Monday, May 24, 2010

कार्य की प्राथमिकता ही महत्वपूर्ण है |

सम्पूर्ण जीवन में आदमी यही प्रयत्न करता रहता है कि वह कैसे सर्वाधिक सुखी हो सकता है उसके दैनिक जीवनके कार्य भी यहीं से निर्धारित कियेजाते है ओर यही मानदंड उसकी सम्पूर्ण गतिविधियों को पूर्ण करते है | मनमष्तिष्क ओर उसके हर प्रयत्न यह सिद्ध करते रहते है कि इस समय यह कार्य सबसे महत्वपूर्ण है ओर इसकार्य सेउसे सर्वाधिक सुख मिलने वाला है | परन्तु ये सब तथ्य थोड़ी ही देर में अपना अर्थ बदलने लगते है | थोरी ही देरमें अन्य कोई प्राथमिकता खडी होने लगती है ओर मन फिर अशांत ओर अनयंत्रित होने लगता है |

दोस्तों बहुत बड़ी चिनौतीं थी कि आप अपने मन ओर मष्तिष्क को नियंत्रित रखकर उनसे अपने जीवन कीसच्ची ख़ुशी का मार्ग जान पाते | बहुधा हम केवल तात्कालिक ओर शरीर को सुख देने वाली कल्पनाओं को जीतेहुए वो सब करना चाहते है जों उस समय के लिए हमें सुखकर लगता है जबकि उसके परिणाम हमारी आत्माकोदीर्घ काल तक कमजोर बनाते रहते है |सबसे पहली बात यह थी की आपको अपने मूल स्वरुप की आवश्यकता काज्ञान ही नहीं था आप केवल शारीरिक ओर भौतिक आपूर्तियों में अपने मूल उद्देश्य ओर जीवन की क्रियान्वयानताको नष्ट कर उसे ही जीवन का मूल समघ बठे परिणाम केवल असफलता ओर अपराध बोध देकर यह जीवन गतिमान होता गया ओर आप पर दीर्घ काल में केवल कुछ |ऋणात्मक चिंतन भर राह गया |

जरुरत इस बात की है की आप आज ही अपने मूल स्वाभाव को जानकर द्रण निश्चय करें की आप स्वयं अपनेउद्देश्यों को निर्धारित कर उन्हें प्राप्त करने के लिए एक नए युग की रचना करने जा रहे है| आवश्यकता इस बात कीभी है की आप यह निर्धारण करते समय वर्त्तमान के दुःख कठिन परिश्रम ओर नीरसता को भविष्य के उन स्वप्नोंसे जोड़ कर देखे जों आपकी सफलता के लिए आपके संकल्प की राह देख रहा है| यह अवश्य है की आपको वर्त्तमानमें यह कार्य बोझिल ओर उबाऊ लग सकता है मागर आपका आत्मविश्वास एकदिन आपको सफलता का वह मार्गअवश्य देगा जों आपकी कल्पना से परे होगा |

दोस्तों आओ आज ही हम सारे कर्मो का प्रायश्चित करते हुए जीवन के सत्य ओर अपने विकास के लिए कृतसंकल्पित हो जिससे हमारा कल हमें जीवन की पूर्णता देसके ,आपका विशवास ही जीवन की सफलता का प्रथमसोपान होगा |

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