बढ़ता विज्ञान और घटती सवेदनाएँ
Increasing science and decreasing sensitivity
प्रोफेसर रंगा विज्ञान के बहुत बड़े हस्ताक्षर थे ,देश विदेशों में उनका बहुत बड़ा नाम था, कई पुस्तको , लेखों और कई व्याख्यानों से मूर्धन्य सस्थाओं को वे अपना लोहा मनवा चुके थे , एक बेटा सुकेश और बेटी रीमा को भी बहुत बड़े स्कूल कॉलेज में शिक्षा दिलवाई गई थी ,कॉलेज के बाद सुकेश को सर्जन बनने के बाद किसी अमेरिकन विश्वविद्यालय से अतिरिक्त डिप्लोमा करने भेजा गया था, और वो आज विश्व का बहुत बड़ा डॉक्टर था ,बेटी सॉफ्टवेयर में पी. जी. करने के बाद किसी बड़ी कंपनी में डायरेक्टर हो गयी थी ,और प्रो रंगा अब रिटायर होकर अपने नौकर के साथ ही रहा करते थे पत्नी की मृत्यु कई वर्षों पहले ही हो चुकी थी ,ले दे कर केवल एक नौकर और एक दो विद्यार्थी ही उनके आस पास थे जिन्हें उन्होंने बहुत नीचे से उठा कर योग्य बनाया था |
अचानक एक रोज नौकर ने उठकर देखा प्रो साहब ने दरवाजा नहीं खोला है, थोड़ा और इंतज़ार किया फिर मन नहीं माना तो जंगले से झांक कर देखा ,प्रो साहब बिस्तर से नीचे पड़े थे ,कुछ अस्पष्ट सा बोल रहे थे दरवाजा तोड़कर उन्हें निकला गया, डॉ के आने पर मालूम हुआ उन्हें पैरालेसिस का अटेक पड़ा है ,,आनन फानन में डॉ ने उन्हें भर्ती करलिया स्वजनों ने बताया कि बाबूजी का लड़का भी तो इसी एरिया का विश्वविख्यात डॉ है ,उनसे भी चर्चा कर ली जाए बहुत फ़ोन किये बड़े मेल और मैसेज भेजे गए मगर ५ दिन तक कोई कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं हो पाया, फिर एक दिन फोन कॉल आया नौकर ने उठा या दूसरी तरफ से आवाज आई कौन सर्वेंट देवा बोल रहें है ,डॉ सुकेश ने पूछा है क्या प्रॉबल्म है क्या चाहिए ,देवा ने पूरी सूचना दी, दूसरे दिन फिर फ़ोन आया है देवा मैं बोल रहा हूँ देवा जोर जोर से रोने लगा भैय्या बाबूजी को पैरालेसिस अटैक आया है, दीदी आयी ही नहीं, वो शायद बाहर विदेश गई है ,सुकेश बोलै चुप होकर मेरी बात सुनो मैं अगले वीक देखने आता हूँ अस्पताल में कोई जरूरत हो बताओ , डॉ से बात कराओ ,डॉ सर सर करके बात करता रहा एक अकाउंट न बताता रहा और कभी उत्साहित और कभी मायूस जैसा दिखा ,फ़ोन कट चुका था डॉ पूरी ताकत से इलाज में जुट गया था और सबकी दुआएं दवाएं रंग लाइ और डॉ रंगा एक बार होश में आ ही गए | १० वे रोज डॉ रंगा को छुट्टी मिल गई थी |
एक माह बाद घर के सामने एक सैलून वाहन आकर रुका, २ दरबान आगे आकर कोई स्प्रे कररहे थे ,एक सामने पैसेज की सफाई में जुटा था प्रोफेसर रंगा के कमरे तक स्प्रे किया गया रूम को साफ़ किया गया और जब ग्रीन सिगनल हुआ तो डॉ सुकेश निकले और धीरे धीरे बाबूजी के कमरे में पहुंचे ,बड़े विह्वल थे बाबूजी आधे अधूरे बैठ गए थे ,सुकेश ने पाँव छुएं फिर हैंड क्लीनर निकलकर हाथ धोये ,और बात करने लगे , देवा तबतक पानी और नाश्ता लेकर आया सुकेश ने मना कर दिया ,अभी कुछ नहीं लेना सब है, उसने इशारा किया एक दरबान पानी के साफ गिलास और बोतल से पानी दे गया , पिता कहते रहे बेटा अब तू आगया है ,अब मैं जल्दी ठीक हो जाऊँगा ,तेरे बराबर तो इस रोग का डॉ है ही कौन, सुकेश बोलै है वो तो ठीक है उस डॉ को समझा दिया है ,ठीक इलाज कर रहा है ,आपको यह कसम है की आप सच सच यह बताओ की आप क्या सोच रहे थे जब ये अटैक आया था ,आपको ,मेरी कसम आपको ,पिता भावुक हो गए थे बोले बेटा तेरी माँ की मृत्यु के बाद मुझ पर बहुत दबाब था की मैं एक शादी और करलूं मुझे लगा कि सौतेली माँ मेरे बच्चो से न्याय नहीं कर पाएगी, तो मैंने वो प्रस्ताव ठुकरा दिया , और तुम दोनों भाई बहिनों को माँ और बाप दोनो रूप में पाला है, उस रात यही सोच रहा था कि अब हाथ पैर जबाब दे रहे है ,अब मुझे अपने बच्चों के कन्धों की जरूरत है जो मुझे सहारा दे, सकें बस यही सोचते सोचते बेहोश हो गया था मैं | और सुकेश कही खो गया था विचारों में |
बी प्रेक्टिकल बाबूजी आप तो जानते है मै उस घर में भी कहाँ रह पाता हूँ, कभी न्यूयार्क कभी इंगलैंड कभी जर्मनी रोज भागना रहता है ,और इतनी सुविधाएं और देवा और शशि ,प्रभात को देख कर बोला की ये सब लोग सेवाकर ही रहे है, तो कोई प्रॉब्लम है ही कहाँ ,हाँ फिर भी एक बार सोचूंगा जरूर की मुझे क्या करना चाहिए , अब नाश्ते का टाइम होगया है ,दरबान तुरंत गर्म ब्रेड बटर और एक एक गिलास दूध की ट्रे लेकर आगया यह सैलून में पहले से ही था , पिताजी हतप्रभ , मूर्तिवत उसके साथ ब्रेड चबाने लगे , और अचानक सुकेश बोलै बाबूजी मुझे जाना होगा रात 8 बजे दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में मुझे एक आप्रेशन करना है , और फिर ३ बजे रत में मेरी फ़्लाइट है --------और बिना पिताजी का कोई उत्तर सुने सुकेश उठा उसने बेमन से फिर पाँव छुए --फिर हैंड क्लीनजर से हाथ साफ किये और टाटा करता हुआ चल दिया पिता की समझ ही नहीं आया कि उसे क्या कहना या क्या नहीं कहना चाहिए |
कुछ ही दिन बाद डॉ रंगा को फिर अटैक पड़ा उस ही डॉ के यहाँ लेजाया गया पूरी घटना सुनने के बाद डॉ कहीं खो गया था ,नौकर और प्रोफ साहब के विद्यार्थियों को उन्होंने कहा कि अब आप लोग पैसे के लिए परेशांन मत होना ,क्योकि प्रोफ साहब से मेरी बात होती ही रहती थी ,आप सब लोग तो उनकी सेवा ही करें ,यही सबसे बड़ा सहयोग होगा इलाज जोरो शोरो से चल रहा था और १० दिन बाद प्रोफेसर साहब चल बसे थे ,तीनों लोगबहुत रोये थे उनके अलावा कोई था ही नहीं ,फ़ोन पर फ़ोन लगाए जा रहे थे सुकेश और दीदी के फ़ोन आउट ऑफ़ कवरेज थे डॉ साहब ने शव को डीप फ्रीजर में रखवा दिया था अचानक डॉ साहब को याद आया कि दूसरे अटैक से तीन दिन पूर्व ही प्रो रंगा एक बैग यह कहकर छोड़ गए थे कि डॉ साहब ये रखना आप मैं अभी आया , और वो बैग अभी क्लीनिक में ही पड़ा होगा शायद उसमे कोई एड्रेस फ़ोन न मिलजाए ,डॉ ने बैग खोलकर देखा उसमे एक चिट्ठी खुली रखी थी कांपते हाथों से डॉ और प्रो रंगा के स्वजन सुनने लगे -----चिट्ठी का विवरण
