Saturday, August 19, 2017

बढ़ता विज्ञान और घटती सवेदनाएँ ( Increasing science and decreasing sensitivity)

बढ़ता विज्ञान और घटती सवेदनाएँ
 Increasing science and decreasing sensitivity

प्रोफेसर रंगा विज्ञान के बहुत बड़े हस्ताक्षर थे ,देश विदेशों में उनका बहुत बड़ा नाम था, कई पुस्तको  , लेखों  और कई व्याख्यानों से मूर्धन्य सस्थाओं को वे अपना लोहा  मनवा चुके थे , एक बेटा सुकेश और बेटी रीमा को भी बहुत बड़े स्कूल कॉलेज में शिक्षा दिलवाई गई थी ,कॉलेज के बाद सुकेश को सर्जन बनने के बाद किसी  अमेरिकन विश्वविद्यालय से अतिरिक्त डिप्लोमा करने भेजा गया था, और वो आज विश्व का बहुत बड़ा डॉक्टर था ,बेटी सॉफ्टवेयर में पी. जी. करने के बाद किसी बड़ी कंपनी में डायरेक्टर हो गयी थी ,और प्रो रंगा अब रिटायर होकर अपने नौकर के साथ ही रहा करते थे पत्नी की मृत्यु कई वर्षों पहले ही हो चुकी थी ,ले दे कर केवल एक नौकर और एक दो विद्यार्थी ही उनके आस पास थे जिन्हें उन्होंने बहुत नीचे से उठा कर योग्य बनाया  था |

अचानक एक रोज नौकर ने उठकर देखा प्रो साहब ने दरवाजा नहीं  खोला है, थोड़ा और इंतज़ार किया फिर मन नहीं माना तो जंगले से झांक कर देखा ,प्रो साहब बिस्तर से नीचे पड़े थे ,कुछ अस्पष्ट सा बोल रहे थे दरवाजा तोड़कर उन्हें निकला गया, डॉ के आने पर मालूम हुआ उन्हें पैरालेसिस का अटेक पड़ा है ,,आनन फानन में डॉ ने उन्हें भर्ती करलिया स्वजनों ने बताया कि  बाबूजी का लड़का भी तो इसी एरिया का विश्वविख्यात डॉ है ,उनसे भी चर्चा कर ली जाए बहुत फ़ोन किये बड़े मेल और मैसेज भेजे गए मगर ५ दिन तक कोई कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं हो पाया, फिर एक दिन फोन कॉल आया नौकर ने उठा या  दूसरी तरफ से आवाज आई कौन सर्वेंट देवा बोल रहें है ,डॉ सुकेश  ने पूछा है क्या प्रॉबल्म है  क्या चाहिए  ,देवा ने पूरी सूचना दी, दूसरे दिन फिर फ़ोन आया है देवा मैं बोल रहा हूँ देवा जोर जोर से रोने लगा भैय्या बाबूजी को पैरालेसिस अटैक आया है, दीदी आयी ही नहीं, वो शायद बाहर विदेश गई है ,सुकेश बोलै चुप होकर मेरी बात सुनो मैं अगले वीक देखने आता हूँ अस्पताल में कोई जरूरत हो  बताओ , डॉ से बात कराओ ,डॉ सर सर करके बात करता रहा एक अकाउंट न  बताता रहा और कभी उत्साहित और कभी मायूस जैसा दिखा ,फ़ोन कट  चुका था डॉ पूरी ताकत से इलाज में जुट गया था और सबकी दुआएं दवाएं रंग लाइ और डॉ रंगा एक बार होश में  आ ही गए | १० वे रोज डॉ रंगा को छुट्टी मिल गई थी |

 एक माह बाद घर के सामने एक सैलून वाहन आकर रुका, २ दरबान आगे आकर कोई स्प्रे कररहे थे ,एक सामने पैसेज की सफाई में जुटा  था  प्रोफेसर रंगा के कमरे तक स्प्रे किया गया रूम को साफ़ किया गया और जब ग्रीन सिगनल हुआ तो डॉ सुकेश निकले और धीरे धीरे बाबूजी के कमरे में पहुंचे ,बड़े विह्वल थे बाबूजी आधे अधूरे बैठ गए थे ,सुकेश ने पाँव छुएं फिर हैंड क्लीनर निकलकर हाथ धोये ,और बात करने लगे , देवा तबतक पानी और नाश्ता लेकर आया सुकेश ने मना  कर  दिया ,अभी कुछ नहीं लेना सब है, उसने इशारा किया एक दरबान पानी के साफ गिलास और बोतल से पानी दे गया , पिता कहते रहे बेटा अब तू आगया है ,अब मैं जल्दी ठीक हो जाऊँगा ,तेरे बराबर तो इस रोग का डॉ है ही कौन, सुकेश बोलै है वो तो ठीक है उस डॉ को समझा दिया है ,ठीक इलाज कर रहा है ,आपको यह कसम है की आप सच सच यह बताओ की आप क्या सोच रहे थे जब ये अटैक आया था ,आपको ,मेरी कसम आपको ,पिता भावुक हो गए थे बोले बेटा तेरी माँ की मृत्यु के बाद मुझ पर बहुत दबाब था की मैं  एक शादी और करलूं मुझे लगा कि  सौतेली माँ मेरे बच्चो से न्याय नहीं कर पाएगी, तो मैंने वो प्रस्ताव ठुकरा दिया , और तुम दोनों भाई बहिनों को माँ और बाप दोनो रूप में पाला है, उस रात यही सोच रहा था कि अब हाथ पैर जबाब दे रहे है ,अब मुझे अपने बच्चों के कन्धों की जरूरत है जो मुझे सहारा दे, सकें बस यही सोचते सोचते बेहोश हो गया था मैं | और सुकेश कही खो गया था विचारों में |

बी  प्रेक्टिकल बाबूजी आप तो जानते है मै  उस घर में भी कहाँ रह पाता हूँ, कभी न्यूयार्क कभी इंगलैंड कभी जर्मनी रोज भागना रहता है ,और इतनी सुविधाएं और देवा और शशि ,प्रभात को देख कर बोला की ये सब लोग सेवाकर ही रहे है, तो कोई प्रॉब्लम है ही कहाँ ,हाँ फिर भी एक बार सोचूंगा जरूर की मुझे क्या करना चाहिए , अब नाश्ते का टाइम होगया है ,दरबान  तुरंत गर्म ब्रेड बटर और एक एक गिलास दूध की ट्रे लेकर आगया यह सैलून में पहले से ही था , पिताजी हतप्रभ , मूर्तिवत उसके साथ ब्रेड चबाने लगे , और अचानक सुकेश बोलै बाबूजी मुझे जाना होगा  रात 8  बजे  दिल्ली  के सबसे बड़े अस्पताल में मुझे एक आप्रेशन  करना है , और  फिर ३ बजे रत में मेरी फ़्लाइट है --------और बिना पिताजी का कोई उत्तर सुने सुकेश उठा उसने बेमन से फिर पाँव छुए --फिर हैंड क्लीनजर से हाथ साफ किये और टाटा करता हुआ चल दिया पिता की समझ ही नहीं आया कि  उसे क्या कहना या क्या नहीं कहना  चाहिए |


 कुछ ही दिन बाद डॉ रंगा को फिर अटैक पड़ा उस ही डॉ के यहाँ लेजाया गया पूरी घटना सुनने के बाद डॉ कहीं खो गया था ,नौकर और प्रोफ साहब के विद्यार्थियों को  उन्होंने कहा  कि अब आप लोग पैसे के लिए परेशांन मत होना ,क्योकि प्रोफ साहब से मेरी बात होती ही रहती थी ,आप सब लोग तो उनकी सेवा ही करें ,यही सबसे बड़ा सहयोग होगा इलाज जोरो शोरो से चल रहा था और १०  दिन बाद प्रोफेसर साहब चल  बसे थे ,तीनों लोगबहुत रोये थे उनके अलावा कोई  था ही नहीं ,फ़ोन पर फ़ोन लगाए जा रहे थे सुकेश और दीदी के फ़ोन आउट ऑफ़ कवरेज थे डॉ साहब ने शव को डीप फ्रीजर में रखवा दिया था अचानक डॉ साहब को याद  आया कि दूसरे अटैक से तीन दिन पूर्व ही प्रो रंगा एक बैग यह कहकर छोड़ गए थे  कि डॉ साहब ये रखना आप मैं  अभी आया , और वो बैग अभी क्लीनिक में ही पड़ा होगा शायद उसमे कोई एड्रेस फ़ोन न मिलजाए ,डॉ ने बैग खोलकर देखा उसमे एक चिट्ठी खुली रखी थी कांपते हाथों से डॉ और प्रो रंगा के स्वजन सुनने लगे -----चिट्ठी का विवरण


डॉक्टर साहब नमस्ते  बड़ा बोझ है, जीवन का आज सोच रहा था ,कि मैं  दुनियां का बहुत बड़ा साइंटिस्ट सिद्ध हुआ संसार के सारे देशों का भ्रमण करते में मैंने अपने बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ा, हर जगह साथ ले जाता था, आपसे बहुत बात की मालूम हुआ आपके पिता ने भी बहुत कठिनाई से आपको इस मुकाम तक पहुंचाया और वो चल बसे,मैं उस दिन से आपको भी पुत्र जैसा मानता  रहा बोला।  कभी नहीं ,बेटा इतना बड़ा वैज्ञानिक होकर मैं यह नहीं समझ पाया कि  जीवन में मूल्यों और आदर्शों की कक्षा तो सहानुभूति दया  सेवा और संवेदनाओं के पहियों पर ही चलती है ,और जहाँ विज्ञान के रथ पर ये पहिये ही नहीं हों वहां नीरस , बदरंग फीका और अभावों का जीवन खुद ही व्यर्थ सिद्ध हो जाता है बेटा अब मैं अब जो कह रहा हूँ वो ध्यान से सुनना मैं  भगवान् का बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि  पहले अटैक के समय मुझे जीवन की असली पहिचान ,और मेरे अपने मुझे मिले है ,मेरे मरने के बाद मेरीअचल  संपत्ति आप  तीनों लोगों में आप बाँट दें जो लग भग ५० करोड़ की होगी और मेरा संस्कार भी आप सब मिलकर करदें मैंने अपने मन और न्यायालयीन कागजों में यही लिखा है ,और आपके लिए मैंने अपना बेटा समझते हुए आपके अकाउंट में १०  करोड़ रूपए ट्रांसफरके लिए चेक  दिए है ,जो एक माह बाद आपके  खाते  में पहुंच जाएंगे, आप सबसे यही  विनती है कि ,आप यह अवश्य ध्यान रखें की जो विज्ञान सहायता दया श्राद्धा  और संवेदनाओं से परे है उसका हर परिणाम केवल विनाश कारी ही होगा |

चारों लोग जोर जोर से रो रहे थे ,अचानक फ़ोन की घंटी बजी मई सुकेश बोल रहा हूँ ---- डॉ ने तुरंत कहा हाँ बाबूजी आपके लिए भी एक पेरा  लिख गए है सुनिए ---बहुत बिजी हो तुम और तुम्हारी बहिन -----  आउट ऑफ़  कवरेज ----एरिया -------- बेटा  बहुत बड़ा होने ------ विश्वप्रसिद्ध डा होने का मतलब होता है सवेदना हींन ,आदर्श हीन , दया प्रेम वात्सल्य और ममत्व जैसे शब्दों से परे होना , हां तुम इन सबसे आउट ऑफ़ कवरेज एरिया ही बने रहे ,खैर अब तुम बिजी ही रहो ,मैंने तुम्हे सब मेल कर दिया है और तुम्हारे ऊपर ही छोड़ दिया है की तुम एक बार फिर साइंस ----और अपने सेन्स को परख करके  देखना जीवन तुम्हे हारा हुआ सिद्ध कर देगा | फिर भी मैंने अपने संपत्ति से १०-१०-करोड़ तुम्हे भेज दिए है क्योकि तुमपर टाइम नहीं है | ईश्वर तुम्हे खूब खुश रखें | दूसरी तरफ से आवाज बंद हो गई थी|


 साइंस और सेन्स का युद्ध जीवन भर चलता ही रहा है और यही विडम्बना बनी रही कि, जो साइंस को बहुत ज्यादा जानता गया, वैसे वैसे उसमे विचार शून्यता ,आभाव , आदर्श और मानवोचित गुणों के स्थान पर अहम् , वैमनस्यता ,अहंकार ,और विद्वेष भरता चला गया, जबकि संसार  की पूर्णता के लिए हर विज्ञान को माध्यम बनाया गया था , जीवन के सर्वोन्नत शिखर पर दया- सहष्णुता -करुणा - प्रेम और परमार्थ का विशाल मैदान है जबकि भटके हुए साइंस से केवल विनाश -चीत्कारें -अपमान -प्रतिद्वंदिता -स्वार्थ और पराभव ही प्राप्त हुआ है ,इतिहास गवाह है की शक्तियों और वैज्ञानिक पराकाष्ठा की सोच के साथ यह भाव स्वतः जुड़ जाता है कि  हर कोई आपके दासत्व को स्वविकर करले बढ़ता हुआ साइंस कम होता हुआ सेन्स और यही क्रम एक दिन इंसान को महा विनाश के सामने खड़ा कर देता है, ठीक वैसे  ही जैसे दो जानवर अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए जान से मरने मारने की हदपर  लड़ाई लड़ रहे हों| 



