Sunday, April 19, 2015

पूर्ण परित्याग आदर्श के लिए आवश्यक है(complete abandonment is necessary for ideal)


गाँव में बड़ी अच्छी धूम धाम थी गांव की सीधी सादी बेटी का विवाह  जो था ,खूब उत्साह और प्रसन्नता से आमोल से ब्याही गई  थी वैशाली, आमोल गुजरात के एक  शहर में नौकरी करता था माँ बापके बहुत जिद करने पर आमोल विवाह के लिए तैयार हुआ था , विवाह हो गया था सब कुछ अपनी जगह स्थिर हो गया , आमोल  फिर नौकरी में चला गया था बार बार आग्रह करने के बाद भी आमोल वैशाली को  लेकर नहीं गया, अब वैशाली के एक एक साल का बेटा भी था, सास स्वसुर बहू  की सेवा से बहुत प्रसन्न थे, कई बार उन्होंने भी कहा  बेटा  वही ले जाओ बहूको ,आमोल नहीं माना, एक दिन की वैशाली सास स्वसुर से पूंछ कर आमोल के पते पर अचानक गुजरात पहुँच गई घंटी बजाने पर एक महिला ने दरवाजा खोला  वैशाली ने पूछा आप कौन है महिला ने कहा मै अमोल की पत्नी हूँ ,एक बड़ा आघात सहा था वैशाली  के मन ने , पीछे आमोल को खड़ा देखा कर उसने कहा यह महिला कहती है वह  तुम्हारी पत्नी है ,तुम क्या कहते हो, आमोल चुप रहा ३ बार प्रश्न  का कोई उत्तर न मिलने पर वैशाली लौट कर चल दी ,एक नए गंतव्य की और ,अपने किसी भाई के यहाँ थोड़ी सी जगह ली पांचवी , की परीक्षा दी और वही छोटे बच्चो को पढाने लगी ,ग्यारवीं , स्नातक और स्नात्तकोत्तर की पढ़ाई  भी धीरे धीरे पूरी हुई, अब समय बदल गया था ,वैशाली के पुत्र बहू  और उनके बच्चों से भरा घर एक श्रेष्ठ गुरुकुल सा वातावरण थावैशाली का घर , वैशाली  शहर के बड़े स्कूल की प्राचार्य , आज वैशाली शहर के सबसे बड़े शिक्षक अवार्ड  से नवाजी गई , समारोह में  पूरा जीवन चक्र घूम गया उसकी आखों में और पता नहीं रहा उसे कि मंच से क्या क्या बोलती रही वह ----

  मैं नहीं जानती क्या अच्छा और क्या ख़राब था  जीवन में, परन्तु जबतक मन  परिवर्तनों में अपना पूर्ण संकल्प और निष्ठां के साथ कार्य नहीं करता तब  जीवन सामंजस्य मांगता रहता है और हम इस जीवन के आदी हो जाते है जिसमे शोषण झूठ फरेब और आडम्बर भरे पड़े है ,और यहीं यातना ,दुःख और जीवन को जुल्म सहने की आदत पड  जाती है | जीवन में अपने सहज आदर्शों के लिए आप पूर्ण संकल्प शक्ति से ग्राह्यता और परित्याग का पूर्ण  भाव जगाने की शक्ति पैदा कीजिए   आपको जल्दी ही यह विश्वास  हो जाएगा कि जीवन ने आपके सामने घुटने टेक दिए है और हर सफलता आपके पीछे हाथ बांधें खड़ी है जीवन की कुछ एक परेशानियां आपको आदर्शों से हटने को प्रेरित अवश्य करेंगी मगर यदि  परित्याग और संकल्प पूर्ण हुआ तो वे आपको   पूर्ण सिद्ध कर देगी




हर मनुष्य को जीवन जीतने के सामान अवसर देता है हम समाज और संबंधों में बांधें अपनी पूर्णता ढूढ़ते रहते है बार बार हमारे पास कई तरह के निर्णय खड़े होते है जहाँ हम पर केवल दो विकल्प या तो हम बिना आदर्शों के साथ अपने  आपको निरीह सिद्ध करके दूसरेकी कृपा के पात्र  बने रहें ,अथवा अपने आदर्शों को और मजबूत बना कर कठोर निर्णय लेकर जीवन को सर्वात्तम सिद्ध करदें | अनंत आवश्यकताओं के साथ जीवन हर तरह की उपलब्धियां मांगता है और हम उन उपलब्धियों को पाने के चक्कर में बार बार जीवन समन्वय स्थापित करने लगता है ,और जीवन के आदर्श अपने आप से हारने लगते है ,| 
  

