Saturday, October 31, 2009

दर्द का एहसास राही क्या बला-----------------

दर्द का एहसास राही क्या बला ---------

जीवन तो दर्द यातनाओं और समस्याओं का नाम है ,दुनिया में सबका अतीत बहुत से दर्दों समस्याओं का मायने होसकता है ,सबको अपना दर्द सबसे बड़ा दिखाई देता है ,मगर समय यह जानता है कि हर आदमी ने अपने एहसास दर्द ,और यातनाओं से कैसे लड़ा और जीता है |
सबनेकिस तरह संघर्ष करके यह जीत हासिल की है ,यहाँ सबने ही तो कमोवेश वही सहा है जो आप कहानी बना कर सुना रहे है |आपको यह जानना जरूरी है कि आप और मै दौनों उसी परिवेश से निकले है और समय ,समाज ,अपनों का तिरस्कृत व्यवहार दौनों ही बराबर झेला है |

मित्रों एक शायर ने लिखा कि -------- दुनिया में कितने गम है ,मेरा गम कम है
या
मौत मर रही तू कहाँ हिज्रेयार में
मै जी रहा हूँ अब तो तेरे इन्तजार में

यही
सत्य और ताकत है जीवन जीने कि एक बेशकीमती कला |जिसमे अतीत के जख्मों की बजाय वर्त्तमान कोनए सिरे से जीने का संकल्प छिपा है |इन सबके लिए आपको सारे भय ख़त्म करने होंगे |आपको यह जान लेना चाहिए कि दर्द और यातनाओं के बाद खुशी और सुख के पल कम ही होंगे और फिर नयी यातनाओं के साथ हमे दोदो हाथ करना होगा |

जीवन जीना एक बहुत बड़ी कला है ,सुख ,प्रसन्नता और समर्पण के मोक्ष क्षण चाहे दो पल का ही जीवन क्यों दें मगर उनका एहसास बहुत बड़ा और हर दुःख के समय याद करने का विषय हो जाता है |यही जीवन को बड़ा सहारा देता है|अब चयन आपका है कि आपको बहुत संभल कर अपने सुखों की कल्पना करनी होगी|उतावलेपन और केवलसमय का फायदा उठाने की कला आपके दीर्घ काल की अशांति दे सकता है | आप केवल भौतिक उपलब्धियों और शारीरिक आपूर्तियों को यदि उपलब्धियां समझते है तो आपको बहुत से विषयों की नकारात्मकता झेलनी होगी |मित्रों मै जानता हूँ कि आदमी की तुलना ही नहीं की जा सकती क्योकि जिसे आप बहुत अधिक चाहते है उसकीबड़ी गलतियाँ छोड़ देते है जबकि औरों को आप गलतियाँ गिनाने लगते है|आपका आंकलन अलग अलग होसकता है यदि वह सही हुआ तो ठीक है नहीं तो अपराध बोध का स्वरुप और अधिक भयावह होगा |यहाँ सब भाव पर निर्भर है शेष आपकी जरूरतों पर |अंतरात्मा की भावनात्मकता आपको यदि पवित्र लगे तो हर सम्बन्ध आपको सकारात्मकता दे सकता है |यहाँ व्यवहार की कोई सीमा होती ही नही है|

दर्द को पूर्ण रूप से सकारात्मक ऊर्जा में बदलने की कोशिश करें यहीं दर्द आपको बहुत अधिक परिष्कृत करके जीवन की सारी उपलब्धिया दे देगा |जीवन के हर पल को जीने की कोशिश करें ,समर्पण, भाव और समय आपको अच्छे और बुरे का भेद अवश्य समझा देगा |