  आउटऑफ़ कवरेज एरिया ------ है आप अपने आपसे ---- आदर्शों और अपनी सोच से -------- अपने खुद से दूर जाने के कारण ही शायद आप अपनी आतंरिक शक्तियों को नहीं ढूढ़  पा रहे है ,हजारो लाइक्स , हजारों दोस्त और हजारो मैसेज में हम अपने आपको कहीं पा ही नहीं रहे , लाखों फोटो लिए बैठे है हम अपनाचेहरा  ही  भूल गए है ,हर बार नई फोटो मैसैज ----- और हजारों लाइक्स  और भयानक नशा एक अडिक्ट की भाँति अपने आपको ढूढ़ते ढूढ़ते खुद खोते जा रहे है परिणाम यह कि जीवन जिस बड़ी खोज के लिए चला था वो स्वयं भटकने लगा है ,और हम शायद अपने आप से इतना दूर निकल गए है ,की जहाँ दूसरे की सोच से  हमारा कोई वास्ता ही नहीं रह गया है  परिणाम हम स्वयं अपने बनाये हुए कारागार में ऐसे कैद होते जारहे है जहाँ केवल यही आवाज आ रहीं है  जिस शख्श को आपने फ़ोन लगाया है वो आउट ऑफ़ कवरेज एरिया है ---------


सहानुभूति -विचारोनुभूति -सवेदनाएँ मानवोचित आदर्शों के लिए जरूरी है यदि किसी विज्ञान की सार्थकता का प्रश्न कही पाया जाता है तो वह इनके उद्गम से ही पहिचाना जाएगा ,इतिहास ने जो जो क्रांतियां देखी  है उनके पीछे यही तथ्य रहा है की समय विकास औरउसके लिए किये गए प्रयास केवल इसलिए किये गए थे, कि  वे मानवीयता के लिए वरदान बन कर सामने आये मगर जैसे जैसे समय ने राष्ट्रों और व्यक्तियों ने अपने  आपको सर्वशक्तिमान सिद्ध किया वैसे वैसे वे सब  लिए ख़तरा  बन बैठे , और विकास का वरदान ही जब आपके लिए विनाश का अभिशाप सिद्ध होने लगे तो आपको एक बार पुनर्विचार की आवश्यकता अवश्य है जो आपको सही आइना अवश्य दिखाए गा |

आज जब सम्पूर्ण विश्व की शक्तियां एक दूसरे पर आँखे तरेर रही है, कोई किसी का वर्चस्व मानने को तैयार ही नहीं है ,वहां हम कौन  से विज्ञान और मानव कल्याण की कहानी सूना रहे है ,एक राष्ट्र कहता है उसकी सेनाएं सुरक्षित है उसपर परमाणुबम्ब है ,दूसरा कहता है उसपर भी वही शक्तियां है जो सामने वाले देश पर है , तीसरा कहता है मुझ पर दूर बॉम्ब  भेजने की तकनीक नहीं है, मगर मुझ पर हाइड्रोजन बम है मैं  अपने ही एरिया में विस्फोट करके सारी पृथ्वी को  ख़त्म कर दूंगा क्या आपकी  साइंस का मूलभूत उद्देश्य यही था ,कि  आप मानव कल्याण के नाम पर स्वयं विध्वंसक सिद्ध हो जाए, शायद साइंस के साथ आपने अपना सेन्स --सेंस्टिविटी और सहानुभूति सब खो दी है |




निम्न पर विचार करें
  •  जीव न में मूल्यों को कभी नहीं भूलें उनके बिना विकास का कोई महत्व है ही नहीं 
  • मानव कल्याण और सहष्णुता  से ही जीवन को बढ़ते हुए क्रम मे   रखा जासकताहै,  यदि आप स्वयं से दूसरे की सहायता के लिए तैयार न हो पाए तो स्वयं नष्ट हो जाएंगे | 
  • विकास ----साइंस ------ सेन्स का उद्भव परमार्थं  और कल्याण के लिए हुआ है और उसे सकारात्मक रखना आवशयक है | 
  • निरंतर विचार शीलता के साथ विकास में दूसरे अपनों को शामिल करते रहें ,क्योकि उनके शामिल होने पर ही आपकी असल जीत होगी | 
  •  सुख सबकी आवश्यकता है मगर जब तक आप किसीके सुख के कारक  नहीं होंगे ,तबतक आप को भी सुख प्राप्त नहीं होगा| 
  • विकास विज्ञान का यह मतलब कभी नहीं रहा कि वह अपने आपको कर्तव्यों और आदर्शों से मुक्त समझे ध्यान रहे नकारात्मकताओं और सकरात्मकताओं का फल अलग और अवश्य मिलता है | 
  • साइंस के साथ अपने सेन्स को सकारात्मक बनाये रखे, क्योकि यही आपके सेन्स को सकारात्मक  रख सकता है | 
  • विकास और कर्त्तव्य दोनों में सामंजस्य रखने वाला ही जीवन को समझ पाता  है और दोनों की ही आवश्यकता आपको उत्कर्ष पर ले जाएगी | 
  • साइंस का प्रयोग सेन्स को जागृत करते हुए ही करें अन्यथा निर्माण के औजारों से हाथ भी काट जाते है |

Sunday, July 23, 2017

सही दिशा बताने वाले लोगों का सम्मान करें Respect the people who gave the right direction

सही दिशा बताने वाले लोगों का सम्मान करें 
Respect the people who gave the right direction
एक बड़े पुलिस जिला मुख्यालय पर पिता कार्य करते थे ,मूल्य आदर्श और ईमानदारी उनके खून में लिपटी थी ,कभी कभी पिता  जोर से चिल्ला रहे होते थे, कि तुम्हारा मैथ्स अच्छा है ,तुम मैथ्स लेकर कम्प्यूटर के क्षेत्र में खूब सफल हो सकते हो, मगर  रोषित केवल इसी   पर अड़ा बैठा था कि ,  मै  बीएससी ही करूँगा , यह क्लेश पिछले ४ दिनों से चल रहा था ,माँ की स्थिति ज्यादा ख़राब थी, वो कभी रोषित को बोलती ,भैय्या वो तेरे लिए ही तो सब कररहे है ,और रोषित गुर्राता तो  शांत हो जाती थी , फिर वो कभी पिताजी को कहती आप ठीक कह रहे होआप पर  आज के लड़के तो सुनते ही नहीं है कुछ ,न माँ बाप की इज्जत है, न जीवन की चिंता, बस अपनी ख़राब यारी दोस्ती निभाने को ,किसी भी स्तर पर जा सकते है ये लोग,पिता गहरी खामोशी में माँ का मुँह देखते रह गए हरे सहमे से , लगभग १० दिन चला  था यह सब ,  पिता को याद  आने लगा कि एक बार महंगे मोबाइल की खरीद की जिद पर अड़े ,रोषित को दिलाना ही पड़ा था न मोबाइल, अपने कपडे, इसकी माँ की साड़ी, सब छोड़कर , अच्छेकपडे ,घड़ी ,बाइक ,स्कूल ट्रिप सब ही तो, उसने जिद करके पूरे कर लिए थे , बाबा हमेशा समझाते थे प्रेम अपनी जगह होना ही चाहिए ,मगर अनुशासन के बिना तो सब तहस नहस हो ही जाएगा न | बीएससी में प्रवेश हो ही गया था रोषित का और पढाई ,मटरगश्ती ,और यारी दोस्ती का दौर भी चल पड़ा था अपने पूरी ताकत से | 


यदाकदा पिता की बात करते हुए रोषित कहता था कि ,हर बात में आदर्शों की बातें करने वाले पिता को यह मालूम ही नहीं था ,कि दुनियां कहाँ  पहुँच गई है ,वो अपने पुरातत्व विभाग जैसे कपडे पहने हुए बड़ी बड़ी बातें करतें है ,मगर यह नहीं जानते कि मेरे दोस्त मेरे समाज में जो मित्र है ,उनके पिता, केवल पैसे ,साधन और बड़ी विलासता की हर चीज देते है ,मगर कोई बात नहीं करते ,दोस्त बताते है कि  उनपर टाइम है नहीं है, जो हमारा दिमाग ख़राब करें और एक हमारे पिताजी है ,जो केवल पीछे लगे रहते है ये करो ,यह गलत है ,यही सही है ,बहुत टाइम है उनपर परेशां हो गया हूँ मैं ,माँ सुनती रही बोली नहीं जानती थी कि यदि कुछ बोली तो फिर कलेश हो जाएगा --- सीने में कितना दर्द होता है उस कलेश के समय ,डर --भय ---विषाद  ---घुटन क्या क्या होता है यह कुछ कैसे बताऊँ इसे यह सोचते सोचते माँ की आँखें भर आयी | 

बीएससी -फिर एमएससी की पढाई पूरी होगई  थी ,मगर नौकरी के कोई अते पते नहीं थे , कई जगह फॉर्म भरे थे मगर निराशा ही हाथ लगी ,पीएससी , और बहुत सी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की गई ,वहां भी नतीजा शून्य पिता शून्य भाव से यदाकदा बोलते थे ,बेटा कोई बात नहीं  ईश्वर सब ठीक करेगा ,और रोषित सुनकर चुप होजाता था उसे लगता था ,शायद ये अपने आप को सांत्वना दे रहे है ,कभी उसे लगता था शायद कोई बड़ा अपराध होगया है उससे , उसके समाज के स्वार्थी लोग दूर बहुत दूर चले गए थे , जो उससे अधिक स्तर वाले थे, वो अपना बिज़नेस खोल कर बैठ गए और सहायता के नाम पर उसने बहुत  कुछ सुना था उन लोगो से, उसकी सबसे करीब दोस्तों ने उसे यह आइना दिखा दिया था, कि दुनिया में दोस्ती वोस्ती क्या होती है ,केवल एक सिद्धांत होता है  बी प्रेक्टिकल और जैसे को तैसा | अचानक आर्थिक बदलाव के अंतर्गत हजारों छापों की कार्यवाही में दोस्तों के प्रतिष्ठान पकडे गए हजारों अनियमितताएं मिली थी , और पेपर में भ्रष्टाचार की अनेक ख़बरों के साथयह भी था की उनलोगो को जेल भी जाना होगा | उसी समाचार पत्र में एक ओर पिताजी की भी फोटो छपी थी , लिखा था प्रदेश में ईमानदारी और श्रेष्ठ कर्त्तव्य के लिए पुरुस्कृत |, आज पहली बार उसे अपने पिता पर गर्व और अपने मित्रों के पिताओं के बोन पन का अहसास हुआ था | 

नौकरी की भाग दौड़ और तरह तरह की तैयारियों के मध्य सब कुछ फिसलता सा दिख रहा था ,पहली बार उसे लगा कि शायद यदि कम्यूटर साइंस से पढाई की होती तो शायद नौकरी आसानी से मिलजाती शायद पिता सही थे ,मन में
बड़ी व्यग्रता थी ,  उसी समयमालूम हुआ कि , शहर में एक मूर्धन्य सन्यासी आये है , वो त्रिकालज्ञ थे,आँख बंद करके सब  बता सकते थे ,उनकी ख्याति बहुत अधिक थी ,रोषित ने कई बार कहा मैं नहीं मानता  ये सब, तो उन्होंने कहा वो बहुत बड़े इंजीनियर थे ,आईआईटी पास और सिविल सर्विसेस के वरिष्ठ अधिकारी रहे है ,एक झटके में में सारे भ्रम टूट गए थे ,रोषित के और एक अनजान बंधन में वह उनके पास जा पहुंचा ,और प्रणाम करके बैठ गया साधु ने पूछा कौन  है आप ,तो बड़े विनम्र भाव से कहा मैं  रोषित हूँ --- पिता का नाम ----- श्री कामता नाथ ----- अचानक साधु ने खड़े होकर किसी को आकाश की तरफ प्रणाम किया और ध्यान में चलागया और उसने कहना आरम्भ किया ---पुत्र जीवन में अच्छे कुल ,धर्म और श्रेष्ठ  समाज में पैदा होने के बाद भी तूने नर्क भोगा है ,उसका मूल कारण यह कि तूने अपने रोकने टोकने वालों को ही ख़त्म कर दिया है ,इससे कर्म और सुख से शून्य तू सांसारिक बंधनों के पराभव की और अग्रसर है ,मै  सब जानता हूँ तेरा पिता संसार में रहकर भी सबसे मुक्त है ,मैंने उसको ही प्रणाम किया था , तेरे नर्क जैसे जीवन की यातनाये ख़त्म होने का समय आगया है ,जा अपने पिता माता गुरु शाप का प्रायश्चित कर, तुझे श्रेष्ट सेवा का अवसर मिलेगा ,साधु शांत होगया ,रोषित को लगा एक बड़ा पहाड़ उसके ऊपर लुढ़कता आ रहा है बिना आवाज के | 

