प्रेम का विराट अर्थ है उसे अपने स्वार्थी अर्थों से जोडकर छोटा न बनाया जाए अबोध बालक का चाँद से अपनी माँ से और अपने रंग बिरंगे खिलौनों से होता नैसर्गिक प्रेम ,माँ का अपने अबोध बच्चे के कपड़ो, भोजन और हजारों चिंताओं के समूह से उलझा जीवनउसी प्रेम की एक बानगी है ।प्रकृति का ब्रह्माण्ड से और प्रत्येक जीव का अपने परिवेश से प्रेम उसी प्रेम की निशानी है ।प्रेम वात्सल्य -- समर्पण दया सौहार्द की परा काष्ठ है उसमे सबकुछ लुटाने का भाव है ,ऐसे प्रेम की परिभाषा केवल ईश्वर ही बना सकता है और यदि आप उस परमेश्वर की श्रेष्ठ कृति है तो अपने आचार विचार को उसी प्रेम की पराकाष्ठ पर ले जाइये तो शायद आपको जीवन का सार मिल सके ।याद रखिये शोषण ,लूट ,और भीख और झूठ की बैसाखियों पर हम जिस प्रेम को आधार देने का प्रयत्न करते है वह हमारेपरिवेश परिवार समाज और जीवन के हर भाग को ऋणात्मक बना डालता है
पिछले दशक में युवाओं के साथ बहुत बड़े बड़े सामाजिक परिवर्तन हुए ,और इस समय लगभग ५ लाख युवाओं ने आत्महत्याएं की जो समाज के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है|युवा तो किसी समाज संस्कृति और सभ्यता कि नींव होता है ,उसमे अपरमित शक्ति होती है ,वह तूफानों को मोड़ने कि शक्ति रखता है और उसे ऐसा ही होना चाहिए | ख़राब समय भी निकल ही जाएगा ,आगामी भविष्य यह संकल्प लिए खड़ा है क़ि आपके नए जीवन का नव आरंभ आज से ही हुआ है ,एक बार फिर सकरात्मकता का संकल्प लेकर आगे बढ़ों समय आपको अमर-सफल सिद्ध कर देगा ]
Thursday, January 17, 2013
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अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि
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