सफलता से एक कदम पहले
one step before success
बचपन से बाबा ने नितिन को यही समझाया था कि पुत्र पूरी ताकत से ब्रह्माण्ड से जो भी मांगोगे और उसके लिए खुद को क्रियान्वित करदोगे, तो दुनिया की कोई मांग ऐसी नहीं है ,जो आप प्राप्त न करपायें ,आप जीवन के चरम लक्ष्य सफलताएं ,सहज ही प्राप्त कर सकते है ,आवश्यकता इस बात की है कि आप निरंतर सार्थक प्रयास करते रहे और सोते जागते अपने लक्ष्य को दोहराते रहें |
गांव के एक छोटे स्कूल से पास होने के बाद शहर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था हमारा नितिन अंतिम वर्ष था इंजीनियरिंग का बड़ी बेज्जती झेली थी हमारे नितिन ने विश्वविद्यालयों में बड़े दोस्तों के समूह रोज की पार्टियां और होटलबाजी ,आधे अधूरे नशे में लड़के लड़कियों की टोली ,क्या क्या नामों से बुलाते थे उसे , फूहड़ गंवार देहाती लल्ला , और मामू ये सब सुनते सुनते क्षुब्ध होगया था मन ,यदाकदा भटकता रोता , और इन दोस्तों के बाह्य दिखावे से प्रभावित जरूर होता था , ऐसा मेँ क्यों नहीं हो पाया, बाबा हमेशा कहते बेटा तू क्यों करता है ,इनसे अपनी तुलना, एक दिन सबको मालूम पढ जायेगा कि , तू सबसे अच्छा है ,और थोड़ा बहुत बोलकर वह बाबा की बात पर विशवास कर ही लेता था |
इंजीनियरिंग की अंतिम परीक्षा में नितिन के ८७%अंक आये, टॉप किया था उसने, परन्तु मन में यहीं फाँस बनी रहती थी कि मै स्मार्ट क्यों नहीं हूँ ,शायद मै ही ऐसा लगता होऊंगा, जैसा ये सब बोलते है, बाबा के निरंतर प्रयास प्रोत्साहन और प्रेरणाओं से नितिन ने आई ए एस परीक्षा की आरभिक परीक्षा में संभाग भर में अकेला स्थान पाया , जो लोग कल तक नितिन को फूहड़ -देहाती- गंवार- मामू बोलते रहे थे ,उन्हें समझ नहीं आरहा था वो कैसा व्यवहार करें ,कई तथाकथित सहपाठियों ने एक पार्टी रखी ,लड़के -लड़कियां मना कर नितिन को भी ले गए पार्टी में , नितिन गौरवान्वित सा उन लोगो को देख रहा था ,जो कल तक उपहास बना रहे थे,आज कुछ ज्यादा लिपट चिपट रहे है , आज उसे बड़ा सकूं मिला, उन स्मार्ट लड़के लड़कियों द्वारा स्वागत पाते हुए ,सबको यह वादा करता हुआ कि समय समय पर आपको सहयोग करता रहूँगा ,पार्टी ख़त्म हुई | नितिन को बाबा की बातया याद अवश्य आई ,एक दिन तुम ही श्रेष्ठ साबित होंगे | बाबा ने ठीक ही तो कहा था |
आगे की परीक्षा की तैयारी बहुत जोरो शोरो से आरम्भ हो चुकी थी, अब क्या था एक बार और हिम्मत दिखाई और पार हो जाऊँगा मै, परन्तु एक बड़ा परिवर्तन नितिन में आया था कि ,उसे यदा कदा उन कक्षा के सह पाठियों का ध्यान आ जाता था और मन कहता था, तू ही सर्व श्रेष्ठ है, कैसा मजाक उड़ाया था मेरा, अब सब ठीक होगये ,बधाई देने वालों का ताँता लगा रहता था ,दोस्त भी उसकी प्रसंशा करने आते रहते थे ,बाबा कभी