जोर से दरवाजा खटखटाया था और पिता ने ही दरवाजा खोला था बिखर गया था  रोषित पांवों में गिर गया ---- पिता पूछ रहे थे क्या हुआ बच्चे माँ रोने लगी थी क्या होगया बता तो  ---- बस माफ़  करदो  मुझे मारो -डाटों ---ख़राब व्यवहार करो  मगर मुझे ऐसे मत छोड़ों कि  मुझे हक से कोई डाटनें वाला ही न हो ,  मैं  थक गया हूँ इस जीवन से - अपनी गलतियों से और अपने प्रेक्टिकल व्यवहार से ,अब मुझे  वो ही पिता माता गुरु चाहिए जो मुझे बात बात पर अपना परामर्श दे ,अच्छे और बुरे का भेद बता पाए ,बस इतना व्यवहार चाहिए आपसे ,इसके बदले में मै दुनियां की सारी  सफलताएं आपके क़दमों में बिछा दूँगा ----- माता -पिता और रोषित की आँखों से धरा प्रवाह आंसुओं का वेग था, उन्हें ऐसा लगा कि आकाश से कोई कह रहा हो ,कामतानाथ यह समय और आदर्शों की लड़ाई थी और उसमे तुम जीत गये हो, तुमने समय और उसके परिवर्तन को हरा दिया है ,पिता ने पुत्र को और  कस कर  गले से चिपका लिया | 


इस लूट मार वाले समय में जहाँ जंगल का बड़ा कानून चल रहा है, जहाँ हर काम -सम्बन्ध किसी न किसी स्वार्थ के धरातल पर खड़ा है ,वहां कोन किसको -क्यों  रोकेगा ,क्यों किसी को किसी कार्य से क्यों डाँटेगा, किसी गलत मार्ग पर जाने से क्यों आपके व्यवहार को सुधारने की बात करेगा ,क्यों आपको जीवन के सच्चे मार्ग का पथ प्रदर्शनकरेगा यह प्रश्न वाचक है ,क्योकि यदि सत्य मार्ग का दर्शन होगया तो ,आप उस का शोषण कैसे कर पाएंगे ,और शोषण ही नहीं होगा तो आपके सम्बन्ध के मायने भी शून्य हो जाएंगे ,पूरे संसार में जीवन बहुत काम लोगों के साथ वह व्यवहार कर पाता  है ,जहाँ आपका व्यवहार बिना किसी प्रयोजन के ,संबंधों को पूर्ण करने की चेष्टा कर पाता  है ,और यदि आपका मन मष्तिष्क इन बातों में से सार निकाल कर अपने आदर्शों कामार्ग बना पाया , तो वह सबसे अधिक श्रेष्ठ है | 




प्रेम की पारा काष्ठा पर गलत  कार्य करते अपने को देखकर कितना दर्द होता है ,सीने को  कितनी  यातना सहनी होती है ,मष्तिष्क और मन को ,और कितना भयानक होता है, वह भय जो अपने किसीको नुक्सान पहुंचाने की कोशिश में देखने से होता है ,और विडम्बना यह कि सामने वाले को आपके  क्रोध के आवेग और संबंधों की आकलन शून्यता के कारण यह अहसास ही नहीं हो पाता  कि  वास्तव में सही कौन है ,निरंतर अपने मानसिक एवम शारीरिक आपूर्तियों के लिए , अथवा जिद -अहम्  या अपने आपको सर्वश्रेष्ठ बताने की तूफानी सोच में आपको अपने बहुत करीबी लोग तो प्रतिद्वंदी दिखते है , उनकी पाबंदिया आपको अपने लिए  बहुत ख़राब जान पड़ती है , शायद आप अपने तमाम आवेशों से से हारे बैठे है और अपने मन की हर बात पूरी करने चाहते है जैसे एक नन्हा सा बच्चा जलते हुए दीपक को खाने की जिद कररहा हो |




 || किसी ने न रोका किसीने न टोका ,दुआ बद दुआ लेके न कोई आया|| 

|| ये कैसी खिज़ा थी ये कैसी रिवायत ,यहाँ कौन मेरा ,समझ ही न आया||

 दिल्ली सल्तनत का बादशाह बहादुर शाह जफ़र अपने जीवन के अंतिम पलों में था अल्लाह का सहारा था , उस तक ही पहुँच रह गई थी  उस जेल की कोठरी में , और अल्लाह के दूत से बात कररहा था , हे राजा तू तो जीवन को जीतने और अपने आपको ऐशोआराम में डुबोये हुए पूर्णनाद की और जा रहा था  मै  तुझसे यही जानना चाहता हूँ की तेरे जीवन की भूल क्या रही हे दूत मैं जनता हूँ अपनी गलतियां दूसरों को कष्ट न देना अच्छा आदर्श है मगर स्वयं की रक्षा का विषय  छोड़  देना सबसे बड़ा अपराध है , और मेरी अंतिम इच्छा यह है कि मुझे अपनी जमीन पर दो गज जमीन जरूर मिलजाती मरने के बाद और मेरी नाकामी की सबसे बड़ी कोइ वजह थी तो वह यहकि मेरे सामने किसी ने जुबान ही नहीं खोली और मई अंधेरों के फैलने की भनक तक नहीं पा सका क्योकि मुझे कोई टोकने वाला ही नहीं था यह कहते हुए उस शासक ने अपनी बंद कर ली | और इन्हीं विचारों की गहराई में दिल्ली सल्तनत का वह शहंशाह  जीवन से प्यासा ही प्रयाण कर गया | 



निम्न को जीवन में उतारने का प्रयत्न करें 
  • जीवन को समझने का प्रयत्न करें उनके मानदंड बनाये और यही विचार करें कि उन्हें पूर्ण कैसे किया जा सकता है उन्हें अपने आपमें उतारने का प्रयत्न करें | 
  • समय के साथ आपको अपने संस्कारों।,सत्य और हर विचार को परिष्कृत करना होगा जैसे जैसे समय बदलेगा आपके विचारों में और श्रेष्ठता आने लगें यह ध्यान रखना आवश्यकहै | 
  • उन लोगो को अपने पास बनाये रखें जो आपको टोकते है क्योकि इनके कारण आप स्वयं को और अधिक परिष्कृत कर सकते है | 
  • क्रोध वैमनस्यता और आपनसे तुलना करने वालों के प्रति अपना रवैय्या सकारात्मक बनाये रखें क्योकि वे यही चाहते है कि आप अपना धैर्य खोकर उनके जैसे हो जाए | 
  • माता पिता गुरु को जैसा व्यवहार कररहे है करने दें --उनसे कोई तुलना नहीं करें ,क्योकि उनसे  बंधन उत्पन्न होंगे यदि वे सही हुए तो ,आपका जीवन बनेगा और यदि वे गलत हुए तो बंधन उनका होगा आपका नहीं स्वयंको सकारात्मक बनाये रखें 
  •  तुलना- जलन - क्रोध का सम्बन्ध प्रेम से बंधा होता है क्योकि इसके पीछे हमारी कोई कामना छुपी होती है और यही कामना का भाग प्रेम कहलाता है | 
  • सही अपनत्व का आकलन हमेशा करते रहना चाहिए क्योकि यदि आप ने अपने व्यवहार में उन्हें पहिचान कर अपना व्यवहार स्थिर कर दिया तो आपकी गलती की सम्भावनाये बहुत काम हो जाएंगी | 
  • सत्य और जुल्म के प्रति सजग रहें मगर गलती के प्रतिकार का तरीका इस तरह का अवश्य हो जिसमे सहजता और सरलता से हम  आपको सत्य आदर्श के निकट रखे ,जुल्म न करें न सहन मगर अपने को नकारात्मक किये बिना | 
  • स्वयं की रक्षा प्रणाली बनाये रखें बिना कीसी को दुःख पहुंचाए आप स्वयं को सरल मजबूत , सत्यशील और परिपूर्ण सिद्ध करते रहें ,| 
  • आपके आचरण और व्यवहार से दूसरे को कष्ट न पहुँचे  मगर उसके कष्ट को देखते हुए आप अपने आचरण ,आदर्श और अपनी मर्यादाओं को न लांघे | यही आपकी पूंजी है |


Sunday, July 16, 2017

सफलता समय-धैर्य और सकारात्मकता की खेती है(success is cultivation of time-patience and positiveness )

सफलता समय-धैर्य और सकारात्मकता की खेती है(success is cultivation of time-patience and positiveness )

राजा शूरसमर  एक प्रतापी राजा था अपने पूरे जीवन काल में हजारों युद्ध जीत कर अपने आपको कई बार साबित कर चुका था वह , रानियां पुत्र पौत्र और भरा पूरा परिवार था उसके पास बस राजा की एक ही समस्या थी की वह हमेशा इसी उधेड़ बुन में रहता था कि  कही कोई उसका राज्य न हथिया ले कोई उसे हानि न पहुंचा सके, कोई उसको लूट न ले और सबके साथ एक बड़ा भय यह भी कही मै  मर न जाऊं | राजा कभी भी परिवार की छोटी छोटी बातों में उलझ जाता था, रानी की समझाइश पर, बच्चों की शैतानियों पर और एक दूसरेको छोटा बड़ा बताने पर भी हर जगह लड़ बैठता था | राजा की इस सोच से पूरा राज परिवार परेशान  था, न कोई उत्सव न कोई त्यौहार न कोई कार्यक्रम जिससे प्रजा और  राजा  का मनोरंजन हो सके|  एक दिन राजा ने यह मुनादी करवा दी कि  जो कोई उसे इस रोग से मुक्त कर देगा उसे आधे राज्य की दौलत दे दी जायेगी और जो उसमे सफल न हुआ तो उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा कई लोग आये और शिकार हो बैठे उसकी सनक का ,एक दिन एक साधु आया और उसने कहा मै आपके रोग का इलाज कर सकता हूँ, मगर आपको मुझे १ माह देना होगा और आप मेरे साथ ही रहेंगे मै   आपके राज्य की सीमा में ही अआपके साथ रहूँगा राजा ने बहुत सोचा और सबको बताया मेरा राज्य चारो और से सेनाओं से सुरक्षित है चलो यही सही यह कहकर वह साधु के साथ चल दिया
चलते चलते वे दोनो एक घने जंगल में पहुँच गए प्यास के मारे बुरा हाल था राजा का ,उसने कहा मै  तेरी गर्दन काट कर फेक दूंगा, पानी  लेकर आ साधु मुस्कुराया और अपना कमंडल लिए आगे बढ़ गया ,उसके जाने के ५ मिनट  बाद  ही एक शेर की जोर से दहाड़ सुनाई दी और राजा बेतहाश भागने लगा और भागते भागते बेहोश होकर गिर पड़ा जब उसे होश आया तो उसने स्वयं को बहुत बलिष्ट और ताकतवर महसूस किया, पास ही वही साधु बैठा उसकी सेवा कर रहा था , राजा को भूख लगी थी  उसने आधे अधूरे खाये फलों को देखा ,फिर तेज भूख के कारण कुछ न बोलते हुए खाना चालू कर दिया , अद्वतीय स्वाद था उन फलों का , राजा ने साधु से पूछा हम कहाँ है साधु बोला  ,राजा हम जंगल में भटक गए है पिछले २माह  से आप अपनी याददाश्त खोये पड़े थे ,उस रोज मै आपको भागता देख, आपके साथ चला आया यहाँ आकर आप बेहोश होगये , होश आने पर आप अपनी याददाश्त खो बैठे थे ,और उसी अवस्था मेँ आपने कई शेरो और जंगली जानवरो को वीरता पूर्वक भगा दिया ,आप निर्भीक , अजेय योद्धा की तरह व्यवहार करते रहे और ये फल मेवा और दूध आप ही एकत्रित  करके लाये हो और पूरी सफाई आपने ही मेरे साथ की है ,कई आदिवासी आपसे ही शिक्षा के लिए आते  है , शाम में राजा ने देखा कि  वह एक चमत्कारिक बहाव में आदिवासियों को जीवन के गहरे राज समझा रहा है , जीवन के वे दार्शनिक सत्य जो उसने कभी सुने थे वो उसे एक एक कर  याद आरहे है ,राजा ने  कहा साधु महाराज ये कैसा परिवर्तन किया है आपने ---- तो साधु ने कहा  राजा तू पिछले जन्म में एक बहुत तेजस्वी राजा था जो कालांतर में सन्यासी हुआ ,परन्तु घोर साधना के बाद भी तेरा मोह नष्ट नहीं होपाया ,परिणाम तुझे फिर एक असंतुष्ट राजा बनना पड़ा ,मैं तेरा पूर्व जन्म का गुरु था मैंने तुझे केवल तेरा विस्मृत स्वरुप याद  दिलाया है और तूने उसे पूर्ण भी किया है |


साधु ने कहा पुत्र जीवन के मूल में जो सबसे शक्तिशाली तत्त्व है, वह है समय और वह  इतना विराट स्वरुप वाला है जिसके सामने सभी नगण्य है, इतने विराट तत्त्व को जीतने का एक मात्र उपाय है  सब्र और स्वयं की साधना और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को स्वयं की चेतना में अविभूत करना, बस यही एक मात्र कुंजी है ,उस अमृत्व को पाने की , भय , विषाद ,कामनाएं और अच्छा बुरा तुम्हे उलझाने वाले जाल है और जितनी देर आप इनकी कामनाओं में उलझेंगे आत्मतत्व से उतनी ही देर में मिल पाएंगे और आत्म तत्त्व से साक्षात्कार बिना आप अपने ही बोये कर्मों से इसप्रकार घबराते और डरते  रहेंगे जैसे आग से खेल खेल में आपने अपने कमरे  को जलते हुए और खुद को घिरा हुआ पाया है और अब आप खुद डरे सहमे और चिल्लाते हुए दिख रहें है | यही गति है हम सबकी |


