Thursday, May 27, 2010

कितनी स्वतंत्रता चाहिए युवा को

आज युवा समाज दो भागों में विभक्त है एक तो वो जों समाज के साथ अपनी रूढ़िवादी सोच , पुराने संस्कार ओर जीवन के मूल उद्देश्य के लिए संघर्ष रत है दूसरी ओर वो जों तथा कथित आधुनिक है ओर वे अपनी आधुनिक सोच के कारण अपनी संस्कृति , मूल्य सिद्धांत सब भूल कर केवल अपनी आपूर्तियों का मायने बन बैठे है इनकी संख्या भी पर्याप्त है
युवा बहुत शक्ति संपन्न ओर अतुल बल शाली है परन्तु आज की परिस्थितियों में उसे स्वतंत्रता की नयी परिभाषाएं चाहिए उसे खुद भी नहीं मालूम वह क्या स्वतंत्रता चाहता है क्या क्या करना चाहता है उसमे सब्र नही है समय के लिए ,वह जों उसे ठीक दिखता है उसे तुरंत कर बैठता है बाद में उसके परिणाम कुछ भी हो उसे चिंता ही नहीं होती कभी युग शिक्षा ,परिवर्तन ,ओर अत्याधिक आधुनिक बनने के लिए उसे बहुत प्रेक्टिकल दिखाना होता है ओर वह सब करके देखना चाहता है ,जों पाश्चात्य देशों में अपनी ऋणात्मकता सिद्ध कर चुका है ,शान्ति ओर संयम के सारे रास्ते बंद करके हम क्या चाहते है यह खुदअपने आप में प्रश्न चिन्ह है
यह पीढी नयी पद्धतियाँ नए विचार नयी संस्कृति के हर पुरातन रिश्ते की नई कार्य परिभाषा बनाना चाहती है, सारांश यह है की जों भी उसके शारीरिक ओर सामाजिक सम्बन्धों ओर उसके अहम् के लिए जरूरी हुआ वह वो कर बैठा ,यहाँ उसे न तो संबंधों की चिंता है न अपने भविष्य की ओर न अपने दीर्घ कालिक दीर्घ सुख की उसे केवल अपने तमाम जरूरतें दिखती है ओर उनकेलिए वो कुछ भी करने को तैयार हो जाता है झूठी कहानियां संबंधों ओर हर पवित्रता के आवरण में ये अपने मकसद ओर अपनी हवस को लिए ही क्रिया शील रहता है ,इनके लिए दुःख सुख सम्बन्ध भावनाएं ओर पवित्रता का मायने होता है केवल प्रेक्टिकल होना कैसे भी काम निकालना ओर आगे बढ़ जाना
  • दोस्तों जीवन के इस पहलू पर जरा रुक कर विचार करने की आवश्यकता है आप जों भी कर रहे है आपको उसका सौ गुना प्रतिफल मिलाना तय है आपने अच्छा किया है या बुरा यह महत्वपूर्ण नहीं है यह तो आपके जींस से आपकी आने वाली पीढ़ी को ऐसे के ऐसे ही लौटा देंगेआपका निर्माण उस वक्त आपको कितना संतोष दे पाएगा यह तो समय के हाथों में है ,परन्तु आज आपको इन बातो पर विचार कर लेना चाहिए जिससे भविष्य अपराध बोध बन कर आपको परेशां न कर सके
  • भावनात्मक पहलू जीवन को परम गति प्रदान कर सकते है मगर आप सांसारिक आपूर्तियों के लिए इसका प्रयोग यदि स्वार्थो के लिए कर रहे है तो आपको ध्यान रखना चाहिए की आप जिनका उपयोग इन के सहारे कर रहे है वे भी आपका उपयोग ही कर रहे है
  • अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए आप आदर्शों ओर मूल्यों को सहारा न बनाये इससे आपका आत्म बल ओर पूर्णता नष्ट हो जायेगी उन्हें क्रिया रूप में पैदा करें
  • संबंधों का उपयोग अपने निहित स्वार्थों के लिए नहीं करें नहीं तो एक दिन आप अकेले रह जायेंगे ओर हर अलग पक्ष कल आपको हीन भावना से देखने लगेगा आपमें स्वयं एक असुरक्षा की भावना घर कर जायेगी जिसमे आपका अपराध बोध ओर बड़ा हो जाएगा
  • यह मत समझो की आपके कार्य को कोई देख नहीं रहा है यहाँ हर काम इतना पारदर्शी है की समय के साथ आपमें ही अनगिनत विकार पैदा होजाएंगे जिनके उत्तर आप पर नहीं होंगे
  • झूठ ,फरेब अन्याय ,ओर स्वार्थो से आपकी आत्मा , आपका सम्मान, आत्मा इतनी आहात हो जायेंगी की आप स्वयं उन सबको उत्तर नहीं दे पायेंगे
  • समय उम्र ओर जीवन के अगले मोड़ पर आपको आपको विश्वास करने वाला कोई नहीं मिलेगा , आप जिन्हें तिरस्कृत कर रहे हो ये ही आपका तिरस्कार कर सकते है
  • आप समय का प्रयोग उस के उद्देश्य ओर मांग के हिसाब से न कर सकने के कारण हार के कगार पर खड़े है ओर आपको यह यातना झेलने को तैयार रहना चाहिए