दबे स्वर में कहते बेटा समय का ध्यान रखो, वो बड़ी उपहास भरी नजर से देख कर बाबा को कह्देता ,देखूँगा मालूम है मुझे क्या करना है ,घरवालों पर यदाकदा चिल्ला देता था ,कि दिखता नहीं है ,कि मुझे काम है ,मन कहता मै सर्वश्रेष्ठ हूँ ,इन्हे नहीं मालूम की कितना काम करना होता है ,श्रेष्ठ बनने के लिए ,बाबा उसके इस व्यवहार को देख कर कुछ कहते नहीं थे मगर दुखी हो जाते थे मन ही मन |
परिवर्तन का समय इतना आहिस्ता ,धीरे- धीरे निकलता है ,वह मालूम ही नहीं पड़ने देता कि आपपर उसका प्रभाव नकारात्मक हो रहा है, या सकारात्मक ,वह तो आपके जरा से लापरवाह होने पर, सबकुछ छीनने का साहस रखता है| नितिन पूर्ण आश्वस्त था ,कि अब आगे के लिए उसे क्या क्या करना है ,बहुत उत्साहित -प्रसन्न और लापरवाह सा|
रिजल्ट शीट में कहीं भी नितिन का नाम नहीं था ,कई साइड्स पर जा कर देखा कहीं नहींथा नाम , बदहवासी और बेहाल सा नितिन सब जगह खोज खोज कर थक गया था ,फोन पर फोन की घंटियां----- नितिन ने फोन बंद किया ,और एक अँधेरे कमरे में जाकर लेट गया ,जोर से चक्कर आरहे थे उसे , यह समझ नहीं आरहा था क्या हुआ यह ,हाल में गुजरा हुआ एक एक पल उसके सामने सिनेमा की भांति गुजरने लगा , सारा का सारा अव्यवस्थित , लुटा हुआ , और अस्त व्यस्त सा लग रहा था उसे, हाल में बिताया हुआ अतीत ,दोस्तों के स्वार्थी व्यवहार -समय की बर्बादी ,घरवालों से उसका बेरुखा व्यवहार , सब घूम गया था उसके सामने ,बाबा के द्वारा बड़ी हिम्मत करके बोले गए शब्द आज भी घूम रहे थे उसके कानों में , में बेटा समय का ध्यान रखो और उसका रूखा सा जबाब और बाबा का मायूस चेहरा ,न जाने कब तक रोता रहा था वो ,अचानक बाबा ने कमरे की लाइट जलाई, भीगा चेहरा भारी व्यग्रता देख कर वे धीरे धीरे उसके सिर पर हाथ फेरने लगे और उन्होंने कहना आरम्भ किया -----
पुत्र जीवन का यह अध्याय बहुत आवश्यक ही था, बेटा जिसतरह ठंडी ,भारी वायु की तरफ, खाली और गर्म हवा पूरी तीव्रता से उसपर एक ही क्षण में आक्रमण करके उससे सारी नमी और गरिमा या भारी पन ख़त्म करके उसे पल भर में उसे रिक्त बना कर अस्तित्व हीं कर देती है ,वैसे ही जब समाज को आपके भारीपन का एहसास होने लगता है, तो उसकी प्राकृतिक क्रियान्वयनता आपके विचारों एकाग्रता और उद्देश्य को नष्ट भ्रष्ट करने हेतु क्रिया शील होजाती है, आपको मालूम ही नहीं पड़ पाता तबतक, आप में शारीरिक मानसिक विकृतियां पैदा हो गई होती है ,आपके अहंकार के सहारे समाज की नकारात्मकता आप में प्रवेश कर जाती है ,परिणाम हम अपने उद्देश्य से पथ भ्रष्ट होकर अपने आपसे ही मति भ्रम की स्थिति पैदा कर बैठते है ,सार यह कि हमारा लक्ष्य और हमारी सफलता के उच्च शिखर हमे प्राप्त होते होते ओझल होजातेहै , हमारी स्थिति उस राजा की तरह होती है ,जिसका भव्य राज तिलक होरहा होता है ,सारे शहर में उत्सव का माहौल था और मुकट पहनकर राज तिलक होते ही यह अहंकार में भर गया ,मुझसे बड़ा संसार में कोई है ही कहा ,और नींद खुल गई सर्वत्र शून्य था उसके अतिरिक्त कुछ बचा ही नहीं था | जीवन इसी तरह एक लम्हे में सबकुछ दे सकता है और एक पल में सबकुछ छीन लेता है | पुत्र यह सब नव जीवन की शुरुआत है तुम्हारी ,एक बार उठो और फिर जुट जाओ देखो सफलता तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कररही है |
नितिन की समझ में आगया था कि उसने अतीत में क्या गलतियां की थी, क्यों उसने अपने दोस्तों से अपनी तुलना की थी ,क्यों बाबा सहज और समय के अनुसार स्वयं को एकाग्र करने को कह रहे थे , और क्यों उसे अपनी आधी अधूरी जीत का इतना उन्माद या अहंकार हुआ ,उसने एक बार परमपिता परमात्मा से मन ही मन क्षमा मांगी और बाबा के पाँव छूकर अपनी टेबल पर पंहुचा और अपना स्टडी लेम्प जला दिया, बाबा पूर्ण आश्वस्त होकर प्रसन्न मुद्रा में अपने कमरे की और बढ़ गए उन्हें मालूम था की अब जीवन नितिन को कभी हरा नहीं पायेगा |
आप यही समझिये कि बहुत बड़े काले केनवास पर, एक छोटा सा सफ़ेद बिंदु। यही लक्ष्य था और अनंत तक फैली कालिमा या नकारात्मकता का साम्राज्य था ,अब यदि पूर्ण एकाग्र भाव से स्वांसों को स्तब्ध कर अपना लक्ष्य देखा पाए ,तब ही आप सफल हो सकते है ,अन्यथा नैपथ्य में फैला विशाल अंधकार ही, नकारात्मकता बनकर खड़ा हो जाता है, एक मार्ग यह भी है की लक्ष्य के साथ पूरे केनवास को ही पूरा नाप डालो ,वहां की हर असफलता नैराश्य और न उम्मीदी को पूरा समझ कर ,उसपर नजरें गड़ा दो, अंधकार की कालिमा सकारात्मकता के सहारे अचानक ही सूर्य के प्रचंड वेग की रोशनी की तरह सफलता विजय और उत्साह बन करखड़ी हो जायेगी, ये १००%सफलता होगी जहाँ तुलना- नकारात्मकता के भाव होंगे ही नहीं |
बहुत बारीक अंतर होता है गर्व और घमंड में, दोनों का उद्भव केंद्र मन ही पैदा करता है, मन मष्तिष्क में दबी पिसी भावनाएं सदैव अपनी आपूर्तियों की मांग करती है और कुछ हम समाज कोदेख कर समझ कर झूठी प्रसशा के लिए अपने में पैदा कर लेते है ,परिणाम वे नकारात्मक होते हुए भी ,हमे उस समय थोड़ा संतोष अवश्य देसकते है , मगर उसके दूरगामी परिणाम नकारात्मक ही होते है |
लक्ष्य और जीवन के सच्चे उद्देश्यों के साथ कुछ चल ही कहा पाता है ,आत्मबल जब स्वयं पर गर्व के रूप में चिंतन शील होता है ,तब उसमे दूसरों से तुलना का भाव होता ही नहीं है ,उसमें आकाश की ऊंचाइयां ,सूर्य का तीव्र प्रकाश, सन्निहित होता है ,जबकि घमंड का उद्भव नकारात्मक भाव से उत्पन्न होता है ,जिसमें स्वयं का सर्वांगीण विनाश स्वयं पनपने लगता है ,गर्व पोषण करता है और घमंड स्वयं को समूल नष्ट कर देता है |
