Thursday, October 1, 2009

प्रश्नों के चक्र व्यूह में जीवन के प्रश्न

सबसे पहले क्षमा उन जानी अनजानी त्रुटियों के लिए जों आपके आकलन के प्रश्न पर ग़लत साबित होती रहीं |
क्षमा इस लिए भी की मै बहुत दिन बाद उपस्थित हुआ |
जीवन पूरी तरह सेप्रश्नों के चक्र व्यूह में फंसा रहता है ,हर आदमी को हर बार अपने आप को साबित करना होता है ,बहुत से लोगों में, समाज में और अपने नए संबंधों में ,यहाँ नए संबंधों पर समय ही कहाँ होता है आपको परखने का वह तो केवल अपनी जीवन धारणाओं के हिसाब से आपका मूल्यांकन कर रहा होता है ,उसे लगता है की यह भौतिक स्वरुप में सहायक नहीं है तो वह स्वयं अपनी धारणाओं के हिसाब से सामने वाले में अनगिनत ऋणात्मकताओं का अम्बार लगा कर स्वयं को संतुष्ट कर लेता है ,शायद यह सब जीवन के धनात्मक मूल्यों और भविष्य के आदर्शों के लिए उचित ना हो |

मित्रों हर इंसान का एक प्रभाव क्षेत्र होता है और उसपर इसका प्रभाव अवश्य पड़ता है वह अपने परिवेश और समस्याओं से लड़ता हुआ केवल उन्ही के अनुरूप हर नए संबंधों को पुरानी धारणाओं के हिसाब से समझाना चाहता है जबकि पूरे जीवन में उसे हजारो सम्बन्ध अवश्य मिलते है ,परन्तु कई जन्मों प्रतीक्षा के बाद हो सकता है कि उसे वह व्यक्ति भी मिल जाए जो उसके जीवन को नई दिशा दे सके |यहाँ इस सम्बन्ध में भौतिक आपूर्तियाँ शायद नगण्य हो मगर आत्मा की गहराई अवश्य होती है ,इन संबंधों में केवल देने का भाव होता है ,वह तो केवल समर्पण कि पाराकाष्ठा पर अपनी उपलब्धियों के स्थान पर सामने वालों के सुख कि परिकल्पना में जीता है |मित्रों इन संबंधों कि खोज और उनको सहेज के रखने कि आवश्यकता है |यहाँ अपनी पूर्व धारणाओं के हिसाब से इन संबंधों को प्रश्न चिह्न ना बनाएं |माता पिता, पति पत्नी ,पुत्र पुत्री , और आपके अन्य सम्बन्ध किन्ही क्रियाओं और दायित्व के बाद अपना अर्थ एक फर्ज अदायगी और हवस का आशय बनजाते है और सम्बन्ध स्वयं एक अधिकार दायित्व रस्म अदायगी बनकर जीवन से जुड़ जाते है जिनसे धीरे धीरे रस खत्म होने लगता है और नीरस जीवन स्वयं को ढोने लगता है |जबकि आत्मा का निस्वार्थ सम्बन्ध बिना किसी क्रिया और भौतिक उपलब्धि के समर्पण का पर्याय बना रहता है |

मित्रो बहुत बड़ी भीड़ में आपको कुछ एक लोग ही अपने लगते है ,कुछ अपने गुणों के कारण ,कुछ ज्ञान के कारण और कुछ सुन्दरता के कारण मगर कुछ लोग आपके बहुत करीबी अपनों से जान पड़ते है उनका आंकलन बाह्य प्रदर्शन से नहीं अपितु आत्मा कि गहराई से होता है ,यहाँ प्रश्न ही नहीं उठता कि आप बाह्य आवरण या उपलब्धियों के बारे में सोच पाए ये सम्बन्ध तो क्रिया ,पाने खोने ,और सब विषयों से कहीं अलग होते है ,यहाँ केवल एक परा शक्ति कार्य कर रही होती है जो यह बताती रहती है कि यह सम्बन्ध शायद सांसारिक संबंधों से कहीं अलग है यह तो जीवन का वह सत्य है जिसकी खोज में आदमी जाने कितने जन्मों तक भटकता है |फिर यह संबध भी बार बार सांसारिक धारणाओं में प्रश्न चिह्न बनजाता है शायद यह और सामान्य संबंधों के आंकलन करता आदमी भ्रमित होकर ऐसे सम्बन्ध भी गँवा बैठता है शायद यह बड़ा दुर्भाग्य भी है आदमी का |

स्वयं मै जानता हूँ कि समय ने आज मुझे जो धरातल दिया है उसमे दुःख सुख की वो पराकाष्ठाएं थी जिनका लोग कई जन्मों में अनुभव नहीं कर सकते ,मगर मुझे आज इससे भी जो उपलब्ध हुआ है वह अतुलनीय है ,आज मुझे कुछ भी अनुपलब्ध नहीं है ,कोई कामना नहीं है ,कोई भाव नहीं है ,और किसी से शिकायत भी नहीं है |बस केवल यह भाव है कि हर व्यक्ति को मै कुछ दे सकूँ उसके दुःख का कारक बन पाऊ,ईश्वर का सहज प्रेम हर इंसान को व्यावहारिक स्वरुप में समझा पाऊ,अब मै अपने अन्तिम लक्ष्य में कितना सफल हो पाता हूँ यह भविष्य के गर्त मे है |

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