आवश्यकता इस बात की है कि आपको सब्र ओर शान्ति से इस बात कि खोज करनी है कि आपको जीवन में अपने स्वप्नों की पूर्ति के लिए कब क्या करना अधिक महत्वपूर्ण लग रहा है ,आप अपने सिद्धांत मूल्य ओर सत्य कि कोई मिसाल बनाये या नहीं मगर ध्यान रखे आप अपने परमार्थ से सब जीत सकते है ओर जीवन जीना इसी सहजता कि परिभाषा भी है

Tuesday, May 25, 2010

विश्वास के दायरे आवश्यक है संबंधों के लिए

हम जिस युग में जी रहे है वहां केवल जीवन कि तीव्र गति विद्यमान है |आदमी का सम्पूर्ण चिंतन इस बात से जुडारहता है कि कैसे भी वह स्वयं की आपूर्तियों सम्मान स्तर ओर आत्म स्वाभिमान को बनाए रखे ,इसके लिए वहतरह तरह के उपाय करता रहता है उसे सदैव यहं चिंता बनी रहती है की उसका समाज उसका परिवेश उसेअत्याधिकं प्रेम ओर सम्मान देता रहे मगर दूसरी ओर दूसरा पक्ष भी स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने की होड़ में लगारहता है ,परिणाम यह की प्रेम श्रद्धा ओर जीवन के धनात्मक भाव भी ऋणात्मक से दिखाई देने लगते है ओरजीवन अपने विकास , सत्य ओर पूर्ण भाव से विमुख होने लगता है |वह एक मात्र प्रतियोगिता बन कर रह जाता है ,जहा जीते कोई भी मगर सम्बन्ध हार ही जाता है |

मित्रों विश्वास ,प्रेम ,आदर्श , मूल्य , धर्म के भाग है ओर इन सबसे मिलकर व्यक्तित्व बनता है , हर इंसान जों भीकुछ सोचता करता है उसके पीछे एक भाव अवश्य होता है वह भाव कितना पवित्र ओर अपवित्र है यह उस इंसानकी आत्मा जानती है , क्योकि आत्म अवलोकन का सत्य आदमी को यह बताता रहता है की वह कितना परिष्कृतहै ओर उसका आत्म बल किस स्तर तक पहुँच पाया है ,
इन्ही कहानियों के बीच उसका जीवन चक्र चलता रहता है |जीवन पूर्णता कि माग करता रहता है ओर हम अपनी सोच ,परिवेश ओर व्यक्तित्व के अनुरूप व्यवहार करते रहते है ,बिना अपनी आत्मा कि आवाज सुनते हुए |

आप जीवन में संतोष का वह स्तर प्राप्त करना चाहते है जों पूर्ण ओर श्रेष्ठता कि पराकाष्ठा पर हो मगर जब भी जीवन को पूर्ण करने का प्रश्न आता है आपका सारा संतोष इस बात में सिमट जाता है कि आपके समाज आसपास के लोग आपको वह भाव दे रहे है कि नहीं जों आप चाहते है बस आप अपने दृष्टीकोण से चिंतन करके उसमे डूबते चले जाते है मन हजारो आरोप प्रत्यारोप लगते हुए अपने को सही सिद्ध करने ;लगता है ओर हमारा सारा अस्तित्व केवल अपवित्र असत्य ओर भ्रम को सत्य मान बैठता है ओर एक दिन यही हमारा अस्तित्व बन जाता है |