यदि जीत के अंतिम पलों में हम लापरवाह हुए तो हमारे क्रियान्वयन में भटकन के हजारों आयाम खड़े होने लगते है, हम क्या अच्छा लग रहा है ,क्या नहीं ,इसकी फिक्र करने लगते है ,हमारे पास बहानों की लिस्ट आजाती है , आधी अधूरी जीत के अहंकार से उपजी शारीरिक मानसिक नकारत्मकताये समय विशेष में हमे अच्छी लगने लगती है , पूर्व के लक्ष्य मानदंड हमें धूमिल होते दिखते है ,जीवन अपने अनुसार परिभाषाएं गढ़ने लगता है ,वे सारी बातें जो जीवन के उत्कर्ष के लिए जरूरी थी महत्व हीन दिखाई देने लगती है ,अपने ही लक्ष्यों में हम हजारों कमियां निकालकर खड़े होजाते है, उन सब लोगो का सामना करने से हम बचने लगते है ,जो हमे अपने लक्ष्य के सामने खड़ा करें ,फिर सफलता संतोष और जीवन की उपलब्धियां अपने अर्थ खोने लगती है, और बचता है उपलब्धियों से समायोजन समय से समायोजन और कल से समायोजन जो हमारा लक्ष्य नहीं था |
निम्न का प्रयोग ध्यान रखिये
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बचपन से बाबा ने नितिन को यही समझाया था कि पुत्र पूरी ताकत से ब्रह्माण्ड से जो भी मांगोगे और उसके लिए खुद को क्रियान्वित करदोगे, तो दुनिया की कोई मांग ऐसी नहीं है ,जो आप प्राप्त न करपायें ,आप जीवन के चरम लक्ष्य सफलताएं ,सहज ही प्राप्त कर सकते है ,आवश्यकता इस बात की है कि आप निरंतर सार्थक प्रयास करते रहे और सोते जागते अपने लक्ष्य को दोहराते रहें |
गांव के एक छोटे स्कूल से पास होने के बाद शहर के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ रहा था हमारा नितिन अंतिम वर्ष था इंजीनियरिंग का बड़ी बेज्जती झेली थी हमारे नितिन ने विश्वविद्यालयों में बड़े दोस्तों के समूह रोज की पार्टियां और होटलबाजी ,आधे अधूरे नशे में लड़के लड़कियों की टोली ,क्या क्या नामों से बुलाते थे उसे , फूहड़ गंवार देहाती लल्ला , और मामू ये सब सुनते सुनते क्षुब्ध होगया था मन ,यदाकदा भटकता रोता , और इन दोस्तों के बाह्य दिखावे से प्रभावित जरूर होता था , ऐसा मेँ क्यों नहीं हो पाया, बाबा हमेशा कहते बेटा तू क्यों करता है ,इनसे अपनी तुलना, एक दिन सबको मालूम पढ जायेगा कि , तू सबसे अच्छा है ,और थोड़ा बहुत बोलकर वह बाबा की बात पर विशवास कर ही लेता था |
इंजीनियरिंग की अंतिम परीक्षा में नितिन के ८७%अंक आये, टॉप किया था उसने, परन्तु मन में यहीं फाँस बनी रहती थी कि मै स्मार्ट क्यों नहीं हूँ ,शायद मै ही ऐसा लगता होऊंगा, जैसा ये सब बोलते है, बाबा के निरंतर प्रयास प्रोत्साहन और प्रेरणाओं से नितिन ने आई ए एस परीक्षा की आरभिक परीक्षा में संभाग भर में अकेला स्थान पाया , जो लोग कल तक नितिन को फूहड़ -देहाती- गंवार- मामू बोलते रहे थे ,उन्हें समझ नहीं आरहा था वो कैसा व्यवहार करें ,कई तथाकथित सहपाठियों ने