अंत में साधु ने बताया की पहले ४ दिनों में ही आप खाना लाना पानी लाना और अपनी रक्षा  करना जानते थे आप सुनसान में बैठ कर निरंतर चिंतन करते रहते थे   और आप पूर्ण और विद्वता के शिखर पर खड़े दिखाई देते थे , राजन अब आपकी सेनाये आपको ढूढते हुए आरही है, आप स्वयं को नयी यात्रा के लिए तैयार करलें ,राजा और साधु  राज्य में लौट आये  एक नैतिक ,आदर्शों और जीवन को जानने वाला पूर्ण पुरुष से  | साधु को राजा ने आधा राज्य दिया तो उसने हँसते  हुए लौटा दिया और कहा, पुत्र आज तूने जिस सब्र और समय को जीतने की दौलत प्राप्त की है, वह कई राज्यों से बहुत बड़ी है, राजा साधु के सामने नत मस्तक हो गया और अपने पुत्रों को राज काज सूप कर साधु के साथ हो लिया | 

आम जीवनमे हम सभी एक तिलस्मी व्यक्तित्व लिए घूम रहे है उसमें केवल बनावटी ,अधूरा और नकारात्मकता से भरा मन जीवित है ,समय की अबाध गति की दौड़ में केवल इस कृत्रिमता के सहारे हम बहुत दौड़ चुके है और अपनी नकारात्मकता को सराहकर भी स्वयं को श्रेष्ठ  बताने की होड़ में लगे है ,जबकि मन आपके इस आचरण से  छुब्ध होकर आपको और  अधिक नकारात्मक बना रहा है , क्योकि  ध्यान रहे आत्मा को आपकी झूठ से सदैव कष्ट ही प्राप्त होगा ,और आप सामायिक उपलब्धियों के लिए कोई भी दांव लगाने को तैयार है ,आपकी दशा उस हारे हुए जुआरी की तरह है जो अपने दांवो में सब कुछ हार चुका है , मगर समाज से यही मांग कररहा हो कि आपको सर्वश्रेष्ठ ही समझा जाए ,अब आप बताइये कि जब आपकी आत्मा ही स्वयं कोअपराधी की तरह समझ रही है और आप  स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने की जिद कररहे है ऐसे में आप सुख शांति कैसे पाएंगे यह प्रश्न चिन्ह है |


सफलता का सूत्र  सकारात्मकता -सब्र - साधना -सहजता और स्वयं को सत्य स्वरुप में समझने और समझाने में ही निहित है समय के प्रवाह की तेज धार को केवल इनसे ही जीता जा सकता है ,इसके अतिरिक्त विराट समय को ब्रह्माण्ड में कोई बाँध  ही नहीं पाया है ,साधना के सूत्र से सकारात्मक विश्वास  के सहारे निरंतर कार्यकरने का प्रयत्न आपको पूर्ण सफलता दे सकता है बस आवश्यकता स्वयं के प्रति ईमानदारी बनाये रखने की है, क्योकि इसके आभाव में आप स्वयं सफल भी होजाये तो ,जीवन के अंतिम छोर पर पूर्णानंद और शांति के पास कभी नहीं पहुँच पाएंगे, जो आदमी का चरम लक्ष्य भी हैऔर उसके बिना आदमी  की सारी उपलब्धियां शून्य वत  हो जाती है या  इंसान स्वयं अपने लिए एक ऐसा जाल बना  डालता है जिसमे उसका स्वयं का अस्तित्व उलझ जाता है सफलता का आशय सारी नकारात्मक सोच से स्वयं को मुक्त कर स्वयं को परमानंद तक लेजाना है ||


   निम्न  का प्रयोग अवश्य करें

  • जीवन कर्त्तव्य  साधना और सब्र का ही मायने है जितना संभव हो उसे अपने व्यवहार में लाते रहें ध्यान रहे सब्र से कर्त्तव्य की साधना जितनी सटीक होगी सफलता का पूर्ण रूप उतना ही बड़ा होगा | 
  • सकल्प के साथ विषम स्थितियों में भी अपना सब्र बनाये रखें क्योकि जितना गहरा सब्र  होगा आपकी सफलता के आयाम वैसे ही होंगे | 
  • स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने की चाह के लिए अपने आचरण और व्यवहार को सदैव परखते रहें किसी भी स्थिति में उसमे नकारात्मकता पैदा नहीं होने दें | 
  • निरंतर स्वयंको बड़ा  चेष्टा में दूसरों को हीन  सिद्ध न करें अन्यथा  स्वयं की नकारात्मकता में स्वतः वृद्धि होने लगेगी जो आपके विकास में बाधक होगी | 
  • विषम स्थितियों में यह अवश्य ध्यान रखा जाए कि एक अमोघ शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड  की नियंता है और वही सब समस्याओं को हल करेगी ,और यही विश्वास आपके जीवन को सफल बना देगा | 
  • समय की बहुमूल्यता को समझते हुए, अपने हर जीवन पल का प्रयोग उसप्रकार कीजिये जिसप्रकार तपते रेगिस्तान में जल की कुछ बूँदें आप समय को बहुमूल्य समझेंगे तो समय आपको बहुमूल्य बनादेगा | 
  • सकारात्मकता मूल मंत्र है जीवन का जिसके सहारे विश्वास ,कर्त्तव्य संकल्प  सब धनात्मक होकर आपको उन्नति की और लेजाने लगते है | 
  • सफलता का मतलब यह कदापि नहीं है की आप भौतिक रूप से साधन संपन्न होजाये या आप बहुत सारा धन -संपत्ति अर्जित करलें , सफलता का आशय यह है की आपकी आत्मा पूर्ण प्रसन्न होकर आपकी उपलब्धियों को सफल सिद्ध करें | 
  • अपने स्वयं को सदैव सत्य के सामने खड़ा रखें ,जीवन के किसीभी स्तर पर आपको बनावटी चरित्रों और परिवेश का सहारा नहीं लेना पड़े अन्यथा आप अपनी पहिचान खो डालेंगे | 
  • स्वयं को अपने अंदर से पहिचानने का प्रयत्न करें क्योकि जब तक आप स्वयं की शक्तियों से अपरचित रहेंगे तबतक आप केवल  शोषित होकर दुखी होते रहेंगे | 
  • स्वयं को एकाग्र कर शक्तियां पहिचानें और उनका श्रेष्ठ प्रयोग करें आपको जीवन बहुत सुलझा हुआ लगने लगेगा और सारी जटिलताएं ख़त्म हो जाएंगी | 
  • क्रोध से बुद्धि का नाश और बुद्धि नाश से समय की मृत्यु होने लगती है अतैव तुरंत क्षमा का व्यवहार सबसे उचित है जिससे आपके समय की जागृति आपके काम आ सके | 
  • तुलना और श्रेष्ठता की परीक्षा प्रकृति का विषय न होकर अहम् की  लड़ाई है और यही  अहम् आदमी में नकारात्मकता पैदा कर देता है |

Sunday, May 28, 2017

सिकंदर -साधु, जीवन का महान विजयी सन्देश Sikandar -Sadhu, the great victorious message of life

 सिकंदर -साधु, जीवन का  महान  विजयी सन्देश 
Sikandar -Sadhu, the great victorious message of life

 आख़िरी समय था विश्वविजयी सिकंदर का, कुछ लम्हे बाकी थे फिर भी जीवन से गहरा असंतोष था , अनेक अधूरे स्वप्न थे बदहवासी थी और सबकुछ फिसलता चला जा रहा था , जंगल का वातावरण और हजारों सैनिकों के बीच एक साधु निरंतर अपनत्व और दया भाव से उसे दवा देकर अपना  प्रयास कररहा था ,अचानक  दर्द की पराकाष्ठा पर भी सिकंदर मुस्कुरा दिया और उसने कहना चालू किया, हे साधु मैं समझ गया हूँ कि मेरा  अंतिम समय निकट है और जिज्ञासाएं बहुत है ,और बहुत कुछ बाकी  रहा जाता देख रहा हूँ ,जो मै  करना चाहता था ,ऐसा क्यों हुआ तुम बता सकते हो मैंने अनायास ही तुम्हारे चेहरे में अपने गुरु अरस्तु की झलक देखि है ,साधुजोर से मुस्कुराया और पूरी सहानुभूति और आँखों के आंसुओं को पोंछता हुआ बोला -----  सम्राट तेरे जीवन की गलतियां क्या थी जो मैं देख रहा हूँ वो सुन 
  •  पुत्र तेरा गुरु अरस्तु मुझे परसो ही स्वप्न में कह गया कि  मैं तेरी सेवा करने पहुंचू ,क्योकि तुझे यह अंतिम ज्ञान अगले जन्म में भटकने नहीं देगा ,क्योकि तेरे गुरु को यही शिकायत थी कि तूने अपने दुष्कर्म और मनमर्जी से किये हुए गलत काम ,कभी उन्हें बताये ही नहीं और उन्होंने सब जानते हुए भी तुझसे पूछा भी नहीं, वह स्वछंदता तेरे दुःख का कारण रहीं
  • पहली कमी यह थी कि तुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था , सब लोग तेरे अधीनस्थ थे और जो तुझे पसंद नहीं आया उसे तूने मृत्यु दंड देदिया ,परिणाम इससे तेरा आध्यात्मिक पथ शून्य होगया, फिर शांति कैसे पता तू|  | 
  • जीवन की शांति की खोज के लिए तुझे अपने मन की आवाज सुननी थी मगर तेरे आस पास इतना शोर था कि तू वो कभी सुन ही नहीं पाया |
  • हे सम्राट जीवन सम्पति ,धन, वैभव की आवश्यकता अवश्य चाहता है ,मगर उससे भी महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उस धन का स्त्रोत यदि ख़राब हुआ, तो तेरी शांति स्वयं नष्ट हो जायेगी और वह धन ही तेरे पतन का कारण बन जाएगा , और एक समय वो होगा जब तेरी अफरात दौलत भी तुझे एक पल की प्रसन्नता नहीं दे पाएगी | 
  • हे वीर श्रेष्ठ तूने हजारों युद्ध जीते ,तेरे शौर्य के सामने अनेको सम्राटों सर कटे पड़े थे मगर तू मन से किसी को नहीं जीत पाया शायद यह भी तेरे दुःख का कारण है| 
  • तेरे साथ लाखों लोगो का समूह था मगर विडम्बना यह थी कि उनमे तेरा अपना कोई था ही नहीं सब लोग तेरे भय और स्वार्थों के कारण तेरे साथ थे मगर तू नितांत अकेला बेचारा और सहानुभूत्ति का पात्र था | 
  • हे समय को बांधने की इच्छा रखने वाले श्रेष्ठ योद्धा तू, निरंतर भागता रहा , कुछ पाने की चाह में या जीतने की दौड़ में तू एक भिखारीकी तरह कुछ न कुछ पाने की कोशिश करता रहा पुत्र यह एक  महीन भेद तुझे समझने की आवश्यकता थी | | 
  • , पुत्र तू अपने गुरु अरस्तू से यह शिक्षा नहीं लेपाया कि दुनियां का सबसे बड़ा शहंशाह वह है ,जिसे किसी चीज की जरूरत ही नहीं है ,तुझे हर रोज नयी सेना के साथ नए आक्रमण करने थे जीतना था बहुत कुछ परिणाम तू खाली और अधूरा रह गया | और अनायास सब हार बैठा | 

हे पुरुष श्रेष्ठ मैं एक योगी हूँ यह जानता हूँ कि यदि तू रोगी होता तो मै तेरे रोग का इलाज करलेता मगर आज यह रोग तेरी मौत का बहाना बन कर आया है और इसका इलाज किसीके पास है ही नहीं ,तू समय के साथ बाद में करलूँगा के सिद्धांत पर चला ,जबकि संसार में पैदा होना ,मरना अवश्यम्भावी है मगर उसका समय कल ही तय करता है जिसका ज्ञान तुझे था ही नहीं | 



सिकदर के माथे की लकीरें शांत होने लगी थी और मन में एक शांत भाव प्रकट होने लगा उसने तुरंत साधु से प्रार्थना  कि  हे देव मेरी निम्न इच्छाएं  जरूर पूरी करना ,और मेरे गुरु को जरूर बता देना ,कि उनका शिष्य जीवन में न सही मृत्यु की बेला में उनका ज्ञान अवश्य धारण करके गया है ,साधु ने पूछा पुत्र कहो तो सिकंदर ने कहना चालू किया -------

