रिश्तों का चक्रव्हू
labyrinth of relation
आदित्य का जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था ,एक बड़ी बहिन आरती थी ,माता- पिता- बाबा और दोनो भाई- बहिन , छोटा था सा परिवार था ,लम्बे समय के बाद परिवार में पुत्र का जन्म हुआ था अनेक प्रकार से बधाइयां मनाई जा रहीं थी और यही बधाइयां बनकर जीवन दिखने भी लगा ,आदित्य को माता -पिता बहिन -बाबा असीमित प्यार के साथ रखते आये थे, कई बार उसकी गलत बात पर भी लड़ाइयां लड़ी गई थी , शिकायतें आती थी कि आज इसको पीटा है ,कल उसका नंबर है, आरती कभी कहती समझाती , थी तो सारा घर उसपर चढ़ बैठता था एक भाई है जरा सा प्यार नहीं है ,इसे हमेशा पीछे पड़ी रहती है ,और अनेको उलाहने ,आरती रोकर चुप होजाती थी और बार बार यही सोचती क्या मैं उसे अच्छे भविष्य के लिए टोक भी नहीं सकती ,माता पिता जानते थे कि आरती सही डांट रही है मगर बहार की शिकायतों का गुस्सा सारा बेचारी आरती पर ही निकल जाता था ,पिता के प्रयासों से आठवीं पास होते ही उसे बहुत मंहगे स्कूल में भेजना तय होगया , सारे घर में कोहराम मच गया, कहीं नहीं जाएगा लड़का , बाबा ने साफ कह दिया कि लड़के को वहां भेज कर क्या कलेक्टर बना लोगे , पिता ने भी सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए स्कूल में बात की थी मंत्री जी से कहलवाया था , बड़ा मंहगा स्कूल था चलो घर रहने दो ,इसी प्रकार कॉलेज जाने तक ३ बार ऐसे अवसर आये जहाँ आदित्य को बहार , अच्छी शिक्षा के अवसर मिले ,मगर कभी आदित्य जिद कर गया ,कभी उसकी माँ और कभी पिताजी , आरती की सुनता ही कौन था ,अब हमारा आदित्य कॉलेज में तीसरे वर्ष में इंजीनियरिंग पढ़ रहा था ५ विषयों में बैक मेँ साथ , आज आदित्य आदित्य गुरु होगया था कॉलेज में शिक्षक , सहपाठी सब डरते थे उसका नाम ही आदित्य गुरु के नाम से प्रख्यात हो गया था , पिताजी माताजी हमेशा यही कहते थे टॉप किया है हमारे आदित्य ने ,अमेरिका वाले मामा ने कहा अच्छे से पढ़ाई करलो बेटा , फिर यहीं से एम्-एस करा दूंगा , पिताजी और आदित्य ने हजारों गाली दी थीउन्हें , समझते क्या है , खुद भी तो यही पढ़े थे ,जरा पैसा आगया तो लाड़साहब बन रहें है ,आरती अकेली थी जो यह जानती थी कि हर बात पर आदित्य का फेवर लेकर उसकी जिंदगी ख़राब करने में ये सब लोग बराबर के भागी दार है मगर आदित्य सबसे ज्यादा उससे ही चिडता था बोलना ही बंद कर दिया था उससे उसने बड़ा भारी दुःख था इस बात का आरती को |
आरती खुद इंजीनियरिंग करके जॉब में लग गई उसकी शशांक से शादी भी हो गई थी ,मगर यदाकदा भेंट होजाने पर भी आदित्य से उसकी कम ही बात होती थी ,परन्तु उसे उसकी गलती बताने वाला था ही कौन ,माँ बहुधा कहती थी की सारी संपत्ति तेरी ही तो है तुझे क्या करना ,चतुर्थ वर्ष इंजीनियरिंग के रिजल्ट में आदियत्य फेल होगया, देर रात में भारी नशे की हालत में ,उसके दोस्त छोड़ गए थे उसे ,वैसे भी उसे इन पार्टियों की तो पुरानी आदत थी ही और ऐसे ही जीवन चलने लगा ,एक रात को पिता जी को लकवा लगा जबरदस्त अटैक था अस्पताल लेजाया गया मगर फिर पिताजी बिस्तर से उठे ही नहीं ,आदित्य ने संभाला कारोबार