Sunday, May 28, 2017

सिकंदर -साधु, जीवन का महान विजयी सन्देश Sikandar -Sadhu, the great victorious message of life

 सिकंदर -साधु, जीवन का  महान  विजयी सन्देश 
Sikandar -Sadhu, the great victorious message of life

 आख़िरी समय था विश्वविजयी सिकंदर का, कुछ लम्हे बाकी थे फिर भी जीवन से गहरा असंतोष था , अनेक अधूरे स्वप्न थे बदहवासी थी और सबकुछ फिसलता चला जा रहा था , जंगल का वातावरण और हजारों सैनिकों के बीच एक साधु निरंतर अपनत्व और दया भाव से उसे दवा देकर अपना  प्रयास कररहा था ,अचानक  दर्द की पराकाष्ठा पर भी सिकंदर मुस्कुरा दिया और उसने कहना चालू किया, हे साधु मैं समझ गया हूँ कि मेरा  अंतिम समय निकट है और जिज्ञासाएं बहुत है ,और बहुत कुछ बाकी  रहा जाता देख रहा हूँ ,जो मै  करना चाहता था ,ऐसा क्यों हुआ तुम बता सकते हो मैंने अनायास ही तुम्हारे चेहरे में अपने गुरु अरस्तु की झलक देखि है ,साधुजोर से मुस्कुराया और पूरी सहानुभूति और आँखों के आंसुओं को पोंछता हुआ बोला -----  सम्राट तेरे जीवन की गलतियां क्या थी जो मैं देख रहा हूँ वो सुन 
  •  पुत्र तेरा गुरु अरस्तु मुझे परसो ही स्वप्न में कह गया कि  मैं तेरी सेवा करने पहुंचू ,क्योकि तुझे यह अंतिम ज्ञान अगले जन्म में भटकने नहीं देगा ,क्योकि तेरे गुरु को यही शिकायत थी कि तूने अपने दुष्कर्म और मनमर्जी से किये हुए गलत काम ,कभी उन्हें बताये ही नहीं और उन्होंने सब जानते हुए भी तुझसे पूछा भी नहीं, वह स्वछंदता तेरे दुःख का कारण रहीं
  • पहली कमी यह थी कि तुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था , सब लोग तेरे अधीनस्थ थे और जो तुझे पसंद नहीं आया उसे तूने मृत्यु दंड देदिया ,परिणाम इससे तेरा आध्यात्मिक पथ शून्य होगया, फिर शांति कैसे पता तू|  | 
  • जीवन की शांति की खोज के लिए तुझे अपने मन की आवाज सुननी थी मगर तेरे आस पास इतना शोर था कि तू वो कभी सुन ही नहीं पाया |
  • हे सम्राट जीवन सम्पति ,धन, वैभव की आवश्यकता अवश्य चाहता है ,मगर उससे भी महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उस धन का स्त्रोत यदि ख़राब हुआ, तो तेरी शांति स्वयं नष्ट हो जायेगी और वह धन ही तेरे पतन का कारण बन जाएगा , और एक समय वो होगा जब तेरी अफरात दौलत भी तुझे एक पल की प्रसन्नता नहीं दे पाएगी | 
  • हे वीर श्रेष्ठ तूने हजारों युद्ध जीते ,तेरे शौर्य के सामने अनेको सम्राटों सर कटे पड़े थे मगर तू मन से किसी को नहीं जीत पाया शायद यह भी तेरे दुःख का कारण है| 
  • तेरे साथ लाखों लोगो का समूह था मगर विडम्बना यह थी कि उनमे तेरा अपना कोई था ही नहीं सब लोग तेरे भय और स्वार्थों के कारण तेरे साथ थे मगर तू नितांत अकेला बेचारा और सहानुभूत्ति का पात्र था | 
  • हे समय को बांधने की इच्छा रखने वाले श्रेष्ठ योद्धा तू, निरंतर भागता रहा , कुछ पाने की चाह में या जीतने की दौड़ में तू एक भिखारीकी तरह कुछ न कुछ पाने की कोशिश करता रहा पुत्र यह एक  महीन भेद तुझे समझने की आवश्यकता थी | | 
  • , पुत्र तू अपने गुरु अरस्तू से यह शिक्षा नहीं लेपाया कि दुनियां का सबसे बड़ा शहंशाह वह है ,जिसे किसी चीज की जरूरत ही नहीं है ,तुझे हर रोज नयी सेना के साथ नए आक्रमण करने थे जीतना था बहुत कुछ परिणाम तू खाली और अधूरा रह गया | और अनायास सब हार बैठा | 