  • हे साधु आप और आपके जैसे हजारों योग्य हकीमऔर जीवन को जान्ने वाले सब मेरी अर्थी के आगे आगे अंतिम विदा के वक्त चलना, जिससे लोग समझ सकें कि , योग्य से योग्य हकीम भी मनुष्य को जीवन दान नहीं दे सकते | आदमी को स्वयं जागृत और इस सत्य का स्मरण हर वक्त रहना चाहिए | 
  • मैंने अनंत दौलत के अम्बार लगाए वो भी सड़क के चारो और बिखेर देना ,क्योकि मै  यही चाहता हूँ कि, यह जीवन की सबसे शक्ति हीन ,व्यर्थ और बेईमानी का लालच भरा भाव है जो यह बता देता है की मै  कल किसी का था, आज तेरा हूँ ,और कल किसी और का होऊंगा | 
  • हे साधु मेरे हाथ अर्थी के बहार निकाल  कर यह जरूर बता देना, कि   जीवन की अनगिनत संपत्ति में मेरे पास वो दौलत है ही नहीं जिसे मै  ें इन हाथों में लेकर जा पाता | और जो दौलत मैंने कमाई है वो मेरे साथ जा नहीं सकती | 
  • हे ज्ञानी श्रेष्ठ मेरे साथ लाखो लोगो की भीड़ जरूर लेजाना जिससे लोग समझ पाए इन लाखों लोगो में मेरे को सही मायने में प्यार करने वाला कोई था ही नहीं , मै  एक आदमी भी पैदा नहीं कर सका ,जो मुझे प्यार करने वाला होता | 
  • हे द्विज श्रेष्ठ मै  जीवन के इस मर्म को समझ ही नहीं पाया, कि समय पर मेरा कोई वश नहीं है, मै  सोचता रहा थोड़ा और जीतूं तब करूँ ,  बस इसी दौड़ में मै सब हार बैठा | 
  •  और अंत में मैं  यही समझा कि जीवन का सच्चा संतोष अंतरात्मा की गहराइयों में मुझ में ही निहित था जबकि कभी मैंने उन्हें ंशारीरिक आपूर्तियों में ढूढ़ा तब और -और -और की व्याकुलता मिली ,धन में ढूढ़ा तो लालच ने शांति ख़त्म कर दी और जब संसार में ढूढ़ा तब केवल बनावटी  काल्पनिक और अर्थ हीन सम्बन्धो कासंसार दिखा जिसके शोषण का दुःख पाया मैंने |

Sunday, May 7, 2017

रिश्तों का चक्रव्हू labyrinth of relation


  रिश्तों का चक्रव्हू 
 labyrinth of relation

आदित्य का जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था ,एक बड़ी बहिन आरती थी ,माता- पिता- बाबा और दोनो भाई- बहिन , छोटा था  सा परिवार  था ,लम्बे समय के बाद परिवार में पुत्र का जन्म हुआ था अनेक प्रकार से बधाइयां मनाई जा रहीं थी और यही बधाइयां बनकर जीवन दिखने  भी लगा ,आदित्य को माता -पिता बहिन -बाबा असीमित प्यार के साथ रखते आये थे, कई बार उसकी गलत बात पर भी लड़ाइयां लड़ी  गई थी ,  शिकायतें आती थी कि  आज  इसको पीटा है ,कल उसका नंबर है,  आरती  कभी कहती समझाती , थी तो सारा घर उसपर चढ़ बैठता था एक भाई है जरा सा प्यार नहीं है ,इसे हमेशा पीछे पड़ी रहती है ,और अनेको उलाहने ,आरती  रोकर चुप होजाती थी और बार बार यही सोचती क्या मैं  उसे अच्छे भविष्य के लिए टोक भी नहीं सकती ,माता पिता जानते थे कि आरती  सही डांट  रही है मगर बहार की शिकायतों का गुस्सा सारा बेचारी आरती पर ही निकल जाता था ,पिता के प्रयासों से आठवीं पास होते ही उसे बहुत मंहगे स्कूल में भेजना   तय होगया , सारे घर में कोहराम मच गया, कहीं नहीं जाएगा लड़का , बाबा ने साफ कह दिया कि लड़के को वहां भेज कर क्या कलेक्टर बना लोगे , पिता ने  भी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए स्कूल में बात की थी मंत्री जी से कहलवाया था , बड़ा मंहगा स्कूल था चलो घर रहने दो ,इसी प्रकार कॉलेज जाने तक ३ बार ऐसे अवसर आये जहाँ आदित्य को बहार , अच्छी शिक्षा के अवसर मिले ,मगर कभी आदित्य जिद कर गया ,कभी उसकी माँ और कभी पिताजी , आरती की सुनता ही कौन था ,अब हमारा आदित्य कॉलेज में तीसरे वर्ष में   इंजीनियरिंग पढ़ रहा था  ५ विषयों में बैक मेँ  साथ , आज आदित्य आदित्य गुरु होगया था कॉलेज में शिक्षक , सहपाठी सब डरते थे उसका नाम ही आदित्य गुरु के नाम से प्रख्यात हो गया था , पिताजी माताजी हमेशा यही कहते थे टॉप किया है हमारे आदित्य ने ,अमेरिका वाले मामा ने कहा अच्छे से पढ़ाई करलो बेटा , फिर यहीं से एम्-एस  करा दूंगा , पिताजी और आदित्य ने हजारों गाली दी थीउन्हें , समझते क्या है , खुद भी तो यही पढ़े  थे ,जरा पैसा आगया तो लाड़साहब बन रहें है ,आरती अकेली थी जो यह जानती थी कि हर बात पर आदित्य का फेवर लेकर उसकी जिंदगी ख़राब करने में ये सब लोग बराबर के भागी दार है मगर आदित्य सबसे ज्यादा उससे ही चिडता था बोलना ही बंद कर दिया था उससे उसने बड़ा भारी दुःख था इस बात का आरती को |

आरती खुद इंजीनियरिंग करके जॉब में लग गई उसकी शशांक से शादी भी हो गई थी ,मगर यदाकदा भेंट होजाने पर भी आदित्य से उसकी कम ही बात होती थी ,परन्तु उसे उसकी गलती बताने वाला था ही कौन ,माँ बहुधा कहती थी की सारी संपत्ति तेरी ही तो है तुझे क्या करना ,चतुर्थ वर्ष इंजीनियरिंग के रिजल्ट में आदियत्य फेल होगया, देर रात में भारी नशे की हालत में ,उसके दोस्त छोड़ गए थे उसे ,वैसे भी उसे इन पार्टियों की तो पुरानी आदत थी ही  और ऐसे ही जीवन चलने लगा ,एक रात को पिता जी को लकवा लगा जबरदस्त  अटैक था अस्पताल लेजाया गया मगर फिर पिताजी बिस्तर से उठे ही नहीं ,आदित्य ने संभाला कारोबार नौकरों और कर्मचारियों के सहारे चलरहासारा कारोबार,कारोबार  का पैसा शेयर मार्किट  लगा कर एक बार में करोड़ पति बनने की चाह का शिकार होगयाथा हमारा ाआदित्य और एक ही रात में  कारोबार और संपत्ति सब ख़त्म हो गई ,रह गया एक आलीशान मकान ,कुछ जमीने जायदाद , सारे  रिश्ते दारों का जमावड़ा घर बन गया था , पिताजी ने जिस जिस के नाम पर सम्पत्तियाँ ली थी वो चाचा , मामा , फूफा सब मुकर गए थे वोसब रिश्तेदार जो घर पर डेरा जमाये रहते थे ,वो ये अवश्य कह रहे थे कि  बुरा समय है आपका ये मकान बेचो तो हमें दे देना घर का घर में रह जाएगा |

 अकेला कमरे में बंद आदित्य ,सारे लोग उससे उधार माँगने में लगे हुए थे , और पहली बार अंदर से भयभीत

अचानक उसके सामने जीवन का हर  पल  गुजरने लगा, माता -पिता -बाबा का और उसके स्वार्थी दोस्तों का सत्यानाशी प्रेम जिसने आज एक सुहृद बच्चे को एक अपराधी में बदल डाला था -जीवनके हरेक पल में माँ पिता द्वारा हर गलत बात पर उसका पक्ष लेना, ऐशो आराम के लिए हर सुविधा दिलवा कर कभी न टोकना नहीं ,आज उसे तेज छुरी सा काट रहा था ,उसे  याद आया कई बार बहिन ने उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए पिटाई खाई ,यह सब सोचते सोचते मन ने लाख बार यही कहा की मेँ माँ पापा और बाबा के साथ सारे स्वार्थ दोस्तों को कभी माफ़ नहीं करूंगा ,

अचानक आरती ने कमरे की बत्ती जला दी सब्र  का बाँध टूट गया वह जोर जोर से रोने लगा क्योकि वह जानता था अकेली यही बहिन है जिसने मुझे बचाने का हर प्रयत्न किया  मगर ंपूरे घर ने इसे ही गलत ठहरा दिया ,आरती भी भाई की दशा पर रोती रही और उसे यह समझाती रही कि जीवन की यही वास्तविकता है उसका सामना हम सब साथ करेंगे ही | 

एक बहेलिये की तरह जीवन में रिश्ते अपना दाना बिछा कर  बैठे रहते है , उनको अपने सुख वैभव और जरूरतों की इतनी चिंता होती है कि, वे इसके बीच किसी को भी बर्दाश्त नहीं करपाते , शोषण , ब्लेकमेलिंग और बेतहाशा प्यार का पर्दा डाल कर , वो केवल अपने निहित स्वार्थ पूरे करने की फिराक में जाने कितनी प्रतीक्षा करना जानते है ,यहाँ न कोई भाव होता है, न कोई भावना बस मौका और स्वार्थ इनके सहारे चल पाता है ,इनका कारोबार, इनके हथियार इतने घातक होते है जिनसे केवल एक जीत ही नहीं ,वरन  जीवन की सारी गतिशीलता नष्ट भ्रष्ट होजाती है , तात्कालिक तौर  पर लगता है कि ,यह कोई ऐसा सत्य है जो झूठा साबित नहीं होगा, मगर समय की गति शीलता के साथ यह स्पष्ट  होजाता है कि ,यह भी एक जंगली क़ानून का हिस्सा है ,यहाँ सम्बन्ध के नाम पर धोखा फरेब और शोषण ही परोसा जाता रहा है ,और हम सब कमोवेश उसके शिकार भी हुए है, जिसके वर्णन का सामर्थ्य हम आज तक नहीं जुटा पाए है |

यदि जीवन में हम बोर हो रहे है ,और हर जगह हमे कमी लग रही है, तो हम एक भीड़ का  हिस्सा है ,यह वाक्यांश इतना सटीक और स्पष्ट है  कि हमारी ख़ुशी हमारा सकूंन भौतिक संसाधनों और लोगों के समूह पर टिका है ,क्योकि हमे उनके शोषण की आदत हो चुकी है ,झूठे किस्से कहानी  और झूठे परिवेश के आवरण ओढ़े हम सब एक नकली जिंदगी के किरदार निभा रहे है ,जहाँ हमारा हसना , रोना , प्रसन्नता दुःख और जश्न सब नकली ही है,जन्म दिन , मृत्यु दिन ,और तमाम ऐसे जश्न जो दिनों पर मनाये जाते है ,हमसे जुड़े नहीं है मगर हम अपनी दबी पीसी इच्छाओं को जाग्रत करने का माध्यम बना डालते है, उन्हें जबकि अंतिम रूप से हमे यह मालूम हो जाता है ये सब व्यर्थ है| और इन सुख- दुखों से हम स्वयं भी दिखावों के लिए ही प्रभावित है |




 रिश्तों के मृग जाल  के बंधनों का प्रश्न इतना जटिल और और कुटिल था ,जिसके हल के लिए महावतार कृष्ण को गीता का सृजन करना पड़ा , रिश्तों की वास्तविकताओं  बंधन इतने मजबूत होते है ,जहाँ से आज़ाद होना असंभव ही माना जाता है ,शत्रु की हर चाल को वीर पुरुष पूरी वीरता  जीत लेता है , मगर प्रेम के महा प्रशाद में विष समर्पित करने वाले  रिश्तों पर कभी प्रश्न वाचक नहीं बनना चाहता | रिश्तों के महा संग्राम में कृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया  कि पुत्र अनीति , शोषण , अन्याय और डाकुओं की मानसिकता वाले रिश्ते, जब धर्म से विमुख होकर आपके शारीरिक मानसिक और भावनात्मक संहार के लिए जब खड़े होंगे, तो आपमें उनका प्रतिउत्तर देने का साहस भी नहीं होगा ,क्योकि उनका क्षद्म वेश इतना घातक है कि, वे तुम्हे अपने आपको समझने  ही नहीं देंगे , धर्म का एक मात्र सत्य यह है कि तुम्हे किसी भी सहारे की आवश्यकता न हो, गुरु उद्धत बुद्धि के सहारे तुम स्वयं के ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट करो और वहीँ से अपने जीवन के उद्देश्यों को पूर्ण करो | रिश्तों  चिंतन तुम्हे कमजोर और कायर बना देता है इसलिए सबके प्रति दया का भाव बनाते हुए स्वयं को जल में रहते हुए भी जल से निर्लिप्त रखों |



अति मोह और अँधा प्रेम केवल महा नाश की राह पर ही लेजा सकता है , जिसमे त्याग , वैराग्य और परमार्थ का भाव होता ही नहीं है, वह तो रिश्तों को केवल संसाधनों की तरह मांग और पूर्ती बना डालता है ,जबकि अध्यात्म , सफलता और जीवन की वास्तविकता जानती है कि जीवन में वाणिज्य का कोई मोल ही नहीं है , और रिश्तों को इस तराजू में तोलने वाला इंसान कैसे अपने गंतव्य तक पहुंचेगा यह प्रश्न चिन्ह है  , फिर रिश्तों के इस वाणिज्यिक व्यवहार को आप जीवन का प्रेम , समर्पण और निश्छल जैसे शब्दों से कैसे पुकार सकेंगे ,संसार में अकेला मानव ,जीवन की हर दौड़ में समय और संसार में अजेय रहा है, वही इतिहास पुरुष बना है ,जिनके साथ वाणिज्यिक रिश्तों के हुजूम चले है वे ,अपनी मंजिल तक कभी पहुँच है नहीं पाए, उन्हें बेमोल जीवन खोना पड़ा है