Saturday, October 24, 2009

अच्छे को बुरा साबित करना ----सकारात्मक सोच रखें

तेजी से भागता युग है यह ,यहाँ हर आदमी बहुत जल्दी में है उसके अपने स्वार्थ है ,अपने काम है ,और अपनी एकस्थिर और अपरवर्तनीय सोच है ,उसे हमेशा यह भ्रम रहता है की वह शायद सबसे श्रेष्ठ है ,और उसका हर निर्णयसर्व श्रेष्ठ है |इस सोच के लिए वह बार बार समाज परिवार और हर शख्श को कमतर सिद्ध करने की होड़ में लगारहता है ,उसे केवल यह भय रहता है की वह अपने सीमित ज्ञान और सोच के साथ सबको अपने से नीचा साबितकरता रहे ,शायद यही से उसका अहम् शांत होता है |दूसरों की लेने को छोटा करके अपने को बड़ा बताने की कलाइस युग ने आरम्भ से ही देखी है मगर वर्तमान में यह चलन इस तरह बढ़ा कि समाज में कुछ करने आदर्शों किस्थापना और पथ प्रदर्शन के सारे आदर्श हतोत्साहितहोने लगे|सब किसकी हार अथवा जीत था यह सोच से परे हैक्या कल हम इन सबकी ही आशा करेंगे कि हमारी आगामी पीढी ये सब समझ और सोच कर इनका अनुशरणकरें ?शायद ऐसा हम कभी नहीं चाहेंगे |

मित्रों यह निश्चित है कि हम सब अपने स्वार्थों कि अंधी दौड़ में पागलपन की पराकाष्ठा पर है ,कैसे भी कामनिकालना , समय निकालना ,हमारी आदत बन चुकी है ,हमे दूसरे की मनोभावनाओं को समझने का समय औरभाव ही नहीं है, हम केवल यह सिद्ध करना जानते है कि हम पूरे संसार में केवल हम एक महत्वपूर्ण जीवन जी रहेहै ,दूसरे सब व्यक्ति हम से सोच ,ज्ञान ,और हर सकारात्मक पहलू में बहुत छोटे साबित हो रहे है|मित्रों इन दिनोंभ्रष्टाचार करके सबसे ज्यादा धनवान कौन बना ,अपने ऐश्वर्य ,बल ,असामाजिकता ,और हर प्राभाव से शोषणकरके कौन अधिक सत्ता संपन्न संसाधन संपन्न और प्रभावशाली साबित हुआ यह स्तर का पर्याय बन गया हैऔर हम चाहते चाहते उनके प्रसंशक बने खड़े है |

हम अपने मित्रों ,अपने सम्बन्धियों अपने समाजके हर उस व्यक्ति से जलन रखने लगे है जो हमारी नजर में हमसेश्रेष्ठ दिखाई दे रहा है ,दूसरे के विचारों ,व्यक्तित्व ,कला ,उसका व्यक्तित्व ,उसकी भौतिक अवं अभौतिक उपलब्धियांसब हमें बौना साबित करदेती है और हम अपने में सुधार करने के स्थान पर उसके ही आलोचक बन बैठते है शायदहम यह सोच बना बैठे है कि हममे वे गुण पैदा हो ही नहीं सकते और तुलना में श्रेष्ठ साबित होने के लिए हमे दूसरोंको छोटा साबित करना अति आवश्यक लगता है और इसी प्रकार हम आलोचना , ऋणात्मकता के मध्य जीवनंव्यतीत करदेते है जबकि जीवन का मूल मंत्र था ---
सोहम अर्थात सब में हम भी रहते है लेकिन भौतिक वादी सोच ने हर आदमी को एक गलतियों ,आडम्बरों औरनकारात्मकता का केन्द्र बना डाला है |हम अपने मै में सोऽहं की अनुभूति खो रहे है ,हम हर व्यक्ति के आलोचकहोकर प्रकृति के मूल सिद्धांत अनंत प्रेम को घृणा ,जलन ,और तुलना का विषय बना चुके है और उनकी प्रतिध्वनिप्रतिक्रिया का परिणाम है कि हम अन्दर ही अन्दर खोखले और आधारहीन होते जा रहे है |

  • हर व्यक्ति को अनंत प्रेम बांटे बदले में प्रेम ही मिलेगा |
  • प्रेम व्यवसाय नहीं है जो तौल मोल की सीमाओं में रहे |
  • दूसरों की प्रसंशा आपका यश बढ़ाने में सहायक है |
  • अपनी गलतियों और कमियों पर नजर रखिये सबका फल निश्चित ही आपको उठाना है |
  • दूसरों की आलोचना से पहले उन्हें पूरी तरह से जानने के बाद अपनी राय देना सही हो सकता है मगर सहज हीसबकी आलोचना करने से आपमें उद्विग्नता ,निराशा ,और अशांति अपने आप पैदा हो जायेगी |
  • दूसरों को बुरा और ग़लत साबित करने की अपेक्षा आप अपनी कमियों को हटा कर स्वयं को परिष्कृत करें |
  • अच्छे ,आदर्शों ,और सहज प्रेम करने वालों की आलोचना करने से आपकी मानसिक शान्ति एवं संतान को आदर्शसिखाने की मानसिकता स्वयं छिन्न भिन्न होजायेगी |
  • धोखा ,छल , फरेब , से स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए दूसरों का उपहास ,तिरस्कार ,और ग़लत साबित करने कीक्रिया से आप शारीरिक रूप से रुग्ण और कमजोर साबित होंगे ,क्रोध , निराशा , वैमनस्यता के भाव आपको दिल , दिमाग और चर्म रोग दे सकते है |

