Thursday, April 2, 2015

अपनी सीमाओं को मत भूलिए (don't forget your limitation ) (पुरुष व स्त्री समाज में स्वतंत्रता का संघर्ष )

 अपनी सीमाओं को मत भूलिए (don't forget your limitation )

 (पुरुष व  स्त्री  समाज  में स्वतंत्रता का संघर्ष )

एक ५ वर्ष का बच्चा छत पर अपनी माँ से लड़ रहा था माँ उसके पीछे भाग रही थी और वह जिद कररहा था कि  मै छत से कूदूंगा टीवी में स्पाइडर मेन  कैसे कूदता है छत से, कैसे करता है ,सबकी हेल्प ,मालूम ही नहीं है तुम्हें ,माँ जबरदस्त परेशानी में थी, बच्चा जिद पर अडा  था और  माँ के द्वारा पकड़ लिए जाने पर ,रो रो कर सो गया था माँ भारी मन से उसका अबोध चेहरा देखती रही और खुद भी  अनायास रोने लगी , अब कैसे बताऊँ तुझे कि जो संसार के स्वप्न है उनमे जबरदस्त आकर्षण है मगर वे आकर्षण जीवन की जीवंतता को ही निगल जाते है और सम्पूर्ण जीवन केवल शोषण और दूसरों के प्रयोग का अवशेष सा रह जाता है जिसपर जीवन ही घृणा करने लगता है | माँ को अपनी जवानी और अति स्वतंत्रता का समय याद आने लगा परिवार से लड़ाई  जैसा चाहो वैसा करो की छूट तक , समाज में जो अच्छा लगा उससे  बनाये सम्बन्ध ,और कुछ समय में उनकी वास्तविकताएं ,और उम्र भर ऐसे ही अविश्वास और स्वार्थों के के संबंधों में वह यही सोचती रही  कि  वास्तव जीता कौन ? मेरा दुःख केवल यही है की मुझे किसी ने रोक क्यों नहीं ,? नहीं तो आज मै  नितांत अकेली अपने बच्चे को लिए समाज से संघर्ष नहीं कररही होती | माँ खुद भी फफक फफक के रो रही थी कोई नहीं था उसकी सिसकियाँ सुनने वाला | उसे बार बार महाभारत का वह चित्र याद आ रहा था जिसमे कुंती कृष्ण से कह रही थी की वासुदेव तुम तो रोक  सकते थे न युद्धऔर  विनाश को , और कृष्ण मौन से यही कह   रहे थे सबको अपने अपने अनुसार स्वतंत्रता चाहिए थी कौन था जो मेरी बात मानता यही वह समय है जो सबको हरा देता है |



आज हर रिश्ता अपनी अपनी सत्ता के बल पर अपने अधीनस्थ रिश्तों पर आधिपत्य चाहता है और उसे हरिश्चंद्र और सावित्री की तरह सत्यवादी और पूर्ण पतिवृता देखना चाहता है और स्वयं के लिए पूर्ण स्वतंत्रता मतलब हर जगह कुछ भी करने की स्वतंत्रता, तो ऐसे में तो महा युद्ध होगा ही न |  बड़ा ही विचित्र समय है यहाँ किसी को प्यार करना सम्मान करना , उसे आदर्श बनाना और उसके निर्देशों का पालन करना समर्पण का भाव बनजाना सब गुलामी की गिनती में आने लगा है | अब यहाँ किसी को भी श्रेष्ठ बताना प्रश्न वाचक ही है न |



आज के समाज में अति स्वतंत्रता का भाव तेजी से पनप रहा है वहां स्त्री पुरुष सभी अपनी अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष रत है , कोई किसी के वर्चस्व को मानने को तैयार है ही नहीं , यदि कोई नामचीन कलाकार यह कहती है कि उसे अपने हिसाब से जीवन के निर्णय लेने के अधिकार है तो तुरंत दुसरे पुरुष कलाकार अपना दुःख बयां करके अपने अनुसार स्वतंत्रता की मांग करने लगता है , और दोनों ही वैचारिक संप्रदाय अपने अपने स्थान पर ऐसे मालूम होते है जैसे जीवन ने अत्याधिक प्रतिबन्ध और समस्याएँ पैदा करदी है ,और जीवन अति प्रतिबंधात्मक यातनाओं से ग्रसित होकर पूर्ण स्वतंत्रता की मांग कर बैठा है | प्यारे मित्र दोनो ही अतिरेक की स्थिति है और दोनों ही श्रेष्ठ नहीं है ,|