डॉक्टर साहब नमस्ते बड़ा बोझ है, जीवन का आज सोच रहा था ,कि मैं दुनियां का बहुत बड़ा साइंटिस्ट सिद्ध हुआ संसार के सारे देशों का भ्रमण करते में मैंने अपने बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ा, हर जगह साथ ले जाता था, आपसे बहुत बात की मालूम हुआ आपके पिता ने भी बहुत कठिनाई से आपको इस मुकाम तक पहुंचाया और वो चल बसे,मैं उस दिन से आपको भी पुत्र जैसा मानता रहा बोला। कभी नहीं ,बेटा इतना बड़ा वैज्ञानिक होकर मैं यह नहीं समझ पाया कि जीवन में मूल्यों और आदर्शों की कक्षा तो सहानुभूति दया सेवा और संवेदनाओं के पहियों पर ही चलती है ,और जहाँ विज्ञान के रथ पर ये पहिये ही नहीं हों वहां नीरस , बदरंग फीका और अभावों का जीवन खुद ही व्यर्थ सिद्ध हो जाता है बेटा अब मैं अब जो कह रहा हूँ वो ध्यान से सुनना मैं भगवान् का बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि पहले अटैक के समय मुझे जीवन की असली पहिचान ,और मेरे अपने मुझे मिले है ,मेरे मरने के बाद मेरीअचल संपत्ति आप तीनों लोगों में आप बाँट दें जो लग भग ५० करोड़ की होगी और मेरा संस्कार भी आप सब मिलकर करदें मैंने अपने मन और न्यायालयीन कागजों में यही लिखा है ,और आपके लिए मैंने अपना बेटा समझते हुए आपके अकाउंट में १० करोड़ रूपए ट्रांसफरके लिए चेक दिए है ,जो एक माह बाद आपके खाते में पहुंच जाएंगे, आप सबसे यही विनती है कि ,आप यह अवश्य ध्यान रखें की जो विज्ञान सहायता दया श्राद्धा और संवेदनाओं से परे है उसका हर परिणाम केवल विनाश कारी ही होगा |
चारों लोग जोर जोर से रो रहे थे ,अचानक फ़ोन की घंटी बजी मई सुकेश बोल रहा हूँ ---- डॉ ने तुरंत कहा हाँ बाबूजी आपके लिए भी एक पेरा लिख गए है सुनिए ---बहुत बिजी हो तुम और तुम्हारी बहिन ----- आउट ऑफ़ कवरेज ----एरिया -------- बेटा बहुत बड़ा होने ------ विश्वप्रसिद्ध डा होने का मतलब होता है सवेदना हींन ,आदर्श हीन , दया प्रेम वात्सल्य और ममत्व जैसे शब्दों से परे होना , हां तुम इन सबसे आउट ऑफ़ कवरेज एरिया ही बने रहे ,खैर अब तुम बिजी ही रहो ,मैंने तुम्हे सब मेल कर दिया है और तुम्हारे ऊपर ही छोड़ दिया है की तुम एक बार फिर साइंस ----और अपने सेन्स को परख करके देखना जीवन तुम्हे हारा हुआ सिद्ध कर देगा | फिर भी मैंने अपने संपत्ति से १०-१०-करोड़ तुम्हे भेज दिए है क्योकि तुमपर टाइम नहीं है | ईश्वर तुम्हे खूब खुश रखें | दूसरी तरफ से आवाज बंद हो गई थी|
साइंस और सेन्स का युद्ध जीवन भर चलता ही रहा है और यही विडम्बना बनी रही कि, जो साइंस को बहुत ज्यादा जानता गया, वैसे वैसे उसमे विचार शून्यता ,आभाव , आदर्श और मानवोचित गुणों के स्थान पर अहम् , वैमनस्यता ,अहंकार ,और विद्वेष भरता चला गया, जबकि संसार की पूर्णता के लिए हर विज्ञान को माध्यम बनाया गया था , जीवन के सर्वोन्नत शिखर पर दया- सहष्णुता -करुणा - प्रेम और परमार्थ का विशाल मैदान है जबकि भटके हुए साइंस से केवल विनाश -चीत्कारें -अपमान -प्रतिद्वंदिता -स्वार्थ और पराभव ही प्राप्त हुआ है ,इतिहास गवाह है की शक्तियों और वैज्ञानिक पराकाष्ठा की सोच के साथ यह भाव स्वतः जुड़ जाता है कि हर कोई आपके दासत्व को स्वविकर करले बढ़ता हुआ साइंस कम होता हुआ सेन्स और यही क्रम एक दिन इंसान को महा विनाश के सामने खड़ा कर देता है, ठीक वैसे ही जैसे दो जानवर अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए जान से मरने मारने की हदपर लड़ाई लड़ रहे हों|