नौकरों और कर्मचारियों के सहारे चलरहासारा कारोबार,कारोबार का पैसा शेयर मार्किट लगा कर एक बार में करोड़ पति बनने की चाह का शिकार होगयाथा हमारा ाआदित्य और एक ही रात में कारोबार और संपत्ति सब ख़त्म हो गई ,रह गया एक आलीशान मकान ,कुछ जमीने जायदाद , सारे रिश्ते दारों का जमावड़ा घर बन गया था , पिताजी ने जिस जिस के नाम पर सम्पत्तियाँ ली थी वो चाचा , मामा , फूफा सब मुकर गए थे वोसब रिश्तेदार जो घर पर डेरा जमाये रहते थे ,वो ये अवश्य कह रहे थे कि बुरा समय है आपका ये मकान बेचो तो हमें दे देना घर का घर में रह जाएगा |
अकेला कमरे में बंद आदित्य ,सारे लोग उससे उधार माँगने में लगे हुए थे , और पहली बार अंदर से भयभीत
अचानक उसके सामने जीवन का हर पल गुजरने लगा, माता -पिता -बाबा का और उसके स्वार्थी दोस्तों का सत्यानाशी प्रेम जिसने आज एक सुहृद बच्चे को एक अपराधी में बदल डाला था -जीवनके हरेक पल में माँ पिता द्वारा हर गलत बात पर उसका पक्ष लेना, ऐशो आराम के लिए हर सुविधा दिलवा कर कभी न टोकना नहीं ,आज उसे तेज छुरी सा काट रहा था ,उसे याद आया कई बार बहिन ने उसे अच्छी शिक्षा देने के लिए पिटाई खाई ,यह सब सोचते सोचते मन ने लाख बार यही कहा की मेँ माँ पापा और बाबा के साथ सारे स्वार्थ दोस्तों को कभी माफ़ नहीं करूंगा ,
अचानक आरती ने कमरे की बत्ती जला दी सब्र का बाँध टूट गया वह जोर जोर से रोने लगा क्योकि वह जानता था अकेली यही बहिन है जिसने मुझे बचाने का हर प्रयत्न किया मगर ंपूरे घर ने इसे ही गलत ठहरा दिया ,आरती भी भाई की दशा पर रोती रही और उसे यह समझाती रही कि जीवन की यही वास्तविकता है उसका सामना हम सब साथ करेंगे ही |
एक बहेलिये की तरह जीवन में रिश्ते अपना दाना बिछा कर बैठे रहते है , उनको अपने सुख वैभव और जरूरतों की इतनी चिंता होती है कि, वे इसके बीच किसी को भी बर्दाश्त नहीं करपाते , शोषण , ब्लेकमेलिंग और बेतहाशा प्यार का पर्दा डाल कर , वो केवल अपने निहित स्वार्थ पूरे करने की फिराक में जाने कितनी प्रतीक्षा करना जानते है ,यहाँ न कोई भाव होता है, न कोई भावना बस मौका और स्वार्थ इनके सहारे चल पाता है ,इनका कारोबार, इनके हथियार इतने घातक होते है जिनसे केवल एक जीत ही नहीं ,वरन जीवन की सारी गतिशीलता नष्ट भ्रष्ट होजाती है , तात्कालिक तौर पर लगता है कि ,यह कोई ऐसा सत्य है जो झूठा साबित नहीं होगा, मगर समय की गति शीलता के साथ यह स्पष्ट होजाता है कि ,यह भी एक जंगली क़ानून का हिस्सा है ,यहाँ सम्बन्ध के नाम पर धोखा फरेब और शोषण ही परोसा जाता रहा है ,और हम सब कमोवेश उसके शिकार भी हुए है, जिसके वर्णन का सामर्थ्य हम आज तक नहीं जुटा पाए है |
यदि जीवन में हम बोर हो रहे है ,और हर जगह हमे कमी लग रही है, तो हम एक भीड़ का हिस्सा है ,यह वाक्यांश इतना सटीक और स्पष्ट है कि हमारी ख़ुशी हमारा सकूंन भौतिक संसाधनों और लोगों के समूह पर टिका है ,क्योकि हमे उनके शोषण की आदत हो चुकी है ,झूठे किस्से कहानी और झूठे परिवेश के आवरण ओढ़े हम सब एक नकली जिंदगी के किरदार निभा रहे है ,जहाँ हमारा हसना , रोना , प्रसन्नता दुःख और जश्न सब नकली ही है,जन्म दिन , मृत्यु दिन ,और तमाम ऐसे जश्न जो दिनों पर मनाये जाते है ,हमसे जुड़े नहीं है मगर हम अपनी दबी पीसी इच्छाओं को जाग्रत करने का माध्यम बना डालते है, उन्हें जबकि अंतिम रूप से हमे यह मालूम हो जाता है ये सब व्यर्थ है| और इन सुख- दुखों से हम स्वयं भी दिखावों के लिए ही प्रभावित है |