वर्षों की गुलामी और प्रतिबन्ध की जीवन शैली जीकर हम  अचानक आज़ाद हो गए , हजारों बलिदानों और शहदतों को हम पूरी तरह से सोच भी नहीं पाये और पूर्ण आज़ाद हो गए , मित्रों विकास और  अनुशासन तथा स्व मूल्यांकन तथा कर्तव्यों की भावना से शून्य हम केवल अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे परिणाम देश को विकास का मार्ग पकड़ते पकड़ते ५० वर्ष से अधिक समय लग गया और आज हमें राष्ट्रीय भावनाए कर्त्तव्य अनुसाशन फिर से सीखना पड  रहा है तथा स्वतंत्रता को नए सिरे से समझने की आवश्यकता है |


 तोते   के तीन दिन के बच्चे को मैंने खरीदा और एक पिंजरे में रख कर पाला ६ माह बाद एक दिन मैंने उसे बड़ा देखते हुए एक डंडा लेकर उड़ने का प्रयास किया वो  भागा , घिसटा , लहूलुहान होगया मगर अच्छे से उड़ नहीं पाया क्योकि उसने उड़ाना सीखा ही कहाँ  था उसे  उड़ने की जीवन शैली सीखने के लिए समय चाहिए था और स्वतंत्रता के साथ  अनवरत प्रयास , धनात्मक सोच , परमार्थ का भाव और कठोर आत्म अनुसाशन चाहिए था जिसकी  अनुपस्थिति में आपका जीवनमृत्यु तुल्य , एवं  पराभव का कारक बन सकता है |



जीवन में जिसे अपनी अंतरात्मा , मन मष्तिष्क और व्यवहार पर कठोर नियंत्रण करना आता हो उसे जीवन की किसी भी स्वतंत्रता से कोई फरक नहीं पड़ेगा वह अपने जीवन चक्र पर किसी प्रकार भी विपरीत प्रभाव को वह त्याग के माध्यम से जीत सकता है , मगर वे लोग जो  अपने स्वजनों के व्यवहार से उपेक्षित ,नाराज और दुखी  होकर  परम स्वतंत्रता की मांग करते है  वे  स्वयं को जान ही नहीं पाते , एक बाल्टी रस्सी से बांध कर पानी भरने का कार्य कररही है और एक रस्सी से छूटी हुई नदी की तली में पड़ी अपना अस्तित्व खो चुकी है , यहाँ स्वयं को अपने लक्ष्यों और जीवन के उद्देश्यों से बांधे  रखने की आवश्यकता है |



जीवन की स्वतंत्रता की मांग के समय निम्न पर विचार करें
  •  क्या आप जो स्वतंत्रता मांग रहे है उसका प्रयोग जीवन  प्रत्येक पल में कर सकेंगे या आप किन्ही क्रियाओं और सुख से प्रेरित होकर यह मार्ग चुनना चाहते है | 
  • समाज का अधिकाँश व्यक्ति तुम्हारा उपयोग करने के लिए ही खड़ा है और आपकी स्वतंत्रता कहीं आपके इस उपयोग को सरल तो नहीं बना रही | 
  • हर सम्बन्ध पर  करें प्रेम विश्वास करें मगर उस पर इस प्रकार आश्रित न हों जिससे वह  आपके अधिकार और आपके व्यक्तित्व को उपेक्षित करदे | 
  • परस्पर विश्वास  के लिए यह आवश्यक है कि  आप स्वयं अपने आचार विचार और क्रियाओं पर नियंत्रण रखें और समय समय पर स्वयं  की परीक्षा करते रहें | 
  • आप सब कुछ करने हेतु स्वतन्त्र है मगर यह ध्यान अवश्य रहे कि आपके विचारो और क्रियाओं  की पुनरावृति आपके प्रियजन  करें तो आपको ख़ुशी हो शिकायत नहीं होनी चाहिए |
  • यदि आपको स्वयं के मन मष्तिष्क पर पूर्ण नियंत्रण का भाव है और आप जीवन को बहुत सकारात्मक दृष्टी से देखना जानते है तो आप स्वतंत्रता  मांग का सकते है | 
  • नकारत्मकताओं से पैदा हुआ स्वतंत्रता का बीज आपके अस्तित्व को ही नहीं वरन आपके समाज और राष्ट्र को भी नकारात्मक बना डालेगा | 
  • प्रतिबन्ध का आशय यह नहीं की आप जिसकी स्वतंत्रता चाहते है उस विषय वस्तु या कार्य का जीवन में  महत्व कितना है बल्कि  यह अधिक महत्व पूर्ण है की उससे आपके आदर्श तो प्रभावित नहीं हो रहे | 
  • आप जिस स्वतंत्रता की मांग और चाहना कररहे है क्या आप आदर्शों के रूप में अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी यही मूल्य देने के लिए सहमत है | 
  •  जीवन पर आपका जितना अधिक नियंत्रण हो आपको उतनी ही स्वतंत्रता की मांग करनी चाहिए क्योकि यदि आपके पास उस स्वतंत्रता के लिए सशक्त समाधान नहीं है तो आप स्वयं को परेशानी में डाल रहे है



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