हे पुरुष श्रेष्ठ मैं एक योगी हूँ यह जानता हूँ कि यदि तू रोगी होता तो मै तेरे रोग का इलाज करलेता मगर आज यह रोग तेरी मौत का बहाना बन कर आया है और इसका इलाज किसीके पास है ही नहीं ,तू समय के साथ बाद में करलूँगा के सिद्धांत पर चला ,जबकि संसार में पैदा होना ,मरना अवश्यम्भावी है मगर उसका समय कल ही तय करता है जिसका ज्ञान तुझे था ही नहीं | 



सिकदर के माथे की लकीरें शांत होने लगी थी और मन में एक शांत भाव प्रकट होने लगा उसने तुरंत साधु से प्रार्थना  कि  हे देव मेरी निम्न इच्छाएं  जरूर पूरी करना ,और मेरे गुरु को जरूर बता देना ,कि उनका शिष्य जीवन में न सही मृत्यु की बेला में उनका ज्ञान अवश्य धारण करके गया है ,साधु ने पूछा पुत्र कहो तो सिकंदर ने कहना चालू किया -------

  • हे साधु आप और आपके जैसे हजारों योग्य हकीमऔर जीवन को जान्ने वाले सब मेरी अर्थी के आगे आगे अंतिम विदा के वक्त चलना, जिससे लोग समझ सकें कि , योग्य से योग्य हकीम भी मनुष्य को जीवन दान नहीं दे सकते | आदमी को स्वयं जागृत और इस सत्य का स्मरण हर वक्त रहना चाहिए | 
  • मैंने अनंत दौलत के अम्बार लगाए वो भी सड़क के चारो और बिखेर देना ,क्योकि मै  यही चाहता हूँ कि, यह जीवन की सबसे शक्ति हीन ,व्यर्थ और बेईमानी का लालच भरा भाव है जो यह बता देता है की मै  कल किसी का था, आज तेरा हूँ ,और कल किसी और का होऊंगा | 
  • हे साधु मेरे हाथ अर्थी के बहार निकाल  कर यह जरूर बता देना, कि   जीवन की अनगिनत संपत्ति में मेरे पास वो दौलत है ही नहीं जिसे मै  ें इन हाथों में लेकर जा पाता | और जो दौलत मैंने कमाई है वो मेरे साथ जा नहीं सकती | 
  • हे ज्ञानी श्रेष्ठ मेरे साथ लाखो लोगो की भीड़ जरूर लेजाना जिससे लोग समझ पाए इन लाखों लोगो में मेरे को सही मायने में प्यार करने वाला कोई था ही नहीं , मै  एक आदमी भी पैदा नहीं कर सका ,जो मुझे प्यार करने वाला होता | 
  • हे द्विज श्रेष्ठ मै  जीवन के इस मर्म को समझ ही नहीं पाया, कि समय पर मेरा कोई वश नहीं है, मै  सोचता रहा थोड़ा और जीतूं तब करूँ ,  बस इसी दौड़ में मै सब हार बैठा | 
  •  और अंत में मैं  यही समझा कि जीवन का सच्चा संतोष अंतरात्मा की गहराइयों में मुझ में ही निहित था जबकि कभी मैंने उन्हें ंशारीरिक आपूर्तियों में ढूढ़ा तब और -और -और की व्याकुलता मिली ,धन में ढूढ़ा तो लालच ने शांति ख़त्म कर दी और जब संसार में ढूढ़ा तब केवल बनावटी  काल्पनिक और अर्थ हीन सम्बन्धो कासंसार दिखा जिसके शोषण का दुःख पाया मैंने |

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