विश्वास , सौम्यता ओर मूल्यों का सत्य किसी घटना समय ओर क्रोध का आकलन नहीं है उसके लिए निम्न स्थितियाँ महत्व पूर्ण हो सकती है |

  • जीवन कि सहजता को बनाये रखें , अपने मन मष्तिष्क ओर विचारों को ऋणात्मक होने दें
  • आप सहज ही अपने संबंधों पर प्रश्न चिन्ह लगाये , उससे आपका विश्वास , शक्ति ओर जीवन का उदारदृष्टिकोण स्वयं प्रभावित होकर आपकी सोच को ऋणात्मक बना देगा |
  • सकारात्मक ओर नकारात्मक विचारों की प्रभाव शीलता को बनाए रखें क्योकि आपकी नकारात्मक सोचदूसरे व्यक्ति के लिए नहीं अपुतु वह आपके जीवन के लिए ही घातक होगी |
  • आप समझदार , विद्वान , ओर प्रबुद्ध होसकते है मगर आप दूसरों के दृष्टी कोण को अपने जीवन की णात्मकता ओर अनुभवों के हिसाब से कैसे आंकलित कर सकते है ,आपको एक कार्य , समय ,स्थितिजन्य कार्य से अपने निर्णय नहीं लेने चाहिए |
  • जीवन संबंधों में विश्वास ,प्रेम ओर सार्थकता बहुत समय की अनुभव शीलता से मिलती है , आप क्रोधजिद ओर अपनी ऋणात्मक सोच से उसे व्यर्थ गवांये , क्योकि इससे आपका आत्मबल भी प्रभावितहोता है | ,
  • अपने क्रोध , आवेश ओर परिस्थिति गत घटना को आप दूसरों में देखें अपनी सोच से ऊपर उसे अलगसकारात्मक दृष्टी कोण से देखने की चेष्टा करें |
  • सहज में अपनी जीत के लिए किसी का मन दुखाये , |
इसके अतिरिक्त एनी बहुत से तथ्य महत्व पूर्ण हो सकते है समय ओर धैर्य से आपको अपने आकलन करनाचाहिए , किसीको भी आप ऐसा बोलें जों आपको अपने लिए पसंद नहीं है |

मित्रों जीवन जीना एक ऐसी कला है जिसे जीने के लिए हर पल कुछ कुछ सीखना होता है , संबंधो को धर्मनुरूपबनाये रहने की कला ही जीवन का सार है नहीं तो आपका अपनी आत्मा के प्रति अविश्वास आपके भविष्य कोकेवल अशांत अस्थिर ओर अपूर्ण बना देगा अतैव जीवन मूल्यों ओर संबंधों को विश्वास से जीतने का प्रयत्न करें |







विस्वास

Monday, May 24, 2010

कार्य की प्राथमिकता ही महत्वपूर्ण है |

सम्पूर्ण जीवन में आदमी यही प्रयत्न करता रहता है कि वह कैसे सर्वाधिक सुखी हो सकता है उसके दैनिक जीवनके कार्य भी यहीं से निर्धारित कियेजाते है ओर यही मानदंड उसकी सम्पूर्ण गतिविधियों को पूर्ण करते है | मनमष्तिष्क ओर उसके हर प्रयत्न यह सिद्ध करते रहते है कि इस समय यह कार्य सबसे महत्वपूर्ण है ओर इसकार्य सेउसे सर्वाधिक सुख मिलने वाला है | परन्तु ये सब तथ्य थोड़ी ही देर में अपना अर्थ बदलने लगते है | थोरी ही देरमें अन्य कोई प्राथमिकता खडी होने लगती है ओर मन फिर अशांत ओर अनयंत्रित होने लगता है |