आउटऑफ़ कवरेज एरिया ------ है आप अपने आपसे ---- आदर्शों और अपनी सोच से -------- अपने खुद से दूर जाने के कारण ही शायद आप अपनी आतंरिक शक्तियों को नहीं ढूढ़ पा रहे है ,हजारो लाइक्स , हजारों दोस्त और हजारो मैसेज में हम अपने आपको कहीं पा ही नहीं रहे , लाखों फोटो लिए बैठे है हम अपनाचेहरा ही भूल गए है ,हर बार नई फोटो मैसैज ----- और हजारों लाइक्स और भयानक नशा एक अडिक्ट की भाँति अपने आपको ढूढ़ते ढूढ़ते खुद खोते जा रहे है परिणाम यह कि जीवन जिस बड़ी खोज के लिए चला था वो स्वयं भटकने लगा है ,और हम शायद अपने आप से इतना दूर निकल गए है ,की जहाँ दूसरे की सोच से हमारा कोई वास्ता ही नहीं रह गया है परिणाम हम स्वयं अपने बनाये हुए कारागार में ऐसे कैद होते जारहे है जहाँ केवल यही आवाज आ रहीं है जिस शख्श को आपने फ़ोन लगाया है वो आउट ऑफ़ कवरेज एरिया है ---------
सहानुभूति -विचारोनुभूति -सवेदनाएँ मानवोचित आदर्शों के लिए जरूरी है यदि किसी विज्ञान की सार्थकता का प्रश्न कही पाया जाता है तो वह इनके उद्गम से ही पहिचाना जाएगा ,इतिहास ने जो जो क्रांतियां देखी है उनके पीछे यही तथ्य रहा है की समय विकास औरउसके लिए किये गए प्रयास केवल इसलिए किये गए थे, कि वे मानवीयता के लिए वरदान बन कर सामने आये मगर जैसे जैसे समय ने राष्ट्रों और व्यक्तियों ने अपने आपको सर्वशक्तिमान सिद्ध किया वैसे वैसे वे सब लिए ख़तरा बन बैठे , और विकास का वरदान ही जब आपके लिए विनाश का अभिशाप सिद्ध होने लगे तो आपको एक बार पुनर्विचार की आवश्यकता अवश्य है जो आपको सही आइना अवश्य दिखाए गा |
आज जब सम्पूर्ण विश्व की शक्तियां एक दूसरे पर आँखे तरेर रही है, कोई किसी का वर्चस्व मानने को तैयार ही नहीं है ,वहां हम कौन से विज्ञान और मानव कल्याण की कहानी सूना रहे है ,एक राष्ट्र कहता है उसकी सेनाएं सुरक्षित है उसपर परमाणुबम्ब है ,दूसरा कहता है उसपर भी वही शक्तियां है जो सामने वाले देश पर है , तीसरा कहता है मुझ पर दूर बॉम्ब भेजने की तकनीक नहीं है, मगर मुझ पर हाइड्रोजन बम है मैं अपने ही एरिया में विस्फोट करके सारी पृथ्वी को ख़त्म कर दूंगा क्या आपकी साइंस का मूलभूत उद्देश्य यही था ,कि आप मानव कल्याण के नाम पर स्वयं विध्वंसक सिद्ध हो जाए, शायद साइंस के साथ आपने अपना सेन्स --सेंस्टिविटी और सहानुभूति सब खो दी है |
निम्न पर विचार करें
Increasing science and decreasing sensitivity
प्रोफेसर रंगा विज्ञान के बहुत बड़े हस्ताक्षर थे ,देश विदेशों में उनका बहुत बड़ा नाम था, कई पुस्तको , लेखों और कई व्याख्यानों से मूर्धन्य सस्थाओं को वे अपना लोहा मनवा चुके थे , एक बेटा सुकेश और बेटी रीमा को भी बहुत बड़े स्कूल कॉलेज में शिक्षा दिलवाई गई थी ,कॉलेज के बाद सुकेश को सर्जन बनने के बाद किसी अमेरिकन विश्वविद्यालय से अतिरिक्त डिप्लोमा करने भेजा गया था, और वो आज विश्व का बहुत बड़ा डॉक्टर था ,बेटी सॉफ्टवेयर में पी. जी. करने के बाद किसी बड़ी कंपनी में डायरेक्टर हो गयी थी ,और प्रो रंगा अब रिटायर होकर अपने नौकर के साथ ही रहा करते थे पत्नी की मृत्यु कई वर्षों पहले ही हो चुकी थी ,ले दे कर केवल एक नौकर और एक दो विद्यार्थी ही उनके आस पास थे जिन्हें उन्होंने बहुत नीचे से उठा कर योग्य बनाया था |
