Sunday, July 16, 2017

सफलता समय-धैर्य और सकारात्मकता की खेती है(success is cultivation of time-patience and positiveness )

सफलता समय-धैर्य और सकारात्मकता की खेती है(success is cultivation of time-patience and positiveness )

राजा शूरसमर  एक प्रतापी राजा था अपने पूरे जीवन काल में हजारों युद्ध जीत कर अपने आपको कई बार साबित कर चुका था वह , रानियां पुत्र पौत्र और भरा पूरा परिवार था उसके पास बस राजा की एक ही समस्या थी की वह हमेशा इसी उधेड़ बुन में रहता था कि  कही कोई उसका राज्य न हथिया ले कोई उसे हानि न पहुंचा सके, कोई उसको लूट न ले और सबके साथ एक बड़ा भय यह भी कही मै  मर न जाऊं | राजा कभी भी परिवार की छोटी छोटी बातों में उलझ जाता था, रानी की समझाइश पर, बच्चों की शैतानियों पर और एक दूसरेको छोटा बड़ा बताने पर भी हर जगह लड़ बैठता था | राजा की इस सोच से पूरा राज परिवार परेशान  था, न कोई उत्सव न कोई त्यौहार न कोई कार्यक्रम जिससे प्रजा और  राजा  का मनोरंजन हो सके|  एक दिन राजा ने यह मुनादी करवा दी कि  जो कोई उसे इस रोग से मुक्त कर देगा उसे आधे राज्य की दौलत दे दी जायेगी और जो उसमे सफल न हुआ तो उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा कई लोग आये और शिकार हो बैठे उसकी सनक का ,एक दिन एक साधु आया और उसने कहा मै आपके रोग का इलाज कर सकता हूँ, मगर आपको मुझे १ माह देना होगा और आप मेरे साथ ही रहेंगे मै   आपके राज्य की सीमा में ही अआपके साथ रहूँगा राजा ने बहुत सोचा और सबको बताया मेरा राज्य चारो और से सेनाओं से सुरक्षित है चलो यही सही यह कहकर वह साधु के साथ चल दिया
चलते चलते वे दोनो एक घने जंगल में पहुँच गए प्यास के मारे बुरा हाल था राजा का ,उसने कहा मै  तेरी गर्दन काट कर फेक दूंगा, पानी  लेकर आ साधु मुस्कुराया और अपना कमंडल लिए आगे बढ़ गया ,उसके जाने के ५ मिनट  बाद  ही एक शेर की जोर से दहाड़ सुनाई दी और राजा बेतहाश भागने लगा और भागते भागते बेहोश होकर गिर पड़ा जब उसे होश आया तो उसने स्वयं को बहुत बलिष्ट और ताकतवर महसूस किया, पास ही वही साधु बैठा उसकी सेवा कर रहा था , राजा को भूख लगी थी  उसने आधे अधूरे खाये फलों को देखा ,फिर तेज भूख के कारण कुछ न बोलते हुए खाना चालू कर दिया , अद्वतीय स्वाद था उन फलों का , राजा ने साधु से पूछा हम कहाँ है साधु बोला  ,राजा हम जंगल में भटक गए है पिछले २माह  से आप अपनी याददाश्त खोये पड़े थे ,उस रोज मै आपको भागता देख, आपके साथ चला आया यहाँ आकर आप बेहोश होगये , होश आने पर आप अपनी याददाश्त खो बैठे थे ,और उसी अवस्था मेँ आपने कई शेरो और जंगली जानवरो को वीरता पूर्वक भगा दिया ,आप निर्भीक , अजेय योद्धा की तरह व्यवहार करते रहे और ये फल मेवा और दूध आप ही एकत्रित  करके लाये हो और पूरी सफाई आपने ही मेरे साथ की है ,कई आदिवासी आपसे ही शिक्षा के लिए आते  है , शाम में राजा ने देखा कि  वह एक चमत्कारिक बहाव में आदिवासियों को जीवन के गहरे राज समझा रहा है , जीवन के वे दार्शनिक सत्य जो उसने कभी सुने थे वो उसे एक एक कर  याद आरहे है ,राजा ने  कहा साधु महाराज ये कैसा परिवर्तन किया है आपने ---- तो साधु ने कहा  राजा तू पिछले जन्म में एक बहुत तेजस्वी राजा था जो कालांतर में सन्यासी हुआ ,परन्तु घोर साधना के बाद भी तेरा मोह नष्ट नहीं होपाया ,परिणाम तुझे फिर एक असंतुष्ट राजा बनना पड़ा ,मैं तेरा पूर्व जन्म का गुरु था मैंने तुझे केवल तेरा विस्मृत स्वरुप याद  दिलाया है और तूने उसे पूर्ण भी किया है |


