Saturday, October 24, 2009

अच्छे को बुरा साबित करना ----सकारात्मक सोच रखें

तेजी से भागता युग है यह ,यहाँ हर आदमी बहुत जल्दी में है उसके अपने स्वार्थ है ,अपने काम है ,और अपनी एकस्थिर और अपरवर्तनीय सोच है ,उसे हमेशा यह भ्रम रहता है की वह शायद सबसे श्रेष्ठ है ,और उसका हर निर्णयसर्व श्रेष्ठ है |इस सोच के लिए वह बार बार समाज परिवार और हर शख्श को कमतर सिद्ध करने की होड़ में लगारहता है ,उसे केवल यह भय रहता है की वह अपने सीमित ज्ञान और सोच के साथ सबको अपने से नीचा साबितकरता रहे ,शायद यही से उसका अहम् शांत होता है |दूसरों की लेने को छोटा करके अपने को बड़ा बताने की कलाइस युग ने आरम्भ से ही देखी है मगर वर्तमान में यह चलन इस तरह बढ़ा कि समाज में कुछ करने आदर्शों किस्थापना और पथ प्रदर्शन के सारे आदर्श हतोत्साहितहोने लगे|सब किसकी हार अथवा जीत था यह सोच से परे हैक्या कल हम इन सबकी ही आशा करेंगे कि हमारी आगामी पीढी ये सब समझ और सोच कर इनका अनुशरणकरें ?शायद ऐसा हम कभी नहीं चाहेंगे |

मित्रों यह निश्चित है कि हम सब अपने स्वार्थों कि अंधी दौड़ में पागलपन की पराकाष्ठा पर है ,कैसे भी कामनिकालना , समय निकालना ,हमारी आदत बन चुकी है ,हमे दूसरे की मनोभावनाओं को समझने का समय औरभाव ही नहीं है, हम केवल यह सिद्ध करना जानते है कि हम पूरे संसार में केवल हम एक महत्वपूर्ण जीवन जी रहेहै ,दूसरे सब व्यक्ति हम से सोच ,ज्ञान ,और हर सकारात्मक पहलू में बहुत छोटे साबित हो रहे है|मित्रों इन दिनोंभ्रष्टाचार करके सबसे ज्यादा धनवान कौन बना ,अपने ऐश्वर्य ,बल ,असामाजिकता ,और हर प्राभाव से शोषणकरके कौन अधिक सत्ता संपन्न संसाधन संपन्न और प्रभावशाली साबित हुआ यह स्तर का पर्याय बन गया हैऔर हम चाहते चाहते उनके प्रसंशक बने खड़े है |

हम अपने मित्रों ,अपने सम्बन्धियों अपने समाजके हर उस व्यक्ति से जलन रखने लगे है जो हमारी नजर में हमसेश्रेष्ठ दिखाई दे रहा है ,दूसरे के विचारों ,व्यक्तित्व ,कला ,उसका व्यक्तित्व ,उसकी भौतिक अवं अभौतिक उपलब्धियांसब हमें बौना साबित करदेती है और हम अपने में सुधार करने के स्थान पर उसके ही आलोचक बन बैठते है शायदहम यह सोच बना बैठे है कि हममे वे गुण पैदा हो ही नहीं सकते और तुलना में श्रेष्ठ साबित होने के लिए हमे दूसरोंको छोटा साबित करना अति आवश्यक लगता है और इसी प्रकार हम आलोचना , ऋणात्मकता के मध्य जीवनंव्यतीत करदेते है जबकि जीवन का मूल मंत्र था ---
सोहम अर्थात सब में हम भी रहते है लेकिन भौतिक वादी सोच ने हर आदमी को एक गलतियों ,आडम्बरों औरनकारात्मकता का केन्द्र बना डाला है |हम अपने मै में सोऽहं की अनुभूति खो रहे है ,हम हर व्यक्ति के आलोचकहोकर प्रकृति के मूल सिद्धांत अनंत प्रेम को घृणा ,जलन ,और तुलना का विषय बना चुके है और उनकी प्रतिध्वनिप्रतिक्रिया का परिणाम है कि हम अन्दर ही अन्दर खोखले और आधारहीन होते जा रहे है |

  • हर व्यक्ति को अनंत प्रेम बांटे बदले में प्रेम ही मिलेगा |
  • प्रेम व्यवसाय नहीं है जो तौल मोल की सीमाओं में रहे |
  • दूसरों की प्रसंशा आपका यश बढ़ाने में सहायक है |
  • अपनी गलतियों और कमियों पर नजर रखिये सबका फल निश्चित ही आपको उठाना है |
  • दूसरों की आलोचना से पहले उन्हें पूरी तरह से जानने के बाद अपनी राय देना सही हो सकता है मगर सहज हीसबकी आलोचना करने से आपमें उद्विग्नता ,निराशा ,और अशांति अपने आप पैदा हो जायेगी |
  • दूसरों को बुरा और ग़लत साबित करने की अपेक्षा आप अपनी कमियों को हटा कर स्वयं को परिष्कृत करें |
  • अच्छे ,आदर्शों ,और सहज प्रेम करने वालों की आलोचना करने से आपकी मानसिक शान्ति एवं संतान को आदर्शसिखाने की मानसिकता स्वयं छिन्न भिन्न होजायेगी |
  • धोखा ,छल , फरेब , से स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए दूसरों का उपहास ,तिरस्कार ,और ग़लत साबित करने कीक्रिया से आप शारीरिक रूप से रुग्ण और कमजोर साबित होंगे ,क्रोध , निराशा , वैमनस्यता के भाव आपको दिल , दिमाग और चर्म रोग दे सकते है |

वेद की ऋचाओं के भावार्थ और सार काभाव भी यही है की आप सहज प्रेम के अनंतमें संसार के हर प्राणी कोसम्मान दें ,उसकी सहज आलोचना से बचें ,शायद आपकी उन्नति का द्वार यहीं से खुलेगा |

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