अचानक एक रोज नौकर ने उठकर देखा प्रो साहब ने दरवाजा नहीं खोला है, थोड़ा और इंतज़ार किया फिर मन नहीं माना तो जंगले से झांक कर देखा ,प्रो साहब बिस्तर से नीचे पड़े थे ,कुछ अस्पष्ट सा बोल रहे थे दरवाजा तोड़कर उन्हें निकला गया, डॉ के आने पर मालूम हुआ उन्हें पैरालेसिस का अटेक पड़ा है ,,आनन फानन में डॉ ने उन्हें भर्ती करलिया स्वजनों ने बताया कि बाबूजी का लड़का भी तो इसी एरिया का विश्वविख्यात डॉ है ,उनसे भी चर्चा कर ली जाए बहुत फ़ोन किये बड़े मेल और मैसेज भेजे गए मगर ५ दिन तक कोई कॉन्ट्रैक्ट ही नहीं हो पाया, फिर एक दिन फोन कॉल आया नौकर ने उठा या दूसरी तरफ से आवाज आई कौन सर्वेंट देवा बोल रहें है ,डॉ सुकेश ने पूछा है क्या प्रॉबल्म है क्या चाहिए ,देवा ने पूरी सूचना दी, दूसरे दिन फिर फ़ोन आया है देवा मैं बोल रहा हूँ देवा जोर जोर से रोने लगा भैय्या बाबूजी को पैरालेसिस अटैक आया है, दीदी आयी ही नहीं, वो शायद बाहर विदेश गई है ,सुकेश बोलै चुप होकर मेरी बात सुनो मैं अगले वीक देखने आता हूँ अस्पताल में कोई जरूरत हो बताओ , डॉ से बात कराओ ,डॉ सर सर करके बात करता रहा एक अकाउंट न बताता रहा और कभी उत्साहित और कभी मायूस जैसा दिखा ,फ़ोन कट चुका था डॉ पूरी ताकत से इलाज में जुट गया था और सबकी दुआएं दवाएं रंग लाइ और डॉ रंगा एक बार होश में आ ही गए | १० वे रोज डॉ रंगा को छुट्टी मिल गई थी |
एक माह बाद घर के सामने एक सैलून वाहन आकर रुका, २ दरबान आगे आकर कोई स्प्रे कररहे थे ,एक सामने पैसेज की सफाई में जुटा था प्रोफेसर रंगा के कमरे तक स्प्रे किया गया रूम को साफ़ किया गया और जब ग्रीन सिगनल हुआ तो डॉ सुकेश निकले और धीरे धीरे बाबूजी के कमरे में पहुंचे ,बड़े विह्वल थे बाबूजी आधे अधूरे बैठ गए थे ,सुकेश ने पाँव छुएं फिर हैंड क्लीनर निकलकर हाथ धोये ,और बात करने लगे , देवा तबतक पानी और नाश्ता लेकर आया सुकेश ने मना कर दिया ,अभी कुछ नहीं लेना सब है, उसने इशारा किया एक दरबान पानी के साफ गिलास और बोतल से पानी दे गया , पिता कहते रहे बेटा अब तू आगया है ,अब मैं जल्दी ठीक हो जाऊँगा ,तेरे बराबर तो इस रोग का डॉ है ही कौन, सुकेश बोलै है वो तो ठीक है उस डॉ को समझा दिया है ,ठीक इलाज कर रहा है ,आपको यह कसम है की आप सच सच यह बताओ की आप क्या सोच रहे थे जब ये अटैक आया था ,आपको ,मेरी कसम आपको ,पिता भावुक हो गए थे बोले बेटा तेरी माँ की मृत्यु के बाद मुझ पर बहुत दबाब था की मैं एक शादी और करलूं मुझे लगा कि सौतेली माँ मेरे बच्चो से न्याय नहीं कर पाएगी, तो मैंने वो प्रस्ताव ठुकरा दिया , और तुम दोनों भाई बहिनों को माँ और बाप दोनो रूप में पाला है, उस रात यही सोच रहा था कि अब हाथ पैर जबाब दे रहे है ,अब मुझे अपने बच्चों के कन्धों की जरूरत है जो मुझे सहारा दे, सकें बस यही सोचते सोचते बेहोश हो गया था मैं | और सुकेश कही खो गया था विचारों में |