रिश्तों ने आदमी को केवल कमजोर दर कमजोर सिद्ध किया है, हम जिस समाज से कुछ लेने की कामना करते है वो पहले से ही हमारी ताक में बैठा हमारा शोषण कर लेता है ,हम अपने लक्ष्य से दूर केवल उन अनसुलझे संबंधों में लिपटे, अपना समय व्यर्थ ही निकाल देते है और जीवन हमे असफल सिद्ध करदेता है , जब भी हम सफलता के उत्कर्ष पर खड़े दिखे एक बड़ा हुजूम हमे दिखाई देने लगा किसीने कसमें दी किसी ने प्यार का वास्ता दिया किसीने अपने रिश्तों की दुहाई दी तो कोई रोकर क्रोधित होकर या आवेशित होकर अपने स्वार्थों के अनुरूप हमारा प्रयोग करने की कोशिश करता रहा जबकि उस्समय हम जरा सी भावनाओं में बहे बस वहीँ हमारा भविष्य , नष्ट हो जाता है और रिश्ते अपने उद्देश्य में सफल हो जाते है |


जीवन का एक मात्र सूत्र था एकला चलो रे ----सिकंदर -----अकबर ---- अशोक ------हिटलर  ------मुसोलनी  लाखों की फौजे लेकर चलते हुए जीवन को नापने की लाख कोशिशों के बाद, अपनी ऑटो बायोग्राफी में लिख गए  कि जीवन में वे कुछ कर नहीं पाए,  जबकि गांधी नेल्सन मंडेला और ऐसे ही हजारों युग प्रवर्तक अकेले चलते हुए भी श्रेष्ठ सिद्ध होकर इस दुनियां से विदा हुए ,लाखो की भीड़ में चलने वालों का दिमाग भी लाखो तरह के होते  है, परिणाम सफलताके लिए लक्ष्य की क्रियान्वयनता भी लाखो तरह के भय विषाद और वैमनस्यता लेकर चल रही होती है ,  आपके उद्देश्य की चिंता कोई कर ही नहीं रहा होता उनके अपने अपने स्वार्थ स्वयं आगे आने लगते है फिर जीवन में सफलता कैसी यही समझ से परे होजाता है , जीवन का एकमात्र यही सत्य है कि रिश्तों की मृग मरीचिका से बाहर आकर अपने शाश्वत स्वरूपको पहिचानिये यहाँ आपको एक अनंत कोटि शक्ति का पुंज स्वयं में ही दृष्टि गत होने लगेगा  यहाँ रिश्तों के भंवर नहीं होंगे और न ही  आप किसी भीड़ के छोटे से हिस्सेहोंगे  , यहीं से जीवन अपनी गति पहिचान कर आपको पूर्ण सफल सिद्ध करदेगा |


निम्न का प्रयोग अवश्य कीजिये


  • रिश्तों की आवश्यकता समाज को है, मगर अपने जीवन के विकास पथ पर उन्हें सहारा बनाकर चलने का प्रयत्न कभी न करें अन्यथा सफलता से पूर्व  ही आपका लक्ष्य भ्रमित हो जाएगा | 
  • जीवन में अपने उद्देश्य निश्चित करें उसके बाद बिना रुके उन्हें पूरा करने के लिए क्रिया शील हो जाए बीच में किसी भी कारण अपने क्रियान्वयन को न रोकें | 
  • घर परिवार समाज के रिश्तों के साथ सतर्कता बरतें ,एक सीमा का निर्माण करें और उन आदर्शों का पालन करें जो आपने अपने लिए बनाये है | 
  • जीवन में अपने अस्तित्व के क्रियान्वयन की चाभी आप किसी को नहीं सौपें , अन्यथा आपके जीवन से अधिक सामने वाला अपने स्वार्थों की आपूर्ति के लिए आपका उपयोग करने लगेगा | 
  • सबके साथ सामान सुखद एवं श्रेष्ठ व्यवहार करें परन्तु किसी भी स्थिति में अपने आदर्शों से समझौता नहीं करें अन्यथा आपके उद्देश्य और सफलता दोनों ही व्यर्थ हो जाएंगे | 
  •  अपनी गलती के लिए तुरंत माफ़ी मांगे एवं फिर गलती न करने का संकल्प लें क्योकि यदि आप गलतियां करके संकल्प नहीं कर पाए तो आपका और नकारात्मक जीवन होजायेगा | 
  • रिश्तों के बड़े संपर्कों से समय की बचत अवश्य  कीजिये अन्यथा आपको सफलता के लिए समय ही नहीं मिल पायेगा क्योकि जीवन में समय का नाम ही काल है | 
  • यह आवश्यक रूप में ध्यान रखें कि सामाजिक , पारवारिक और दूसरों की देखा देखी आप अपना प्रयोग न होने दे क्योकि आपको अपने आदर्शों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए | 
  • एकांत में अपने आपका चिंतन करना सीखें यहीं से आपको अपनी आतंरिक शक्तियों का बोध हो सकता जिन लोगो को आप शक्ति संपन्न  समझते है वे केवल अपने स्वार्थों के साथ ही वीर है , आप में अपरमित शक्ति है | 
  • बिना बात की प्रसंशा और  वालों से स्वयं को बचाकर  रखिये क्योकि ये आपकी चेतना शक्ति की सकारात्मकता नष्ट कर देते है |

Sunday, April 23, 2017

सफलता से एक कदम पहले one step before success

सफलता से एक कदम पहले 
one step before success 

बचपन से बाबा ने नितिन को यही समझाया था  कि  पुत्र पूरी ताकत से ब्रह्माण्ड से जो भी मांगोगे और उसके लिए खुद को क्रियान्वित करदोगे,  तो दुनिया की कोई मांग ऐसी नहीं है ,जो आप प्राप्त न करपायें ,आप जीवन के चरम लक्ष्य सफलताएं ,सहज ही प्राप्त कर सकते है ,आवश्यकता इस बात की है कि आप निरंतर सार्थक प्रयास करते रहे और सोते जागते अपने लक्ष्य को दोहराते रहें | 
गांव के एक छोटे स्कूल से पास होने के बाद शहर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था हमारा नितिन  अंतिम वर्ष था इंजीनियरिंग का बड़ी बेज्जती झेली थी हमारे नितिन ने विश्वविद्यालयों में बड़े दोस्तों के समूह रोज की पार्टियां और होटलबाजी ,आधे अधूरे नशे में लड़के लड़कियों की टोली ,क्या क्या नामों से बुलाते थे उसे , फूहड़ गंवार देहाती लल्ला , और मामू  ये सब सुनते सुनते क्षुब्ध होगया था मन ,यदाकदा भटकता रोता , और इन दोस्तों के बाह्य दिखावे से  प्रभावित जरूर होता था , ऐसा मेँ  क्यों नहीं हो पाया, बाबा हमेशा कहते बेटा तू क्यों करता है ,इनसे अपनी तुलना, एक दिन सबको मालूम पढ  जायेगा  कि , तू सबसे अच्छा है ,और थोड़ा बहुत बोलकर वह  बाबा की बात पर विशवास कर ही लेता था | 

इंजीनियरिंग की अंतिम परीक्षा में नितिन के ८७%अंक आये, टॉप किया था उसने, परन्तु मन में यहीं  फाँस बनी रहती थी कि   मै स्मार्ट क्यों नहीं हूँ ,शायद मै ही ऐसा लगता होऊंगा, जैसा ये सब बोलते है, बाबा के निरंतर प्रयास प्रोत्साहन और प्रेरणाओं से नितिन ने  आई ए एस परीक्षा की आरभिक परीक्षा में संभाग भर में अकेला स्थान पाया , जो लोग कल तक नितिन को फूहड़ -देहाती- गंवार- मामू बोलते रहे थे ,उन्हें समझ नहीं आरहा था वो कैसा व्यवहार करें ,कई तथाकथित सहपाठियों ने एक पार्टी रखी ,लड़के -लड़कियां मना  कर नितिन को  भी ले  गए पार्टी में , नितिन गौरवान्वित सा उन लोगो को देख रहा था ,जो कल तक उपहास बना रहे थे,आज कुछ ज्यादा  लिपट चिपट रहे है , आज उसे बड़ा सकूं मिला, उन स्मार्ट लड़के लड़कियों द्वारा स्वागत पाते हुए ,सबको यह वादा करता हुआ कि  समय समय पर  आपको सहयोग करता रहूँगा ,पार्टी ख़त्म हुई | नितिन को बाबा की बातया याद अवश्य आई ,एक दिन तुम ही श्रेष्ठ साबित होंगे | बाबा ने ठीक  ही तो कहा था | 


आगे की परीक्षा की तैयारी बहुत जोरो शोरो से आरम्भ हो चुकी थी, अब क्या था एक बार और हिम्मत दिखाई और पार हो जाऊँगा मै,  परन्तु एक बड़ा परिवर्तन नितिन में आया था कि ,उसे यदा कदा  उन   कक्षा के सह पाठियों का ध्यान आ जाता था और मन कहता था,   तू ही सर्व श्रेष्ठ है, कैसा मजाक उड़ाया था मेरा, अब सब ठीक होगये  ,बधाई देने वालों का ताँता लगा रहता था ,दोस्त भी उसकी प्रसंशा  करने आते रहते थे ,बाबा कभी दबे स्वर में कहते बेटा समय का ध्यान रखो, वो बड़ी उपहास भरी नजर से देख कर बाबा को कह्देता ,देखूँगा मालूम है मुझे क्या करना है ,घरवालों पर यदाकदा चिल्ला देता था ,कि  दिखता नहीं है ,कि  मुझे काम है ,मन कहता मै सर्वश्रेष्ठ हूँ ,इन्हे नहीं मालूम की कितना काम करना होता है ,श्रेष्ठ बनने के लिए ,बाबा उसके इस व्यवहार को देख कर कुछ कहते नहीं थे मगर दुखी हो जाते थे मन ही मन | 

 परिवर्तन का समय इतना आहिस्ता ,धीरे- धीरे निकलता है ,वह मालूम ही नहीं पड़ने देता कि  आपपर उसका प्रभाव नकारात्मक हो रहा है, या सकारात्मक ,वह तो आपके जरा से लापरवाह होने पर, सबकुछ छीनने का साहस रखता है|  नितिन पूर्ण आश्वस्त था ,कि अब  आगे के लिए उसे क्या क्या करना है ,बहुत उत्साहित -प्रसन्न और लापरवाह सा| 

रिजल्ट शीट में कहीं भी नितिन का नाम  नहीं था ,कई साइड्स पर जा कर देखा कहीं नहींथा नाम , बदहवासी और बेहाल सा नितिन सब जगह खोज खोज कर थक गया था ,फोन पर फोन की घंटियां----- नितिन ने फोन बंद किया ,और एक अँधेरे कमरे में जाकर लेट गया ,जोर से चक्कर  आरहे थे उसे , यह समझ नहीं आरहा था क्या हुआ यह ,हाल में गुजरा हुआ एक एक पल उसके सामने सिनेमा की भांति गुजरने लगा , सारा का सारा अव्यवस्थित , लुटा हुआ , और अस्त व्यस्त सा लग रहा था उसे, हाल में बिताया हुआ अतीत ,दोस्तों के स्वार्थी व्यवहार -समय की बर्बादी ,घरवालों से उसका बेरुखा व्यवहार , सब  घूम गया था उसके सामने ,बाबा के द्वारा बड़ी हिम्मत करके बोले गए शब्द आज भी घूम रहे थे उसके कानों में , में  बेटा  समय का ध्यान रखो और उसका रूखा सा जबाब और बाबा का मायूस चेहरा ,न जाने कब तक रोता  रहा था वो ,अचानक बाबा ने कमरे की लाइट जलाई, भीगा चेहरा भारी व्यग्रता देख कर वे धीरे धीरे उसके सिर पर हाथ फेरने लगे और उन्होंने कहना आरम्भ किया -----