रिश्तों के मृग जाल के बंधनों का प्रश्न इतना जटिल और और कुटिल था ,जिसके हल के लिए महावतार कृष्ण को गीता का सृजन करना पड़ा , रिश्तों की वास्तविकताओं बंधन इतने मजबूत होते है ,जहाँ से आज़ाद होना असंभव ही माना जाता है ,शत्रु की हर चाल को वीर पुरुष पूरी वीरता जीत लेता है , मगर प्रेम के महा प्रशाद में विष समर्पित करने वाले रिश्तों पर कभी प्रश्न वाचक नहीं बनना चाहता | रिश्तों के महा संग्राम में कृष्ण ने अर्जुन को यही समझाया कि पुत्र अनीति , शोषण , अन्याय और डाकुओं की मानसिकता वाले रिश्ते, जब धर्म से विमुख होकर आपके शारीरिक मानसिक और भावनात्मक संहार के लिए जब खड़े होंगे, तो आपमें उनका प्रतिउत्तर देने का साहस भी नहीं होगा ,क्योकि उनका क्षद्म वेश इतना घातक है कि, वे तुम्हे अपने आपको समझने ही नहीं देंगे , धर्म का एक मात्र सत्य यह है कि तुम्हे किसी भी सहारे की आवश्यकता न हो, गुरु उद्धत बुद्धि के सहारे तुम स्वयं के ब्रह्माण्ड में प्रविष्ट करो और वहीँ से अपने जीवन के उद्देश्यों को पूर्ण करो | रिश्तों चिंतन तुम्हे कमजोर और कायर बना देता है इसलिए सबके प्रति दया का भाव बनाते हुए स्वयं को जल में रहते हुए भी जल से निर्लिप्त रखों |
अति मोह और अँधा प्रेम केवल महा नाश की राह पर ही लेजा सकता है , जिसमे त्याग , वैराग्य और परमार्थ का भाव होता ही नहीं है, वह तो रिश्तों को केवल संसाधनों की तरह मांग और पूर्ती बना डालता है ,जबकि अध्यात्म , सफलता और जीवन की वास्तविकता जानती है कि जीवन में वाणिज्य का कोई मोल ही नहीं है , और रिश्तों को इस तराजू में तोलने वाला इंसान कैसे अपने गंतव्य तक पहुंचेगा यह प्रश्न चिन्ह है , फिर रिश्तों के इस वाणिज्यिक व्यवहार को आप जीवन का प्रेम , समर्पण और निश्छल जैसे शब्दों से कैसे पुकार सकेंगे ,संसार में अकेला मानव ,जीवन की हर दौड़ में समय और संसार में अजेय रहा है, वही इतिहास पुरुष बना है ,जिनके साथ वाणिज्यिक रिश्तों के हुजूम चले है वे ,अपनी मंजिल तक कभी पहुँच है नहीं पाए, उन्हें बेमोल जीवन खोना पड़ा है
रिश्तों ने आदमी को केवल कमजोर दर कमजोर सिद्ध किया है, हम जिस समाज से कुछ लेने की कामना करते है वो पहले से ही हमारी ताक में बैठा हमारा शोषण कर लेता है ,हम अपने लक्ष्य से दूर केवल उन अनसुलझे संबंधों में लिपटे, अपना समय व्यर्थ ही निकाल देते है और जीवन हमे असफल सिद्ध करदेता है , जब भी हम सफलता के उत्कर्ष पर खड़े दिखे एक बड़ा हुजूम हमे दिखाई देने लगा किसीने कसमें दी किसी ने प्यार का वास्ता दिया किसीने अपने रिश्तों की दुहाई दी तो कोई रोकर क्रोधित होकर या आवेशित होकर अपने स्वार्थों के अनुरूप हमारा प्रयोग करने की कोशिश करता रहा जबकि उस्समय हम जरा सी भावनाओं में बहे बस वहीँ हमारा भविष्य , नष्ट हो जाता है और रिश्ते अपने उद्देश्य में सफल हो जाते है |