दोस्तों बहुत बड़ी चिनौतीं थी कि आप अपने मन ओर मष्तिष्क को नियंत्रित रखकर उनसे अपने जीवन कीसच्ची ख़ुशी का मार्ग जान पाते | बहुधा हम केवल तात्कालिक ओर शरीर को सुख देने वाली कल्पनाओं को जीतेहुए वो सब करना चाहते है जों उस समय के लिए हमें सुखकर लगता है जबकि उसके परिणाम हमारी आत्माकोदीर्घ काल तक कमजोर बनाते रहते है |सबसे पहली बात यह थी की आपको अपने मूल स्वरुप की आवश्यकता काज्ञान ही नहीं था आप केवल शारीरिक ओर भौतिक आपूर्तियों में अपने मूल उद्देश्य ओर जीवन की क्रियान्वयानताको नष्ट कर उसे ही जीवन का मूल समघ बठे परिणाम केवल असफलता ओर अपराध बोध देकर यह जीवन गतिमान होता गया ओर आप पर दीर्घ काल में केवल कुछ |ऋणात्मक चिंतन भर राह गया |

जरुरत इस बात की है की आप आज ही अपने मूल स्वाभाव को जानकर द्रण निश्चय करें की आप स्वयं अपनेउद्देश्यों को निर्धारित कर उन्हें प्राप्त करने के लिए एक नए युग की रचना करने जा रहे है| आवश्यकता इस बात कीभी है की आप यह निर्धारण करते समय वर्त्तमान के दुःख कठिन परिश्रम ओर नीरसता को भविष्य के उन स्वप्नोंसे जोड़ कर देखे जों आपकी सफलता के लिए आपके संकल्प की राह देख रहा है| यह अवश्य है की आपको वर्त्तमानमें यह कार्य बोझिल ओर उबाऊ लग सकता है मागर आपका आत्मविश्वास एकदिन आपको सफलता का वह मार्गअवश्य देगा जों आपकी कल्पना से परे होगा |

दोस्तों आओ आज ही हम सारे कर्मो का प्रायश्चित करते हुए जीवन के सत्य ओर अपने विकास के लिए कृतसंकल्पित हो जिससे हमारा कल हमें जीवन की पूर्णता देसके ,आपका विशवास ही जीवन की सफलता का प्रथमसोपान होगा |

Thursday, May 20, 2010

सब से सहजता से मिलिए

सामान्यत: हम समाज में जों व्यवहार दूसरों के साथ करते है वह ही दीर्घ काल में हमारी पहिचान सिद्ध करता है |
हर इंसान की एक निश्चित पहिचान समाज द्वारा सहज ही निर्मित करदी जाती है ,युग ओर समय के प्रभाव भीउसपर कम प्रभावी हो हो पाते है| पिता पितामह एवंम अन्य परिवार के लोगो के प्रभाव भी इस पहिचान कोप्रभावित करते रहते है | कहने का तात्पर्य यह कि हमारा व्यवहार एक ऐसा आइना है जिससे हमे अपनी पहिचानहासिल करनी होती है |

मित्रों अब प्रश्न यह है कि हम जिस समाज में खड़े है वहां हर आदमी अपने स्वार्थों के अनुरूप हमसे व्यवहार कररहा है |यहाँ कोंन आपका अपना है यह सबसे यक्ष प्रश्न है | हमे प्रतिपल किसी किसी नए व्यक्ति या परिस्थितिका सामना करना पड़ रहा है ,यहाँ हर पल यह सिद्ध करना होता है कि हम श्रेष्ठ है |ओर जीवन जीने कि यही कलाभी है |हर व्यक्ति आपके संपर्क से पूर्व आप उसके किस कार्य के लिए उपयुक्त है तय करलेता है ओर आपको इससमाज से भी पूर्ण सहजता दया ओर परमार्थ के भाव से मिलाना होता है ,यही आपकी सबसे बड़ी परीक्षा है |