वेद की ऋचाओं के भावार्थ और सार काभाव भी यही है की आप सहज प्रेम के अनंतमें संसार के हर प्राणी कोसम्मान दें ,उसकी सहज आलोचना से बचें ,शायद आपकी उन्नति का द्वार यहीं से खुलेगा |

Tuesday, October 20, 2009

परवाह उनकी कीजिये जो वास्तव में आपकी परवाह करते है|

आम आदमी की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि वह अपने अनुसार किसी भी परचित , सम्बन्धी का आकलन कर ही नहीं पाता ,उसे अपने नजदीकी लोगों की राय कि आवश्यकता होती है ,फिर वह मन ही मन तय करता है कि अमुक आदमी ऐसा ही है ,पागल है, या वो तो एक दम बेकार है |इसके अतिरिक्त कभी कभी हमारे आकलन जल्दबाजी में अधूरे और ग़लत साबित होने लगते है ,जिन्हें हम सही आदर्श और समाज के प्रतिष्ठित स्वरुप में रखते है वेही सामान्य और उथले साबित होने लगते है और हम केवल अपने आसपास के चाटुकारों से घिरे दूसरेव्यक्तियों का नकारात्मक चित्र देखने लगते है ,उनको जाने बगैर अपनी राय बनने लगते है ,परिणाम हम यह समझ ही नहीं पाते कि आपका असल में अपना कौन है ?,और कौन आपको अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए प्रयोगित कर रहा है ?यहाँ यह महत्व पूर्ण है कि हम उनकी परवाह कर रहे होते है जो केवल भौतिक आपूर्तियों और एकबनावटी कलेवर में बंधे हमारा शोषण कर रहे होते है तथा हमारी नकारात्मक सोच और से नकारात्मक सम्बन्ध आदर्शों को भी छोटा आधार हीन और तुच्छ साबित कर देते है |

हम बार बार उनकी परवाह करते है जो हमे अंतरात्मा से प्यार करके केवल भौतिक सुविधाओं ,एवं भविष्यके भय की वजह से हमारे साथ होते है जिन्हें साथ रखना हम अपनी मजबूरी समझ बैठते है और सदैव अंतरात्मा की गहराई से हमे उपेक्षित करते रहते है, और आप बार बार उनकी ही परवाह करके अपने को समय केसाथ रखने का प्रयत्न करते रहते है|
दूसरी और आपकी बेहिसाब परवाह करने वालों पर दिखावे का समय ही कहाँ है, जो आपको प्रदर्शन कर पाए वे तो अंतरात्मा से आपके शुभ चिंतन की कमाना करते है तथा आपको दूरसे ही सही मगर बेहद खुश देखना चाहते हैआपके बनावटी सम्बन्ध और आपकी नकारात्मक विचार धारा उस समय केवल इनका ही उपहास उड़ा पाती है,कैसा किंतु विचित्र सत्य है ये जिन्हें
, बगैर स्वार्थों के आपकी परवाह अंतरात्मा की गहराई से है उन्हें आप जाने अनजाने उपेक्षित करते रहते है और जो सम्पूर्णतह आपको भविष्य में तकलीफ का कारण बन जाती है |