साधु ने कहा पुत्र जीवन के मूल में जो सबसे शक्तिशाली तत्त्व है, वह है समय और वह  इतना विराट स्वरुप वाला है जिसके सामने सभी नगण्य है, इतने विराट तत्त्व को जीतने का एक मात्र उपाय है  सब्र और स्वयं की साधना और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को स्वयं की चेतना में अविभूत करना, बस यही एक मात्र कुंजी है ,उस अमृत्व को पाने की , भय , विषाद ,कामनाएं और अच्छा बुरा तुम्हे उलझाने वाले जाल है और जितनी देर आप इनकी कामनाओं में उलझेंगे आत्मतत्व से उतनी ही देर में मिल पाएंगे और आत्म तत्त्व से साक्षात्कार बिना आप अपने ही बोये कर्मों से इसप्रकार घबराते और डरते  रहेंगे जैसे आग से खेल खेल में आपने अपने कमरे  को जलते हुए और खुद को घिरा हुआ पाया है और अब आप खुद डरे सहमे और चिल्लाते हुए दिख रहें है | यही गति है हम सबकी |


अंत में साधु ने बताया की पहले ४ दिनों में ही आप खाना लाना पानी लाना और अपनी रक्षा  करना जानते थे आप सुनसान में बैठ कर निरंतर चिंतन करते रहते थे   और आप पूर्ण और विद्वता के शिखर पर खड़े दिखाई देते थे , राजन अब आपकी सेनाये आपको ढूढते हुए आरही है, आप स्वयं को नयी यात्रा के लिए तैयार करलें ,राजा और साधु  राज्य में लौट आये  एक नैतिक ,आदर्शों और जीवन को जानने वाला पूर्ण पुरुष से  | साधु को राजा ने आधा राज्य दिया तो उसने हँसते  हुए लौटा दिया और कहा, पुत्र आज तूने जिस सब्र और समय को जीतने की दौलत प्राप्त की है, वह कई राज्यों से बहुत बड़ी है, राजा साधु के सामने नत मस्तक हो गया और अपने पुत्रों को राज काज सूप कर साधु के साथ हो लिया | 

आम जीवनमे हम सभी एक तिलस्मी व्यक्तित्व लिए घूम रहे है उसमें केवल बनावटी ,अधूरा और नकारात्मकता से भरा मन जीवित है ,समय की अबाध गति की दौड़ में केवल इस कृत्रिमता के सहारे हम बहुत दौड़ चुके है और अपनी नकारात्मकता को सराहकर भी स्वयं को श्रेष्ठ  बताने की होड़ में लगे है ,जबकि मन आपके इस आचरण से  छुब्ध होकर आपको और  अधिक नकारात्मक बना रहा है , क्योकि  ध्यान रहे आत्मा को आपकी झूठ से सदैव कष्ट ही प्राप्त होगा ,और आप सामायिक उपलब्धियों के लिए कोई भी दांव लगाने को तैयार है ,आपकी दशा उस हारे हुए जुआरी की तरह है जो अपने दांवो में सब कुछ हार चुका है , मगर समाज से यही मांग कररहा हो कि आपको सर्वश्रेष्ठ ही समझा जाए ,अब आप बताइये कि जब आपकी आत्मा ही स्वयं कोअपराधी की तरह समझ रही है और आप  स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बताने की जिद कररहे है ऐसे में आप सुख शांति कैसे पाएंगे यह प्रश्न चिन्ह है |