आप जब भी किसी से मिलें तो निम्न पक्षों का ध्यान अवश्य रखें

  • किसीसे मिलतेसमयस्वयं को किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होने दे
  • समाजके उन लोगों को कभी माफ़ करें जों आपके जीवन में समय , ओर आपके शोषण का कारक रहे है
  • प्रथम बार मिलते समय आप शिकायतें , सहानुभूति ओर झूठ के बल पर अपनी प्रतिष्ठा बनायें सहज प्रेमओर अपनत्व के बाद आप अपनी शिकायत कर सकते है
  • अधिक ओर असंतुलित बोलें , प्रथमत: आप उन्हें सुनें फिर उनके विषय से ही बात किया उत्तर दें |
  • भावावेश ओर क्रोध में आपकाचितन स्वयं नष्ट हो जाता है ओर आप अनिर्णय कि स्थिति तक पहुच जाते हैकृपया इन स्थितियों में मौन रहें फिर विचार कर ही बात करें
  • जीवन के निर्णय लेते समय प्रेम क्रोध , समय , उसके प्रभाव सभी विषयों का ध्यान रखें |
  • हमें हर समय कुछ नया सीखने का भाव बनाए रखना चाहिए महा पुरषों ओर अच्छे लोगों के साथ रहें उनकाअनुशरण करें
इसके अतिरिक्त बहुत से कर्क होसकते है जों आपको अपने सिद्धांतों में समाहित करना चाहिए ,आप जिन लोगों सेमिल रहे है उनके अनुरूप व्यवहार करते हुए अपने व्यवहार पर ध्यान दें | किन्हीं अपवाद स्वरुप आप अपनीकार्य शैली को परवर्तित कर सकते है

Tuesday, May 18, 2010

हू केयर्स ---- कहीं कुछ खो तो नहीं रहा है ?

समाज परिवार ओर अपने परिवेश में हम इतने उलझ कर राह गए है कि अपने अलावा अन्य लोगों किमनोभावनाएँ हमारे लिए बेहद नगण्य साबित हो रही है |आज कि नयी पीढी इस बात ओर जुमले को सहज हीबोलना सीख गई है ,कि उसे किसीकी परवाह नहीं है वह केवल वही करना चाहती है जों उसे अच्छा दिखता है याथोड़े समयका झूठा संतोष मगर इसके लिए उसे क्या क्या चुकाना होता है इसका सही जबाब समय से अच्छा कोईनहीं जानता |

हूँ केयर्स ----- बड़ा अच्छा शब्द है कितनी परिपक्वता ओर आत्म विशवास है इस शब्द में ओर सबकुछ अपनेआत्म बल पर करने का जज्बा , यह सब प्रशशनीय है ,मगर यह शब्द वह नयी पीडी बोल रही है जिसे स्वयं केहित अनहित का ध्यान ही नहीं है | आयु समय ,आय ओर ताकत के जोर पर अपने आपको शक्ति शाली समझने वाला यह समुदाय हूँ केयर्स में कही अपनी संस्कृति , मानदंड ओर अपना भविष्य तो दांव नहीं लगा रहा है यहचिंता का विषय है |

भारतीय दर्शन ,संस्कृति ,ओर उसके एतिहासिक मानदंड ,यह स्पष्ट करते है कि विवेकानंद , रामतीर्थ , गांधी , ओरदेश की स्वतंत्रता पर मिटने वाले लाखों शहीद क्या इस पीडी के इस विचार से कितने खुश ओर गर्व का अनुभव करपायेंगे यह भी एक प्रशन चिन्ह ही है | भारतीय दर्शन ने कई जगह लिखा है कि

  • है काम आदमी का औरों के काम आना
  • पर हित सरिस धरम नहीं
  • आहार निद्रा मैथुन सभी जीवो में विद्धमान है -- आदमी परोपकार से इसे श्रेष्ठ साबित करता है
  • माँ का बलिदान पिता का त्याग ओर आपकी परिवरिश आपको पितृ ओर माँ के ऋण में बांधती है
यह महत्व पूर्ण नहीं कि आपने जीवन में क्या कमाया महत्वपूर्ण यह है कि आप कितने लोगों के काम आ सके
यह सब बिंदु बार बार आपसे अपने जीवन के ओचित्य .पर प्रश्न करते रहेंगे , ओर आप अपनी आत्मा के विरुद्धउसे सही साबित भी कर देंगें शायद वह संतोष जिसे आप ढूढ़ रहे थे कई गुना दूर होगा क्योकी आपके जीवन में जोंमानदंड इस हूँ केयर्स से पैदा हुए थे उन्होंने आपको बिलकुल अकेला कर दिया है |

दोस्तों जीवन एक ऐसा खाली कुआं है जहा जैसी सोच आप उसमे डालेंगे वहकई गुना होकर आपको ही वापिसमिलेगी | जब आप हूँ केयर्स के सिद्धांत पर चल रहे होते हो तो पूरा ब्रहमांड आपकी चिंता छोड़ देता है ओर आपस्वयं नितांत अकेले रह जाते हो , माता पिता ओर आपका परिवेश आपको धीरे धीरे अपने मन से अलग करदेता है ओर आप अपनी सोच के कारण ही एक दिन जीवन कि बड़ी समस्याओं का शिकार हो बैठते है फिर चालू होजाता है अपराध बोध का न रुकने वाला सिलसिला|