दोस्तों जीवन में इंसान की पहचान एवं सामयिक निर्णयों से आपका संतोष का उच्चतम बिन्दु हमेशा प्रभावितहोता रहता है आप जिन्हें अपने ज्ञान ,समस्या ,सुख और आपूर्तियों का कारक मान बैठे है यहीं से आप जीवन केप्रति नकारात्मक सोच उत्पन्न कर लेते है क्योकि आप सहारों के लिए ठिकाना ढूढ़ रहे होते है जबकि हर समस्या समय ,और परिस्थिति समयानुसार नए सहारे स्वयं उत्त्पन्न करदेती है |
,
  • मित्रों दुनिया में हर इंसान को यदि निस्वार्थ भाव से असीमित प्रेम कर सकें तो निश्चित ही समय आपको अलगसिद्धः कर देगा|
  • आप उनकी परवाह करें जो आपकी परवाह करते है|
  • आप स्वयं लंबे समय तक एक व्यक्ति का आंकलन करे ,किसी भी व्यक्ति को नकारात्मक सोच से ,रायसे,छोटा बनने की कोशिश करें इससे आपको ही तकलीफ होगी |
  • निस्वार्थ और सहज सम्बन्ध जीवन की सबसे बड़ी दुर्लभता है इनको संजों कर रखा जाना चाहिए |
  • हमारी उपेक्षा से किसी की अंतरात्मा को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए |अन्यथा हमारे आदर्श ही हमारे दुःख का कारण बन जायेंगे |यह प्रकृति का सबसे बड़ा अपराध भी है |
आप अनंत शांती और सुख तथा भविष्य के प्रति यदि सजग है तो ध्यान रखिये कि आप उनकी परवाह करे जो आपकी परवाह करते है इन्हें छोटा साबित करने से आपका कद भी घट जाता है |साथ ही उन्हें सोच से अलग रखें जो आपके ज्यादा नजदीक होने और शोषण के लिए आपके लिए उपलब्ध है |अपनी अंतरात्मा से यह निर्णय कीजिये कि जीवन के वास्तविक अर्थों में आपका अपना है कौन ?क्या आपकी वास्तविक परवाह करने वालों को उपेक्षित करके आप जीवन की वास्तविक शान्ति पा सकते है ?मित्रों यह उत्तर आपको स्वयम मिल जाएगा |

Sunday, October 18, 2009

क्या शुभ कामनाएं करें और मांगें

जीवन में हर उत्सव एक नयी आशा संचार के साथ आते है और हम भारतीय सभ्यता के हिसाब से उन्हें पूरी तरहसे निभाते भी है | सनातन की इस परम्परा से असंख्यों मत ,विश्वास ,और आदर्श खड़े हुए है और वे अपने अपनेअनुसार आदर्शों की स्थापना में महत्वपूर्ण भी साबित हुए है |ऐसे हर मत और आदर्श को नमन करना चाहिए |

दीपोत्सव की पवित्र बेला पर मै अपने सभी जानने मानने वालों को हार्दिक शुभ कामनाएं देता हूँ


ईश्वर मेरे राष्ट्र को सम्मान ,शक्ति और मैत्री का मायने बनाये |
हमें ज्ञान प्रकाश और नव मार्ग प्रदान करे
जीवनकी हर समस्याओं से पहले वह धैर्य ,कर्तव्य और कठिन श्रम का संकल्प दे |
हर व्यक्ति हर सम्बन्ध को मै बिना किसी प्रत्याशा के प्रसन्न रख सकूँ |
अपने परिवार राष्ट्र और अपनों की सहायता के लिए मै बलिदान के चरम पर पहुच सकूँ |
भौतिक और शारिरीक आपूर्तियों के लिए भी हमें सत्य आदर्शों से हटना पड़े
मित्रता विश्वास और सत्य हमारी पहचान बना रहे |
जीवन को किसी भी आपूर्ति के लिए अपने आदर्शों से समझौता नहीं करना पड़े |
हम किसी के भी लिए दुःख क्लेश के कारण बन पाये |
हम समाज मित्रों और अनजाने में सहायता चाहने पर मानवीयता की सीमा तक आदर्श प्रस्तुत करें

धन्य वाद

Friday, October 2, 2009

कृपया परामर्श दें,(किसी भी भाषा में )

मित्रों मै अपनी और से अपने लेखों में न्याय करने की कोशिश अवश्य कर रहा हूँ मगर आपके सहयोग से शायद और अधिक परिष्कृत हो सकूँ ,मैंने जो जिया है उन्ही अनुभवों को बाँट रहा हूँ ,हो सकता हूँ अपूर्ण होऊ मगर कोशिश करूँगा कि आपके साथ समाज को कुछ दे सकूँ |

मैंने आप से पहले भी विनती कि थी कि आप यदि चाहे तो परामर्श किसी भी भाषा में दे ,यदि आपको ठीक लगे तो आपभी मुझे ज्वाइन करके मेरे इस
युग संघर्ष का हिस्सा अवश्य बनें |मुझे प्रसन्नता होगी |