एक पार्टी रखी ,लड़के -लड़कियां मना कर नितिन को भी ले गए पार्टी में , नितिन गौरवान्वित सा उन लोगो को देख रहा था ,जो कल तक उपहास बना रहे थे,आज कुछ ज्यादा लिपट चिपट रहे है , आज उसे बड़ा सकूं मिला, उन स्मार्ट लड़के लड़कियों द्वारा स्वागत पाते हुए ,सबको यह वादा करता हुआ कि समय समय पर आपको सहयोग करता रहूँगा ,पार्टी ख़त्म हुई | नितिन को बाबा की बातया याद अवश्य आई ,एक दिन तुम ही श्रेष्ठ साबित होंगे | बाबा ने ठीक ही तो कहा था |
आगे की परीक्षा की तैयारी बहुत जोरो शोरो से आरम्भ हो चुकी थी, अब क्या था एक बार और हिम्मत दिखाई और पार हो जाऊँगा मै, परन्तु एक बड़ा परिवर्तन नितिन में आया था कि ,उसे यदा कदा उन कक्षा के सह पाठियों का ध्यान आ जाता था और मन कहता था, तू ही सर्व श्रेष्ठ है, कैसा मजाक उड़ाया था मेरा, अब सब ठीक होगये ,बधाई देने वालों का ताँता लगा रहता था ,दोस्त भी उसकी प्रसंशा करने आते रहते थे ,बाबा कभी दबे स्वर में कहते बेटा समय का ध्यान रखो, वो बड़ी उपहास भरी नजर से देख कर बाबा को कह्देता ,देखूँगा मालूम है मुझे क्या करना है ,घरवालों पर यदाकदा चिल्ला देता था ,कि दिखता नहीं है ,कि मुझे काम है ,मन कहता मै सर्वश्रेष्ठ हूँ ,इन्हे नहीं मालूम की कितना काम करना होता है ,श्रेष्ठ बनने के लिए ,बाबा उसके इस व्यवहार को देख कर कुछ कहते नहीं थे मगर दुखी हो जाते थे मन ही मन |
परिवर्तन का समय इतना आहिस्ता ,धीरे- धीरे निकलता है ,वह मालूम ही नहीं पड़ने देता कि आपपर उसका प्रभाव नकारात्मक हो रहा है, या सकारात्मक ,वह तो आपके जरा से लापरवाह होने पर, सबकुछ छीनने का साहस रखता है| नितिन पूर्ण आश्वस्त था ,कि अब आगे के लिए उसे क्या क्या करना है ,बहुत उत्साहित -प्रसन्न और लापरवाह सा|
रिजल्ट शीट में कहीं भी नितिन का नाम नहीं था ,कई साइड्स पर जा कर देखा कहीं नहींथा नाम , बदहवासी और बेहाल सा नितिन सब जगह खोज खोज कर थक गया था ,फोन पर फोन की घंटियां----- नितिन ने फोन बंद किया ,और एक अँधेरे कमरे में जाकर लेट गया ,जोर से चक्कर आरहे थे उसे , यह समझ नहीं आरहा था क्या हुआ यह ,हाल में गुजरा हुआ एक एक पल उसके सामने सिनेमा की भांति गुजरने लगा , सारा का सारा अव्यवस्थित , लुटा हुआ , और अस्त व्यस्त सा लग रहा था उसे, हाल में बिताया हुआ अतीत ,दोस्तों के स्वार्थी व्यवहार -समय की बर्बादी ,घरवालों से उसका बेरुखा व्यवहार , सब घूम गया था उसके सामने ,बाबा के द्वारा बड़ी हिम्मत करके बोले गए शब्द आज भी घूम रहे थे उसके कानों में , में बेटा समय का ध्यान रखो और उसका रूखा सा जबाब और बाबा का मायूस चेहरा ,न जाने कब तक रोता रहा था वो ,अचानक बाबा ने कमरे की लाइट जलाई, भीगा चेहरा भारी व्यग्रता देख कर वे धीरे धीरे उसके सिर पर हाथ फेरने लगे और उन्होंने कहना आरम्भ किया -----
