Tuesday, May 18, 2010

हू केयर्स ---- कहीं कुछ खो तो नहीं रहा है ?

समाज परिवार ओर अपने परिवेश में हम इतने उलझ कर राह गए है कि अपने अलावा अन्य लोगों किमनोभावनाएँ हमारे लिए बेहद नगण्य साबित हो रही है |आज कि नयी पीढी इस बात ओर जुमले को सहज हीबोलना सीख गई है ,कि उसे किसीकी परवाह नहीं है वह केवल वही करना चाहती है जों उसे अच्छा दिखता है याथोड़े समयका झूठा संतोष मगर इसके लिए उसे क्या क्या चुकाना होता है इसका सही जबाब समय से अच्छा कोईनहीं जानता |

हूँ केयर्स ----- बड़ा अच्छा शब्द है कितनी परिपक्वता ओर आत्म विशवास है इस शब्द में ओर सबकुछ अपनेआत्म बल पर करने का जज्बा , यह सब प्रशशनीय है ,मगर यह शब्द वह नयी पीडी बोल रही है जिसे स्वयं केहित अनहित का ध्यान ही नहीं है | आयु समय ,आय ओर ताकत के जोर पर अपने आपको शक्ति शाली समझने वाला यह समुदाय हूँ केयर्स में कही अपनी संस्कृति , मानदंड ओर अपना भविष्य तो दांव नहीं लगा रहा है यहचिंता का विषय है |

भारतीय दर्शन ,संस्कृति ,ओर उसके एतिहासिक मानदंड ,यह स्पष्ट करते है कि विवेकानंद , रामतीर्थ , गांधी , ओरदेश की स्वतंत्रता पर मिटने वाले लाखों शहीद क्या इस पीडी के इस विचार से कितने खुश ओर गर्व का अनुभव करपायेंगे यह भी एक प्रशन चिन्ह ही है | भारतीय दर्शन ने कई जगह लिखा है कि

  • है काम आदमी का औरों के काम आना
  • पर हित सरिस धरम नहीं
  • आहार निद्रा मैथुन सभी जीवो में विद्धमान है -- आदमी परोपकार से इसे श्रेष्ठ साबित करता है
  • माँ का बलिदान पिता का त्याग ओर आपकी परिवरिश आपको पितृ ओर माँ के ऋण में बांधती है
यह महत्व पूर्ण नहीं कि आपने जीवन में क्या कमाया महत्वपूर्ण यह है कि आप कितने लोगों के काम आ सके
यह सब बिंदु बार बार आपसे अपने जीवन के ओचित्य .पर प्रश्न करते रहेंगे , ओर आप अपनी आत्मा के विरुद्धउसे सही साबित भी कर देंगें शायद वह संतोष जिसे आप ढूढ़ रहे थे कई गुना दूर होगा क्योकी आपके जीवन में जोंमानदंड इस हूँ केयर्स से पैदा हुए थे उन्होंने आपको बिलकुल अकेला कर दिया है |

दोस्तों जीवन एक ऐसा खाली कुआं है जहा जैसी सोच आप उसमे डालेंगे वहकई गुना होकर आपको ही वापिसमिलेगी | जब आप हूँ केयर्स के सिद्धांत पर चल रहे होते हो तो पूरा ब्रहमांड आपकी चिंता छोड़ देता है ओर आपस्वयं नितांत अकेले रह जाते हो , माता पिता ओर आपका परिवेश आपको धीरे धीरे अपने मन से अलग करदेता है ओर आप अपनी सोच के कारण ही एक दिन जीवन कि बड़ी समस्याओं का शिकार हो बैठते है फिर चालू होजाता है अपराध बोध का न रुकने वाला सिलसिला|

दोस्तों आप अपने हूँ केयर्स के इस विरोध भास् से उबरे ओर एक बार अपने परिवेश कि चिंता करें शायद आपकोअपना खोया हुआ संतोष बिंदु प्राप्त हो जाएगा |


निम्न का ख्याल रखें 
  • सबसे सम व्यवहार करें जहाँ तक संभव हो अपने आप पर नियंत्रण रखें 
  • क्रोध इंसान का स्वाभाविक गुण है ,यदि आप उससे न बच पाये तो जितना जल्दी हो उतना जल्गी गलती स्वीकार करें 
  • गलती मानने का आशय यह है  कि आप में अपने व्यक्तित्व की गरिमा है उसे बढ़ाने का प्रयत्न करें , और अनर्गल वार्ता लाप से बचें 
  •  आप जितना प्यार लोगों को बांटेंगे उससे कई गुना आपको प्राप्त होगा , आप सबके साथ मधुर व्यवहार बनाये रखने का प्रयत्न करें | 
  • जहां तक हो दूसरों की आलोचना नहीं करें नहीं तो आप में भी वे ही नकारत्मकताएं और तेजी से ऐडा होने लगेंगी , उनसे बचाव करें | 
  •  क्षमा वीरों का आभूषण माना गया है क्योकि निर्बल , कमजोर तो स्वयं दूसरों की कृपा पर जीता है  अतः  उदार भाव से दूसरों को क्षमा करना सीखें | 
  • अपने और समाज के सम्बंद में दयालु प्रकृति बनाये रखें , क्योकि जिस उदारता से आप प्रकृति को दयालु भाव देंगे प्रकृति उतनी ही तेही से आपका सही पोषण करने लगेगी | 
  • अपना आकलन करें कि कही आपके भावों में ईर्ष्या ,द्वेष और वैमनस्य तो पैदा नहीं हो रहा यदि ऐसा है तो उसका निराकरण स्वयं के दोषों को सुधारने से की जिए | 
  • प्रकृति के परमार्थ भाव को देखिये की वह दूसरों को पत्थर  की चोट खाकर भी मीठे फल देने की क्षमता रखती है आप भी दूसरों   के लिए परमार्थ का भाव रखिये |

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