मित्रों हम भौतिक उपलब्धियों के लिए हरबार सामंजस्य स्थापित करते करते अपनी सारी गुणवत्त्ता छोड़ बैठते है , उन्हीं शारीरिक एवं  उपभोग के साधनों और क्रियाओं के लिए जीवन के सारे आदर्श त्याग डालते है ,परिणाम मनुष्य के मानसिक स्तर को कभी परमानंद का भाव प्राप्त ही नहीं हो पाता ,जीवन क्रियाओं और उपभोग में बंधा अपने आदर्शों से आँखें बंद करलेता है परिणाम मन मष्तिष्क का सारा ज्ञान कैसे भी सुख और सफलता प्राप्त करने के यत्न में लग जाता है और धीरे धीरे ये सामंजस्य उसकी हर सफलता , सुख और आनंद को नष्ट भ्रष्ट कर डालती है | और जीवन निराश थका और हार सा जान पड़ने लगता है |


जिसमे संकल्प की शक्ति नहीं है जीवन उसे गुलाम बना लेता है जिससे हर कोई उसका प्रयोग कर सके | 
हम संकल्प और त्याग की  पूर्णता से हमेशा भयभीत रहते है, क्योकि हम अनभिज्ञ समय की कल्पना का नकारात्मक चित्र अपने मन मष्तिष्क में खींच चुके होते है ,या  स्वयं को बिलकुल निरीह और बेचारा बना कर समाज में प्रस्तुत करते है ,ध्यान रहे यदि आप समय के डर से, या स्वयं को बेचारा बना कर समाज से कुछ पाना चाहते है ,तो आपका शोषण अवश्य होगा ही , आप जीवन भर समन्वय स्थापित करते करते, अपने स्वयं की उपलब्धियों से काफी दूर निकल जाएंगे और जहाँ तक आदर्शों का प्रश्न है वो आपके पास होंगे ही नहीं क्योकि आपका स्वभाव भविष्य से डरा हुआ और अकर्मण्यता के साथ बेचारा बन चुका होगा , अब यहाँ केवल आपका उपयोग ही हो पायेगा , लोग समय और परिस्तिथि बदलने पर भी आपका उपयोग निरंतर चलता रहेगा क्योकि जीवन ने आपको संकल्प की शक्ति ही नहीं दी है |





जीवन की  पूर्णता के लिए इन्हें भी आजमाइए | 

  • आदर्शों की स्थापना कीजिए और उन्हें दोहराते रहिये तथा जीवन के विपरीत समय में अपने आपको आदर्शों के पक्ष में ही रहना स्वीकार करें ,क्योकि आदर्श  आपको जीवन में सकारात्मक बदलाव देना चाहते है | 
  • संकल्प की शक्ति का प्रयोग किसी सत्य या आदर्श को अपनाने का या किसी असत्य ,अन्याय के प्रतिरोध का भी हो सकता है आप आदर्शों की तरफ ही चलनें का प्रयत्न करें | 
  • भाव एवं व्यक्ति के परित्याग का का निर्णय मौन होकर लें और बार बार अपनी आत्मा को कमजोर बनाने का उपकृम ना करें ,एकबार में अडिग निर्णय लें,| 
  • परित्याग की भावना के साथ शर्तें न लगाएं या तो आपने परित्याग किया है या नहीं किया है आप दोनो तरफ रह कर स्वयं को धोखा दे रहें है | 
  • जीवन में तीन तरह के निर्णय महत्व पूर्ण है ,प्रथम  संसाधन प्रयोग,व्यक्तिगत सम्बन्ध और समय के साथ होते परिवर्तन ,इसमें व्यक्ति और संबंधों के मामले में आप बिलकुल  स्पष्ट मत बनाये उनसे समायोजन नहीं करें | 
  • संकल्प और परित्याग के मामले में हम  झूठ के साथ जी रहे होते है , समाज के मत में हम जो आदर्श  बता रहे होते है हम उनमे ही झूठे साबित होते रहते है परिणाम कभी हम विकास के गंतव्य तक नहीं पहुँच पातें | 
  • आत्मा को आनंद की अनुभूति आपके झूठ फरेब और अधिक से अधिक संसाधनों का प्रयोग करने से नहीं अपितु आपके संकल्प की दृणता से होती है नहीं तो मन ही आपको बुरा बताता रहेगा | 
  • सत्य और आदर्शों के साथ स्वयं को स्थापित करने के बाद आपकी हर समस्या स्वयं हल हो जाएगी , क्योकि जबतक हम स्वयं के अभिमान और तुलना की ऋणात्मकता से स्वयं को बचा कर आदर्श नहीं बना पाये तो जीवन हमें व्यर्थ साबित करदेगा | 
  • सत्य और संकल्प को मौन के साथ वैचारिक चिंतन के आधारों पर विकसित कीजिए थोड़ा सा संघर्ष अवश्य करना होगा फिर जीवन स्वयं निर्णय लेकर आपको उच्च शिखर पर बैठा देगा | 
  • संकल्प और परित्याग से आपकी जीवन शैली में भयानक तूफ़ान अवश्य आ सकते है मगर स्थिर मानसिकता से जीवन का सत्य आपको अगला मार्ग अवश्य देगा | 
  • झूठ  को सिद्ध करने के लिए हजारों झूठ की आवश्यकता होती है जबकि सत्य निरत अकेला और अनाथ होता है उसे किसी को सिद्ध कराने की आवश्यकता नहीं होती |




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