग और आदमी के व्यक्तित्व को सहज ही समझा देता है इस त्रिकोड को साधने के लिए उन्हीं मन्त्रों का प्रयोग  किया जा  सकता है और इससे शत प्रतिशत तमाम  व्यक्तित्व को बदल जा सकता है यहाँ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है की आप स्वयं के प्रति इमानदार हो जाएँ


द्वतीय त्रिकोड  का मूल भाग गुदा और गुप्तांग के मध्य छोटी गणेश आकृति - कुण्डलनी- से छाती के दौनो बिन्दुओं  तक माना गया है जैसा चित्र में स्पष्ट है इस त्रिकोड में

मणिपूरक चक्र --------------रं

स्वाधिष्ठान  चक्र -----------वं

मूलाधार  चक्र ---------------लं

यह इन चक्रों के आधारभूत मंत्र है इस त्रिकोड से संसार और शरीर चलता है

शोधन, आबंटन, मल, मूत्र, भोजन, वितरण , चेतन ,केन्द्रीयनियंत्रण, सत्व ,और अपविष्ट का यही केंद्र है यही त्रिकोड सन्तति और हिरण्यगर्भ  का उद्गम माना गया है इनके प्रभाव से सम्पूर्ण शरीर की आधार भूत  संरचना जुडी रहती है


तृतीय त्रिकोड  मूलाधार से बाएं एवं दाहिने पाँव के अगूंठो तक फैला माना गया है यह त्रिकोड उस शक्ति केंद्र को प्रभावित करता है जहाँ से आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी से जुडा है एक अंगूठे से प्रवेश करता चुम्बकीय चक्र बनाकर नियत गति से दूसरे अंगूठे से निकलता हुआ एक चक्र बनता रहता है और यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है आधार नियंत्रण शक्ति संचालन नियम गति लय और सम्पूर्ण शरीर के  नियंत्रण बिंदु है ।


अर्थात यह स्पष्ट है कि सम्पूर्ण शरीर में मूल अवयव स्वयं एक ऐसी गति लय और स्पंदन से जुड़े है जिसको मूळत:कोई अज्ञात एवं  चमत्कारिक शक्ति संचालित कर रही है और अनेक वैज्ञानिक केवल इस पर ताकत लगाए हुए है की वो है ही नहीं परन्तु कुछ उसके अस्तित्व को मूलत ; मानते है जो है ही नहीं तो उसका जिक्र क्यो।

सार स्वरूप यह कहा जाता है की स्ट्रेस   शक्ति और व्यक्तित्व के मूल में आपके शरीरकी कार्य  प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका अदा  करती  है और उसके लिए नियत मंत्र  साधना से और धनात्मक परिवर्तन किये जा सकते है ।

 

निम्न आधारों को अपनाइये और  मानसिक दबाब पर नियंत्रण 

  • हर समस्या से स्वयं को जोड़ने का प्रयत्न ना करे ,क्योकि दूसरों की समस्या से आपका कोई सरोकार नहीं है और आप उससे सबक लेकर वो त्रुटियाँ ना करें जो दूसरे करके कष्ट भोग रहे है | 

  • मनुष्य स्वयं ही पूर्ण मानवीय श्रष्टि है उसके पालन में सकारात्मक जीवन शैली का प्रयोग करें क्योकि मनुष्य के अंदर और बहार की शारीरिक रचना से असंख्यों श्रष्टि पलती  है | 

  • अपने सकारात्मक चिंतन को इस प्रकार व्यवहार में लाएं की आपका हर कार्य समयानुसार पूर्ण हो ही जाएंगे और समयानुसार ही आपमें वे सारी शक्तियां भी आजायेंगी जिससे आप जीवन को जीत पाएंगे | 

  • एक परम शक्ति सम्पूर्ण ब्रम्हांड का नियंत्रण कररही है और  वही सकारात्मकता और श्रेष्ठ जीवन का मार्ग प्रशस्त करने की शक्ति रखती है उसके विश्वास और अपने परिश्रम पर गर्व करना सीखिये | 

  • दूसरों के नकारात्मक चिंतन से आपके सारे ब्यक्तित्व में नकारात्मकता आरम्भ हो जाएंगी और आपका विकास का  उद्देश्य स्वयं ही अवरुद्ध हो जावेगा | 

  • आपको यह गर्व होना चाहिए कि आपके पास क्या है।, आपके पास क्या नहीं है इसके रोने से आपको कुछ भी  प्राप्त नहीं होने वाला है उससे तो स्वयं आपको ही नकारत्मकताएं मिलाने लगेंगी | 

  • मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है और उसमे अपरे शक्ति भी है , परन्तु जबतक अपने बनावटी आवरणों ,-काम क्रोध मोह लोभ मत्सर मद  इन छै आवरणों से मुक्ति नहीं हो सकेगी तब तक उसका पूर्ण शक्ति स्वरुप प्रकट नहीं हो पायेगा -धीरे धीरे स्वयं पर विचार कीजिये । 

  • शरीर की शक्तियों के साथ स्वयं की आंतरिक शक्तियों पर भी सतत ध्यान बनाये रखिये क्योकि आपको वहीँ से पूर्णता और शांति के मार्ग प्राप्त होंगे | 

  • आपका विकास और शान्ति दूसरों की पूर्णता से ही है इसलिए स्वयं की शांति और विकास के लिए आपको दूसरों के कल्याण की भी कामना करनी चाहिए | 

  • किसीने आपका कितना शोषण किया यह महत्व पूर्ण नहीं है महत्व पूर्ण यह  कि  आप उसकी शोषण की घटना से अधिक इस बात को बार बार याद करके आप नकारात्मक बने रहे यह ज्यादा बड़े त्रुटि है | 

  • समाज परिवार मित्रों और सम्बन्धियों की नकारत्मकताओं का चिंतन न करते हुए उससे जीवन के सिद्धांत बनाइये जिससे  पुनः शोषण नहीं किया जा सके | 

  • स्वयं की शक्तियों का सदैव चिंतन कीजिए यह विचार कीजिए कि आपका जन्म निश्चित उद्देश्य की पूर्ती के लिए हुआ  है और आपको एकाग्र करके उसे पूर्ण करना है |


2 comments:

Unknown said...


Sir, would like to know more about this. please elaborate more on this.

Regards, Srinivas Mumbai

drakbajpai said...

Ok beta I will try my best 4 this

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