जीवन का एक मात्र सूत्र था एकला चलो रे ----सिकंदर -----अकबर ---- अशोक ------हिटलर ------मुसोलनी लाखों की फौजे लेकर चलते हुए जीवन को नापने की लाख कोशिशों के बाद, अपनी ऑटो बायोग्राफी में लिख गए कि जीवन में वे कुछ कर नहीं पाए, जबकि गांधी नेल्सन मंडेला और ऐसे ही हजारों युग प्रवर्तक अकेले चलते हुए भी श्रेष्ठ सिद्ध होकर इस दुनियां से विदा हुए ,लाखो की भीड़ में चलने वालों का दिमाग भी लाखो तरह के होते है, परिणाम सफलताके लिए लक्ष्य की क्रियान्वयनता भी लाखो तरह के भय विषाद और वैमनस्यता लेकर चल रही होती है , आपके उद्देश्य की चिंता कोई कर ही नहीं रहा होता उनके अपने अपने स्वार्थ स्वयं आगे आने लगते है फिर जीवन में सफलता कैसी यही समझ से परे होजाता है , जीवन का एकमात्र यही सत्य है कि रिश्तों की मृग मरीचिका से बाहर आकर अपने शाश्वत स्वरूपको पहिचानिये यहाँ आपको एक अनंत कोटि शक्ति का पुंज स्वयं में ही दृष्टि गत होने लगेगा यहाँ रिश्तों के भंवर नहीं होंगे और न ही आप किसी भीड़ के छोटे से हिस्सेहोंगे , यहीं से जीवन अपनी गति पहिचान कर आपको पूर्ण सफल सिद्ध करदेगा |
निम्न का प्रयोग अवश्य कीजिये
- रिश्तों की आवश्यकता समाज को है, मगर अपने जीवन के विकास पथ पर उन्हें सहारा बनाकर चलने का प्रयत्न कभी न करें अन्यथा सफलता से पूर्व ही आपका लक्ष्य भ्रमित हो जाएगा |
- जीवन में अपने उद्देश्य निश्चित करें उसके बाद बिना रुके उन्हें पूरा करने के लिए क्रिया शील हो जाए बीच में किसी भी कारण अपने क्रियान्वयन को न रोकें |
- घर परिवार समाज के रिश्तों के साथ सतर्कता बरतें ,एक सीमा का निर्माण करें और उन आदर्शों का पालन करें जो आपने अपने लिए बनाये है |
- जीवन में अपने अस्तित्व के क्रियान्वयन की चाभी आप किसी को नहीं सौपें , अन्यथा आपके जीवन से अधिक सामने वाला अपने स्वार्थों की आपूर्ति के लिए आपका उपयोग करने लगेगा |
- सबके साथ सामान सुखद एवं श्रेष्ठ व्यवहार करें परन्तु किसी भी स्थिति में अपने आदर्शों से समझौता नहीं करें अन्यथा आपके उद्देश्य और सफलता दोनों ही व्यर्थ हो जाएंगे |
- अपनी गलती के लिए तुरंत माफ़ी मांगे एवं फिर गलती न करने का संकल्प लें क्योकि यदि आप गलतियां करके संकल्प नहीं कर पाए तो आपका और नकारात्मक जीवन होजायेगा |
- रिश्तों के बड़े संपर्कों से समय की बचत अवश्य कीजिये अन्यथा आपको सफलता के लिए समय ही नहीं मिल पायेगा क्योकि जीवन में समय का नाम ही काल है |
- यह आवश्यक रूप में ध्यान रखें कि सामाजिक , पारवारिक और दूसरों की देखा देखी आप अपना प्रयोग न होने दे क्योकि आपको अपने आदर्शों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए |
- एकांत में अपने आपका चिंतन करना सीखें यहीं से आपको अपनी आतंरिक शक्तियों का बोध हो सकता जिन लोगो को आप शक्ति संपन्न समझते है वे केवल अपने स्वार्थों के साथ ही वीर है , आप में अपरमित शक्ति है |
- बिना बात की प्रसंशा और वालों से स्वयं को बचाकर रखिये क्योकि ये आपकी चेतना शक्ति की सकारात्मकता नष्ट कर देते है |
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