बी प्रेक्टिकल बाबूजी आप तो जानते है मै उस घर में भी कहाँ रह पाता हूँ, कभी न्यूयार्क कभी इंगलैंड कभी जर्मनी रोज भागना रहता है ,और इतनी सुविधाएं और देवा और शशि ,प्रभात को देख कर बोला की ये सब लोग सेवाकर ही रहे है, तो कोई प्रॉब्लम है ही कहाँ ,हाँ फिर भी एक बार सोचूंगा जरूर की मुझे क्या करना चाहिए , अब नाश्ते का टाइम होगया है ,दरबान तुरंत गर्म ब्रेड बटर और एक एक गिलास दूध की ट्रे लेकर आगया यह सैलून में पहले से ही था , पिताजी हतप्रभ , मूर्तिवत उसके साथ ब्रेड चबाने लगे , और अचानक सुकेश बोलै बाबूजी मुझे जाना होगा रात 8 बजे दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में मुझे एक आप्रेशन करना है , और फिर ३ बजे रत में मेरी फ़्लाइट है --------और बिना पिताजी का कोई उत्तर सुने सुकेश उठा उसने बेमन से फिर पाँव छुए --फिर हैंड क्लीनजर से हाथ साफ किये और टाटा करता हुआ चल दिया पिता की समझ ही नहीं आया कि उसे क्या कहना या क्या नहीं कहना चाहिए |
कुछ ही दिन बाद डॉ रंगा को फिर अटैक पड़ा उस ही डॉ के यहाँ लेजाया गया पूरी घटना सुनने के बाद डॉ कहीं खो गया था ,नौकर और प्रोफ साहब के विद्यार्थियों को उन्होंने कहा कि अब आप लोग पैसे के लिए परेशांन मत होना ,क्योकि प्रोफ साहब से मेरी बात होती ही रहती थी ,आप सब लोग तो उनकी सेवा ही करें ,यही सबसे बड़ा सहयोग होगा इलाज जोरो शोरो से चल रहा था और १० दिन बाद प्रोफेसर साहब चल बसे थे ,तीनों लोगबहुत रोये थे उनके अलावा कोई था ही नहीं ,फ़ोन पर फ़ोन लगाए जा रहे थे सुकेश और दीदी के फ़ोन आउट ऑफ़ कवरेज थे डॉ साहब ने शव को डीप फ्रीजर में रखवा दिया था अचानक डॉ साहब को याद आया कि दूसरे अटैक से तीन दिन पूर्व ही प्रो रंगा एक बैग यह कहकर छोड़ गए थे कि डॉ साहब ये रखना आप मैं अभी आया , और वो बैग अभी क्लीनिक में ही पड़ा होगा शायद उसमे कोई एड्रेस फ़ोन न मिलजाए ,डॉ ने बैग खोलकर देखा उसमे एक चिट्ठी खुली रखी थी कांपते हाथों से डॉ और प्रो रंगा के स्वजन सुनने लगे -----चिट्ठी का विवरण
डॉक्टर साहब नमस्ते बड़ा बोझ है, जीवन का आज सोच रहा था ,कि मैं दुनियां का बहुत बड़ा साइंटिस्ट सिद्ध हुआ संसार के सारे देशों का भ्रमण करते में मैंने अपने बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ा, हर जगह साथ ले जाता था, आपसे बहुत बात की मालूम हुआ आपके पिता ने भी बहुत कठिनाई से आपको इस मुकाम तक पहुंचाया और वो चल बसे,मैं उस दिन से आपको भी पुत्र जैसा मानता रहा बोला। कभी नहीं ,बेटा इतना बड़ा वैज्ञानिक होकर मैं यह नहीं समझ पाया कि जीवन में मूल्यों और आदर्शों की कक्षा तो सहानुभूति दया सेवा और संवेदनाओं के पहियों पर ही चलती है ,और जहाँ विज्ञान के रथ पर ये पहिये ही नहीं हों वहां नीरस , बदरंग फीका और अभावों का जीवन खुद ही व्यर्थ सिद्ध हो जाता है बेटा अब मैं अब जो कह रहा हूँ वो ध्यान से सुनना मैं भगवान् का बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ कि पहले अटैक