पुत्र जीवन का यह अध्याय बहुत आवश्यक ही था, बेटा जिसतरह ठंडी ,भारी वायु की तरफ, खाली और गर्म हवा पूरी तीव्रता से उसपर एक ही क्षण में आक्रमण करके उससे सारी नमी और गरिमा या भारी पन ख़त्म करके उसे पल भर में उसे रिक्त बना कर अस्तित्व हीं कर देती है ,वैसे ही जब समाज को आपके भारीपन का एहसास होने लगता है, तो उसकी प्राकृतिक क्रियान्वयनता आपके विचारों एकाग्रता और उद्देश्य को नष्ट भ्रष्ट करने हेतु क्रिया शील होजाती है, आपको मालूम ही नहीं पड़ पाता तबतक, आप में शारीरिक मानसिक विकृतियां पैदा हो गई होती है ,आपके अहंकार के सहारे समाज की नकारात्मकता आप में प्रवेश कर जाती है ,परिणाम हम अपने उद्देश्य से पथ भ्रष्ट होकर अपने आपसे ही मति भ्रम की स्थिति पैदा कर बैठते है ,सार यह कि हमारा लक्ष्य और हमारी सफलता के उच्च शिखर हमे प्राप्त होते होते ओझल होजातेहै , हमारी स्थिति उस राजा की तरह होती है ,जिसका भव्य राज तिलक होरहा होता है ,सारे शहर में उत्सव का माहौल था और मुकट पहनकर राज तिलक होते ही यह अहंकार में भर गया ,मुझसे बड़ा संसार में कोई है ही कहा ,और नींद खुल गई सर्वत्र शून्य था उसके अतिरिक्त कुछ बचा ही नहीं था | जीवन इसी तरह एक लम्हे में सबकुछ दे सकता है और एक पल में सबकुछ छीन लेता है | पुत्र यह सब नव जीवन की शुरुआत है तुम्हारी ,एक बार उठो और फिर जुट जाओ देखो सफलता तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कररही है |
नितिन की समझ में आगया था कि उसने अतीत में क्या गलतियां की थी, क्यों उसने अपने दोस्तों से अपनी तुलना की थी ,क्यों बाबा सहज और समय के अनुसार स्वयं को एकाग्र करने को कह रहे थे , और क्यों उसे अपनी आधी अधूरी जीत का इतना उन्माद या अहंकार हुआ ,उसने एक बार परमपिता परमात्मा से मन ही मन क्षमा मांगी और बाबा के पाँव छूकर अपनी टेबल पर पंहुचा और अपना स्टडी लेम्प जला दिया, बाबा पूर्ण आश्वस्त होकर प्रसन्न मुद्रा में अपने कमरे की और बढ़ गए उन्हें मालूम था की अब जीवन नितिन को कभी हरा नहीं पायेगा |
सफलता के पूर्व का छण इतना शक्तिशाली और सूक्ष्मानिवेशी होता है ,जिसमे शरीर- मन -बुद्धि की तीव्रता कई गुनी अधिक हो जाती है , वही प्रसंशा का अतिरेक , अहंकार का प्रस्फुटन , स्वयं का गलत आकलन , और दूसरों से स्वयं की तुलना जैसे नकारात्मक भाव स्वतः पैदा होजाते है, ऐसे में लक्ष्य सिद्धि हेतु अडिग एकाग्रता की आवश्यकता होती है ,जबकि उसको भ्रमित करने वाले कारक बहुत अधिक होते है ,दूसरी और सर्वश्रेष्ठ होने का भ्रम विष बन कर समाज परिवार की उपेक्षा करने लगता है ,शारीरिक -मानसिक और आंतरिक उद्वेग लक्ष्य से भटकाने लगते है ,वे नकारात्मक मांग बन जाते है, फिर सबकुछ शांत लक्ष्य उद्देश्य और सफलता सब अदृश्य उस पानी - साबुन के बुलबुले की तरह जिससे अभी कोई अबोध खेलरहथा अचानक वो गायब होगया, बालक हतप्रभ है कहा गया मेरा रंग बिरंगा गेंद |
