महिला सशक्तिकरण की बात आज भारत जैसे देश में बड़ी विडम्बना का विषय है जिस राष्ट्र में माँ की सम्पूर्ण शक्ति में सारे देवताओं के शक्ति सार को तिरोहित किया गया हो, वहाँ आज हम फिर उसे अबला बना कर सशक्त करना चाहते है शायद यह कितना चिंतनीय विषय है ।इस सम्पूर्ण व्यवस्था में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि हमारी कार्य पद्धति और सामाजिक ढांचे के क्रियान्वयन में कोई कमी अवश्य रही है जो सम्पूर्ण भारतीय परिवेश को प्रश्नचिन्ह बना रही है ।भारतीय समाज विदेशियों और अलग अलग संस्कृतियों का बाहुल्य रहा और वैसे ही प्रभाव संस्कृति में आते गए ।
विदेशियों और उनकी संस्कृतियों के प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर दिखाई देने लगे और उनमे निरंतर परिवर्तन दृष्टिगत होने लगा ,मुस्लिम सभ्यता और हिन्दू कट्टर वाद ने धार्मिक गतिविधियों में महिला को कम महत्वदिया वही पुत्रेक्षा की कामना समाज को कर्म और पराक्रम के स्थान पर मोक्ष से जोड़ा गया परिणाम यह हुआ की समाज में महिला शक्ति को पुरुष के सामने कमतर आँका गया ।
दोस्तों आवश्यकता है हमे अपनी सोच और समाज में अपनत्व का भाव पैदा करने की और भारत जैसे देश में एक बार फिर वाही भाव पैदा हो जाए जिसमे हम कह सकें कि
जय जय जय महिषा सुर मर्दनी रम्यकपर्दिन शैल सुते
संकट हरिणी दुरति विदारणि दशुतनु धारणी जय ललिते
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