धन्यवाद

अकेले पन की शक्ति को पहचाने घबराएं नहीं

यह प्रश्न सदैव रहा है कि हम अकेले है ,समाज से हमे अकेले संघर्ष करना है ,जीवन के हर मोड़ पर हम अकेले है ,येसब प्रश्न जीवन को किसी किसी बिन्दु पर परेशान अवश्य करते है ,आप चाहे स्त्री हो या पुरूष ,आप अपने आप मेंयह अवश्य सोचने पर मजबूर होते है कि किन्ही स्थितियों में आप नितांत अकेले है ,आप उस अकेले पन केअहसास से भविष्य वर्त्तमान और अतीत को जोड़ कर हतोत्साहित ,नैराश्य ,और नकारात्मक ऊर्जा के शिकार होतेरहते है इन सबका प्रभाव जीवन की हर कार्य क्षमता ,जीने के सलीके ,और परिवार के हर कर्तव्य तथा आपकीपर्सनाल्टी पर भी पर्याप्त स्वरुप में पड़ते है ,जिनका आंकलन आप सहज नहीं कर पाते मगर धीरे धीरे जब इनकेप्रभाव सम्पूर्णता से पड़ने लगते है तो जीवन केवल अपराध बोध बन जाता है और आपकी यह छोटी सी बात याचिंतन की त्रुटी आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व नकारात्मक रूप में बदल डालती है |

मै अकेली औरत या आदमी समाज और समय का मुकाबला कैसे करूंगा ?मेरे साथ मेरा अपना है कौन ?मुझे सहीअर्थों में कौन प्यार करता है ?जीवन के संघर्षों में मेरा साथ कौन देगा ?क्या मुझे जीवन में विकास ,नए मार्ग ,औरकार्य कारी स्थितियों के के लिए कोई सहयोग देगा की नहीं ?ये और अन्य ऐसे ही प्रश्न आदमी को सम्पूर्ण जीवन मेंपरेशान करते रहते है और आदमी अपने स्वाभाव के विपरीत सामंजस्य करने की कोशिश करने लगता है उसे यहलगता है कि शायद इसके विपरीत उसे जीवन की सम्पूर्णता प्राप्त नहीं हो पायेगी |मित्रों बस यहीं इंसान की सबसेबड़ी भूल है की वह अपना स्वयं का स्वभाव बदलने को तैयार होरहा है जबकि उसे अपने नैसर्गिक गुणों का पूरीताकत से संवर्धन करना चाहिए था |

प्यारे दोस्तों मैंनेअकेले पन कि शक्तियों का अनुभव किया है कि मै हजारों की भीड़ में भी अकेला रह्जाता हूँ ,विगतकुछ समय बहुत भीड़ में रहा और सामान्यत: में रहता भी हूँ मगर और वहां भी नितांत अकेला ,कई बार भीड़ में रहकर भी कुछ लोगों को मै स्वयंके अनुरूप नहीं पता ,कुछ लोग मुझे रूढिवादी कहकर अलग होजाते है और मैअपने विचारों और शक्तियों में सब देखता समझता रहता हूँ | लंबे अन्तराल के बाद कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जोआपके मान दंडों के अनुरूप हो इसके लिए व्यक्ति की पर्सनाल्टी से अधिकं उसके विचार आत्मा का आकर्षणअधिक महत्वपूर्ण होता है ,यहाँ सोंदर्य ,भौतिक आपूर्तियाँ महत्व नहीं रखती ही सामान्य सोच में लाभ हानि काज्ञान ही रहता है आपको अपनी ही आत्मा की सोच से विचार कर संतुष्ट होना होता है |यहाँ उम्र १० वर्ष हो या ९० वर्षकोई प्रभाव नहीं होता हाँ यह अवश्य है कि आपको इसके लिए कई जीवन इन्तजार करना पड़े |