आप यही समझिये कि बहुत बड़े काले केनवास पर, एक छोटा सा सफ़ेद बिंदु। यही लक्ष्य था और अनंत तक फैली कालिमा या नकारात्मकता का साम्राज्य था ,अब यदि पूर्ण एकाग्र भाव से स्वांसों को स्तब्ध कर अपना लक्ष्य देखा पाए ,तब ही आप सफल हो सकते है ,अन्यथा नैपथ्य में फैला विशाल अंधकार ही, नकारात्मकता बनकर खड़ा हो जाता है, एक मार्ग यह भी है की लक्ष्य के साथ पूरे केनवास को ही पूरा नाप डालो ,वहां की हर असफलता नैराश्य और न उम्मीदी को पूरा समझ कर ,उसपर नजरें गड़ा दो, अंधकार की कालिमा सकारात्मकता के सहारे अचानक ही सूर्य के प्रचंड वेग की रोशनी की तरह सफलता विजय और उत्साह बन करखड़ी हो जायेगी, ये १००%सफलता होगी जहाँ तुलना- नकारात्मकता के भाव होंगे ही नहीं |
अर्ध सफलता के साथ सफलता के पहले वाला समय बहुत ही चिनौती पूर्ण होता है ,यह समय अति शक्ति शाली संवेदनशील और निर्णायक होता है,यह आपको अधिकाँश सफलता मन बुद्धि और बाह्य वातावरण से प्राप्त हो चुकी होती है ,परिणाम जीत काउन्माद ,आप में एक खोखला अहंकार पैदा कर देता है ,मन बुद्धि का भाव अपनी जीत से अधिक दूसरों की जीत के भाव की तुलना करने लगता है ,समाज -परिवार और वातावरण का आकलन प्रभाव सब नकारात्मक होने लगता है ,अंतिम जीत के लिए जो मानसिकता होनी चाहिए होती है, वह तीव्र वेग ,शक्ति ,लगन सब गतिहीन होने लगती है ,क्योकि एक मात्र स्वयं का विजय उद्देश्य अपने लक्ष्य से भटकजाता है |
बहुत बारीक अंतर होता है गर्व और घमंड में, दोनों का उद्भव केंद्र मन ही पैदा करता है, मन मष्तिष्क में दबी पिसी भावनाएं सदैव अपनी आपूर्तियों की मांग करती है और कुछ हम समाज कोदेख कर समझ कर झूठी प्रसशा के लिए अपने में पैदा कर लेते है ,परिणाम वे नकारात्मक होते हुए भी ,हमे उस समय थोड़ा संतोष अवश्य देसकते है , मगर उसके दूरगामी परिणाम नकारात्मक ही होते है |
लक्ष्य और जीवन के सच्चे उद्देश्यों के साथ कुछ चल ही कहा पाता है ,आत्मबल जब स्वयं पर गर्व के रूप में चिंतन शील होता है ,तब उसमे दूसरों से तुलना का भाव होता ही नहीं है ,उसमें आकाश की ऊंचाइयां ,सूर्य का तीव्र प्रकाश, सन्निहित होता है ,जबकि घमंड का उद्भव नकारात्मक भाव से उत्पन्न होता है ,जिसमें स्वयं का सर्वांगीण विनाश स्वयं पनपने लगता है ,गर्व पोषण करता है और घमंड स्वयं को समूल नष्ट कर देता है |