के समय मुझे जीवन की असली पहिचान ,और मेरे अपने मुझे मिले है ,मेरे मरने के बाद मेरीअचल संपत्ति आप तीनों लोगों में आप बाँट दें जो लग भग ५० करोड़ की होगी और मेरा संस्कार भी आप सब मिलकर करदें मैंने अपने मन और न्यायालयीन कागजों में यही लिखा है ,और आपके लिए मैंने अपना बेटा समझते हुए आपके अकाउंट में १० करोड़ रूपए ट्रांसफरके लिए चेक दिए है ,जो एक माह बाद आपके खाते में पहुंच जाएंगे, आप सबसे यही विनती है कि ,आप यह अवश्य ध्यान रखें की जो विज्ञान सहायता दया श्राद्धा और संवेदनाओं से परे है उसका हर परिणाम केवल विनाश कारी ही होगा |
चारों लोग जोर जोर से रो रहे थे ,अचानक फ़ोन की घंटी बजी मई सुकेश बोल रहा हूँ ---- डॉ ने तुरंत कहा हाँ बाबूजी आपके लिए भी एक पेरा लिख गए है सुनिए ---बहुत बिजी हो तुम और तुम्हारी बहिन ----- आउट ऑफ़ कवरेज ----एरिया -------- बेटा बहुत बड़ा होने ------ विश्वप्रसिद्ध डा होने का मतलब होता है सवेदना हींन ,आदर्श हीन , दया प्रेम वात्सल्य और ममत्व जैसे शब्दों से परे होना , हां तुम इन सबसे आउट ऑफ़ कवरेज एरिया ही बने रहे ,खैर अब तुम बिजी ही रहो ,मैंने तुम्हे सब मेल कर दिया है और तुम्हारे ऊपर ही छोड़ दिया है की तुम एक बार फिर साइंस ----और अपने सेन्स को परख करके देखना जीवन तुम्हे हारा हुआ सिद्ध कर देगा | फिर भी मैंने अपने संपत्ति से १०-१०-करोड़ तुम्हे भेज दिए है क्योकि तुमपर टाइम नहीं है | ईश्वर तुम्हे खूब खुश रखें | दूसरी तरफ से आवाज बंद हो गई थी|
साइंस और सेन्स का युद्ध जीवन भर चलता ही रहा है और यही विडम्बना बनी रही कि, जो साइंस को बहुत ज्यादा जानता गया, वैसे वैसे उसमे विचार शून्यता ,आभाव , आदर्श और मानवोचित गुणों के स्थान पर अहम् , वैमनस्यता ,अहंकार ,और विद्वेष भरता चला गया, जबकि संसार की पूर्णता के लिए हर विज्ञान को माध्यम बनाया गया था , जीवन के सर्वोन्नत शिखर पर दया- सहष्णुता -करुणा - प्रेम और परमार्थ का विशाल मैदान है जबकि भटके हुए साइंस से केवल विनाश -चीत्कारें -अपमान -प्रतिद्वंदिता -स्वार्थ और पराभव ही प्राप्त हुआ है ,इतिहास गवाह है की शक्तियों और वैज्ञानिक पराकाष्ठा की सोच के साथ यह भाव स्वतः जुड़ जाता है कि हर कोई आपके दासत्व को स्वविकर करले बढ़ता हुआ साइंस कम होता हुआ सेन्स और यही क्रम एक दिन इंसान को महा विनाश के सामने खड़ा कर देता है, ठीक वैसे ही जैसे दो जानवर अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए जान से मरने मारने की हदपर लड़ाई लड़ रहे हों|
आउटऑफ़ कवरेज एरिया ------ है आप अपने आपसे ---- आदर्शों और अपनी सोच से -------- अपने खुद से दूर जाने के कारण ही शायद आप अपनी आतंरिक शक्तियों को नहीं ढूढ़ पा रहे है ,हजारो लाइक्स , हजारों दोस्त और हजारो मैसेज में हम अपने आपको कहीं पा ही नहीं रहे , लाखों फोटो लिए बैठे है हम अपनाचेहरा ही भूल गए है ,हर बार नई फोटो मैसैज ----- और हजारों लाइक्स और भयानक नशा एक अडिक्ट की भाँति अपने आपको ढूढ़ते ढूढ़ते खुद खोते जा रहे है परिणाम यह कि जीवन जिस बड़ी खोज के लिए चला था वो स्वयं भटकने लगा है ,और हम शायद अपने आप से इतना दूर निकल गए है ,की जहाँ दूसरे की सोच से हमारा कोई वास्ता ही नहीं रह गया है परिणाम हम स्वयं अपने बनाये हुए कारागार में ऐसे कैद होते जारहे है जहाँ केवल यही आवाज आ रहीं है जिस शख्श को आपने फ़ोन लगाया है वो आउट ऑफ़ कवरेज एरिया है ---------
