हर इंसान की एक निश्चित पहिचान समाज द्वारा सहज ही निर्मित करदी जाती है ,युग ओर समय के प्रभाव भीउसपर कम प्रभावी हो हो पाते है| पिता पितामह एवंम अन्य परिवार के लोगो के प्रभाव भी इस पहिचान कोप्रभावित करते रहते है | कहने का तात्पर्य यह कि हमारा व्यवहार एक ऐसा आइना है जिससे हमे अपनी पहिचानहासिल करनी होती है |
मित्रों अब प्रश्न यह है कि हम जिस समाज में खड़े है वहां हर आदमी अपने स्वार्थों के अनुरूप हमसे व्यवहार कररहा है |यहाँ कोंन आपका अपना है यह सबसे यक्ष प्रश्न है | हमे प्रतिपल किसी न किसी नए व्यक्ति या परिस्थितिका सामना करना पड़ रहा है ,यहाँ हर पल यह सिद्ध करना होता है कि हम श्रेष्ठ है |ओर जीवन जीने कि यही कलाभी है |हर व्यक्ति आपके संपर्क से पूर्व आप उसके किस कार्य के लिए उपयुक्त है तय करलेता है ओर आपको इससमाज से भी पूर्ण सहजता दया ओर परमार्थ के भाव से मिलाना होता है ,यही आपकी सबसे बड़ी परीक्षा है |
आप जब भी किसी से मिलें तो निम्न पक्षों का ध्यान अवश्य रखें
- किसीसे मिलतेसमयस्वयं को किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित न होने दे
- समाजके उन लोगों को कभी माफ़ न करें जों आपके जीवन में समय , ओर आपके शोषण का कारक रहे है
- प्रथम बार मिलते समय आप शिकायतें , सहानुभूति ओर झूठ के बल पर अपनी प्रतिष्ठा न बनायें सहज प्रेमओर अपनत्व के बाद आप अपनी शिकायत कर सकते है
- अधिक ओर असंतुलित न बोलें , प्रथमत: आप उन्हें सुनें फिर उनके विषय से ही बात किया उत्तर दें |
- भावावेश ओर क्रोध में आपकाचितन स्वयं नष्ट हो जाता है ओर आप अनिर्णय कि स्थिति तक पहुच जाते हैकृपया इन स्थितियों में मौन रहें फिर विचार कर ही बात करें
- जीवन के निर्णय लेते समय प्रेम क्रोध , समय , उसके प्रभाव सभी विषयों का ध्यान रखें |
- हमें हर समय कुछ नया सीखने का भाव बनाए रखना चाहिए महा पुरषों ओर अच्छे लोगों के साथ रहें उनकाअनुशरण करें
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