यदि जीत के अंतिम पलों में हम लापरवाह हुए तो हमारे क्रियान्वयन में भटकन के हजारों आयाम खड़े होने लगते है, हम क्या अच्छा लग रहा है ,क्या नहीं ,इसकी फिक्र करने लगते है ,हमारे पास बहानों की लिस्ट आजाती है , आधी अधूरी जीत के अहंकार से उपजी शारीरिक मानसिक नकारत्मकताये समय विशेष में हमे अच्छी लगने लगती है , पूर्व के लक्ष्य मानदंड हमें धूमिल होते दिखते है ,जीवन अपने अनुसार परिभाषाएं गढ़ने लगता है ,वे सारी बातें जो जीवन के उत्कर्ष के लिए जरूरी थी महत्व हीन दिखाई देने लगती है ,अपने ही लक्ष्यों में हम हजारों कमियां निकालकर खड़े होजाते है, उन सब लोगो का सामना करने से हम बचने लगते है ,जो हमे अपने लक्ष्य के सामने खड़ा करें ,फिर सफलता संतोष और जीवन की उपलब्धियां अपने अर्थ खोने लगती है, और बचता है उपलब्धियों से समायोजन समय से समायोजन और कल से समायोजन जो हमारा लक्ष्य नहीं था |
निम्न का प्रयोग ध्यान रखिये
- जीवन के क्रियान्वयन का सूत्र केवल यही रहे कि, सफलता से पूर्व कुछ नहीं , यही से जीवन के लक्ष्य की स्पष्टता सिद्ध हो सकती है |
- समय के साथ आरहे परिवर्तनों को बहुत बारीकी से अध्ययन करें क्योकि कई परिवर्तन आज सही हो सकते है मगर उन्ही अपनाये जो दीर्घकालीन एवं आपके अनुकूल हों |
- नकारात्मक विचारों पर ध्यान न दें ,क्योकि ये विचार आपको अपने सफलता के लक्ष्य से दूर लेजा सकते है ,और यह सत्य है की आपकी वैचारिकता से ही आप में सकारात्मकता और नकारात्मकता का जन्म होता है |
- नकारात्मक विचारो और सकारात्मक विचारों पर पैनी नजर बनाये रखे और उनपर विजय हेतु एक कार्यकारी योजना अवश्य बनायें |
- निरंतर अपनी कमियों और गुणों के सम्बन्ध में अपने आदर्श लोगो से सलाह लेते रहे ,क्योकि परिवर्तनों का मार्ग सकारात्मक रहना ही आपकी विजय का प्रथम प्रतीक है |
- अधूरी विजय पर आपमें पैदा होने वाला अहंकार , प्रमाद और व्यवहार में नकारात्मकता न आजाये नहीं तो सफलता स्वयं व्यर्थ सिद्ध हो जायेगी |
- झूठ फरेब अहंकार और अपने आपसे छलावा न करें सत्य हमेशा शक्तिशाली ही रहेगा ,जबकि झूठ बार बार आपको कमजोर और कमजोर बनता जाएगा |
- जिन लोगो के बारे में आपको झूठ फरेब और असत्य का सहारा लेना पड़े, उन्हें तुरंत छोड़ने में आपका हित होता है, अन्यथा आप अपने जीवन के चरम तक कभी नहीं पहुँच पाएंगे |
- क्रियान्वयन की निरंतरता आपको लक्ष्य के प्रति जागरूक रखती है, यदि आप पूर्ण गतिशील भाव से क्रिया को निरंतरता देते रहे तो, आप निश्चिततः सफल सिद्ध होंगे |
- व्यक्ति वातावरण परिस्थिति स्थिर नहीं हो सकती, परन्तु आपका लक्ष्य क्रियान्वयन और एकाग्रता वैसी ही बनी रहनी चाहिए, जो आपकी विजय के लिए जरूरी हो |
- सफलता के लिए निरंतर बढ़ते हुए क्रम में प्रयास किये जाने चाहिए ,प्राथमिक स्तर पर सामान्य ,दूसरे स्तर पर तीव्र और अंतिम स्तर पर पूरी तीव्रता से प्रयास करें ,जितना आगे बढ़ें लक्ष्य के प्रति उतनी सावधानी और लेलें यहीं से आपको निश्चित सफलता मिलेगी |
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