दोस्तों आप अपने हूँ केयर्स के इस विरोध भास् से उबरे ओर एक बार अपने परिवेश कि चिंता करें शायद आपकोअपना खोया हुआ संतोष बिंदु प्राप्त हो जाएगा |


निम्न का ख्याल रखें 
  • सबसे सम व्यवहार करें जहाँ तक संभव हो अपने आप पर नियंत्रण रखें 
  • क्रोध इंसान का स्वाभाविक गुण है ,यदि आप उससे न बच पाये तो जितना जल्दी हो उतना जल्गी गलती स्वीकार करें 
  • गलती मानने का आशय यह है  कि आप में अपने व्यक्तित्व की गरिमा है उसे बढ़ाने का प्रयत्न करें , और अनर्गल वार्ता लाप से बचें 
  •  आप जितना प्यार लोगों को बांटेंगे उससे कई गुना आपको प्राप्त होगा , आप सबके साथ मधुर व्यवहार बनाये रखने का प्रयत्न करें | 
  • जहां तक हो दूसरों की आलोचना नहीं करें नहीं तो आप में भी वे ही नकारत्मकताएं और तेजी से ऐडा होने लगेंगी , उनसे बचाव करें | 
  •  क्षमा वीरों का आभूषण माना गया है क्योकि निर्बल , कमजोर तो स्वयं दूसरों की कृपा पर जीता है  अतः  उदार भाव से दूसरों को क्षमा करना सीखें | 
  • अपने और समाज के सम्बंद में दयालु प्रकृति बनाये रखें , क्योकि जिस उदारता से आप प्रकृति को दयालु भाव देंगे प्रकृति उतनी ही तेही से आपका सही पोषण करने लगेगी | 
  • अपना आकलन करें कि कही आपके भावों में ईर्ष्या ,द्वेष और वैमनस्य तो पैदा नहीं हो रहा यदि ऐसा है तो उसका निराकरण स्वयं के दोषों को सुधारने से की जिए | 
  • प्रकृति के परमार्थ भाव को देखिये की वह दूसरों को पत्थर  की चोट खाकर भी मीठे फल देने की क्षमता रखती है आप भी दूसरों   के लिए परमार्थ का भाव रखिये |

Saturday, May 15, 2010

अनंत शक्ति का स्त्रोत है आप

आदमी अपनी समस्याएं खोखलापन ओर जटिलताएं लिए संघर्ष रत है ,उसे एक समस्या से छुटकारा मिलतेही दूसरी समस्या घेर लेती है ओर हर रोज का दायित्व निभाते उसका पूरा जीवन निकलजाता है जबकिभारतीय दर्शन धर्म ओर संसार का हर सम्प्रदाय उसमे अपरमित शक्ति होने कि बात स्वीकार करता रहाब्रह्माण्ड की अनंत शक्ति आदमी में निहित थी ,वह शक्ति , क्रियान्वयानता ओर तीव्र गति का स्त्रोत भी था मगर वे क्या कारण रहे जिनसे वह अपनी सम्पूर्ण शक्तियों से अनभिज्ञ केवल सहानभूति का कारक बना रहा ,शायद यहाँकुछ क्रियान्वयन की त्रुटि द्रष्टिगत होती है |