सफलता का सूत्र  सकारात्मकता -सब्र - साधना -सहजता और स्वयं को सत्य स्वरुप में समझने और समझाने में ही निहित है समय के प्रवाह की तेज धार को केवल इनसे ही जीता जा सकता है ,इसके अतिरिक्त विराट समय को ब्रह्माण्ड में कोई बाँध  ही नहीं पाया है ,साधना के सूत्र से सकारात्मक विश्वास  के सहारे निरंतर कार्यकरने का प्रयत्न आपको पूर्ण सफलता दे सकता है बस आवश्यकता स्वयं के प्रति ईमानदारी बनाये रखने की है, क्योकि इसके आभाव में आप स्वयं सफल भी होजाये तो ,जीवन के अंतिम छोर पर पूर्णानंद और शांति के पास कभी नहीं पहुँच पाएंगे, जो आदमी का चरम लक्ष्य भी हैऔर उसके बिना आदमी  की सारी उपलब्धियां शून्य वत  हो जाती है या  इंसान स्वयं अपने लिए एक ऐसा जाल बना  डालता है जिसमे उसका स्वयं का अस्तित्व उलझ जाता है सफलता का आशय सारी नकारात्मक सोच से स्वयं को मुक्त कर स्वयं को परमानंद तक लेजाना है ||


   निम्न  का प्रयोग अवश्य करें

  • जीवन कर्त्तव्य  साधना और सब्र का ही मायने है जितना संभव हो उसे अपने व्यवहार में लाते रहें ध्यान रहे सब्र से कर्त्तव्य की साधना जितनी सटीक होगी सफलता का पूर्ण रूप उतना ही बड़ा होगा | 
  • सकल्प के साथ विषम स्थितियों में भी अपना सब्र बनाये रखें क्योकि जितना गहरा सब्र  होगा आपकी सफलता के आयाम वैसे ही होंगे | 
  • स्वयं को सर्वश्रेष्ठ बनाने की चाह के लिए अपने आचरण और व्यवहार को सदैव परखते रहें किसी भी स्थिति में उसमे नकारात्मकता पैदा नहीं होने दें | 
  • निरंतर स्वयंको बड़ा  चेष्टा में दूसरों को हीन  सिद्ध न करें अन्यथा  स्वयं की नकारात्मकता में स्वतः वृद्धि होने लगेगी जो आपके विकास में बाधक होगी | 
  • विषम स्थितियों में यह अवश्य ध्यान रखा जाए कि एक अमोघ शक्ति सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड  की नियंता है और वही सब समस्याओं को हल करेगी ,और यही विश्वास आपके जीवन को सफल बना देगा | 
  • समय की बहुमूल्यता को समझते हुए, अपने हर जीवन पल का प्रयोग उसप्रकार कीजिये जिसप्रकार तपते रेगिस्तान में जल की कुछ बूँदें आप समय को बहुमूल्य समझेंगे तो समय आपको बहुमूल्य बनादेगा | 
  • सकारात्मकता मूल मंत्र है जीवन का जिसके सहारे विश्वास ,कर्त्तव्य संकल्प  सब धनात्मक होकर आपको उन्नति की और लेजाने लगते है | 
  • सफलता का मतलब यह कदापि नहीं है की आप भौतिक रूप से साधन संपन्न होजाये या आप बहुत सारा धन -संपत्ति अर्जित करलें , सफलता का आशय यह है की आपकी आत्मा पूर्ण प्रसन्न होकर आपकी उपलब्धियों को सफल सिद्ध करें | 
  • अपने स्वयं को सदैव सत्य के सामने खड़ा रखें ,जीवन के किसीभी स्तर पर आपको बनावटी चरित्रों और परिवेश का सहारा नहीं लेना पड़े अन्यथा आप अपनी पहिचान खो डालेंगे | 
  • स्वयं को अपने अंदर से पहिचानने का प्रयत्न करें क्योकि जब तक आप स्वयं की शक्तियों से अपरचित रहेंगे तबतक आप केवल  शोषित होकर दुखी होते रहेंगे | 
  • स्वयं को एकाग्र कर शक्तियां पहिचानें और उनका श्रेष्ठ प्रयोग करें आपको जीवन बहुत सुलझा हुआ लगने लगेगा और सारी जटिलताएं ख़त्म हो जाएंगी | 
  • क्रोध से बुद्धि का नाश और बुद्धि नाश से समय की मृत्यु होने लगती है अतैव तुरंत क्षमा का व्यवहार सबसे उचित है जिससे आपके समय की जागृति आपके काम आ सके | 
  • तुलना और श्रेष्ठता की परीक्षा प्रकृति का विषय न होकर अहम् की  लड़ाई है और यही  अहम् आदमी में नकारात्मकता पैदा कर देता है |

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