सहानुभूति -विचारोनुभूति -सवेदनाएँ मानवोचित आदर्शों के लिए जरूरी है यदि किसी विज्ञान की सार्थकता का प्रश्न कही पाया जाता है तो वह इनके उद्गम से ही पहिचाना जाएगा ,इतिहास ने जो जो क्रांतियां देखी है उनके पीछे यही तथ्य रहा है की समय विकास औरउसके लिए किये गए प्रयास केवल इसलिए किये गए थे, कि वे मानवीयता के लिए वरदान बन कर सामने आये मगर जैसे जैसे समय ने राष्ट्रों और व्यक्तियों ने अपने आपको सर्वशक्तिमान सिद्ध किया वैसे वैसे वे सब लिए ख़तरा बन बैठे , और विकास का वरदान ही जब आपके लिए विनाश का अभिशाप सिद्ध होने लगे तो आपको एक बार पुनर्विचार की आवश्यकता अवश्य है जो आपको सही आइना अवश्य दिखाए गा |
आज जब सम्पूर्ण विश्व की शक्तियां एक दूसरे पर आँखे तरेर रही है, कोई किसी का वर्चस्व मानने को तैयार ही नहीं है ,वहां हम कौन से विज्ञान और मानव कल्याण की कहानी सूना रहे है ,एक राष्ट्र कहता है उसकी सेनाएं सुरक्षित है उसपर परमाणुबम्ब है ,दूसरा कहता है उसपर भी वही शक्तियां है जो सामने वाले देश पर है , तीसरा कहता है मुझ पर दूर बॉम्ब भेजने की तकनीक नहीं है, मगर मुझ पर हाइड्रोजन बम है मैं अपने ही एरिया में विस्फोट करके सारी पृथ्वी को ख़त्म कर दूंगा क्या आपकी साइंस का मूलभूत उद्देश्य यही था ,कि आप मानव कल्याण के नाम पर स्वयं विध्वंसक सिद्ध हो जाए, शायद साइंस के साथ आपने अपना सेन्स --सेंस्टिविटी और सहानुभूति सब खो दी है |
निम्न पर विचार करें
- जीव न में मूल्यों को कभी नहीं भूलें उनके बिना विकास का कोई महत्व है ही नहीं
- मानव कल्याण और सहष्णुता से ही जीवन को बढ़ते हुए क्रम मे रखा जासकताहै, यदि आप स्वयं से दूसरे की सहायता के लिए तैयार न हो पाए तो स्वयं नष्ट हो जाएंगे |
- विकास ----साइंस ------ सेन्स का उद्भव परमार्थं और कल्याण के लिए हुआ है और उसे सकारात्मक रखना आवशयक है |
- निरंतर विचार शीलता के साथ विकास में दूसरे अपनों को शामिल करते रहें ,क्योकि उनके शामिल होने पर ही आपकी असल जीत होगी |
- सुख सबकी आवश्यकता है मगर जब तक आप किसीके सुख के कारक नहीं होंगे ,तबतक आप को भी सुख प्राप्त नहीं होगा|
- विकास विज्ञान का यह मतलब कभी नहीं रहा कि वह अपने आपको कर्तव्यों और आदर्शों से मुक्त समझे ध्यान रहे नकारात्मकताओं और सकरात्मकताओं का फल अलग और अवश्य मिलता है |
- साइंस के साथ अपने सेन्स को सकारात्मक बनाये रखे, क्योकि यही आपके सेन्स को सकारात्मक रख सकता है |
- विकास और कर्त्तव्य दोनों में सामंजस्य रखने वाला ही जीवन को समझ पाता है और दोनों की ही आवश्यकता आपको उत्कर्ष पर ले जाएगी |
- साइंस का प्रयोग सेन्स को जागृत करते हुए ही करें अन्यथा निर्माण के औजारों से हाथ भी काट जाते है |
No comments:
Post a Comment