मैंने अपने अनुभव से जो पाया है उसमें निम्न निष्कर्ष प्रमुख रहे है शायद आपको भी इससे शक्ति मिले या जीवनकि सोच को नई सोच मिल पाये |
  • समाज एवं अपने साथियों कि सोच के साथ सम व्यवहार रखें मगर अपनी वास्तविक गुणों को परिवर्तन होने दें |
  • अपने नैसर्गीक गुणों से नकारात्मक तथ्य हटा कर सकारात्मक गुणों को परिवर्तित होने दें चाहे वोसमाज को अच्छा लगे या बुरा |
  • समाज के लिए सामंजस्य एक सीमा तक ही ढूढे ,क्योकि इससे आपकी मूल प्रवृति ,गुण और आदर्श सबख़त्म हो जायेंगे |
  • हर व्यक्ति को सकारात्मक माने और एक नियत दूरी बनाये रखें |सहज प्रेम भाव रखें |

  • संघर्ष स्वयं आपके लिए सहायक व्यक्ति उपलब्ध करा देता है ,आप ध्यान रखें कि परिस्थिति के अनुरूपआपको एक परा शक्ति सहयोग प्रदान करने वाले भेज देती है फिर आप अनादार्शों से समझौता क्यों करनाचाहते है |
  • मन , आत्मा ,और अपनी शक्तियों को जाग्रत कर उन्हें इतना प्रबल कर दें जहाँ केवल आपकी शक्ति से हीलोग प्रेरणा ले सकें |
  • आपमें अद्वतीय शक्ति और सहस है इसका स्मरण रोज कई बार करें और आप सारी समस्याओं का हलनिकालने में सक्षम है विचार करते रहें |
  • भविष्य के लिए आप|आशान्वित आपको भविष्य में क्या समस्याएँ आसकती है इसके लिए वर्तमान कीशान्ति नष्ट करें ,आज को पूरी तरह से जीना सीखें |
  • समय परिस्थितियों में कोई आपको बुरा कहता है ,आलोचना करता है ,या आपके व्यक्तित्व को चिनौती देताहै वहां आपको अपनी सफाई देने कि आवश्यकता नहीं है इससे उनमे ही नकारात्मक उर्जा पैदा होकर उनकीशान्ति नष्ट कर देगी |मित्रों बढाई बुराई सब त्याग का विषय है ,इनका प्रभाव नकारात्मक ही होता है |एककड़वा तो दूसरा मीठा ज़हर है |
  • आपके स्वाभाव और आदर्शों के अनुरूप ही आपका समाज अपने आप खडा हो जाएगा आपको अपनेनैसर्गिक गुणों को बदलने कि आवश्यकता नहीं है |
  • मित्रों आपको ईश्वर कि अनमोल कृति के रूप में अपने गुण धर्म मिलें है आप अकेले पन कि नकारात्मकसोच से अपने को कमजोर बनते हुए संघर्ष के लिए तैयार रहें जीवन आपको शान्ति सुख ,और सम्पूर्णबना देगा |
सबसे पूर्ण भाव से मिले आपको केवल अपने मूल्यों और आदर्शों का ध्यान होना चाहिए होसकता है की आपको जोअजनबी पसंद कर रहा है कल आपका आलोचक हो जाए ,यह भी सोच का विषय नहीं है आप अपने आदर्शों कापालन करे बिना किसी बदलाव के ,एक दिन समय आपके आलोचकों को प्रसंशंक बना देगा |

Thursday, October 1, 2009

प्रश्नों के चक्र व्यूह में जीवन के प्रश्न

सबसे पहले क्षमा उन जानी अनजानी त्रुटियों के लिए जों आपके आकलन के प्रश्न पर ग़लत साबित होती रहीं |
क्षमा इस लिए भी की मै बहुत दिन बाद उपस्थित हुआ |
जीवन पूरी तरह सेप्रश्नों के चक्र व्यूह में फंसा रहता है ,हर आदमी को हर बार अपने आप को साबित करना होता है ,बहुत से लोगों में, समाज में और अपने नए संबंधों में ,यहाँ नए संबंधों पर समय ही कहाँ होता है आपको परखने का वह तो केवल अपनी जीवन धारणाओं के हिसाब से आपका मूल्यांकन कर रहा होता है ,उसे लगता है की यह भौतिक स्वरुप में सहायक नहीं है तो वह स्वयं अपनी धारणाओं के हिसाब से सामने वाले में अनगिनत ऋणात्मकताओं का अम्बार लगा कर स्वयं को संतुष्ट कर लेता है ,शायद यह सब जीवन के धनात्मक मूल्यों और भविष्य के आदर्शों के लिए उचित ना हो |