सबसे दुर्लभ मनुज शरीरा

शरीर माध्यम खलु धर्म, साधन

ब्रहमांड का सर्वशक्तिमान स्वरुप इंसान ही है
उपरोक्त धर्म दर्शन या विचार यह स्पष्ट करते है कि मनुष्य इस ब्रहमांड का सबसे शक्तिशाली तत्त्व है जों उसकेअनुसार ही अति गतिमान ओर कार्य क्षम है |विज्ञान भी आज यह मानाने लगा है कि मनुष्य कि रचना एक ऊर्जापिंड है वह नियत गति ओर असीमित शक्ति के साथ संचालित है ,वह एक नियत आवृति में गति मान है ,उसकेप्रभाव एवं क्रियान्वयन अकथनीय है |
एक मत यह भी मनाता है कि यदि एक बड़े मिक्रोस्कोप से आदमी का शरीर देखा जाए तो वहां केवल कुछ प्रकाशएवं न्यूट्रोन एलोक्ट्रों प्रोटोन नियत गति से गतिमान दिखाई देंगे मित्रो ब्रहमांड ,भी इन्ही सब से निर्मित एकऐसा महापिंड है फिर आपभी वैसे ही शक्ति शाली हुए जैसा कि ब्रहमांड है इसी लिए धर्म साहित्य ओर विज्ञान आदमी को सर्वशाक्तियो मान मनाता रहा है |

यहाँ प्रश्न यह उठता है कि वह अपनी शक्ति से अनभिज्ञ अपनी गति शक्ति ओर क्रियान्वयानता से कही कुछ खोबैठा है वह फ्रीक्वेंसी सिद्धांत के अणुओं को ठीक से संचालित नहीं कर पा रहा है यदि वह अपनी इन शक्तियों को चरण बद्ध ओर नियत गति ओर क्रम बद्ध बनाए रखे तो शायद उससे अधिक शक्तिशाली कोई नहीं हो ओर वह शक्तिआपमें निहित है |

मित्रों आपको बस इतना करना है कि आप अपनी इस शक्ति का चिंतन आरम्भ करें ओर धीरे धीरे अपने मूलस्वरूपको पहिचाने , समस्याओं के कारणों के साथ आप पैदा ही नहीं हुए हो जों समस्या जहासे पैदा हुई है उसकाहल भी तय है केवल आपको धनात्मक सोच बनाये रखना है एक दिन समय आपको सर्वशक्तिमान सिद्ध करदेगा
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Friday, May 14, 2010

कार्य से पूर्व थोडा विचार करें

भागती दौड़ती जिन्दगी में हर काम बहुत ज्यादा जरूरी लग रहा है ,हर आदमी जल्दी में है , मगर मन मष्तिष्कओर जीवन का संतोष इस प्रक्रिया में थोडा विश्राम ओर चिंतन चाहता है,मगर हमारा हीरो आम आदमी ,जिसपरसब विषय वस्तुओं के लिए समय है मगर अपनी ही क्रियान्वयानता के लिए उसपर कोई समय नहीं है |
मित्रों जीवन एक ऐसा विषय है जों आदमी को हर काम के लिए बेहद स्वतंत्रता का भाव प्रदान करता है मगरउसमे एक यह विशेषता है कि वहां क्षमा मैत्री ओर पुनर्विचार का समय ओर मौका नहीं है | उसके नियम आमआदमी के नियमों से अधिक कठिन ओर पक्षपात रहित है , वह केवल आकलन करता है ओर तुरंत दंड और पुरूस्कार की घोषणा भी कर देता है ,वही समय है ,कर्म है ब्रहमांड है,इश्वर है या यूं कहिये, कि वही सबसे बड़ीनियति भी है |

दोस्तों जब जीवन का कोई निर्णायक आपके हर कार्य का इतना सूक्षम ओर सटीक अध्ययन कर रहा हो ओरउसपर आपको परिणाम देने का भी दायित्व हो तो क्या यह आवश्यक नहीं कि आप अपने हर कार्य से पूर्व थोडा रुक कर चिंतन करे|


मित्रो जीवन एक ऐसा संघर्ष है जिसमे आपको अपनी हर क्रियान्वयानाता पर पूर्ण ओर श्रेष्ठ सिद्ध होना है मगरआप अपने जीवन के इन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर भी बेहद लापरवाह होते है तो समयकी तमाम धाराएँ आपकारास्ता रोक कर आप पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है आवश्यकता इस बात कि है कि आप हर काम से पूर्व अपने समयउद्देश्य ओर यह सोच कर कर्म रत हो कि आपके हर कार्य से उत्त्पन्न विषयों का प्रतिक्रियात्माक जबाब आपको हीदेना होगा |

इसलिए प्रत्येक कार्य से पूर्व यह भाव रखे कि मै एक कर्ता मात्र हूँ ओर अपने नियंता से बंधा कार्य रत हूँ तोशायद आप कार्य कर्म जीवन सबसे न्याय कर सकते है |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...