पुत्र जीवन का यह अध्याय बहुत आवश्यक  ही था, बेटा जिसतरह ठंडी ,भारी वायु  की तरफ, खाली और गर्म हवा पूरी तीव्रता से उसपर एक ही क्षण में आक्रमण  करके उससे सारी नमी और गरिमा या भारी पन ख़त्म करके उसे पल भर में उसे रिक्त बना कर अस्तित्व हीं कर देती है ,वैसे ही जब समाज को आपके भारीपन का एहसास होने लगता है, तो उसकी प्राकृतिक क्रियान्वयनता आपके विचारों एकाग्रता और उद्देश्य को नष्ट भ्रष्ट करने हेतु क्रिया शील होजाती है, आपको मालूम ही नहीं पड़ पाता तबतक, आप में शारीरिक मानसिक विकृतियां पैदा हो गई होती है ,आपके अहंकार के सहारे समाज की नकारात्मकता आप में प्रवेश कर जाती है ,परिणाम हम अपने उद्देश्य से पथ भ्रष्ट होकर अपने आपसे ही मति भ्रम की स्थिति पैदा कर बैठते है ,सार यह कि हमारा लक्ष्य और हमारी सफलता के उच्च शिखर हमे प्राप्त होते होते ओझल होजातेहै , हमारी  स्थिति उस राजा की तरह होती है ,जिसका भव्य राज तिलक होरहा होता है ,सारे शहर में उत्सव का माहौल था और मुकट  पहनकर राज तिलक होते ही यह  अहंकार में भर गया ,मुझसे बड़ा संसार में कोई है ही कहा ,और नींद खुल गई  सर्वत्र  शून्य था उसके अतिरिक्त कुछ बचा ही नहीं था | जीवन इसी तरह एक लम्हे में सबकुछ दे सकता है और एक पल में सबकुछ छीन लेता है | पुत्र यह सब नव जीवन की शुरुआत है तुम्हारी ,एक बार उठो और फिर जुट जाओ देखो सफलता तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कररही है  | 

नितिन की समझ में आगया था कि  उसने  अतीत में क्या गलतियां की थी, क्यों उसने अपने दोस्तों से अपनी तुलना की थी ,क्यों बाबा सहज और समय के अनुसार स्वयं को एकाग्र करने को कह रहे थे , और क्यों उसे अपनी आधी अधूरी जीत का इतना उन्माद या अहंकार हुआ ,उसने एक बार परमपिता परमात्मा से मन ही मन क्षमा मांगी और बाबा के पाँव छूकर अपनी टेबल पर पंहुचा और अपना स्टडी लेम्प जला दिया, बाबा पूर्ण आश्वस्त होकर प्रसन्न मुद्रा में अपने कमरे की और बढ़ गए उन्हें मालूम था की अब जीवन नितिन को कभी हरा नहीं पायेगा | 

सफलता के पूर्व का छण इतना शक्तिशाली और सूक्ष्मानिवेशी होता है ,जिसमे शरीर- मन -बुद्धि की तीव्रता कई गुनी अधिक हो जाती है , वही प्रसंशा का अतिरेक , अहंकार का प्रस्फुटन , स्वयं का गलत आकलन , और दूसरों से स्वयं की तुलना जैसे नकारात्मक भाव स्वतः पैदा होजाते है, ऐसे में लक्ष्य सिद्धि हेतु अडिग एकाग्रता की आवश्यकता होती है ,जबकि उसको भ्रमित करने वाले कारक बहुत अधिक होते है ,दूसरी और सर्वश्रेष्ठ होने का भ्रम विष बन कर समाज परिवार की उपेक्षा करने लगता है ,शारीरिक -मानसिक और आंतरिक उद्वेग लक्ष्य से भटकाने लगते है ,वे नकारात्मक मांग बन जाते है, फिर सबकुछ शांत लक्ष्य उद्देश्य और सफलता सब अदृश्य उस पानी - साबुन के बुलबुले की तरह जिससे अभी कोई अबोध खेलरहथा अचानक वो गायब होगया, बालक हतप्रभ है कहा गया मेरा रंग बिरंगा गेंद | 


आप यही समझिये कि बहुत बड़े काले  केनवास पर, एक छोटा सा सफ़ेद बिंदु। यही लक्ष्य था और अनंत तक फैली कालिमा या नकारात्मकता का साम्राज्य था ,अब यदि पूर्ण एकाग्र भाव से स्वांसों को स्तब्ध कर अपना लक्ष्य देखा पाए ,तब ही आप सफल हो सकते है ,अन्यथा नैपथ्य में फैला विशाल अंधकार ही, नकारात्मकता बनकर खड़ा हो जाता है, एक मार्ग यह भी है की लक्ष्य के साथ पूरे केनवास को ही पूरा नाप डालो ,वहां की हर असफलता नैराश्य और न उम्मीदी को पूरा समझ कर ,उसपर नजरें गड़ा दो, अंधकार की कालिमा सकारात्मकता के सहारे अचानक ही सूर्य के प्रचंड वेग की रोशनी की तरह सफलता विजय और उत्साह बन करखड़ी हो जायेगी, ये १००%सफलता होगी जहाँ तुलना- नकारात्मकता के भाव होंगे ही नहीं | 

अर्ध सफलता के साथ सफलता के पहले वाला समय बहुत ही चिनौती पूर्ण होता है ,यह समय अति शक्ति शाली  संवेदनशील और निर्णायक होता है,यह आपको अधिकाँश सफलता मन बुद्धि और बाह्य वातावरण से प्राप्त हो चुकी होती है ,परिणाम जीत  काउन्माद ,आप में एक खोखला अहंकार पैदा कर देता है ,मन बुद्धि का भाव अपनी जीत से अधिक दूसरों की जीत के भाव की तुलना करने लगता है ,समाज -परिवार और वातावरण का आकलन प्रभाव सब नकारात्मक होने लगता है ,अंतिम जीत के लिए जो  मानसिकता होनी चाहिए होती है, वह तीव्र वेग ,शक्ति ,लगन सब गतिहीन होने लगती है ,क्योकि एक मात्र स्वयं का विजय उद्देश्य अपने लक्ष्य से भटकजाता है | 


बहुत बारीक अंतर होता है गर्व और घमंड में,  दोनों का उद्भव केंद्र मन ही पैदा करता है, मन मष्तिष्क में दबी पिसी भावनाएं सदैव अपनी आपूर्तियों की मांग करती है और कुछ हम समाज कोदेख कर समझ कर झूठी प्रसशा के लिए अपने में पैदा कर लेते है ,परिणाम वे नकारात्मक होते हुए भी ,हमे उस समय थोड़ा संतोष अवश्य देसकते है , मगर उसके दूरगामी परिणाम नकारात्मक ही होते है | 
लक्ष्य और जीवन के सच्चे उद्देश्यों के साथ कुछ चल ही कहा पाता है ,आत्मबल जब स्वयं पर गर्व के रूप में चिंतन शील होता है ,तब उसमे दूसरों से तुलना का भाव होता ही नहीं है ,उसमें आकाश की ऊंचाइयां ,सूर्य का तीव्र प्रकाश, सन्निहित होता है ,जबकि घमंड का उद्भव नकारात्मक भाव से उत्पन्न होता है ,जिसमें स्वयं का सर्वांगीण विनाश स्वयं पनपने लगता है ,गर्व पोषण करता है और घमंड स्वयं को समूल नष्ट कर देता है | 

यदि जीत के अंतिम पलों में हम लापरवाह हुए तो हमारे क्रियान्वयन में भटकन के हजारों आयाम खड़े होने लगते है, हम क्या अच्छा लग रहा है ,क्या नहीं ,इसकी फिक्र करने लगते है ,हमारे पास बहानों की लिस्ट आजाती है , आधी अधूरी जीत के अहंकार से उपजी शारीरिक मानसिक नकारत्मकताये समय विशेष में हमे अच्छी लगने लगती है , पूर्व के लक्ष्य मानदंड हमें धूमिल होते दिखते है ,जीवन अपने अनुसार परिभाषाएं गढ़ने लगता है ,वे सारी  बातें जो जीवन के उत्कर्ष के लिए जरूरी थी महत्व हीन दिखाई देने लगती है ,अपने ही लक्ष्यों  में हम हजारों कमियां निकालकर खड़े होजाते है, उन सब लोगो का सामना करने से हम बचने लगते है ,जो हमे अपने लक्ष्य के सामने खड़ा करें ,फिर सफलता संतोष और जीवन की उपलब्धियां अपने अर्थ खोने लगती है, और  बचता है उपलब्धियों से समायोजन समय से समायोजन और कल से समायोजन जो हमारा लक्ष्य नहीं था | 


निम्न का  प्रयोग  ध्यान रखिये
  • जीवन के क्रियान्वयन का सूत्र केवल यही रहे कि, सफलता से  पूर्व  कुछ नहीं , यही से जीवन के लक्ष्य की स्पष्टता सिद्ध हो सकती है | 
  • समय के साथ आरहे परिवर्तनों को बहुत बारीकी से अध्ययन करें क्योकि कई परिवर्तन आज सही  हो सकते है मगर उन्ही  अपनाये जो दीर्घकालीन एवं आपके  अनुकूल हों | 
  • नकारात्मक  विचारों पर  ध्यान न दें ,क्योकि ये  विचार आपको अपने सफलता के लक्ष्य से दूर लेजा सकते है ,और यह सत्य है की आपकी वैचारिकता से ही आप में सकारात्मकता और नकारात्मकता का जन्म होता है | 
  • नकारात्मक विचारो और सकारात्मक विचारों पर पैनी नजर बनाये रखे और उनपर विजय हेतु एक कार्यकारी योजना अवश्य बनायें | 
  • निरंतर अपनी कमियों और गुणों के सम्बन्ध में अपने आदर्श लोगो से सलाह लेते रहे ,क्योकि परिवर्तनों का मार्ग सकारात्मक रहना ही आपकी विजय का प्रथम प्रतीक है | 
  •  अधूरी विजय पर आपमें पैदा होने वाला अहंकार , प्रमाद और व्यवहार में नकारात्मकता न आजाये नहीं तो सफलता स्वयं व्यर्थ सिद्ध हो जायेगी | 
  • झूठ फरेब अहंकार और अपने आपसे छलावा न करें सत्य हमेशा शक्तिशाली ही रहेगा ,जबकि झूठ बार बार आपको कमजोर और कमजोर बनता जाएगा | 
  • जिन लोगो के बारे में आपको झूठ फरेब और असत्य का सहारा लेना पड़े, उन्हें तुरंत छोड़ने में आपका हित होता है, अन्यथा आप अपने जीवन के चरम तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे | 
  • क्रियान्वयन की निरंतरता आपको लक्ष्य के प्रति जागरूक रखती है, यदि आप पूर्ण गतिशील भाव से क्रिया को निरंतरता देते रहे तो, आप निश्चिततः सफल सिद्ध  होंगे | 
  • व्यक्ति वातावरण परिस्थिति स्थिर नहीं हो सकती, परन्तु आपका लक्ष्य क्रियान्वयन और एकाग्रता वैसी ही बनी रहनी चाहिए, जो आपकी विजय के लिए जरूरी हो | 
  • सफलता के लिए निरंतर बढ़ते हुए क्रम में प्रयास किये जाने चाहिए ,प्राथमिक स्तर पर सामान्य ,दूसरे स्तर पर तीव्र और अंतिम स्तर पर पूरी तीव्रता से प्रयास करें ,जितना आगे बढ़ें लक्ष्य के प्रति उतनी सावधानी और लेलें यहीं से आपको निश्चित सफलता मिलेगी |

Tuesday, March 14, 2017

सर्वोत्कृष्ट एवं निकृष्ट (superior and inferior )

सर्वोत्कृष्ट एवं निकृष्ट  (superior and inferior )

हितेश  के जन्म पर हजारों डिब्बे मिठाई बाँट  दियेगये थे ,सारे नगर से बधाई  आने लगी थी ,सारे  घर हर्षोउल्लास से भर गया था ,गोरा चिट्टा गोल मटोल सुन्दर बच्चा हुआ था सेठ हजारी लाल के ,यह दूसरा पुत्र था उनके ,नगर सेठ  की पदवी थी उन पर और फिर इन के  परिवारों में लड़का  पैदा होने की ठसक ही बहुत थी | उसके ४ वर्ष बाद हुई थी हिमानी घर में  कोई ज्यादा उत्साह था नहीं था , बस एक रस्म अदायगी और कहना यह कि  अब भाई को राखी बांधने वाला भी तो होना चाहिए ,  समय की गति और चक्र का पहिया तेजी से  घूम रहा था , हिमानी  अब स्कूल पास करके कालेज में पहुँच गयी थी बड़े भाइयों में एक तो हायर सेकेंडरी के बाद पढ़ ही नहीं पाया , दूसरे ने जैसे तैसे  डॉक्टर बनने के चक्कर में बीएससी थर्ड क्लास से पास अवश्य कर ली थी | माता पिता और सारा परिवार बस यही समझाता था हिमानी को  कि पराये घर जाना है चौका चूल्हा सीख ले , छोटी हिमानी  ने गजब का  सब्र  पाया था वो जानती थी कि घर के नए कपडे भाइयों के लिए होते है , अच्छा खाना, तफरीह , और ऐशो-आराम पर बेतहाशा पैसे उड़ाना भाइयों का ही काम है ,उसे तो केवल जो मिलजाए उसमे सब्र करना चाहिए या रोकर अपने आपको समझा लेना चाहिए , महा पुरषों की जीवनी और जीवन में सत्य की खोज ने उसे एक सूत्र जरूर दे दिया था कि कठिन परिश्रम और सकारात्मक  विचार उसे उस गंतव्य तक अवश्य लेजा सकते है जिसकी चाह आदमी करता है |