मित्रों हर इंसान का एक प्रभाव क्षेत्र होता है और उसपर इसका प्रभाव अवश्य पड़ता है वह अपने परिवेश और समस्याओं से लड़ता हुआ केवल उन्ही के अनुरूप हर नए संबंधों को पुरानी धारणाओं के हिसाब से समझाना चाहता है जबकि पूरे जीवन में उसे हजारो सम्बन्ध अवश्य मिलते है ,परन्तु कई जन्मों प्रतीक्षा के बाद हो सकता है कि उसे वह व्यक्ति भी मिल जाए जो उसके जीवन को नई दिशा दे सके |यहाँ इस सम्बन्ध में भौतिक आपूर्तियाँ शायद नगण्य हो मगर आत्मा की गहराई अवश्य होती है ,इन संबंधों में केवल देने का भाव होता है ,वह तो केवल समर्पण कि पाराकाष्ठा पर अपनी उपलब्धियों के स्थान पर सामने वालों के सुख कि परिकल्पना में जीता है |मित्रों इन संबंधों कि खोज और उनको सहेज के रखने कि आवश्यकता है |यहाँ अपनी पूर्व धारणाओं के हिसाब से इन संबंधों को प्रश्न चिह्न ना बनाएं |माता पिता, पति पत्नी ,पुत्र पुत्री , और आपके अन्य सम्बन्ध किन्ही क्रियाओं और दायित्व के बाद अपना अर्थ एक फर्ज अदायगी और हवस का आशय बनजाते है और सम्बन्ध स्वयं एक अधिकार दायित्व रस्म अदायगी बनकर जीवन से जुड़ जाते है जिनसे धीरे धीरे रस खत्म होने लगता है और नीरस जीवन स्वयं को ढोने लगता है |जबकि आत्मा का निस्वार्थ सम्बन्ध बिना किसी क्रिया और भौतिक उपलब्धि के समर्पण का पर्याय बना रहता है |

मित्रो बहुत बड़ी भीड़ में आपको कुछ एक लोग ही अपने लगते है ,कुछ अपने गुणों के कारण ,कुछ ज्ञान के कारण और कुछ सुन्दरता के कारण मगर कुछ लोग आपके बहुत करीबी अपनों से जान पड़ते है उनका आंकलन बाह्य प्रदर्शन से नहीं अपितु आत्मा कि गहराई से होता है ,यहाँ प्रश्न ही नहीं उठता कि आप बाह्य आवरण या उपलब्धियों के बारे में सोच पाए ये सम्बन्ध तो क्रिया ,पाने खोने ,और सब विषयों से कहीं अलग होते है ,यहाँ केवल एक परा शक्ति कार्य कर रही होती है जो यह बताती रहती है कि यह सम्बन्ध शायद सांसारिक संबंधों से कहीं अलग है यह तो जीवन का वह सत्य है जिसकी खोज में आदमी जाने कितने जन्मों तक भटकता है |फिर यह संबध भी बार बार सांसारिक धारणाओं में प्रश्न चिह्न बनजाता है शायद यह और सामान्य संबंधों के आंकलन करता आदमी भ्रमित होकर ऐसे सम्बन्ध भी गँवा बैठता है शायद यह बड़ा दुर्भाग्य भी है आदमी का |

स्वयं मै जानता हूँ कि समय ने आज मुझे जो धरातल दिया है उसमे दुःख सुख की वो पराकाष्ठाएं थी जिनका लोग कई जन्मों में अनुभव नहीं कर सकते ,मगर मुझे आज इससे भी जो उपलब्ध हुआ है वह अतुलनीय है ,आज मुझे कुछ भी अनुपलब्ध नहीं है ,कोई कामना नहीं है ,कोई भाव नहीं है ,और किसी से शिकायत भी नहीं है |बस केवल यह भाव है कि हर व्यक्ति को मै कुछ दे सकूँ उसके दुःख का कारक बन पाऊ,ईश्वर का सहज प्रेम हर इंसान को व्यावहारिक स्वरुप में समझा पाऊ,अब मै अपने अन्तिम लक्ष्य में कितना सफल हो पाता हूँ यह भविष्य के गर्त मे है |

अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि

  अनंत कामनाएँ,जीवन और सिद्धि  सत्यव्रत के राज्य की सर्वत्र शांति और सौहार्द और ख़ुशहाली थी बस एक ही  कमी थी कि संतान नहीं होना उसके लिए ब...