पिता भाइयों को अपने स्टैण्डर्ड बनाये रखने के लिए १०-१५-हजार रु प्रति माह देते थे ,फिर भी  वो कम ही पड़जाते थे, कई बार क्लेश हुआ था इस बात पर, घर में माँ और हिमानी सहमे से बैठे रहते थे , भाई पिताजी से खूब लड़ते थे और पिता जी बहुत कुछ चिल्ला कर , रोकर उनकी जिद पूरी कर देते थे ,बड़े पुत्र ने एक बार तिजोरी से १० लाख रु निकाले और वह घर से भाग गया , पूरे घर ने क्रोध किया  चिल्लाये और २० दिन बाद माँ के खाना  न खाने और रोते  रहने के कारण उसकी खोज चालू की गई और ३ माह बाद वो लुटापिटा सा घर लौट आया , पूरे घर में कोहराम था बंटवारा करों नहीं तो कल यह और रु चुरा लेजायेगा १माह  चला था  वो क्लेश और अंततः पिता ने बंटवारा करदिया था दौनों  को दूकान का आधा आधा  भाग देदिया गया,  सारे माल के भी हिस्से करदिये गए ,घर के दरवाजे रसोई सब अलग होगये ,हिमानी पिताजी और माँ अपनी दुर्दशा में अकेली बेसहारा रह गए  ,दौनो भाइयों ने पिताजी से सम्बन्ध ख़त्म करलिए थे, उनका कहना था उन्होंने अन्याय किया है बंटवारे में , माँ रोती रहती थी समस्या यह थी कि अब बेटी की पढ़ाई और शादी कैसे होगी ,सारे रिश्तेदारों  ने सम्बन्ध तोड़ लिए थे कही हम उनसे पैसे न मांगने लगें |पिताजी बिलकुल गुमसुम और मनोरोग के शिकार हो गए थे, मानो किसी जागृत नरक का निरीक्षण कररहे हो जिसका निर्माण खुद उनसे ही होगया था, उसके पश्चाताप और निराकरण की असफल खोज में | 

सबसे ज्यादा  बोझ ,छोटा ,  हीन  और तुच्छ समझी जाने वाली हिमानी के कन्धों पर उन पितामाता का दायित्व आगया था, जिन्होंने अपने बेटों के लिए जीवन भर उसे न केवल हेय  दृष्टी से देखा, बल्कि समय समय पर उसकी न्यायोचित जिद पर भी जानवरों जैसे  पीटा था ,भाइयो के बराबर हक की जिद में वो सबसे ज्यादा पीटी  गई थी ,आज हिमानी समझ गई थी , वास्तव में जो भाई स्वयं को सुपीरियर बताते रहे  वो थे नहीं और उसपर केवल एक दायित्व है कि,  उसे अपने मातापिता को सम्मान दिलाना है | ,, एम् ए इंग्लिश केबाद एक आई. ए.एस. कोचिंग में पढ़ा रही थी हिमानी ,जैसे तैसे घर का खर्च चल ही जाता था २० हजार रु मिलते थे ८ घंटे में ५ व्याख्यान होते थे और बाकी समय हिमानी खुद क्लास अटेंड करती थी ,  रात दिन की पढ़ाई मेहनत और लगन ने उसे केवल एक लक्ष्य दे दिया था की उसे स्वयं को सिद्ध करना है ,उसने विवेकानंद, आइन्टीन , सुकरात , और हजारों विचारकों के दर्शन से यह पाया कि जीवन का आशय यही है कि  आप अपने आदर्शों के चरम  पर पहुँच कर जीवन समाज और संस्कृति को नया आयाम दे जाएँ ,उस कठिन डगर में आप बोर होना  बुरा लगना ,मन नहीं लगना आदि की अनावश्यक स्थितियों से दूर एक लक्ष्य के लिए संकल्पित  रहजाते है  जिसमे आपका लक्ष्य भर होता है |

आज फिर आने वाला था आई ए एस  परीक्षा का रिजल्ट एक मित्र ने पूछा हिमानी रिजल्ट आने वाला है क्या सोचती हो आप, हिमानी ने गम्भीर स्वर में कहा, देवेश मैंने तो परीक्षा देकर अगली परीक्षा की तैयारी फिर चालू कर दी है, क्योकि मुझपर समय और विकल्प दौनो ही नहीं है, मित्रने कहा दोस्त आप मेरिट में फर्स्ट आयी हो ,आपकी साधना को ईश्वर ने स्वीकार कर लिया है ,धन्यवाद ज्ञापित कर हिमानी उठी और उसने अपने माता पिता के पाँव छुएं और रोती  रोती अपने कन्हैय्या के कमरे में भगवान् के सामने आकर   बिखर गयी ,भगवान् की मुस्कुराती मुद्रा मानो यह कह रही  हो अरे पागल तू ही तो है सुपीरियर , और हर पल मैंने तुझे जो सकारात्मक भाव ,जो तेरे मन को मैंने दिए , वही तो मैं था , बेटा ये एक कर्म छेत्र की सफलता है ,अभी आगे विराट तक जाना है ,तुझे और हर नकारात्मक भाव में जब तू मुझे सहारा बनाकर पुकारेगी ,तब मैं साहित्य ,परामर्श ,स्वप्न के रूप में तुझे रास्ता अवश्य दिखाऊंगा ,पुत्री मेरे लिए एक अर्जुन ही क्या, मुझे हर रोज उस भक्त की खोज  करनी होती है जो पूरी निष्ठां  से अर्जुन की भाँति , मुझसे प्रश्न पूछता है ,मैं  किसी को भी साधन बनाकर, उसको उत्तर देता हूँ और कार्य की प्रेरणा बनता हूँ ,माँ, पिता ,और एक भीड़ उसके कमरे में आगई जोर जोर से बधाइयाँ दीजाने लगी |


जीवन  ऐसा ही विचित्र है, यहाँ हम जिसपर गर्व करते है ,वह हमारा नहीं होता, हम जिसे अपना समझने की भूल करते है ,वह स्वप्न सा जान पड़ता है, हर सम्बंध, हर रिश्ता ,केवल अपने अपने लालच से हमसे जुड़ा होता है ,जिनके लिए हम सर्वस्व दांव  पर लगाए रखते है, वे भी एक पल में अपना रुख बदलकर खड़े होजाते है, क्योकि उन्हें यही डर  रहता है ,कही ये हमसे कुछ मांग न ले या उन्हें यह विश्वास होजाता है कि अब इनपर लूटने के लिए कुछ बांकी रह  ही नहीं गया है, वस्तुतः संसार का यही नियम है, कि  शक्ति के संचालन के  केवल एक शक्ति ही कार्य करती है , समाज राष्ट्र और संस्कृतियों को दिशा देने वाली शक्ति भी एक ही होती है और उसे समझना ही जीवन को प्राप्त करना है |


मनुष्य नितांत खोखला ,अधूरा और अपूर्ण ही है जन्म से वह अबोध ,बेसहारा और अप्रिय ही होता है मगर समय समाज और प्रकृति की शक्तियां उसका सकारात्मक निर्माण आरम्भ करती है , वह अपने अबोध काल में हर परिस्थिति से लड़ना , संघर्ष करना , रोरोकर अपनी परिस्थिति को व्यक्त करना सब सीख़ लेता है मगर इस समय उसमे बोर होना , अच्छा न लगना ,नैराश्य , ग़म ,धोखा ,और झूठ फरेब कुटिलता जैसे व्यवहार होते ही नहीं है ,हम बड़े होने के साथ जो हम पर है नहीं उसे अपने में आरोपित करने में लग जाते है ,मतलब यह कि आवरण पर आवरण और अपने को सुपीरियर बनाते बनाते स्वयं ही ख़त्म होजाते है ,अपने व्यक्तित्व से अपने कृतित्व से अपने संस्कारों और आदर्शों से स्वयं शून्य होजाते है , फिर सुपीरियोरिटी के लिए किये प्रयास जीवन भर उसे कॉम्प्लेक्स ही बनाये रखते है और जीवन से सकारात्मक  ऊर्जा स्वतः ख़त्म होजाती है |



लक्ष्य तो जीवन का मनोबल है आप जब भी जीवन के हर आते हुए समय को लक्ष्य से नहीं बांधेगे तो जीवन आपको अपनी नकारात्मकताओं  सामने खड़ा करदेगा ,हर रोज आप एक नया विकल्प ढूढेंगे और हर बार आपके पास कोई ठोस योजना होगी नहीं ,समय के महत्व और भविष्य की कल्पनाएं आपकी अकर्मण्यता के सामने समस्या बनी रहेंगी और आप समस्या , मन , बोरियत , अभाव और अन्याय का रोना रोते रहेंगे ,मगर इसके मूल में केवल यही सत्य रहा कि आपके पास भविष्य के लिए कोई सकारात्मक विचार , योजना ,लक्ष्य नहीं था और आप यह सत्य जानिये कि बिनालक्ष्य का जीवन उस मृतप्रायः जीव की तरह है ,जिसका शव तक विषाक्त होगया है ,और जो किसी को जीवन देने के योग्य नहीं रहगया है |


लक्ष्य के साथ प्रयत्न का संकल्प  अवश्य करें , मित्रों समय सबसे बहुमूल्य और कीमती चीज है जीवन में  और उसे यदि जीवन के हित  सार्थक उपयोग में लाना है ,तो आपको लक्ष्य और सार्थक प्रयत्न के संकल्पों का सहारा अवश्य लेना होगा ,क्योकि ध्यान रहे की आप जिस जीवन की नाव को लेकर चल रहे है ,उसकी पतवार किसी और के हाथ है, आपके पास केवल एक विचार है कि  आप उसका सकारात्मक उपयोग कर सके तो सफल ,अन्यथा आपभी ९९%जन सैलाब की   तरह   रहजायेंगे जिसके पास केवल भौतिक वादी सोच रही ,उसका आंकलन केवल धन ,बिल्डिंग , जमीन जायदाद से सम्बंधित रहा, वह यह भूल ही गया कि इन सबके प्रयोग के बाद जीवन फैसला करेगा कि यह तमाम समय आपने केवल व्यर्थ के कामों में व्यतीत किया है ,इससे मन के संतोष आत्मा की शान्ति से कोई मतलब ही नहीं है और जीवन आपको असफल सिद्ध कर देगा |



निम्न  का प्रयोग अवश्य करें

  • सुपीरियर ,इन्फीरियर दौनो ऋणात्मक  विचार है और दौनो को अपनाने वाला अपने आपमें खोखला पन लेकर जीवन को झुठलाने का प्रयत्न करता रहता है मगर एक दिन वहीजीवन  उसे नाकारा सिद्ध कर देता है | 
  •  स्वयं को और  कुछ बताना छोड़ दें ,जबतक आप स्वयं अपना साक्षत्कार   करके अपने आपको स्वीकार नहीं कर पाएंगे ,तबतक आप अपने आपको कभी कुछ कभी कुछ बताते ही रहेंगे | 
  • स्वयं से और अपने गुरु से जो असत्य और झूठ बोलने की प्रक्रिया में लगने लगते है उन्हें बार बार स्वयं के कार्यों के लिए ही पछताना होता है ,अतः स्वयं से और गुरु से अपनी हर त्रुटि को बताते रहे | 
  • जीवन को बिनालक्ष्य के छोड़ने का मतलब यह है  कि , आपको पतन के उस रास्ते पर लेजायेगा जहाँ से आपको सफलता के लिए शून्य से प्रयत्न करने होंगे | 
  • भविष्य और वर्तमान को खराब मत बताओ कठिनाई , धोखा , हादसा इसलिए आपके सामने है कि आप एक नए मनोयोग से स्वयं को सिद्ध करने का प्रयत्न करें , सफलता आपको ही मिलेगी | 
  • बोर , बेमन ,टेंशन ,नैराश्य , भय और ग़म  इस बात का प्रतीक है की आपके सामने लक्ष्य पूरी निष्ठां से नहीं बना पाए है या उसके क्रियान्वयन में आपने कोई कार्य नही किया है और आप ईश्वर पर कोई विशवास नहीं करते है यदि आप स्वयं को इन सकारात्मकताओं से सजा लें तो ये नाकारात्मकताएं स्वयं ख़त्म हो जाएंगी | 
  • न्याय के लिए स्वयं अपने परिश्रम और लक्ष्य पर निर्भर रहें यहाँ सांसारिक लोग आपसे लाभ उठाना , अपने को बड़ा बताने के लिए आपका प्रयोग और आपके शोषण से जुड़े है आपको अकेले ही मान दंड स्थापित करने है || 
  • सहारों की जरूरत गिरते हुओं को होती है आप स्वयं अपनी सकारात्मकताओं और उस सर्वशक्तिमान से स्वयं को जोड़कर अपने लक्ष्य बनाये और पूरी ताकत से उसे क्रियान्वित करें सारी  सफलताएं आपको ही मिलेंगी | 
  • स्वयं को कभी भी शक्ति हीन , अभावों में और समस्या में मत महसूस करें यही विचारकारें कि जीवन की हर समस्या में आपने अच्छे निर्णय और प्रयत्न करके जीत हासिल की है और यहाँ भी हम जीत हासिल करेंगे | 
  • जो त्रुटियां जीवन ने हमे बताई  है उन्हें दुबारा न करें , हर गलती से सबक लेकर आगे बढ़ने का संकल्प अवश्य करें जीवन की हर विजय आपकी ही होगी | 
  • नकारात्मक , नैराश्य और क्लेषकारी व्यक्तित्व को अपने विचारों से निकाल दें अन्यथा आपकी हर विकास की सोच में आपकी क्रियान्वयन्ता को ये नष्ट भृष्ट कर देंगे ,वर्तमान , लक्ष्य , और सफलता आपकी यही सोच हो |




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